Monday, September 23, 2019

आज का एक और संदेश

*💧🍀☘🍀☘🙏🏻☘🍀☘🍀💧*
*किसी का सरल स्वभाव उसकी कमज़ोरी नहीं होता है*
*संसार में पानी से सरल कुछ भी नहीं है, किन्तु उसका बहाव बड़ी से बड़ी चट्टान के भी टुकड़े कर देता है ..!!!*
*🌹🌹शुभ प्रभात🌹🌹*
*💧🍀☘🍀☘🙏🏻☘🍀☘🍀💧*

आज का संदेश

📿 *प्रातः विचार* 📿

           *किसी को गलत,*
     *समझने से पहले एक बार,*
     *उसके हालात समझने की,*
         *कोशिश जरूर करें...*
        *हम सही हो सकते हैं...*
           *लेकिन मात्र हमारे*
               *सही होने से ,*
           *सामने वाला गलत*
           *नहीं हो सकता..ॐ.!!!*

           🎗 *शुभ प्रभात*🎗

आज का सुविचार


🙏🙏
*सभी को सुख*
*देने की क्षमता,*
*भले ही आप के हाथ में न हो...!*
*किन्तु किसी को*
*दुख न पहुँचे,*
*यह तो आप के हाथ में ही है..*!!*

*हमेशा दूसरों का साथ दे,*
*पता नहीं ये पुण्य*
*ज़िंदगी में कब आपका साथ दे जाए.*

       *🌹सुप्रभात🌹*

Sunday, September 22, 2019

आज का सुविचार

*मन को समझने वाली ‘माँ ‘और भविष्य पहचानने वाला ‘पिता’*

*यही दोनों इस दुनिया के एकमात्र ज्योतिषी है*
 
🙏🙏  शुभप्रभात🙏🙏                
🚩🙏जय जय श्री राम🙏🚩

22 सितंबर जन्म तिथि, देबव्रत सिंह

22 सितम्बर/ *जन्म-दिवस*

मधुर वाणी के धनी *देबव्रत सिंह*

*देबू दा* के नाम से प्रसिद्ध श्री देबव्रत सिंह का जन्म 22 सितम्बर, 1929 को बंगाल के दीनाजपुर में हुआ था, आजकल यह क्षेत्र बांग्लादेश में है; मुर्शिदाबाद जिले के बहरामपुर में उनका पैतृक निवास था। श्री भवानी चरण सिंह उनके पिता तथा श्रीमती वीणापाणि देवी उनकी माता थीं, चार भाई और तीन बहिनों वाले परिवार में देबू दा सबसे बड़े थे; उनकी शिक्षा अपने पैतृक गांव बहरामपुर में ही हुई, पढ़ने में वे बहुत अच्छे थे मैट्रिक की परीक्षा में अच्छे अंक लाने के कारण उन्हें छात्रवृत्ति भी मिली थी।

बंगाल में श्री शारदा मठ का व्यापक प्रभाव है, यह परिवार भी परम्परागत रूप से उससे जुड़ा था, अतः घर में सदा अध्यात्म का वातावरण बना रहता था। उनकी तीनों बहिनें मठ की शरणागत होकर संन्यासी बनीं, देबू दा भी वहां से दीक्षित थे, यद्यपि वे और उनके छोटे भाई सत्यव्रत सिंह प्रचारक बने।

*देबू दा* छात्र जीवन में ही स्वयंसेवक बन गये थे, बाल और शिशुओं को खेल खिलाने में उन्हें बहुत आनंद आता था, उनका यह स्वभाव जीवन भर बना रहा। अतः लोग उन्हें *छेले धोरा* (बच्चों को घेरने वाला) कहते थे; संघ पर प्रतिबंध के विरोध में 1949 में सत्याग्रह कर वे जेल गये।

इसके बाद उन्होंने कुछ समय सरकारी नौकरी की, शिक्षानुरागी होने के कारण इसी दौरान उन्होंने होम्योपैथी की पढ़ाई करते हुए डी.एम.एस. की उपाधि भी प्राप्त कर ली। उन दिनों शाखा में एक गीत गाया जाता था, जो देबू दा को बहुत प्रिय था *.*. इसमें *देशसेवा के पथिकों को सावधान किया जाता था कि इस मार्ग पर स्वप्न में भी सुख नहीं है, यहां तो केवल दुख ही दुख है, अपने पास यदि  धन-दौलत है, तो उसे भी देश के लिए ही अर्पण करना है;* इस गीत से प्रभावित होकर उन्होंने नौकरी छोड़ दी और प्रचारक बन गये।

सर्वप्रथम उन्हें आसनसोल जिले में भेजा गया, क्रमशः उनका कार्यक्षेत्र बढ़ता गया और वे उत्तर बंगाल के संभाग प्रचारक बने, देबू दा से भेंट और उनकी प्यार भरी मधुर वाणी से प्रचारक और विस्तारकों की आधी समस्याएं स्वतः हल हो जाती थीं; आपातकाल में वे पुलिस की निगाह में आ गये और जेल भेज दिये गये, वे बहुत कम खाते और कम ही बोलते थे; बंगाल में *विद्या भारती* का काम प्रारम्भ करने तथा कई नये विद्यालय खोलने का श्रेय उन्हें ही है।

1992 में भारत सरकार ने *तीन बीघा क्षेत्र* बंगलादेश को देने का निर्णय किया, बंगाल की जनता इसके घोर विरुद्ध थी; अतः भारतीय जनता पार्टी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जैसी कई देशभक्त संस्थाओं ने *सीमांत शांति सुरक्षा समिति* बनाकर देबू दा के नेतृत्व में इसके विरुद्ध भारी जनांदोलन किया; 25 जून, 1992 को आडवानी जी भी इस आंदोलन में शामिल हुए। इस आंदोलन में देबू दा की समन्वयकारी प्रतिभा तथा नेतृत्व की क्षमता प्रगट हुई, वे इसमें गिरफ्तार भी हुए थे; 1993 में उन्हें बंगाल में भारतीय जनता पार्टी का संगठन मंत्री बनाया गया, इस दायित्व पर वे 2003 तक रहे।

गुणग्राही *देबू दा* कला, साहित्य और संस्कृति के प्रेमी थे। वे *अवसर* नामक पत्रिका के संचालक सदस्य थे, व्यस्तता के बीच भी वे प्रतिदिन ध्यान एवं पूजा अवश्य करते थे। वृद्धावस्था में वे सिलीगुड़ी के संघ कार्यालय (माधव भवन) में रहते थे, 13 अप्रेल को मस्तिष्काघात के बाद उन्हें चिकित्सालय ले जाया गया, जहां 26 अप्रेल, 2013 को उनका देहांत हुआ।

*देबू दा* ने काफी समय तक बंगाल के प्रांत प्रचारक श्री वसंतराव भट्ट के निर्देशन में काम किया था, यह भी एक संयोग है कि उसी दिन प्रातः कोलकाता के संघ कार्यालय पर वसंतराव ने भी अंतिम सांस ली थी।

(संदर्भ : स्वस्तिका 6.5.13 तथा 27.5.13)
                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

एक पाप से सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं

*अकर्मण्यता और विषय की समझ के बाद भी मौन रहने वालो के विषय में "श्रीकृष्ण" और माता रूक्मणीजी के बीच का बहुत ही उपयोगी सवांद ..*..

*एक पाप से सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं .*. महाभारत के युद्ध पश्चात जब *श्रीकृष्ण* लौटे तो रोष में भरी *रुक्मणीजी* ने उनसे पूछा?

युद्ध में बाकी सब तो ठीक था, किंतु आपने *द्रोणाचार्य* और *भीष्म पितामह* जैसे *धर्मपरायण* लोगों के वध में *क्यों साथ दिया?*

*श्रीकृष्ण* ने उत्तर दिया, ये सही है की उन दोनों ने जीवन भर धर्म का पालन किया किन्तु उनके किये *एक पाप* ने उनके सारे *पुण्यों को नष्ट कर दिया ..*..

*तो वो कौन से पाप थे?*

जब भरी सभा में *द्रोपदी* का *चीरहरण* हो रहा था तब यह दोनों भी वहां उपस्थित थे *.*. बड़े होने के नाते ये *दुशासन* को रोक  भी सकते थे, किंतु इन्होंने ऐसा नहीं किया *उनके इस एक पाप से बाकी सभी धर्मनिष्ठता छोटी पड़ गई ..*..

*और कर्ण!* वो तो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था, कोई उसके द्वार से खाली हाथ नहीं गया *उसके मृत्यु में आपने क्यों सहयोग किया उसकी क्या गलती थी?*

*हे प्रिये!* तुम सत्य कह रही हो, वह अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था और उसने कभी किसी को *ना* नहीं कहा *..*..

किन्तु जब अभिमन्यु सभी युद्धवीरों को धूल चटाने के बाद युद्धक्षेत्र में घायल हुआ भूमि पर पड़ा था *.*. तो उसने कर्ण से पानी मांगा, और *कर्ण जहाँ खड़ा था उसके पास पानी का एक गड्ढा था किन्तु कर्ण ने मरते हुए अभिमन्यु को पानी नहीं दिया ..*..

इसलिये उसका जीवन भर दानवीरता से कमाया हुआ *पुण्य* नष्ट हो गया *.*. बाद में उसी गड्ढे में उसके रथ का पहिया फंस गया और वो मारा गया *..*..

*हे रुक्मणी!* अक्सर ऐसा होता है, जब मनुष्य के आस पास कुछ गलत हो रहा होता है और वे कुछ नहीं करते और वे सोचते हैं की इस *पाप* के भागी हम नहीं हैं *अगर वे मदद करने की स्थिति में नहीं है तो सत्य बात बोल तो सकते हैं ..*..

परन्तु वे ऐसा भी नहीं करते और *ऐसा ना करने से वे भी उस पाप के उतने ही हिस्सेदार हो जाते हैं जितना पाप करने वाला ..*!!

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

आज का सुविचार

*खुशियों के लिए क्यों*
*किसी का इंतज़ार,*
*आप ही तो हो अपने*
*जीवन के शिल्पकार !*

*चलो आज मुश्किलों को हराते हैं*
*और  दिन  भर  मुस्कुराते     हैं !!*

🍁🍁 *सुप्रभात* 🍁🍁

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...