दो बातें उनसे की तो दिल का दर्द खो गया,
लोगो ने हमसे पूछा तुमको क्या हो गया,
हम तो बस यूँ ही मुस्कुरा कर रह गये,
अब कैसे कहें हमे भी किसी से प्यार हो गया।
दो बातें उनसे की तो दिल का दर्द खो गया,
लोगो ने हमसे पूछा तुमको क्या हो गया,
हम तो बस यूँ ही मुस्कुरा कर रह गये,
अब कैसे कहें हमे भी किसी से प्यार हो गया।
*‼तेरी चौखट से सिर उठाऊं तो बेवफा कहना;*‼
*‼तेरे सिवा किसी और को चाहूँ तो बेवफा कहना;*‼
*‼मेरी वफाओं पे शक है तो खंजर उठा लेना;*‼
*‼शौंक से मर ना जाऊं तो बेवफा कहना।*‼
हर पल मुस्कुराओ,बड़ी खास है जिंदगी…!
क्या सुख क्या दुःख ,बड़ी “आस” है जिंदगी… !
ना शिकायत करो ना कभी उदास हो.
जिंदा दिल से जीने का “अहसास” है जिंदगी…..!!
वो एक चांद है जो लुभाता है रातों को
एक ख्वाब है जो जगाता है रातों को।
देखकर उसको जाने क्यूं ये यकीं होता है
दूर होकर भी कोई कितना करीब होता है।
छू लेता है दिल की धड़कन को
समझ लेता है खामोशियों को।
दिल की गहराइयों में छुपा उसका ही खयाल होता है
बस रहता है नज़रों से ओझल यही एक सवाल होता है।
बस यही एक सवाल होता है.......💕💕
अब बताओ भला,पास किचन में रखी गाजर हलवा तो खाई न जा रही
३००० कि.मी. दूर से उनका दिमाग कैसे खा सकता हूं
फेंकने की भी हद होती है
1 = केवल सेंधा नमक प्रयोग करें, थायराईड, बी पी और पेट ठीक होगा।
2 = केवल स्टील का कुकर ही प्रयोग करें, अल्युमिनियम में मिले हुए लेड से होने वाले नुकसानों से बचेंगे
3 = कोई भी रिफाइंड तेल ना खाकर केवल तिल, मूंगफली, सरसों और नारियल का प्रयोग करें। रिफाइंड में बहुत केमिकल होते हैं जो शरीर में कई तरह की बीमारियाँ पैदा करते हैं ।
4 = सोयाबीन बड़ी को 2 घण्टे भिगो कर, मसल कर ज़हरीली झाग निकल कर ही प्रयोग करें।
5 = रसोई में एग्जास्ट फैन जरूरी है, प्रदूषित हवा बाहर करें।
6 = काम करते समय स्वयं को अच्छा लगने वाला संगीत चलाएं। खाने में भी अच्छा प्रभाव आएगा और थकान कम होगी।
7 = देसी गाय के घी का प्रयोग बढ़ाएं। अनेक रोग दूर होंगे, वजन नहीं बढ़ता।
8 = ज्यादा से ज्यादा मीठा नीम/कढ़ी पत्ता खाने की चीजों में डालें, सभी का स्वास्थ्य ठीक करेगा।
9 = ज्यादा से ज्यादा चीजें लोहे की कढ़ाई में ही बनाएं। आयरन की कमी किसी को नहीं होगी।
10 = भोजन का समय निश्चित करें, पेट ठीक रहेगा। भोजन के बीच बात न करें, भोजन ज्यादा पोषण देगा।
11 = नाश्ते में अंकुरित अन्न शामिल करें। पोषक विटामिन और फाइबर मिलेंगें।
12 = सुबह के खाने के साथ देशी गाय के दूध का बना ताजा दही लें, पेट ठीक रहेगा।
13 = चीनी कम से कम प्रयोग करें, ज्यादा उम्र में हड्डियां ठीक रहेंगी।
14 = चीनी की जगह बिना मसले का गुड़ या देशी शक्कर लें।
15 = छौंक में राई के साथ कलौंजी का भी प्रयोग करें, फायदे इतने कि लिख ही नहीं सकते।
16 = चाय के समय, आयुर्वेदिक पेय की आदत बनाएं व निरोग रहेंगे।
17 = एक डस्टबिन रसोई में और एक बाहर रखें, सोने से पहले रसोई का कचरा बाहर के डस्ट बिन में डालें।
18 = रसोई में घुसते ही नाक में घी या सरसों का तेल लगाएं, सिर और फेफड़े स्वस्थ रहेंगें।
19 = करेले, मैथी और मूली यानि कड़वी सब्जियां भी खाएँ, रक्त शुद्ध रहेगा।
20 = पानी मटके वाले से ज्यादा ठंडा न पिएं, पाचन व दांत ठीक रहेंगे।
21 = प्लास्टिक और अल्युमिनियम रसोई से हटाएं, दोनों केन्सर कारक हैं।
22 = माइक्रोवेव ओवन का प्रयोग कैंसर कारक है।
23 = खाने की ठंडी चीजें कम से कम खाएँ, पेट और दांत को खराब करती हैं।
24 = बाहर का खाना बहुत हानिकारक है, सब घर पर ही बनाएं।
25 = तली चीजें छोड़ें, वजन, पेट, एसिडिटी ठीक रहेंगी।
26 = मैदा, बेसन, छोले, राजमां और उड़द कम खाएँ, गैस की समस्या से बचेंगे।
27 = अदरक, अजवायन का प्रयोग बढ़ाएं, गैस और शरीर के दर्द कम होंगे।
28 = बिना कलौंजी वाला अचार हानिकारक होता है।
29 = पानी का फिल्टर R O वाला हानिकारक है। U V वाला ही प्रयोग करें, सस्ता भी और बढ़िया भी।
30 = रसोई में ही बहुत से कॉस्मेटिक्स हैं, इस प्रकार के ग्रुप से जानकारी लें।
31 = रात को आधा चम्मच त्रिफला एक कप पानी में डाल कर रखें, सुबह कपड़े से छान कर इस जल से आंखें धोएं, चश्मा उतर जाएगा। छानने के बाद जो पाउडर बचे उसे फिर एक गिलास पानी में डाल कर रख दें। रात को पी जाएं। पेट साफ होगा, कोई रोग एक साल में नहीं रहेगा।
32 = सुबह रसोई में चप्पल न पहनें, शुद्धता भी, एक्यू प्रेशर भी।
33 = रात का भिगोया आधा चम्मच कच्चा जीरा सुबह खाली पेट चबा कर वही पानी पिएं, एसिडिटी खतम।
34 = एक्यूप्रेशर वाले पिरामिड प्लेटफार्म पर खड़े होकर खाना बनाने की आदत बना लें तो भी सब बीमारियां शरीर से निकल जायेंगी।
35 = चौथाई चम्मच दालचीनी का कुल उपयोग दिन भर में किसी भी रूप में करने पर निरोगता अवश्य होगी।
36 = रसोई के मसालों से बनी चाय मसाला स्वास्थ्यवर्धक है।
37 = सर्दियों में नाखून के बराबर जावित्री कभी कभी चूसने से सर्दी के असर से बचाव होगा।
38 = सर्दी में बाहर जाते समय 2 चुटकी अजवायन मुँह में रखकर निकलिए, सर्दी से नुकसान नहीं होगा।
39 = रस निकले नींबू के चौथाई टुकड़े में जरा सी हल्दी, नमक, फिटकरी रख कर दांत मलने से दांतों का कोई भी रोग नहीं रहेगा।
40 = कभी - कभी नमक - हल्दी में 2 बून्द सरसों का तेल डाल कर दांतों को उंगली से साफ करें, दांतों का कोई रोग टिक नहीं सकता।
41 = बुखार में 1 लीटर पानी उबाल कर 250 ml कर लें, साधारण ताप पर आ जाने पर रोगी को थोड़ा थोड़ा दें, दवा का काम करेगा।
42 = सुबह के खाने के साथ घर का जमाया देशी गाय का ताजा दही जरूर शामिल करें, प्रोबायोटिक का काम करेगा।
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*हृदय की बीमारी के आयुर्वेदिक इलाज*
हमारे देश भारत मे 3000 साल पहले एक बहुत बड़े ऋषि हुये थे, उनका नाम था महर्षि वागभट्ट जी !!
उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी, जिसका नाम है अष्टांग हृदयम!! (Astang Hridayam)
इस पुस्तक मे उन्होने बीमारियों को ठीक करने के लिए 7000 सूत्र लिखे थे !
यह उनमे से ही एक सूत्र है !!
वागभट्ट जी लिखते है कि कभी भी हृदय को घात हो रहा है ! मतलब दिल की नलियों मे Blockage होना शुरू हो रहा है तो इसका मतलब है कि रक्त (Blood) मे Acidity (अम्लता) बढ़ी हुई है !
अम्लता आप समझते है, जिसको अँग्रेजी में Acidity भी कहते हैं और यह अम्लता दो तरह की होती है !
एक होती है पेट कि अम्लता !
और
एक होती है रक्त (Blood) की अम्लता !
आपके पेट मे अम्लता जब बढ़ती है तो आप कहेंगे पेट मे जलन सी हो रही है, खट्टी खट्टी डकार आ रही है, मुंह से पानी निकल रहा है और अगर ये अम्लता (Acidity) और बढ़ जाये तो इसे Hyperacidity कहते हैं !
फिर यही पेट की अम्लता बढ़ते - बढ़ते जब रक्त मे आती है तो रक्त अम्लता (Blood Acidity) होती है और जब Blood मे Acidity बढ़ती है तो ये अम्लीय रक्त दिल की नलियों में से निकल नहीं पाता और नलियों में Blockage कर देता है और तभी Heart Attack होता है ! इसके बिना Heart Attack नहीं होता और ये आयुर्वेद का सबसे बढ़ा सच है जिसको कोई डाक्टर आपको बताता नहीं ! क्योंकि इसका इलाज सबसे सरल है !!
*एसीडिटी का ईलाज क्या है*??
वागभट्ट जी आगे लिखते है कि जब रक्त (Blood) में अम्लता (Acidity) बढ़ गई है ! तो आप ऐसी चीजों का उपयोग करें जो क्षारीय है !
आप जानते है दो तरह की चीजे होती है !
अम्लीय (Acidic)
और
क्षारीय (Alkaline)
अब अम्ल और क्षार (Acid and Alkaline) को मिला दें तो क्या होता है ?
हम सब जानते हैं Neutral होता है !!
तो वागभट्ट जी लिखते हैं कि रक्त की अम्लता बढ़ी हुई है तो क्षारीय (Alkaline) चीजे खाओ ! तो रक्त की अम्लता (Acidity) Neutral हो जाएगी, और जब रक्त मे अम्लता Neutral हो गई तो Heart Attack की जिंदगी मे कभी संभावना ही नहीं होगी ।
ये है सारी कहानी !!
अब आप पूछोगे जी ऐसे कौन सी चीजे है जो क्षारीय है और हम खाये ??
आपके रसोई घर मे ऐसी बहुत सी चीजे है जो क्षारीय है ! जिन्हें अगर आप खायें तो कभी Heart Attack न आयेगा और अगर आ गया तो दुबारा नहीं आएगा !
आपके घर में जो सबसे ज्यादा क्षारीय चीज है वह है लौकी, जिसे हम दुधी भी कहते है और English मे इसे Bottle Gourd भी कहते हैं जिसे आप सब्जी के रूप मे खाते है !
इससे ज्यादा कोई क्षारीय चीज ही नहीं है इसलिये आप हर रोज़ लौकी का रस निकाल कर पियें या अगर खा सकते है तो कच्ची लौकी खायें ।
वागवतट जी के अनुसार रक्त की अम्लता कम करने की सबसे ज्यादा ताकत लौकी में ही है, इसलिए आप लौकी के रस का सेवन करें !
*कितना मात्रा में सेवन करें*
रोज 200 से 300 ग्राम लौकी का रस ग्राम पियें !
कब पिये ?
सुबह खाली पेट (Toilet) शौच जाने के बाद पी सकते है. या फिर नाश्ते के आधे घंटे के बाद पी सकते हैं!
इस लौकी के रस को आप और ज्यादा क्षारीय भी बना सकते हैं ! जिसके लिए इसमें 7 से 10 पत्ते के तुलसी के डाल लें क्योंकि तुलसी बहुत क्षारीय है !
इसके साथ आप पुदीने के 7 से 10 पत्ते भी मिला सकते है, क्योंकि पुदीना भी बहुत क्षारीय होता है।
इसके साथ आप इसमें काला नमक या सेंधा नमक भी जरूर डाले ! ये भी बहुत क्षारीय है। याद रखे नमक काला या सेंधा ही डालें, दूसरा आयोडीन युक्त नमक कभी न डालें !
ये आयोडीन युक्त नमक अम्लीय है।
तो मित्रों आप इस लौकी के जूस का सेवन जरूर करे 2 से 3 महीने आपकी सारी Heart की Blockage ठीक कर देगा। 21 वे दिन ही आपको बहुत ज्यादा असर दिखना शुरू हो जाएगा और फिर आपको कोई आपरेशन की जरूरत नहीं पड़ेगी !
घर मे ही हमारे भारत के आयुर्वेद से इसका इलाज हो जाएगा और आपका अनमोल शरीर और लाखों रुपए आपरेशन के बच जाएँगे और जो पैसे बच जायें उसे अगर इच्छा हो किसी गौशाला मे दान कर दें क्योंकि डाक्टर को देने से अच्छा है किसी गौशाला दान दे !
हमारी गौ माता बचेगी तो भारत बचेगा !!
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*हल्दी का पानी*
पानी में हल्दी मिलाकर पीने से यह 7 फायदें होते है ....
1. गुनगुना हल्दी वाला पानी पीने से दिमाग तेज होता है। सुबह के समय हल्दी का गुनगुना पानी पीने से दिमाग तेज और उर्जावान बनता है।
2. आप यदि रोज़ हल्दी का पानी पीते हैं तो इससे खून में होने वाली गंदगी साफ होती है और खून जमता भी नहीं है, यह खून साफ करता है और दिल को बीमारियों से भी बचाता है।
3. लीवर की समस्या से परेशान लोगों के लिए हल्दी का पानी किसी औषधि से कम नही है क्योंकि हल्दी का पानी टाॅक्सिस लीवर के सेल्स को फिर से ठीक करता है। इसके अलावा हल्दी और पानी के मिले हुए गुण लीवर को संक्रमण से भी बचाते हैं।
4. हार्ट की समस्या से परेशान लोगों को हल्दी वाला पानी पीना चाहिए क्योंकि हल्दी खून को गाढ़ा होने से बचाती है जिससे हार्ट अटैक की संभावना कम हो जाती है.
5. जब हल्दी के पानी में शहद और नींबू मिलाया जाता है तब यह शरीर के अंदर जमे हुए विषैले पदार्थों को निकाल देता है, जिसे पीने से शरीर पर बढ़ती हुई उम्र का असर नहीं पड़ता है। हल्दी में फ्री रेडिकल्स होते हैं जो सेहत और सौंदर्य को बढ़ाते हैं.
6. शरीर में किसी भी तरह की सूजन हो और वह किसी दवाई से ना ठीक हो रही हो तो आप हल्दी वाला पानी का सेवन करें। हल्दी में करक्यूमिन तत्व होता है जो सूजन और जोड़ों में होने वाले असहय दर्द को ठीक कर देता है। सूजन की अचूक दवा है हल्दी का पानी।
7. कैंसर खत्म करती है हल्दी। हल्दी कैंसर से लड़ती है और उसे बढ़ने से भी रोक देती है क्योंकि हल्दी एंटी - कैंसर युक्त होती है और यदि आप सप्ताह में तीन दिन हल्दी वाला पानी पीएगें तो आपको भविष्य में कैंसर से हमेशा बचे रहेगें।
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*हमारे वेदों के अनुसार स्वस्थ रहने के १५ नियम हैं.....*
१ - खाना खाने के १.३० घंटे बाद ही पानी पीना चाहिए।
२ - पानी घूँट घूँट करके पीना है जिससे अपनी मुँह की लार पानी के साथ मिलकर पेट में जा सके, पेट में Acid बनता है और मुँह में छार, दोनो पेट में बराबर मिल जाए तो कोई रोग पास नहीं आएगा।
३ - पानी कभी भी ठंडा (फ़्रिज़ का) नहीं पीना है।
४ - सुबह उठते ही बिना क़ुल्ला किए २ ग्लास पानी पीना चाहिए, रात भर जो अपने मुँह में लार है वो अमूल्य है उसको पेट में ही जाना ही चाहिए ।
५ - खाना, जितने आपके मुँह में दाँत है उतनी बार ही चबाना है ।
६ - खाना ज़मीन में पलोथी मुद्रा में बैठकर या उखड़ूँ बैठकर ही खाना चाहिए।
७ - खाने के मेन्यू में एक दूसरे के विरोधी भोजन एक साथ ना करे जैसे दूध के साथ दही, प्याज़ के साथ दूध, दही के साथ उड़द की दlल ।
८ - समुद्री नमक की जगह सेंधl नमक या काला नमक खाना चाहिए।
९ - रीफ़ाइन तेल, डालडा ज़हर है, इसकी जगह अपने इलाक़े के अनुसार सरसों, तिल, मूँगफली या नारियल का तेल उपयोग में लाए । सोयाबीन के कोई भी प्रोडक्ट खाने में ना ले इसके प्रोडक्ट को केवल सुअर पचा सकते है। आदमी में इसके पचाने के एंज़िम नहीं बनते हैं ।
१० - दोपहर के भोजन के बाद कम से कम ३० मिनट आराम करना चाहिए और शाम के भोजन बाद ५०० क़दम पैदल चलना चाहिए।
११ - घर में चीनी (शुगर) का उपयोग नहीं होना चाहिए क्योंकि चीनी को सफ़ेद करने में १७ तरह के ज़हर (केमिकल ) मिलाने पड़ते है इसकी जगह गुड़ का उपयोग करना चाहिए और आज कल गुड़ बनाने में कॉस्टिक सोडा (ज़हर) मिलाकर गुड को सफ़ेद किया जाता है इसलिए सफ़ेद गुड़ ना खाए। प्राकृतिक गुड़ ही खाये। प्राकृतिक गुड़ चाकलेट कलर का होता है।
१२ - सोते समय आपका सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ़ होना चाहिए।
१३ - घर में कोई भी अलूमिनियम के बर्तन या कुकर नहीं होना चाहिए। हमारे बर्तन मिट्टी, पीतल लोहा और काँसा के होने चाहिए।
१४ - दोपहर का भोजन ११ बजे तक अवश्य और शाम का भोजन सूर्यास्त तक हो जाना चाहिए ।
१५ - सुबह भोर के समय तक आपको देशी गाय के दूध से बनी छाछ (सेंधl नमक और ज़ीरा बिना भुना हुआ मिलाकर) पीना चाहिए ।
यदि आपने ये नियम अपने जीवन में लागू कर लिए तो आपको डॉक्टर के पास जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और देश के ८ लाख करोड़ की बचत होगी । यदि आप बीमार है तो ये नियमों का पालन करने से आपके शरीर के सभी रोग (BP, शुगर ) अगले ३ माह से लेकर १२ माह में ख़त्म हो जाएँगे।
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*सर्दियों में उठायें मेथी दानों से भरपूर लाभ*
➡ मेथीदाना उष्ण, वात व कफनाशक, पित्तवर्धक, पाचनशक्ति व बलवर्धक एवं ह्रदय के लिए हितकर है | यह पुष्टिकारक, शक्ति, स्फूर्तिदायक टॉनिक की तरह कार्य करता है | सुबह–शाम इसे पानी के साथ निगलने से पेट को निरोग बनाता है, कब्ज व गैस को दूर करता है | इसकी मूँग के साथ सब्जी बनाकर भी खा सकते हैं | यह मधुमेह के रोगियों के लिए खूब लाभदायी हैं |
➡ अपनी आयु के जितने वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, उतनी संख्या में मेथीदाने रोज धीरे – धीरे चबाना या चूसने से वृद्धावस्था में पैदा होने वाली व्याधियों, जैसे घुटनों व जोड़ों का दर्द, भूख न लगना, हाथों का सुन्न पड़ जाना, सायटिका, मांसपेशियों का खिंचाव, बार - बार मूत्र आना, चक्कर आना आदि में लाभ होता है | गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भुने मेथी दानों का चूर्ण आटे के साथ मिला के लड्डू बना के खाना लाभकारी है |
*मेथी दाने से शक्तिवर्धक पेय*
दो चम्मच मेथीदाने एक गिलास पानी में ४ – ५ घंटे भिगोकर रखें फिर इतना उबालें कि पानी चौथाई रह जाय, इसे छानकर २ चम्मच शहद मिला के पियें ।
*औषधीय प्रयोग*
1. कब्ज : २० ग्राम मेथीदाने को २०० ग्राम ताजे पानी में भिगो दें. ५-६ घंटे बाद मसल के पीने से मल साफ़ आने लगता है. भूख अच्छी लगने लगती है और पाचन भी ठीक होने लगता है |
2. जोड़ों का दर्द : १०० ग्राम मेथीदाने अधकच्चे भून के दरदरा कूट लें | इसमें २५ ग्राम काला नमक मिलाकर रख लें | २ चम्मच यह मिश्रण सुबह- शाम गुनगुने पानी से फाँकने से जोड़ों, कमर व घुटनों का दर्द, आमवात (गठिया) का दर्द आदि में लाभ होता है | इससे पेट में गैस भी नहीं बनेगी |
3. पेट के रोगों में : १ से ३ ग्राम मेथी दानों का चूर्ण सुबह, दोपहर व शाम को पानी के साथ लेने से अपच, दस्त, भूख न लगना, अफरा, दर्द आदि तकलीफों में बहुत लाभ होता है |
4. दुर्बलता : १ चम्मच मेथीदानों को घी में भून के सुबह - शाम लेने से रोगजन्य शारीरिक एवं तंत्रिका दुर्बलता दूर होती है |
5. मासिक धर्म में रुकावट : ४ चम्मच मेथीदाने १ गिलास पानी में उबालें | आधा पानी रह जाने पर छानकर गर्म–गर्म ही लेने से मासिक धर्म खुल के होने लगता है |
6. अंगों की जकड़न : भुनी मेथी के आटे में गुड़ की चाशनी मिला के लड्डू बना लें | १–१ लड्डू रोज सुबह खाने से वायु के कारण जकड़े हुए अंग १ सप्ताह में ठीक हो जाते हैं तथा हाथ–पैरों में होने वाला दर्द भी दूर होता है |
7. विशेष : सर्दियों में मेथीपाक, मेथी के लड्डू, मेथीदानों व मूँग–दाल की सब्जी आदि के रूप में इसका सेवन खूब लाभदायी हैं |
*IMPORTANT*
*HEART ATTACK और गर्म पानी पीना!*
यह भोजन के बाद गर्म पानी पीने के बारे में ही नहीं Heart Attack के बारे में भी एक अच्छा लेख है।
चीनी और जापानी अपने भोजन के बाद गर्म चाय पीते हैं, ठंडा पानी नहीं। अब हमें भी उनकी यह आदत अपना लेनी चाहिए। जो लोग भोजन के बाद ठंडा पानी पीना पसन्द करते हैं यह लेख उनके लिए ही है।
भोजन के साथ कोई ठंडा पेय या पानी पीना बहुत हानिकारक है क्योंकि ठंडा पानी आपके भोजन के तैलीय पदार्थों को जो आपने अभी अभी खाये हैं ठोस रूप में बदल देता है।
इससे पाचन बहुत धीमा हो जाता है। जब यह अम्ल के साथ क्रिया करता है तो यह टूट जाता है और जल्दी ही यह ठोस भोजन से भी अधिक तेज़ी से आँतों द्वारा सोख लिया जाता है। यह आँतों में एकत्र हो जाता है। फिर जल्दी ही यह चरबी में बदल जाता है और कैंसर के पैदा होने का कारण बनता है।
इसलिए सबसे अच्छा यह है कि भोजन के बाद गर्म सूप या गुनगुना पानी पिया जाये। एक गिलास गुनगुना पानी सोने से ठीक पहले पीना चाहिए। इससे खून के थक्के नहीं बनेंगे और आप हृदयाघात से बचे रहेंगे।
एक हृदय रोग विशेषज्ञ का कहना है कि यदि इस संदेश को पढ़ने वाला प्रत्येक व्यक्ति इसे १० लोगों को भेज दे, तो वह कम से कम एक जान बचा सकता है 🙏🏻
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
मौन बैठने से बदल सकता है आपका जीवन
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
अगर आप अपनी इच्छा से कुछ समय के लिए बोलना छोड़ दें, मौन धारण कर लें तो इससे आपको बहुत फायदे हो सकते हैं।
मौन के लाभ
मौन की शुरुआत जुबान के चुप होने से होती है। धीरे-धीरे जुबान के बाद आपका मन भी चुप हो जाता है। मन में चुप्पी जब गहराएगी तो आंखें, चेहरा और पूरा शरीर चुप और शांत होने लगेगा। तब आप इस संसार को नए सिरे से देखना शुरू कर पाएंगे। बिल्कुल उस तरह से जैसे कोई नवजात शिशु संसार को देखता है। जरूरी है कि मौन रहने के दौरान सिर्फ श्वांसों के आवागमन को ही महसूस करते हुए उसका आनंद लें। मौन से मन की शक्ति बढ़ती है। शक्तिशाली मन में किसी भी प्रकार का भय, क्रोध, चिंता और व्यग्रता नहीं रहती। मौन का अभ्यास करने से सभी प्रकार के मानसिक विकार समाप्त हो जाते हैं। आइये जानते हैं मौन के सात महत्वपूर्ण फायदों के बारे में।
संतुष्टि
कुछ न बोलना, यानि अपनी एक सुविधा से मुंह मोड़ना। जी हां, बोलना आपके लिए एक बहुत बड़ी सुविधा ही होती है। जो आपके मन में चल रहा होता है उसे आप तुरंत बोल देते हैं। लेकिन, मौन रहने से चीजें बिल्कुल बदल जाती हैं। मौन अभाव में भी खुश रहना सिखाता है।
अभिव्यक्ति
जब आप सिर्फ लिखकर बात कर सकते हैं तो आप सिर्फ वही लिखेंगे जो बहुत जरूरी होगा। कई बार आप बहुत बातें करके भी कम कह पाते हो। लेकिन ऐसे में आप सिर्फ कहते हो, बात नहीं करते। इस तरह से आप अपने आपको अच्छी तरह से व्यक्त कर सकते हैं।
प्रशंसा
हमारे बोल पाने की वजह से हमारा जीवन आसान हो जाता है, लेकिन जब आप मौन धारण करेंगे तब आपको ये अहसास होगा कि आप दूसरो पर कितना निर्भर हैं। मौन रहने से आप दूसरों को ध्यान से सुनते हैं। अपने परिवार, अपने दोस्तों को ध्यान से सुनना, उनकी प्रशंसा करना ही है।
ध्यान देना
जब आप बोल पाते हैं तो आपका फोन आपका ध्यान भटकाने का काम करता है। मौन आपको ध्यान भटकाने वाली चीजों से दूर करता है। इससे किसी एक चीज या बात पर ध्यान लगाना आसान हो जाता है।
विचार
शोर से विचारों का आकार बिगड़ सकता है। बाहर के शोर के लिए तो शायद हम कुछ नहीं कर सकते, लेकिन अपने द्वारा उत्पन्न शोर को मौन जरूर कर सकते हैं। मौन विचारों को आकार देने में हमारी मदद करता है। हर रोज अपने विचारों को बेहतर आकार देने के लिए मौन रहें।
प्रकृति
जब आप हर मौसम में मौन धारण करना शुरू कर देंगे तो आप जान पाएंगे कि बसंत में चलने वाली हवा और सर्दियों में चलने वाली हवा की आवाज भी अलग-अलग होती है। मौन हमें प्रकृति के करीब लाता है। मौन होकर बाहर टहलें। आप पाएंगे कि प्रकृति के पास आपको देने के लिए काफी कुछ है।
शरीर
मौन आपको आपके शरीर पर ध्यान देना सिखाता है। अपनी आंखें बंद करें और अपने आप से पूछें, "मुझे अपने हाथ में क्या महसूस हो रहा है?" अपने शरीर को महसूस करने से आपका अशांत मन भी शांत हो जाता है। शांत मन स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
आँखो की चमक पलकों की शान हो तुम,
चेहरे की हँसी लबों की मुस्कान हो तुम,
धड़कता है दिल बस तुम्हारी आरज़ू मे,
फिर कैसे ना कहूँ मेरी जान हो तुम..
मास्टर जी 🕴️को दिल ❤️का दौरा उस वक्त पड़ गया
जब उन्हें पता चला कि
प्रैक्टिकल कॉपी 📙साइन करवाने वालो की भीड़ में घुसकर
एक स्टूडेंट ने🧒 उनकी प्रॉपर्टी अपने नाम करवा ली...😂
©पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी®
प्रश्न :- आद्य शङ्कराचार्यजी से पहले जगद्गुरु कौन थे ?
उत्तर:- श्रीमन्महाराज सार्वभौम युधिष्ठिरजी के २६३१ वर्ष व्यतीत होने पर तदनुसार विक्रम पूर्व ४५० में स्वयं जगद्गुरु भगवान् शङ्कर आद्य शङ्कर भगवत्पादके रूप में इस धरा धाम पर प्रकट हुए थे । पूज्य भगवत्पादने प्राचीन चतुराम्नाय सम्बद्ध चतुष्पीठों पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को जगद्गुरु शङ्कराचार्य के रूप में ख्यापित किया था । यथा ऋग्वेद से सम्बद्ध पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ जगन्नाथ पुरी , पर पूज्य जगद्गुरु पद्मपादाचार्यजी को युधिष्ठिर संवत् २६५५ में (वर्तमान से २५०१ वर्ष पूर्व में ) अभिषिक्त किया । यजुर्वेद से सम्बद्ध दक्षिणाम्नाय श्रीशृङ्गेरी-शारदामठ शृङ्गेरी, पर पूज्य जगदगुरु श्रीहस्तामलकाचर्यजी को युधिष्ठिर संवत् २६५४ में (वर्तमान से २५०२ वर्ष में ) पूर्व अभिषिक्त किया गया । सामवेद से सम्बद्ध पश्चिमाम्नाय द्वारिका-शारदामठ द्वारिका , पर पूज्य जगद्गुरु श्रीसुरेश्वराचार्य जी का युधिष्ठिर संवत् २६४९ में (वर्तमान से २५०८ वर्ष पूर्व में )अभिषेक किया गया । और अथर्ववेद से सम्बद्ध उत्तराम्नाय ज्योतिर्मठ बद्रिकाश्रम ,पर पूज्य जगद्गुरु श्रीटोटकाचार्यजी को युधिष्ठिर संवत् २६५४ में (वर्तमान से २५०२ वर्ष पूर्व ) अभिषेक किया ।
वर्तमान में चतुराम्नाय चतुष्पीठों पर पूज्य जगद्गुरु महाभाग पूर्व में पुरीपीठ में अनन्तश्रीविभूषित भगवान् स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाभाग अभिषिक्त हैं ,गत २६ वर्षों से पीठ पर विराजमान हैं । दक्षिणमें शृङ्गेरीमठ में पूज्य जगद्गुरु अनन्तश्रीविभूषित भगवान् स्वामि श्री भारतीय तीर्थ महाभाग अभिषिक्त हैं । पश्चिम में शारदामठ में पूज्य जगद्गुरु अनन्तश्रीविभूषित भगवान् स्वामि श्रीस्वरूपानन्द सरस्वती महाभाग अभिषिक्त हैं ,वे गत ३६ वर्षोंसे पीठ पर विराजमान हैं । उत्तर में ज्योतिर्मठ में पूज्य जगद्गुरु अनन्तश्रीविभूषित भगवान् स्वामि श्रीस्वरूपानन्द सरस्वतीजी महाभाग अभिषिक्त हैं ,वे गत ४५ वर्षों से पीठ पर विराजमान हैं । यह सार्वभौम जगद्गुरु की परम्परा अतिप्राचीन ही नहीं अपितु सनातन भी हैं ।
कृत ,त्रेता ,द्वापर आदि युगों में मन्त्र दृष्टा ऋषियोंसे प्रसारित ज्ञान के द्वारा धर्म की व्यवस्था बनी रहती है । किन्तु कलियुग में अल्पमेधा वाले ,तपोबल और शुद्धता-पवित्रता रहित मनुष्यों को भगवत्साक्षात्कार ,देवताओका साक्षात्कार और ऋषियों का साक्षात्कार प्रत्यक्ष नहीं होता है । क्योंकि दिव्य महापुरुषों के दर्शनों की क्षमता नहीं होती है कलियुग के अल्पशक्ति सम्पन्न लोगों में । ऐसे में ऐसे मनुष्यों पर कृपा करने के लिये स्वयं भगवान् श्रीमन्नारायण प्रत्येक द्वापर के अंतमें व्यास अवतार लेकर वेदों का विभाजन करके पुराणों के द्वारा वेदों का सरलीकरण करके जन-जन तक ज्ञान के प्रसार का मार्ग प्रशस्त करते हैं । उन्हीं भगवान् व्यास नारायण की सहायताके लिये जगद्गुरु भगवान् साम्ब शिव स्वयं अवतार धारण करते हैं और व्यासजी के आदेश पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को चतुराम्नाय चतुष्पीठों पर ख्यापित करके धर्म की पुनः स्थापना करते हैं ।
इस श्वेतवराहकल्प का प्रारम्भ १९७२९४९१२० वर्ष पूर्व हुआ था ,इतने बृहत्तम इतिहास को भगवान् व्यास नारायण के अतिरिक्त लिखने में कोई अन्य समर्थ नहीं ,उन्हीं भगवान् व्यासनारायण की कृपा से मैं इस श्वेतवराह कल्प के ७वें मन्वन्तर के २८ कलियुगों के सार्वभौम जगदगुरुओं का सङ्केत मात्र में वर्णन करने का प्रयास कर रहा हूँ ।
श्रीश्वेतवराहकल्पके सप्तम मन्वन्तर वैवस्वत का शुभारम्भ १२०५३३१२० वर्ष पूर्व हुआ था । वैवस्वत मन्वन्तरके आद्य कलियुग ११६६४५१२० वर्ष पूर्व में जब भगवान् ब्रह्माजी स्वयं व्यासजी के पद पर प्रतिष्ठित थे ,तब भगवान् शिवने उनकी सहायता के लिये जगद्गुरु श्वेतके रूप में अवतार लिया और चतुराम्नाय चतुष्पीठों पर अपने चार प्रमुख शिष्यों श्वेतलोहित ,श्वेताश्व ,श्वेतशिख और श्वेत को अभिषिक्त किया । (यह चतुराम्नाय पूर्ववत ऋक्० ,यजु: ,साम और अथर्व के क्रम से है । पाठक गण कृपया निम्न सूची को स्वयं इसी क्रम से चतुराम्नाय चतुष्पीठों से सम्बन्ध ज्ञात कर सकते हैं । )
द्वितीय कलियुग के प्रारम्भ में ११२३२५१२० वर्ष पूर्व जब प्रजापति सत्य व्यासजी थे तब भगवान् शिव जगद्गुरु सुतार के नाम से अवतरित हुए ,उनके चार प्रमुख शिष्य जगद्गुरु हुए ,केतुमान् ,हृषीक ,शतरूप व दुन्दुभि ।
तीसरे कलियुग के प्रारम्भ में १०८००५१२० वर्ष पूर्व महर्षि भार्गव व्यासजी थे तब भगवान् शङ्कर जगदगुरु दमन के रूप में प्रकट हुए और उनके प्रमुख शिष्य थे ,पापनाशन ,विपाप ,विशेष व विशोक ।
चतुर्थ कलियुग के प्रारम्भ में १०३६८५१२० वर्ष पूर्व भगवान् अङ्गिरा व्यासजी थे और उनके सहायक भगवान् शङ्कर जगद्गुरु सुहोत्र केरूप में प्रकट हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए दुरतिक्रय ,दुर्दम ,दुर्मुख व सुमुख ।
पञ्चम कलियुग के प्रारम्भ में ९९३६५१२० वर्ष पूर्व भगवान् सविता व्यासजी थे (शुक्लयजुर्वेद इन्हीं से प्रकट हुआ ) तब उनके सहायक भगवान् शङ्कर जगद्गुरु हँस (कङ्क) के रूप में प्रकट हुए ,उनके प्रमुख शिष्य थे ,सनत्कुमार ,सनन्दन ,सनातन व सनक ।
षट् कलियुग के प्रारम्भ में भगवान् मृत्यु (सूर्यपुत्र- बालक नचिकेता के गुरु) व्यासजी के पद पर थे ,तब भगवान् महेश्वर उनकी सहायता के लिये जगद्गुरु लोकाक्षीके रूप में प्रकट हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए ,विजय संजय ,विरजा व सुधामा ।
सप्तम कलियुग के प्रारम्भ में ९०७२५१२० वर्ष पूर्व भगवान् शतक्रतु (इन्द्र ) थे ,जो कि महर्षि भरद्वाज और विश्वामित्र के गुरु और प्राचीन व्याकरण के रचयिता थे । उनकी सहायतार्थ भगवान् शङ्कर जगद्गुरु जैगीषव्य के रूप में प्रकट हुए ,उनके शिष्य हुए -सुवाहन ,मेघवाहन ,योगीश व सारस्वत ।
अष्टम कलियुग के प्रारम्भ में ८६४०५१२० वर्ष पूर्व भगवान् वसिष्ठ व्यासजी के पद पर थे (ऋग्वेद सप्तम मण्डल के दृष्टा ऋषि ,वसिष्ठ धर्मसूत्र ,वसिष्ठ शिक्षा व वसिष्ठ स्मृति की रचना इसी समय की ) उनकी सहायतार्थ भगवान् शङ्कर जगद्गुरु दधिवाहन के रूप में प्रकट हुए ,उनके शिष्य थे शाल्वल ,पञ्चशिख ,आसुरि व कपिल ।
नवम कलियुग के प्रारम्भ में ८२०८५१२० वर्ष पूर्व भगवान् सारस्वत व्यासजी थे ,उनके सहायक भगवान् शङ्कर जगदगुरु ऋषभ के रूप में हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए गिरीश ,भार्गव ,गर्ग व पराशर ।
दशमें कलयुग के प्रारम्भ में ७७७६५१२० वर्ष पूर्व भगवान् त्रिधन्वा व्यासजी थे ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु योगेश्वर हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए ,केतुशृङ्ग ,नरामित्र ,बलबन्धु व भृङ्ग , चक्रवर्ती सम्राट मान्धाता इसी चतुर्युगी में हुए ।
एकादश कलियुग के प्रारम्भ में ७३४४५१२० वर्ष पूर्व भगवान् त्रिवृत व्यासजी थे ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु तप हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए प्रलम्बक ,केशलम्ब ,लम्बाक्ष व लम्बोदर ।
द्वादश कलियुग के प्रारम्भ में ६९१२५१२० वर्ष पूर्व भगवान् शततेजा व्यासजी थे ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु अत्रि हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए ,शर्व ,साध्य ,समबुद्धि व सर्वज्ञ ।
त्रयोदश कलियुग के प्रारम्भ में ६४८०५१२० वर्ष पूर्व भगवान् नारायण व्यासजी के पद पर थे ,उस समय उनके सहायक भगवान् शिवजगदगुरु बलि के रूप में प्रकट हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए ,विरजा ,वसिष्ठ ,काश्यप व सुधामा ।
चतुर्दश कलियुग के आदिमें ६०४८५१२० वर्ष पूर्व भगवान् ऋक्ष व्यासजी के पद पर थे ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु गौतम थे (गौतमधर्मसूत्रके रचयिता ) ,उनके प्रमुख शिष्य हुए ,श्नविष्टक ,श्रवण ,वशद व अत्रि ।
पञ्चदश कलियुगमें ५६१६५१२० वर्ष पूर्व भगवान् व्यास के पद पर त्रय्यारुणि थे ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु वेदशिरा थे ,उनके प्रमुख शिष्य हैं ,कुनेत्रक ,कुशरीर ,कुणिबाहु व कुणि ।
षोडश कलियुग में ५१८४५१२० वर्ष पूर्व भगवान् व्यास के पद पर देव आरूढ़ थे ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु गोकर्ण जी थे (जिन्होंने अपने भाई धुंधकारी को पिशाच योनि से मुक्त किया ) ,उनके प्रमुख शिष्य हुए ,बृहस्पति (अर्थशास्त्र के रचयिता ) ,च्यवन (आयुर्वेद के प्रवर्तक ) ,उशना(उशनास्मृति अथवा शुक्रनीति के रचयिता ) व काश्यप ,चक्रवर्ती सम्राट भरत इसी चतुर्युग में हुए ।
सप्तदश कलियुग में ४७५२५१२० वर्ष पूर्व भगवत् व्यासके पद पर देवकृतञ्जय व उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु गुहावसी थे ,उनके प्रमुख शिष्य हुए ,महाबल ,महायोग ,वामदेव व उतथ्य ।
अष्टदश कलियुग के आदि में ४३२०५१२० वर्ष पूर्व भगवान् व्यास ऋतञ्जय थे ,व उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु शिखण्डी थे ,उनके प्रमुख शिष्य हुए ,यतीश्वर ,श्यावास्य,रुचीक व वाचश्रवा ।
एकोन्विंशति कलियुग में ३८८८५१२० वर्ष पूर्व भगवान् भरद्वाज व्यासजी थे व उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु माली थे ,उनके प्रमुख शिष्य प्रधिमि ,लोकाक्षी ,कौसल्य व हिरण्यनामा थे ,इसी चतुर्युग में भगवान् परशुरामजी हुए ।
विंशति कलियुग के आदि में ३४५६५१२० वर्ष पूर्व भगवान् व्यास गोतम ऋषि थे (गोतम न्यायदर्शन के प्रणेता ) ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु अट्टहास हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए कुणिकन्धर ,कबन्ध ,वर्वरि व सुमन्त ।
एकविंशति कलियुग के आदि में ३०२४५१२० वर्ष पूर्व भगवान् व्यास जी वाचाश्रवा थे उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु दारुक थे ,उनके प्रमुख शिष्य हुए गौतम ,केतुमान् ,दर्भामणि व प्लक्ष ।
द्वाविंशति कलियुग के आदि में २५९२५१२० वर्ष पूर्व शुष्ययण व उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु लाङ्गुली भीम हुए ,उनके प्रमुखं शिष्य हुए श्वेतकेतु ,पिङ्ग ,मधु व भल्लवी ।
त्रविंशति कलियुग के आदि में २१६०५१२० वर्ष पूर्व महर्षि तृणबिन्दु वेदव्यास जी थे (इन्हीं के दौहित्र महर्षि विश्रवा थे ) ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु श्वेत थे ,उनके शिष्य हुए कवि ,देवल ,बृहदश्व व उशिक ।
चतुर्विंशति कलियुग के आदि में १७२८५१२० वर्ष पूर्व भगवान् वेद व्यास थे ऋषि यक्ष ,उनके सहायक हुए शिवावतार जगद्गुरु शूली ,उनके प्रमुख शिष्य हुए शरद्वसु ,युवनाश्व ,अग्निवेश (धनुर्वेद के आचार्य -द्रोणाचार्य के गुरु) व शालिहोत्र ,इसी चतुर्युगी में वेदवेद्य जगदीश्वर श्रीरामभद्रका अवतार हुआ ।
पञ्चविंशति कलियुग के आदि में १२९६५१२० वर्ष पूर्व भगवान् व्यासके पद पर वसिष्ठ पुत्र शक्ति थे ,उनके सहायक शिवावतार मुण्डीश्वर हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए प्रवाहक ,कुम्भाण्ड ,कुण्डकर्ण व छगल ।
षड्विंशति कलियुग के आदि में ८६४५१२० वर्ष पूर्व शक्ति पुत्र पाराशर भगवान् वेदव्यास के पद पर थे (विष्णुपुराण के संकलनकर्ता) ,उनके सहायक हुए शिवावतार जगद्गुरु सहष्णु ,उनके प्रमुख शिष्य हुए आश्वलायन (शौनक शिष्य आश्वलायन ऋग्वेद की एक सम्पूर्ण शाखा के प्रवर्तक हैं ),शम्बूक ,विद्युत व उलूक ।
सप्तविंशति कलियुग के आदि में ४३२५१२० वर्ष पूर्व महर्षि जातूकर्ण वेदव्यास थे ,उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु सोमशर्मा थे ,उनके प्रमुख शिष्य हुए वत्स ,उलूक ,कुमार व अक्षपाद ।
अष्टविंशति कलियुग के आदि में ५१२० वर्ष पूर्व ,जिस दिन भगवान् श्रीकृष्ण इस धराधाम को अनाथ करके गोलोक धाम को गये ,भगवान् श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यासजी ने २८ वे वेदव्यास के पद पर रखकर महाभारत ग्रन्थ सहित १८ पुराणों व ब्रह्मसूत्र की रचना की व वेदोंका विभाजन किया । उनके सहायक शिवावतार जगद्गुरु योगेश्वर लकुलीश हुए ,उनके प्रमुख शिष्य हुए पौरुष्य ,मित्र ,गर्ग व कुशिक (इन्ही जगद्गुरु कुशिक की दशवीं शिष्य परम्परा में आर्य उदिताचार्य हुए जिन्होंने परमभट्टारक राजाधिराज समुद्रगुप्त के प्रतापी सत्पुत्र परम भट्टारक राजाधिराज चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के यज्ञ सम्पन्न किये थे ,व दो शिवलिंगों की स्थापना भी की थी -- देखिये गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय का गुप्त शक ६१ का मधुरा स्तम्भ लेख ,तीन वर्ष पूर्व यह उक्त अभिलेख को हमने फेसबुक पर प्रेषित भी किया है ) । २८वे भगवान् वेदव्यास के आदेश पर ही शिवावतार जगद्गुरु आदि शङ्कराचार्य जी ने अपने चार शिष्यों ,श्रीपद्मपाद ,श्रीहस्तामलक,श्रीसुरेश्वर व श्रीतोटकको चतुष्पीठों पर जगद्गुरु कर रूप में ख्यापित किया । जयति लोक शङ्कर: 🚩
प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय, ...