भगवान शिव का महा रास में प्रवेश
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
जब महारास की गूंज सारी त्रिलोकी में गई तो हमारे भोले बाबा के कानों में भी महारास की गूंज गई। भगवान शिव की भी इच्छा हुई के मैं महारास में प्रवेश करूँ। भगवान शिव बावरे होकर अपने कैलाश को छोड़कर ब्रज में आये । पार्वती जी ने मनाया भी लेकिन त्रिपुरारि माने नहीं। भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त श्रीआसुरि मुनि, पार्वती जी, नन्दी, श्रीगणेश, श्रीकार्तिकेय के साथ भगवान शंकर वृंदावन के वंशीवट पर आ गये।
वंशीवट जहाँ महारास हो रहा था, वहाँ गोलोकवासिनी गोपियाँ द्वार पर खड़ी हुई थीं। पार्वती जी तो महारास में अंदर प्रवेश कर गयीं, किंतु द्वारपालिकाओं श्री ललिता जी ने ने श्रीमहादेवजी और श्रीआसुरि मुनि को अंदर जाने से रोक दिया, बोलीं, “श्रेष्ठ जनों” श्रीकृष्ण के अतिरिक्त अन्य कोई पुरुष इस एकांत महारास में प्रवेश नहीं कर सकता।
भगवान शिव बोले की तो क्या करना पड़ेगा?
ललिता सखी बोली की आप भी गोपी बन जाओ। भगवान शिव बोले की जो बनाना हैं जल्दी बनाओ लेकिन मुझे महारास में प्रवेश जरूर दिलाओ।
भगवान शिव को गोपी बनाया जा रहा हैं। मानसरोवर में स्नान कर गोपी का रूप धारण किया हैं। श्रीयमुना जी ने षोडश श्रृंगार कर दिया, तो सुन्दर बिंदी, चूड़ी, नुपुर, ओढ़नी और ऊपर से एक हाथ का घूँघट भी भगवान शिव का कर दिया। साथ में युगल मन्त्र का उपदेश भगवान शिव के कान में किया हैं। भगवान शिव अर्धनारीश्वर से पूरे नारी-रूप बन गये। बाबा भोलेनाथ गोपी रूप हो गये।फिर क्या था, प्रसन्न मन से वे गोपी-वेष में महारास में प्रवेश कर गये।
भगवान ने जब भगवान शिव को देखा तो समझ गए। भगवान ने सोचा की चलो भगवान शिव का परिचय सबसे करवा देते हैं जो गोपी बनकर मेरे महारास का दर्शन करने आये हैं। सभी गोपियाँ भगवान शिव के बारे में सोच के कह रही हैं ये कौन सी गोपी हैं। हैं तो लम्बी तगड़ी और सुन्दर। कैसे छम-छम चली जा रही हैं। भगवान कृष्ण शिव के साथ थोड़ी देर तो नाचते रहे लेकिन जब पास पहुंचे तो भगवान बोले की रास के बीच थोड़ा हास-परिहास हो जाएं तो रास का आनंद दोगुना हो जायेगा। भगवान बोले की अरी गोपियों तुम मेरे साथ कितनी देर से नृत्य कर रही हो लेकिन मैंने तुम्हारा चेहरा देखा ही नहीं हैं। क्योंकि कुछ गोपियाँ घूंघट में भी हैं।
गोपियाँ बोली की प्यारे आपसे क्या छुपा हैं? आप देख लो हमारा चेहरा।
लेकिन जब भगवान शंकर ने सुना तो भगवान शंकर बोले की ये कन्हैया को रास के बीच क्या सुझा, अच्छा भला रास चल रहा था मुख देखने की क्या जरुरत थी। ऐसा मन में सोच रहे थे की आज कन्हैया फजती पर ही तुला हैं।
भगवान कृष्ण बोले की गोपियों तुम सब लाइन लगा कर खड़ी हो जाओ। और मैं सबका नंबर से दर्शन करूँगा।
भगवान शिव बोले अब तो काम बन गया। लाखों करोड़ों गोपियाँ हैं। मैं सबसे अंत में जाकर खड़ा हो जाऊंगा। कन्हैयाँ मुख देखते देखते थक जायेगा। और मेरा नंबर भी नही आएगा।
सभी गोपियाँ एक लाइन में खड़ी हो गई। और अंत में भगवान शिव खड़े हो गए।
जो कन्हैया की दृष्टि अंत में पड़ी तो कन्हैया बोले नंबर इधर से शुरू नही होगा नंबर उधर से शुरू होगा।
भगवान शिव बोले की ये तो मेरा ही नंबर आया। भगवान शिव दौड़कर दूसरी और जाने लगे तो भगवान कृष्ण गोपियों से बोले गोपियों पीछे किसी गोपी का मैं मुख दर्शन करूँगा पहले इस गोपी का मुख दर्शन करूँगा जो मुख दिखने में इतनी लाज शर्म कर रही हैं। इतना कहकर भगवान शिव दौड़े और दौड़कर भगवान शिव को पकड़ लिया। और घूँघट ऊपर किया और कहा आओ गोपीश्वर आओ। आपकी जय हो। बोलिए गोपेश्वर महादेव की जय। शंकर भगवान की जय।।
श्रीराधा आदि श्रीगोपीश्वर महादेव के मोहिनी गोपी के रूप को देखकर आश्चर्य में पड़ गयीं। तब श्रीकृष्ण ने कहा, “राधे, यह कोई गोपी नहीं है, ये तो साक्षात् भगवान शंकर हैं। हमारे महारास के दर्शन के लिए इन्होंने गोपी का रूप धारण किया है। तब श्रीराधा-कृष्ण ने हँसते हुए शिव जी से पूछा, “भगवन! आपने यह गोपी वेष क्यों बनाया? भगवान शंकर बोले, “प्रभो! आपकी यह दिव्य रसमयी प्रेमलीला-महारास देखने के लिए गोपी-रूप धारण किया है। इस पर प्रसन्न होकर श्रीराधाजी ने श्रीमहादेव जी से वर माँगने को कहा तो श्रीशिव जी ने यह वर माँगा “हम चाहते हैं कि यहाँ आप दोनों के चरण-कमलों में सदा ही हमारा वास हो। आप दोनों के चरण-कमलों के बिना हम कहीं अन्यत्र वास करना नहीं चाहते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने `तथास्तु’ कहकर कालिन्दी के निकट निकुंज के पास, वंशीवट के सम्मुख भगवान महादेवजी को `श्रीगोपेश्वर महादेव’ के नाम से स्थापित कर विराजमान कर दिया। श्रीराधा-कृष्ण और गोपी-गोपियों ने उनकी पूजा की और कहा कि व्रज-वृंदावन की यात्रा तभी पूर्ण होगी, जब व्यक्ति आपके दर्शन कर लेगा। आपके दर्शन किये बिना यात्रा अधूरी रहेगी। भगवान शंकर वृंदावन में आज भी `गोपेश्वर महादेव'के रूप में विराजमान हैं और भक्तों को अपने दिव्य गोपी-वेष में दर्शन दे रहे हैं। गर्भगृह के बाहर पार्वतीजी, श्रीगणेश, श्रीनन्दी विराजमान हैं। आज भी संध्या के समय भगवान का गोपीवेश में दिव्य श्रृंगार होता है।
इसके बाद सुन्दर महारास हुआ हैं। भगवान कृष्ण ने कत्थक नृत्य किया हैं और भगवान शिव ने तांडव। जिसका वर्णन अगर माँ सरस्वती भी करना चाहे तो नहीं कर सकती हैं। खूब आनंद आया हैं। भगवान कृष्ण ने ब्रह्मा की एक रात्रि ले ली हैं। लेकिन गोपियाँ इसे समझ नही पाई। केवल अपनी गोपियों के प्रेम के कारण कृष्ण ने रात्रि को बढाकर इतना दीर्घ कर दिया। भगवान ने गोपियों को चीर घाट लीला के समय दिए वचन को पूरा कर हैं। गोपियों ने एक रात कृष्ण के साथ अपने प्राणप्रिय पति के रूप में बिताई हैं लेकिन यह कोई साधारण रात नही थी। ब्रह्मा की रात्रि थी और लाखों वर्ष तक चलती रही। आज भी वृन्दावन में निधिवन में प्रतिदिन भगवान कृष्ण रास करते हैं। कृष्ण के लिए सब कुछ करना संभव हैं। क्योंकि वो भगवान हैं। इस प्रकार भगवान ने महारास लीला को किया हैं। शुकदेव जी महाराज परीक्षित से कहते हैं राजन जो इस कथा को सुनता हैं उसे भगवान के रसमय स्वरूप का दर्शन होता हैं। उसके अंदर से काम हटकर श्याम के प्रति प्रेम जाग्रत होता हैं। और उसका ह्रदय रोग भी ठीक होता हैं।
रास पंचाध्यायी का आखिरी श्लोक इस बात की पुष्टि भी करता है।
विक्रीडितं व्रतवधुशिरिदं च विष्णों: श्रद्धान्वितोऽनुुणुयादथवर्णयेघः भक्तिं परां भगवति प्रतिलभ्य कामं हृद्रोगमाश्वहिनोत्यचिरेण धीरः
वस्तुतः समस्त रोग कामनाओं से उत्पन्न होते हैं जिनका मुख्य स्थान हृदय होता है। मानव अच्छी-बुरी अनेक कामनाएं करता है। उनको प्राप्त करने की उत्कृष्ट इच्छा प्रकट होती है। इच्छा पूर्ति न होने पर क्रोध-क्षोभ आदि प्रकट होने लगता है। वह सीधे हृदय पर ही आघात करता है।
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
प्रस्तुति
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
No comments:
Post a Comment