परसुराम के वंशज जागो,,
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चारों ओर कुहासा छाया,कूटनीति का डेरा है,
वेद शास्त्र व्रत नीति नियम को,काल चक्र नें घेरा है,
कितनें पंडित छोड़ जनेऊ,शिखा कटाये घूम रहे,
ब्रह्म वंश के कितनें बेटे,मदिरा पी कर झूम रहे,
नीतिशास्त्र का दिन दिन होता,क्षरण दिखाई देता है,
शान्ति और मर्यादा का नित,हरण दिखाई देता है,
मौनव्रती बनकर रहनें से,अधिकार नहीं मिल सकता,
जुगनूँ के पीछे चलनें से,उजियार नहीं मिल सकता,
निज पौरुष को पहचानों तुम,याद दिलाने आया हूँ ।।
परसुराम के वंशज जागो,तुम्हें जगाने आया हूँ ।।(1)
वेद ऋचाएँ लिखकर तुमनें,शोध जगत को बाँटे हैं,
किन्तु तुम्हारे ही गालों पर,पड़े अधर्मी चाँटे हैं,
सुख वैभव को त्यागा तुमनें,संस्कृति का सम्मान किया,
वेद ब्रह्म के ज्ञाता होकर,कभी नहीं अभिमान किया,
जिनको पाठ पढ़ाया तुमनें,भाग्य तुम्हारा जाँच रहे,
बैशाखी पर चलनें वाले,चढ़े शीश पर नाच रहे,
घात लगाये बैठे तुम पर,चौकन्ने मक्कार सभी,
अभी नहीं यदि जागे तुम तो,खो दोगे अधिकार सभी,
वर्तमान की यह सच्चाई,तुम्हें बताने आया हूँ ।।
परसुराम के वंशज जागो,तुम्हें जगाने आया हूँ ।।(2)
निज आन बान मर्यादा का,पूरा पूरा ध्यान रखो,
शीश भले कट जाये लेकिन,शीर्ष सदा अभिमान रखो,
बनों शास्त्र के मूलक लेकिन,अस्त्र शस्त्र का ज्ञान रखो,
अहंकार को पीना सीखो,पर स्वाभिमान का भान रखो,
बनों शान्ति के पथगामी पर,क्रांति पुत्र भी बनें रहो,
अनाचार के सम्मुख हर क्षण,सीना तानें तनें रहो,
वेद शास्त्र संस्कृति का तुमको,आन बचाकर रखना है,
राष्ट्र,धर्म,तप,योग व्रतों का,मान बचाकर रखना है,
कविता का इक दीप जलाकर,राह दिखानें आया हूँ ।।(3)
परसुराम के वंशज जागो,तुम्हें जगाने आया हूँ ।।
जीना मरना अटल सत्य है,मन से भय को त्यागो,
चलो सत्य के पथगामी बन,नहीं कर्म से तुम भागो,
तुमको पंगु बनानें खातिर,मानव घात लगाये हैं,
कदम कदम पर व्यवधानों के,दानव घात लगाये हैं,
कितना दमन सहोगे अब तो,शोषण का प्रतिकार करो,
विप्र वंश के बेटे हो तो,चलो उठो हुंकार भरो,
निज अधिकार छीनना सीखो,भीख किसी से मत माँगो,
सोए हुए सपूतों अब तो,कल्पित निद्रा से जागो,
बंजर होती वीर भूमि पर,शौर्य उगानें आया हूँ।।(4)
परसुराम के वंशज जागो,तुम्हें जगाने आया हूँ ।।
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057