Saturday, July 7, 2018

शरण में तुमारी हुं

*शरण में तुमारी हुं..!!!* भजन (ग़ज़ल)
रचना:- पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी (१जनवरी २०१८)
मानस, श्रीमद्भागवत, शिव कथा - बाल वक्ता
मुंगेली छत्तीसगढ़:- ८१२००३२८३४

दिलादे भीख दर्शन की,प्रभु तेरा भीखारी हुं।।
चलकर दूर देशन से तेरे दरबार में आया
खड़ाहुं द्वारपे दिलमें तेरीआशाका धारी हुं।।
फिरा संसारचक्करमें भटकतारातदिन बिरथा
बिना दीदार के तेरे हमेशा मैं दुखारी हुं।
तुंही माता पिता बंधु तुंही मेरा सहायक है
तेरेदासों के दासनका चरणनका सेवकारी हुं।
भरा हुं पाप दोषन से झमा कर भूलको मेरी
वो शिव-शंभु सुन विनती शरण में तुमारी हुं।।

पिलादे प्रेम का प्याला प्रभुदर्शनपियासी हुं।।
छोड़कर भोग दुनिया के, योग के पंथ में आई
तेरेदीदारके कारण फिरुं बनबन उदासी हुं।
न जानुंध्यानका धरना न करनाज्ञानचरचा का
नहीं तपयोग हैकेवल तेरेचरणोंकी दासी हुं।।
न देखो दोष को  मेरे दया की फेर दृष्टि को
न दूजाआसरामुझको, तेरेदरकी निवासी हुं।।
कोई बैकुंठ बतलावे कोई कैलास पर्वत को
वोशिव-शंभु घट-घटमें रुपकीमैं बिलासी हुं।।

       *ॐ शिवाय नमः, नमो नारायणाय!!*

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