Sunday, March 22, 2020

मृत्यु का भय दूर कर दीजिए

*❗प्रणाम❗*
               *🙏वंदे मातरम्🙏*
               *‼ऋषि चिंतन‼*
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*❗ मृत्यु का भय दूर कर दीजिए❗*
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👉 मृत्यु से मनुष्य बहुत डरता है । *इस डर के कारण की खोज करने पर प्रतीत होता है कि मनुष्य मृत्यु से नहीं वरन् अपने पापों के दुष्परिणामों से डरता है ।* देखा जाता है कि यदि मनुष्य को कहीं कष्ट या विपत्ति के स्थान में जाना पड़े, तो वह जाते समय बहुत डरता और व्याकुल होता है । *मृत्यु से मनुष्य इसलिए घबराता है कि उसकी अंत:चेतना ऐसा अनुभव करती है कि इस जीवन का मैंने जो दुरुपयोग किया है, उसके फलस्वरूप मरने के पश्चात मुझे दुर्गति में जाना पड़ेगा ।*  जब कोई व्यक्ति वर्तमान की अपेक्षा अधिक अच्छी, उन्नत और सुखकर परिस्थिति के लिए जाता है, तो उसे जाते समय कुछ भी कष्ट नहीं होता, वरन् प्रसन्नता होती है । जो लोग अपने जीवन को निरर्थक, अनुचित और अनुपयोगी कार्यों में खर्च कर रहे हैं, वे लोग मृत्यु से उसी प्रकार डरते हैं, जैसे बकरा कसाईखाने के दरवाजे में घुसता हुआ भावी पीड़ा की आशंका से डरता है । 
👉 यदि आप मृत्यु के भय से बचना चाहते हैं, *तो अपने जीवन का सदुपयोग करना, अपने कार्यक्रम को धर्मंमय बनाना आरम्भ कर दीजिए ।* ऐसा करने से आपकी अंत:चेतना को यह विश्वास होने लगेगा कि भविष्य अंधकारमय नहीं, वरन् प्रकाशपूर्ण है । *जिस क्षण यह विश्वास हृदय में हुआ, उसी क्षण मृत्यु का भय भाग जाता है । तब वह "शरीर-परिवर्तन" को "वस्त्र-परिवर्तन" की तरह एक मामूली बात समझता है और उससे ज़रा भी डरता या घबराता नहीं ।*
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          *🇮🇳भारतमाता की जय🇮🇳*
                  *🇮🇳जयहिंद🇮🇳*

     सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

आज का संदेश

🔴 *आज का प्रात: संदेश* 🔴

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                                   *संपूर्ण विश्व में हमारा देश भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां अनेक धर्म , संप्रदाय के लोग एक साथ निवास करते हैं | धर्म , भाषा एवं जीवनशैली भिन्न होने के बाद भी हम सभी भारतवासी हैं | किसी भी संकट के समय अनेकता में एकता का जो प्रदर्शन हमारे देश में देखने को मिलता है वह अन्यत्र कहीं दर्शनीय नहीं है | हमें पढ़ाया गया है कि एकता में शक्ति है इसका अर्थ यहीं हुआ कि मजबूत बने रहने के लिए एकजुट रहना आवश्यक है | एकजुट होकर के किसी भी बड़े से बड़े संकट से लड़ा जा सकता है क्योंकि जब हम एक हो जाते हैं तो विरोधी चाहे जितना प्रबल हो उसके छक्के छूट जाते हैं | परतंत्र भारत को स्वतंत्र कराने के लिए हमारे पूर्वजों ने एकता का जो उदाहरण प्रस्तुत किया था वह संपूर्ण विश्व के लिए मिसाल बन गया था |  अंग्रेजों की सेना एवं उनके शासन को यदि भारत से खदेड़ा गया तो उसका एक ही कारण था "भारत की एकता" किसी एक नायक के आवाहन पर संपूर्ण भारत एकजुट होकर के किसी संकट से किस प्रकार ने पड़ता है इसका उदाहरण हमको कल अर्थात २२ मार्च २०२० को देखने को मिला |  शायद इसीलिए एकता की शक्ति को सर्वश्रेष्ठ शक्ति कहा गया है |  जब धर्म , भाषा एवं संप्रदाय का भेदभाव भुलाकर संपूर्ण भारत एक साथ खड़ा होता है तो विश्व के अन्य देश भारत की ओर आश्चर्य भरी दृष्टि से देखने लगते हैं , यही हमारे भारत की महानता है | हमारे देशवासी भले ही एक दूसरे के प्रति मन में वैमनस्यता रखते हों परंतु जहां बात देश के ऊपर आती है वहां सारी वैमनस्यता किनारे रख कर के एकजुटता का उदाहरण देखने को मिलता रहा है | यह सत्य है कि जब हम एकजुट हो जाते हैं तो हम किसी भी चीज या किसी भी मजबूत दुश्मन के साथ लड़ सकते हैं क्योंकि एकजुट होकर हम ज्यादा शक्तिशाली हो जाते हैं | जब मनुष्य एक इकाई के रूप में कोई काम करता है वह काम बहुत ही अच्छे ढंग से पूर्ण हो जाता है और वही काम जब मनुष्य अकेले करने का प्रयास करता है तो वह संघर्ष करते-करते कमजोर पड़कर थक जाता है |  इसलिए एकता की शक्ति को पहचानना परम आवश्यक है |*

*आज संपूर्ण विश्व में "कोरोना" नामक महामारी ने अपना पांव पसार लिया है ,  समस्त विश्व के चिकित्सक एक-एक करके इस संक्रमण के आगे कमजोर पड़ते जा रहे हैं | यद्यपि हमारा देश भारत भी इस संक्रमण की चपेट में है परंतु हिम्मत ना हारते हुए तथा इस संक्रमण के मर्म को समझते हुए हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री ने एक दिन के जनता कर्फ्यू का आवाहन किया और मैं  आश्चर्यचकित हूँ कि एक आवाहन पर पूरा भारत बंद हो गया | अनेक प्रकार के भेदभाव होने के बाद भी जिस प्रकार कल का वातावरण देखने को मिला वह अपने आप में एक अप्रतिम उदाहरण है | एकजुट होकर के पूरे देशवासियों ने दिनभर स्वयं को अपने घरों में बंद रखा और सायंकाल ५:०० बजते ही सैनिकों , चिकित्सकों एवं इस महामारी से लड़ने में सहायता करने वालों के सम्मान में जिस प्रकार एक साथ शंख , घंटा - घड़ियाल एवं थाली - ताली का वादन प्रारंभ हुआ वह इस संक्रमण के विरुद्ध शंखनाद तो था ही साथ ही संपूर्ण विश्व के लिए आश्चर्यचकित कर देने वाला था | यह दृश्य देख कर के हमारे भारत में रह रहे या विश्व के अन्य देशों में भारत को तोड़ने का दिवास्वप्न देखने वालों को यह समझ लेना चाहिए कि हम अनेक होते हुए भी संकट के समय में एक हो जाते हैं | जब हमने एक होकर के बड़े से बड़े संकट को भी पछाड़ दिया है तो यह विश्वास है कि कोरोना नामक इस संक्रमण को भी एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए परास्त करने में अवश्य सफल होंगे | आवश्यकता है सरकार के दिशा निर्देशों के पालन एवं स्वयं के सुरक्षा की क्योंकि जब हम सुरक्षित रहेंगे तभी देश भी सुरक्षित है और स्वयं की सुरक्षा स्वयं का बचाव करके ही हो पाएगी इसलिए घरों में रहकर एकजुटता का प्रदर्शन करते रहे |*

*जैसा कि यह ज्ञात हो गया है कि "कोरोना" का संक्रमण छुआछूत से फैलता है तो ऐसे में सरकार की आवाहन को ध्यान रखते हैं अपने घरों में बैठकर इस महामारी से लड़ने में एकजुट होकर सहयोगी की भूमिका निभाना हम सभी का कर्तव्य है |*

     🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

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सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

आज विशेष संदेश



           🔴 *आज का संदेश* 🔴
 
       👹 *"कोरोना" संक्रमण पर विशेष* 👹

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                                   *सनातन धर्म शास्वत तो है ही साथ ही दिव्य एवं अलौकिक भी है | सनातन धर्म में ऐसे - ऐसे ऋषि - महर्षि हुए हैं जिनको भूत , भविष्य , वर्तमान तीनों का ज्ञान था | इसका छोटा सा उदाहरण हैं कविकुल शिरोमणि परमपूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी | बाबा तुलसीदास जीने मानस के अन्तर्गत उत्तरकाण्ड में कलियुग के विषय में जैसा वर्णन किया है आज के मनुष्यों का चरित्र उसी प्रकार है | कहने का तात्पर्य यह है कि सनातन के महापुरुष त्रिकालदर्शी हुआ करते थे | वर्तमान समय में जिस महामारी ( केरोना) से सम्पूर्ण विश्न ग्रसित है उसकी भविष्यवाणी हजारों वर्ष पहले लिखी गयी नारद संहिता में भी देखने को मिलता है | जिसके अनुसार :-- "भूपावहो महारोगो मध्य स्यार्ध वृ्स्टय: ! दुखिनो जंतव: सर्वे वत्सरे परिधाविनो !!" अर्थात :- परिधावी नामक सम्वत्सर के उत्तरार्ध में असमय भारी जल वृष्टि होगी , शासकों में आपसी वैमनस्यता बढ़ेगी और ऐसी महामारी फैलेगी जो प्राणियों के दु:खदायी सिद्ध होगी | इस प्रकार आज हम जिस महामारी की चपेट में हैं उसका वर्णन पहले ही हो चुका है | इसके अतिरिक्त प्रत्येक पञ्चांग में वर्षफल लिखते हुए भी विद्वानों ने दिसम्बर माह से विषाणु युक्त महामारी फैलने का संकेत पहले ही कर दिया था | सनातन की प्रत्येक गणना ज्योतिषीय गणित पर आधारित होती है | ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि राहु एवं केतु पृथ्वी पर अप्रत्याशित परिणाम लेकर आते हैं | शनि जब अपने स्वराशि मकर में प्रवेश करता है तो असाध्य रोग ( महामारी) का कारक बनता है | इसके साथ ही अनेक ग्रह इस रोग की वृद्धि में सहायक हो रहे हैं | मंगल भी २२ मार्च को मकर राशि में प्रवेश करके स्थिति को गम्भीर बना सकता है परंतु सुखद स्थिति यह बन रही है कि ३० मीर्च को देवगुरु वृहस्पति के मकर राशि में र्रवेश करने से इस महामारी का प्रभाव कम होना प्रारम्भ हो जायेगा | शनि एवं गुरु की युति इस कोरोना नामक महामारी को कमजोर तो कर देगी परंतु प्रभावहीन यह तभी होगी जब मंगल मकर राशि से कुंभ पर जायेगा और यह स्थिति ४ मई को बन रही है | कुल मिलाकर मई तक मानवजाति पर भयंकर आपात स्थिति है | ऐसी परिस्थिति में सावधानी ही बचाव कही जा सकती है | सनातन धर्म में सृष्टि के आदि से अन्त तक का वर्णन प्राप्त होता है आवश्यकता उसके सूक्ष्म विन्दुओं पर ध्यान देते हुए अध्ययन करने की |*

*आज समस्त ज्ञान विज्ञान कोरोमा नामक संक्रमण से लड़ने में स्वयं को अक्षम पा रहे हैं | सनातन की दिव्य परम्परा का त्याग करके आधुनिक जीवन शैली को अपना चुके मनुष्य जीवन रक्षा के लिए पुन: सनातन की मान्यताओं की ओर लौटने को विवश दिख रहे हैं | मानवमात्र को किसी भी संक्रमण से सुरक्षित बमासे रखने के लिए ही सनातन धर्म में हाथ मिलाने की अपेक्षा हाथ जोड़कर प्रणाम करने की परम्परा रही है क्योंकि कोई भी संक्रमण स्पर्श करने से ही फैलता है | मैं आज सरकार की घोषणाओं (हाथ थोने , घर के बाहर पानी रखने आदि) को सुनकर विचार करता हूँ कि ईज जो घोषणा की जा रही है यह दिशा निर्देश तो सनीतन में बहुत पहले है परंतु हम सनातन की मान्यताओं को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं जिसका परिणाम महामारी के रूप में समुपस्थित है | शाकाहारी खाद्य पदार्थों के गुणों का वर्णन करते हुए मांसाहार का निषेध इसीलिए किया गया है क्योंकि ुता नहीं कौन सा जीव किस संक्रमण से संक्रमित हो परंतु आज का मनुष्य भक्ष्य - अभक्ष्य खा करके अनेक प्रकार से स्वयं तो रोगी हो ही रहा है साथ ही समस्त मानव जाति को संक्रमित कर रहा है | संकट की इस घड़ी में खान पान का विशेष ध्यान रखते हुए किसी को भी छूने का प्रयास न करना ही श्रेयल्कर है | सावधानी , सतर्कता एवं संयम के द्वारा ही इस महामारी से स्वयं को सुरक्षित रखा जा सकता है | यदि  जीवन सुरक्षित है तो जीवन में अनेक आयोजनों में सम्मिलित होने का अवसर मिलता रहेगा इसलिए जीवन को सुरक्षित रखने के लिए सनातन की मान्यताओं का पालन करते हुए सरकार के द्वारा प्रसारित किये जा दिशा - निर्देशों का यथावत पालन करना ही स्वयं व समाज के हित में हैं |*

*कोरोना नामक भयंकर संक्रमणीय रोग से लड़ने एवं बचने के लिए धैर्य , संयम , सतर्कता , एवं सावधानी अपेक्षित है | अभी और कठिन समय उपस्थित होने वाला है ऐसे में विवेक का प्रयोग करके मानवमात्र की सुरक्षा - संरक्षा में सहयोगी की भूमिका हम सबको मिलकर निभाना है |*

 
        👹 *"जनता कर्फ्यू" पर विशेष* 👹

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                                   *मनुष्य जिस स्थान / भूमि में जन्म लेता है वह उसकी जन्म भूमि कही जाती है | जन्मभूमि का क्या महत्व है इसका वर्णन हमारे शास्त्रों में भली-भांति किया गया है | प्रत्येक मनुष्य मरने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करना चाहता है क्योंकि लोगों का मानना है कि स्वर्ग में जो सुख है वह और कहीं नहीं है परंतु हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि :-- "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" अर्थात :- अपनी जननी (माता) एवं जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है | अपनी जन्म भूमि की रक्षा - सेवा करना प्रत्येक मानव मात्र का कर्तव्य है | हमारे देश में अपनी जन्मभूमि की रक्षा करते हुए बलिदानियों का एक दिव्य इतिहास रहा है | देश की सेवा करने के अनेक रास्ते हैं , कोई चिकित्सक बनकर देश की सेवा कर रहा है , कोई राजनेता बनकर देश की सेवा कर रहे हैं तो सीमा पर तैनात जवान अपनी जान की बाजी लगाकर देश की सुरक्षा में दिन रात लगे रहते हैं | कहने का तात्पर्य है कि प्रत्येक मनुष्य अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहा है | कुछ लोगों का मानना कि देश की रक्षा करने का भार सिर्फ सरकार एवं शासन-प्रशासन पर है , देश की सीमाओं की रक्षा का भार देश के सैनिकों पर है , जबकि यह कदापि सत्य नहीं माना जा सकता है | प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि उसने जिस मिट्टी में जन्म लिया है उस मिट्टी की सेवा एवं रक्षा करता सेन - केन - प्रकारेण करता रहे | प्राइमरी की कक्षाओं में एक प्रार्थना पढ़ाई जाती थी !:--  "वह शक्ति हमें दो दयानिधे , कर्तव्य मार्ग पर डट जावें ! पर सेवा पर उपकार में हम जग जीवन सफल बना जावें !!" और अंत में कहा जाता था :-- "जिस देश राष्ट्र में जन्म लिया बलिदान उसी पर हो जावें !" इस प्रार्थना को धीरे धीरे प्राथमिक कक्षाओं से हटा दिया गया और उसका प्रभाव यह हुआ कि आज मनुष्य अपने स्वार्थ के आगे देश को भी बलिदान कर देना चाहता है | इतिहास साक्षी है कि जब भी हमारे देश पर कोई संकट आया है प्रत्येक भारतवासी उस संकट की घड़ी में एक साथ खड़ा होकर के देश को संकट से उबारने के लिए अपने प्राणों की बाजी भी लगाने से पीछे नहीं होता है , परंतु प्रत्येक देश में यदि सेवा एवं रक्षा करने वाले देश प्रेमी हुए हैं तो उसी देश में देश को पीछे धकेलने वाले भी पैदा होते रही हैं , जिसके कारण किसी भी राष्ट्र की दुर्गति होती रही है | यद्यपि यह नकारात्मक लोग अपने अभियान में सफल नहीं हो पाते ही परंतु फिर भी सकारात्मक कार्यों में अवरोध डालते रहते हैं | यह वह लोग हैं जिनको ना देश से मतलब होता है ना देश के वासियों से | ऐसे लोग शायद यह भूल जाते हैं कि इनका अस्तित्व तभी तक है जब तक देश का अस्तित्व है | जब देश ही नहीं रह जाएगा प्राण ही नहीं बचेंगे तो सारी नकारात्मकता धरी रह जाएगी | प्रत्येक देशवासी को अपने देश के लिए कुछ न कुछ अवश्य करते रहना चाहिए क्योंकि मनुष्य की पहचान उसके राष्ट्र से ही होती है |*

*आज संपूर्ण राष्ट्र ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व "कोरोना" नामक महामारी के संक्रमण से ग्रसित हो गया है , नित्य हजारों की संख्या में लोग काल के गाल में समा रहे हैं | चिकित्सक या शासनाध्यक्ष समझ नहीं पा रहे हैं कि कौन सा उपाय किया जाए जिससे कि इस संक्रमण को रोका जा सके | विश्व के सबसे बड़े वैज्ञानिक भी इस महामारी को रोकने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं | ऐसे में हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री ने १४ घंटे के "जनता कर्फ्यू" का आवाहन किया है | मैं सभी देशवासियों से निवेदन करना चाहूंगा कि देश की सेवा करना प्रथम कर्तव्य है | सभी देशवासी यदि सेना में जाकर देश की सेवा नहीं कर पाए , चिकित्सक बनकर देश की सेवा नहीं कर पाये , राजनेता बनकर सेवा नहीं कर पाये और यदि देश सेवा करने का जज्बा मन में है तो १४ घंटे के लिए अपने घरों में बैठ कर के देश की सेवा करने का अवसर मिल रहा है तो उसे ना गंवायें | यह सेवा मात्र अपने ही लिए नहीं बल्कि मानव मात्र की भलाई के लिए जानी जाएगी | कुछ लोग प्रधानमंत्री के इस आवाहन को मानने के लिए तैयार नहीं दिख रहे है यह वही लोग हैं जिनको ना तो देश से मतलब है ना ही समाज से | हमारी सरकार ने हमसे कुछ नहीं मांगा है सिर्फ १ दिन के लिए घर से निकलने को मना किया है तो हमारा भी कर्तव्य है कि हम अपनी घरों में १ दिन के लिए बैठकर यदि इस महामारी को रोकने में सहायक की भूमिका में दिखाई पड़ते हैं तो हमको यह भूमिका अवश्य निभानी चाहिए |  हो सकता है कि हमारी १ दिन की सेवा से ही हमारे राष्ट्र को इस महामारी से कुछ हद तक छुटकारा मिल जाए , और यदि ऐसा होता है तो समझ लीजिए कि हमारा यह जीवन हमारे देश के काम आया अन्यथा देश का कर्ज कभी नहीं चुकाया जा सकता |  तो ऐसे में सभी देशवासियों का कर्तव्य है कि जो महामारी आज मनुष्यों को काल के गाल में ले जा रही है उससे लड़ने के लिए बिना कोई हथियार लिए १४ घंटे के लिए अपने घरों में बैठकर अपना सहयोग प्रदान करें |*

*आज हमें एकजुट होकर के कोरोना नामक महामारी से लड़ने के लिए अपने घरों में बैठकर अपने अपने धर्म के अनुसार धर्मग्रन्थों का स्वाध्याय करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करें कि शीघ्रातिशीघ्र हमें इस महामारी से छुटकारा मिले | यदि हम ऐसा कर लेते हैं तो यह सबसे बड़ी देश सेवा होगी |*

     🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
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Tuesday, March 17, 2020

मांसाहार पर लेख


मेरा तीन वर्ष पूर्व लिखा यह लेख आज के कोरोनावायरस जैसे इसी प्रकरण की एक आहट के संदर्भ मे था ।

*मांसाहार की आस्था - मानव अस्तित्व पर वास्तविक संकट*

 *विश्व की प्रत्येक सभ्यता एवं संस्कृति में मांसाहार हजारों वर्षों से चली आ रही सतत प्रक्रिया है* । विश्व की अनेक प्राचीन संस्कृति एवं सभ्यताएं समाप्त हो चुकी हैं जिनमें मिस्र, मेसोपोटामिया, बेबिलोनिया, सुमेरिया, दजला एवं फरात तथा माया सभ्यता मुख्य रूप से स्थान रखती हैं । इन सभ्यताओं में मांसाहार के अनेक स्पष्ट उदाहरण देखने को मिलते हैं, लेकिन यह विचारणीय तथ्य है कि मानव जाति की मांसाहारी प्रवृत्ति तो आज भी सतत अस्तित्व में हैं लेकिन मांसाहार पर पोषित होने वाली ये सभ्यताएं तो आज अस्तित्व में नहीं है । इन सभ्यताओं के अंत के पीछे मांसाहार एक सबसे बड़ा कारण रहा है भले ही मेरे इस विचार को पूर्वाग्रह से ग्रसित माना जाए या कोई आस्तिक अथवा मांसाहार एवं बलि प्रथा को अपनी आस्था से जोड़ने वाला अपने प्रति मेरे लेख को दुर्भावना से ग्रसित समझे, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता, अपितु अंतर इस बात से पड़ता है कि हम सभी सभ्यताओं के समाप्त होने के पीछे मांसाहार एक कारण हो सकता है इसका विश्लेषण अवश्य करें ।

 *वर्तमान में विश्व में भारत की आर्य एवं अन्य भारत उपमहाद्वीप की जातियां जो वैदिक संस्कृति का नवोन्मेष हैं भी अस्तित्व में है और सबसे प्राचीन सभ्यता होने का गर्वित करने वाला अलंकरण अपने साथ सुरक्षित कर रखे हुए हैं* । भारत की वैदिक संस्कृति भी कई उदाहरणों में मांसाहार करने वाली समझी जाती है जिसका उदाहरण प्रारंभिक वैदिक एवं उत्तरवैदिक तथा वेदांगों में और उपनिषदों में कहीं नहीं देखने को मिलता । केवल कुछ एक मुट्ठी भर वामपंथी इतिहासकार ही अपनी दुर्भावना गस्त विचारण के कारण वैदिक सभ्यता के स्थापकों को भी मांसाहारी बताती रही है जिसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है ।

 *भारत में मांसाहार पर स्वैच्छिक प्रतिबंध भारतीय युग प्रणाली के प्रमुख त्रेता युग में या उससे भी पूर्व सतयुग के प्रारंभ में स्थापित किया हुआ समझा जाना चाहिए* । _इसका उदाहरण विदेह राजऋषि जनक की राजसभा में बुलाई गई धर्म संसद में सबसे पहले देखने को मिला जिसका उदाहरण विभिन्न उपनिषदों में भी है।_ इस प्रकरण में यह कहा गया है कि मानव सभ्यता एवं संस्कृति को मांसाहार से न केवल स्थाई अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो सकता है अपितु अनेक महामारियां उत्पन्न हो सकती है, और भविष्य में कभी भी मांसाहार से कोई ऐसी महामारी उत्पन्न हो सकती है जिससे मानव समाज का इस पृथ्वी से अस्तित्व समाप्त हो सकता है, साथ ही ऋषि गण तथा सतयुग एवं त्रेता युग के अनुसंधानकर्ताओं ने यह विचार स्पष्ट रुप से अंगीकार किया था कि विभिन्न तरह के अनुसंधान कार्यों, शोधन कार्यों, वैज्ञानिक अन्वेषण तथा आध्यात्मिक क्रियाकलापों को संपन्न करने में मांसाहार से उत्पन्न होने वाले तामसी गुण, आलस्य, अकर्मण्यता, स्फूर्ति का विनाश तथा बौद्धिक रुप से मानव की तेजस्विता का कुंठित होना पाया गया, इसीलिए मांसाहार को तत्समय त्याज्य घोषित किया गया । लेकिन अनेक शताब्दियों तक मांसाहार को बहुत अधिक घृणित भारतीय सभ्यता द्वारा मानने के पश्चात भी विश्व के अनेक भागों में मांसाहार प्रचलित रहा है, यहां तक कि भारत में भी सभी जातियां एवं समुदाय तथा वर्णों के लोग भारत के मनीषियों द्वारा स्थापित मांसाहार से दूर रहने की व्यवस्था को भूलकर पुनः मांसाहार में लगे हैं तथा मानव अस्तित्व पर जो मांसाहार के कारण किसी महामारी के उत्पन्न होने से संकट आ सकता है उसके लिए स्वयं को उत्तरदाई बनाने पर तुले हुए हैं ।

 *प्रायः निकट वर्तमान में अनेक मांसाहार से उत्पन्न होने वाली महामारियों को देखा एवं अनुभव किया गया है जिनको देखकर यह आसानी से समझा जा सकता है कि अगर कोई महामारी मांसाहारियों के मांसाहार करने की आदत के कारण प्रसारित होकर इस तरह से मानव सभ्यता एवं संस्कृति को अपनी चपेट में ले ले की आधुनिकतम चिकित्सा पद्धति मे अनेक असाध्य बीमारियों के तरह ही वह महामारी भी असाध्य ही रहे और कोई उपाय खोजने से पहले ही मानव सभ्यता एवं संस्कृति समाप्त हो जाए तो क्या होगा* । मांसाहारियों को होने वाले विभिन्न प्रकार की महामारियाँ छोटे रुप में इस युग में भी देखने को मिली हैं जिनमें एंथ्रेक्स, चिकन पॉक्स, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, कैंसर, जीका वायरस आदि कुछ प्रमुख उदाहरण है । सोचिए अगर इनमें से कोई भी एक इस सीमा तक असाध्य हो जाए की उसका संपूर्ण मानव जाति में विस्तार हो जाए यहां तक कि शाकाहारियों में भी और कोई भी उपाय इस पर प्रतिबंध लगाने का खोजने से पहले ही पृथ्वी ग्रह के सभी मनुष्य इस में से किसी भी एक बीमारी के चपेट में आ जाएं तो क्या होगा अर्थात मानव अस्तित्व समाप्त हो जाएगा, यह कोई बताने वाली बात नहीं है केवल समझने वाली बात है और जिसको मानव को अपने अस्तित्व से जोड़ते हुए समझना आवश्यक है ।

 *जहां तक आस्था एवं विश्वास से जुड़े परंपराओं के पालन करने की बात है तो यह कोई छुपा हुआ रहस्य नहीं है की अनेक परंपराएं मनुष्य की तत्कालिक आवश्यकता एवं लाभ के लिए धर्म एवं आस्था के साथ उनके पूर्वजों ने जोड़ दिए, उन्ही में से ईद भी एक तत्कालिक आवश्यकता के अनुरूप पशु वध को आस्था के साथ जोड़ने वाली धार्मिक क्रिया के अतिरिक्त और कुछ नहीं है । मैं समस्त मुस्लिम जगत के समूह एक प्रश्न रखना चाहता हूं* ??? कि अगर अल्लाह निर्विकार, निराकार, एवं निर्विकल्प है तब जबकि वह भोजन करने, जल का पान करने से भी परे है, तब भी कुर्बानी जैसा शब्द उसी निर्विकार, निराकार एवं निर्विकल्प अल्लाह के लिए किया जाना है हास्यास्पद कृत्य के अतिरिक्त और कुछ नहीं है । भला जो मानव की तरह अस्तित्व में ही नहीं है निर्विकार है उसको पशुओं की कुर्बानी से क्या प्रयोजन है । दोनों बातें अर्थात कुर्बानी एवं अल्लाह के निर्विकार एवं निराकार होने के तथ्य एक दूसरे के प्रति पूर्णतया विरोधाभासी है और सहज मानवीय विचार एवं वैज्ञानिक तथ्यों पर खरे नहीं उतरते । अर्थात जिसका उपयोग करने का अंग नहीं है जो निराकार एवं निर्विकार है वह आप की कुर्बानी स्वीकार करने के लिए भी उपस्थित नहीं है ।

 *ईद पर कुर्बानी के संदर्भ में प्राचीन अरब क्षेत्र की भौगोलिक एवं पर्यावरण की स्थिति को ठीक से समझना आवश्यक है* । वास्तव में अधिकांश अरब प्रायद्वीप का क्षेत्र जो आज मुस्लिम पंथ का गढ़ है तथा मानवीय अस्तित्व के संकट और संघर्ष से गुजर रहा है एक विस्तृत रेगिस्तान में परिवर्तित हो चुका है । यह प्रक्रिया धीरे-धीरे लेकिन हजारों वर्षों में सम्पन्न हुई है । प्रारंभ के वर्षों में उन क्षेत्रों में बड़े स्तर पर कृषि किए जाने के उदाहरण मिलते हैं तथा वहां वन्य क्षेत्र रहे हैं लेकिन आज वहां ना तो विस्तृत मात्रा में खेती की जा सकती है और ना ही वन क्षेत्र बचे हैं उसका कारण वहां की भौगोलिक एवं पर्यावरण तंत्र को सुरक्षित ना रख पाना रहा हैब  अरब क्षेत्रों की भूमि के नीचे अत्यधिक पेट्रोलियम पदार्थों एवं गैस और ज्वलनशील तैलीय तरल का पाए जाना वहां पर प्राचीनकाल में समस्त भूभाग पर भयंकर वन्य क्षेत्रों के अस्तित्व का उदाहरण है । क्योंकि वृक्ष ही हजारों वर्षों की प्रक्रिया के बाद भूमि के नीचे दबकर अंततः कोयला एवं पेट्रोलियम पदार्थों के रूप में परिवर्तित होते हैं । लेकिन आज अरब क्षेत्र में हरियाली नाम की कोई चीज नहीं है, इस पर्यावरण की विनाश लीला के बाद मनुष्य को जब अपना अस्तित्व संकट में दिखाई पड़ा तब अरब क्षेत्र के मुस्लिमों के पूर्वजों ने जो बचे खुचे जानवर थे उन पर गुजारे के लिए मांसाहार एवं बलि की प्रथा को, कुर्बानी की प्रथा को आस्था से एवं धर्म से जोड़ते हुए अवश्यक बना दिया और मांसाहार की प्रक्रिया बच्चों से लेकर वृद्ध एवं महिलाओं में चल निकली जिसको अज्ञानतावश आज भी मनुष्य आस्था से जोड़े हुए हैं । मुस्लिमो के अतिरिक्त अन्य धर्मों समुदायों के लोग जो भी मांसाहार करते हैं उनके पीछे तो यह आस्था का प्रश्न भी नही है बस स्वाद के लिए मांसाहार करके अपने ही बौद्धिक उन्नयन पर कुठाराघात करते हैं । आस्था एवं परंपरा के नाम पर पशुवद्ध मुस्लिमों के ही धर्म एवं कुरान में दिए गए तथ्यों के विपरीत एक कृत्य है । अरब क्षेत्र के समस्त मुस्लिम देशों में हरियाली को विशेष महत्व दिया गया है, अब हरियाली तो वहां बची नहीं इसीलिए हरे रंग को धर्म से जोड़ दिया गया, उसके पीछे निश्चित रूप से दूरदर्शी मुस्लिम आध्यात्मिक व्यक्तियों द्वारा यह स्थापित करने का प्रयास किया कि इस पृथ्वी के अस्तित्व के लिए हरियाली अत्यधिक आवश्यक है, अतः हरे रंग से प्रेम करो एवं वृक्षों को लगाओ । लेकिन मुस्लिम मौलवियों ने मुल्लाओं ने पर्यावरण की सुरक्षा का जो संदेश उनके पूर्वजों के द्वारा दिया गया हरे रंग को ग्रहण करवाकर, उसको तो अपने मन मस्तिष्क में नहीं उतारा उलटे अपने घर, दीवारें तथा कपड़े अवश्य ही हरे रंग के पहनने का प्रचलन शुरू किया, यह तब हुआ जब की वास्तविक संदेश को उन्होंने प्रचलन में नहीं लिया और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए वृक्षों के रोपण की ओर ध्यान नहीं दिया । अब हरे रंग से तो प्राण वायु (ऑक्सीजन) निकलेगी नही, वो तो वृक्ष से निकलेगी वह आप लगाते नही । समस्त विश्व में समस्त मुस्लिम समुदाय के हर एक वर्ग द्वारा हरे रंग का ध्वज एवं कपड़े तथा घरों एवं दीवारों में रंग रोगन लगाया तो जाता है लेकिन वृक्षारोपण का जो वास्तविक संदेश है वही उनके द्वारा ग्रहण नहीं किया जाता । अपितु सबसे अधिक विश्व के सभी हिस्सों में वृक्षों को अगर कोई नुकसान पहुंचाता है तो लकड़ी के कारोबारी मुस्लिम ही इस कार्य में संलग्न है । उनकी इस तरह की कार्य विधियां भविष्य में विश्व के अनेक स्थानों में भी अरब क्षेत्र जैसी स्थिति पैदा कर सकती है जो कि हरियाली के समाप्त होने का कारण सिद्ध होंगे । मुस्लिम धर्म के पूर्वजों द्वारा जो बलिदान एवं कुर्बानी की प्रथा शुरू की गई थी उसको ही ईद पर ईश्वर के प्रति कुर्बानी के रूप में जोड़ दिया गया और वह विश्व के प्रत्येक हिस्से में अनियंत्रित एवं अव्यवस्थित रुप में आज देखने को मिलती है । करोड़ों पशु विश्व के विभिन्न हिस्से में कत्ल किए जाते हैं जिससे निकलने वाला रक्त और उनके सड़े हुए, बचे हुए मांस से उठने वाली दुर्गंध इस पृथ्वी के संपूर्ण वायुमंडल को दूषित करती हैं, बीमारियों को जन्म देती है जल एवं मिट्टी को भी विभिन्न हानिकारक तत्वों से भरकर हानि पहुंचाती है । एक ओर जहां मांसाहार से विभिन्न प्रकार की महामारियां उत्पन्न हो रही है दूसरी ओर कुर्बानी जैसे अनावश्यक प्रथाओं से पृथ्वी का पर्यावरण एवं वायुमंडल धीरे-धीरे मनुष्य के रहने लायक कठिन होता जा रहा है । अब क्योंकि विश्व में शाकाहार द्वारा भी अपने अस्तित्व को बचाए रखा जा सकता है, अनेक वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा पर्याप्त मात्रा में दालें, सब्जियां एवं अनाज उत्पन्न किया जा सकता है, इसीलिए मुस्लिम जीव जगत को तथा सभी मांसाहारी हिंदू, मुस्लिम, सिख इसाई को यह समझना होगा कि मानव अस्तित्व की सुरक्षा के लिए और इस ग्रह के पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र को बचाए रखने के लिए उन्हें मांसाहार छोड़ देना चाहिए । ईद पर कुर्बानी एवं मांसाहार किसी भी प्रकार से आस्था एवं धर्म से जुड़ा नहीं है और ना ही उनकी कुर्बानी निर्विकार एवं निराकार अल्लाह द्वारा स्वीकार की जा सकती है । अनेक सभ्यताओं में मानव अस्तित्व के हित में अनेक त्याज्य परंपराओं को छोड़ दिया है तथा मानव हित में मांसाहारियों को भी अपना मांसाहार छोड़कर, जनसंख्या पर नियंत्रण लगाकर शाकाहार की ओर लौटना चाहिए तथा वैदिक संस्कृति एवं सभ्यता और उपनिषदों में दिए गए भारतीय संदेश को ग्रहण करके एक स्वस्थ, स्वच्छ तथा उन्नत बौद्धिक मानवीय समाज के विकास में योगदान देना चाहिए । 
 *ईद पर विश्व भर के मुस्लिमों को मेरा आज यही संदेश है* ।

                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

आज का संदेश


           🔴 *आज का संदेश* 🔴

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                                *इस संसार का सृजन करने वाले परमपिता परमात्मा ने मनुष्य को सब कुछ दिया है , ईश्वर समदर्शी है उसने न किसी को कम दिया है और न किसी को ज्यादा | इस सृष्टि में मनुष्य के पास जो भी है ईश्वर का ही प्रदान किया हुआ है ,  भले ही लोग यह कहते हो कि हमारे पास जो संपत्ति है उसका हमने अपने श्रम और बुद्धि से प्राप्त किया है परंतु उनको यह विचार करना चाहिए कि श्रम करने के लिए बल एवं बुद्धि तो ईश्वर की ही प्रदत्त की हुई है | इस संसार में सब के पास बुद्धि हैं सबके पास काम करने के लिए बल है परंतु फिर भी सब की संपत्ति बराबर नहीं होती , यदि सब कुछ श्रम एवं बुद्धि से ही संभव होता तो सब की संपत्ति , शक्ति एवं कमाई समान होनी चाहिए थी परंतु ऐसा देखने को नहीं मिलता है , इससे स्पष्ट हो जाता है कि देने वाला कोई और ही है जिसे ईश्वर कहा जाता है |  सभी के जीवन में प्राय: एक समय ऐसा आता है जब उसका बुद्धिबल धनबल एवं श्रमबल खत्म हो जाता है तब मनुष्य ईश्वर से मांगना प्रारंभ करता है और ईश्वर उसकी मांग को पूरी भी करता है | विचारणीय बात यह है कि संसार का पालन जब ईश्वर ही कर रहा है तो मांगो चाहे ना मांगो देना उसका काम है | यदि वह देने वाला ना होता तो जीव के पैदा होने के पहले मां के स्तनों में दूध ना आता | विचार कीजिए यदि ईश्वर मां के स्तनों में दूध का अनुदान ना देता तो क्या कोई ऐसी प्रक्रिया थी जो कि मां के स्तनों को दूध से भर सकती थी ?  शायद आज तक वैज्ञानिक भी ऐसा कोई आविष्कार नहीं कर पाए हैं जिससे कि ऐसा कर पाना संभव हो पाता , इससे सिद्ध हो जाता है कि ईश्वर के द्वारा मनुष्य को असीम अनुदान दिया जाता है | अब उसका उपयोग मनुष्य कैसे करता है उसके ऊपर निर्भर है क्योंकि भगवान ने प्रत्येक व्यक्ति को जीवन एवं जीवन शक्तियां बीज रूप में प्रदान की है यदि मनुष्य उसका उपयोग ही ना करें तो बीज अंकुरित नहीं हो सकता है | चौरासी लाख योनियों में ईश्वर ने मनुष्य को जितना दे दिया है वह अनंत है परंतु मनुष्य ईश्वर के द्वारा दी हुई शक्तियों को ना जागृत करके मूर्छित अवस्था में पड़ा रहता है जिससे कि ईश्वर की दी हुई शक्तियां पंगु हो जाती हैं |  मनुष्य को ईश्वर का ही अंश कहा गया है अर्थात जितनी शक्तियां भगवान में हैं लगभग वह सारी शक्तियां बीज रूप में मनुष्य में भी विद्यमान हैं और वह बीज है कर्म एवं ज्ञान का | मनुष्य अपनी इस ज्ञान शक्ति को जान नहीं पाता है एवं उसका उपयोग न कर पाने के कारण जीवन भर शिकायत करता रहता है कि ईश्वर ने आखिर हमें दिया क्या है ? ईश्वर के असीम अनुदान को जानने का प्रयास प्रत्येक मनुष्य को अवश्य करना चाहिए क्योंकि यदि ईश्वर के द्वारा प्रदत्त असीम शक्तियों का उपयोग मनुष्य नहीं कर पाता है तो उसका मानव जीवन अंधकार के अंधेरे में भटकते हुए समाप्त हो जाता है |*

*आज प्रायः लोग कहते हुए सुने जा सकते हैं कि ईश्वर ने दूसरों को ज्यादा दिया हमें कम ,  यह भी लोग कहते हैं  की आखिर ईश्वर ने हमको दिया क्या है ? ईश्वर पर मनुष्य के द्वारा लगाया गया यह मिथ्या आरोप है , क्योंकि ईश्वर ने बिना भेदभाव के सबको समान रूप से शक्तियां वितरित की हैं | मैं बताना चाहूंगा कि जिस प्रकार एक पिता के कई पुत्र होते हैं तो पिता अपनी संपत्ति का बंटवारा सभी पुत्रों में समान रूप से करता है | उन्हीं पुत्रों में से कोई उस संपत्ति को दुगनी चौगुनी बढ़ा लेता है तो कोई अपनी कर्म - कुकर्मों के द्वारा उसे संपत्ति को नष्ट कर देता है और अपना पतन कर देता है | ठीक उसी प्रकार ईश्वर ने मनुष्य को असीम शक्तियां समान रूप से दी हैं परंतु कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं जो ईश्वर द्वारा प्रदत्त शक्तियों को निरंतर जागृत करते हुए निरंतर उन्नति के पथ पर अग्रसर होते हैं उन्हीं में से कुछ ऐसे होते हैं जो कि अपनी शक्तियों का अनुचित प्रयोग करके उसको नष्ट करते हुए पतित हो जाते हैं | कहने का तात्पर्य है कि ईश्वर ने हमें क्या दिया है यह विचार करने का प्रश्न नहीं है बल्कि मनुष्य को विचार करना चाहिए कि ईश्वर ने हमको जो कुछ दे दिया है हम उसका उपयोग किस प्रकार कर रहे हैं ?  ईश्वर समदर्शी है और किसी के साथ भेदभाव नहीं करता है परंतु मनुष्स उसकी समदर्शिता को नहीं देख पाता और उस पर मिथ्यारोपण किया करता है | ईश्वर ने मनुष्य को जो दे दिया है और शायद अन्य किसी प्राणी को नहीं प्राप्त है इसलिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए यह विचार करना चाहिए कि ईश्वर ने मनुष्य को अपार आनंद शक्ति का दान दिया है , परंतु मनुष्य अपनी मूर्खता के कारण उसका वितरण नहीं कर पाता है और बिना वितरण किए आनंद का अनुभव नहीं हो पाता | इसलिए प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर द्वारा प्रदत शक्तियों का समुचित प्रयोग लोक कल्याण में करते हुए अपने जीवन को निरंतर उन्नतशील बनाने का प्रयास करते रहना चाहिए |*

*इस संसार में ईश्वर ने सब कुछ भर दिया है उसका उपयोग मनुष्य किस प्रकार करता है यह मनुष्य की वैचारिक शक्ति पर निर्भर करता है | वही मनुष्य अपने लक्ष्य तक पहुंच पाता है जो ईश्वर को कभी ना भूल कर भी उसके द्वारा दिए गए अनुदान को सकारात्मकता से ग्रहण करते हुए निरंतर अपने कर्म पथ पर अग्रसर रहता है |*

     🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

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सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना-----*🙏🏻🙏🏻🌹

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                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
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आज का संदेश


          ‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼

              🏹 *खेमेश्वर के तीर* 🏹

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                *सनातन धर्म में ब्रह्मा , विष्णु एवं भगवान शिव को सर्वश्रेष्ठ देव माना गया है परंतु इनसे भी ऊँची पदवी है सद्गुरु की | बिना सद्गुरु के न तो मनुष्य को ज्ञान प्राप्त हो सकता है और न ही मोक्ष | हमारे सद्गुरु कैसे हैं यह देखने की अपेक्षा हम कैसे हैं यह देखने का प्रयास करना चाहिए , परंतु आज लोग त्रिदेवों के भी ऊपर के पद पर पदासीन गुरुसत्ता में भी दोष ढूँढ़ते दिख रहे हैं जो कि कदापि उचित नहीं कहा जा सकता | यदि शिष्य गुरु के प्रति पूर्ण समर्पित भाव से आता है तो गुरु के अनदेखा करने पर भी वह "एकलव्य" की भाँति सर्वश्रेष्ठ बन सकता है | अत: यह भ्रान्ति मस्तिष्क में बिल्कुल नहीं रखना चाहिए कि हमने जो गुरु किया है उसके माध्यम से हमारा उद्धार होगा कि नहीं ? अत: पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास के साथ गुरुसत्ता का सामीप्य प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए |*

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                  *शुभम् करोति कल्याणम्*

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                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
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कोरोनावायरस


*// केरोना //*
 माना कि आप परुष ही नहीं साहब !महापुरुष है, आत्मा नहीं प्यारे महात्मा हैं, सर्वसुख ऐश्वर्य सम्पन्न हैं, सारा जगत आपकी मुट्ठी में कैद है, आप तो महाविज्ञानी और महाशूरवीर हैं, चन्द्रमा और मंगल जैसे ग्रहों पर भी जाने का सामर्थ्य रखते हैं और क्या कहें साहब ! *"अस सब भाँति अलौकिक करनी महिमा जासु जाइ नहीं बरनी"---आपकी महिमा ही अलौकिक है, भला आपकी महिमा का बखान करने का सामर्थ्य कौन कर सकता है? जी हाँ यही सत्य है, किन्तु महोदय एक वायरस ने आपको तो क्या समस्त विश्व को ही प्रभावित कर दिया, सारी शूरवीरता, भौतिक बल और ज्ञान को परास्त कर दिया, जबकि ऐसे एक-दो नहीं महात्मन ! करोड़ों वायरस हैं इस जगत में, जो शनैः  शनैः इस अनमोल मानव जीवन को प्रभावित कर रहे हैं, जिनका नाम आज भी बड़े-बड़े मनीषी जन भी नहीं जानते हैं और जान भी नहीं सकते हैं क्योंकि बिना रामकृपा के जानना भी दुष्कर और असम्भव है--- *"जेहि जानहु सो देहि जनाई l"* सोच रहा था यदि--- *"करहिं आहार साक फल कंदा सुमिरहिं ब्रम्ह सच्चिदानंदा"*---जैसे सिद्धांत का पालन किया होता तो नि:संदेह आज भारत तो क्या सम्पूर्ण विश्व केरोना जैसे वायरस से इतना भयभीत न होता l 
केरोना जैसे प्राण घातक वायरस से सुरक्षित रहने का एक ही शाश्वत साधन है रामत्व धारण करना, रामत्व की सानिध्यता में रहना, रामत्व को ही स्वजीवनाधार, आत्माधार और प्राणाधार बनाना--- *"करहिं आहार साक फल कंदा सुमिरहिं ब्रम्ह सच्चिदानंदा l"* मानवता की सानिध्यता में रहना l जिसे आज सम्पूर्ण विश्व मान रहा है l क्या विचार हैं आपके?
*🙏🚩जय सियाराम जय श्री परशुराम*


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न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...