पुनीत पावन सावन का महीना,राखी का त्यौहार,
तुम्ही बतलाओ तुम बिन बंधन बांधूं किसे मैं प्यार।
इस मतलब की संसार में,किसे बनाऊं अब मैं ढार,
भैय्या सरहद पर बैठे हो,मौत रही मंडराए.......
ऐसे जब रिश्ते खतरे में,कैसे मनाऊं अब मैं त्यौहार।
ईक वादा तूने राष्ट्र भक्ति का, लिया कसम मेरा लेकर,
तेरे आज की कमी से फिर, मैं न तो गर्व से इठलाऊं।
आज देख,हालात आपकी,देश की राजनीति के कारण,
जब भाई बैठा कफन बांध सरहद,राखी किसे पहनाऊं।
तेरे बचपन की ओ नखरे,जो दे निकाल राखी,
और मैं डांट डांट,गांठ बार-बार लगाऊं।
मेरे रक्षा की खातिर तु ढाल सदा बन जाता,
अपनी सुरक्षा की किसे तलवार बनाऊं।
तेरे राखी में ना आने की गम में सुखती जाऊं,
अपनी दिल की दर्द,किसे अब मैं सुनाऊं।
मां से प्यार मिले भरपूर, पिता से मिले फटकार,
मेरे हीरे जैसे भैय्या,किसे शिकवा लगाऊं।
सेना में हो भाई मेरे पर हो जैसे बंधे हुए संसद,
तुम सोच रहे,बहना से वादा कैसे निभाऊं।
एक वादा पे दिक्कतें कई,दुश्मन के आगे झुकें,
नाजुक राखी के बदले क्या हथियार उठाऊं।
कश्मीर में हर बार पत्थर से लहूलुहान हो ऐसे,
बंधे कमजोर हाथों में, पवित्र धागे न चढ़ाऊं।
गर विदाई हो मेरी तो,तुम रोने भी घर नहीं आए,
ऐसे देश में,अब पर्व की उत्साह कैसे मनाऊं।
बिन तेरे मेरे दिल के टुकड़े,सोना,हीरे मेरे भइया,
बोलो शेरे ए दिल,भैय्या मैं राखी कैसे मनाऊं।
🇮🇳 जय हिन्द वन्देमातरम् 🇮🇳
✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍
सैन्य परिवार,सदस्य
मुंगेली - छत्तीसगढ़
7828657057