Thursday, April 23, 2020

धार नहीं संगम हो जाते

धार    नहीं    संगम  हो  जाते 
चोट   नहीं   मरहम  हो  जाते 

बन सकती थी अपनी कहानी 
तुम  जो मेरे हमदम  हो  जाते 

 जान   खुशी   से  दे  देता  मैं 
तुम जो  गर  जानम  हो जाते 

हाँथ   पकड़    लेते  जो  मेरा
तो   काँटे  कुछ  कम हो जाते 

तेरे    एक   तबस्सुम   से   ही 
चूर   मेरे   सब  गम  हो  जाते

तुम   हमको  अपना   लेते तो
दूर    दुखों  से  हम  हो  जाते

                   
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

इनायत है आपने हमें दिल में जगह दी है!


इनायत है आपने हमें दिल में जगह दी है!
जिंदगी को नई सूरत जीने का वजह दी है।

गुजरने दे लम्हें दीया चाह का जलाये फिर!
उल्फत से वास्ता जोड़े वफ़ा ने गिरह दी है।

शबोरात यूँ ढलती जाये रहे न फासला कोई!
मुहब्बत का चाहत फिर नई सी सुबह दी है।

धड़कता था  अक्सर  दिल गम ए जुदाई में!
मिलते ही मिला जीवन खुशी इस तरह दी है।

सजायें आ आशियां हम मन मनसे मिलाये यूँ!
दर्मियां हों एकदूजे के सदा रब ने पनाह दी है।

इनायत है आपने हमें दिल में जगह दी है!
जिंदगी को नई सूरत जीने का वजह दी है।

                   
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

तेरी सूरत पे जब जब हमनें ,,,,,,,,,,,,,,,,!

तेरी सूरत पे जब जब हमनें ,,,,,,,,,,,,,,,,!

तेरी सूरत पे जब जब हमनें मन अपना हारा |
तब तब आगे बढ़ के दिया  तुमनें हमें सहारा |
तेरी सूरत पे जब जब हमनें ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!

जब तेरा  सम्बल  पाया दूर गया दोष विकार |
अंतस से  निकाला  उजियारा  हटा अंधियार |
याद नहीं तेरी छटा  को हमने कब था निहारा |
तेरी सूरत पे जब जब हमनें ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!

दृष्टि समाई  है अगम अगोचर छटा में अपार |
निराशा ढली  जब चेतन  में  आया उजियार |
तू तब आया जब  जब हमने तुझको पुकारा |
तेरी सूरत पे जब जब हमने ,,,,,,,,,,,,,,.,

ये सांवली छटा दुनिया में सबसे मस्तानी है |
इसीलिए तो सारी दुनिया तेरी ही दिवानी है |
मेरे पथ जब जब आए कांटे तू ने उसे टारा |
तेरी सूरत पे जब जब हमने ,,,,,,,,,,,,,,,!

तेरे मेरे मध्य  नाम का  अंतर नही रह गया |
इसीलिए दुनिया में मेरा हर काम सध गया |
तेरी है सारी दुनिया  कैसे  कहूं तू है हमारा |
तेरी सूरत पे जब जब हमनें ,,,,,,,,,,,,,,!

                   
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

जातिवाद का विष


*⚜जातिवाद का विष*⚜

*⛳👇🏻जब कोई आपकी जाति पूछे और आपको बताने में हीनभावना हो तो,ऐसे किसी आदमी को तर्कयुक्त यह जवाब देना की मै तो मनुष्य जाति का हूं.. ✋🏻😊आप किस जाति के हो ? इतना सुनते ही उसे मिर्ची लग जायेगी,,, और जातिवाद पर करारा जवाब भी होगा ।*😊✔

*आईये जाति का मतलब समझे*⁉✋🏻👇🏻👇🏻

*जाति व्यक्ति की पहचान नहीं उसका उपनाम है,,, जो हमारे ऋषि मुनियों द्वारा लगाया गया,,, जो आज सरनेम बन गया जिसको हम जातिवाद कहते है*👌🏻✔

*उदाहरण के तौर पर ऋषि गौतम, ऋषि भारद्वाज, ऋषि कश्यप, ऋषि अत्रि तथा जिन्होंने ने वेदों का पाठ किया वो द्विवेदी, त्रिवेदी, चतुर्वेदी हो गए,,,, इसमें जातिवाद कहा से आया यह तो कार्य शैली है।*😳👌🏻✔

*धर्म प्रचार व रक्षा करने का कार्य करने वाले दसनामी या गोस्वामी, चमड़े का कार्य करने वाले चमार, मैला ढोने वाले धानुक, मंडल,तैल संबंधित तैलिक, दूध का व्यापार करने वाले यदुवंशी, कपड़े धोने वाले धोबी, समाज की रक्षा करने वाले क्षत्रीय और व्यापार करने वाले वैश्य लेकिन यह सब तो कार्य शैली थी जाति नहीं।*😳✔👌🏻

*जाति कहते है पहचान को,,, ✋🏻जिसे पहचानने में किसी से पूछना न पड़े । इसे समझने के लिए ऐसे समझे यह दो प्रकार की होती है.. एक ईश्वरकृत दूसरी मनुष्यकृत ।*

*1.ईश्वरकृत जाति:- जैसे मनुष्यों की जाति जिसे हम दो हाथ दो पैर जो पुरूष और स्त्री के होते है उनको मनुष्य जाति कहते है,, क्या इनको पहचानने मे कोई समस्या है ?? नहीं ✋🏻✋🏻 क्योंकि यह ईश्वरकृत है,, और ईश्वर के काम अधूरे नही होते,, ऐसे ही पशु पक्षी, कीट-पतंगो की जातियां तो इनको भी हम पहचानते है हमे किसी से पूछना नही पडता की कौन मनुष्य है,,, कौन जानवर और कौन पक्षी है ।यह तो है ईश्वरकृत जातिया ।*

*2.मनुष्यकृत जाति:- यह जातियां समाज द्वारा हमे पहचान के रूप में समाजिक व्यवस्था अनुसार बनाई गई है, चाहे बुरी हो या अच्छी,,, तो झगडा ईश्वरकृत जातियों का नही है,, ✋🏻झगडा मनुष्यकृत जातियों का है क्योंकि इन मे खोट है, कमी है क्योंकि मनुष्य ईश्वर नही होते तो इनके काम भी कमियों वाले होते है,, यह अलग बात है की समाजिक बुराईयों के कारण जातियों को उंचा नीचा बनाया या समझा गया।*😊⛳

*👇🏻लेकिन हम सभी एक मनुष्य जाति के हैं ईश्वरकृत जाति के है यह बात है, मुख्य है और समझने लायक है तो आज से अपना मानवीय धर्म को समझे और जो मूर्ख जातिवाद को बढ़ावा देते हैं जाति पर कटाक्ष करते हैं, जाति पर उत्पीड़न शोषण करते है, उसे जाति का मतलब समझाये ।*🙏🏻⛳

*जागरुकता बहुत आवश्यक है जिससे समाज में फैले भ्रम को मिटाया जा सके और सनातनी पुनः एक होकर अपने धर्म और राष्ट्र की रक्षा कर सकें ।*🤝🏻😊

*सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की शुभ मंगल कामना 🙏🏻⛳वंदेमातरम_🙏🏻😊⛳*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Wednesday, April 22, 2020

भारतीय खटिया ( खाट ) पर सोने ( निंद्रा ) का लाभ


 
*⚜🚩 भारतीय खटिया ( खाट ) पर सोने ( निंद्रा ) का लाभ‼️ ⚜*

*संपूर्ण दुनिया आज भारत को पुन: विश्वगुरु 👳 मानने को तैयार है। हमने दुनिया को सब सिखाया है, आज का आधुनिक विज्ञान हमारे पूर्वजों 👳 की खोजों और उनके आविष्कार के सामने तुच्छ और बोना दृष्टिगोचर होता है*🙏🏻😳⛳

*आपको यह जानकर बहुत आश्चर्य 🙄 और गर्व 👍होगा कि हमारे पूर्वज,,, अर्थात हमारे दादा के दादा परदादा और उनके भी दादा,,, 👳 सब बहुत बड़े वैज्ञानिक थे...!!*😲😲

*🙏🏻⛳जी हां मित्रों,, हमारी 🚩 भारतीय संस्कृति में प्रत्येक वस्तु निर्माण या आविष्कार का सटीक और वैज्ञानिक कारण होता है,, और वह प्रकृति के नियमों का भी उल्लंघन नहीं करती।।*🙏🏻⛳😊

*ऑस्ट्रेलिया में डेनियल नाम का एक आदमी भारत की देसी खटिया ९९० ऑस्ट्रेलियन डॉलर ( हमारे ६२ हजार रुपए) में बेच रहा है , 🤷🏻‍♂और हम हैं कि 👉 इसे "आउट ऑफ फैशन मान" कर इसकी खटिया खड़ी कर रहे हैं । इसके फायदे फैशन के आगे बौने बन गए हैं ।* 😳✋🏻

👇🏻😊 *"सोने ( नींद ) के लिए" खटिया हमारे पूर्वजों 👳 की सर्वोत्तम खोज है । हमारे पूर्वजों को क्या लकड़ी को चीरना नही आता होगा? वह भी लकड़ी चीर के उसकी पट्टीयां बना कर डबलबेड 🛌बना सकते थे,. जिन्होंने वेद पुराण 📚 लिखे, वह डबलबेड 🛌 नहीं बना सकते थे क्या..?* 🤔

*आधुनिक साइंस 🔬ने विकास के नाम पर मानव 👨🏻‍⚕️ को केवल रोग दिये हैं,, और प्रकृति को दूषित किया है।*

*डबलबेड 🛌 बनाना कोइ रॉकेट-साइंस 🚀  नहीं है । ✋🏻 लकड़ी की पट्टीयों में कीलें ही तो  🔨 ठोकनी होती है । खटिया भी भले ही कोई साइंस न हो.. किंतु एक समझदारी है,, ✋🏻कि कैसे शरीर को अधिक आराम  लाभ मिल सके ⁉️ 😊 खटिया बनाना एक कला है 🙏🏻 उसे रस्सी से बुन कर बनाना पड़ता है और उस में १ कला का सहारा लगता है ।*😊⛳

*👇🏻😊 जब हम सोते हैं , तब सिर और पैर के अतिरिक्त पेट को अधिक रक्त की आवश्यकता होती है, क्योंकि रात हो या दोपहर हो लोग अधिकांश भोजन के उपरांत ही सोते हैं,, 🙏🏻😊 पेट की पाचन क्रिया के लिए अधिक रक्त की आवश्यकता होती है,, इसलिए सोते समय खटिया की जोली ( नीचे को झुकना )  स्वास्थ रखने में लाभ पहुंचाती है।।*😳✔

*दुनिया में जितनी भी आरामदायक कुर्सियां देख लो,, उसमें भी खटिया की तरह जोली बनाई जाती है । बच्चों का पुराना पालना सिर्फ कपड़े की जोली का ही था। ✋🏻😳 लकड़ी का सपाट बनाकर उसे भी बिगाड़ दिया है , आधुनिकता ने 👉 खटिया पर सोने से कमर का दर्द और कंधे का दर्द ( जिसे सर्वाईकल और साईटिका ) कभी नहीं होता था ।*😳

*😊⚜अन्य लाभ*🙏🏻⛳👇🏻

*डबलबेड 🛏के नीचे अंधेरा होता है, जिसके कारण कीटाणु 👾 उत्पन्न होते हैं.. भार में भी अधिक होता है,, ✋🏻 तो प्रतिदिवस सफाई नहीं हो सकती❗️*😕 

*खटिया को रोज सुबह खड़ा कर दिया जाता है और सफाई भी हो जाती है, सूर्य की धूप "सर्वोत्तम कीटनाशक" है,😊 और खटिया को धूप में रखने से खटमल इत्यादि भी नही होते हैं ।* ✋🏻😀

*खटिया कपास की रस्सियों से बनी होने के कारण 👉 सोने के लिऐ , उस पर बिछाने के लिऐ अन्य किसी गद्दे आदि की आवश्यकता नही है। जिससे   कमर को हबा मिलती रहती है और पशीना आदि से भी रीढ़ आदि सुरक्षित रहती है।  लकड़ी से बना बैड 🛌भारतीय वातावरण के लिऐ नही है। यह  ठंडे देशों इंग्लैंड  आदि देशों के लिऐ उपर्युक्त है, उन्ही के कारण भारत मे उपयोग होने लगा। अंग्रेज़ी शासन के बाद हम अधिकतर उनकी लाईफ़ स्टाइल अपनाने लगे।*✋🏻😠

*भारत के ७०% प्रतिशत गाँव में अब भी इसी खटिया पर सोया जाता है। गाँवों के मानव साईटिका व सरवाईकल व्याधि से अभी भी बचे हुऐ है। हम अपनी खटिया पर गौरव करते है।* 😊🙏🏻

*किसानों  👳 के लिए खटिया बनाना अत्यंत सस्ता पड़ता है, मिस्त्री को थोड़ी मजदूरी ही देनी पड़ती है। बस ✋🏻😳 कपास , कुशा, जूट, सरकंडा  स्वयं का सस्ता  होता है। तो स्वयं रस्सी निर्माण कर लेते हैं  😊और खटिया स्वयं ही बुन लेते हैं । 😳 लकड़ी भी स्वयं की ही दे देते हैं , 😳✋🏻अन्य किसी व्यक्ति को लेना हो तो २ हजार से अधिक खर्च नही हो सकता । 😳✋🏻 हां❗️ कपास की रस्सी के बदले नारियल आदि की सस्ती रस्सी से काम चलाना पड़ेगा। आज की दिनांक में कपास की रस्सी महंगी पड़ेगी,, सस्ते प्लास्टिक की रस्सी और पट्टी आ गयी है,,, लेकिन वह सही नही है, असली आनंद नही आएगा❗️ स्वास्थय के लिऐ भी उतनी सही नही है‼️*✋🏻😊

👍 *२ हजार की खटिया के बदले हजारों रूपए की दवा और डॉक्टर का खर्च बचाया जा सकता है। भारत मे यह कुटीर उद्योग धंधे के रूप में भी कारगर था। जिससे समाज मे ताना बाना मज़बूत ।*✋🏻😊🙏🏻 

*घर पर रहें❗️सरकार के नियमों का पालन करे और खटिया पर ही आराम करें ‼️ 🙏🏻🤷🏻‍♂🤷🏻‍♂*

*सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की शुभ मंगल कामना 🙏🏻⛳वंदेमातरम_🙏🏻😊⛳*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Monday, April 20, 2020

🕊गोरैया का रिश्ता

*💐🕊गोरैया का रिश्ता*💐

*🚩मेरे साथ वाले आंगन में एक आम🥭 का पेड़ और साथ में ही अमरूद🍏 का भी, दुनिया भर के पक्षी🐦 हमारे यहां आते हैं, कभी तोता🦜 बोलता है , कभी कोयल🐧 तो कभी गोरैया🕊,  गोरैया मतलब चिड़िया। दिनभर इन सबकी धमा चौकड़ी मची रहती।  कभी मोर🦚 बोला करते थे, सुबह🌅 सुबह परंतु दिन में तोते की, कौवे 🐧की और इस गौरैया की चिक चिक की सुनकर शोर मच जाता था ,मगर मेरी मां🗣 कहती यह सब गाना गा रहे हैं।*

*🤱मां का दिन शुरू होता तो रात🌑 के बर्तन मांजने से। उसके बाद नहा धोकर जब वो रसोई जाती तो पहला काम करती की एक कटोरी में कुछ अनाज🌽 या दलिये के दाने गोरैया🕊 के लिए रख देती और न जाने कहां से बहुत सारी गौरैया उनकी कटोरी देखते ही मुंडेर पर आ जाती, खिड़की पर रखी हुई उस कटोरी में रखे वह दाने शोर मचा मचा कर खाती।*

*🌝दिन बीते, मेरा बचपन गया, माँ🤱 बूढ़ी हो चली परंतु अब सब बदल गया है। अब खिड़की पर सुबह सुबह केवल एक ही गौरिया🕊 आ कर शोर मचाने लगती है और माँ🤱 एक कटोरी में थोड़ा सा दलिया उसके लिये रख देती है । अकेली मां और उनकी वो अकेली गौरेया।*

*जब उन दिनों माँ ने बिस्तर🛏 पकड़ लिया उस गौरिया ने चहकना भी बंद कर दिया था । सुबह की पहली किरण जैसे बेरंग हो गयी थी , उस निस्वार्थ आवाज के बिना । माँ का उठना, मंदिर में पूजा करना,सब आयु अनुसार वृद्ध होने की वजह से छूटने लगा था।*

*बहुत दिन बीते,माँ बीमार थी, बिस्तर से उठ नही पाती थी अब, एक दिन देखा तो वो गौरैया भी बाहर तुलसी🌿 के मुरझाये पौधे के कीड़े🐛 बीन बीन खा रही थी बगैर आवाज किये ।  निशब्द,मूक, खामोश सी, न चहचहाना न कूदना,निर्जीव सी उदास। उस दिन मुझे खुद पर बहुत खीज सी आयी कि,मैं उस सुकून के लिये, जो उसकी आवाज से आता था,थोड़ा दाना भी नही रख सकता ।*

*अगले दिन सुबह उठते ही चाय के साथ पहला काम यही किया था, एक कटोरी में दस बारह दाने डाल, खिड़की पर रख दिये ।*

*चिरपरिचित आवाज कानो में पड़ गयी उस नन्ही गौरय्या के चहचहाने की परंतु*

*परंतु*

*उसके साथ एक और आवाज थी अंदर के कमरे से माँ की " आज आयी है इतने दिन में "।*
 *कितने दिनो बाद आज माँ उठ के खिड़की तक आयी थी । माँ के चेहरे पर और खिड़की पर अजीब रौनक खिल रही थी । पिताजी भी गौरैया और अपनी बुढ़िया ( मेरी माँ) को देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।*

*वृद्ध एकाकी जीवन में जीव से मोह का अर्थ तब समझ आएगा जब तुम भी वृद्ध हो जाओगे। आइये इन गौरैयों को तथा अपने वृद्धों को नित प्रतिदिन सुबह सुबह मिलकर,बातचीत करके, आयु वृद्धि का दाना डाले।*



*सदैव प्रसन्न रहिये*
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

*सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की शुभ मंगल कामना 🙏🏻⛳वंदेमातरम_🙏🏻😊⛳*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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Saturday, April 18, 2020

⛳पुण्य कमा लो,⛳ जीवन संवारो⛳


*⛳पुण्य कमा लो,⛳ जीवन संवारो⛳*

🕉️
*🚩मुझे खुद नहीं पता था कि मैं पुण्य का काम कर रहा हूं। अभी कुछ समय पहले एक मित्र🤝🏻 मिले उन्होंने मुझे बताया कि आपने पुण्य का काम किया । मुझको नहीं पता चला तो मैंने उनसे पूछा कैसे ❓तो उन्होंने बताया कि Facebook में आपकी पोस्ट देखी थी उसमें आपने गौ सेवा के बारे में लिखा✒ था तथा पूछा था कि धर्म 🕉 के बारे में जानने का इच्छुक हो तो अपना नंबर भेजें । उन सज्जन ने अपना नंबर Facebook में भेज दिया । मैंने उनको अपने WhatsApp समूह में जोड़➕ दिया । उनका कहना है कि कुछ दिनों की पोस्टों को देखने ओर पढ़ने के बाद धर्म के बारे में उनके विचार बदलने लगे। और वह कहते हैं कि आज वह सच्चे मायने में धर्म के लिए कुछ करने के लिए तत्पर हैं ।  मुझे यह जानकर खुशी हुई।*


 *मुझे खुद भी नहीं पता था कि मैं धर्म🕉 के लिए निस्वार्थ भाव से एक सेवा कर रहा हूं । जब उसका परिणाम किसी ने स्वयं अपने मुंह🗣 से बताया  तो मुझे बहुत अच्छा लगा ।*😌😊😊

*एक बात मैं आपको बताता हूं धर्म करने के लिए कबूतर🕊 को दाना डालते हो , चींटियों🐜 को आटा डालते हो सिर्फ इसलिए कि उसका पुण्य मिलेगा । क्या आप दाना ना डालो या आटा ना डालो तो क्या कबूतर 🕊को खाने को नहीं मिलेगा,  कबूतर भूखा रह जाएगा । यह आपने उसका पेट भरने के लिए ही नहीं किया यह अपना पुण्य कमाने के लिए किया । कबूतर 🕊आप के दानों के लिए भूखा नहीं बैठा रहता कि आप दाना डालोगे तभी उसका पेट भरेगा।* 

*अब आपको बताता हूं एक और पु्ण्य का पाने का तरीका । लोगों  को धर्म के बारे में सही जानकारी देना।  जैसे कि उन्हें धार्मिक समूह में जोड़ना । जब भी कोई व्यक्ति ऐसे किसी धार्मिक समूह में जुड़ता है और वहां से ज्ञान प्राप्त करता है तो आज नहीं तो कल वह याद करेगा कि आपने उसको धर्म धार्मिक समूह में जोड़ा था । आपको पुण्य मिलेगा । दूसरी बात कबूतर को दाना डालते तो वह भूखा नहीं रहता पर अगर आप आज किसी व्यक्ति को ऐसे धार्मिक समूह में नहीं छोड़ोगे तो जब तक वह नहीं जुड़ेगा सनातन धर्म के मामले में अज्ञानी या भूखा ही रहेगा ।  तो यह लोगों को जोड़ना भी एक तरह से पुण्य पाने का तरीका है । निस्वार्थ भाव से जोड़ने का काम करना चाहिए।  जिसको भी धर्म के ज्ञान से लाभ होगा वह जरूर आपको याद करेगा की आपने उसको इस समूह में जोड़ा था  । आप यूं समझ लीजिए कि आज के मशीनी युग में पुण्य कमाने का यह एक और तरीका है । निस्वार्थ भाव से अपने जानकार अपने रिश्तेदार अपने  पड़ोसियों को जोड़ते जाओ  ।  धर्म प्रचार होगा ही होगा । इसका पुण्य आप सबको मिलेगा ही मिलेगा।*


आप सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *शुभ मंगल कामनाएं*
                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...