बदले मौसम गर चाह न बदलने दीजिए!
रह ए उल्फत पे वफ़ा से संभलने दीजिए।
वक़्त गुजरे संग हसरत भी दिलका खिले!
चार सू अपने साख ए गुल को खिलने दीजिए।
आइये मिलके हंसीं घर हम सजाएं फिर से!
दिलसे दिलको मन मनसे भी मिलने दीजिए।
जोड़ये रिश्तें यहां वास्ते पे भरोसा लेकर!
लम्हा लम्हा फिर चाहतों को पलने दीजिए।
जोश ए जुनू ए इश्क़ यूँ बढ़ती जाये अक्सर!
रुख ए पुर नूर हो प्यार में मचलने दीजिए।
बदले मौसम गर चाह न बदलने दीजिए!
रह ए उल्फत पे वफ़ा से संभलने दीजिए।
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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