Friday, November 1, 2019

चरण स्पर्श का महत्व


*🔥चरण स्पर्श का रहस्य🔥*
*हैलो हाय कहने से आधुनिक और स्मार्ट होने का कितना ही गर्व महसूस होता हो आपको लेकिन प्रणाम में जैसी आश्वस्तता प्रतीत होती है वह अद्भुत अलौकिक है और लगता है कि भीतर ऊर्जा का उफान उठ रहा है जो भाव, बोध और मस्तिष्क में रहने वाले बुद्धि का अतिक्रमण करते हुए ऊपर ही ऊपर फैलता जा रहा है झुककर या हाथ मिलाकर अथवा गले लगकर किसी का अभिवादन करने से आपसी संबंध तो प्रगाढ़ हो सकते हैं तथा व्यक्ति के सभ्य सुसंस्कृत होने की छवि भी बनती है लेकिन झुककर अभिवादन करने का अलग ही महत्व है।प्रणाम के लिए जब हम गुरुजनों के चरणों में झुकते हैं तो उनकी प्राण ऊर्जा से जुड़ जाते हैं और वह ऊर्जा प्रणाम करने वाले की चेतना को भी ऊपर उठाती है अगर निम्न स्तर के लोगों को प्रणाम किया जाए तो उससे हानि की संभावना ही ज्यादा रहती है क्योंकि उस स्थिति में प्राण प्रवाह उलटी दिशा में बहने लगता है।नमस्ते करने के लिए, दोनो हाथों को अनाहत चक पर रखा जाता है, आँखें बंद की जाती हैं, और सिर को झुकाया जाता है।*
*इस विधि का विस्तार करते हुए हाथों को स्वाधिष्ठान चक्र (भौहों के बीच का चक्र) पर रखकर सिर झुकाकर और हाथों को हृदय के पास लाकर भी नमस्ते किया जा सकता है- जरूरी नहीं कि नमस्ते, नमस्कार या प्रणाम करते हुए ये शब्द बोले भी जाएं- नमस्कार या प्रणाम की भावमुद्रा का अर्थ ही उस भाव की अभिव्यक्ति है। आपने देखा होगा जो वास्तव में उच्चकोटि का तपस्वी या साधक है अपने चरणों का स्पर्श क्यों नहीं करने देता है क्युकि उसकी संचरित प्राण-उर्जा कही आप में न समां जाए क्युकि साधक ने ये उर्जा अपने तप और साधना से अपने अंदर समाहित की है यदि वास्तविक श्रेष्ठ साधक या तपस्वी चाहे तो अपने शिष्य को सिर्फ एक ही पल में शक्तिपाद द्वारा अपने जैसा योग्य बना सकता है और अपने द्वारा प्राप्त की गई सभी सिद्धयो एक पल में दे सकता है।*
*अपने से बड़ों का अभिवादन करने के लिए चरण छूने की परंपरा सदियों से रही है सनातन धर्म में अपने से बड़े के आदर के लिएचरण स्पर्श उत्तम माना गया है प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर चरण स्पर्श के कई लाभ हैं।चरण छूने का मतलब है पूरी श्रद्धा के साथ किसी के आगे नतमस्तक होना-इससे विनम्रताआती है और मन को शांति मिलती है साथ ही चरण छूने वाला दूसरों को भी अपने आचरण से प्रभावित करने में कामयाब होता है-हर रोज बड़ों के अभि‍वादन से आयु, विद्या, यश और बल में बढ़ोतरी होती है।माना जाता है कि पैर के अंगूठे से भी शक्ति का संचार होता है मनुष्य के पांव के अंगूठे में भी ऊर्जा प्रसारित करने की शक्ति होती है।*
*मान्यता है कि बड़े-बुजुर्गों के चरण स्पर्श नियमित तौर पर करने से कई प्रतिकूल ग्रहभी अनुकूल हो जाते हैं-प्रणाम करने का एक फायदा यह है कि इससे हमारा अहंकार कम होता है.इन्हीं कारणों से बड़ों को प्रणाम करने की परंपरा को नियम और संस्कार का रूप दे दिया गया है।जब हम किसी आदरणीय व्यक्ति के चरण छूते हैं, तो आशीर्वाद के तौर पर उनका हाथ हमारे सिर के उपरी भाग को और हमारा हाथ उनके चरण को स्पर्श करता है ऐसी मान्यता है कि इससे उस पूजनीय व्यक्ति की पॉजिटिव एनर्जी आशीर्वाद के रूप में हमारे शरीर में प्रवेश करती है इससे हमारा आध्यात्मिक तथा मानसिक विकास होता है।*
*वैज्ञानिक पक्ष : न्यूटन के नियम के अनुसार, दुनिया में सभी चीजें गुरुत्वाकर्षण के नियम से बंधी हैं साथ ही गुरुत्व भार सदैव आकर्षित करने वाले की तरफ जाता है हमारे शरीर पर भी यही नियम लागू होता है सिर को उत्तरी ध्रुव और पैरों को दक्षिणी ध्रुव माना गया है इसका मतलब यह हुआ कि गुरुत्व ऊर्जा या चुंबकीय ऊर्जा हमेशा उत्तरी ध्रुव से प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर अपना चक्र पूरा करती है- यानी शरीर में उत्तरी ध्रुव (सिर) से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव (पैरों) की ओर प्रवाहित होती है दक्षिणी ध्रुव पर यह ऊर्जा असीमित मात्रा में स्थिर हो जाती है- पैरों की ओर ऊर्जा का केंद्र बन जाता है-पैरों से हाथों द्वारा इस ऊर्जा के ग्रहण करने को ही हम ‘चरण स्पर्श’ कहते हैं।*
*मानव शरीर पंच तत्वों से निर्मित है जो सजातीय तत्वों को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है- मित्रता, स्नेह , ममता व प्रेम इसी आकर्षण की उपज है- यह आकर्षण या खिंचाव एक चुम्बकीय गुण है- प्रत्येक जीवधारी में एक ही समय में तीन वैज्ञानिक सिध्दांत एक साथ कार्य करते रहते हैं।चुम्बकीय शक्ति,तात्विक गुण,विद्युतीय उर्जा  हम अगर चिन्तन मनन करे तो पाते है की प्रतिदिन हम अनेक लोगों से मिलते है , उनमें से कुछ को हम याद नहीं रखते और कुछ के साथ हमारा मित्रता का भाव प्रकट हो जाता है और उनसे ये लगाव,मित्रता या खिंचाव उस व्यक्ति विशेष में समाहित चुम्बकीय गुण के कारण होता है जो सजातीय गुण वाले व्यक्ति को अपनी और आकर्षित करता है।आपके शरीर की उर्जा चरण स्पर्श करने वाले व्यक्ति में पहुंचती है- श्रेष्ठ व्यक्ति में पहुंचकर उर्जा में मौजूद नकारात्मक तत्व नष्ट हो जाता है- सकारात्मक उर्जा चरण स्पर्श करने वाले व्यक्ति से आशीर्वाद के माध्यम से वापस मिल जाती है- इससे जिन उद्देश्यों को मन में रखकर आप बड़ों को प्रणाम करते हैं उस लक्ष्य को पाने का बल मिलता है।*
*पैर छुना या प्रणाम करना, केवल एक परंपरा या बंधन नहीं है- यह एक विज्ञान है जो हमारे शारीरिक, मानसिक और वैचारिक विकास से जुड़ा है- पैर छुने से केवल बड़ों का आशीर्वाद ही नहीं मिलता बल्कि अनजाने ही कई बातें हमारे अंदर उतर जाती है- पैर छुने का सबसे बड़ा फायदा शारीरिक कसरत होती है, तीन तरह से पैर छुए जाते हैं- पहले झुककर पैर छुना, दूसरा घुटने के बल बैठकर तथा तीसरा साष्टांग प्रणाम- झुककर पैर छुने से कमर और रीढ़ की हड्डी को आराम मिलता है- दूसरी विधि में हमारे सारे जोड़ों को मोड़ा जाता है, जिससे उनमें होने वाले स्ट्रेस से राहत मिलती है, तीसरी विधि में सारे जोड़ थोड़ी देर के लिए तन जाते हैं, इससे भी तनाव दूर होता है।इसके अलावा झुकने से सिर में रक्त प्रवाह बढ़ता है, जो स्वास्थ्य और आंखों के लिए लाभप्रद होता है- प्रणाम करने का तीसरा सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे हमारा अहंकार कम होता है- किसी के पैर छुना यानी उसके प्रति समर्पण भाव जगाना, जब मन में समर्पण का भाव आता है तो अहंकार स्वत: ही खत्म होता है- इसलिए बड़ों को प्रणाम करने की परंपरा को नियम और संस्कार का रूप दे दिया गया है।प्रत्येक रोज़ प्रातकाल में और किसी भी कार्य की शुरुआत से पहले हमें अपने घर के बड़े बुजर्गों के ,माता पिता के चरण स्पर्श अवश्य करने चाहिए ,इससे हमारे कार्य में सफलता की सम्भावना बढ़ जाती है , हमारा मनोबल बढ़ता है और सकारात्मक उर्जा मिलती है नकारात्मक शक्ति घटती है।*                                                                      
                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Thursday, October 31, 2019

साधना

*सनातन धर्म में किसी भी यथेष्ट को प्राप्त करने के लिए कुछ साधन बताए गए जिन्हें साधना का नाम दिया गया है | किसी भी साधना के पूर्ण होने या अवरोधित होने में सबसे बड़ा चरित्र मनुष्य के मन का होता है | क्योंकि लिखा है कि :- "मन: एव मनुष्याणां कारणं बन्ध मोक्षयो:" मन ही मनुष्य के मोक्ष एवं बन्धन का कारण होता है | मनुष्य का मन बड़ा चंचल होता है यदि मनुष्य ने अपने मन को बस में कर लिया तो उसकी साधना पूर्ण हो जाती है , और यदि मन भटक जाता है तो साधना अवरुद्ध हो जाती है | मन का सहज स्वभाव व कामना होती है :- सुख एवं विषयोंन्मुखता | मन सदैव सांसारिक सुखों की तलाश में रहता है , मन का अस्तित्व ही इसी पर टिका हुआ है | मन की चंचलता सर्वविदित है , सांसारिक सुख की मृग मरीचिका के पीछे भागना भटकते मन का स्वभाव होता है | मन की हालत उस बंदर की तरह होती है जिसका स्वभाव ही चंचल होता है और उस चंचलता पर उसे मदिरा पिला दी जाए और फिर कोई बिच्छू स्कोर डंक मार दे इन सब से वह सम्भल भी नहीं पाता नहीं कि उस पर एक दानव सवार हो जाता है | ठीक उसी प्रकार यह मन वासना रूपी मदिरा पीकर उन्मत्त हो जाता है और उस पर ईर्ष्या रूपी बिच्छू का डंक उसे और पागल कर देता है इसके बाद उसके ऊपर अहंकार रूपी दानव जब सवार हो जाता है तो यह मन किसी को भी कुछ नहीं समझता है | ऐसी अवस्था में मन का निग्रह दुष्कर हो जाता है , इसलिए प्रत्येक मनुष्य को मन की विपरीत विचारों से सावधान रहने एवं उसको अनुशासित करने की आवश्यकता होती है , क्योंकि मन को अनुशासित किए बिना कोई भी साधना कभी भी सफल नहीं हो सकती |* 

*आज का परिवेश इतना दूषित हो गया है कि प्रत्येक मनुष्य अपने मन की विसंगतियों से स्वयं को बचा ही नहीं पा रहा है | साधना करना तो दूर की बात है आज मनुष्य कुछ क्षण बैठकर ध्यान कर पाने में भी असफल हो रहा है | ऐसा नहीं है कि आज ध्यान व साधना करने वाले महापुरुष नहीं है ! आज भी साधनायें हो रही हैं और होती रहेंगी , परंतु आज जिस प्रकार समाज में अनाचार , कदाचार , भ्रष्टाचार एवं आत्महत्या जैसे कुकृत्य हो रहे हैं तो उसका मुख्य कारण मन की चंचलता व अवसाद ही है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज को देखते हुए यह कह सकता हूँ कि आज स्वयं के मन को साधने वालों की संख्या अल्प रह गयी है | छोटी - छोटी बात पर मन उद्विग्न हो जाता है और मनुष्य आत्महत्या जैसी कायरता करने को प्रेरित होकर यह कार्य कर डालता है | मनुष्य के सुख एवं दुख का कारण मनुष्य के मन को ही कहा गया है | आज का मनुष्य सुख की अपेक्षा दुख का अनुभव अधिक करता है , मनुष्य के दुख का कारण बनती हैं सांसारिक उपभोग की वस्तुओं का अभाव | सांसारिक वस्तुओं से मनुष्य का मन कभी भरता ही नहीं है | कुछ न कुछ रिक्तता मनुष्य के जीवन में सदैव बनी रहती है उसी रिक्तता को पूर्ण करने के उद्योग में मनुष्य व्यस्त रहता है और उसकी पूर्ति न होने पर दुखी हो जाता है | जबकि इस संसार में पूर्ण कोई भी नहीं है ! समस्त ब्रह्माण्ड में परमात्मा के अतिरिक्त कोई भी पूर्ण नहीं है , यह सभी जानते भी हैं परंतु चंचल मन मानता नहीं और विषयोपभोग की कामना से इधर से उधर भटका करता है | मन को संतोष कभी नहीं होता , जिसके मन में संतोष हो गया समझ लो उसने सबकुछ प्राप्त कर लिया | मन को ही साध लेना सबसे बड़ी साधना कहा गया है |* 

*मानव मन की गति अपार है , यह मनुष्य को कभी बैठने नहीं देता | इस संसार में किसी को भी जीतने की अपेक्षा सर्वप्रथम अपने मन पर विजयप्राप्त करने वाला ही दिग्विजयी होता है |*                                         

                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७,

स्त्रोत व मंत्र में अंतर

स्त्रोत और मंत्र में क्या अंतर होता है

स्त्रोत और मंत्र देवताओं को प्रसन्न करने के शक्तिशाली माध्यम हैं। आज हम जानेंगे की मन्त्र और स्त्रोत में क्या अंतर होता है। किसी भी देवता की पूजा करने से पहले उससे सबंधित मन्त्रों को गुरु की सहायता से सिद्ध किया जाना चाहिए। 

स्त्रोत 

 किसी भी देवी या देवता का गुणगान और महिमा का वर्णन किया जाता है। स्त्रोत का जाप करने से अलौकिक ऊर्जा का संचार होता है और दिव्य शब्दों के चयन से हम उस देवता को प्राप्त कर लेते हैं और इसे किसी भी राग में गाया जा सकता है। स्त्रोत के शब्दों का चयन ही महत्वपूर्ण होता है और ये गीतात्मक होता है। 

मन्त्र 

 मन्त्र को केवल शब्दों का समूह समझना उनके प्रभाव को कम करके आंकना है। मन्त्र तो शक्तिशाली लयबद्ध शब्दों की तरंगे हैं जो बहुत ही चमत्कारिक रूप से कार्य करती हैं। ये तरंगे भटकते हुए मन को केंद्र बिंदु में रखती हैं। शब्दों का संयोजन भी साधारण नहीं होता है, इन्हे ऋषि मुनियों के द्वारा वर्षों की साधना के बाद लिखा गया है। मन्त्रों के जाप से आस पास का वातावरण शांत और भक्तिमय हो जाता है जो सकारात्मक ऊर्जा को एकत्रिक करके मन को शांत करता है। मन के शांत होते ही आधी से ज्यादा समस्याएं स्वतः ही शांत हो जाती हैं। मंत्र किसी देवी और देवता का ख़ास मन्त्र होता है जिसे एक छंद में रखा जाता है। वैदिक ऋचाओं को भी मन्त्र कहा जाता है। इसे नित्य जाप करने से वो चैतन्य हो जाता है। मंत्र का लगातार जाप किया जाना चाहिए। सुसुप्त शक्तियों को जगाने वाली शक्ति को मंत्र कहते हैं। मंत्र एक विशेष लय में होती है जिसे गुरु के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। जो हमारे मन में समाहित हो जाए वो मंत्र है। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के साथ ही ओमकार की उत्पत्ति हुयी है। इनकी महिमा का वर्णन श्री शिव ने किया है और इनमे ही सारे नाद छुपे हुए हैं। मन्त्र अपने इष्ट को याद करना और उनके प्रति समर्पण दिखाना है। मंत्र और स्त्रोत में अंतर है की स्त्रोत को गाया जाता है जबकि मन्त्र को एक पूर्व निश्चित लय में जपा जाता है।

बीज मंत्र क्या होता है 

देवी देवताओं के मूल मंत्र को बीज मन्त्र कहते हैं। सभी देवी देवताओं के बीज मन्त्र हैं। समस्त वैदिक मन्त्रों का सार बीज मन्त्रों को माना गया है। हिन्दू धर्म के अनुसार सबसे प्रधान बीज मन्त्र ॐ को माना गया है। ॐ को अन्य मन्त्रों के साथ प्रयोग किया जाता है क्यों की यह अन्य मन्त्रों को उत्प्रेरित कर देता है। बीज मंत्रो से देव जल्दी प्रशन्न होते हैं और अपने भक्तों पर शीघ्र दया करते हैं। जीवन में कैसी भी परेशानी हो यथा आर्थिक, सामजिक या सेहत से जुडी हुयी कोई समस्या ही क्यों ना हो बीज मन्त्रों के जाप से सभी संकट दूर होते हैं।

स्त्रोत और मंत्र जाप के लाभ

 चाहे मन्त्र हो या फिर स्त्रोत इनके जाप से देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है। शास्त्रों में मन्त्रों की महिमा का विस्तार से वर्णन है। श्रष्टि में ऐसा कुछ भी नहीं है जो मन्त्रों से प्राप्त ना किया जा सके, आवश्यक है साधक के द्वारा सही जाप विधि और कल्याण की भावना। बीज मंत्रों के जाप से विशेष फायदे होते हैं। यदि किसी मंत्र के बीज मंत्र का जाप किया जाय तो इसका प्रभाव और अत्यधिक बढ़ जाता है। वैज्ञानिक स्तर पर भी इसे परखा गया है। मंत्र जाप से छुपी हुयी शक्तियों का संचार होता है। मस्तिष्क के विशेष भाग सक्रीय होते है। मन्त्र जाप इतना प्रभावशाली है कि इससे भाग्य की रेखाओं को भी बदला जा सकता है। यदि बीज मन्त्रों को समझ कर इनका जाप निष्ठां से किया जाय तो असाध्य रोगो से छुटकारा मिलता है। मन्त्रों के सम्बन्ध में ज्ञानी लोगों की मान्यता है की यदि सही विधि से इनका जाप किया जाय तो बिना किसी औषधि की असाध्य रोग भी दूर हो सकते हैं। विशेषज्ञ और गुरु की राय से राशि के अनुसार मन्त्रों के जाप का लाभ और अधिक बढ़ जाता है। 

विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए पृथक से मन्त्र हैं जिनके जाप से निश्चित ही लाभ मिलता है। मंत्र दो अक्षरों से मिलकर बना है मन और त्र। तो इसका शाब्दिक अर्थ हुआ की मन से बुरे विचारों को निकाल कर शुभ विचारों को मन में भरना। जब मन में ईश्वर के सम्बंधित अच्छे विचारों का उदय होता है तो रोग और नकारात्मकता सम्बन्धी विचार दूर होते चले जाते है। वेदों का प्रत्येक श्लोक एक मन्त्र ही है। मन्त्र के जाप से एक तरंग का निर्माण होता है जो की सम्पूर्ण वायुमंडल में व्याप्त हो जाता है और छिपी हुयी शक्तियों को जाग्रत कर लाभ प्रदान करता है। 

विभिन्न मन्त्र और उनके लाभ :
ॐ गं गणपतये नमः : इस मंत्र के जाप से व्यापार लाभ, संतान प्राप्ति, विवाह आदि में लाभ प्राप्त होता है। 
ॐ हृीं नमः : इस मन्त्र के जाप से धन प्राप्ति होती है। 
ॐ नमः शिवाय : यह दिव्य मन्त्र जाप से शारीरिक और मानसिक कष्टों का निवारण होता है। 
ॐ शांति प्रशांति सर्व क्रोधोपशमनि स्वाहा : इस मन्त्र के जाप से क्रोध शांत होता है। 
ॐ हृीं श्रीं अर्ह नमः : इस मंत्र के जाप से सफलता प्राप्त होती है। 
ॐ क्लिीं ॐ : इस मंत्र के जाप से रुके हुए कार्य सिद्ध होते हैं और बिगड़े काम बनते हैं। 
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय : इस मंत्र के जाप से आकस्मिक दुर्घटना से मुक्ति मिलती है। 
ॐ हृीं हनुमते रुद्रात्म कायै हुं फटः : सामाजिक रुतबा बढ़ता है और पदोन्नति प्राप्त होती है। 
ॐ हं पवन बंदनाय स्वाहा : भूत प्रेत और ऊपरी हवा से मुक्ति प्राप्त होती है। 
ॐ भ्रां भ्रीं भौं सः राहवे नमः : परिवार में क्लेश दूर होता है और शांति बनी रहती है। 
ॐ नम: शिवाय : इस मंत्र के जाप से आयु में वृद्धि होती है और शारीरिक रोग दोष दूर होते हैं। 
ॐ महादेवाय नम: सामाजिक उन्नति और धन प्राप्ति के लिए यह मन्त्र उपयोगी है। 
ॐ नम: शिवाय : इस मंत्र से पुत्र की प्राप्ति होती है। 
ॐ नमो भगवते रुद्राय : मान सम्मान की प्राप्ति होती है और समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है। 
ॐ नमो भगवते रुद्राय : मोक्ष प्राप्ति हेतु। 
ॐ महादेवाय नम: घर और वाहन की प्राप्ति हेतु। 
ॐ शंकराय नम: दरिद्रता, रोग, भय, बन्धन, क्लेश नाश के लिए इस मंत्र का जाप करें।

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७,

प्रारब्ध


🌫🌫🌫🌫   *प्रारब्ध*   🌫🌫🌫🌫

    एक व्यक्ति हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करता था । धीरे धीरे वह काफी बुजुर्ग हो चला था इसीलिए एक कमरे मे ही पड़ा रहता था ।

     जब भी उसे शौच; स्नान आदि के लिये जाना होता था; वह अपने बेटो को आवाज लगाता था और बेटे ले जाते थे ।

    धीरे धीरे कुछ दिन बाद बेटे कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी कभी आते और देर रात तो नहीं भी आते थे।इस दौरान वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करते थे

    अब और ज्यादा बुढ़ापा होने के कारण उन्हें कम दिखाई देने लगा था एक दिन रात को निवृत्त होने के लिये जैसे ही उन्होंने आवाज लगायी, तुरन्त एक लड़का आता है और बडे ही कोमल स्पर्श के साथ उनको निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा जाता है । अब ये रोज का नियम हो गया ।

    एक रात उनको शक हो जाता है कि, पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर भी नही आते थे। लेकिन ये  तो आवाज लगाते ही दूसरे क्षण आ जाता है और बडे कोमल स्पर्श से सब निवृत्त करवा देता है ।

    एक रात वह व्यक्ति उसका हाथ पकड लेता है और पूछता है कि सच बता तू कौन है ? मेरे बेटे तो ऐसे नही हैं ।

    अभी अंधेरे कमरे में एक अलौकिक उजाला हुआऔर उस लड़के रूपी ईश्वर ने अपना वास्तविक रूप दिखाया।

     वह व्यक्ति रोते हुये कहता है : हे प्रभु आप स्वयं मेरे निवृत्ती के कार्य कर रहे है । यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो तो मुक्ति ही दे दो ना ।

     प्रभु कहते है कि जो आप भुगत रहे है वो आपके प्रारब्ध है । आप मेरे सच्चे साधक है; हर समय मेरा नाम जप करते है इसलिये मै आपके प्रारब्ध भी आपकी सच्ची साधना के कारण स्वयं कटवा रहा हूँ ।

     व्यक्ति कहता है कि क्या मेरे प्रारब्ध आपकी कृपा से भी बडे है; क्या आपकी कृपा, मेरे प्रारब्ध नही काट सकती है ।

     प्रभु कहते है कि, मेरी कृपा सर्वोपरि है; ये अवश्य आपके प्रारब्ध काट सकती है; लेकिन फिर अगले जन्म मे आपको ये प्रारब्ध भुगतने फिर से आना होगा । यही कर्म नियम है । इसलिए आपके प्रारब्ध मैं स्वयं अपने हाथो से कटवा कर इस जन्म-मरण से आपको मुक्ति देना चाहता हूँ ।

ईश्वर कहते है: *प्रारब्ध तीन तरह* के होते है :

*मन्द*, 
                    *तीव्र*, तथा 
                                            *तीव्रतम*

*मन्द प्रारब्ध* मेरा नाम जपने से कट जाते है । *तीव्र प्रारब्ध* किसी सच्चे संत का संग करके श्रद्धा और विश्वास से मेरा नाम जपने पर कट जाते है । पर *तीव्रतम प्रारब्ध* भुगतने ही पडते है।

लेकिन जो हर समय श्रद्धा और विश्वास से मुझे जपते हैं; उनके प्रारब्ध मैं स्वयं साथ रहकर कटवाता हूँ और तीव्रता का अहसास नहीं होने देता हूँ ।

           *प्रारब्ध पहले रचा, पीछे रचा शरीर ।*
  *तुलसी चिन्ता क्यों करे, भज ले श्री रघुबीर।।*
     *🙏🏼🙏🏻🙏 जय जय श्री राधे*🙏🏾🙏🏽🙏🏿

                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७,

आज का सुविचार


*युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा*
*शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम्।*
*अयुक्तः कामकारेण*
*फले सक्तो निबध्यते॥*

कर्मयोगी कर्मों के फल का त्याग करके सदा रहने वाली शान्ति को प्राप्त होता है और सकाम पुरुष कामना करने के कारण उस कर्म के फल में आसक्त होकर बँधता है॥

*सर्वकर्माणि मनसा* 
*संन्यस्यास्ते सुखं वशी।*
*नवद्वारे पुरे देही नैव* 
*कुर्वन्न कारयन्॥*

अन्तःकरण को अपने वश में करके, सब कर्मों को मन से त्याग कर, न उन्हें करते हुआ और न करवाते हुए ही, नौ द्वारों वाले शरीर रूपी घर में योगी सुख पूर्वक रहे॥


भारत की शान


*#भारत_की_शान* :- *"#अशोक_स्तम्भ”*

#चीन के #जिजीयांग स्टेट में "#अशोक_स्तम्भ" आज भी मौजूद है। चीन के लोगों को #चक्रवर्ती_अशोक की महानता और वीरता की कथाएं पता है लेकिन हमारे बच्चे *~नेहरू~* और *~राजीव~* को ही जान पाये।
         
कभी आपने सोचा कि जिस #सम्राट के नाम के साथ #संसार भर के इतिहासकार *“#महान”* शब्द लगाते हैं..
                                             
जिस #सम्राट का #राज_चिन्ह *"अशोक चक्र"* भारत देश अपने #झंडे में लगाता है..

जिस #सम्राट का राज चिन्ह *"#चारमुखी_शेर"* को भारत देश #राष्ट्रीय_प्रतीक मानकर सरकार चलाती है..

जिस देश में सेना का सबसे बड़ा *"#युद्ध_सम्मान"* सम्राट अशोक के नाम पर #अशोक_चक्र दिया जाता है..

जिस #सम्राट से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ, जिसने *#अखंड_भारत* (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान) जितने बड़े भू-भाग पर #एक_छत्रीय_राज किया हो..

जिस #सम्राट के #शासन_काल को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार #भारतीय_इतिहास का सबसे *#स्वर्णिम_काल* मानते हैं..

जिस #सम्राट के शासन काल में भारत *#विश्वगुरु* था.. *#सोने_की_चिड़िया* था.. जनता खुशहाल और भेदभाव रहित थी..

जिस #सम्राट के शासन काल में *#जीटी_रोड* जैसे कई हाईवे बने। पूरे सड़क पर #पेड़ लगाये गए.. सराये बनायीं गई। इंसान तो इंसान जानवरों के लिए भी प्रथम बार #अस्पताल खोले गए, जानवरों को मारना बंद कर दिया गया..

ऐसे महान #सम्राट_अशोक_की_जयंती उनके अपने ही देश भारत में क्यों नहीं मनायी जाती..??

अफ़सोस जिन लोगों को ये जयंती मनानी चाहिए, वो लोग अपना #इतिहास ही नहीं जानते और जो जानते हैं वो मानना नहीं चाहते...

_*#जो_जीता_वही_चंद्रगुप्त ना होकर, #जो_जीता_वही_सिकन्दर कैसे हो गया??*

जबकि सिकंदर की सेना ने चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रभाव को देखते हुये लड़ने से मना कर दिया था और उसका मनोबल टूट गया, जिसके कारण सिकंदर ने मित्रता के तौर पर अपने सेनापति सेल्युकश कि बेटी की शादी चन्द्रगुप्त से की थी।

*#महाराणा_प्रताप* #महान ना होकर *~#अकबर~* #महान कैसे हो गया? 

जबकि, अकबर अपने हरम में हजारों लड़कियों को रखैल के तौर पर रखता था। यहाँ तक कि उसने अपनी बेटियों और बहनों की शादी तक पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। और इधर हम उस महान योद्धा महाराणा प्रताप को भूल गए जिसने अकेले दम पर उस अकबर की लाखों की सेना को घुटनों पर ला दिया था।

*#सवाई_जय_सिंह* को #महान_वास्तुप्रिय_राजा ना कहकर *~#शाहजहाँ~* को यह #उपाधि किस आधार मिली? 

जबकि साक्ष्य बताते हैं कि जयपुर के हवा महल और कई किले महाराजा *जय सिंह* ने बनवाया था और मुगलों ने यहाँ के मंदिरों और महलों पर जबरन कब्ज़ा करके उनको अपनी कृति घोषित किया था।

जो स्थान *#गुरु_गोबिंद_सिंह* जी को मिलना चाहिये.. वो क्रूर और आतंकी *~औरंगजेब~* को क्यों और कैसे मिल गया..??

*#स्वामी_विवेकानंद* और *#आचार्य_चाणक्य* को भूल गए और हिंदुत्व विरोधी ~गांधी~ *महात्मा* बनकर हिंदुस्तान के *#राष्ट्रपिता* कैसे हो गये..??

*#तेजोमहालय* हो गया #ताजमहल.. *#लालकोट* हुआ #लालकिला एवं सुप्रसिद्ध #गणितज्ञ *#वराह_मिहिर* की मिहिरावली(महरौली) स्थित #वेधशाला हो गयी #कुतुबमीनार
......क्यों और कैसे हो गया..??

यहाँ तक कि हमारा *#राष्ट्रीय_गान* भी संस्कृत के _*"#वन्देमातरम्"*_ की जगह गुलामी का प्रतीक *"#जन_गण_मन"* कैसे और क्यों हो गया..??

और तो और… हमारे आराध्य भगवान *#राम* और *#कृष्ण* #इतिहास से कहाँ और कब #गायब हो गये, पता ही नहीं चला। आखिर कैसे..??

यहाँ तक कि #हमारे_आराध्य भगवान *राम* और *कृष्ण* की #जन्मभूमि भी कब और कैसे #विवादित बन गयी, हमें पता हीं नही चला..??

हमारे दुश्मन सिर्फ #बाबर, #गजनवी, #तैमूरलंग ही नहीं हैं बल्कि आज के *~#सफेदपोश_सेक्यूलर~* भी हमारे उतने ही बड़े दुश्मन हैं, जिन्होंने हीन भावना का उदय कर दिया।

इसलिए समय आ गया है.. अपने #सच्चे_इतिहास को जानें और समझें तथा दुसरों को भी अवगत करायें...

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                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७,

आज का संदेश



          *इस धराधाम पर जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य एक सुंदर एवं व्यवस्थित जीवन जीने की कामना करता है | इसके साथ ही प्रत्येक मनुष्य अपनी मृत्यु के बाद स्वर्ग जाने की इच्छा भी रखता है | मृत्यु होने के बाद जीव कहां जाता है ? उसकी क्या गति होती है ? इसका वर्णन हम धर्मग्रंथों में ही पढ़ सकते हैं | इन धर्म ग्रंथों को पढ़कर जो सारतत्व मिलता है उसके अनुसार मनुष्य अपने कर्मानुसार स्वर्ग एवं नर्क की प्राप्ति करता है | इस पृथ्वी पर परमात्मा ने सब कुछ इतना सुंदर बनाया है कि इस धरती को भी स्वर्ग कहा गया है | स्वर्ग एवं नर्क की अनुभूति मनुष्य जीवित रहते ही कर सकता है और करता भी है | गोस्वामी तुलसीदास जी ने एक क्षण के सत्संग को स्वर्ग से बढ़कर बताया है वहीं आचार्य चाणक्य स्वर्ग एवं नर्क इसी पृथ्वी पर बताते हुये लिखते हैं :--"यस्य पुत्रो वशीभूतो भार्या छन्दानुगामिनी ! विभवे यश्च सन्तुष्टस्तस्य स्वर्ग इहैव हि !!" अर्थात:- जिसका पुत्र आज्ञाकारी हो और स्त्री पति के अनुकूल आचरण करने वाली हो, पतिव्रता हो और जिसको प्राप्त धन से ही संतोष हो अर्थात् उसके पास जितना धन है वह उसी में संतुष्ट रहता हो ऐसे व्यक्ति के लिए स्वर्ग इसी धरती पर है | वहीं नर्क भी इसी धरती पर दिखाने का प्रयास करते हुए आचार्य चाणक्य ने कहा है :-- "अत्यन्तलेपः कटुता च वाणी दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम् ! नीच प्रसङ्गः कुलहीनसेवा चिह्नानि देहे नरकस्थितानाम् !! अर्थात :- अत्यन्त क्रोध, कटु वाणी, दरिद्रता, स्वजनों से वैर, नीच लोगों का साथ, कुलहीन की सेवा - नरक की आत्माओं के यही लक्षण होते हैं ! कहने का तात्पर्य बस इतना ही है कि मनुष्य अपने जीते जी अपने कर्मों के द्वारा स्वर्ग एवं नर्क की अनुभूति इसी पृथ्वी पर कर सकता है |*

*आज के समाज का परिवेश एवं आचार्य चाणक्य के वचनों को देखा जाए तो कोई भी स्वर्ग जाने का अधिकारी होता नहीं दिख रहा है | आज जिस प्रकार पुत्रों द्वारा अपने माता - पिता का तिरस्कार करके उनको वृद्धावस्था में वृद्धाश्रम या फिर घर में ही उपेक्षित एवं तिरस्कृत जीवन जीने को विवश किया जा रहा है , घर की स्त्री को सम्मान ना दे कर के पराई स्त्रियों को कुदृष्टि से देखने एवं उनसे दुर्व्यवहार करने के समाचार जिस प्रकार प्रतिदिन मिल रहे हैं , उससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कौन-कौन स्वर्ग जाने का अधिकारी बनता चला जा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आज जिस प्रकार अधिकतर मनुष्य क्रोध के वशीभूत होकर के कटु वाणी का प्रयोग करते हैं एवं दुर्जनों का संग करके जिस प्रकार समाज को भयभीत करने का प्रयास कर रहे हैं वे सभी प्राणी आचार्य चाणक्य के वचन अनुसार नरक के ही अधिकारी हैं | ऐसे मनुष्यों से कभी भी परिवार समाज एवं देश के हित की कामना करना भी मूर्खता है | जो लोग अपने जीवनकाल में अपने कर्मों के द्वारा स्वयं के साथ परिवार एवं समाज को नारकीय परिवेश में ढकेल रहे हैं वे मृत्यु के बाद यदि थोड़े से पुण्य के बल स्वर्ग जाने की इच्छा रखते हैं तो यह हास्यास्पद ही कहा जा सकता है |*

*अपने कर्मों के द्वारा मनुष्य इसी धरती पर स्वर्ग एवं नर्क की रचना कर सकता है ! तो आईये नारकीय जीवन से बचते हुए स्वर्ग के आनंद को प्राप्त करने का प्रयास करें |*                                            

                  आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७,

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...