Wednesday, September 19, 2018

कुर्सी के खातिर

बेच के रख दे हे भगवान,ए ईमान कुर्सी के खातिर
आदमी तो हो गिस अब, बेईमान  कुर्सी के खातिर!

दोस्ती अऊ गांव के रिश्ता भुला के तो ओ चल दिस
रजधानी चल दिस अब ओ अंजान,कुर्सी के खातिर!

मनखे हर-मनख रहितिस,तभो काफी रहिसे मनखे
मनखे ले अब इन होवथे तो, हैवान कुर्सी के खातिर!

सहजन के भरोसा तोड़े, अपन मन के करे बदनाम
जाके शहर में भूला गिस,हे इन्शान कुर्सी के खातिर !

गंवा डरे जज्बात जम्माे अऊ शपथ घलो स्वाहा होगे
पहिन के टोपी वो होगिस, दलवान  कुर्सी के खातिर!

बन के नेता चढ़ के कुर्सी, जनहित करे तैं सत्यानाश
बीजा-चारा-खातू-खेत,अऊ खदान कुर्सी के खातिर!

बेटी लूटथे अंधियारी मा,चाहे बाढ़ में बह जाए दुवार
खोजत रहिथे बेशर्मी उँहो, मतदान कुर्सी  के खातिर!

कोनो धरे हे तीन रंग,कोनो दू रंग ले बन बईठे सियार
अब मनखेच् खाथे  मनखे के, जान कुर्सी के खातिर!

ऐश तो करथे इन मन देश में,पीढ़ी बसथे विदेश जाए
सैनिक,नारी, नि छोड़य तो, किसान  कुर्सी के खातिर!

रेडियो, टीवी अऊ अखबार,भष्ट्राचार बर बोलत रहिन
बन्द कर दीन अब ऊँखरो,इन जुबान कुर्सी के खातिर!

नेता मन हर बांटथे भईया,हरा आऊ हावे केसरिया रंग
आदि-हरि-पिछड़ा-सवर्ण, मुसलमान कुर्सी के खातिर!

जनता जाए भाड़ मा संगी मजा उड़ाए के  एही हे बेरा
अमृत खुद बर जनता कराए,विषपान कुर्सी के खातिर!

का जरूरत विदेश घूमेके, सारी तीरथ देश में हे भईया
इन फूंकत हें रोटी-कपड़ा अऊ मकान कुर्सी के खातिर!

आगि लागथे मोर दिल ,जहन में आंधी दौड़े हे रात-दिन
अब तो उठ जा ललकार, हिंदुस्तान ....कुर्सी के खातिर!

रोज घररख्खा रंग बदलथे, सांप सही ऐखर जी फुंकार
ड्सथें इन त रोज जनता के अरमान,कुर्सी के खातिर..!

              ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                         मुंगेली - छत्तीसगढ़
                          ७८२८६५७०५७
                          ८१२००३२८३४

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