धार    नहीं    संगम  हो  जाते 
चोट   नहीं   मरहम  हो  जाते 
बन सकती थी अपनी कहानी 
तुम  जो मेरे हमदम  हो  जाते 
 जान   खुशी   से  दे  देता  मैं 
तुम जो  गर  जानम  हो जाते 
हाँथ   पकड़    लेते  जो  मेरा
तो   काँटे  कुछ  कम हो जाते 
तेरे    एक   तबस्सुम   से   ही 
चूर   मेरे   सब  गम  हो  जाते
तुम   हमको  अपना   लेते तो
दूर    दुखों  से  हम  हो  जाते
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057
 
