Friday, November 6, 2020

बेटियां

महकते हुए आंगन कि रोशनाई है बेटियां....
धूप में है साया उमस में पुरवाई है बेटियां....

तेरे आंगन में ही उसका बचपन खेला था
फिर क्यों ये सितम की पराई है बेटियां....

उड़ेगी चिरैया की तरह घर की शाखो से
फिर बहुत रुलाएगी एक तन्हाई है बेटियां....

चेहरे का नूर है संस्कार की है मिसाल
लबों की है तब्बसुम और बीनाई है बेटियां....

सर का ताज और घर की शान होती है
जख्मों पे मरहम मर्ज की दवाई है बेटियां....

बन कर रोशनी अंधेरों को निगल गई
दोनों घरों के दरम्यान जगमगाई है बेटियां.

          "आशा क्रिश गोस्वामी"✒️

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