Monday, May 25, 2020

स्त्रियों को क्यों नहीं फोड़ना चाहिए नारियल ?

*स्त्रियों को क्यों नहीं फोड़ना चाहिए नारियल  ?*

*स्त्रियों को पूजा से संबधित कार्यो में कभी भी नारियल नहीं फोड़ना चाहिए. आपने देखा होगा की अधिकत्तर शुभ कार्यो एवं धार्मिक संबंधित कार्यो में नारियल का प्रयोग किया जाता है. बिना नारियल के पूजा को अधूरा माना जाता है. नारियल से शारीरिक दुर्बलता भी दूर होती है।*

*नारियल को श्रीफल के नाम से भी जाना जाता है भगवान विष्णु जब पृथ्वी में प्रकट हुए तब स्वर्ग से वे अपने साथ तीन चीजे भी लाये. जिनमे पहली चीज़ थी माता लक्ष्मी, दूसरी चीज वे अपने साथ कामधेनु गाय लाये थे तथा तीसरी व आखरी चीज़ थी नारियल का वृक्ष।*

*क्योकि यह भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी का फल है यही कारण है की इसे श्रीफल के नाम से जाना जाता है. इसमें त्रिदेवो ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश का वास होता है।*

*महादेव शिव को श्रीफल अर्थात नारियल अत्यन्त प्रिय है तथा श्रीफल में स्थित तीन नेत्र भगवान शिव के त्रिनेत्रों को प्रदर्शित करते है. देवी देवताओ को श्री फल चढ़ाने से धन संबंधित समस्याओं का समाधान होता है।*

*हमारे हिन्दू सनातन धर्म के हर पूजा में श्रीफल अर्थात नारियल का महत्वपूर्ण योगदान है, चाहे वह धर्म से संबंधित वैदिक कार्य हो या देविक कार्य कोई भी कार्य नारियल के बलिदान के बिना अधूरी मानी जाती है।*

*परन्तु यह भी एक तथ्य है की स्त्रियों के द्वारा नारियल को नहीं फोड़ा जा सकता क्योकि श्रीफल अर्थात नारियल एक बीज फल है जो उत्पादन या प्रजनन का कारक है. श्रीफल प्रजनन क्षमता से जोड़ा गया है. स्त्रियाँ बीज रूप में ही शिशु को जन्म देती है यही कारण है की स्त्रियों को बीज रूपी नारियल को नहीं फोड़ना चाहिए।*

*ऐसा करना शास्त्रों में अशुभ माना गया है . देवी देवताओ की पूजा साधना आदि के बाद केवल पुरुषों द्वारा ही नारियल को फोड़ा जा सकता है।*

*शनि की शांति  हेतु भी नारियल के जल से महादेव शिव का रुद्राभिषेक करने का शास्त्रीय प्रावधान है. हमारे सनातन धर्म के अनुसार श्रीफल शुभ, समृद्धि, शांति तथा उन्नति का सूचक माना जाता है. किसी व्यक्ति को सम्मान देने के लिए भी शाल के श्रीफल को लपेट कर दिया जाता है।*

*हमारे हिन्दू समाज में यह परम्परा युगों से अब तक लगातार चली आ रही है की किसी भी शुभ कार्य अथवा रीती रिवाजो में श्री फल वितरण किया जाता है. जब विवाह सुनिश्चित हो जाए अथवा तिलक लगाने का कार्य हो तो भी श्रीफल भेट किया जाता है।* 

*कन्या के विदाई के समय उसके पिता द्वार अपनी पुत्री को धन के साथ श्रीफल दिया जाता है. यहाँ तक की अंतिम संस्कार के कार्यो में भी चिता के साथ नारियल जलाए जाते है. धार्मिक अनुष्ठान में कर्मकांडो में सूखे नारियल के साथ होम किया जाता है।*

*श्री फल कैलोरी से भरपूर होता है, तथा इसकी तासीर ठंडी होती है. श्रीफल में अनेक पोषक तत्व विध्यमान होते है. श्रीफल के वृक्ष के तनो से जो रस निकलता ही उसे नीरा कहा जाता है वह काफी लिज्जदार पेय माना जाता है।*

*शुक्रवार को महालक्ष्मी की पूजा में मंदिर में नारियल रखे तथा रात्रि के समय इस नारिया को अपने तिजोरी में डाल ले. अगली शुभ इस नारियल को निकालकर श्री गणेश के मंदिर में अर्पित कर दे. आप की धन से संबंधित सभी समस्याओं का समाधान होगा तथा माता लक्ष्मी की कृपा आप पर होगी।*

*एकाक्षी नारियल के संबंध में कहा जाता है की यह बहुत ही दुर्लभ नारियल होता है अधिकत्तर जटाओं वाले नारियल में दो या तीन छिद्र दिखाई देते है परन्तु एकाक्षी नारियल में केवल एक ही छिद्र होता है।* 

*इस नारियल के बारे में बतलाया गया है की यह बहुत ही चमत्कारी होता है. इसको घर में रखने से महालक्ष्मी की प्राप्ति होती है तथा मनुष्य को कभी भी धन से संबंधित समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता।*

*नारियल बाहर से सख्त होता है परन्तु अंदर से यह नरम होता है. अतः हमें भी नारियल से सिख लेनी चाहिए तथा इसी की तरह बाहर से कठोर होते हुए भी अंदर से नरम रहना चाहिए।*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Sunday, May 24, 2020

पत्नी वामांगी क्यों कहलाती है?

 
*पत्नी वामांगी क्यों कहलाती है?*
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शास्त्रों में पत्नी को वामंगी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है बाएं अंग की अधिकारी। इसलिए पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है।

इसका कारण यह है कि भगवान शिव के बाएं अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है जिसका प्रतीक है शिव का अर्धनारीश्वर शरीर। यही कारण है कि हस्तरेखा विज्ञान की कुछ पुस्तकों में पुरुष के दाएं हाथ से पुरुष की और बाएं हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गयी है।

शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्री पुरुष की वामांगी होती है इसलिए सोते समय और सभा में, सिंदूरदान, द्विरागमन, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री पति के बायीं ओर रहना चाहिए। इससे शुभ फल की प्राप्ति होती।

वामांगी होने के बावजूद भी कुछ कामों में स्त्री को दायीं ओर रहने के बात शास्त्र कहता है। शास्त्रों में बताया गया है कि कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं ओर बैठना चाहिए।

पत्नी के पति के दाएं या बाएं बैठने संबंधी इस मान्यता के पीछे तर्क यह है कि जो कर्म संसारिक होते हैं उसमें पत्नी पति के बायीं ओर बैठती है। क्योंकि यह कर्म स्त्री प्रधान कर्म माने जाते हैं।

यज्ञ, कन्यादान, विवाह यह सभी काम पारलौकिक माने जाते हैं और इन्हें पुरुष प्रधान माना गया है। इसलिए इन कर्मों में पत्नी के दायीं ओर बैठने के नियम हैं।

*क्या आप जानते हैं  ????*

सनातन धर्म में पत्नी को पति की वामांगी कहा गया है, यानी कि पति के शरीर का बांया हिस्सा, इसके अलावा पत्नी को पति की अर्द्धांगिनी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है पत्नी, पति के शरीर का आधा अंग होती है, दोनों शब्दों का सार एक ही है, जिसके अनुसार पत्नी के बिना पति अधूरा है।

पत्नी ही पति के जीवन को पूरा करती है, उसे खुशहाली प्रदान करती है, उसके परिवार का ख्याल रखती है, और उसे वह सभी सुख प्रदान करती है जिसके वह योग्य है, पति-पत्नी का रिश्ता दुनिया भर में बेहद महत्वपूर्ण बताया गया है, चाहे सोसाइटी कैसी भी हो, लोग कितने ही मॉर्डर्न क्यों ना हो जायें, लेकिन पति-पत्नी के रिश्ते का रूप वही रहता है, प्यार और आपसी समझ से बना हुआ।

हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत में भी पति-पत्नी के महत्वपूर्ण रिश्ते के बारे में काफी कुछ कहा गया है, भीष्म पितामह ने कहा था कि पत्नी को सदैव प्रसन्न रखना चाहिये, क्योंकि, उसी से वंश की वृद्धि होती है, वह घर की लक्ष्मी है और यदि लक्ष्मी प्रसन्न होगी तभी घर में खुशियां आयेगी, इसके अलावा भी अनेक धार्मिक ग्रंथों में पत्नी के गुणों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है। 

आज हम आपको गरूड पुराण, जिसे लोक प्रचलित भाषा में गृहस्थों के कल्याण की पुराण भी कहा गया है, उसमें उल्लिखित पत्नी के कुछ गुणों की संक्षिप्त व्याख्या करेंगे, गरुण पुराण में पत्नी के जिन गुणों के बारे में बताया गया है, उसके अनुसार जिस व्यक्ति की पत्नी में ये गुण हों, उसे स्वयं को भाग्यशाली समझना चाहिये, कहते हैं पत्नी के सुख के मामले में देवराज इंद्र अति भाग्यशाली थे, इसलिये गरुण पुराण के तथ्य यही कहते हैं।

सा भार्या या गृहे दक्षा सा भार्या या प्रियंवदा। 
सा भार्या या पतिप्राणा सा भार्या या पतिव्रता।।

गरुण पुराण में पत्नी के गुणों को समझने वाला एक श्लोक मिलता है, यानी जो पत्नी गृहकार्य में दक्ष है, जो प्रियवादिनी है, जिसके पति ही प्राण हैं और जो पतिपरायणा है, वास्तव में वही पत्नी है, गृह कार्य में दक्ष से तात्पर्य है वह पत्नी जो घर के काम काज संभालने वाली हो, घर के सदस्यों का आदर-सम्मान करती हो, बड़े से लेकर छोटों का भी ख्याल रखती हो। 

जो पत्नी घर के सभी कार्य जैसे- भोजन बनाना, साफ-सफाई करना, घर को सजाना, कपड़े-बर्तन आदि साफ करना, यह कार्य करती हो वह एक गुणी पत्नी कहलाती है, इसके अलावा बच्चों की जिम्मेदारी ठीक से निभाना, घर आये अतिथियों का मान-सम्मान करना, कम संसाधनों में भी गृहस्थी को अच्छे से चलाने वाली पत्नी गरुण पुराण के अनुसार गुणी कहलाती है, ऐसी पत्नी हमेशा ही अपने पति की प्रिय होती है।

प्रियवादिनी से तात्पर्य है मीठा बोलने वाली पत्नी, आज के जमाने में जहां स्वतंत्र स्वभाव और तेज-तरार बोलने वाली पत्नियां भी है, जो नहीं जानती कि किस समय किस से कैसे बात करनी चाहियें, इसलिए गरुण पुराण में दिए गए निर्देशों के अनुसार अपने पति से सदैव संयमित भाषा में बात करने वाली, धीरे-धीरे व प्रेमपूर्वक बोलने वाली पत्नी ही गुणी पत्नी होती है। 

पत्नी द्वारा इस प्रकार से बात करने पर पति भी उसकी बात को ध्यान से सुनता है, व उसके इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करता है, परंतु केवल पति ही नहीं, घर के अन्य सभी सदस्यों या फिर परिवार से जुड़े सभी लोगों से भी संयम से बात करने वाली स्त्री एक गुणी पत्नी कहलाती है, ऐसी स्त्री जिस घर में हो वहां कलह और दुर्भाग्य कभी नहीं आता।

पतिपरायणा यानी पति की हर बात मानने वाली पत्नी भी गरुण पुराण के अनुसार एक गुणी पत्नी होती है, जो पत्नी अपने पति को ही सब कुछ मानती हो, उसे देवता के समान मानती हो तथा कभी भी अपने पति के बारे में बुरा ना सोचती हो वह पत्नी गुणी है, विवाह के बाद एक स्त्री ना केवल एक पुरुष की पत्नी बनकर नये घर में प्रवेश करती है, वरन् वह उस नये घर की बहु भी कहलाती है, उस घर के लोगों और संस्कारों से उसका एक गहरा रिश्ता बन जाता है।

इसलिए शादी के बाद नए लोगों से जुड़े रीति-रिवाज को स्वीकारना ही स्त्री की जिम्मेदारी है, इसके अलावा एक पत्नी को एक विशेष प्रकार के धर्म का भी पालन करना होता है, विवाह के पश्चात उसका सबसे पहला धर्म होता है कि वह अपने पति व परिवार के हित में सोचे, व ऐसा कोई काम न करे जिससे पति या परिवार का अहित हो।

गरुण पुराण के अनुसार जो पत्नी प्रतिदिन स्नान कर पति के लिए सजती-संवरती है, कम बोलती है, तथा सभी मंगल चिह्नों से युक्त है, जो निरंतर अपने धर्म का पालन करती है तथा अपने पति का ही हित सोचती है, उसे ही सच्चे अर्थों में पत्नी मानना चाहियें, जिसकी पत्नी में यह सभी गुण हों, उसे स्वयं को देवराज इंद्र ही समझना चाहियें।

जय महादेव!
जय श्री राम!

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                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...