Wednesday, June 10, 2020

मानवता से जो पूर्ण हो वही मनुष्य कहलाता है

मानवता से जो पूर्ण हो, वही मनुष्य कहलाता

एक ब्राह्मण यात्रा करते-करते किसी नगर से गुजरा बड़े-बड़े महल एवं अट्टालिकाओं को देखकर ब्राह्मण भिक्षा माँगने गया किन्तु किसी ने भी उसे दो मुट्ठी अऩ्न नहीं दिया आखिर दोपहर हो गयी ब्राह्मण दुःखी होकर अपने भाग्य को कोसता हुआ जा रहा थाः “कैसा मेरा दुर्भाग्य है  इतने बड़े नगर में मुझे खाने के लिए दो मुट्ठी अन्न तक न मिला ? रोटी बना कर खाने के लिए दो मुट्ठी आटा तक न मिला ?

इतने में एक सिद्ध संत की निगाह उस पर पड़ी उन्होंने ब्राह्मण की बड़बड़ाहट सुन ली वे बड़े पहुँचे हुए संत थे उन्होंने कहाः

“ब्राह्मण  तुम मनुष्य से भिक्षा माँगो, पशु क्या जानें भिक्षा देना ?”

ब्राह्मण दंग रह गया और कहने लगाः “हे महात्मन्  आप क्या कह रहे हैं ? बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में रहने वाले मनुष्यों से ही मैंने भिक्षा माँगी है”

संतः “नहीं ब्राह्मण मनुष्य शरीर में दिखने वाले वे लोग भीतर से मनुष्य नहीं हैं अभी भी वे पिछले जन्म के हिसाब ही जी रहे हैं कोई शेर की योनी से आया है तो कोई कुत्ते   की योनी से आया है, कोई हिरण की से आया है तो कोई गाय या भैंस की योनी से आया है उन की आकृति मानव-शरीर की जरूर है किन्तु अभी तक उन में मनुष्यत्व निखरा नहीं है और जब तक मनुष्यत्व नहीं निखरता, तब तक दूसरे मनुष्य की पीड़ा का पता नहीं चलता. ‘दूसरे में भी मेरा ही दिलबर ही है’ यह ज्ञान नहीं होता तुम ने मनुष्यों से नहीं, पशुओं से भिक्षा माँगी है”

ब्राह्मण का चेहरा  दुःख रहा था ब्राह्मण का चेहरा इन्कार की खबरें दे रहा था सिद्धपुरुष तो दूरदृष्टि के धनी होते हैं उन्होंने कहाः “देख ब्राह्मण मैं तुझे यह चश्मा देता हूँ इस चश्मे को पहन कर जा और कोई भी मनुष्य दिखे, उस से भिक्षा माँग फिर देख, क्या होता है”

ब्राह्मण जहाँ पहले गया था, वहीं पुनः गया योगसिद्ध कला वाला चश्मा पहनकर गौर से देखाः ‘ओहोऽऽऽऽ…. वाकई कोई कुत्ता है कोई बिल्ली है.  तो कोई बघेरा है आकृति तो मनुष्य की है लेकिन संस्कार पशुओं के हैं मनुष्य होने पर भी मनुष्यत्व के संस्कार नहीं हैं’ घूमते-घूमते वह ब्राह्मण थोड़ा सा आगे गया तो देखा कि एक मोची जूते सिल रहा है ब्राह्मण ने उसे गौर से देखा तो उस में मनुष्यत्व का निखार पाया

ब्राह्मण ने उस के पास जाकर कहाः “भाई तेरा धंधा तो बहुत हल्का है औऱ मैं हूँ ब्राह्मण रीति रिवाज एवं कर्मकाण्ड को बड़ी चुस्ती से पालता हूँ मुझे बड़ी भूख लगी है लेकिन तेरे हाथ का नहीं खाऊँगा फिर भी मैं तुझसे माँगता हूँ क्योंकि मुझे तुझमें मनुष्यत्व दिखा है”

उस मोची की आँखों से टप-टप आँसू बरसने लगे वह बोलाः “हे प्रभु  आप भूखे हैं ? हे मेरे रब  आप भूखे हैं ? इतनी देर आप कहाँ थे ?”

यह कहकर मोची उठा एवं जूते सिलकर टका, आना-दो आना वगैरह जो इकट्ठे किये थे, उस चिल्लर ( रेज़गारी ) को लेकर हलवाई की दुकान पर पहुँचा और बोलाः “हे हलवाई  मेरे इन भूखे भगवान की सेवा कर लो ये चिल्लर यहाँ रखता हूँ जो कुछ भी सब्जी-पराँठे-पूरी आदि दे सकते हो, वह इन्हें दे दो मैं अभी जाता हूँ”

यह कहकर मोची भागा घर जाकर अपने हाथ से बनाई हुई एक जोड़ी जूती ले आया एवं चौराहे पर उसे बेचने के लिए खड़ा हो गया

उस राज्य का राजा जूतियों का बड़ा शौकीन था उस दिन भी उस ने कई तरह की जूतियाँ पहनीं किंतु किसी की बनावट उसे पसंद नहीं आयी तो किसी का नाप नहीं आया दो-पाँच बार प्रयत्न करने पर भी राजा को कोई पसंद नहीं आयी तो मंत्री से क्रुद्ध होकर बोलाः “अगर इस बार ढंग की जूती लाया तो जूती वाले को इनाम दूँगा और ठीक नहीं लाया तो मंत्री के बच्चे तेरी खबर ले लूँगा”

दैव योग से मंत्री की नज़र इस मोची के रूप में खड़े असली मानव पर पड़ गयी जिस में मानवता खिली थी, जिस की आँखों में कुछ प्रेम के भाव थे, चित्त में दया-करूणा थी,  ब्राह्मण के संग का थोड़ा रंग लगा था मंत्री ने मोची से जूती ले ली एवं राजा के पास ले गया राजा को वह जूती एकदम ‘फिट’ आ गयी, मानो वह जूती राजा के नाप की ही बनी थी राजा ने कहाः “ऐसी जूती तो मैंने पहली बार ही पहन रहा हूँ किस मोची ने बनाई है यह जूती ?”

मंत्री बोला  “हुजूर  यह मोची बाहर ही खड़ा है”

मोची को बुलाया गया उस को देखकर राजा की भी मानवता थोड़ी खिली राजा ने कहाः “जूती के तो पाँच रूपये होते हैं किन्तु यह पाँच रूपयों वाली नहीं, पाँच सौ रूपयों वाली जूती है जूती बनाने वाले को पाँच सौ और जूती के पाँच सौ, कुल एक हजार रूपये इसको दे दो”

मोची बोलाः “राजा साहिब तनिक ठहरिये यह जूती मेरी नहीं है, जिसकी है उसे मैं अभी ले आता हूँ”

मोची जाकर विनयपूर्वक ब्राह्मण को राजा के पास ले आया एवं राजा से बोलाः “राजा साहब  यह जूती इन्हीं की है”

राजा को आश्चर्य हुआ वह बोलाः “यह तो ब्राह्मण है इस की जूती कैसे ?”

राजा ने ब्राह्मण से पूछा तो ब्राह्मण ने कहा मैं तो ब्राह्मण हूँ यात्रा करने निकला हूँ”

राजाः “मोची जूती तो तुम बेच रहे थे इस ब्राह्मण ने जूती कब खरीदी और बेची ?”

मोची ने कहाः “राजन्  मैंने मन में ही संकल्प कर लिया था कि जूती की जो रकम आयेगी वह इन ब्राह्मणदेव की होगी जब रकम इन की है तो मैं इन रूपयों को कैसे ले सकता हूँ ? इसीलिए मैं इन्हें ले आया हूँ न जाने किसी जन्म में मैंने दान करने का संकल्प किया होगा और मुकर गया होऊँगा तभी तो यह मोची का चोला मिला है अब भी यदि मुकर जाऊँ तो तो न जाने मेरी कैसी दुर्गति हो ? इसीलिए राजन्  ये रूपये मेरे नहीं हुए मेरे मन में आ गया था कि इस जूती की रकम इनके लिए होगी फिर पाँच रूपये मिलते तो भी इनके होते और एक हजार मिल रहे हैं तो भी इनके ही हैं हो सकता है मेरा मन बेईमान हो जाता इसीलिए मैंने रूपयों को नहीं छुआ और असली अधिकारी को ले आया”

राजा ने आश्चर्य चकित होकर ब्राह्मण से पूछाः “ब्राह्मण मोची से तुम्हारा परिचय कैसे हुआ ?”

ब्राह्मण ने सारी आप बीती सुनाते हुए सिद्ध पुरुष के चश्मे वाली  आप के राज्य में पशुओं के दीदार तो बहुत हुए लेकिन मनुष्यत्व का विकास इस मोची में ही नज़र आया”

राजा ने कौतूहलवश कहाः “लाओ, वह चश्मा जरा हम भी देखें”

राजा ने चश्मा लगाकर देखा तो दरबारी वगैरह में उसे भी कोई सियार दिखा तो कोई हिरण, कोई बंदर दिखा तो कोई रीछ राजा दंग रह गया कि यह तो पशुओं का दरबार भरा पड़ा है  उसे हुआ कि ये सब पशु हैं तो मैं कौन हूँ ? उस ने आईना मँगवाया एवं उसमें अपना चेहरा देखा तो शेर  उस के आश्चर्य की सीमा न रही ‘ ये सारे जंगल के प्राणी और मैं जंगल का राजा शेर यहाँ भी इनका राजा बना बैठा हूँ ’ राजा ने कहाः “ब्राह्मणदेव योगी महाराज का यह चश्मा तो बड़ा गज़ब का है  वे योगी महाराज कहाँ होंगे ?”

ब्राह्मणः “वे तो कहीं चले गये ऐसे महापुरुष कभी-कभी ही और बड़ी कठिनाई से मिलते हैं”

श्रद्धावान ही ऐसे महापुरुषों से लाभ उठा पाते हैं, बाकी तो जो मनुष्य के चोले में पशु के समान हैं वे महापुरुष के निकट रहकर भी अपनी पशुता नहीं छोड़ पाते

ब्राह्मण ने आगे कहाः ‘राजन्  अब तो बिना चश्मे के भी मनुष्यत्व को परखा जा सकता है व्यक्ति के व्यवहार को देखकर ही पता चल सकता है कि वह किस योनि से आया है एक मेहनत करे और दूसरा उस पर हक जताये तो समझ लो कि वह सर्प योनि से आया है क्योंकि बिल खोदने की मेहनत तो चूहा करता है लेकिन सर्प उस को मारकर बल पर अपना अधिकार जमा बैठता है”

अब इस चश्मे के बिना भी विवेक का चश्मा काम कर सकता है और दूसरे को देखें उसकी अपेक्षा स्वयं को ही देखें कि हम सर्पयोनि से आये हैं कि शेर की योनि से आये हैं या सचमुच में हम में मनुष्यता खिली है ? यदि पशुता बाकी है तो वह भी मनुष्यता में बदल सकती है कैसे ?

तुलसीदाज जी ने कहा हैः

बिगड़ी जनम अनेक की सुधरे अब और आजु

तुलसी होई राम को रामभजि तजि कुसमाजु

कुसंस्कारों को छोड़ दें… बस अपने कुसंस्कार आप निकालेंगे तो ही निकलेंगे अपने भीतर छिपे हुए पशुत्व को आप निकालेंगे तो ही निकलेगा यह भी तब संभव होगा जब आप अपने समय की कीमत समझेंगे मनुष्यत्व आये तो एक-एक पल को सार्थक किये बिना आप चुप नहीं बैठेंगे पशु अपना समय ऐसे ही गँवाता है पशुत्व के संस्कार पड़े रहेंगे तो आपका समय बिगड़ेगा अतः पशुत्व के संस्कारों को आप निकालिये एवं मनुष्यत्व के संस्कारों को उभारिये फिर सिद्धपुरुष का चश्मा नहीं, वरन् अपने विवेक का चश्मा ही कार्य करेगा और इस विवेक के चश्मे को पाने की युक्ति मिलती है सत्संग से

मानवता से जो पूर्ण हो, वही मनुष्य कहलाता

बिन मानवता के मानव भी, पशुतुल्य रह  जाता है

*सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की शुभ मंगल कामना🌸🌼🙏🏻🌼🌸*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

बंटवारा-एक शानदार फैसला

📌 *बटवारा - एक शानदार फैसला*   

पिता -           अमर चंद
बड़ा पुत्र -       राजेश
मजला पुत्र -    सुरेश
छोटा पुत्र -      मुकेश

*राजेश -*
"पिताजी  ! पंचायत इकठ्ठी हो गई, अब बँटवारा कर दो।" 

*सरपंच -*
"जब साथ में निबाह न हो तो औलाद को अलग कर देना ही ठीक है, अब यह बताओ तुम किस बेटे के साथ रहोगे ?" 

(सरपंच ने अमरचंद जी से पूछा।)

*राजेश  -*
"अरे इसमें क्या पूछना, चार महीने पिताजी मेरे साथ रहेंगे और चार महीने मंझले के पास चार महीने छोटे के पास रहेंगे।"

*सरपंच*
" चलो तुम्हारा तो फैसला हो गया, अब करें जायदाद का बँटवारा !" 

*अमर चंद -*
(जो सिर झुकाये बैठा था, एकदम चिल्ला के बोला,) 
कैसा फैसला ? 
अब मैं करूंगा फैसला, इन तीनो  को घर से बाहर निकाल कर "
"चार महीने बारी बारी से आकर रहें मेरे पास ,और बाकी महीनों का अपना इंतजाम खुद करें ...."

*"जायदाद का मालिक मैं हूँ ये नहीं।"*

तीनो लड़कों और पंचायत का मुँह खुला का खुला रह गया, जैसे कोई नई बात हो गई हो.

👌 *इसे कहते हैं फैसला*

*फैसला औलाद को नहीं,*
*मां-बाप को करना चाहिए* 
आज कल सभी मां बाप को इसी प्रकार फैसला करना चाहिये ।
🙏 🙏🙏🙏
*सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की शुभ मंगल कामना🌸🌼🙏🏻🌼🌸*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Monday, June 8, 2020

प्रातः स्मरणीय मंत्र एवं स्तोत्र


*प्रातः स्मरणीय मंत्र एवं स्तोत्र*. 
🔸🔹🔹🔸🔸🔹🔹🔸
*ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।*
*यः स्मरेत्पुंडरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥*

*वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ ।*
*निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।*

*ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।*
*द्वंद्वातीतं गगनसदृशं,* *तत्त्वमस्यादिलक्षम् ।*
*एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधी: साक्षीभूतम् ।*
*भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरूं तं नमामि ।।*

*गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर: ।*
*गुरु: साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवै नम: ।।*

*शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं ।*
*विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।*
*लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् ।*
*वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ।।*

*सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।*
*उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥*
*परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।*
*सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥*
*वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।*
*हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥*
*एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।*
*सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥*
*एतेशां दर्शनादेव पातकं नैव तिष्ठति।*
*कर्मक्षयो भवेत्तस्य यस्य तुष्टो महेश्वराः॥*

*ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।*

*भावार्थ:-*

*ॐ (परमात्मा) भूः (प्राण स्वरूप) भुवः (दुःख नाशक) स्वः (सुख स्वरूप) तत् (उस) सवितुः (तेजस्वी) वरेण्यं (श्रेष्ठ) भर्गः (पाप नाशक) देवस्य (दिव्य) धीमहि (धारण करें) धियो (बुद्धि) यः (जो) नः (हमारी)प्रचोदयात (प्रेरित करें)।*

*अर्थात् - उस प्राण स्वरूप, दुखनाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करें।*

*प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।*
*तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।*
*पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।*
*सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।*
*नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।*
*उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।*

*या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता*
*या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।*
*या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता*
*सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ll*

*जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥*

*शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं* 
*वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।*
*हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्*
*वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥*

*शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत् में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान् बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥*

*सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके*
*शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोsस्तुते ।।*

*सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी, कल्याण करने वाली, सब के मनोरथ को पूरा करने वाली, तुम्हीं शरण ग्रहण करने योग्य हो, तीन नेत्रों वाली यानी भूत भविष्य वर्तमान को प्रत्यक्ष देखने वाली हो, तुम्ही शिव पत्नी, तुम्ही नारायण पत्नी अर्थात भगवान के सभी स्वरूपों के साथ तुम्हीं जुडी हो, आप को नमस्कार है.*

*जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।*
*दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ।।*
*अहिल्या द्रौपदी सीता तारा मंदोदरी तथा ।*
*पंचकन्या ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ।।*

*गीता गंगा च गायत्री सीता सत्या सरस्वती।*
*ब्रह्मविद्या ब्रह्मवल्ली त्रिसंध्या मुक्तगेहिनी।।*
*अर्धमात्रा चिदानन्दा भवघ्नी भयनाशिनी।*
*वेदत्रयी पराऽनन्ता तत्त्वार्थज्ञानमंजरी।।*
*इत्येतानि जपेन्नित्यं नरो निश्चलमानसः।*
*ज्ञानसिद्धिं लभेच्छीघ्रं तथान्ते परमं पदम्।।*
*गीता, गंगा, गायत्री, सीता, सत्या, सरस्वती, ब्रह्मविद्या, ब्रह्मवल्ली, त्रिसंध्या, मुक्तगेहिनी, अर्धमात्रा, चिदानन्दा, भवघ्नी, भयनाशिनी, वेदत्रयी, परा, अनन्ता और तत्त्वार्थज्ञानमंजरी (तत्त्वरूपी अर्थ के ज्ञान का भंडार) इस प्रकार (गीता के) अठारह नामों का स्थिर मन से जो मनुष्य नित्य जप करता है वह शीघ्र ज्ञानसिद्धि और अंत में परम पद को प्राप्त होता है |*

*अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमानश्च विभीषण: ।*
*कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविन: ।।*
*सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।*
*जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।*

*अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम ये सात महामानव चिरंजीवी हैं।*

*यदि इन सात महामानवों और आठवे ऋषि मार्कण्डेय का नित्य स्मरण किया जाए तो शरीर के सारे रोग समाप्त हो जाते है और 100 वर्ष की आयु प्राप्त होती है।*

*हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे॥*
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।*

*अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्।*
*दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्।*
*सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्।*
*रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥*

*अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥*

*मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् I*
*वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये II*

*मैं मन के समान शीघ्रगामी एवं वायुके समान वेगवाले, इन्द्रियोंको जीतनेवाले, बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ, वायुपुत्र, वानरसमूहके प्रमुख, श्रीरामदूत हनुमानजीकी शरण ग्रहण करता हूँ I*

*कर्पूर गौरम करुणावतारं,*
*संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।*
*सदा वसंतं हृदयार विन्दे,*
*भवं भवानी सहितं नमामि।।*


                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Sunday, June 7, 2020

बलिदान दिवस:- बंदा बैरागी (8जून)

8 जून
बेटे को मार कर कलेजा मुँह में ठूस दिया, फिर हाथी से कुचलवाया गया लेकिन उन्हें अपना धर्म परिवर्तन करना मंजूर न था, बलिदान दिवस पर अमर धर्मरक्षक "बन्दा बैरागी" जी को कोटि-कोटि नमन 🙏

बलिदान दिवस "बंदा बैरागी ----

इनकी चर्चा करते तो खतरे में पड़ जाते उनके स्वघोषित धर्मनिरपेक्षता के नकली सिद्धांत .. इनका सच दिखाते तो इतिहास काली स्याही का नहीं बल्कि स्वर्णिम रंग में होता .. इनका जिक्र करते तो समाज मे न तो लव जिहाद होता और न ही धर्मांतरण .. और ये सब न होता तो उनकी दुकानदारी न चलती .. भारत के इतिहास को विकृत करने वाले चाटुकार इतिहासकारो के किये पाप का नतीजा है कि धर्म के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले बंदा बैरागी का आज बलिदान दिवस है जिसे बहुत कम भारतीय जानते हैं ..

बन्दा बैरागी का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 को ग्राम तच्छल किला, पुंछ में श्री रामदेव के घर में हुआ। उनका बचपन का नाम लक्ष्मणदास था। युवावस्था में शिकार खेलते समय उन्होंने एक गर्भवती हिरणी पर तीर चला दिया। इससे उसके पेट से एक शिशु निकला और तड़पकर वहीं मर गया। यह देखकर उनका मन खिन्न हो गया। उन्होंने अपना नाम माधोदास रख लिया और घर छोड़कर तीर्थयात्रा पर चल दिये। अनेक साधुओं से योग साधना सीखी और फिर नान्देड़ में कुटिया बनाकर रहने लगे।

इसी दौरान गुरु गोविन्दसिंह जी माधोदास की कुटिया में आये। उनके चारों पुत्र बलिदान हो चुके थे। उन्होंने इस कठिन समय में माधोदास से वैराग्य छोड़कर देश में व्याप्त इस्लामिक आतंक से जूझने को कहा। गुरुजी ने उसे बन्दा बहादुर नाम दिया। फिर पाँच तीर, एक निशान साहिब, एक नगाड़ा और एक हुक्मनामा देकर दोनों छोटे पुत्रों को दीवार में चिनवाने वाले सरहिन्द के नवाब से बदला लेने को कहा। बन्दा हजारों सिख सैनिकों को साथ लेकर पंजाब की ओर चल दिये। उन्होंने सबसे पहले श्री गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन का सिर काटा। फिर सरहिन्द के नवाब वजीरखान का वध किया। जिन हिन्दू राजाओं ने मुगलों का साथ दिया था, बन्दा बहादुर ने उन्हें भी नहीं छोड़ा। इससे चारों ओर उनके नाम की धूम मच गयी।

उनके पराक्रम से भयभीत मुगलों ने दस लाख फौज लेकर उन पर हमला किया और विश्वासघात से 17 दिसम्बर, 1715 को उन्हें पकड़ लिया। उन्हें लोहे के एक पिंजड़े में बन्दकर, हाथी पर लादकर सड़क मार्ग से दिल्ली लाया गया। उनके साथ हजारों सिख सैनिक भी कैद किये गये थे। इनमें बन्दा के वे 740 साथी भी थे, जो प्रारम्भ से ही उनके साथ थे। युद्ध में वीरगति पाए सिखों के सिर काटकर उन्हें भाले की नोक पर टाँगकर दिल्ली लाया गया। रास्ते भर गर्म चिमटों से बन्दा बैरागी का माँस नोचा जाता रहा।

काजियों ने बन्दा और उनके साथियों को मुसलमान बनने को कहा; पर सबने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। दिल्ली में आज जहाँ हार्डिंग लाइब्रेरी है,वहाँ 7 मार्च, 1716 से प्रतिदिन सौ वीरों की हत्या की जाने लगी। एक दरबारी मुहम्मद अमीन ने पूछा - तुमने ऐसे बुरे काम क्यों किये, जिससे तुम्हारी यह दुर्दशा हो रही है ? बन्दा ने सीना फुलाकर सगर्व उत्तर दिया - मैं तो प्रजा के पीड़ितों को दण्ड देने के लिए परमपिता परमेश्वर के हाथ का शस्त्र था।

बन्दा से पूछा गया कि वे कैसी मौत मरना चाहते हैं ? बन्दा ने उत्तर दिया, मैं अब मौत से नहीं डरता; क्योंकि यह शरीर ही दुःख का मूल है। यह सुनकर सब ओर सन्नाटा छा गया। भयभीत करने के लिए उनके पाँच वर्षीय पुत्र अजय सिंह को उनकी गोद में लेटाकर बन्दा के हाथ में छुरा देकर उसको मारने को कहा गया। बन्दा ने इससे इन्कार कर दिया। इस पर जल्लाद ने उस बच्चे के दो टुकड़ेकर उसके दिल का माँस बन्दा के मुँह में ठूँस दिया; पर वे तो इन सबसे ऊपर उठ चुके थे। गरम चिमटों से माँस नोचे जाने के कारण उनके शरीर में केवल हड्डियाँ शेष थी। फिर भी आज ही के दिन अर्थात आठ जून, 1716 को उस वीर को हाथी से कुचलवा दिया गया। इस प्रकार बन्दा वीर बैरागी अपने नाम के तीनों शब्दों को सार्थक कर बलिपथ पर चल दिये। आज बलिदान के उस महामूर्ति को उनके बलिदान दिवस पर हम बारम्बार नमन करते हुए उनके गौरवगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेते हैं !

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

दूसरों को सही-गलत साबित करने में जल्दबाजी न करें | 2 कहानियाँ*

*दूसरों को सही-गलत साबित करने में जल्दबाजी न करें | 2 कहानियाँ*

*पहली कहानी :*👉🏻

*ट्रेन में एक पिता-पुत्र सफर कर रहे थे.*

*24 वर्षीय पुत्र खिड़की से बाहर देख रहा था, अचानक वो चिल्लाया – पापा देखो पेड़ पीछे की ओर भाग रहे हैं !*
*पिता कुछ बोला नहीं, बस सुनकर मुस्कुरा दिया. ये देखकर बगल में बैठे एक युवा दम्पति को अजीब लगा और उस लड़के के बचकाने व्यवहार पर दया भी आई.*

*तब तक वो लड़का फिर से बोला – पापा देखो बादल हमारे साथ दौड़ रहे हैं !*

*युवा दम्पति से रहा नहीं गया और वो उसके पिता से बोल पड़े – आप अपने लड़के को किसी अच्छे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते ?*

*लड़के का पिता मुस्कुराया और बोला – हमने दिखाया था और हम अभी सीधे हॉस्पिटल से ही आ रहे हैं. मेरा लड़का जन्म से अंधा था और आज वो यह दुनिया पहली बार देख रहा है.*

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*दूसरी कहानी :*

*एक प्रोफेसर अपनी क्लास में कहानी सुना रहे थे, जोकि इस प्रकार है –*

*एक बार समुद्र के बीच में एक बड़े जहाज पर बड़ी दुर्घटना हो गयी. कप्तान ने शिप खाली करने का आदेश दिया. जहाज पर एक युवा दम्पति थे. जब लाइफबोट पर चढ़ने का उनका नम्बर आया तो देखा गया नाव पर केवल एक व्यक्ति के लिए ही जगह है. इस मौके पर आदमी ने औरत को छोड़ दिया और नाव पर कूद गया.*

*डूबते हुए जहाज पर खड़ी औरत ने जाते हुए अपने पति से चिल्लाकर एक वाक्य कहा.*
*अब प्रोफेसर ने रुककर स्टूडेंट्स से पूछा – तुम लोगों को क्या लगता है, उस स्त्री ने अपने पति से क्या कहा होगा ?*

*ज्यादातर विद्यार्थी फ़ौरन चिल्लाये – स्त्री ने कहा – मैं तुमसे नफरत करती हूँ ! I hate you !*

*प्रोफेसर ने देखा एक स्टूडेंट एकदम शांत बैठा हुआ था, प्रोफेसर ने उससे पूछा कि तुम बताओ तुम्हे क्या लगता है ?*

*वो लड़का बोला – मुझे लगता है, औरत ने कहा होगा – हमारे बच्चे का ख्याल रखना !*

*प्रोफेसर को आश्चर्य हुआ, उन्होंने लडके से पूछा – क्या तुमने यह कहानी पहले सुन रखी थी ?*

*लड़का बोला- जी नहीं, लेकिन यही बात बीमारी से मरती हुई मेरी माँ ने मेरे पिता से कही थी.*

*प्रोफेसर ने दुखपूर्वक कहा – तुम्हारा उत्तर सही है !*

*प्रोफेसर ने कहानी आगे बढ़ाई – जहाज डूब गया, स्त्री मर गयी, पति किनारे पहुंचा और उसने अपना बाकि जीवन अपनी एकमात्र पुत्री के समुचित लालन-पालन में लगा दिया. कई सालों बाद जब वो व्यक्ति मर गया तो एक दिन सफाई करते हुए उसकी लड़की को अपने पिता की एक डायरी मिली.*

*डायरी से उसे पता चला कि जिस समय उसके माता-पिता उस जहाज पर सफर कर रहे थे तो उसकी माँ एक जानलेवा बीमारी से ग्रस्त थी और उनके जीवन के कुछ दिन ही शेष थे.*

*ऐसे कठिन मौके पर उसके पिता ने एक कड़ा निर्णय लिया और लाइफबोट पर कूद गया. उसके पिता ने डायरी में लिखा था – तुम्हारे बिना मेरे जीवन को कोई मतलब नहीं, मैं तो तुम्हारे साथ ही समंदर में समा जाना चाहता था. लेकिन अपनी संतान का ख्याल आने पर मुझे तुमको अकेले छोड़कर जाना पड़ा.*

*जब प्रोफेसर ने कहानी समाप्त की तो, पूरी क्लास में शांति थी.*

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*इस संसार में कईयों सही गलत बातें हैं लेकिन उसके अतिरिक्त भी कई जटिलतायें हैं, जिन्हें समझना आसान नहीं. इसीलिए ऊपरी सतह से देखकर बिना गहराई को जाने-समझे हर परिस्थिति का एकदम सही आकलन नहीं किया जा सकता.*

*– कलह होने पर जो पहले माफ़ी मांगे, जरुरी नहीं उसी की गलती हो. हो सकता है वो रिश्ते को बनाये रखना ज्यादा महत्वपूर्ण समझता हो.*

*– दोस्तों के साथ खाते-पीते, पार्टी करते समय जो दोस्त बिल पे करता है, जरुरी नहीं उसकी जेब नोटों से ठसाठस भरी हो. हो सकता है उसके लिए दोस्ती के सामने पैसों की अहमियत कम हो.*

*– जो लोग आपकी मदद करते हैं, जरुरी नहीं वो आपके एहसानों के बोझ तले दबे हों. वो आपकी मदद करते हैं क्योंकि उनके दिलों में दयालुता और करुणा का निवास है.*

*आजकल जीवन कठिन इसीलिए हो गया है क्योंकि हमने लोगो को समझना कम कर दिया और फौरी तौर पर judge करना शुरू कर दिया है. थोड़ी सी समझ और थोड़ी सी मानवता ही आपको सही रास्ता दिखा सकती है. जीवन में निर्णय लेने के कई ऐसे पल आयेंगे, सो अगली बार किसी पर भी अपने पूर्वाग्रह का ठप्पा लगाने से पहले विचार अवश्य करें.*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Saturday, June 6, 2020

करार करके मुझे जिसने बेकरार किया है गीत


करार करके मुझे जिसने बेकरार किया है
हाँ उसी का मैंने अब तक इन्तजार किया है
करार करके मुझे जिसने बेकरार किया है

पिलायी मुझको आँखों से मैं शराबी बन गया
दिखायी मुझको वो अदाएं मैं दीवाना बन गया
हजार इम्तहां ले जिसने इन्तख़ाब किया है
हाँ उसी का मैंने अब तक इन्तजार किया है
करार करके मुझे जिसने बेकरार किया है

न जाने कैसा मौहब्बत का ग़ुल खिलता रहा
तेरी बातों ही में मुझको सकूं मिलता रहा
बिठाकर सामने, ख़ुद को बेनकाब किया है
हाँ उसी का मैंने अब तक इन्तजार किया है
करार करके मुझे जिसने बेकरार किया है

गरम गरम तेरी सांसें मैं लबों को चूमता
नरम नरम तेरी बाहें मैं बदन को चूमता
बैचेन इतना मुझे जिसने सारी रात किया है
हाँ उसी का मैंने अब तक इन्तजार किया है
करार करके मुझे जिसने बेकरार किया है

मैं ढूंढता हूँ उसे अब भी वो नज़र नहीं आती
पता मैं किससे करूं उसका कोई ख़बर नहीं आती
बीमार करके मुझे जिसने लाइलाज किया है 
हाँ उसी का मैंने अब तक इन्तजार किया है
करार करके मुझे जिसने बेकरार किया है

             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

वर्षा,,,,

तप्त धरा की देह पर,पढनें लगी फुहार ।
आनन्दित हो पी रही,जैसे बिरही नार ।।(1)

प्रथम वृष्टि में जब उठी,सोंधी सोंधी गन्ध ।
लगता कोई कामिनी,तोड़ दिए सब बन्ध ।।(2)

कोयल मैना काक पिक,लबा तीतरा मोर ।
खंजनि हारिल टिटहरी,करे महूका शोर ।।(3)

चींटा चींटी झींगुरी,टिड्डी जुगनू चंग ।
नहा रहे बरसात में,उड़ उड़ कीट पतंग ।।(4)

मीन खुशी से झूमतीं,दादुर भरें उछाल ।
मगरमच्छ की प्रार्थना,शीघ्र भरे यह ताल ।।(5)

पहली ही बरसात में,घर सारा चिचुआइ ।
साजन घर में हैं नहीं,कहूँ कौन से जाइ ।।(6)

कहुँ कहुँ बरषे मेह अरु,कहुँ कहुँ बरषे नैन ।
सोच रहा ब्याकुल जिया,कहाँ मिलेगा चैन ।।(7)

             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...