~~~~
*आसमाँ की आगोश में, बीजलियाँ सिमट गयी।*
*समदंर के बाहों में बलखाती नदिया सिमट गयी।*
*गले से लगाया तुम्हे तो ये हुवा एहसास मुझको,*
*की जैसे मेरी बाहो में सारी दुनिया सिमट गयी।*
*परेशान कर रही थी मुझे, तुम्हारी याद दिलाकर,*
*तुम सामने आये तो सिने में हिचकीयाँ सिमट गयी।*
*रिवाजो की ऊँची दिवार, बंदिशे जमाने की थी,*
*फिर भी मिले दो दिल और हथकडीयाँ सिमट गयी।*
*जुदाई देर तक हमारे हिस्से में कहाँ रहेती है जान,*
*बंद आँखो से दीदार किया और दुरीया सिमट गयी।*
*तु आसमाँ का चाँद, क्रिश ज़मी का सितारा,*
*मिलने की चाह में देखो मजबुरीयाँ सिमट गयी।*
✍ *आशा क्रिश गोस्वामी*
No comments:
Post a Comment