Friday, September 21, 2018

छत्तीसगढ़ में किसान रोवत हे

धान के कटोरा कहईया ,छत्तीसगढ़ में किसान रोवत हे ।
कोचिया मन के भला करत हे, कमईया हर इँहा रोवत हे ।।

किसान के रंग पिऊंरा पड़गे,नेता मन के रंग गुलाबी।
कोठार हर सुन्ना होगे अऊ,देख नेता मन के हरियाली।।

मंडी में बनिया हर हांसत,खेतिहर के मेहनत रोवत हे।
धान के कटोरा कहईया ,छत्तीसगढ़ में किसान रोवत हे।।१।।

जबले छत्तीसगढ़ अलग होए हे, सरकार न भाए संगी।
कीमत निर्धारण के नीति ,कभू तो रास नही आए संगी।।

कर्जा बाढ़े लदात जावत हे, गांव गली के मान रोवत हे।
धान के कटोरा कहईया ,छत्तीसगढ़ में किसान रोवत हे।।२।।

शहर के बड़े आदमी हांसत हे,देख गांव के छानही ला।
हमेशा मुर्छा खाए जिंहा अब, सरकार छले मान ही ला।।

जलत किसान के लाश ला,देख संगी शमशान रोवत हे।
धान के कटोरा कहईया ,छत्तीसगढ़ में किसान रोवत हे।।३।।

भाषण बाजी सुनत बस होगे, हमन ल तो उन्नीस साल ले।
कोनो अईसे काम नि करिस जे,ऊपर उठाए ए जंजाल ले।।

नेता के  मीठलबरा भाषण में,"खेमेश्वर" उत्थान रोवत हे।
धान के कटोरा कहईया , छत्तीसगढ़  में  किसान रोवत हे।।४।।

           ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                    ओज-व्यंग्य/गीतकार
                      मुंगेली - छत्तीसगढ़
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Thursday, September 20, 2018

मां को समर्पित एक प्रयास

माँ बापू से बिछड़ कर गमगीन हो रहा हूँ ,
यादों में उनकी घायल मैं आज रो रहा हूँ !

अब कौन होगा मुझको वो प्यार दे सके जो ,
बाहों में ले के मुझको वो दुलार दे सके जो !

दिल में जो दर्द है वो अब मैं किसे दिखाऊँ ,
जाने कहां गये वो उनको कहाँ से लाऊँ !

तपिश मेरे बदन की माँ सह नहीं पाती थी ,
जाने वो कौन कौन से देवों को मनाती थी !

मेरे लिये न जाने कितनी ही नींदें खोयी ,
मेरी तड़प पे जाने वो कितनी बार रोयी !

अब याद आ रहा है बचपन मेरा सुहाना ,
माँ के ही हाथों खाना दे थपकियाँ सुलाना !

रोता था जब भी , मुझको गा लोरियां सुलाती ,
सोकर के पास मेरे सीने से वो लगाती !

गर्मी में रात भर वो पंखा मुझे झुलाना ,
सुबहा को नींद में ही रोटी दही खिलाना !

घुटनों के बल चला फिर उंगली पकड़ चलाया ,
हर इक बला से मुझको माँ ने सदा बचाया !

बारिश में भीगने से वो मुझको रोकती थी ,
सोहबत खराब होने से मुझको टोकती थी !

माँ का वो प्यार इतना मुझे याद आ रहा है ,
दरिया सा आँसुओं  का बहता ही जा रहा है !

माँ  ही  जमीं  थी  मेरी  बापू  जी आसमां थे ,
भगवान, गॉड , ईश्वर  वो  ही  मेरे खुदा थे !

दोनो  चले  गये अब  एकाकी  रह रहा  हूँ ,
यादें  ही   रह. गयी  हैं  बस  उनमें बह रहा हूँ !

एक बार काश मुझको माँ मेरी  मिल ही जाये ,
बाहों मे भर के मुझको सीने से तो वो  लगाये !

           ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                     मुंगेली - छत्तीसगढ़
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‎ ‏जब तक इस धरती पर पैदा,फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा ॥

सूरज कॆ वंदन सॆ पहलॆ,धरती का वंदन करता था,
इसकी पावन धूल उठा,माथॆ पर चन्दन धरता था,
भारत की गौरव गाथा का,ही गुण-गायन करता था,
आज़ादी की रामायण का,नित पारायण करता था,

संपूर्ण क्रांन्ति का भारत मॆं,सच्चा जन नाद नहीं हॊगा ॥
जब तक इस धरती पर पैदा,फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा ॥१॥

भारत माँ का सच्चा बॆटा,आज़ादी का पूत बना,
उग्र-क्रान्ति की सॆना का वह,संकट मॊचक दूत बना,
आज़ादी की खातिर जन्मा,आज़ादी मॆं जिया मरा,
गॊली की बौछारॊं सॆ वह,बब्बर शॆर न कभी डरा,

कपटी कालॆ अंग्रॆजॊं का खत्म,कुटिल उन्माद नहीं हॊगा ॥
जब तक इस धरती पर पैदा,फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा ॥२॥

सॊनॆ की चिड़िया कॊ गोरे,खुलॆ आम थे लूट रहॆ,
इसी सिंह के गर्जन सॆ थे,उनकॆ छक्कॆ छूट रहॆ,
उस मतवालॆ की सांसॊं मॆं,आज़ादी थी आज़ादी,
हर बूँद रक्त की थी जिसकी,आज़ादी की उन्मादी,

भारत की सीमाऒं पर कॊई,निर्णायक संवाद नहीं हॊगा ॥
जब तक इस धरती पर पैदा,फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा ॥३॥

अधिकारॊं की खातिर मरना,सिखा गया वह बलिदानी,
स्वाभिमान की रक्षा मॆं दॆनी पड़ती है कुर्वानी,
मुक्त-हृदय सॆ हम सब उसका,आओ अभिनंदन कर लॆं,
भारत माँ कॆ उस बॆटॆ कॊ,हम शत-शत वन्दन कर लॆं,

यह राष्ट्र-तिरंगा भारत का,तब तक आबाद नहीं हॊगा ॥
जब तक इस धरती पर पैदा,फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा ॥४॥

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

मेरा ए संदेश पहुंचा देना

आतंक के जनकों को मेरा ए संदेश पहुंचा देना
बात समझ न आए तो तीरछी बात समझा देना।

भेद नहीं है सीमा में, हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई मे
यहां मोहब्बत हर  कोने में, मिले हैं  भाई भाई में।

वामपंथी दक्षिण पंथी, पंडित चाहते हैं भोग जहां
राजनीति होती धर्म की,वोट बैंक का है रोग यहां।

इनको तो हम बदल ही लेंगे तुम अपना विचार करो
तुम्हारे नापाक इरादों को, बदल के हमसे प्यार करो।

बाप को बेटा,बहन मां को भी, तुमने अपने ही मारे हैं
बेमतलब रक्त नदी बहाते ,ऐसे तो  इतिहास तुम्हारे हैं।

छोटी सोंच बड़ी साज़िश,कर तंग करे हो कश्मीर
तत्काल पहुंचाएंगे जन्नत, बदल रख देंगे तकदीर।

आजादी से लेकर,धुर्तो , अनगिनत बार हो मिट चुके
जब जब आंख दिखाई हे, बारंबार हो तुम  पिट चुके।

हमारी मोहब्बत मजहब के बीच,कभी तोड़ न पाओगे
सिंधु सतलज ब्रह्मपुत्र की,की धारा को मोड़ न पाओगे।

इतिहास अपना अब भुल ,आओ हम से  प्यार करो
आतंक छोड़ नये  मोहब्बत, रिश्ते का इजहार करो।

मानलो तुम बात हमारी, समय तुम्हें देते हैं अब भी
पाक कोई था कहेंगे वर्ना, इतिहास  पढ़ेंगे  जब भी।

ऐसे अस्त्र चला देंगे कि,दुनिया से नामों निशान मिटा देंगे
अबकी कश्मीर पे दिखा कोई, पुरा पाकिस्तान मिटा देंगे।

              ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                       ओज-व्यंग्य/गीतकार
                         मुंगेली - छत्तीसगढ़
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Wednesday, September 19, 2018

कुर्सी के खातिर

बेच के रख दे हे भगवान,ए ईमान कुर्सी के खातिर
आदमी तो हो गिस अब, बेईमान  कुर्सी के खातिर!

दोस्ती अऊ गांव के रिश्ता भुला के तो ओ चल दिस
रजधानी चल दिस अब ओ अंजान,कुर्सी के खातिर!

मनखे हर-मनख रहितिस,तभो काफी रहिसे मनखे
मनखे ले अब इन होवथे तो, हैवान कुर्सी के खातिर!

सहजन के भरोसा तोड़े, अपन मन के करे बदनाम
जाके शहर में भूला गिस,हे इन्शान कुर्सी के खातिर !

गंवा डरे जज्बात जम्माे अऊ शपथ घलो स्वाहा होगे
पहिन के टोपी वो होगिस, दलवान  कुर्सी के खातिर!

बन के नेता चढ़ के कुर्सी, जनहित करे तैं सत्यानाश
बीजा-चारा-खातू-खेत,अऊ खदान कुर्सी के खातिर!

बेटी लूटथे अंधियारी मा,चाहे बाढ़ में बह जाए दुवार
खोजत रहिथे बेशर्मी उँहो, मतदान कुर्सी  के खातिर!

कोनो धरे हे तीन रंग,कोनो दू रंग ले बन बईठे सियार
अब मनखेच् खाथे  मनखे के, जान कुर्सी के खातिर!

ऐश तो करथे इन मन देश में,पीढ़ी बसथे विदेश जाए
सैनिक,नारी, नि छोड़य तो, किसान  कुर्सी के खातिर!

रेडियो, टीवी अऊ अखबार,भष्ट्राचार बर बोलत रहिन
बन्द कर दीन अब ऊँखरो,इन जुबान कुर्सी के खातिर!

नेता मन हर बांटथे भईया,हरा आऊ हावे केसरिया रंग
आदि-हरि-पिछड़ा-सवर्ण, मुसलमान कुर्सी के खातिर!

जनता जाए भाड़ मा संगी मजा उड़ाए के  एही हे बेरा
अमृत खुद बर जनता कराए,विषपान कुर्सी के खातिर!

का जरूरत विदेश घूमेके, सारी तीरथ देश में हे भईया
इन फूंकत हें रोटी-कपड़ा अऊ मकान कुर्सी के खातिर!

आगि लागथे मोर दिल ,जहन में आंधी दौड़े हे रात-दिन
अब तो उठ जा ललकार, हिंदुस्तान ....कुर्सी के खातिर!

रोज घररख्खा रंग बदलथे, सांप सही ऐखर जी फुंकार
ड्सथें इन त रोज जनता के अरमान,कुर्सी के खातिर..!

              ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                         मुंगेली - छत्तीसगढ़
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गांव के गुन ला गाबोन

गांव के माटी के रद्दा,बईला गाड़ी मा जाबोन,
बीच में आगर नदिया हे,डोंगहार ला बलाबोन।

छुट्टी पांच दिन के मिलिस, मन उमंग ले भरे,
दशहरा के बाद ही अब हमन स्कूल जाबोन।

खेत अऊ ब्यारा घलो,हुड़दंग  हम  मचाबोन,
लईकुसहा दिन सुघर, कभू भूल नहीं पाबोन।

बड़ मजा आथे अभो, बचपन ला याद करके,
रोथंव चलो फेर,आंसू कहे आंखी नहीं आबोन।

नदी तिर बसे डिंडोरी ,नाव के सुघर मोर गांव,
कल-कल  बोहात नदी मा, खूब हम  नहाबोन।

गांव के  बगीचा में , छीता-बीही के पेड़ सजोर
ऐसो की छुट्टी मा गुरतुर, मीठा फर तो खाबोन।

रेहचुल मा झूलबो, खेलबो गिल्ली-डंडा, भंवरा,
छू-छूवऊल,सगली भतली,ठट्ठा बिहाव रचाबोन।

पिट्ठूल ,अऊ मार पूक, ओ पार वाले संग खेल,
पंचवा अऊ,बांटी-बदा बना रेंधी घलो मताबोन।

शहर के माहोल कभू रास नहीं आईस "खेमेश्वर"
हम सदा तो अपन सुघ्घर गांव के गुन ला गाबोन। 

              ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                         मुंगेली - छत्तीसगढ़
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Monday, September 17, 2018

दसनाम क्या है ?


दसनाम नायक, दसनाम ज्ञानी
दसनाम दाता, दसनाम दानी!

दसनाम है एक अमिट कहानी
दसनाम है सत्यता की वानी!

सकल सृष्टि दसनाम बोले
मेरी दृष्टि दसनाम बोले!

दसनाम राजा सभी हैं भिच्छुक
है सबका हृदय इसी का इच्छुक!

दसनाम पापों को नष्ट कर दे
दसनाम अहं को भ्रष्ट कर दे!

दसनाम प्रतीक एकता  का
दसनाम आनन्द आत्मा का!

दसनाम पूजा की आत्मा है
दसनाम मानव की आस्था है!

न पूछ मुझसे दसनाम क्या है?

दसनाम ही दूत है शान्ति का
जनक यही तो है क्रान्ति का!

दसनाम दाता सहिष्णुता का
दसनाम प्रकाश एकता का!

दसनाम त्रिलोक का है ज्ञाता
दसनाम सागर विनम्रता का!

दसनाम सावन, दसनाम जीवन
दसनाम जल है, दसनाम ही मन!

दसनाम दर्पन, दसनाम उपवन
दसनाम पर है ये प्राण अर्पन!

दसनाम मन्दिर, दसनाम पूजा
दसनाम जैसा कोई न दूजा!

दसनाम जल सा है प्राणदानी
दसनाम नैनों से बहता पानी!

दसनाम जीवित, अजर, अमर है
दसनाम सिंह है, दसनाम नर है!

दसनाम है एक असीम शक्ति
दसनाम है एक अटूट भक्ति!

दसनाम शालीनता का अम्बर
दसनाम सुन्दर, शलभ, मनोहर!

दसनाम मानवता का है योद्धा
अहिंसा की है दसनाम श्रद्धा!

दसनाम हृदय पवित्र कर दे
दसनाम ऊँचा चरित्र कर दे!

दसनाम पर है ये प्राण अर्पित
दसनाम पर आन मान अर्पित!

दसनाम अदभुत्, अमित, उजागर
दसनाम ही है दया का सागर!

दसनाम सुख को अनन्त कर दे
दसनाम दुख का भी अन्त कर दे!

दसनाम दुख का करे निवारण
दसनाम विजयी भवो का कारण!

दसनाम गौरव है भूधरा का
यही विजेता है करबला का!

दसनाम भीतर, दसनाम बाहर
दसनाम पावन, मधुर सरोवर!

दसनाम करूणामयी कथा है
न पूछ मुझसे दसनाम क्या है?

धरम है नौका, दसनाम वाहक
दसनाम ईश्वर का है सहायक!

सुमन सुमन भी दसनाम बोले
गगन गगन भी दसनाम बोले!

दसनाम बुद्धि, दसनाम वृद्धि
दसनाम ही दे रिद्धि सिद्धि!

दसनाम दुर्लभ, सुलभ, सलोना
दसनाम हीरा दसनाम सोना!

दसनाम *"खेमेश्वर"* की ऊर्जा है
न पूछ मुझसे दसनाम क्या है

            रचना -दसनाम पुष्पांजलि          
        ©✍पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी✍®
                  मुंगेली - छत्तीसगढ़
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न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...