Wednesday, August 7, 2019

स्वतंत्रता दिवस पर समर्पित एक प्रयास


   जन-गण- मन-मंदिर  गुञ्जित,
   अपना    यह     पावन   नारा।
   अपवर्ग,   स्वर्ग    से     सुन्दर,
   है    'भारत    वर्ष'     हमारा।।

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   सागर   शुचि    चरण    पखारे,
   लाकर     तरंग     की      धारें।
   उर    में    गंगा    की     गागर,
   छलकाए   अमृत    का   जल।
   हिमगिरि     विराट    रखवाला,
   कश्मीर     किरीट      निराला।

   अपवर्ग    स्वर्ग     से     सुन्दर,
   है     भारत     वर्ष     हमारा।।

   दिनकर  की  प्रथम किरण  से,
   है     यहाँ      सबेरा     आया।
   गीतों    के   सुर    सौरभ    से,
   सारे   जग     को    महकाया।
   जागरण   गान    सुनकर    ही,
   जागा   है    यह    जग   सारा।

   अपवर्ग,   स्वर्ग     से     सुन्दर,
   है   'भारत     वर्ष'      हमारा।।

   वेदों    की     मृदुल     ऋचाएँ,
   शुचि  गीत  प्रकृति   के   गाएँ।
   ऋषियों - मुनियों    के   चिंतन,
   दर्शन    के      तत्त्व     बताएँ।
   गुरु-ज्ञान-गिरा  सुन  सुन  कर,
   मिलता   है    सहज   किनारा।

   अपवर्ग    स्वर्ग     से     सुन्दर,
   है    'भारत     वर्ष'     हमारा।। 

   सत्कर्म,   धर्म,     करुणा    से,
   है    अपना     निर्मल     नाता।
   है    घृणा     द्वेष - दूषण     से,
   उपकार      निभाना      आता।
   है   मिला   धूल    में   .निश्चित,
   दुश्मन   ने    यदि    ललकारा।

   अपवर्ग,   स्वर्ग     से     सुन्दर,
   है    'भारत     वर्ष'     हमारा।।

   परतंत्र्य    बहुत     है     झेला,
   सबने     हमसे      है     खेला।
   लूटा    है    स्वर्ण - विहग   को,
   जब   जिसकी   आयी    बेला।
   हमने        गांडीव       उठाया,
   तब   कौरव    दल    है   हारा।

   अपवर्ग,   स्वर्ग     से    सुन्दर,
   है    'भारत    वर्ष'     हमारा।।

   सब  सरस सुमन  उपवन  के,
   बस   विविध   हमारी   क्यारी।
   मिल जुल कर  हँसें,खिले  हम,
   सुरभित    हो   यह  फुलवारी।
   हम   सब   विहंग   हैं    इसके,
   निज    नीड़  हमें   है    प्यारा।

   अपवर्ग,  स्वर्ग     से     सुन्दर,
   है    'भारत   वर्ष'      हमारा।।

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                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
        धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत 
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Monday, August 5, 2019

कश्मीर उद्दार

प्राण के अधारे तुम कितको सिधारे आज जित्यो मुकुटन ओ कश्मीर सुरझारी है.!

चंद्रयान भेज दिन्हे, तलाक तीन तोड़ दिन्हे धारा    ३७०  अब   दशा  ये  तुम्हारी है.!!

आतंक  मिटाए के तापन  हटाए देव  अव युद्ध  अविराम   नयन  न   निहारी है.!

सोम तीनों बीत भये मुफ्ती सखी चित् भये, चौथे राम  धाम  मोदी  तो विचारी हैं..!!

                *पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी*
                  ओज व्यंग्य कवि - मुंगेली
            प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रदेश प्रवक्ता
         अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
           ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Sunday, August 4, 2019

आज का संदेश - दो बातें

ख़ुशी पैसों पर नहीं, परिस्थितियों पर  निर्भर  करती  है I
एक  बच्चा  गुब्बारा  ख़रीद  कर ख़ुश था, तो दूसरा  उसे बेच  कर.

यदि आप किसी मकसद के लिए खड़े हो, तो बृक्ष की तरह रहो।
और गिरो तो बीज की तरह, क्योकि पुनः उगकर उस मकसद को पूरा कर सको।।

Saturday, August 3, 2019

महत्त्वपूर्ण ९ जानकारी

*पृथ्वी की ये 9 प्रकार की जानकारी आपको कहीं और न मिलेगा न कोई बताएगा:-* 👇🏻

*xxxxxxxxxx 01 xxxxxxxxxx*
*दो लिंग :* नर और नारी ।
*दो पक्ष :* शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
*दो पूजा :* वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
*दो अयन :* उत्तरायन और दक्षिणायन।

*xxxxxxxxxx 02 xxxxxxxxxx*
*तीन देव :* ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
*तीन देवियाँ :* महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
*तीन लोक :* पृथ्वी, आकाश, पाताल।
*तीन गुण :* सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
*तीन स्थिति :* ठोस, द्रव, वायु।
*तीन स्तर :* प्रारंभ, मध्य, अंत।
*तीन पड़ाव :* बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
*तीन रचनाएँ :* देव, दानव, मानव।
*तीन अवस्था :* जागृत, मृत, बेहोशी।
*तीन काल :* भूत, भविष्य, वर्तमान।
*तीन नाड़ी :* इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
*तीन संध्या :* प्रात:, मध्याह्न, सायं।
*तीन शक्ति :* इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

*xxxxxxxxxx 03 xxxxxxxxxx*
*चार धाम :* बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
*चार मुनि :* सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
*चार वर्ण :* ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
*चार निति :* साम, दाम, दंड, भेद।
*चार वेद :* सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
*चार स्त्री :* माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
*चार युग :* सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
*चार समय :* सुबह, शाम, दिन, रात।
*चार अप्सरा :* उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
*चार गुरु :* माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
*चार प्राणी :* जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
*चार जीव :* अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
*चार वाणी :* ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
*चार आश्रम :* ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
*चार भोज्य :* खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
*चार पुरुषार्थ :* धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
*चार वाद्य :* तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

*xxxxxxxxxx 04 xxxxxxxxxx*
*पाँच तत्व :* पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
*पाँच देवता :* गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
*पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ :* आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
*पाँच कर्म :* रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
*पाँच  उंगलियां :* अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
*पाँच पूजा उपचार :* गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
*पाँच अमृत :* दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
*पाँच प्रेत :* भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
*पाँच स्वाद :* मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
*पाँच वायु :* प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
*पाँच इन्द्रियाँ :* आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
*पाँच वटवृक्ष :* सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
*पाँच पत्ते :* आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
*पाँच कन्या :* अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

*xxxxxxxxxx 05 xxxxxxxxxx*
*छ: ॠतु :* शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
*छ: ज्ञान के अंग :* शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
*छ: कर्म :* देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
*छ: दोष :* काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

*xxxxxxxxxx 06 xxxxxxxxxx*
*सात छंद :* गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
*सात सुर :* षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
*सात चक्र :* सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
*सात वार :* रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
*सात मिट्टी :* गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
*सात महाद्वीप :* जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
*सात ॠषि :* वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
*सात ॠषि :* वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
*सात धातु (शारीरिक) :* रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
*सात रंग :* बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
*सात पाताल :* अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
*सात पुरी :* मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
*सात धान्य :* उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

*xxxxxxxxxx 07 xxxxxxxxxx*
*आठ मातृका :* ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
*आठ लक्ष्मी :* आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
*आठ वसु :* अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
*आठ सिद्धि :* अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
*आठ धातु :* सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

*xxxxxxxxxx 08 xxxxxxxxxx*
*नवदुर्गा :* शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
*नवग्रह :* सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
*नवरत्न :* हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
*नवनिधि :* पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

*xxxxxxxxxx 09 xxxxxxxxxx*
*दस महाविद्या :* काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
*दस दिशाएँ :* पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
*दस दिक्पाल :* इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
*दस अवतार (विष्णुजी) :* मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
*दस सति :* सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।                 
वन्दे मातरम
भारत माता की जय
🙏 जय श्री राम 🙏

आखिर क्योँ कहा जाता है भारत वर्ष को "जम्बूदीप" ?


आखिर क्योँ कहा जाता है भारत वर्ष को "जम्बूदीप" ?

एक सवाल आपसे ,क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि हमारे भारत को ""जम्बूदीप"" क्यों कहा जाता है और, इसका मतलब क्या होता है ? दरअसल हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा ? क्योंकि एक सामान्य जनधारणा है कि महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, लेकिन वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करते है !
आश्चर्यजनक रूप से इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि प्राचीन काल में साथ भूभागों में अर्थात महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये ? इस पर कभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा ! अथवा दूसरे शब्दों में कह सकते है कि जान बूझकर इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी !
परन्तु हमारा ""जम्बूदीप नाम "" खुद में ही सारी कहानी कह जाता है, जिसका अर्थ होता है समग्र द्वीप इसीलिए हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा विभिन्न अवतारों में सिर्फ "जम्बूद्वीप" का ही उल्लेख है क्योंकि उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था साथ ही हमारा वायु पुराण इस से सम्बंधित पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश करता है ! वायु पुराण के अनुसार अब से लगभग 22 लाख वर्ष पूर्व त्रेता युग के प्रारंभ में स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भरत खंड को बसाया था ! चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिनका पुत्र नाभि था ! नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ हुआ और, इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा !
उस समय के राजा प्रियव्रत ने अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों का अलग-अलग राजा नियुक्त किया था ! राजा का अर्थ उस समय धर्म, और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था ! इस तरह राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक अग्नीन्ध्र को बनाया था ! इसके बाद राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया और, वही " भारतवर्ष" कहलाया !
ध्यान रखें कि भारतवर्ष का अर्थ है राजा भरत का क्षेत्र और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम सुमति था ! इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है—
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं
नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य
किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत।
(वायु 31-37, 38)
हम अपने रोजमर्रा के कार्यों की ओर ध्यान देकर इस बात को प्रमाणित कर सकते है हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी संकल्प करवाते हैं ! हालाँकि हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं और, उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र मानकर छोड़ देते हैं ! परन्तु यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है ! संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है -
जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते
संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है ! इस जम्बू द्वीप में भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात ‘भारतवर्ष’ स्थित है जो कि आर्याव्रत कहलाता है ! इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं, परन्तु अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि जब सच्चाई ऐसी है तो फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है ?
इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा शायद नामों के समानता का परिणाम हो सकता है अथवा , हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा !
परन्तु जब हमारे पास वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य मौजूद है और, आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें ?
सिर्फ इतना ही नहीं हमारे संकल्प मंत्र में पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है ! फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि एक तरफ तो हम बात एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करते हैं परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं ! आप खुद ही सोचें कि यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है ?
इसीलिए जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों तो फिर , उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों के आधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है ! हमारे देश के बारे में वायु पुराण का ये श्लोक उल्लेखित है –
हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:।।
यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है ! इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है ! ऐसा इसीलिए होता है कि आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं और, यदि किसी पश्चिमी इतिहासकार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें तो, रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है !
यह सोच सिरे से ही गलत है ! इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है, परन्तु आश्चर्य जनक रूप से हमने यह नही सोचा कि एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है ? विशेषत: तब जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे और, वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था !

फिर उसने ऐसी परिस्थिति में सिर्फ इतना काम किया कि जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं उन सबको संहिताबद्घ कर दिया ! इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है ! ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं इसीलिए अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए, क्योंकि इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है जैसा कि इसके विषय में माना जाता है बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है !

                      प्रस्तुति
            *पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी*
           राजर्षि राजवंश-आर्यावर्त्य
   धार्मिक प्रवक्ता - साहित्यकार,ओज कवि
      प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रदेश प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
     ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

#पति_पत्नी_का_7_जन्मों_का_रिश्ता_होता_है?


#पति_पत्नी_का_7_जन्मों_का_रिश्ता_होता_है?
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हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि पति और पत्नी का सात जन्मों का रिश्ता होता है। सवाल यह उठता है कि क्या पति-पत्नी का पिछले जन्मों का रिश्ता होता है? आखिर यह मान्यता कैसे स्थापित हुई। आओ जानते हैं सब कुछ।

1.हिन्दू धर्म में 7 फेरे और 7 वचन का प्रचलन है। संभवत: इसीलिए यह धारणा प्रचलन में आई होगी कि पति-पत्नी का संबंध 7 जन्मों तक होता है।

2.हिन्दू धर्म में तलाक और लिव-इन-रिलेशनशिप जैसी कोई बुराई नहीं है इसी कारण यह मान्यता भी दृढ़ होती है कि एक बार जिस व्यक्ति का किसी से विवाह हो जाता है तो मृत्युपर्यन्त जारी रहता है और उस विवाह में पवित्रता होती है।

3. पुनर्जन्म का सिद्धांत हमारे रिश्तों, संबंधों आदि के साथ एक चक्र के रूप में चलता रहा है। कोई मित्र है, कोई शत्रु है, तो कोई प्रेमी है। कोई पति है, तो कोई पत्नी है। कोई, माता या पिता है, तो कोई भाई या बहन। ज्योतिष के अनुसार कुंडली में भी ऐसे कई योग होते हैं जिसके चलते यह पता चलता है कि आपका पुत्र, पुत्री या आपकी पत्नी आपके पिछले जन्म में क्या थे?

4.चित्त की गति से होता है पुनर्मिलन। परिवार की पूर्ण सहमति से किए गए ब्रह्म विवाह से संपन्न विवाह में प्रेम, विश्वास, समर्पण, अपनत्व, सम्मान और रिश्तों की अहमियत को समझा जाता है। जब ऐसे संस्कारी पति और पत्नी का चित्त एक-दूसरे के लिए गति करता है और वे एक-दूसरे के प्रति प्रेम, अनुराग और आसक्ति से भर जाते हैं तब उनका इस जन्म में तो क्या, अगले जन्म में भी अलग होना संभव नहीं होता। चित्त की वह गति ही उन्हें पुन: एक कर देती है। जब दो स्त्री-पुरुष एक-दूसरे से बेपनाह प्रेम करते हैं तो निश्‍चित ही यह प्रेम ही उन्हें अगले जन्म में पुन: किसी न किसी तरह फिर से एक कर देता है। यह सभी प्रकृति प्रदत्त ही होता है। कहते हैं कि 'जैसी मति वैसी गति/ जैसी गति वैसा जन्म।'

5.भगवान शिव अपनी पत्नी सती से इतना प्रेम करते थे कि वे उनके बगैर एक पल भी रह नहीं सकते थे। उसी तरह माता सती भी अपने पति शिव के प्रति इतने प्रेम से भरी थीं कि वे अपने पिता के यज्ञ में उनका अपमान सहन नहीं कर पाईं और आत्मदाह कर लिया। लेकिन यह प्रेम ही था जिसने सती को अगले जन्म में पुन: शिवजी से मिला दिया। वे पार्वती के रूप में जन्मीं और अंतत: उन्हें अपने पिछले जन्म की सभी यादें ताजा हो गईं। भगवान शिव जो अंतरयामी थे, वे सभी जानते थे।

6. हिन्दू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का संबंध होता है जिसे कि किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के 7 फेरे लेकर और ध्रुव तारे को साक्षी मानकर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिन्दू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संबंध से अधिक आत्मिक संबंध को महत्व दिया जाता है और ये संबंध धार्मिक रीति से किए गए विवाह और उस विवाह के वचन और फेरों को ध्यान में रखने तथा विश्वास को हासिल करने से कायम होते हैं। जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में बचपन में धर्म, अध्यात्म और दर्शन का अध्ययन नहीं किया है उसके लिए विवाह एक संस्कार मात्र ही होता है। हिन्दू धर्म में विवाह एक अनुबंध या समझौता नहीं है, बल्कि यह भली-भांति सोच-समझकर ज्योतिषीय आधार पर प्रारब्ध और वर्तमान को जानकर तय किया गया एक आत्मिक रिश्ता होता है।

7.आपकी पत्नी यदि आपके पिछले जन्म की साथी रही है तो निश्चित ही आपके मन में उसके प्रति और उसके मन में आपके प्रति एक अलग ही तरह का प्रेम और सम्मान होगा, जो गहराई से देखने पर ही समझ में आएगा। इस भागमभाग की जिंदगी से थोड़ा सा समय निकालकर अपनी पत्नी की आंखों में भी झांककर देख लीजिए।

8. कई बार एक बार में ही देखने पर किसी स्त्री या पुरुष के प्रति अजीब सा प्रेम और आकर्षण पैदा हो जाता है और कई बार किसी को देखने पर अपने उसके प्रति घृणा उत्पन्न होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार हमारे चित्त या अंत:करण में लाखों जन्मों की स्मृतियां संरक्षित होती हैं और वे हमें स्पष्ट तौर पर समझ में नहीं आती हैं। लेकिन उस स्मृति के होने से ही हम किसी व्यक्ति या जगह को पूर्व में भी देखा गया मानते हैं, जबकि हम किसी व्यक्ति से पहली बार मिले या किसी जगह पर हम इस जीवन में पहली बार गए हों। फिर भी हमें वे जाने-पहचाने से लगते हैं। व्यक्ति का चेहरा भले ही बदल गया हो लेकिन उसे देखकर और उससे मिलकर हमें अजीब-सा अहसास होता है। कई बार हमारे संबंध इतने गहरे हो जाते हैं कि हम उसी के साथ जीवन गुजारना चाहते हैं, लेकिन फिर भी इस बारे में यह सोचा जाना जरूरी है कि हमारे मन में किसी व्यक्ति के प्रति आकर्षण क्यों उपजा?

9.हमारे चित्त के अंदर 4 प्रकार के मन होते हैं- एक चेतन मन, दूसरा अचेतन मन, तीसरा अवचेतन मन, चौथा सामूहिक मन। अवचेतन मन को ब्रह्मांडीय मन कहते हैं जिसमें हमारे अगले-पिछले सभी जन्मों की स्मृतियां और संचित कर्म संचित रहते हैं। जब हम किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं, जो हमारे पिछले जन्म का साथी था तो हम उसके संपर्क में आते ही उसके चित्त से जुड़ जाते हैं या कि उसका और हमारा आभामंडल जब एक-दूसरे से टकराता है, तो कुछ अच्‍छी अनुभूति होती है और हम सहज ही एक-दूसरे के प्रति समर्पण और प्रेमपूर्ण भाव से भर जाते हैं। हमारे मन में उस व्यक्ति के प्रति दया, प्रेम, करुणा और उससे बात करने के भाव उपजते हैं। यहां ध्यान यह रखना जरूरी है कि कौन से भाव आपके भीतर जन्म ले रहे हैं। हो सकता है कि महज शारीरिक सुंदरता के कारण ही आकर्षण हो।

                       प्रस्तुति
            *पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी*
           राजर्षि राजवंश-आर्यावर्त्य
   धार्मिक प्रवक्ता - साहित्यकार,ओज कवि
      प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रदेश प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
     ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

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