Wednesday, May 6, 2020

राष्ट्र भाषा (घनाक्षरी छंद)


हिन्दी का विशाल पाट,दूर-दूर लौ दिखात,
बाढ़ की विभीषिका सी, रंग मोद लासिनी,
घाट-घाट बाट-बाट,तीरथ प्रयाग राज,
संतन सुसंतन के,मेल सो सुहासिनी।
हिम से निकषि धाइ,सागर से मिलि जात
अंक में लपेट निज,प्यार की प्रकाशिनी,
एहिं भाँति हिंदी आज,बनी माथ बिंदी सी है
भारत की भाषन सों,बनी मृदु भाषिनी।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

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