Saturday, July 21, 2018

चुनाव अस्पेसल

कका वोट डार के बाहर आइस अऊ चुनई अजेंट ले पूछिस - तोर काकी वोट डाल के चल दिस का ?
   अजेंट हर सूची चेक करके किहिस - हव कका वो तो वोट डाल के चल दिस !!
  कका भरे गला ले बोलिस- जल्दी आ रतेंव त शायद मिल लेहे रतेंव,
  अजेंट  - कइसे कका संगे में नि राहव का ?
कका - बेटा ओला मरे १५ साल हो गे हे,हर पइत वोट डाले आथे, फेर मिलय नहीं पर😜😛😛😜

✍ खेमेस्वर छत्तीसगढ़िया ✍

एक पैगाम दोस्ती के नाम

चेहरा मोर हे फेर नजर ओखर
सुन्ना मन में भी गोठ हे ओखर

मोर चेहरा म कविता लिखथे
गीत गावत आंखी हर ओखर

सच्चा दोस्ती के पता देहे लगिस
अउंहा झऊंहा सांस लेत ओखर

अइसन बेरा घलो मैं गुंजारेंव आज
बिहना जब मोर रिहे संझा ओखर

नींद इही सोच के टूटथे अक्सर
कइसे कटत होही रातिहा ओखर

दूरिहा रहिके घलो हरदम रहिथे
मोला थाम्हे जइसे बांह ह ओखर........

मोर जीनगी के अनमोल रतन
सुघर संगवारी जी हरे तो ओहर........

✒ ✍ *पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी* ✍ ✒
मुंगेली-छत्तीसगढ़ - 7828657057

Wednesday, July 18, 2018

जननी हरव मैं एक देह के

जननी हरंव मै एक देह के ;
काबर नारी केअपमान करथव तुम…!
जेस देह ला हमन जन्मदेयेन; काबर नारी ल ही "छलथव"तुम…!
जेन अंग ले तैं हर जन्म लेहेस; काबर ओला दूषित करथव तुम…!
जेन वक्षके दूध रग रग में हे; कइसे ओमा आघात करथव तुम…!
का नारी केवल  एक देह"हे; काबर ऐखर "मान-मर्दन"करथव तुम…!
जेन मां ह तुंहला जनम दिहिस; काबर कोख के अपमान करथव तुम…!
अनुपम अतुल्य अद्भुत नारी ला; काबर दनुज-तमस रूप देखाथव तुम…!
चिर-वसन" मा लिपटे नारी; कइसे तुंहला जननी देवी नई लागय…!
मत करव मान-मर्दन नारी के! वो तुंहर जननी हे…लाज तुंहला नई लागय…!
✍ पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी ✍
मुंगेली छत्तीसगढ़-8120032834

किसान की बात कलम के शब्द

अपनी फसल बेचने को हम दर दर भटकें,आप पाकिस्तान से चीनी लाइए
कर्जे से फाँसी लगाकर हम मरें,आप सौ करोङ मे विधायक खरीदने जाइए
सुखे से परेशान सिंचाई का नही समाधान,
ट्रेक्टर पंपिंगसेट को भी तरसे हम,आप तेल का दाम बढाते जाइए
चार साल हो गए विकास का गाना अब मत गाइए
मोहताज नज़र है हाल मेरा,
सरकार तवज्जोह फरमाइए!
✍ पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी ✍
मुंगेली छत्तीसगढ़-7828657057

तुम थी कोई और न था

जब मैं एक अरसे बाद मुस्कुराया था ,
जब मैं एक खामोशी के बाद खिलखिलाया था ,
तो वो तुम थी कोई और न था !
तो वो सिर्फ तुम थी कोई और न था !!
कि जब मैं रोया था बहुत ,
फ़िर चैन से सोया था बहुत ,
वहाँ तुम थी कोई और न था !
जब जहाँ बिखरता था मैं सँवार लेती थी तुम,
इस तरह खुद को निखार लेती थी तुम ,
मेरे उलझे सफ़र में हमसफ़र की तरह,
सीधी पगडंडी , सादा डगर की तरह ,
तुम थी कोई और न था !!
वो जो हँसी में झूमा करता था ,
बेफिक्री में घूमा करता था ,
तब साथ तुम थी कोई और न था !!
लेकिन कल रात ,
तुम्हारे बाद…तुम्हारी याद में,
खोया था ज़िंदगी में बहुत,
रखकर कंधे पे सिर मैं  रोया था बहुत ,
वहाँ कोई और था तुम न थी !
वहाँ कोई और था !! तुम न थी !!
कितना अजीब सा न …
कि पहले तुम थी कोई और न था !!

✍ पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी ✍

मुंगेली-छत्तीसगढ़ 8120032834

Tuesday, July 17, 2018

शादी में क्यों आ रही दिक्कत

*शादी में क्यों आ रही दिक्कत* (एक चिंतन)........ जरूर पढ़े"

किसी को पढ़ कर बुरालगे  तो लगे ।पर बात खरी है। जरूर पढ़ना और मनन करना जिनको डिग्री पत्रिका पैकेज का बुखार है। 👏👏

सभी समाज भाइयोँ  और बहनों को
यथोचित नमन,🙏🏻
एक समय था रिश्तों के लिये विज्ञापन की आवश्यकता नहीं पङती थी ।
अशिक्षित की शादी मे भी कहीँ कोई दिक्कत नहीं आती थी।
और आज दरअसल हम शिक्षा के नाम पर भटक रहे है।
कुछ स्वावलंबी बनने की सोच।
और कुछ वो डर कि शादी के बाद पता नहीं क्या होगा ?
इसलिये पाँव पर खङा होना जरूरी है।
और ये सोच घर भी खराब कर रही है ।
पहले की अपेक्षा रिश्ते टुटने मे काफी वृद्धि हुई है।
वो स़ोच रिश्तोँ की मधुरता मे घमंड भी ला रही है।
बराबरी का भाव।
कि मै तुमसे कमजोर नहीं तो क्यों दबूँ ?
घर छोटी मोटी गलतियों को बिसराते हुए समझौऐ से चलता है ।
झुठी अकङ से नहीं।
पहले कभी ऐसी दिक्कत नही आती थी।
निरक्षर कन्या की भी शादी जब चाहो तुरंत हो जाती थी।
*अब बङी बङी डिग्री धारक को भी बायोडाटा सहित विज्ञापन देना पङ रहा है।*
रिश्तों की जगह सौदेबाजी ने ले ली है।
पढे को पढा ही चाहिये ।
भले ही कम कमाये ।
थोङा कम पढा है तो किस काम का ?
सोचता हूँ शिक्षित हम है या पुर्वज थे ?
हर आदमी उससे अच्छा उससे अच्छा के चक्कर मे उम्र बढा रहा है ।
और अंत मे लिखता है कोई भी जाति के स्वीकार्य।
*बच्चों को माँ बाप पर भरोसा नही।*
स्वयं जब तक देख सुन न ले हाँ नही करते।
जबकि जीवन का अनुभव जीरो है।
एक तकिया कलाम चला है कि जिन्दगी हमे निभानी है।
बाप दादाओं की जिन्दगी कौन निभाता था ?
उपर से ये *कुँडली मिलान वाला रोग।*
पहले बहुत कम ही कुँडली बनवाते थे।
बनवाते भी थे तो मिलाते कम ही थे।
और जीवन शानदार जीते थे।
और अब सम्बन्ध विच्छेद की तलवार लटकी ही रहती है।

पढे लिखे बच्चे है, कानून के जानकार।
*तलाकनामा तो एनी टाइम जेब मे ही रहता है।*
रोज नये बायोडाटा ग्रुप बन रहे है।
विज्ञापन रुपी तस्वीरे भी खुब आ रही है।
लेकिन फिर भी रिश्तों मे दिक्कत आ रही है।
अब तो तलाक शुदा ग्रुप भी खुलने लगे है।
खूब तमाशाबाजी चल रही है।
शादी की उम्र होती है।
शिक्षा की नहीं।
शादी के बाद भी पढा जा सकता है।
एक उम्र के बाद चेहरे की चमक उङने लगती है।
उसमे ब्यूटीशियन भी बहुत सहयोग नही कर सकते।
चाहे कितने ही महँगे प्रोडक्ट इस्तेमाल कर ले।
चेहरा धुलते ही असली आवरण सामने आ जाता है।
आजकल फलों को भी और सब्जी को भी कलर करके बेचा जाने लगा है।
ये कहाँ से कहाँ आ गये हम ?
ये कैसी शिक्षा है।
शिक्षा तो आ गयी।
लेकिन संस्कार और भाईचारा समाप्त हो गया।

*पहले पोता पङपोता देखना आम बात थी।*
*अब शायद कुछ लोग बच्चों की शादी भी शायद ही देख पायें।*
क्याँकि 35 या 40 साल मे शादी करने वालोँ के बच्चों की शादी भी इसी उम्र मे होगी।
और आजकल 70 या 80 साल की आयु नहीं होती।
खानपान और रहनसहन ही ऐसा है।
सब कुछ बहुत डरावना है।

ये दीवाना दीवानी लिखने से कोई दिवाना नहीं बनने वाला।
परिवार की एकता की ये हालत है कि सभी क़ो छोटा सा परिवार चाहिये।
बङा परिवार है और प्यार से रहते है तो आजकल उसे अच्छा नहीं मानते।
ये कैसी शिक्षा और संस्कार है ?

अभी भी वक्त है संभल जाओ ।
आनेवाले समय मे और भी हजारों बायोडाटा ग्रुप खुल जायेँगे ।
लाभ कुछ नहीं होनेवाला ।
सोच को सही दिशा मे ले जाओ तो शादी मे दिक्कत नही आयेगी ।
क्योंकि दिशा का उल्टा शादी ही होता है ।
शिक्षित बहुत होशियार नही होता ।
और अशिक्षित बहुत बेवकूफ नही होता ।
जीवन मे जरुरी है तो आजीविका घर मे सुख आपसी तालमेल पारिवारिक एकता।

शायद ?
किसी को मेरी बात बुरी लगी हो त़ो क्षमा।
लेकिन एक बार चिन्तन जरुर करें ।
🙏

✍ पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी ✍
मुंगेली-छत्तीसगढ़ ८१२००३२८३४

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