Monday, April 27, 2020

वो सारी बस्ती जला रहा है ।

वो    सारी   बस्ती   जला  रहा  है ।
पर   अपना  दामन  बचा   रहा है।।

नहीं    बचेगी   किसी  की   हस्ती ।
बिसात    ऐसी    बिछा   रहा   है ।।

वो घोल कर दिल में सबके नफ़रत।
जहां   से  उल्फ़त   मिटा  रहा  है।।

वो  दोष  औरों  के  सर  पे मढ़कर।
बेदाग़   ख़ुद   को   दिखा  रहा  है।।

ये  किसको  है   रोशनी  से नफ़रत।
ये    कौन   दीये    बुझा   रहा   है।।

'खेमेश्वर '   कैसे   बचेगी    उल्फ़त ? 
मुझे   ये   ही   ग़म   सता   रहा  है !।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

इश्क़ दिलों में वफ़ा भी जताते रहे।

गर सदा रस्म उल्फत का निभाते रहे!
इश्क़  दिलों  में  वफ़ा भी जताते रहे।

इस  कदर  हम मिलें के हुए ना जुदा!
सांस बनकर रूहों को जगाते रहे।

कर गये हम ख़ता के वफ़ा कर गये!
ताउम्र हसरतों को सुलझाते रहे।

बांधकर हम चलें डोर मन का सदा!
हर सफर फिर कटे गम भुलाते रहे।

मुहब्बतें भी गुलों का चमन सी लगे!
हमनवा गर दिलों को मिलाते रहे।

गर सदा रस्म उल्फत का निभाते रहे!
इश्क़  दिलों  में  वफ़ा भी जताते रहे।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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Saturday, April 25, 2020

तब होगा अपना देश महान अपना ये देश प्यारा हिंदुस्तान

आया आया ये पवित्र महीना सुनलो भाइयों मुसलमान
लाकडाउन का पालन हिन्दू करे,तुम रखों रोजा श्रीमान

घर घर पहुंचेगा गोश्त ओर फल फ्रूट तुम्हारी सेवा में यूँ
हर सरकारी आदमी होगा नोकर तुम मालिक मेरी जान

उड़ा लेना जितनी उड़ा सकते हो धज्जियाँ नियमो की
होना इक्कठे नमाज को मस्जिदों से आये जब आजान

न हो मुश्किलें कोई रोजा रखने में तुमको ये समझ लो
हर ख्वाईश पूरी करेगी ये सरकार तुम पे सिर्फ़ मेहरबान

हमारी होली गई हमारा नवरात्रि बीत गई तो क्या हुआ
हमारी संस्कृति को आग लगे भाड़ में जाये ये हिंदुस्तान

राम नवमी,महावीर जयंती हम सब भुल से गये यहाँ पर
परशुरामजी बाल्मीकी का कौन रखना चाहता यहाँ ध्यान

बस इतना समझ आया हमको अर्णव गोस्वामी की बात से
जो नेताओ के ख़िलाफ़ बोले मार डालो उसको लेलो प्राण

कहता कवि हूं खेमेश्वर मुंगेली से क़लम  तोड़  डालूं मैँ
क्या देश जगाना अपना जब सोया हिन्दू छोड़ वेद पुराण

इससे अच्छा तो मुस्लिम पैदा हो जाते हम भी गर्व होता है
गद्दारी नहीं करते धर्म से अपनी वो चाहें ले किसी की जान

गीता कुरान वेद पुराण सब फाड़ डालो मोदी जी सुन लो
धर्म की राजनीति त्याग कर लागू कर दो बस ये सँविधान

बस अब राजधर्म को सर्वप्रिय कर दो फिर प्यारे मोदी तुम
तब होगा अपना देश महान अपना ये देश प्यारा हिंदुस्तान

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

मुस्कुराते रहे वो बिना बात पर।

मुस्कुराते   रहे    वो    बिना   बात    पर।
दिल   को  थामे  रहे  हम मुलाकात पर।।

तिरछी  नज़रों  से  घायल वो  करते  रहे।
तरस    खाए   बिना   मेरे   हालात  पर।।

है  नज़र  आ   रहे  हर  तरफ  वो  ही वो।
छा    गए    ऐसे    मेरे    ख्यालात   पर।।

हर   धङकन   उन्हीं   को  पुकारा   करे।
वो असर कर गए दिल  के जज़्बात पर।।

यूं   दीवाना  बनाकर   के  वो  चल दिए ।
क्या  कहूं  दिल की  ऐसी खुराफात पर।।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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Friday, April 24, 2020

आज गलियां सब हैं खाली मौन हर संवाद है ।

आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

आज गलियां सब हैं खाली मौन हर संवाद है ।
सब  सिमटे  सिमटे से हैं कहां वाद विवाद है ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

ऐसा ही होता जब छलना अनजानी आती है ।
निराशा आती तब आशा जलती सी जाती है ।
किधर मौन  हो हैं  जाते वे बजते गीत सुहाने ।
खोजने पे   भी नजर नहीं आते वे यार पुराने ।
हम भी हैं  सामिल नहीं कहीं हम अपवाद हैं ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

इक अनजानी  अनचाही  रिक्त्तता ने घेरा है ।
इस चार दिन की जिंदगी में क्या तेरा मेरा है ।
करते हैं  कहीं पे गुजर कुछ दिन का फेरा है ।
धुंधला धुंधला सा कैसा चित्र उसने उकेरा है ।
मंदिरों के पट हैं बंद नहीं  वहां प्रणव नाद हैं ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

उजियारे  का  चांद गगन  में चढ़ के रोता है ।
छोंड़  के  हमें भाग्य भरोसे वह भी सोता है ।
अंधियारे  से  डर  जाने किधर उजियारा है ।
कैसा दौर दुनिया का  हर ओर अंधियारा है ।
सब हैं मौन से  अनजाना  कोई अवसाद है ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,!!!

इच्छाएं   पर आज  बंदिसें  कोई अज्ञात है ।
जानें किधर खोए सब प्रख्यात विख्यात हैं ।
हो गई भोर बिना आभा के दुखी प्रभात है ।
शोर थम  गए  जो दिखता है वह प्रलाप है ।
सबके  दिलो  में छाया अनजाना संताप है ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,!!!

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

एक बार इस धरती पर फिर,हे परसुराम आ जाओ

कृन्दन करतीं आज दिशायें,भरे पाप के घट देखो,
डरे हुए हैं गली बगीचे,आतंकित पनघट देखो,
मानवता के मूल्य गिरे हैं,दानवता के भाव बढ़े,
राष्ट्र भक्ति की छोड़ किताबें,युवा फेसबुक आज पढ़े,
परिधान बदलते हैं ऐसे,जैसे मौसम बदल रहे,
घात लगाए अंधकार में,कई भेड़िये टहल रहे,
मासूम बच्चियों को भी अब,नहीं छोड़ते दानव हैं,
वहसी दैत्य नराधम केवल,कहनें को ही मानव हैं,

करबद्ध निवेदन करता हूँ,सब सन्ताप मिटा जाओ ।।
एक बार इस धरती पर फिर,हे परसुराम आ जाओ ।।(1)

इक्कीस बार इस धरती को,मुक्ति दिलाई पापों से,
एक बार फिर राष्ट्र बचालो,कलयुग के इन साँपों से,
हर ओर दिखाई देता है,नंगा नर्तन हिंसा का,
बापू नें कर दिया नपुंसक,देकर सबक अहिंसा का,
जातिवाद की ज्वाला सबको,धीरे धीरे निगल रही,
तू तेरा मैं मेरा में ही,कुण्ठा करवट बदल रही,
ऐसी आँधी चली देश में,संस्कृति के वट उखड़ रहे,
अनाचार की ज्वाला में वन,सदाचार के उजड़ रहे,

भारत भू पर सदाचार का,फिर से वृक्ष लगा जाओ ।।(2)
एक बार इस धरती पर फिर,हे,,,,,,,,

किलप रहीं हैं कितनी गायें,कटती बूचड़खानें में,
भर खर्राटे रक्षक सोते,पाँव पसारे थानें में,
विप्र धेनु सुर सन्त हेतु ही,मनुज रूप हरि नें धारे,
जब जब दैत्य बढ़े धरती पर,एक एक कर सब मारे,
नहीं सुरक्षित आज द्रोपदी,नहीं सुरक्षित सीता है,
संकट में गौ गंगा नारी,संकट में अब गीता है,
आज हिन्द में पुनः चतुर्दिक,सहसबाहु की फौज खड़ी,
एक बार फिर परसुराम की,राह निहारे क्रन्द घड़ी,

भारत की इस धर्म भूमि पर,धर्म ध्वजा फहरा जाओ ।।(3)
एक बार इस धरती पर फिर,हे,,,,,,,,

काट न पाया कोई अब तक,आतंकवाद की चोटी,
गरम तवे पर सेंक रहे हैं,अपनी अपनी सब रोटी,
नरसंहार मचा चौतरफा,सेना पर पत्थरबाज़ी,
अपनें अपनें राग अलापें,उछल उछल पंडित काज़ी,
क्रंदन करती भारत माता,राह तुम्हारी देख रही,
असुरों के सन्ताप झेलती,काँप रही है आज मही,
धोते धोते पाप सभी के,अब हो रही मलिन गंगा,
आज़ादी को कोस रहा है,भारत का राष्ट्र तिरंगा,

दुनिया से आतंकवाद का,नाम निसान मिटा जाओ ।।(4)
एक बार इस धरती पर फिर,हे,,,,,,,,

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से कुछ मन्त्र ले लो

हर परीक्षा दे चुका अब आग में इसको न ठेलो ।।
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से कुछ मन्त्र ले लो ।।

कौन कहता शांति से बिन ढाल आज़ादी मिली,
कौन कहता बिन गँवाये लाल आज़ादी मिली,
बुझ गए हैं दीप लाखों तब उजाला पा सका,
दे दिया बलिदान सर्वस तब प्रभाती गा सका,

है धरा यह प्रेम की तुम कृष्ण बनकर रास खेलो ।।(1)
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से,,,,,,,,

राष्ट्र की चिर भक्ति में है बाँधता परचम हमें,
लड़खड़ाते जब कदम है साधता परचम हमें,
एकता का मन्त्र देकर दे रहा अधिकार सब,
एक आँगन में मना लो एक हो त्योहार सब,

राष्ट्र है आज़ाद अब तो राष्ट्र को सम्मान दे लो ।।(2)
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से,,,,,,,,

दुष्ट शकुनी रच रहे गृह-युद्ध की नव नीतियाँ,
देखकर बारूद फौरन जल उठी सब तीलियाँ,
मुक्त मन से निज समर्थन दे रहीं हैं आँधियाँ,
रौद्र होकर चढ़ रही हैं शीर्ष पर सब व्याधियाँ,

भारती के लाल हो तुम वीर हर तूफान झेलो ।।(3)
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से,,,,,,,,

एक हम धृतराष्ट्र बनकर सुन रहे सारी कथा,
एक वह जो भीष्म बनकर पी रहा सारी व्यथा,
बाँसुरी को त्याग दो अब शंख की धुत्कार हो,
जो न मानें बात से फिर लात से सत्कार हो,

लक्ष्य साधे रिपु खड़े हैं खेमेश्वर तीर झेलो ।।(4)
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से,,,,,,,

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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माता पिता के चरण स्पर्श से होता है संतान के संपूर्ण अमंगलों नाश

माता पिता के चरण स्पर्श से होता है संतान के संपूर्ण अमंगलों नाश : पं.खेमेश्व माता-पिता और बच्चों के बीच का रिश्ता हर...