Tuesday, September 17, 2019

१८ सितंबर , बलिदान दिवस, गोभक्तों का अनुपम बलिदान

18 सितम्बर/ *बलिदान-दिवस*

*गोभक्तों का अनुपम बलिदान*

स्वतन्त्रता से पूर्व देश में अनेक स्थानों पर मुसलमान खुलेआम गोहत्या करते थे, इससे हिन्दू भड़क जाते थे और दोनों समुदाय आपस में लड़ने लगते थे; अंग्रेज तो यही चाहते थे इसलिए वे गोहत्या को प्रश्रय देते थे।

1918 में ग्राम कटारपुर (हरिद्वार) के मुसलमानों ने बकरीद पर सार्वजनिक रूप से गोहत्या की घोषणा की मायापुरी क्षेत्र में कभी ऐसा नहीं हुआ था, अतः हिन्दुओं ने ज्वालापुर थाने पर शिकायत की; पर वहां के थानेदार मसीउल्लाह तथा अंग्रेज प्रशासन की शह पर ही यह हो रहा था। हरिद्वार में शिवदयाल सिंह थानेदार थे, उन्होंने हिन्दुओं को हर प्रकार से सहयोग देने का वचन दिया अतः हिन्दुओं ने घोषणा कर दी कि चाहे जो हो; पर गोहत्या नहीं होने देंगे।

17 सितम्बर, 1918 को बकरीद थी, हिन्दुओं के विरोध के कारण उस दिन तो कुछ नहीं हुआ; पर अगले दिन मुसलमानों ने पांच गायों का जुलूस निकालकर उन्हें पेड़ से बांध दिया। वे *नारा ए तकबीर, अल्लाहो अकबर* जैसे भड़कीले नारे लगा रहे थे, दूसरी ओर हनुमान मंदिर के महंत रामपुरी जी महाराज के नेतृत्व में सैकड़ों हिन्दू युवक भी अस्त्र-शस्त्रों के साथ सन्नद्ध थे; उन्होंने *जयकारा वीर बजंरगी, हर हर महादेव* कहकर धावा बोला और सब गाय छुड़ा लीं; लगभग 30 मुसलमान मारे गये। बाकी सिर पर पैर रखकर भाग खड़े हुए, इस मुठभेड़ में अनेक हिन्दू भी हताहत हुए, महंत रामपुरी जी के शरीर पर चाकुओं के 48 घाव लगे; अतः वे भी बच नहीं सके।

पुलिस और प्रशासन को जैसे ही मुसलमानों के वध का पता लगा, तो वह सक्रिय हो उठा; हिन्दुओं के घरों में घुसकर लोगों को पीटा गया, महिलाओं का अपमान किया गया; 172 लोगों को थाने में बन्द कर दिया गया। जेल का डर दिखाकर कई लोगों से भारी रिश्वत ली गयी, गुरुकुल महाविद्यालय के कुछ छात्र भी इसमें फंसा दिये गये फिर भी हिन्दुओं का मनोबल नहीं टूटा।

कुछ दिन बाद अमृतसर में कांग्रेस का अधिवेशन होने वाला था; गुरुकुल महाविद्यालय के प्राचार्य आचार्य नरदेव शास्त्री *वेदतीर्थ* ने वहां जाकर गांधी जी को सारी बात बतायी; पर गांधी जी किसी भी तरह मुसलमानों के विरोध में जाने को तैयार नहीं थे अतः वे शान्त रहे; पर महामना मदनमोहन मालवीय जी परम गोभक्त थे। उनका हृदय पीड़ा से भर उठा, उन्होंने इन निर्दोष गोभक्तों पर चलने वाले मुकदमे में अपनी पूरी शक्ति लगा दी।

इसके बावजूद आठ अगस्त, 1919 को न्यायालय द्वारा घोषित निर्णय में चार गोभक्तों को फांसी और थानेदार शिवदयाल सिंह सहित 135 लोगों को काले पानी की सजा दी गयी। इनमें सभी जाति, वर्ग और अवस्था के लोग थे। जो लोग अन्दमान भेजे गये, उनमें से कई भारी उत्पीड़न सहते हुए वहीं मर गये। महानिर्वाणी अखाड़ा, कनखल के महंत रामगिरि जी भी प्रमुख अभियुक्तों में थे; पर वे घटना के बाद गायब हो गये और कभी पुलिस के हाथ नहीं आये, पुलिस के आतंक से डरकर अधिकांश हिन्दुओं ने गांव छोड़ दिया; अतः अगले आठ वर्ष तक कटारपुर के खेतों में कोई फसल नहीं बोई गयी।

आठ फरवरी, 1920 को उदासीन अखाड़ा, कनखल के महंत ब्रह्मदास (45 वर्ष) तथा चौधरी जानकीदास (60 वर्ष) को प्रयाग में; डा. पूर्णप्रसाद (32 वर्ष) को लखनऊ एवं मुक्खा सिंह चौहान (22 वर्ष) को वाराणसी जेल में फांसी दी गयी; चारों वीर *गोमाता की जय* कहकर फांसी पर झूल गये। प्रयाग वालों ने इन गोभक्तों के सम्मान में उस दिन हड़ताल रखी, इस घटना से गोरक्षा के प्रति हिन्दुओं में भारी जागृति आयी। महान गोभक्त लाला हरदेव सहाय ने प्रतिवर्ष आठ फरवरी को कटारपुर में *गोभक्त बलिदान दिवस* मनाने की प्रथा शुरू की; वहां स्थित पेड़ और स्मारक आज भी उन वीरों की याद दिलाता है।

(गोसम्पदा अप्रेल, 2012/ कटारपुर से प्रकाशित स्मारिका)
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प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

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