Friday, May 1, 2020

शिवलिंग पर बने त्रिपुण्ड्र की तीन आड़ी रेखाओं का रहस्य .

*🚩शिवलिंग पर बने त्रिपुण्ड्र की तीन आड़ी रेखाओं का रहस्य ......*

*शैव परम्परा का तिलक है त्रिपुण्ड्र । यह कितना बड़ा होना चाहिए ? कैसे लगाना चाहिए ? त्रिपुण्ड्र की तीनों रेखाओं का क्या रहस्य है ?*
 
*प्राय: साधु-सन्तों और विभिन्न पंथों के अनुयायियों के माथे पर अलग-अलग तरह के तिलक दिखाई देते हैं । तिलक विभिन्न सम्प्रदाय, अखाड़ों और पंथों की पहचान होते हैं । हिन्दू धर्म में संतों के जितने मत, पंथ और सम्प्रदाय है उन सबके तिलक भी अलग-अलग हैं । अपने-अपने इष्ट के अनुसार लोग तरह-तरह के तिलक लगाते हैं ।*

*शैव परम्परा का तिलक कहलाता है त्रिपुण्ड्र......*

*भगवान शिव के मस्तक पर और शिवलिंग पर सफेद चंदन या भस्म से लगाई गई तीन आड़ी रेखाएं त्रिपुण्ड्र कहलाती हैं । ये भगवान शिव के श्रृंगार का हिस्सा हैं । शैव परम्परा में शैव संन्यासी ललाट पर चंदन या भस्म से तीन आड़ी रेखा त्रिपुण्ड्र बनाते हैं ।*

*एक बार सनत्कुमारों ने भगवान कालाग्निरुद्र से पूछा......*
*· त्रिपुण्ड्र कितना बड़ा होना चाहिए ?*
*· कैसे लगाना चाहिए ?*
*· त्रिपुण्ड्र की तीनों रेखाओं का क्या रहस्य है ?*

*भगवान कालाग्निरुद्र बोले......*

*बीच की तीन अंगुलियों से भस्म लेकर भक्तिपूर्वक ललाट में त्रिपुण्ड्र लगाना चाहिए । ललाट से लेकर नेत्रपर्यन्त और मस्तक से लेकर भौंहों (भ्रकुटी) तक त्रिपुण्ड्र लगाया जाता है । त्रिपुण्ड्र बायें नेत्र से दायें नेत्र तक ही लम्बा होना चाहिए । त्रिपुण्ड्र की रेखाएं बहुत लम्बी होने पर तप को और छोटी होने पर आयु को कम करती हैं । भस्म मध्याह्न से पहले जल मिला कर, मध्याह्न में चंदन मिलाकर और सायंकाल सूखी भस्म ही त्रिपुण्ड्र रूप में लगानी चाहिए ।*

*क्या है त्रिपुण्ड्र की तीन आड़ी रेखाओं का रहस्य .......*

*त्रिपुण्ड्र की तीनों रेखाओं में से प्रत्येक के नौ-नौ देवता हैं, जो सभी अंगों में स्थित हैं ।*

*▪️ पहली रेखा—गार्हपत्य अग्नि, प्रणव का प्रथम अक्षर अकार, रजोगुण, पृथ्वी, धर्म, क्रियाशक्ति, ऋग्वेद, प्रात:कालीन हवन और महादेव—ये त्रिपुण्ड्र की प्रथम रेखा के नौ देवता हैं ।*

*▪️ दूसरी रेखा— दक्षिणाग्नि, प्रणव का दूसरा अक्षर उकार, सत्वगुण, आकाश, अन्तरात्मा, इच्छाशक्ति, यजुर्वेद, मध्याह्न के हवन और महेश्वर—ये दूसरी रेखा के नौ देवता हैं ।*

*▪️ तीसरी रेखा—आहवनीय अग्नि, प्रणव का तीसरा अक्षर मकार, तमोगुण, स्वर्गलोक, परमात्मा, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तीसरे हवन और शिव—ये तीसरी रेखा के नौ देवता हैं ।*

*शरीर के बत्तीस, सोलह, आठ या पांच स्थानों पर त्रिपुण्ड्र लगाया जाता है ।*

*त्रिपुण्ड्र लगाने के बत्तीस स्थान.....*

*मस्तक, ललाट, दोनों कान, दोनों नेत्र, दोनों नाक, मुख, कण्ठ, दोनों हाथ, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, हृदय, दोनों पार्श्व भाग, नाभि, दोनों अण्डकोष, दोनों उरु, दोनों गुल्फ, दोनों घुटने, दोनों पिंडली और दोनों पैर ।*

*त्रिपुण्ड्र लगाने के सोलह स्थान..........*

*मस्तक, ललाट, कण्ठ, दोनों कंधों, दोनों भुजाओं, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, हृदय, नाभि, दोनों पसलियों, तथा पृष्ठभाग में ।*

*त्रिपुण्ड्र लगाने के आठ स्थान.......*

*गुह्य स्थान, ललाट, दोनों कान, दोनों कंधे, हृदय, और नाभि ।*

*त्रिपुण्ड्र लगाने के पांच स्थान......*

*मस्तक, दोनों भुजायें, हृदय और नाभि ।*

*इन सम्पूर्ण अंगों में स्थान देवता बताये गये हैं उनका नाम लेकर त्रिपुण्ड्र धारण करना चाहिए ।*

*त्रिपुण्ड्र धारण करने का फल.......*

*इस प्रकार जो कोई भी मनुष्य भस्म का त्रिपुण्ड करता है वह छोटे-बड़े सभी पापों से मुक्त होकर परम पवित्र हो जाता है । उसे सब तीर्थों में स्नान का फल मिल जाता है ।*
*त्रिपुण्ड्र भोग और मोक्ष को देने वाला है ।*
*वह सभी रुद्र-मन्त्रों को जपने का अधिकारी होता है ।*
*वह सब भोगों को भोगता है और मृत्यु के बाद शिव-सायुज्य मुक्ति प्राप्त करता है ।*
*उसे पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता है ।*

*गौरीशंकर तिलक.......*

*कुछ शिव-भक्त शिवजी का त्रिपुण्ड लगाकर उसके बीच में माता गौरी के लिए रोली का बिन्दु लगाते हैं । इसे वे गौरीशंकर का स्वरूप मानते हैं ।*
*गौरीशंकर के उपासकों में भी कोई पहले बिन्दु लगाकर फिर त्रिपुण्ड लगाते हैं तो कुछ पहले त्रिपुण्ड लगाकर फिर बिन्दु लगाते हैं ।*
*जो केवल भगवती के उपासक हैं वे केवल लाल बिन्दु का ही तिलक लगाते हैं ।*
*शैव परम्परा में अघोरी, कापालिक, तान्त्रिक जैसे पंथ बदल जाने पर तिलक लगाने का तरीका भी बदल जाता है ।*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

मजदूर दिवस पर कुछ यूं ही

मजदूर दिवस पर कुछ यूं ही
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रात-दिन खटते रहे जो काम में।
गिन रही दुनियां उन्हें नाकाम में।

कौड़ियों के भाव बिकता श्रम रहा,
मिल रही है भुखमरी ईनाम में।

माँग कर अपनें हकों को भीख में,
डूब जाते हैं गमों की शाम में।

सामने तो कुछ नहीं कहते कभी-
भेजते संदेश लिख पैगाम में।

पीढ़ियों से सह रहे इस रोग को-
है नहीं उपचार अब आवाम में।

कर रहे मेहनत सभी जी जान से-
पर नहीं रहते कभी आराम में।

बस निराशा घेरती दम तौड़ती-
डूब जाते है सभी सब जाम में।

कोशिशों से दर्द भी मिटता नहीं-
कुछ असर होता नहीं है बाम में।

राम के ही नाम का है आसरा-
मिट रहे संकट सभी के नाम से।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

मजदूर दिवस पर

हो के मजबूर दर ब दर आया, 
मेरे हिस्से में बस सफर आया, 

आँख  में  ख्वाब थे उजालों के, 
गाँव को छोड़ जब शहर आया,

जीस्त की बे लिबास आँखों में, 
भूख का ख़ौफ फिर उतर आया,

रूह ने जब भी रोशनी माँगी, 
दूर  जुगनू  कोई नजर आया,

पाँव कुछ और हो गए जिद्दी, 
रास्ता जब भी पुरख़तर आया।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057
                    

Thursday, April 30, 2020

है सफर लम्बा चलकर जाना पड़ता है!

है सफर लम्बा चलकर जाना पड़ता है!
रस्म ए उल्फत जब सजाना पड़ता  है।

हर पहर हर डगर ढलकर दुनियां का यूँ!
दिल की हसरत बेसबब जगाना पड़ता है।

जिस कदर ढले शाम फिर सुबह आती जाये!
यूँ कुछ पल ही मगर गम भुलाना पड़ता है।

कितनी चाहत है दिल में किस कदर हम कहें!
चुपके छुपके हमसफर जताना पड़ता है।

गर प्यार हमारा हांसिल हो जाये फिर भी!
मिलकर वादे को अक्सर निभाना पड़ता है।

है सफर लम्बा चलकर जाना पड़ता है!
रस्म ए उल्फत जब सजाना पड़ता  है।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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Wednesday, April 29, 2020

आप गीत के बोल बोल दें,और लिखूँ मैं गीत।


आप गीत के बोल बोल दें,और लिखूँ मैं गीत, 
मेरे भारत में जागे फिर,गहन परस्पर प्रीत।

मुस्लिम आतंकी जन आये,लूटे पूरा देश,
त्रस्त हो गया अपना भारत,अब तक भारी क्लेश।
तोड़े मंदिर मस्जिद लाये,बैठाये दरवेश,
शाँति हो गयी भंग हमारी, बची न किंचित लेश।
अब तक इनसे पूरा भारत,दीख रहा भयभीत, 
आप गीत के बोल बोल दें,और लिखूँ मैं गीत।

गोरे बड़े सयाने आये,करने को व्यापार,
जलियाँवाला बाग न भूले,इतना अत्याचार।
अपना ही यह देश निरंतर, बनता कारागार,
बड़े छुपे रुस्तम ये निकले,छीन लिए आधार।
हुआ काल के गाल हमारा,स्वर्णिम रहा अतीत, 
आप गीत के बोल बोल दें,और लिखूँ मैं गीत।

आजाद-भगत-गाँधी को मारे,इन दोनों की चाल,
गर्वोन्नत फिर कहाँ रह गया,झुका हुआ यह भाल।
बोल तुगलकी बर्छी जैसे,लागे कठिन कराल,
कलम गीत लिख कर आवाहन,करती मेरे लाल।
इधर-उधर से हाथ बढ़ायें,टूटे उर की भीत,
आप गीत के बोल बोल दें,और लिखूँ मैं गीत।

तीस कोटि हिंदू को बंधक,क्यों रखे इस्लाम,
हमको बाँटे दो विभक्ति में, साधे अपना काम।
राम कृष्ण के हम सब वंशज,सकल हमारे धाम,
किसने यह दीवार बनाई,सोच सुबह अब शाम।
जो पहले जागेगा भाई,उसकी होगी जीत,
आप गीत के बोल बोल दें,और लिखूँ मैं गीत।

नहीं स्वार्थ के अंधे बनना,एक शर्त है भ्रात,
जिसको अपना कहना उससे,कभी न करना घात।
उर की प्रीत भरी सरिता हो,रहे सदा उमड़ात,
करे सुनिश्चित जीत देश की,बस इतनी सी बात।
खेमेश्वर कुछ गैर यहाँ पर,शेष हमारे मीत, 
आप गीत के बोल बोल दें,और लिखूँ मैं गीत।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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Tuesday, April 28, 2020

छोड़कर साथ मेरा कहां ढल दीए

आप आये अभी और फिर चल दिए!
छोड़कर  साथ  मेरा  कहां  ढल दीए।

वक़्त गुजरते गये हम बिछड़ते चले!
समझ पाये न हम किस कदर हल दिए।

क्यूं सदा हर घड़ी याद आते रहे!
ख्वाब दिलने सजाया खुशी पल दिए!

प्यार है के इसे गम कहूँ हमसफर!
जान जाते मगर आप ही छल दिए।

ठहर कर दो घड़ी मशवरा कीजिये!
इश्क़ जताये बिना दिलवर निकल दिए।

आप आये अभी और फिर चल दिए!
छोड़कर  साथ  मेरा  कहां  ढल दीए।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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Monday, April 27, 2020

वो सारी बस्ती जला रहा है ।

वो    सारी   बस्ती   जला  रहा  है ।
पर   अपना  दामन  बचा   रहा है।।

नहीं    बचेगी   किसी  की   हस्ती ।
बिसात    ऐसी    बिछा   रहा   है ।।

वो घोल कर दिल में सबके नफ़रत।
जहां   से  उल्फ़त   मिटा  रहा  है।।

वो  दोष  औरों  के  सर  पे मढ़कर।
बेदाग़   ख़ुद   को   दिखा  रहा  है।।

ये  किसको  है   रोशनी  से नफ़रत।
ये    कौन   दीये    बुझा   रहा   है।।

'खेमेश्वर '   कैसे   बचेगी    उल्फ़त ? 
मुझे   ये   ही   ग़म   सता   रहा  है !।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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माता पिता के चरण स्पर्श से होता है संतान के संपूर्ण अमंगलों नाश

माता पिता के चरण स्पर्श से होता है संतान के संपूर्ण अमंगलों नाश : पं.खेमेश्व माता-पिता और बच्चों के बीच का रिश्ता हर...