चमकते चांद को देखे हुए ज़माना हुआ
मचलती शाम को देखे हुए ज़माना हुआ
निग़ाह मिली ही थी और बात होने को थी
नशीला जाम वो थी और रात होने को थी
लबों के जाम को देखे हुए ज़माना हुआ
मचलती शाम को देखे हुए ज़माना हुआ
धुंआ किधर से उठा रातोदिन बढ़ता गया
अज़ब सा दर्द उठा दर्द यह बढ़ता गया
दहकती आग को देखे हुए ज़माना हुआ
मचलती शाम को देखे हुए ज़माना हुआ
इलाज मुमकिन पर दवा है ही नहीं
हालात मुश्किल पर वो बात है ही नहीं
लिखे पैग़ाम को देखे हुए ज़माना हुआ
मचलती शाम को देखे हुए ज़माना हुआ
तमाशा देखेंगे हम आज किस्मत का
मिजाज देखेंगे वफ़ा के दुश्मन का
तड़फते यार को देखे हुए ज़माना हुआ
मचलती शाम को देखे हुए ज़माना हुआ
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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