नजर के वासना....
रचना :- पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी
"छत्तीसगढ़िया राजा"
मुंगेली-छत्तीसगढ़- 7828657057/8120032834
वृहद निंदाओं के बाद भी, बलात्कार जैसी घटनाएं कम नहीं हो रही है,उस पर एक मां बहन बेटी का जो प्रतिक्रिया है, उसे अपने शब्दों में कहने का प्रयास किया है, आपके आशीष मिले🙏🏻🌸🙏🏻
वासना हे तुंहर नजर म त मैं काला काला ढंकंव,
तहि बता का करँव के चैन के जिन्दगी जीए सकंव।
लुगरा पहनतथों त तोला मोर कनिहा ह दिखथे,
रेंगथों तो मोर लचकना म अंगरी तोर उठथे।
दुपट्टा ल का शरीर भर नाप के लगावंव,
समझ नि आय कइसे शरीर के बनावट ल तोर ले
लुकावंव।।
पीठ दिख जथे त उहू काम के निशानी हे,
का लुकांव तोर ले....
हर एक अंग देख बहकथे तोर जुवानी हे।
घाघरा पोलका पहन लंव ते छाती म तोर नजर टिकथे,
पाछू मे दिखथे हुक...
तेनो म तोर आंखी गढ़थे।
चूंदी छरिया लंव कहू वो तोर बर बेहयाई हे,
का करी तोर मन में दुस्सासन कस परछाई हे।
हाथ ल चूरी मा ढक लेंथव चेहरा म अचरा के परदा कर लेंवव,
कखरो जागिर हरंव दिखे बर मांग भर लेंवव।
फेर तोला का परवाह महू कखरो बेटी,,बाई,बहिन हरंव,
तोर बर मिले वाले खाली एक वासना के चैन हरंव।।
मुंड़ ले पांव के नख तक सबो ल..
लुका लेहूं तभो कुछ नई बदलही,
तेरी वासना के भूजंग हर...
हमला नवा बहाना करके डस लेही..!! 🙏🙏..
नारी का सम्मान ही खुद का सम्मान है।
🌸🙏🏻🌸🙏🏻🌸🙏🏻🌸
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