Wednesday, February 10, 2021

मौनी अमावस्या: इस दिन दान का विशेष महत्व, पापों से मिलेगी मुक्ति

मौनी अमावस्या का शुभ दिन इस बार 11 फरवरी को आ रहा है। मान्ताओं के अनुसार, इस शुभ दिन पर द्वापर युग आरंभ हुआ था। माना जाता है कि इस दिन मुंह से गलत व अपमानजनक शब्द नहीं निकलने चाहिए। इसलिए मौनी अमावस्या के दिन मौन धारण करने यानी चुप रहने और व्रत रखने का विशेष महत्व है। इसके साथ कुछ विशेष चीजों का दान करने से सुख, समृद्धि मिलने के साथ पापों से मुक्ति मिलती है। 


मौन व्रत के साथ रखें उपवास
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मौनी अमावस्या के शुभ दिन पर मौन व्रत के साथ ही उपवास रखना भी शुभ फलदायी होता है। इससे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। 

गंगा स्नान का विशेष महत्व 
मान्यता है कि इस शुभ दिन पर गंगा के पवित्र जल में सभी देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिए गंगा नदी में स्नान करने से दैहिक (शारीरिक), भौतिक (अनजाने में किए गए पाप), दैविक (ग्रहों, गोचरों का दुर्योग) तीनों तरह के पापों से छुटकारा मिलता है। 

सूर्य देव की करें पूजा 
इस शुभ दिन पर सुबह नहाकर सफेद कपड़े पहने। फिर जल के लोटे में थोड़े से काले तिल डालकर सूर्य देव के मंत्र का जाप करते हुए उन्हें जल अर्पित करें। 

भगवान विष्णु की करें पूजा 
इस दिन पर श्रीहरि के साथ पीपल के पेड़ की भी पूजा करने का विशेष महत्व है। मौनी अमावस्या के दिन भगवान विष्णु को तिल और दीपक चढ़ाने से पापों से मुक्ति मिलती है।  

पितृदोष से मिलेगी मुक्ति
इस दिन पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष से छुटकारा मिलता है। साथ ही इन दिन किए हुए दान का सौ गुना से भी अधिक फल मिलता है। 

देवी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए करें यह दान 
 झाड़ू धन की देवी लक्ष्मी की प्रिय चीजों में से एक है। ऐसे में मौनी अमावस्या के दिन झाड़ू का दान जरूर करें। साथ ही कनकधारा स्त्रोत का पाठ करें। इससे आप पर और आपके घर-परिवार पर देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी। 

गरीबों की करें मदद 
गरीबों व जरूरतमंदों की मदद करने व भोजन खिलाने से पुण्य मिलता है। ऐसे में जीवन की परेशानियां दूर होकर खुशियों का आगमन होता है। 

इन चीजों का करें दान
मौनी अमावस्या के दिन तिल, तेल, कपड़े, कंबल, जूत, तेल, गुड़, अन्न, आंवला आदि चीजों का दान करना चाहिए। इसके अलावा जिन लोगों की कुंडली मे चंद्रमा कमजोर हो उन्हें दूध से बनी चीजें, मिश्री और बताशों का दान करने से लाभ मिलता है। इसके साथ ही गाय का दान सबसे उत्तम माना जाता है। ऐसे में अगर हो सके तो गो-दान जरूर करें। 

सुख-शांति व खुशहाली के लिए
घर में खुशहाली बरकरार रखने के लिए इन दिन आटे में तिल डालकर तैयार रोटी गाय को खिलाएं। इससे घर में सुख-शांति व खुशहाली का वास होगा। साथ ही रिश्तों में मजबूती आएगी। 

                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
        धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
    श्रीराम कथा, श्रीमद्भागवत ,शिव कथा
        जाप-पाठ, वैदिक यज्ञ अनुष्ठान
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Sunday, January 31, 2021

लव और कुश की इतिहास

लव और कुश का इतिहास.............
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भरत के दो पुत्र थे- तार्क्ष और पुष्कर। लक्ष्मण के पुत्र- चित्रांगद और चन्द्रकेतु और शत्रुघ्न के पुत्र सुबाहु और शूरसेन थे। मथुरा का नाम पहले शूरसेन था। लव और कुश राम तथा सीता के जुड़वां बेटे थे। जब राम ने वानप्रस्थ लेने का निश्चय कर भरत का राज्याभिषेक करना चाहा तो भरत नहीं माने। अत: दक्षिण कोसल प्रदेश (छत्तीसगढ़) में कुश और उत्तर कोसल में लव का अभिषेक किया गया।
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राम के काल में भी कोशल राज्य उत्तर कोशल और दक्षिण कोसल में विभाजित था। कालिदास के रघुवंश अनुसार राम ने अपने पुत्र लव को शरावती का और कुश को कुशावती का राज्य दिया था। शरावती को श्रावस्ती मानें तो निश्चय ही लव का राज्य उत्तर भारत में था और कुश का राज्य दक्षिण कोसल में। कुश की राजधानी कुशावती आज के बिलासपुर जिले में थी। कोसला को राम की माता कौशल्या की जन्मभूमि माना जाता है। रघुवंश के अनुसार कुश को अयोध्या जाने के लिए विंध्याचल को पार करना पड़ता था इससे भी सिद्ध होता है कि उनका राज्य दक्षिण कोसल में ही था।
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राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की जिनमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला।
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ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार लव ने लवपुरी नगर की स्थापना की थी, जो वर्तमान में पाकिस्तान स्थित शहर लाहौर है। यहां के एक किले में लव का एक मंदिर भी बना हुआ है। लवपुरी को बाद में लौहपुरी कहा जाने लगा। दक्षिण-पूर्व एशियाई देश लाओस, थाई नगर लोबपुरी, दोनों ही उनके नाम पर रखे गए स्थान हैं।
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राम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश आगे बढ़ा तो कुश से अतिथि और अतिथि से, निषधन से, नभ से, पुण्डरीक से, क्षेमन्धवा से, देवानीक से, अहीनक से, रुरु से, पारियात्र से, दल से, छल से, उक्थ से, वज्रनाभ से, गण से, व्युषिताश्व से, विश्वसह से, हिरण्यनाभ से, पुष्य से, ध्रुवसंधि से, सुदर्शन से, अग्रिवर्ण से, पद्मवर्ण से, शीघ्र से, मरु से, प्रयुश्रुत से, उदावसु से, नंदिवर्धन से, सकेतु से, देवरात से, बृहदुक्थ से, महावीर्य से, सुधृति से, धृष्टकेतु से, हर्यव से, मरु से, प्रतीन्धक से, कुतिरथ से, देवमीढ़ से, विबुध से, महाधृति से, कीर्तिरात से, महारोमा से, स्वर्णरोमा से और ह्रस्वरोमा से सीरध्वज का जन्म हुआ।
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कुश वंश के राजा सीरध्वज को सीता नाम की एक पुत्री हुई। सूर्यवंश इसके आगे भी बढ़ा जिसमें कृति नामक राजा का पुत्र जनक हुआ जिसने योग मार्ग का रास्ता अपनाया था। कुश वंश से ही कुशवाह, मौर्य, सैनी, शाक्य संप्रदाय की स्थापना मानी जाती है।
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एक शोधानुसार लव और कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए, जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे। यह इसकी गणना की जाए तो लव और कुश महाभारतकाल के 2500 वर्ष पूर्व से 3000 वर्ष पूर्व हुए थे। इसके अलावा शल्य के बाद बहत्क्षय, ऊरुक्षय, बत्सद्रोह, प्रतिव्योम, दिवाकर, सहदेव, ध्रुवाश्च, भानुरथ, प्रतीताश्व, सुप्रतीप, मरुदेव, सुनक्षत्र, किन्नराश्रव, अन्तरिक्ष, सुषेण, सुमित्र, बृहद्रज, धर्म, कृतज्जय, व्रात, रणज्जय, संजय, शाक्य, शुद्धोधन, सिद्धार्थ, राहुल, प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्र हुए।
                     आपका अपना
             "पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
        धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
    श्रीराम कथा, श्रीमद्भागवत ,शिव कथा
        जाप-पाठ, वैदिक यज्ञ अनुष्ठान
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

राक्षसों की उत्पत्ति कैसे हुई.............

राक्षसों की उत्पत्ति कैसे हुई.............
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वेद, पुराण आदि धर्मशास्त्रों में प्राचीनकाल की कई मानव जातियों का उल्लेख मिलता है- देवता, असुर, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नाग आदि। देवताओं की उत्पत्ति अदिति से, असुरों की दिति से, दानवों की दनु, कद्रू से नाग की मानी गई है।
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ये तीनों ही कश्यप ऋषि की पत्नियां थीं। जहां तक राक्षस जाति का सवाल है तो प्रारंभिक काल में यक्ष और रक्ष ये दो ही तरह की मानव जातियां थीं।
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राक्षस लोग पहले रक्षा करने के लिए नियुक्त हुए थे, लेकिन बाद में इनकी प्रवृत्तियां बदलने के कारण ये अपने कर्मों के कारण बदनाम होते गए और आज के संदर्भ में इन्हें असुरों और दानवों जैसा ही माना जाता है।
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पुराणों अनुसार कश्यप की सुरसा नामक रानी से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए, लेकिन एक कथा अनुसार प्रजापिता ब्रह्मा ने समुद्रगत जल और प्राणियों की रक्षा के लिए अनेक प्रकार के प्राणियों को उत्पन्न किया। उनमें से कुछ प्राणियों ने रक्षा की जिम्मेदारी संभाली तो वे राक्षस कहलाए और जिन्होंने यक्षण (पूजन) करना स्वीकार किया वे यक्ष कहलाए। जल की रक्षा करने के महत्वपूर्ण कार्य को संभालने के लिए ये जाति पवित्र मानी जाती थी।जल की रक्षा करने के महत्वपूर्ण कार्य को संभालने के लिए ये जाति पवित्र मानी जाती थी।
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राक्षसों का प्रतिनिधित्व दोनों लोगों को सौंपा गया- 'हेति' और 'प्रहेति'। ये दोनों भाई थे। ये दोनों भी दैत्यों के प्रतिनिधि मधु और कैटभ के समान ही बलशाली और पराक्रमी थे। प्रहेति धर्मात्मा था तो हेति को राजपाट और राजनीति में ज्यादा रुचि थी।
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परमपिता ब्रह्मा जब सृष्टि की रचना कर रहे थे तो उस श्रम के कारण उन्हें बड़ा क्रोध आया और बहुत भूख लगी। उनके क्रोध से हेति और भूख से प्रहेति नामक राक्षसों ने जन्म लिया। यहीं से राक्षस कुल की शुरुआत हुई।
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प्रहेति ब्रह्मदेव की प्रेरणा से तपस्या में लीन हो गया। हेति ने यमराज की बहन भया से विवाह किया। हेति और भया का पुत्र विद्युत्केश हुआ जिसका विवाह संध्या की पुत्री सालकण्टका से हुआ। माना जाता है कि 'सालकण्टका' व्यभिचारिणी थी। इस कारण जब उसका पुत्र जन्मा तो उसे लावारिस छोड़ दिया गया। विद्युत्केश ने भी उस पुत्र की यह जानकर कोई परवाह नहीं की कि यह न मालूम किसका पुत्र है। बस यहीं से राक्षस जाति में बदलाव आया...।
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पुराणों अनुसार भगवान शिव और मां पार्वती की उस अनाथ बालक पर नजर पड़ी और उन्होंने उसको सुरक्षा प्रदान ‍की। उस अबोध बालक को त्याग देने के कारण मां पार्वती ने शाप दिया कि अब से राक्षस जाति की स्त्रियां जल्द गर्भ धारण करेंगी और उनसे उत्पन्न बालक तत्काल बढ़कर माता के समान अवस्था धारण करेगा। इस शाप से राक्षसों में शारीरिक आकर्षण कम, विकरालता ज्यादा रही।
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शिव और पार्वती ने उस बालक का नाम 'सुकेश' रखा। शिव के वरदान के कारण वह निर्भीक था। वह निर्भीक होकर कहीं भी विचरण कर सकता था। शिव ने उसे एक विमान भी दिया था।विद्युत्केश का पुत्र सुकेश हुआ जिसे दोनों ने त्याग दिया। तब भगवान शिव और माता पार्वती ने उसे गोद ले लिया और वो शिव-पुत्र कहलाया। उसका विवाह ग्रामणी नामक गन्धर्व की कन्या देववती से हुआ।
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देववती से सुकेश के तीन पुत्र हुए- 1.माल्यवान, 2. सुमाली और 3. माली। इन तीनों के कारण राक्षस जाति को विस्तार और प्रसिद्धि प्राप्त हुई। इन तीनों भाइयों ने शक्ति और ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिए ब्रह्माजी की घोर तपस्या की। ब्रह्माजी ने इन्हें शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने और तीनों भाइयों में एकता और प्रेम बना रहने का वरदान दिया। वरदान के प्रभाव से ये तीनों भाई अहंकारी हो गए।
तीनों भाइयों ने मिलकर विश्वकर्मा से त्रिकुट पर्वत के निकट समुद्र तट पर लंका का निर्माण कराया और उसे अपने शासन का केंद्र बनाया। इस तरह उन्होंने राक्षसों को एकजुट कर राक्षसों का आधिपत्य स्थापित किया और उसे राक्षस जाति का केंद्र भी बनाया।
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लंका को उन्होंने धन और वैभव की धरती बनाया और यहां तीनों राक्षसों ने राक्षस संस्कृति के लिए विश्व विजय की कामना की। उनका अहंकार बढ़ता गया और उन्होंने यक्षों और देवताओं पर अत्याचार करना शुरू किया जिससे संपूर्ण धरती पर आतंक का राज कायम हो गया। इन तीनों ने ही विश्वकर्मा से लंका की रचना करवाई और उसके राजा कहलाये।
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माल्यवान ने सुंदरी नामक स्त्री से विवाह किया जिससे उसके वज्रमुष्टि, विरुपाक्ष, दुर्मुख, सुप्तघन, यज्ञकोप, मत्त और उन्मत्त नामक ७ पुत्र और अनला नामक एक पुत्री हुई। सुमाली ने केतुमती से विवाह किया जिससे उसे प्रहस्त, अकम्पन्न, विकट, कालिकामुख, धूम्राक्ष, दण्ड, सुपार्श्व, संह्लादि, प्रघस और भासकर्ण नामक १० पुत्रों और राका, पुष्पोत्कटा, कैकसी और कुंभीनसी नामक ४ पुत्रिओं की प्राप्ति हुई। माली ने वसुदा से विवाह किया और उसके अनल, अनिल, हर और सम्पाति नामक चार निशाचर पुत्र हुए। रावण की मृत्यु के बाद ये चारो विभीषण के सलाहकार और मंत्री बने। रावण राक्षस जाति का नहीं था उसकी माता राक्षस जाति की थी लेकिन उनके पिता यक्ष जाति के ब्राह्मण थे।
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जब माल्यवान, सुमाली और माली आदि राक्षसों को लंका से खदेड़ दिया गया, तब लंका को प्रजापति ब्रह्मा ने धनपति कुबेर को सौंप दिया। कुबेर रावण के सौतेले भाई थे। महर्षि पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा की दो पत्नियां थीं इलविला और कैकसी। इलविला से कुबेर और कैकसी से रावण, विभीषण, कुंभकर्ण का जन्म हुआ। इलविला यक्ष जाति से थीं तो कैकसी राक्षस।
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कुबेर तपस्वी थे। वे तप करके उत्तर दिशा के लोकपाल बने। इनके अनुचर यक्ष निरंतर इनकी सेवा करते हैं। कुबेर रावण के सौतेले भाई होने के बावजूद राक्षस जाति या संस्कृति से नहीं थे। भगवान शंकर ने इन्हें अपना नित्य सखा स्वीकार किया है इसीलिए कुबेर पूज्यनीय माने जाते हैं।
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माली की पुत्री कैकसी ब्रह्मा के पौत्र और महर्षि पुलत्स्य के पुत्र विश्रवा से ब्याही गयी। इसे उन्हें महापराक्रमी रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण नामक ३ पुत्र और शूर्पणखा नामक एक पुत्री हुई। राका के खर और दूषण नामक पुत्र हुए जो श्रीराम के हाथों मारे गए। कुंभीनसी का विवाह मधु नामक दैत्य से हुआ जिससे उसे लवण नाम का एक पुत्र हुआ। इसी लवणासुर का वध शत्रुघ्न ने किया था।
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रावण को राक्षसों का अधिपति बनाया गया, तब रावण ने राक्षस जाति के खोए हुए सम्मान को पुन: प्राप्त करने का वचन लिया और अपना विश्व विजय अभियान शुरू किया। इस विजय अभियान में रावण ने स्वयं भगवान शिव से भी टक्कर ली।
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कुबेर ने रावण के अत्याचारों के विषय में सुना तो अपने एक दूत को रावण के पास भेजा। दूत ने कुबेर का संदेश दिया कि रावण अधर्म के क्रूर कार्यों को छोड़कर यक्षों पर अत्याचार करना बंद करे।
रावण द्वारा नंदनवन उजाड़ने के कारण सब देवता उसके शत्रु बन गए थे। रावण ने क्रुद्ध होकर उस दूत को अपनी खड्ग से काटकर राक्षसों को भक्षणार्थ दे दिया। कुबेर को इस घटना से बहुत आघात पहुंचा।
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अंत में रावण तथा राक्षसों का कुबेर तथा यक्षों से युद्ध हुआ। यक्ष जहां यक्ष बल से लड़ते थे और वहीं राक्षस माया से, अत: राक्षस विजयी हुए। रावण मायावी था और उसके पास कई प्रकार ‍की सिद्धियां थीं। उसने मायावी रूप धारण कर कुबेर के सिर पर प्रहार कर उन्हें घायल कर दिया और बलपूर्वक उनका पुष्पक विमान उनसे छीन लिया।
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रावण ने यह कार्य अपनी माता कैकसी के कहने पर किया। कुबेर को रावण ने लंका से खदेड़ दिया और उनकी समस्त संपत्ति भी छीन ली। कुबेर अपने पितामह के पास गए। पितामह की प्रेरणा से कुबेर ने शिवआराधना हेतु हिमालय चले गए। जहां उन्हें 'धनपाल' की पदवी, पत्नी और पुत्र का लाभ हुआ।
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रावण ने लंका को नए सिरे से बसाकर राक्षस जाति को एकजुट किया और फिर से राक्षस राज कायम किया।
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रावण ने मय दानव और हेमा की कन्या मंदोदरी से विवाह किया जिससे उसे मेघनाद, नरान्तक, देवान्तक, त्रिशिरा, प्रहस्त और अक्षयकुमार नामक ६ पुत्र हुए। रावण ने धन्यमालिनी नामक कन्या से भी विवाह किया जिससे उसे अतिकाय नामक पुत्र प्राप्त हुआ। कुम्भकर्ण का विवाह दैत्यराज बलि की पुत्री वज्रज्वला से हुआ जिससे उसे कुम्भ और निकुम्भ नामक पराक्रमी पुत्र प्राप्त हुए। कुम्भकर्ण की दूसरी पत्नी कर्कटी थी जो विराध राक्षस की विधवा थी जिससे कुम्भकर्ण ने बाद में विवाह किया। उससे उसे भीम नामक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका वध महादेव के हाथों हुआ। उसी के नाम पर भगवान शिव भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए। विभीषण का विवाह गंधर्व शैलूषा की पुत्री सरमा से हुआ जिससे उसे त्रिजटा नामक पुत्री की प्राप्ति हुई जो अशोक वाटिका में सीता की सुरक्षा करती थी। रावण की मृत्यु के पश्चात विभीषण ने मंदोदरी से भी विवाह किया। शूर्पनखा का विवाह दैत्यजाति के एक योद्धा विद्युतजिव्ह से हुआ जिसका वध रावण ने अपने दिग्विजय के दौरान किया। दुर्भाग्यवश विभीषण को छोड़ समस्त राक्षस वंश का लंका युद्ध में नाश हो गया।
                     आपका अपना
             "पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
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    श्रीराम कथा, श्रीमद्भागवत ,शिव कथा
        जाप-पाठ, वैदिक यज्ञ अनुष्ठान
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Monday, November 16, 2020

अब क्या बताएं आपका कितना खयाल है

अब क्या बताएं आपका कितना खयाल है
तेरी जुदाई का बडा दिल को मलाल हो

आते रहे खयाल तेरी कुर्बत के रातदिन 
छाया हुवा निगाह में तेरा हुस्नी जमाल है

देखा भली नजर से तुमको सदा सनम
फिर क्यूं जगा ये आपके मनका सवाल है 

पयहम रहा में आपकी तखलीक में रवां 
अनहोनी सोच पर टीका सब मेरा हाल है 

करदे तु हल ये मसअला अपने विसाल का
तेरे बगैर जिंदगी को मेरा जीना मुहाल है

मासूम बदलते दौर की बदली फिझा मिली
रंगों भरे जहान का रूख बे मिसाल है

              *आशा क्रिश गोस्वामी*

तुम्हारी मुस्कानें .

*** तुम्हारी  मुस्कानें ***

उजियारे का सार, तुम्हारी  मुस्कानें .
अपना तो संसार, तुम्हारी  मुस्कानें .

दीपोत्सव मे मिष्ठानो , पकवानो  सी,
खुशियों का उपहार,तुम्हारी  मुस्कानें .

रूप  पूर्णिमा  और सितारों से नयना,
 घर-आँगन और द्वार , तुम्हारी मुस्कानें .

उड़ी तितलियां रेशम कलियों को छूकर,
ऐसी , इस प्रकार, तुम्हारी  मुस्काने.

काव्य प्रेरणा ,सुन्दर शब्दों की बरखा,
गीतों  का श्रंगार , तुम्हारी  मुस्कानें .

मेरी पलकों का ,अभिवादन  और नमन,
करती  हैं स्वीकार , तुम्हारी  मुस्काने.

स्नेह तुम्हारा अमृत , तुलसी , रंगोली,
जीवन  का आधार, तुम्हारी  मुस्कानें .

दिव्य चेतना , मेरी शक्ति और साहस , 
कंचन  किरण हजार, तुम्हारी  मुस्कानें .

       *आशा क्रिश गोस्वामी*

है ज़िन्दगी मेरी , मेरा जाँनिसार है आशा

है ज़िन्दगी मेरी , मेरा जाँनिसार है आशा
यादों में है मेरी दिल मे बरकरार है आशा

हरेक अदा निराली है मोहब्बत में उनकी
हर दिल अजीज है मेरा राजदार है आशा

सुनते है आशिको पे करता रहम है प्रभू
भरता है सब के कासे परवरदिगार है आशा

कह दूँ में कैसे की उनसे मोहब्बत नही है
दिन का सुकूँ मेरे रातों का करार है आशा

बस इक वही जमाने मे मुझे सबसे प्यारा
दिल की खुशी मेरे मेरा गमगुसार है आशा

था उम्र भर जमाने की ठोकरों में ही मैं
हूँ अब तलक सलामत मेरा प्यार है आशा

*❣️आशा क्रिश गोस्वामी❣️*

गले से लगाया तुम्हे तो ये हुवा एहसास मुझको,

© *गजल*
       ~~~~
*आसमाँ की आगोश में, बीजलियाँ सिमट गयी।*
*समदंर के बाहों में बलखाती नदिया सिमट गयी।*

*गले से लगाया तुम्हे तो ये हुवा एहसास मुझको,*
*की जैसे मेरी बाहो में सारी दुनिया सिमट गयी।*

*परेशान कर रही थी मुझे, तुम्हारी याद दिलाकर,*
*तुम सामने आये तो सिने में हिचकीयाँ सिमट गयी।*

*रिवाजो की ऊँची दिवार, बंदिशे जमाने की थी,*
*फिर भी मिले दो दिल और हथकडीयाँ सिमट गयी।*

*जुदाई देर तक हमारे हिस्से में कहाँ रहेती है जान,*
*बंद आँखो से दीदार किया और दुरीया सिमट गयी।*

*तु आसमाँ का चाँद, क्रिश ज़मी का सितारा,* 
*मिलने की चाह में देखो मजबुरीयाँ सिमट गयी।*
            ✍ *आशा क्रिश गोस्वामी*

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...