*मैं एक सनातनी हूँ .*. *सनातन मेरा धर्म .*. *सनातनी मेरी राष्ट्रीयता ..*!!
मेरा राष्ट्रीय ध्वज है क्षत्रि, ब्रह्म, शुद्र एवं वैश्य तेज युक्त वह *भगवा ध्वज* जिसे कभी सम्राट विक्रमादित्य ने हिन्दुकुश से लेकर अरब भूमि पर लहराया था *..*..
*मैं धर्म रक्षक हूँ*
*मेरी राष्ट्रीयता मेरे धर्म* से जुड़ी है क्योंकि राष्ट्र तो बनते है बिगड़ते है *.*. *अखंड होते है*, खंडित होते है पर मूल राष्ट्रीयता तो वह संस्कृति है जो इस महान अपराजेय व कालजयी सनातन धर्म से मिली है *..*..
*मेरे आदर्श मेरे नायक तो सनातन धर्म पताका को विश्व में फहराने वाले* मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, योगेश्वर श्री कृष्ण, महाऋषि गौतम, चरक, पाणिनि, जैमिनी, कणाद, चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य, आदि गुरु शंकराचार्य, कुमारिल भट्ट, आचार्य चाणक्य, चंद्रगुप्त मौर्य, पुष्यमित्र शुंग, शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, गुरु गोविन्द सिंह, स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद *जैसे महापुरुष व युगपुरोधा है ..*!!
*इस धर्म के सिद्धांतों आदर्शों ने ही इस मातृभूमि को संस्कृति के सर्वोच्च सिंहासन पर बिठाया था ..*..
*यदि ये धर्म ना हो तो राष्ट्रीयता का कैसा बोध⁉⁉⁉*
*धर्म नहीं रहेगा तो मैं भी इस राष्ट्र को मातृभूमि न मान कर साधारण भूमि मानूँगा .*. *अतः मेरे लिए मेरा धर्म ही सर्वोच्च है ..*!!
धर्म रहा तो इस पृथ्वी पर कही न कही राष्ट्र बन जाएगा *.*. नाम भी भारत वर्ष या आर्यावर्त रख लेंगे *.*. *पर धर्म न बचा तो राष्ट्र का अस्तित्व भी संकट में पड़ जाएगा ..*!!
*इसलिए हमारे पूर्वजों ने धर्म को आधार बना कर इस राष्ट्र का निर्माण किया ..*..
जो कभी जम्बूद्वीप एशिया में फैला था *.*. धर्म की सीमाएं सिमटी तो राष्ट्र भी *आर्यावर्त* (ईरान से इंडोनेशिया व मॉरीशस से मास्को) तक सिमट गया *..*..
*धर्म और संकुचित हुआ तो आज का भारत रह गया .*. *सनातन धर्म सिमटता गया और राष्ट्र भी खंड खंड में खण्डित होता गया ..*..
जो पाकिस्तान व बांग्लादेश कभी हमारा भाग था वह आज खंडित हो गया क्योंकि वहाँ से धर्म लुप्त हुआ और राष्ट्रीयता का बोध समाप्त हो गया *..*..
*वर्तमान के राजनेताओं ने धर्म के स्थान पर राष्ट्र को प्रमुखता दी ..*..
धर्मविहीन राष्ट्र कैसा होता है⁉⁉⁉
*ये आज के राष्ट्र को देखकर जान सकते हैं ..*..
पहले न कोई निर्धन था *..*..
यदि था तो मन में संतोष था *..*..
धनी व्यक्ति दयालू तथा दानी प्रवृत्ति के थे *.*. मन में न लोभ मोह था न ईर्ष्या एवं धर्म के प्रसार के कारण राष्ट्रीयता का भी बोध था *..*..
इतनी निष्ठा उस समय चोरों में भी होती थी *.*. आज वह निष्ठा समाज के रक्षकों से भी लुप्त हो गई क्योंकि धर्म नहीं रहा *..*..
*आज अधर्म फैला हुआ है इसलिए समाज में भी असंतोष भय निराशा का बोध है ..*..
राष्ट्रीयता लुप्त है या किसी विशेष अवसर पर ही राष्ट्रभक्ति का बोध होता है *..*..
*ऐसे में यदि खंड खंड हो चुके राष्ट्र को बचाना है तो माध्यम धर्म को बनाना होगा ..*..
*जब धर्म व संस्कृति बचेगी तो ही ये राष्ट्र भी बचेगा ..*..
*अतः धर्म सर्वोपरि है ..*..
*सनातन संस्कृति ही* राष्ट्र का उद्धार करने की क्षमता रखती है *..*..
*धर्म की जय हो*
अधर्म का नाश हो
*प्राणियों में सद्भावना हो*
विश्व का कल्याण हो
*हर हर महादेव .*. *जय श्री राम🚩*
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प्रस्तुति
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७