चंचल नैन कटार दामनी।
कर सोलह सिंगार दामनी।
आखें कजरारी, भौहें कारी ।
गले नौलखा हार दामनी।
चंचल नैन कटार दामनी। ..
पैजननियां के नूपूर छन छन।
ज्यों भंवरों की मीठी गुंजन।
कमर करधनी पैर में बिछुआ।
जूड़े कुसुमन के हार दामनी।
चंचल नैन कटार दामनी।...
नागिन के सम लट छितराये ।
नखसिख देख जिया भरमाये।
कलियों के खेल खेल कर,
करती चमन बिहार दामनी।
चंचल नैन कटार दामनी।...
मौसम ने भी चाल बदल दी ।
लू भी पुरुआ होकर चल दी।
जेठ भी सावन हो गया 'सावन'।
जब भी हुआ दीदार दामनी।
चंचल नैन कटार दामनी।
कर सोलह सिंगार दामनी।।
_मेरी प्यारी है जान दामनी_।।
©"पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
राष्ट्रीय प्रवक्ता
राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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