Sunday, November 10, 2019

प्रात: संदेश



*एक बार दुर्वासा जी भगवान विष्णु से मिल करके लौट रहे थे उनके हाथ में एक पुष्प था | मार्ग में उनको देवराज इंद्र मिल गए , इंद्र ने जब उस पुष्प का रहस्य पूछा तो दुर्वासा जी ने बताया कि यह पुष्प जिसके सर पर रहेगा वह सृष्टि में प्रथम पूज्य होगा | इंद्र ने वह पुष्प दुर्वासा जी से मांग लिया और देवराज होने के अभिमान में उस पुष्प को स्वयं के ऊपर न रखकर के हाथी के ऊपर रख दिया  | उस पुष्प को स्वयं के सर पर रखे जाने पर हाथी मदमस्त एवं अहंकारी हो गया | कालांतर में जब भगवान शिव के द्वारा पुत्र गणेश का शीश काटा गया तब हाथी के अभिमान के कारण तथा दुर्वासा जी के कथन अनुसार उस पुष्प को हाथी के सर पर रखने के कारण हाथी के बच्चे का सर काट कर के भगवान गणेश को लगाया गया , और वे उस पुष्प के प्रभाव से प्रथम पूज्य बने | इसमें उस हाथी का दोष उसमें उत्पन्न अहंकार के अतिरिक्त और कुछ नहीं था |*

*हाथी का सर तो भगवान गणेश को लगकर के प्रथम पूज्य बन गया परंतु शेष शरीर केकड़े के रूप में उत्पन्न हुआ | जो कि आज तक सर विहीन है |*

*ध्यान देने योग्य बात यह है कि केकड़े को सर नहीं होता है*

*स्रोत :- वाराहपुराण का कुछ अंश एव सन्तों का सतसंग*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

भगवान शिव की आराधना से मनुष्य के पास आती है यह शक्तियां



भगवान शिव की आराधना करने से मनुष्य के पास आती हैं यह शक्तियाँ!!!!!!

इस कलयुग के समय में अगर किसी व्यक्ति से बोला जाए कि भगवान शिव की पूजा किया कर तो वह साफ़ बोलता है कि कुछ मिलना तो है नहीं, इसलिए हम बिना पूजा किये हुए ही सही हैं।

लेकिन आपको बता दें कि भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के पास कई तरह की शक्तियां आ जाती हैं किन्तु उन शक्तियों को बहुत ही कम लोग अनुभव कर पाते हैं।

आपको बताते हैं कि भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के पास कौन-सी शक्तियां आ जाती हैं.....

व्यक्ति का मृत्यु डर खत्म हो जाता है...

हर इंसान अपनी मृत्यु से डरता है. जीवन के अंतिम समय से हर कोई डरता है. आप खुद एक बार को सोचिये कि आपको भी एक दिन मरना है और यही सोचते ही आप डरने लगेंगे. लेकिन जो शिव का भक्त होता है उसको कभी भी मृत्यु का डर नहीं लगता है. यह खास शक्ति आज के समय में कुछ ही लोगों के पास होती है।

सफलता कदम चूमने लगती है.....

ऐसा व्यक्ति जो शिव का परम भक्त होता है उसके पास ऐसी शक्ति होती है कि वह किसी भी हालात में सफलता को प्राप्त कर सकता है. यदि शिव भक्त के सामने पहाड़ भी होगा तो वह चुटकियों में उसको भी पार कर सकता है।

नहीं होती है मोह माया......

इंसान की जब इच्छायें खत्म होने लगती हैं तो वह वाकई एक खुशहाल इंसान बनने लगता है. शिव के भक्त ही यही सबसे बड़ी ताकत बनने लगती है कि वह हमेशा खुश रहने लगता है. दुनिया में एक तरफ जहाँ सब दुखी हैं वहीं दूसरी तरफ शिव के भक्त हमेशा खुश रहते हैं।

इन्सान को पहचाने की शक्ति.....

शिव के भक्त के पास सबसे बड़ी शक्ति यही आ जाती है कि वह सामने वाले इंसान को अच्छी तरह से पहचानने लगता है. कौन व्यक्ति किस तरह के भाव मन में रखता है यह शिव का भक्त तुरंत जानने लगता है. ऐसा जब होता है तो फिर कभी शिव का भक्त बेवकूफ नहीं बन पाता है.

बुरे समय को पहले भी भांप लेता है शिव भक्त......

ऐसा नहीं है कि शिव भक्त के जीवन में दुःख नहीं आता है. यह सुख और दुःख तो जीवन की सच्चाई है. बस शिव की भक्ति करने वाला अपने बुरे समय को पहले ही भांप लेता है और वह उस दुःख के लिए तैयार हो जाता है. साथ ही साथ शिव भक्त को हमेशा फांसी जैसे दुःख की सजा कंकड़ में बदलकर दी जाती है।

इस तरह से आप यह देख सकते हैं कि भगवान शिव की पूजा करने से किस तरह की शक्तियों से समृद्ध किया जाता है शिव भक्त. आप भी यदि भगवान शिव की पूजा बिना किसी पाप और मतलब के करते हैं तो एक निश्चित समय बाद आपके पास भी इस तरह की शक्तियाँ आने लगती हैं।

!!शिव का दास कभी ना उदास!!

!!ॐ नमः शिवाय्!! हर हर महादेव!!

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
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मानव शरीर में त्रिदेव निवास




                *प्रत्येक शरीर में एक आत्मा निवास करती है जिस प्रकार भगवान शिव के हाथ में सुशोभित त्रिशूल में ती शूल होते हैं उसी प्रकार आत्मा की तुलना भी एक त्रिशूल से की जा सकती है, जिसमें तीन भाग होते हैं- मन, बुद्धि और संस्कार | इनको त्रिदेव भी कहा जा सकता है | मन सृजनकर्ता ब्रह्मा , बुद्धि संहारकारी शिव तथा संस्कार को पालनकर्ता विष्णु कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | आत्मारूपी त्रिशूल में मन एवं संस्कार दायें और बायें शूल हैं, जबकि बुद्धि मध्य में स्थित है, जो कि कुछ लम्बा और अन्य दो शूलों अर्थात् मन एवं संस्कार से अधिक महत्वपूर्ण होता है | मन आत्मा की चिंतन शक्ति है जो कि विभिन्न प्रकार के विचार उत्पन्न करती है |  अच्छे - बुरे , व्यर्थ , साधारण, इत्यादि | कुछ विचार स्वैच्छिक होते हैं, और कुछ अनियंत्रित, जो कि पिछले जन्मों के कर्मों के हिसाब-किताब के कारण उत्पन्न होते हैं | कुछ विचार शब्दों तथा कर्मों में परिवर्तित हो जाते हैं, जबकि कुछ विचार मात्र विचार ही रह जाते हैं |  विचार बीज की तरह होते हैं- शब्दों और कर्मों रूपी वृक्ष से कहीं अधिक शक्तिशाली | जब शरीर-रहित आत्माएं शांतिधाम या परमधाम में होती हैं तो वे विचार-शून्य होती हैं | मन एक समुद्र या झील की भांति है, जो विभिन्न प्रकार की लहरें उत्पन्न करता है- कभी ऊंची, कभी नीची, और कभी कोई लहरें नहीं होती. केवल शांति होती है | इसीलिए मन की तुलना ब्रह्मा (स्थापनाकर्ता) से की जा सकती है | बुद्धि आत्मा की निर्णय शक्ति है | कोई आत्मा सारे दिन या सारी रात में विभिन्न प्रकार के विचार उत्पन्न कर सकती है, किन्तु केवल बुद्धि द्वारा निर्णय लिये जाने पर ही आत्मा उन विचारों को शब्दों या कर्मों में ढ़ालती है |  सकारात्मक - नकारात्मक या व्यर्थ विचारों को उत्पन्न करना या केवल विचार-शून्य अवस्था में रहने का निर्णय भी बुद्धि द्वारा ही लिया जाता है |*

*आज इस विषय पर यदि विचार किया जाय तो बुद्धि उस जौहरी की तरह है, जो कि शुद्धता और मूल्य के लिए रत्नों और हीरों को परखता है |  बुद्धि की तुलना भगवान शंकर (विनाशकर्ता) से की जा सकती है , जो कि पुरातन संस्कारों, विकारों और पुरातन सृष्टि का विनाश करके नई दुनिया की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करते हैं | किये हुए अच्छे बुरे कर्मों का जो मन बुद्धि रूपी आत्मा के ऊपर प्रभाव पड़ता है उसको संस्कार शक्ति कहा जाता है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का यह मानना है कि यदि बुद्धि अपने शरीर का उपयोग बारंबार परिश्रम करने के लिए करती है, तो आत्मा परिश्रमी व्यक्ति के संस्कार धारण कर लेती है | यदि बुद्धि बारंबार सोने और आराम करने का निर्णय लेती है और परिश्रम एवं कसरत से बचती है, तो आत्मा आलस्य का संस्कार धारण कर लेती है | अतः, यह आत्मा पर निर्भर करता है कि वह अच्छे या बुरे संस्कार धारण करे | आत्मा अपनी संकल्प तथा निर्णय शक्ति (अर्थात् मन तथा बुद्धि) के आधार पर जो भी संस्कार प्राप्त करती है, वो आत्मा में उसी प्रकार जमा हो जाते हैं | ये संस्कार आत्मा के अगले जन्म में भी उसके साथ रहते हैं, और अगले जन्म में भी कुछ हद तक उसके विचारों, वाणी और कर्मों को प्रभावित करते हैं | किसी आत्मा के अंदर पिछले जन्म में हासिल किये गये बुरे संस्कार होने के बावजूद, वह अच्छी संगत, मार्गदर्शन, भोजन, वातावरण, इत्यादि के द्वारा इन संस्कारों को बदल सकती है | आत्मा के संस्कारों की तुलना पालनकर्ता श्री हरि विष्णु से की जा सकती है |*

*इस प्रकार मानव शरीर का यदि सूक्ष्मावलोकन किया जाय तो तीनों प्रमुख देवता इसी शरीर में निवास करते हैं |*                                 

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
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आज का संदेश



*तत्र पूर्वश्चतुर्वर्गो दम्भार्थम् अपि सेव्यते ।*
 *उत्तरस्तु चतुर्वर्गो महात्मन्य् एव तिष्ठति ।।*
                  *भावार्थः--*

‘‘धर्म के आठ प्रकारों के मार्ग में प्रथम चार- यज्ञ, अध्ययन, दान और तपस्या  दम्भ के लिये भी किये जाते हैं । परन्तु पिछले चार- मार्ग सत्य, सन्तोष, सहनशीलता और लोभ न करना तो महापुरूष में ही रहते हैं ।
यह विचार कर स्वतः का अवलोकन करना चाहिए कि हम जो कुछ भी धार्मिक कार्य कर रहे हैं, उसके पीछे मेरा भाव उद्देश्य क्या है ।  दुनिया को दिखाकर झूठी प्रशंशा प्राप्त करने के लिए या भगवत्प्राप्ति के लिए कर रहे हैं । जो उद्देश्य होगा वही फल प्राप्त होगा ।।
                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
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आछ का संदेश



_सुखी जीवन जीने का सिर्फ एक ही रास्ता है वह है अभाव की तरफ दृष्टि ना डालना। आज हमारी स्थिति यह है जो हमे प्राप्त है उसका आनंद तो लेते नहीं, वरन जो प्राप्त नहीं है उसका चिन्तन करके जीवन को शोकमय कर लेते हैं।_

_दुःख का मूल कारण हमारी आवश्कताएं नहीं हमारी इच्छाएं हैं। हमारी आवश्यकताएं तो कभी पूर्ण भी हो सकती हैं मगर इच्छाएं नहीं। इच्छाएं कभी पूरी नहीं हो सकती और ना ही किसी की हुई आज तक। एक इच्छा पूरी होती है तभी दूसरी खड़ी हो जाती है।_
 
_इसलिए शास्त्रकारों ने लिख दिया_
_आशा हि परमं दुखं नैराश्यं परमं सुखं_
_दुःख का मूल हमारी आशा ही हैं। हमे संसार में कोई दुखी नहीं कर सकता, हमारी अपेक्षाएं ही हमे रुलाती हैं। यह भी सत्य है कि इच्छायें ना होंगी तो कर्म कैसे होंगे ? इच्छा रहित जीवन में नैराश्य आ जाता है। लेकिन अति इच्छा रखने वाले और असंतोषी हमेशा दुखी ही रहते हैं।_ 
                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
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चिन्तन



             *मनुष्य इस धरा धाम पर जन्म लेकर के जीवन भर अनेकों कृत्य करते हुए अपनी जीवन यात्रा पूर्ण करता है | इस जीवन अनेक बार ऐसी स्थितियां प्रकट हो जाती है मनुष्य किसी वस्तु , विषय या किसी व्यक्ति के प्रति इतना आकर्षित लगने लगता है कि उस वस्तु विशेष के लिए कई बार संसार को भी ठुकराने का संकल्प ले लेता है | आखिर यह मन किसी के प्रति इतना आकर्षित क्यों और कैसे हो जाता है ? यह स्वयं में एक रहस्य है | किसी के प्रति लगाव क्यों और कैसे उत्पन्न हो जाता है कभी-कभी मनुष्य स्वयं नहीं जान पाता | यही आकर्षण के सिद्धांत का रहस्य है | हमारे मनीषियों का मन के ऊपर बहुत ही विस्तृत वर्णन पढ़ने को प्राप्त होता है | किसी के प्रति लगाव या आकर्षण ऐसे ही नहीं पैदा हो जाता है , यह स्थिति प्रकट होने का एक विशेष कारण यह होता है कि मनुष्य जिस विषय , वस्तु या व्यक्ति के प्रति बारंबार अपने मन में चिंतन करता है , दिन रात उसी के विषय में विचार किया करता है तो उस व्यक्ति विशेष , विषय विशेष या वस्तु विशेष से उसका सहज लगाव हो जाता है | आकर्षण और लगाव का एक रहस्य यह भी कि किसी के प्रति यह लगाव या आकर्षण यदि सकारात्मक होता है तो मनुष्य नित्य नई उर्जा प्राप्त करते हुए उन्नति के पथ पर अग्रसर हो जाता है , परंतु यही लगाव जब नकारात्मकता का लबादा ओढ़कर के मन में घूमा करता है तो मनुष्य का पतन प्रारंभ हो जाता है | किसी के प्रति मन में उत्पन्न हुए प्रेम का सहज कारण यह आकर्षण ही होता है | मन का लगाव कब किससे हो जाएगा यह शायद मन भी नहीं जानता | मनुष्य को संचालित करने की शक्ति रखने वाला मन कभी-कभी इस आकर्षण के चक्रव्यूह में फंसकर इतना विवश हो जाता है कि इससे निकलने का मार्ग नहीं ढूंढ पाता | इससे निकलने का एक ही मार्ग है कि उस व्यक्ति या वस्तु के विषय में सोचना बंद कर दिया जाए अन्यथा जब बार-बार किसी का चिंतन किया जाएगा तो यह मन चुंबक की भांति उसी और दौड़ता रहेगा |*

*आज इस आकर्षण और लगाओ का अर्थ ही बदल कर रह गया है | आज समाज में जिस प्रकार का वातावरण देखा जा रहा है उसके अनुसार मनुष्य का लगाव आत्मिक कम शारीरिक ज्यादा ही दिखाई पड़ रहा है |  आज अधिकतर लोग किसी के शारीरिक आकर्षण के जाल में फस कर के स्वयं की मर्यादा एवं पद को भी भूलने को तैयार है |  बड़े-बड़े ज्ञानी - ध्यानी मन के इस रहस्य को समझ पाने में असफल ही रहे हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" सद्गुरुओं से अब तक प्राप्त ज्ञानप्रसाद के आधार पर यह कह सकता हूं कि मन बड़ा चंचल होता है इसको सदैव एक बिगड़े हुए घोड़े की तरह लगाम लगा कर रखना ही उचित है | प्राय: लोग बाबा तुलसीदास जी की एक चौपाई का उद्धरण देते हैं कि बाबा जी ने लिखा है :- कलि कर एक पुनीत प्रतापा ! मानस पुण्य होंहिं नहिं पापा !! लोग तर्क देते हैं कि कलयुग में मन से किए हुए पाप का फल नहीं मिलता है |  परंतु विचार कीजिए यदि बार-बार मन को पाप की ओर जाने की छूट दे दी जाएगी , पाप के प्रति आकर्षित होने दिया जाएगा तो मानसिक पाप धरातल पर उतरने में बहुत ज्यादा समय नहीं लगेगा | इसलिए मन का लगाव सकारात्मक एवं नियंत्रित होना चाहिए | यद्यपि कभी-कभी इस पर मनुष्य का बस नहीं रह जाता है परंतु विवश हो जाने के बाद भी मनुष्य को धीरे-धीरे स्थिति नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए |*

*किसी के विषय में कब , क्यों और कैसे यह मन आकर्षित हो गया यह जान पाना कठिन भी नहीं है | जब मनुष्य बार-बार किसी का चिंतन करेगा तो उसके प्रति लगाव और आकर्षण स्वमेव बढ़ ही जाता है |*                                       

                  आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
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मंत्र व नाम जाप


           मन्त्र एक प्रकार से इस ब्रह्मांड को संचारित करने वाले  की ऊर्जा का दूसरा रूप है।शब्दों एवं शब्द समूहों के उर्जावान समूह को मन्त्र कहते हैं।क्योंकि मंत्रोच्चारण से एक अद्भुत तरंगात्मक ऊर्जा का आविर्भाव होता है।जिससे सम्पूर्ण वातावरण ऊर्जावान हो जाता है।
इस पूरे ब्रह्मांड में केवल दो ही चींजे व्याप्त हैं।एक ऊर्जा एवं दूसरा पदार्थ।
पदार्थ तो हमारा लौकिक पंचभौतिक शरीर है और मन्त्र रूपी वाक्य ऊर्जान्वित शक्ति।हमारे द्वारा कहे गए वाक्य साधारण होते हैं किंतु जब हम उस वाक्य में मन्त्रों का प्रयोग करते हैं तो एक अद्भुत शक्तिशाली ऊर्जा का समावेश हो जाता है जिससे प्रकृति का तो परे ही रख दीजिए,मनुष्य स्वयं में ही ऊर्जावान आभास करता है।उसमें नैसर्गिक शक्तियों का आभास होने लगता है।
मन्त्र की बात आप छोड़ दीजिए,केवल *ॐ* का जाप करने मात्र से ही आप निरोगी हो जाएंगे।

*नाम*
        नाम जप को सीधे सीधे भगवन्नाम जप कहा जा सकता है।यह भी ऊर्जान्वित होने का एक विशेष जप है।
नाम जप मनुष्य के अंदर व्याप्त श्रद्धा एवं विश्वास की अद्भुत शक्ति का संचयन करता है।जिससे वह स्वयं ही ऊर्जावान हो जाता है।उसमें इतनी शक्ति आ जाती है कि उसे लगने लगता है कि उसकी कृपा से 
*मूकं करोति वाचालं पङ्गुं लङ्घयते गिरिं।*
*यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्।*
अर्थात उसके नाम लेने मात्र से ही मेरे समस्त कार्य स्वयं संपादित हो जाएंगे।ऐसा भाव जागृत होता है कि
*मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है।*


🙏🏻🙏🏻🙏🏻🛐🛐🛐💐💐
                  आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
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न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...