Sunday, September 8, 2019

आज का सुविचार

मेहमान देखकर मान और सम्मान बदल जातें हैं l

चढ़ावा कम हो तो आशीर्वाद और वरदान बदल जाते हैं !

वक्त पर मन की मनोकामना पूरी अगर न हो तो,

भक्तों की भक्ति, मंदिर और भगवान बदल जाते हैं...!!!

🚩💐🙏🏻 *सुप्रभात* 🙏🏻💐🚩

            "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
           डिंडोरी - मुंगेली, छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Saturday, September 7, 2019

कुछ लफ्ज

जख्मी हो गईं नींदे मेरी,
                 ख्वाबों पर ऐसा वार किया..
जिस्म तो सलामत रह गया,
                 मेरी रूह को तूने मार दिया..!!

       ©खेमेश्वर पुरी गोस्वामी®
            मुंगेली - छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-७८२८६५७०५७

आज का सुविचार

भरोसा करें लेकिन सावधानी के साथ
"क्योंकि हमारे खुद के दांत भी हमारी खुद की जीभ को काट लेते हैं"
🚩 जय श्री राम शुप्रभातम*🚩

Thursday, September 5, 2019

वैदिक समय गणना

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो का अनुसंधान )

■ क्रति = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुति = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुति = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 76 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महाकाल = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

उक्त जानकारी शास्त्रोक्त 📚 आधार पर... हैं ।
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Wednesday, September 4, 2019

प्रर्यावरण संरक्षण हेतू अनुपम बलिदान


5 सितम्बर/ *इतिहास-स्मृति*

*पर्यावरण संरक्षण हेतु अनुपम बलिदान*

प्रतिवर्ष पांच जून को हम *विश्व पर्यावरण दिवस* मनाते हैं; लेकिन यह दिन हमारे मन में सच्ची प्रेरणा नहीं जगा पाता, क्योंकि इसके साथ इतिहास की कोई प्रेरक घटना के नहीं जुड़ी *.*.इस दिन कुछ जुलूस, धरने, प्रदर्शन, भाषण तो होते हैं; पर उससे सामान्य लोगों के मन पर कोई असर नहीं होता।

*दूसरी ओर भारत के इतिहास में पाँच सितम्बर, 1730 को एक ऐसी घटना घटी है जिसकी विश्व में कोई तुलना नहीं की जा सकती।*

राजस्थान तथा भारत के अनेक अन्य क्षेत्रों में बिश्नोई समुदाय के लोग रहते हैं, उनके गुरु जम्भेश्वर जी ने अपने अनुयायियों को हरे पेड़ न काटने, पशु-पक्षियों को न मारने, तथा जल गन्दा न करने, जैसे 29 नियम दिये थे।

*इन 20+9 नियमों के कारण उनके शिष्य बिश्नोई कहलाते हैं ..*.

पर्यावरण प्रेमी होने के कारण इनके गाँवों में पशु-पक्षी निर्भयता से विचरण करते हैं, 1730 में इन पर्यावरण-प्रेमियों के सम्मुख परीक्षा की वह महत्वपूर्ण घड़ी आयी थी जिसमें उत्तीर्ण होकर इन्होंने विश्व-इतिहास में स्वयं को अमर कर लिया।

1730 ई. में जोधपुर नरेश अजय सिंह को अपने महल में निर्माण कार्य के लिए चूना और उसे पकाने के लिए ईंधन की आवश्यकता पड़ी उनके आदेश पर सैनिकों के साथ सैकड़ों लकड़हारे निकटवर्ती गाँव खेजड़ली में शमी वृक्षों को काटने चल दिये।

जैसे ही यह समाचार उस क्षेत्र में रहने वाले बिश्नोईयों को मिला, वे इसका विरोध करने लगेे *.*.जब सैनिक नहीं माने, तो एक साहसी महिला *इमरती देवी* के नेतृत्व में सैकड़ों ग्रामवासी; जिनमें बच्चे और बड़े, स्त्री और पुरुष, सब शामिल थे; *पेड़ों से लिपट गये* उन्होंने सैनिकों को बता दिया कि उनकी देह के कटने के बाद ही कोई हरा पेड़ कट पायेगा।

सैनिकों पर भला इन बातों का क्या असर होना था? *वे राजाज्ञा से बँधे थे, तो ग्रामवासी धर्माज्ञा से* अतः वृक्षों के साथ ही ग्रामवासियों के अंग भी कटकर धरती पर गिरने लगे।

सबसे पहले वीरांगना *इमरती देवी* पर ही कुल्हाड़ियों के निर्मम प्रहार हुए और वह वृक्ष-रक्षा के लिए प्राण देने वाली विश्व की पहली महिला बन गयी।

इस बलिदान से उत्साहित ग्रामवासी पूरी ताकत से पेड़ों से चिपक गये, 20वीं शती में गढ़वाल (उत्तराखंड) में गौरा देवी, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा सुन्दरलाल बहुगुणा ने वृक्षों के संरक्षण के लिए *चिपको आन्दोलन* चलाया, *उसकी प्रेरणास्रोत इमरती देवी ही थीं।*

भाद्रपद शुक्ल 10 *5 सितम्बर, 1730* को प्रारम्भ हुआ यह बलिदान-पर्व 27 दिन तक चलता रहा, इस दौरान 363 लोगों ने बलिदान दिया। इनमें इमरती देवी की तीनों पुत्रियों सहित 69 महिलाएँ भी थीं, अन्ततः राजा ने स्वयं आकर क्षमा माँगी और हरे पेड़ों को काटने पर प्रतिबन्ध लगा दिया *ग्रामवासियों को उससे कोई बैर तो था नहीं, उन्होंने राजा को क्षमा कर दिया।*

उस ऐतिहासिक घटना की याद में आज भी वहाँ *भाद्रपद शुक्ल 10* को बड़ा मेला लगता है। राजस्थान शासन ने वन, वन्य जीव तथा पर्यावरण-रक्षा हेतु *इमरती देवी बिश्नोई स्मृति पुरस्कार* केन्द्र शासन ने देना प्रारम्भ किया है।

यह बलिदान विश्व इतिहास की अनुपम घटना है, इसलिए यही तिथि *(भाद्रपद शुक्ल 10* या *पाँच सितम्बर)* वास्तविक *विश्व पर्यावरण दिवस* होने योग्य है।
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                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

शिक्षक दिवस 2019

बाल पन मां गुरू पिता से सीख मिले
                 जीवन विद्या शिक्षक से भीख मिले.!

गुरु वही दाता प्रभु है दीक्षक वही
                 सत्य धर्म का ज्ञान, दे शिक्षक वही..!

जन्ममरण बंधन छूटै दूर हटे अज्ञान
                शिक्षा ऐसी दीजिए नितहोवे सम्मान..!

काम क्रोध मद ग्राह बसत हैं मारग में
                  तिन नियंत्रण करैं शिक्षक डारग में..!

नाम तुमारो सदा जपैं भर दो ऐसी ज्ञान
            खेमेश्वर विनै शिक्षक अरज हमारी मान..!!
 
ऐसी ज्ञान न दीजिए भूलाफिरे निकाम
               चौरासीलख जीवन, नहीं मिलै विश्राम.!

शिक्षा तुपसे पाय के जग में नाम करे
                 पलपल छणछण शिक्षक को याद करे..!

यज्ञ ज्ञान तप निर्बल नौका अध बिच टूट परे!!
         खेमेश्वर कहत शिक्षक बिन भवजल कौन तरे.।

             ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
               धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
     अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
        ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Tuesday, September 3, 2019

श्री गणेश जी के आठ रूपों का महत्व


*मुग्दल पुराण में भगवान गणेश को 8 आंतरिक राक्षसों (नकारात्मक प्रवृत्ति) को नष्ट करने के लिए 8 अलग-अलग रूप* लेने के लिए कहा जाता है।

*वक्रतुंड* (घुमावदार सूंड) के रूप में भगवान, मत्सर (ईर्ष्या का असुर) को मिटाने के लिए एक शेर की सवारी करते हैं।

 मंत्र
*वक्रतुन्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ*
  *निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कारयेषु सर्वदा*
का जाप कर सकते हैं
अर्थ - मैं श्री गणेश का ध्यान करता हूं जिनके पास एक घुमावदार सूंड है, बड़ा शरीर है, और जिनके पास एक लाख सूर्य का तेज है, प्रिय भगवान, कृपया मेरे सभी कार्यों  को, बाधाओं से मुक्त करें।

गणेशजी की इस रूप में पूजा करने से ईर्ष्या गहरे प्रेम और विश्वास में बदल जाती है।

*एकदंत* के रूप में (एक दाँत के साथ भगवान) वह मद (घमंड या गर्व का असुर) को मारने के लिए एक मूषक की सवारी करते है।

आप गणेश गायत्री मंत्र
*"ओम् एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंति प्रचोदयात्"*
का जाप कर सकते हैं और अभिमान को विनम्रता में बदल सकते हैं।

तीसरा अवतार है *महोदर* का  *महोदर* के रूप में (एक बड़े पेट वाले भगवान) मोह के राक्षस को मारने के लिए एक चूहे की सवारी करते है। गणेश जी ने मोहासुर को (भ्रम और माया के दानव) को जीत लिया। महोदर अवतार ब्राह्मण के ज्ञान का प्रतीक है। महोदर वक्रतुंड और एकदंत रूपों का एक समायोजन है। किंवदंतियों के अनुसार, मोहासुर को (दैत्य राज) असुरों के राजा के रूप में भी जाना जाता था। वह सूर्यदेव के भक्त थे और तीन लोक या दुनिया पर हावी थे।  सभी ऋषि, देवता और देवता उससे घबरा गए। तब भगवान सूर्य ने देवताओं और ऋषियों से महोदर की प्रार्थना करने के लिए कहा। भगवान गणेश ऋषियों की पूजा और भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्होंने मोहासुर का वध करने का फैसला किया।

भगवान विष्णु और शुक्राचार्य ने मोहासुर को समर्पण करने और महोदर से प्रार्थना करने की सलाह दी। अंततः दानव ने प्रभु के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और उनका अत्यंत भक्ति के साथ गुणगान किया। मोहासुर ने क्षमा मांगी और धर्म के मार्ग पर चलने का निश्चय किया। भगवान गणेश उनकी भक्ति से प्रसन्न हो गए और उन्हें पाताल लोक लौटने का निर्देश दिया। सभी ऋषियों और देवताओं को राहत मिली और उन्होंने भगवान महोदर की स्तुति की।

*गजानन* रूप में (हाथी के मुख के समान) भगवान गणेश ने लोभ या लालच पर विजय प्राप्त की।

लालच हमें अपने पैर की उंगलियों पर नचाता है और भौतिक सुख/वस्तु में संतोष चाहता है। गुरुदेव श्री श्री रविशंकर कहते हैं कि हर इच्छा पूरी या अधूरी रह जाती है।  जब कोई इच्छा पूरी हो जाती है तो वह दूसरी इच्छा को जन्म देती है, जब वह अधूरी रह जाती है तो वह हमें अस्थिर और दुखी रखती है। तो भगवान गणेश की इस रूप में पूजा करने से हमें सच्ची संतुष्टि, शांति और खुशियां देखने में मदद मिलेगी जो मात्र आंतरिक सुख से ही मिल सकती है।

*लम्बोदर* रूप में (विशाल उदर वाले भगवान) भगवान गणेश क्रोध या क्रोध पर विजय प्राप्त करते हैं।

सारा गुस्सा उस चीज के बारे में है जो अतीत में घट चुकी है। क्या आप क्रोध करके उस घटित  को बदल सकते हैं? मन हमेशा अतीत और भविष्य के बीच हिचकोले खाता है। जब मन अतीत में होता है, तो यह उस चीज़ के बारे में गुस्सा करता है जो पहले से ही हुआ है; लेकिन क्रोध व्यर्थ है क्योंकि हम अतीत को बदल नहीं सकते। और जब मन भविष्य में होता है, तो वह किसी ऐसी चीज के बारे में चिंतित होता है जो हो भी सकता है और नहीं भी। जब मन वर्तमान क्षण में होता है, तो यही चिंता और क्रोध निरर्थक दिखाई देते हैं।
 
- गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

* विकट* रूप (विकृत) में भगवान गणेश काम या वासना पर विजय प्राप्त करते हैं।

वासना माँग की जननी है और माँग प्रेम को नष्ट कर देती है।  इसलिए आपका वासना पर विजय प्राप्त करना बेहद जरूरी है अन्यथा आप उसके गुलाम बनने वाले हैं। वासना पर विजय हेतु भगवान गणेश के विकट रूप की प्रार्थना करने से आपको वासना को प्रेम में बदलने में मदद मिलेगी।

* विघ्नराज* रूप में (बाधाओं के नाशक भगवान) भगवान गणेश आपके मम्/ अभिमान रूपी उस राक्षस को नष्ट कर देते हैं जो आपको जीवन में आगे बढ़ने से रोकता है। इस रूप में भगवान गणेश बाधाओं को नष्ट करते हैं और बाधाओं को दूर करने में आपकी सहायता करते हैं।

गणपति उपनिषद में एक श्लोक है जो कहता है “महा विघ्नता प्रमुच्यते महा दोसात प्रमुच्यते”
जिसका अर्थ है कि भगवान गणेश आपकी सभी बाधाओं में से "महा विघ्न" को हटा देंगे, और सभी नकारात्मक दोषों को नष्ट कर देंगे, सभी जो आपके सभी कष्टों के लिए जिम्मेदार हैं।

अपने *धूम्रवर्ण* रूप में (धुएँ के रंग का) भगवान गणेश "अहंकार"  का नाश करते हैं।

जब आपके पास तामसिक अहंकार होता है, तो यह आत्म-विनाश का सबसे आसान रास्ता है, अहंकार को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, यह केवल आत्मसमर्पण किया जा सकता है। 
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
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न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...