Wednesday, October 2, 2019

शास्त्री जी के हत्या का रहस्य छुपना..

क्या शास्त्री जी हत्या का रहस्य छुपाने के लिए दो और हत्याएं की गईं थी???

1977 में केंद्र की सत्ता से कांग्रेसी वर्चस्व के सफाए के बाद प्रचण्ड बहुमत से बनी जनता पार्टी की सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री की सन्देहास्पद मृत्यु की जांच के लिये रामनारायण कमेटी का गठन किया था।

इस कमेटी ने शास्त्री जी की मृत्यु से सम्बन्धित दो प्रत्यक्षदर्शी गवाहों को गवाही देने के लिए बुलाया था; पहले गवाह थे, उस समय ताशकंद में शास्त्री जी के साथ रहे उनके *निजी चिकित्सक आर एन चुघ .*. जिन्हें बहुत देर बाद शास्त्री जी के कमरे में बुलाया गया था और जिनके सामने शास्त्री जी ने *राम* नाम जपते हुए अपने प्राण त्यागे थे। दूसरे गवाह थे उनके *निजी बावर्ची रामनाथ*, जो उस पूरे दौरे के दौरान शास्त्री जी के लिये भोजन बनाते थे लेकिन शास्त्री जी की मृत्यु वाले दिन रूस में भारत के राजदूत टी एन कौल ने उनके बजाय अपने खास बावर्ची जान मोहम्मद से शास्त्री जी का भोजन बनवाया था।

यहां यह उल्लेख बहुत जरूरी है कि ये टी एन कौल कश्मीरी पंडित था और नेहरू परिवार से उसकी खानदानी निकटता इतनी प्रगाढ़ थी कि 1959 में लाल बहादुर शास्त्री जी के प्रचण्ड विरोध के बावजूद नेहरू ने जब इंदिरा गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनवाया था तब इंदिरा गांधी का सलाहकार (Advisor) इसी टी एन कौल को ही बनाया था।

यह है उस सनसनी खेज रहस्यमय पहेली की संक्षिप्त पृष्ठभूमि जो आज तक नहीं सुलझी है *.*. वो पहेली यह है कि जनता सरकार द्वारा गठित कमेटी ने गवाही के लिए जिन डॉक्टर आर एन चुघ को बुलाया था वो कमेटी के सामने गवाही देने के लिए अपनी कार से जब दिल्ली आ रहे थे तो रास्ते में *एक ट्रक ने उनकी कार को इतनी बुरी तरह रौंद दिया था कि कार में सवार डॉक्टर चुघ उनकी पत्नी पुत्री समेत सभी की मौत हो गयी थी*। दूसरे गवाह रामनाथ जब दिल्ली आए और जांच कमेटी के सामने गवाही देने जा रहे थे तो एक तेज रफ्तार कार ने उनको सड़क पर बुरी तरह रौंद दिया था। संयोग से रामनाथ की तत्काल मौत नहीं हुई थी लेकिन उनकी दोनों टांगे बेकार हो गईं थीं तथा सिर पर लगी गम्भीर चोटों के कारण उनकी स्मृति पूरी तरह खत्म हो गयी थी, उस दुर्घटना के कारण लगी गम्भीर चोटों के कारण कुछ समय पश्चात उनकी भी मौत हो गयी थी। उल्लेखनीय है कि स्व. शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री जी ने उस समय बताया था कि कमेटी के सामने गवाही देने जाने से पहले उस दिन रामनाथ उनसे मिलने आए थे और यह कहकर गए थे कि *.*. *बहुत दिन का बोझ था अम्मा आज सब बता देंगे।*

शास्त्री जी की मृत्यु की जांच कर रही कमेटी के सामने गवाही देने जा रहे दोनों प्रत्यक्षदर्शी गवाहों की ऐसी मौत क्या केवल संयोग हो सकती है?

अतः उपरोक्त घटनाक्रम आज 42 साल बाद भी एक पहेली की तरह यह सवाल पूछ रहा है कि क्या शास्त्री जी हत्या का रहस्य छुपाने के लिए दो और हत्याएं की गईं थी?

पता नहीं यह पहेली कब सुलझेगी, सुलझेगी भी या नहीं?
लेकिन हर वर्ष स्व. लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती पर यह पहेली आने वाली पीढ़ियों को सदियों तक झकझोरती रहेगी;
मात्र डेढ़ वर्ष के अपने कार्यकाल में *जय जवान जय किसान* के अपने अमर नारे के साथ देश को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की अपनी ऐतिहासिक उपलब्धि वाले स्व. शास्त्री जी कितनी दृढ़ इच्छा शक्ति वाले व्यक्ति थे यह इसी से समझा जा सकता है कि अंतरराष्ट्रीय नियमों दबावों तनावों को ताक पर रखकर देशहित में उनके द्वारा लिए एक साहसिक निर्णय ने ही 1965 के भारत-पाक युद्ध का रुख पूरी तरह से भारत के पक्ष में कर दिया था।

ऐसी दृढ़ इच्छा शक्ति वाले जननायक के लिए देश में दशकों तक एक सुनियोजित अफवाह फैलाई गई कि ताशकंद में समझौता करने का दबाव नहीं सह सकने के कारण शास्त्री जी को हार्टअटैक पड़ गया था जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गयी थी।

सच क्या है इसका फैसला एक दिन जरूर होगा और दुनिया के सामने सच जरूर आएगा, इसी आशा एवं अपेक्षा के साथ *मां भारती के महान सपूत लाल बहादुर शास्त्री जी को कोटि कोटि नमन ..*!!
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

पाण्डवों की माता कुन्ती

*पांडवों की माता : कुन्ती !!*

कुन्ती की युवावस्था भी सुख से व्यतीत नहीं हुई, पति की भी असमय मृत्यु हो गयी, क्योंकि पाण्डु राजा एक बार मन को काबू में नहीं रख सके, माद्रि के पास गये, और उनकी मृत्यु हो गयी, अब माद्रि ने कहा, बहन मेरी वजह से पति मरे हैं, मैं इनके साथ सती हो जाऊँगी, विचार करिये, एक ऐसी विधवा नारी, ऐसी विषम परिस्थिति में पाँच-पाँच पुत्रों को कैसे पाल सकती हैं?

जिसके पांच पुत्रों को मारने के लिये गांधारी के सौ पुत्र चौबीस घंटे प्रयत्न करते हैं, योजना बनाते है कि कैसे मारे? कभी जहर देकर, कभी पेड़ से गिराकर, कभी लाक्षागृह में जलाकर मारना चाहते हैं, कभी कुन्ती की पुत्रवधु को भरी सभा में निर्वस्त्र करके अपमानित करना चाहते हैं, चौपड़ में हराना चाहते हैं, बारह वर्ष का वनवास एक वर्ष का अज्ञात वास हुआ।

कुन्ती के जीवन का एक भी दिन सुख से नहीं बीता, भगवान् श्रीकृष्ण कहते है बुआजी आज तुम्हारे पुत्रों को सुख मिला है, विजयश्री प्राप्त हुई है, युधिष्ठिर राजगद्दी पर बैठे हैं, मैंने आज तुमसे कुछ मांगने को कहा तो, आज भी तुमने मांगा तो झोली पसारकर दुःख ही मांगा।

सुख ऊपर सिला पडो,
नाम हृदय से जाय।
बलिहारी तो दुःख की,
पल-पल नाम रटाय।।

ऐसे सुख को लेकर क्या करूं? जो परमात्मा को भुला दे, ऐसी सम्पत्ति को लेकर क्या करें जो कन्हैया की विस्मृति करा दे, ऐसे दुःख को तो बार-बार सिर पर रखना चाहिये जो कन्हैया की याद कराता है, मेरे गोविन्द की याद कराता हैं।

विपदोनैव विपदः सम्पदौ नैव सम्पदः।
विपद्नारायणविस्मृति सम्पन्नारायण स्मृतिः।।

विपत्ति को विपत्ति नहीं कहते, सम्पत्ति को सम्पत्ति भी नहीं कहते, गोविन्द को भूल जाना ही सबसे बड़ी विपत्ति और कन्हैया की याद बनी रहना ही सबसे बड़ी सम्पत्ति है।

कहत हनुमंत विपति प्रभू सोई।
जब तब भजन न सुमिरन होई।।

भागवत में लिखा है कि भगवान् के चिन्तन के बिना एक भी मिनट निकल जावे, उसके लिए पश्चाताप करो, मेरा ये समय व्यर्थ में क्यों निकला? माता कुन्ती ने इसलिए दुःख मांगा, यदि दुःख नहीं आता तो आज मेरी आँखों के सामने गोपाल कैसे होता? पग-पग पर मेरे पुत्रों पर और मेरे जीवन में दुःख आया, जब भी दुःख आया तुम्हें पुकारा और तुमने आकर हमें दर्शन दिया, हमारी रक्षा करी।

भगवान बोले, बुआजी, मैं दुःख अब तुम्हें नहीं दे सकता, बहुत दुःख भोगा है तुमने, कुन्ती बोली, तो कष्ट नहीं दे सकते हो तो एक काम कर सकते हो, क्या? बोली, स्नेह की डोरी को तोड़ दो, ये संसार रूपी स्नेह की डोरी जो है, मेरा, अपना, इस डोरी को तोड़ दो, मेरी पत्नी, मेरा बेटा, मेरा मकान।

सज्जनों! हम लोग कभी अपनी पत्नी और बेटे की माला फेरने के लिए बैठते है क्या? मेरी पत्नी मेरी पत्नी, या मेरा बेटा, मेरी दुकान, ऐसा माला पर जप करते हुए किसी को देखा है क्या? पत्नी के लिए माला नहीं फेरते फिर भी माला फेरते समय और चौबीसों घण्टे उसकी याद बनी रहती है, भगवान के लिए माला फेरने बैठते हैं तो फिर भी नींद आती है, तात्पर्य क्या हैं?

पत्नी को हम अपनी मानते हैं, संसार को अपना मानते हैं, भगवान् को अपना नहीं मानते इसलिये माला में नींद आती है, एक सेठजी किसी महाराज से बोले, महाराज क्या बताये? जब भी भजन करने, माला फेरने बैठता हूँ, नींद आ जाती है, गुरुदेव ने कहा, सच बताना नोटों की गड्डी गिनते समय नींद आती है? सेठ बोला, बनिया बेटा हूँ, नोट गिनते समय नींद कैसे आयेगी, अरे आती भी है तो उड़ जाती है।

मतलब क्या है? नोटों को तुम अपना मानते हो, भगवान को अपना नहीं मानते, जिसको अपना मानते है, उसकी याद हर पल बनी रहती है, इसलिये कुन्ती का परमात्मा के प्रति अपनत्व का भाव है, मेरा कन्हैया है, मेरा कृष्ण है, आज रात्रि में युधिष्ठिर जी रो रहे थे, बड़ा रूदन कर रहे थे, कन्हैया ने रात्रि भर युधिष्ठिर जी को बहुत समझाया, लेकिन उनकी समझ में नहीं आया।

युधिष्ठिर जी ने कहा इस राज्य के लिये कई माताओं को पुत्रहीन बना दिया, कई बहनों को भाई हीन बना दिया, कई स्त्रियों को विधवा बना दिया, यह राज सिंहासन रक्त रंजित लगता है, खून से भरा हुआ लगता है, ऐसा राज्य मुझे नहीं चाहिये।

सहज मिला सो दुध सम,
मांगे लेय सो पानी।
कह कबिर सो रक्त सम,
जामे खिंचा तानी।।

सहज, बिना मांगे मिले वो चीज दूध के समान है, मांग के लेना पानी के बराबर, यहां तक तो ठीक है पर कबीरजी तो कहते है कि जो वस्तु लड़ाई झगड़ा करके प्राप्त होती है वो तो खून के बराबर ही है, तो यह राज्य तो मैंने लड़ाई झगड़ा करके ही तो प्राप्त किया है।

भगवान् श्रीकृष्ण ने बहुत समझाया पर समझ में नहीं आया युधिष्ठिर जी के, तो भगवान ने सोचा कि मैं भीष्मपितामह के हृदय में प्रवेश कर, उनके श्री मुख से मैं इनको उपदेश कराऊं तो इनकी समझ में जल्दी आ जायेगा।

मेरे गोविन्द समस्त पांडवों को द्रौपदी को साथ लेकर भीष्म पितामह के पास आये, रोम-रोम में जिनके बाण लगे हुए हैं, सारा शरीर सैंकड़ों बाणों से विच्छेदन हो रखा है, एक-एक बूंद करके जिनके शरीर से सारा रक्त निकल चुका है, जब भीष्म पितामह ने पांडवों के मध्य गोविन्द को आते देखा, उनके नेत्रों से आँसू झर पड़े।

मन ही मन गोविन्द को प्रणाम किया, हाथ तो जोड़ नहीं  सकते, नेत्रों से अश्रुप्रवाह बह चला, बोले, मेरी मृत्यु को सुधारने हेतु मेरे कन्हैया का आगमन हुआ है, मैं बड़ा भाग्यवान हूँ, मैं बड़ा पुण्यात्मा हूँ, श्री कृष्ण ने पितामह को प्रणाम किया, पितामह नमस्कार करता हूँ।

आपके पौत्र पांडव है, वो सभी राजा बन गये हैं, भारत के सम्राट हो गये हैं, आपके पास आये हैं प्रणाम करते हैं, द्रौपदी भी आयी है, इन्हें उपदेश करिये, आपके जीवन का जो लम्बा अनुभव है उसके माध्यम से इनका मार्ग प्रशस्त कीजिये, भीष्म पितामह ने कहा, सब कुछ जानते हुए भी, दूसरों को आदर देना तो कोई तुमसे सीखे केशव! मैं क्या उपदेश करूं? तुम आदेश करते हो तो अवश्य कहुंगा, भीष्म ने आँखें खोल कर पांडवों को देखा।

दान धर्मान् राजधर्मान् मोक्ष धर्मान् विभागशः।

भीष्म ने पाण्डवों को सबसे पहले बताया, बेटा तुम लोग भारत के राजा बने ये प्रसन्नता की बात है, लेकिन तुम गृहस्थ को आलसी नहीं होना चाहिये, ज्यादा से ज्यादा श्रम करके धन कमाये, खूब धन कमाना चाहिये, लेकिन जितना धन कमाये उसका दसवां भाग दान के लिए रखो।

तन पवित्र सेवा किये,
धन पवित्र कर दान।
मन पवित्र हरि भजनसों,
होत त्रिविध कल्यान।।

शरीर पवित्र होता है सेवा करने से, धन पवित्र होता है दान करने से और मन पवित्र होता है गोविन्द का कीर्तन करने से, अनीति का धन या जिस धन को जमा ही जमा करते रहेंगे, सत्कार्य के लिए खर्च नहीं करोगे तो उस धन में विकृति आ जाएगी, वह तो जाएगा पर सत्य कार्य या अच्छे काम में न लगकर बुरे कार्य के लिए खर्च होगा।

या तो परिवार में ऐसी बीमारी आ जाएगी उसमें खर्च हो जाएगा या कोर्ट कचहरी में या परिवार के बेटा बेटी अपाहिज या अर्धविकसित होंगे जिनके लिये जीवन भर खर्च करते रहो, धन को अच्छे कार्य में खर्च करना चाहिये, अपनी-अपनी हेसियत के अनुसार।

एक-एक गरीब बच्चे की सहायता करो, गोमाता की सेवा में कबूतरों के दाने में, अन्नदान के द्वारा किसी भी प्रकार थोड़ा-थोड़ा आपका पैसा धर्म में लगना चाहिये, क्योंकि अन्त समय में यही धन आप के साथ जाएगा, बाकी धन तो यहीं रह जाएगा।
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻

                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

क्या देवता भोग ग्रहण करते हैं

*क्या देवता भोग ग्रहण करते हैं?*

हिन्दू धर्म में भगवान को भोग लगाने का विधान है, क्या सच में देवता गण भोग ग्रहण करते हैं?

हाँ, ये सच है .. शास्त्र में इसका प्रमाण भी है .. गीता में भगवान् कहते है ... जो भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेम पूर्वक अर्पण किया हुआ, वह पत्र पुष्प आदि मैं ग्रहण करता हूँ।

अब वे खाते कैसे हैं, ये समझना जरुरी है हम जो भी भोजन ग्रहण करते है, वे चीजे पांच तत्वों से बनी हुई होती है *..*..

क्योंकि हमारा शरीर भी पांच तत्वों से बना होता है *.*. इसलिए अन्न, जल, वायु, प्रकाश और आकाश तत्व की हमें जरुरत होती है, जो हम अन्न और जल आदि के द्वारा प्राप्त करते है।

देवता का शरीर पांच तत्वों से नहीं बना होता, उनमे पृथ्वी और जल तत्व नहीं होता ...

मध्यम स्तर के देवताओं का शरीर तीन तत्वों से तथा उत्तम स्तर के देवता का शरीर दो तत्व - तेज और आकाश से बना हुआ होता है *..*..

इसलिए देव शरीर वायुमय और तेजोमय होते है।

यह देवता वायु के रूप में गंध, तेज के रूप में प्रकाश को ग्रहण और आकाश के रूप में शब्द को ग्रहण करते है।

यानी देवता गंध, प्रकाश और शब्द के द्वारा भोग ग्रहण करते है। जिसका विधान पूजा पध्दति में होता है। जैसे जो हम अन्न का भोग लगाते है, देवता उस अन्न की सुगंध को ग्रहण करते है, उसी से तृप्ति हो जाती है।

जो पुष्प और धुप लगाते है, उसकी सुगंध को भी देवता भोग के रूप में ग्रहण करते है। जो हम दीपक जलाते है, उससे देवता प्रकाश तत्व को ग्रहण करते है।

आरती का विधान भी उसी के लिए है, जो हम मन्त्र पाठ करते है, या जो शंख बजाते है या घंटी घड़ियाल बजाते है, उसे देवता गण *आकाश* तत्व के रूप में ग्रहण करते है।

यानी पूजा में हम जो भी विधान करते है, उससे देवता वायु, तेज और आकाश तत्व के रूप में *भोग* ग्रहण करते है।

जिस प्रकृति का देवता हो, उस प्रकृति का भोग लगाने का विधान है *..*!!

इस तरह हिन्दू धर्म की पूजा पद्धति पूर्ण *वैज्ञानिक* है।
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

गांधी जयंती पर यूं ही

हमारे देश में विचारों का सम्मान किया जाता है दिखावे के लिए।
जयंती पर फूल माला साथ मिठाई लाते हैं बस चढ़ावे के लिए..!
विचार दिमाग के ऊपर से और सम्मान पैरों तले से निकल जाती है,
भ्रष्ट खूब बनो गांधी वादी के आड़ में,ओ छोड़ गए हैं खादी पहनावे के लिए..!!

©पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी®
ओज-व्यंग्य कवि
मुंगेली छत्तीसगढ़

आज का संदेश

*प्रत्‍येक व्‍यक्ति के जीवन में*
*एक मंत्र होना चाहिए*
*मंत्र में गजब की शक्ति होती है*
*फिर वो ईश्‍वर की आराधना का मंत्र हो*
*सेवा कार्य हो या फिर जीवन का लक्ष्‍य*

*‼जय माता दी‼*

*रिश्तों को कुछ इस तरह*
*बचा लिया करो....!*

*कभी मान लिया करो तो*
*कभी मना लिया करो....!!💖*

        *🙏🏻🌞सुप्रभात🌞🙏🏻*      
   *आपका दिन शुभ मंगलमय हो*

कौन थे वीर सावरकर

*कौन थे वीर सावरकर⁉⁉⁉*

सिर्फ 25 बातें पढ़कर आपका सीना गर्व से चौड़ा हो उठेगा; इसको पढ़े बिना आज़ादी का ज्ञान अधूरा है *..*..

आइए जानते हैं एक ऐसे महान क्रांतिकारी के बारे में जिनका नाम इतिहास के पन्नों से मिटा दिया गया, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा इतनी यातनाएं झेलीं कि वीर सावरकर के बारे में कल्पना करके ही कायरों में सिहरन पैदा हो जायेगी *....*..

जिनका नाम लेने मात्र से आज भी हमारे देश के राजनेता भयभीत होते हैं क्योंकि उन्होंने माँ भारती की निस्वार्थ सेवा की थी,
वो थे हमारे परमवीर सावरकर *....*..

*1.* वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोकसभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यूँ करें?

क्या किसी भारतीय महापुरुष के निधन पर ब्रिटेन में शोक सभा हुई?

*2.* वीर सावरकर पहले देशभक्त थे जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को त्र्यम्बकेश्वर में बड़े बड़े पोस्टर लगाकर कहा था कि गुलामी का उत्सव मत मनाओ।

*3.* विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में 7 अक्तूबर 1905 को वीर सावरकर ने जलाई थी।

*4.* वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का दहन किया, तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी जबकि इस घटना की दक्षिण अफ्रीका के अपने पत्र *इन्डियन ओपीनियन* में गाँधी ने निंदा की थी।

*5.* वीर सावरकर द्वारा विदेशी वस्त्र दहन की इस प्रथम घटना के 16 वर्ष बाद गाँधी उनके मार्ग पर चले और 11 जुलाई 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया।

*6.* सावरकर पहले भारतीय थे जिनको 1905 में विदेशी वस्त्र दहन के कारण पुणे के फर्म्युसन कॉलेज से निकाल दिया गया और दस रूपये जुर्माना किया *.*. इसके विरोध में हड़ताल हुई *.*. स्वयं तिलक जी ने *‘केसरी’* पत्र में सावरकर के पक्ष में सम्पादकीय लिखा।

*7.* वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफ़ादार होने की शपथ नहीं ली *.*. इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नहीं दिया गया।

*8.* वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को *1857 का स्वातंत्र्य समर* नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया।

*10. 1857 का स्वातंत्र्य समर* विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंह ने इसे छपवाया था जिसकी एक एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी।

भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी … पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी।

*11.* वीर सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जो समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाते समय आठ जुलाई 1910 को समुद्र में कूद पड़े थे और तैरकर फ्रांस पहुँच गए थे।

*12.* सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जिनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नहीं मिला और बंदी बनाकर भारत लाया गया।

*13.* वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी और भारत के पहले राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई थी।

*14.* वीर सावरकर पहले ऐसे देशभक्त थे जो दो जन्म कारावास की सजा सुनते ही हंसकर बोले- *चलो, ईसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया।*

*15.* वीर सावरकर पहले राजनैतिक बंदी थे जिन्होंने काला पानी की सज़ा के समय 10 साल से भी अधिक समय तक आज़ादी के लिए कोल्हू चलाकर 30 पोंड तेल प्रतिदिन निकाला।

*16.* वीर सावरकर काला पानी में पहले ऐसे कैदी थे जिन्होंने काल कोठरी की दीवारों पर कंकर कोयले से कवितायें लिखीं और 6000 पंक्तियाँ याद रखी।

*17.* वीर सावरकर पहले देशभक्त लेखक थे, जिनकी लिखी हुई पुस्तकों पर आज़ादी के बाद कई वर्षों तक प्रतिबन्ध लगा रहा।

*18.* वीर सावरकर पहले विद्वान लेखक थे जिन्होंने हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि *..*.

*आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका*
*पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः*

*अर्थात*- समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभूमि है, जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्य भूमि है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है।

*19.* वीर सावरकर प्रथम राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सत्ता ने 30 वर्षों तक जेलों में रखा तथा आजादी के बाद 1948 में नेहरु सरकार ने गाँधी वध की आड़ में लाल किले में बंद रखा पर न्यायालय द्वारा आरोप झूठे पाए जाने के बाद ससम्मान रिहा कर दिया, नेहरू उनके राष्ट्रवादी विचारों से डरता था।

*20.* वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी थे जब उनका 26 फरवरी 1966 को उनका स्वर्गारोहण हुआ तब भारतीय संसद में कुछ सांसदों ने शोक प्रस्ताव रखा तो यह कहकर रोक दिया गया कि वे संसद सदस्य नहीं थे जबकि चर्चिल की मौत पर शोक मनाया गया था।

*21.* वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर थे जिनके मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को उसी संसद में मूर्ति लगी जिसमें कभी उनके निधन पर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था।

*22.* वीर सावरकर ऐसे पहले राष्ट्रवादी विचारक थे जिनके चित्र को संसद भवन में लगाने से रोकने के लिए कॉंग्रेस अध्यक्ष सोनिया गन्धी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा लेकिन राष्ट्रपति डॉ.अब्दुल कलाम ने सुझाव पत्र नकार दिया और वीर सावरकर के चित्र अनावरण राष्ट्रपति ने अपने कर-कमलों से किया।

*23.* वीर सावरकर पहले ऐसे राष्ट्रभक्त हुए जिनके शिलालेख को अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यर ने हटवा दिया था और उसकी जगह गांधी का शिलालेख लगवा दिया था।

*24.* वीर सावरकर ने दस साल स्वतंत्रता के लिए काला पानी में कोल्हू चलाया था जबकि गाँधी ने काला पानी की उस जेल में कभी दस मिनट चरखा नहीं चलाया।

*25.* वीर सावरकर माँ भारती के पहले सपूत थे जिन्हें जीते जी और मरने के बाद भी आगे बढ़ने से रोका गया … पर आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी विरोधियों के घोर अँधेरे को चीरकर आज वीर सावरकर सभी मे लोकप्रिय और युवाओं के आदर्श बन रहे हैं।
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
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न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...