जब कभी बहुत आहत होता है मन हमारा |
तब मैं खोज लेता हूं अपना वह उजियारा |
मिल जाता उजियारा पावन हो जाता मन सारा |
तब कहीं दूर गगन से दिखता उसका सहारा |
लगता युगों की हुई शोध पूरी मिला खोया सारा |
जब कभी बहुत आहत होता है ,,,,,,,,,,,!!!
पल पल सुन्दर वह राह मिलती जाती है |
वह गहरी अमां निशा दूर कहीं छंटती जाती है |
कुम्हलाए फूल खूशबू लिए महक आते हैं |
सोंधी सोंधी महॅक पा के हम मगन हो जाते हैं |
लगता है संवर गया वह उजड़ा चमन हमारा |
जब कभी बहुत आहत होता ,,,,,,,,,,,,,,!!!
नीलाम्बर छोर मे वे सितारे झलक जाते हैं |
क्षितिज पार में सतरंगी इन्द्रधनुष बन जाते हैं
झलकन की मस्ती में दूर होता है अँधियारा |
दुनिया सुंदर सी लगती मैं बन जाता हूं चितेरा |
लगता कितने कमाल से उसने हर रंग है उकेरा |
जब कभी बहुत आहत होता ,,,,,,,,,,,,,,!!!
आंसूओं में मीठी अनुभूतियों के आ जाते सपने |
अनजाने से मन में उतरने लगते वे खोए अपने |
अनुपम सुर ताल से मन में गूंजते हर गीत नए |
झलकता उजियारा लगता जले हैं खुशी के दिए |
भेद भाव मिटता लगता सब है हमारा तुम्हारा |
जब कभी बहुत आहत होता ,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!!
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
No comments:
Post a Comment