*प्रेम और आँसू की...*
*पहचान भले ही अलग*
*अलग हो...!*
*किन्तु दोनों का.... गोत्र एक ही है...*
*" हृदय "..!!*
*🌹 जय श्री कृष्ण*🌹
🙏शुभ प्रभात🙏
*प्रेम और आँसू की...*
*पहचान भले ही अलग*
*अलग हो...!*
*किन्तु दोनों का.... गोत्र एक ही है...*
*" हृदय "..!!*
*🌹 जय श्री कृष्ण*🌹
🙏शुभ प्रभात🙏
. *🙏🦚🌹जय श्री कृष्ण🌹🦚🙏*
*जमाना कल भी "खराब" था;*
*और आज भी खराब है;*
*द्रोपदी का चीर हरण करने वाले को;*
*भूल गए लोग;*
*पर;*
*जिसने सीता को हाथ ✋ भी नही लगाया;*
*वो आज तक जल रहा है।*
*🙏🌤🌹शुभ प्रभात🌹🌤🙏*
*।।आपका दिन शुभ एवं मंगलमय हो।।*
*जय मां शारदे*
*एक कहावत है कि*
*"नियति को कोई नहीं टाल सकता"*
*मैं भी इस बात को स्वीकार करता हूं लेकिन यदि आप नियति को टालने के प्रयास अथवा प्रयोजन ढूंढते हैं तो बिल्कुल संभव नहीं है नियति को टालना,लेकिन यदि आप इन सब में समय गंवाने के बजाय "अच्छे कर्म करते हैं परोपकार करते हैं किसी का बुरा नहीं चाहते हैं" तो नियति को टालने की जरूरत नहीं होगी.*
*बल्कि "नियति ही स्वयं को टाल देगी".*
*शुभ प्रभात आपका दिन मंगलमय हो*
नवरात्रि का पांचवा दिन : *मां स्कंदमाता*
नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गाजी के पांचवें स्वरुप मां स्कंदमाता की आराधना की जाती है, इस दिन साधक का मन *विशुद्ध चक्र* में स्थित होता है।
भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरुप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है, भगवान स्कंद *कुमार कार्तिकेय* नाम से भी जाने जाते हैं; ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे, पुराणों में इन्हें कुमार और शक्तिधर कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है, इनका वाहन मयूर है।
स्कंदमाता के विग्रह में भगवान स्कंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे हुए हैं, शास्त्रानुसार सिंह पर सवार स्कन्दमातृस्वरूपणी देवी की चार भुजाएं हैं, जिसमें देवी अपनी ऊपर वाली दांयी भुजा में बाल कार्तिकेय को गोद में उठाए उठाए हुए हैं और नीचे वाली दांयी भुजा में कमल पुष्प लिए हुए हैं ऊपर वाली बाईं भुजा से इन्होंने जगत तारण वरद मुद्रा बना रखी है व नीचे वाली बाईं भुजा में कमल पुष्प है; इनका वर्णन पूर्णतः शुभ्र है और ये कमल के आसान पर विराजमान रहती हैं इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है।
नवरात्र पूजन के पांचवे दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है, इस दिन साधक की समस्त बाहरी क्रियाओं एवं चित्तवृतियों का लोप हो जाता है एवं वह विशुद्ध चैतन्य स्वरुप की ओर अग्रसर होता है; उसका मन समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासनामां स्कंद माता के स्वरुप में पूर्ण्तः तल्लीन होता है।
*पूजा फल*
स्कंदमाता की साधना से साधकों को आरोग्य, बुद्धिमता तथा ज्ञान की प्राप्ति होती है, इनकी उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं, उसे परम शांति एवं सुख का अनुभव होने लगता है; स्कंदमाता की उपासना से बालरूप कार्तिकेय की स्वयं ही उपासना हो जाती है, यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है अतः साधक को इनकी उपासना पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
सूर्यमण्डल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक आलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है, संतान सुख एवं रोगमुक्ति के लिए स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए।
*पूजा विधि*
मां के श्रृंगार के लिए खूबसूरत रंगों का इस्तेमाल किया जाता है, स्कंदमाता और भगवान कार्तिकेय की पूजा विनम्रता के साथ करनी चाहिए; पूजा में कुमकुम, अक्षत, पुष्प, फल आदि से पूजा करें; चंदन लगाएं, माता के सामने घी का दीपक जलाएं, आज के दिन भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए, ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है।
*मां स्कंदमाता का मंत्र*
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
या देवी सर्वभूतेषुमां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻
प्रस्तुति
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
क्या शास्त्री जी हत्या का रहस्य छुपाने के लिए दो और हत्याएं की गईं थी???
1977 में केंद्र की सत्ता से कांग्रेसी वर्चस्व के सफाए के बाद प्रचण्ड बहुमत से बनी जनता पार्टी की सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री की सन्देहास्पद मृत्यु की जांच के लिये रामनारायण कमेटी का गठन किया था।
इस कमेटी ने शास्त्री जी की मृत्यु से सम्बन्धित दो प्रत्यक्षदर्शी गवाहों को गवाही देने के लिए बुलाया था; पहले गवाह थे, उस समय ताशकंद में शास्त्री जी के साथ रहे उनके *निजी चिकित्सक आर एन चुघ .*. जिन्हें बहुत देर बाद शास्त्री जी के कमरे में बुलाया गया था और जिनके सामने शास्त्री जी ने *राम* नाम जपते हुए अपने प्राण त्यागे थे। दूसरे गवाह थे उनके *निजी बावर्ची रामनाथ*, जो उस पूरे दौरे के दौरान शास्त्री जी के लिये भोजन बनाते थे लेकिन शास्त्री जी की मृत्यु वाले दिन रूस में भारत के राजदूत टी एन कौल ने उनके बजाय अपने खास बावर्ची जान मोहम्मद से शास्त्री जी का भोजन बनवाया था।
यहां यह उल्लेख बहुत जरूरी है कि ये टी एन कौल कश्मीरी पंडित था और नेहरू परिवार से उसकी खानदानी निकटता इतनी प्रगाढ़ थी कि 1959 में लाल बहादुर शास्त्री जी के प्रचण्ड विरोध के बावजूद नेहरू ने जब इंदिरा गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनवाया था तब इंदिरा गांधी का सलाहकार (Advisor) इसी टी एन कौल को ही बनाया था।
यह है उस सनसनी खेज रहस्यमय पहेली की संक्षिप्त पृष्ठभूमि जो आज तक नहीं सुलझी है *.*. वो पहेली यह है कि जनता सरकार द्वारा गठित कमेटी ने गवाही के लिए जिन डॉक्टर आर एन चुघ को बुलाया था वो कमेटी के सामने गवाही देने के लिए अपनी कार से जब दिल्ली आ रहे थे तो रास्ते में *एक ट्रक ने उनकी कार को इतनी बुरी तरह रौंद दिया था कि कार में सवार डॉक्टर चुघ उनकी पत्नी पुत्री समेत सभी की मौत हो गयी थी*। दूसरे गवाह रामनाथ जब दिल्ली आए और जांच कमेटी के सामने गवाही देने जा रहे थे तो एक तेज रफ्तार कार ने उनको सड़क पर बुरी तरह रौंद दिया था। संयोग से रामनाथ की तत्काल मौत नहीं हुई थी लेकिन उनकी दोनों टांगे बेकार हो गईं थीं तथा सिर पर लगी गम्भीर चोटों के कारण उनकी स्मृति पूरी तरह खत्म हो गयी थी, उस दुर्घटना के कारण लगी गम्भीर चोटों के कारण कुछ समय पश्चात उनकी भी मौत हो गयी थी। उल्लेखनीय है कि स्व. शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री जी ने उस समय बताया था कि कमेटी के सामने गवाही देने जाने से पहले उस दिन रामनाथ उनसे मिलने आए थे और यह कहकर गए थे कि *.*. *बहुत दिन का बोझ था अम्मा आज सब बता देंगे।*
शास्त्री जी की मृत्यु की जांच कर रही कमेटी के सामने गवाही देने जा रहे दोनों प्रत्यक्षदर्शी गवाहों की ऐसी मौत क्या केवल संयोग हो सकती है?
अतः उपरोक्त घटनाक्रम आज 42 साल बाद भी एक पहेली की तरह यह सवाल पूछ रहा है कि क्या शास्त्री जी हत्या का रहस्य छुपाने के लिए दो और हत्याएं की गईं थी?
पता नहीं यह पहेली कब सुलझेगी, सुलझेगी भी या नहीं?
लेकिन हर वर्ष स्व. लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती पर यह पहेली आने वाली पीढ़ियों को सदियों तक झकझोरती रहेगी;
मात्र डेढ़ वर्ष के अपने कार्यकाल में *जय जवान जय किसान* के अपने अमर नारे के साथ देश को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की अपनी ऐतिहासिक उपलब्धि वाले स्व. शास्त्री जी कितनी दृढ़ इच्छा शक्ति वाले व्यक्ति थे यह इसी से समझा जा सकता है कि अंतरराष्ट्रीय नियमों दबावों तनावों को ताक पर रखकर देशहित में उनके द्वारा लिए एक साहसिक निर्णय ने ही 1965 के भारत-पाक युद्ध का रुख पूरी तरह से भारत के पक्ष में कर दिया था।
ऐसी दृढ़ इच्छा शक्ति वाले जननायक के लिए देश में दशकों तक एक सुनियोजित अफवाह फैलाई गई कि ताशकंद में समझौता करने का दबाव नहीं सह सकने के कारण शास्त्री जी को हार्टअटैक पड़ गया था जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गयी थी।
सच क्या है इसका फैसला एक दिन जरूर होगा और दुनिया के सामने सच जरूर आएगा, इसी आशा एवं अपेक्षा के साथ *मां भारती के महान सपूत लाल बहादुर शास्त्री जी को कोटि कोटि नमन ..*!!
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प्रस्तुति
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
*पांडवों की माता : कुन्ती !!*
कुन्ती की युवावस्था भी सुख से व्यतीत नहीं हुई, पति की भी असमय मृत्यु हो गयी, क्योंकि पाण्डु राजा एक बार मन को काबू में नहीं रख सके, माद्रि के पास गये, और उनकी मृत्यु हो गयी, अब माद्रि ने कहा, बहन मेरी वजह से पति मरे हैं, मैं इनके साथ सती हो जाऊँगी, विचार करिये, एक ऐसी विधवा नारी, ऐसी विषम परिस्थिति में पाँच-पाँच पुत्रों को कैसे पाल सकती हैं?
जिसके पांच पुत्रों को मारने के लिये गांधारी के सौ पुत्र चौबीस घंटे प्रयत्न करते हैं, योजना बनाते है कि कैसे मारे? कभी जहर देकर, कभी पेड़ से गिराकर, कभी लाक्षागृह में जलाकर मारना चाहते हैं, कभी कुन्ती की पुत्रवधु को भरी सभा में निर्वस्त्र करके अपमानित करना चाहते हैं, चौपड़ में हराना चाहते हैं, बारह वर्ष का वनवास एक वर्ष का अज्ञात वास हुआ।
कुन्ती के जीवन का एक भी दिन सुख से नहीं बीता, भगवान् श्रीकृष्ण कहते है बुआजी आज तुम्हारे पुत्रों को सुख मिला है, विजयश्री प्राप्त हुई है, युधिष्ठिर राजगद्दी पर बैठे हैं, मैंने आज तुमसे कुछ मांगने को कहा तो, आज भी तुमने मांगा तो झोली पसारकर दुःख ही मांगा।
सुख ऊपर सिला पडो,
नाम हृदय से जाय।
बलिहारी तो दुःख की,
पल-पल नाम रटाय।।
ऐसे सुख को लेकर क्या करूं? जो परमात्मा को भुला दे, ऐसी सम्पत्ति को लेकर क्या करें जो कन्हैया की विस्मृति करा दे, ऐसे दुःख को तो बार-बार सिर पर रखना चाहिये जो कन्हैया की याद कराता है, मेरे गोविन्द की याद कराता हैं।
विपदोनैव विपदः सम्पदौ नैव सम्पदः।
विपद्नारायणविस्मृति सम्पन्नारायण स्मृतिः।।
विपत्ति को विपत्ति नहीं कहते, सम्पत्ति को सम्पत्ति भी नहीं कहते, गोविन्द को भूल जाना ही सबसे बड़ी विपत्ति और कन्हैया की याद बनी रहना ही सबसे बड़ी सम्पत्ति है।
कहत हनुमंत विपति प्रभू सोई।
जब तब भजन न सुमिरन होई।।
भागवत में लिखा है कि भगवान् के चिन्तन के बिना एक भी मिनट निकल जावे, उसके लिए पश्चाताप करो, मेरा ये समय व्यर्थ में क्यों निकला? माता कुन्ती ने इसलिए दुःख मांगा, यदि दुःख नहीं आता तो आज मेरी आँखों के सामने गोपाल कैसे होता? पग-पग पर मेरे पुत्रों पर और मेरे जीवन में दुःख आया, जब भी दुःख आया तुम्हें पुकारा और तुमने आकर हमें दर्शन दिया, हमारी रक्षा करी।
भगवान बोले, बुआजी, मैं दुःख अब तुम्हें नहीं दे सकता, बहुत दुःख भोगा है तुमने, कुन्ती बोली, तो कष्ट नहीं दे सकते हो तो एक काम कर सकते हो, क्या? बोली, स्नेह की डोरी को तोड़ दो, ये संसार रूपी स्नेह की डोरी जो है, मेरा, अपना, इस डोरी को तोड़ दो, मेरी पत्नी, मेरा बेटा, मेरा मकान।
सज्जनों! हम लोग कभी अपनी पत्नी और बेटे की माला फेरने के लिए बैठते है क्या? मेरी पत्नी मेरी पत्नी, या मेरा बेटा, मेरी दुकान, ऐसा माला पर जप करते हुए किसी को देखा है क्या? पत्नी के लिए माला नहीं फेरते फिर भी माला फेरते समय और चौबीसों घण्टे उसकी याद बनी रहती है, भगवान के लिए माला फेरने बैठते हैं तो फिर भी नींद आती है, तात्पर्य क्या हैं?
पत्नी को हम अपनी मानते हैं, संसार को अपना मानते हैं, भगवान् को अपना नहीं मानते इसलिये माला में नींद आती है, एक सेठजी किसी महाराज से बोले, महाराज क्या बताये? जब भी भजन करने, माला फेरने बैठता हूँ, नींद आ जाती है, गुरुदेव ने कहा, सच बताना नोटों की गड्डी गिनते समय नींद आती है? सेठ बोला, बनिया बेटा हूँ, नोट गिनते समय नींद कैसे आयेगी, अरे आती भी है तो उड़ जाती है।
मतलब क्या है? नोटों को तुम अपना मानते हो, भगवान को अपना नहीं मानते, जिसको अपना मानते है, उसकी याद हर पल बनी रहती है, इसलिये कुन्ती का परमात्मा के प्रति अपनत्व का भाव है, मेरा कन्हैया है, मेरा कृष्ण है, आज रात्रि में युधिष्ठिर जी रो रहे थे, बड़ा रूदन कर रहे थे, कन्हैया ने रात्रि भर युधिष्ठिर जी को बहुत समझाया, लेकिन उनकी समझ में नहीं आया।
युधिष्ठिर जी ने कहा इस राज्य के लिये कई माताओं को पुत्रहीन बना दिया, कई बहनों को भाई हीन बना दिया, कई स्त्रियों को विधवा बना दिया, यह राज सिंहासन रक्त रंजित लगता है, खून से भरा हुआ लगता है, ऐसा राज्य मुझे नहीं चाहिये।
सहज मिला सो दुध सम,
मांगे लेय सो पानी।
कह कबिर सो रक्त सम,
जामे खिंचा तानी।।
सहज, बिना मांगे मिले वो चीज दूध के समान है, मांग के लेना पानी के बराबर, यहां तक तो ठीक है पर कबीरजी तो कहते है कि जो वस्तु लड़ाई झगड़ा करके प्राप्त होती है वो तो खून के बराबर ही है, तो यह राज्य तो मैंने लड़ाई झगड़ा करके ही तो प्राप्त किया है।
भगवान् श्रीकृष्ण ने बहुत समझाया पर समझ में नहीं आया युधिष्ठिर जी के, तो भगवान ने सोचा कि मैं भीष्मपितामह के हृदय में प्रवेश कर, उनके श्री मुख से मैं इनको उपदेश कराऊं तो इनकी समझ में जल्दी आ जायेगा।
मेरे गोविन्द समस्त पांडवों को द्रौपदी को साथ लेकर भीष्म पितामह के पास आये, रोम-रोम में जिनके बाण लगे हुए हैं, सारा शरीर सैंकड़ों बाणों से विच्छेदन हो रखा है, एक-एक बूंद करके जिनके शरीर से सारा रक्त निकल चुका है, जब भीष्म पितामह ने पांडवों के मध्य गोविन्द को आते देखा, उनके नेत्रों से आँसू झर पड़े।
मन ही मन गोविन्द को प्रणाम किया, हाथ तो जोड़ नहीं सकते, नेत्रों से अश्रुप्रवाह बह चला, बोले, मेरी मृत्यु को सुधारने हेतु मेरे कन्हैया का आगमन हुआ है, मैं बड़ा भाग्यवान हूँ, मैं बड़ा पुण्यात्मा हूँ, श्री कृष्ण ने पितामह को प्रणाम किया, पितामह नमस्कार करता हूँ।
आपके पौत्र पांडव है, वो सभी राजा बन गये हैं, भारत के सम्राट हो गये हैं, आपके पास आये हैं प्रणाम करते हैं, द्रौपदी भी आयी है, इन्हें उपदेश करिये, आपके जीवन का जो लम्बा अनुभव है उसके माध्यम से इनका मार्ग प्रशस्त कीजिये, भीष्म पितामह ने कहा, सब कुछ जानते हुए भी, दूसरों को आदर देना तो कोई तुमसे सीखे केशव! मैं क्या उपदेश करूं? तुम आदेश करते हो तो अवश्य कहुंगा, भीष्म ने आँखें खोल कर पांडवों को देखा।
दान धर्मान् राजधर्मान् मोक्ष धर्मान् विभागशः।
भीष्म ने पाण्डवों को सबसे पहले बताया, बेटा तुम लोग भारत के राजा बने ये प्रसन्नता की बात है, लेकिन तुम गृहस्थ को आलसी नहीं होना चाहिये, ज्यादा से ज्यादा श्रम करके धन कमाये, खूब धन कमाना चाहिये, लेकिन जितना धन कमाये उसका दसवां भाग दान के लिए रखो।
तन पवित्र सेवा किये,
धन पवित्र कर दान।
मन पवित्र हरि भजनसों,
होत त्रिविध कल्यान।।
शरीर पवित्र होता है सेवा करने से, धन पवित्र होता है दान करने से और मन पवित्र होता है गोविन्द का कीर्तन करने से, अनीति का धन या जिस धन को जमा ही जमा करते रहेंगे, सत्कार्य के लिए खर्च नहीं करोगे तो उस धन में विकृति आ जाएगी, वह तो जाएगा पर सत्य कार्य या अच्छे काम में न लगकर बुरे कार्य के लिए खर्च होगा।
या तो परिवार में ऐसी बीमारी आ जाएगी उसमें खर्च हो जाएगा या कोर्ट कचहरी में या परिवार के बेटा बेटी अपाहिज या अर्धविकसित होंगे जिनके लिये जीवन भर खर्च करते रहो, धन को अच्छे कार्य में खर्च करना चाहिये, अपनी-अपनी हेसियत के अनुसार।
एक-एक गरीब बच्चे की सहायता करो, गोमाता की सेवा में कबूतरों के दाने में, अन्नदान के द्वारा किसी भी प्रकार थोड़ा-थोड़ा आपका पैसा धर्म में लगना चाहिये, क्योंकि अन्त समय में यही धन आप के साथ जाएगा, बाकी धन तो यहीं रह जाएगा।
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻
प्रस्तुति
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
*क्या देवता भोग ग्रहण करते हैं?*
हिन्दू धर्म में भगवान को भोग लगाने का विधान है, क्या सच में देवता गण भोग ग्रहण करते हैं?
हाँ, ये सच है .. शास्त्र में इसका प्रमाण भी है .. गीता में भगवान् कहते है ... जो भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेम पूर्वक अर्पण किया हुआ, वह पत्र पुष्प आदि मैं ग्रहण करता हूँ।
अब वे खाते कैसे हैं, ये समझना जरुरी है हम जो भी भोजन ग्रहण करते है, वे चीजे पांच तत्वों से बनी हुई होती है *..*..
क्योंकि हमारा शरीर भी पांच तत्वों से बना होता है *.*. इसलिए अन्न, जल, वायु, प्रकाश और आकाश तत्व की हमें जरुरत होती है, जो हम अन्न और जल आदि के द्वारा प्राप्त करते है।
देवता का शरीर पांच तत्वों से नहीं बना होता, उनमे पृथ्वी और जल तत्व नहीं होता ...
मध्यम स्तर के देवताओं का शरीर तीन तत्वों से तथा उत्तम स्तर के देवता का शरीर दो तत्व - तेज और आकाश से बना हुआ होता है *..*..
इसलिए देव शरीर वायुमय और तेजोमय होते है।
यह देवता वायु के रूप में गंध, तेज के रूप में प्रकाश को ग्रहण और आकाश के रूप में शब्द को ग्रहण करते है।
यानी देवता गंध, प्रकाश और शब्द के द्वारा भोग ग्रहण करते है। जिसका विधान पूजा पध्दति में होता है। जैसे जो हम अन्न का भोग लगाते है, देवता उस अन्न की सुगंध को ग्रहण करते है, उसी से तृप्ति हो जाती है।
जो पुष्प और धुप लगाते है, उसकी सुगंध को भी देवता भोग के रूप में ग्रहण करते है। जो हम दीपक जलाते है, उससे देवता प्रकाश तत्व को ग्रहण करते है।
आरती का विधान भी उसी के लिए है, जो हम मन्त्र पाठ करते है, या जो शंख बजाते है या घंटी घड़ियाल बजाते है, उसे देवता गण *आकाश* तत्व के रूप में ग्रहण करते है।
यानी पूजा में हम जो भी विधान करते है, उससे देवता वायु, तेज और आकाश तत्व के रूप में *भोग* ग्रहण करते है।
जिस प्रकृति का देवता हो, उस प्रकृति का भोग लगाने का विधान है *..*!!
इस तरह हिन्दू धर्म की पूजा पद्धति पूर्ण *वैज्ञानिक* है।
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻
प्रस्तुति
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय, ...