Wednesday, May 6, 2020

खिले थे गुल चाहत की तुम्हें याद हो के न हो।1।

मिले थे हमतुम कभी  तुम्हें  याद  हो के न हो!
खिले थे गुल चाहत की तुम्हें याद हो के न हो।1।

बिखरी बिखरी थी उल्फत का रंग फजाओं में!
मिलने आये थे तभी  तुम्हें  याद हो के न हो।2।

लगी थी आग इसकदर दोनों तरफ महब्बत का!
कसमें खाये थे सभी तुम्हें याद हो के न हो।3।

निभाये प्यार को रखना यही कहते थे सदा!
जुदा ना हों जीते जी तुम्हें याद हो के न हो।4।

तोड़कर चल दिये फिर क्यूं कस्म ए वादे तूने!
सजाये ख्वाब उल्फत की तुम्हें याद हो के न हो।5।

मिले थे हमतुम कभी  तुम्हें  याद  हो के न हो!
खिले थे गुल चाहत की तुम्हें याद हो के न हो।1।


         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

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