Wednesday, May 6, 2020

बहक जाऊं न कहीं आपकी सदा लेकर!

ग़ज़ल

बहक जाऊं न कहीं आपकी सदा लेकर!
रूबरू आये हो यूँ हमनवा अदा लेकर।

मिलाकर चल कदमों को मिलाये दिल भी!
रुत सजा रह ए उल्फत का रस्मे वफ़ा लेकर।

धड़कता है धड़कन और हलचल सी मची!
जता जा चाह दर्द ए दिल का दवा लेकर।

चले आओ हसरत और खिलने से लगे!
के गुजरता जाये सफर भी वास्ता लेकर।

हमसफर यूँ हमसे मुहब्बत कीजिए फिर!
ढले आयें दिलसे दिल का राब्ता लेकर।

बहक जाऊं न कहीं आपकी सदा लेकर!
रूबरू आये हो यूँ हमनवा अदा लेकर।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

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