*कोनो नि देखे हावे कल..!!!*
रचना:- पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी
मुंगेली-छत्तीसगढ़ ८१२००३२८३४
कल कल छल छल जइसे अविरल
बहथे नदिया मन के जल
गुजर जाथे कुछ अइसनहे
जीनगी सरिता के हर पल
बनके कल आज आऊ कल ।
हर आज बन जाथे बीतके
बीते वाले तो ओहर कल
अवइयाे वाले कल घलो
बिहना ले पहिलिच,फेर
बन जाथै भाई आज ।
कोई नि जान सकिन
ए आज कल के राज
कोन जनि कइसन होही वो
अवइया वाले कल ।
काबर नई खुशीं ले भर लिन
जीनगी के ये स्वर्णिम पल
कल ला कोन देख हे संगी
कोनो नि देखे हावे कल..!!! ।
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