*🚩✍️मेरी कलम से*
*🚩बुढापे मे आपको रोटी, आपकी औलाद नहीं.*
*आप के दिये हुए संस्कार खिलाएँगे.*
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*🚩✍️मेरी कलम से*
*🚩बुढापे मे आपको रोटी, आपकी औलाद नहीं.*
*आप के दिये हुए संस्कार खिलाएँगे.*
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*नवम् दुर्गा : श्री सिद्धिदात्री*
“सिद्धगंधर्वयक्षादौर सुरैरमरै रवि।
सेव्यमाना सदाभूयात सिद्धिदा सिद्धिदायनी॥“
श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं। ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं। नवरात्रि के नवम दिन इनकी पूजा औरआराधना की जाती है।
सिद्धिदात्रीकी कृपा से मनुष्य सभी प्रकार की सिद्धिया प्राप्त कर मोक्ष पाने मे सफल होता है। मार्कण्डेयपुराण में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्वये आठ सिद्धियाँ बतलायी गयी है। भगवती
सिद्धिदात्री उपरोक्त संपूर्ण सिद्धियाँ अपने उपासको को प्रदान करती है। माँ दुर्गा के इस अंतिम स्वरूप की आराधना के साथ ही नवरात्र के अनुष्ठान का समापन हो जाता है।
इस दिन को रामनवमी भी कहा जाता है और शारदीय नवरात्रि के अगले दिन अर्थात दसवें दिन को रावण पर राम की विजय के रूप में मनाया जाता है। दशम् तिथि को बुराई पर अच्छाकई की विजय का प्रतीक माना जाने वाला त्योतहार विजया दशमी यानि दशहरा मनाया जाता है। इस दिन रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले जलाये जाते हैं।
दुर्गा पूजा नवरात्री नवमी पूजा - नवमी तिथि सिद्धिदात्री की पूजा
माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति सिद्धिदात्री हैं, नवरात्र-पूजन के नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है. नवमी के दिन सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है. दुर्गा मईया जगत के कल्याण हेतु नौ रूपों में प्रकट हुई और इन रूपों में अंतिम रूप है देवी सिद्धिदात्री का. देवी प्रसन्न होने पर सम्पूर्ण जगत की रिद्धि सिद्धि अपने भक्तों को प्रदान करती हैं. देवी सिद्धिदात्री का रूप अत्यंत सौम्य है, देवी की चार भुजाएं हैं दायीं भुजा में माता ने चक्र और गदा धारण किया है, मां बांयी भुजा में शंख और कमल का फूल है.
मां सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान रहती हैं, मां की सवारी सिंह हैं. देवी ने सिद्धिदात्री का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया है. देवतागण, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी मां के भक्त
हैं. देवी जी की भक्ति जो भी हृदय से करता है मां उसी पर अपना स्नेह लुटाती हैं. मां का ध्यान करने के लिए आप
“सिद्धगन्धर्वयक्षाघरसुरैरमरैरपि सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी..” इस मंत्र से स्तवन कर सकते हैं.
*सिद्धि के प्रकार :-*
पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं की कृपा से सिध्दियों को प्राप्त किया था तथा इन्हें के द्वारा भगवान शिव को अर्धनारीश्वर रूप प्राप्त हुआ. अणिमा, महिमा,गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियां हैं जिनका मार्कण्डेय पुराण में उल्लेख किया गया है
इसके अलावा ब्रह्ववैवर्त पुराण (Brahmvaivart Puran) में अनेक सिद्धियों का वर्णन है जैसे 1. सर्वकामावसायिता 2. सर्वज्ञत्व 3. दूरश्रवण 4. परकायप्रवेशन 5. वाक्सिद्धि 6. कल्पवृक्षत्व 7. सृष्टि 8. संहारकरणसामर्थ्य 9. अमरत्व 10 सर्वन्यायकत्व. कुल मिलाकर 18 प्रकार की सिद्धियों का हमारे शास्त्रों में वर्णन मिलता है. यह देवी इन सभी सिद्धियों की स्वामिनी हैं. इनकी पूजा से भक्तों को ये सिद्धियां प्राप्त होती हैं.
*नवमी देवी सिद्धिदात्री की पूजा विधि :-*
सिद्धियां हासिल करने के उद्देश्य से जो साधक भगवती सिद्धिदात्री की पूजा कर रहे हैं उन्हें नवमी के दिन निर्वाण चक्र का भेदन करना चाहिए. दुर्गा पूजा में इस तिथि को विशेष हवन किया जाता है. हवन से पूर्व सभी देवी दवाताओं एवं माता की पूजा कर लेनी चाहिए. हवन करते वक्त सभी देवी दवताओं के नाम से हवि यानी अहुति देनी चाहिए. बाद में माता के नाम से अहुति देनी चाहिए.
दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं अत:सप्तशती के सभी श्लोक के साथ आहुति दी जा सकती है. देवी के बीज मंत्र “ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:” से कम से कम 108 बार हवि दें.
*माँ सिद्धिदात्री के मंत्र :-*
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
*देवी सिद्धिदात्री की ध्यान :-*
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
*सिद्धिदात्री की स्तोत्र पाठ :-*
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
*देवी सिद्धिदात्री की कवच :-*
ओंकारपातु शीर्षो मां ऐं बीजं मां हृदयो। हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥ ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं मां नेत्र घ्राणो।कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै मां सर्व वदनो॥भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा पश्चात अंत में इनके नाम से हवि देकर आरती और क्षमा प्रार्थना करें.हवन में जो भी प्रसाद चढ़ाया है उसे बाटें और हवन की अग्नि ठंडीको पवित्र जल में विसर्जित कर दें अथवा भक्तों के में बाँट दें. यह भस्म- रोग, संताप एवं ग्रह बाधा से आपकी रक्षा करती है एवं मन से भय को दूर रखती है.
नवरात्री में दुर्गा सप्तशती पाठ किया जाता हैं ।
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*अजीब खेल है उस परमात्मा का*
*लिखता भी वही है*
*मिटाता भी वही है*
*भटकाता है राह तो*
*दिखाता भी वही है*
*उलझाता भी वही है*
*सुलझाता भी वही है*
*जिंदगी की मुश्किल घड़ी में*
*दिखता भी नहीं मगर*
*साथ देता भी वही हैं*
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*🙏 सुप्रभात🙏*
*जब आँसू आपका हो और*
*पिघलता कोई और हो ..*
*तब ये समझ लेना की वो रिश्ता*
*उच्च से उच्चकोटि का है ...*
*फिर चाहे वो रिश्ता प्रेम का हो या मित्रता का...!!!*
😘😘😘
*सुप्रभात*
।।। *जय सियाराम* ।।।
हिंदुत्व गौरव राणाजी पूंजा : *भील जयंती विशेष*
राणाजी पूंजा भील का जन्म मेरपुर के मुखिया दूदा होलंकी जी के परिवार में हुआ था, उनकी माता का नाम केहरी बाई था; उनके पिता का देहांत होने के पश्चात् 15 वर्ष की अल्पायु में उन्हें मेरपुर का मुखिया बना दिया गया *.*. राणाजी पूंजा अपनी वीरता, प्रजा प्रेम एवं अपनी दूरदर्शिता के कारण मेवाड़ में प्रसिद्ध हुए।
यह उनकी योग्यता की पहली परीक्षा थी, इस परीक्षा में उत्तीर्ण होकर वे जल्दी ही *भोमट के राजा* बन गए, अपनी संगठन शक्ति और जनता के प्रति प्यार-दुलार के चलते वे वीर भील नायक बन गए।
इस दौरान 1576 ई. में मेवाड़ में मुगलों का संकट उभरा, इस संकट के काल में महाराणा प्रताप जी ने भील राणाजी पूंजा का सहयोग मांगा *.*. ऐसे समय में भारत मां के वीर पुत्र राणाजी पूंजा ने मुगलों से मुकाबला करने के लिए मेवाड़ का सहयोग करने का निर्णय लिया औऱ महाराणा को वचन दिया कि राणा पूंजा और मेवाड़ के सभी भील भाई मेवाड़ की रक्षा करने को तत्पर है।
1576 ई. के हल्दीघाटी युद्ध में पूंजाजी भील ने अपनी सारी ताकत देश की रक्षा के लिए झोंक दी, इस युद्ध के बाद कई वर्षों तक मुगलों के आक्रमण को विफल करने में भीलों की शक्ति का अविस्मरणीय योगदान रहा।
पूंजा भील के शौर्य और बलिदान को देखकर महाराणा प्रताप ने इन्हें *भीलाराणा* की उपाधि दी तथा मेवाड़ के राज चिन्ह में स्थान दिया *.*. मेवाड़ के राज चिन्ह में एक ओर राणा पूंजा भील का चित्र है तो दूसरी ओर महाराणा प्रताप का चित्र अंकित है।
आज भी यह राज चिन्ह मेवाड़ के सिटी पैलेस पर सुशोभित होकर राणा पूंजा भील के शौर्य और बलिदान का गौरव-गान कर रहा है।
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻
प्रस्तुति
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
🕉🌹सुप्रभात, जय श्री राम 🌹
नाम और पहचान
भले ही छोटी हो ,
मगर खुद कि होनी
चाहिए,
सभी का सम्मान करना
बहुत अच्छी बात है ,
पर आत्मसम्मान के साथ
जीना खुद कि पहचान है.....
*जय माता दी*
*तुलना के खेल में ना उलझे,*
*क्योंकि इस खेल का कहीं कोई अंत नही।*
*जहाँ तुलना की शुरुआत होती है,*
*वही से आनंद और अपनापन खत्म होता है...!!!*
*मां महा दुर्गाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं*
।।। *जय सियाराम* ।।।
*सुप्रभात*.........
*आपका दिन शुभ हो*
प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय, ...