Wednesday, May 6, 2020

छत्तीसगढ़ के बासी

बासी के गुण कहुं कहां तक ,इसे न टालो हांसी में।
गजब बिटामन भरे हुए हैं, छत्तीसगढ़ के बासी में!!

               ©पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी®
                      ओज व्यंग्य कवि
                 डिंडोरी मुंगेली छत्तीसगढ़
            8120032834/7828657057

कोरोना कर्मवीर

हे    कर्मवीर    हे    योद्धाओं
तेरा   सत्  - सत्   नमन   हो।
दशो दिशा में विजय धोष हो
तेरा   सत्  -  सत्   नमन  हो।।

मूल  नायक  हो सहायक हो
आप  कर्णधार  विधायक हो।
कोरोना    से    लड़ने   वाले
आप  ही  वो  प्रतिपालक हो।।
हे   धर्म   वीर   हे   योद्धाओं
तेरा   सत्  -  सत्  नमन  हो..

तुम ही शासन तुम ही प्रशासन
भूल  गये  अपने  सब  भाषण।
सेवा   में   सब   भूल   गये  हैं 
कौन  रावन  है  कौन दुशासन।।
हे    मर्म    वीर   हे   योद्धाओं
तेरा    सत्  -  सत्   नमन  हो..

डाक्टर   नर्स   सफाई   कर्मी
डटे   हैं  अब  सरकारी  धर्मी।
पालन   हो  सरकारी  निर्देश
हम   बचेगे    हमारा    प्रदेश।।
हे    शूरवीर    हे    योद्धाओं
तेरा   सत्  -  सत्  नमन  हो..

हाथ  सफाई  घर  में  रहना
मास्क लगाए तो ही  बचना।
अपने  से  अपनों  की  दूरी
यही है अब सब का कहना।
हे   कालवीर  हे   योद्धाओं
तेरा  सत्  -  सत्  नमन  हो..

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

लाकडाउन में शराब बिक्री पर


इकाॅनोमी बूस्टर का भूत
घर - घर मचा रहा कोहराम
साजन सड़क पर पड़े टूल्ल
घर - घर पसरा भूख
देश का अर्थ बढ़े न बढ़े
घर का बिगड़ा हाल
माह भर से शांत पड़े थे
अब उगल रहे है आग
निकले थे राशन लाने
राह में देशभक्ति ने मारा जोर
फेक सड़क पर राशन का झोला
लग गये देश का अर्थ बढ़ाने
शांत लहू में आयी गर्मी
करने लगे दुश्मन की ऐसी - तैसी
जैसे - तैसे रौद्र रूप में घर को लौटे
करने लगे ' कोरोना ' की पिटाई
' कोरोना ' का तो पता नहीं
बच्चों संघ मैं भी हो गई घायल
घर का चुल्हा शांत पड़ा
भूख से पसरा घर में सन्नाटा
आग लगे ऐसे निर्णय पर 
जो घर - घर मचाये तबाही ।


          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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दान की महिमा


*👏🏻दान की महिमा*☺

*एक भिखारी सुबह-सुबह भीख मांगने निकला। चलते समय उसने अपनी झोली में जौ के मुट्ठी भर दाने डाल दिए, इस अंधविश्वास के कारण कि भिक्षाटन के लिए निकलते समय भिखारी अपनी झोली खाली नहीं रखते। थैली देखकर दूसरों को भी लगता है कि इसे पहले से ही किसी ने कुछ दे रखा है।*
*पूर्णिमा🌝 का दिन था। भिखारी सोच रहा था कि आज अगर ईश्वर की कृपा होगी तो मेरी यह झोली शाम से पहले ही भर जाएगी। अचानक सामने से राजपथ पर उसी देश के राजा 🤴🏻की सवारी आती हुई दिखाई दी।*
*भिखारी खुश हो गया। उसने सोचा कि राजा🤴🏻 के दर्शन और उनसे मिलने वाले दान से आज तो उसकी सारी दरिद्रता दूर हो जाएंगी और उसका जीवन संवर जाएगा। जैसे-जैसे राजा🤴🏻 की सवारी निकट आती गई, भिखारी की कल्पना और उत्तेजना भी बढ़ती गई। जैसे ही राजा🤴🏻 का रथ भिखारी के निकट आया, राजा ने अपना रथ रूकवाया और उतर कर उसके निकट पहुंचे।*
*भिखारी की तो मानो सांसें ही रूकने लगीं, लेकिन राजा ने उसे कुछ देने के बदले उल्टे अपनी बहुमूल्य चादर उसके सामने फैला दी और उससे भीख की याचना करने लगा। भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। अभी वह सोच ही रहा था कि राजा ने पुनः याचना की। भिखारी ने अपनी झोली में हाथ डाला मगर हमेशा दूसरों से लेने वाला मन देने को राजी नहीं हो रहा था।*
*जैसे-तैसे करके उसने दो दाने जौ के निकाले और राजा की चादर में डाल दिए। उस दिन हालांकि भिखारी को अधिक भीख मिली, लेकिन अपनी झोली में से दो दाने जौ के देने का मलाल उसे सारा दिन रहा। शाम को जब उसने अपनी झोली पलटी तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही।*
*जो जौ वह अपने साथ झोली में ले गया था, उसके दो दाने सोने के हो गए थे। अब उसे समझ में आया कि यह दान की महिमा के कारण ही हुआ। वह पछताया कि - काश! उस समय उसने राजा को और अधिक जौ दिए होते लेकिन दे नहीं सका, क्योंकि उसकी देने की आदत जो नहीं थी।*
*शिक्षा-*
*१. देने से कोई चीज कभी घटती नहीं।*
*२. लेने वाले से देने वाला बड़ा होता है।*
*३. अंधेरे में छाया बुढ़ापे में काया और अन्त समय में माया किसी का साथ नहीं देती*

   *🍀💥जय श्री राम💥🍀*    

             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

दर्द की मधुशाला

कोरोना का दर्द भुला कर, 
चलो  दिखाएं   मधुशाला।
खुलने से पहले ही आकर,
बैठा    है    पीने    वाला।

चालीस दिन  भी बीत गए, 
होठों का चस्का  बाकी है।
इसी आस में  निकल पड़ा, 
खुलने से पहले मधुशाला।

सड़कें  भी   गुलजार   हुई, 
लाइन भी बढ़ती चली गई।
प्यास बुझाने की आशा में, 
आज   खड़ा  पीने  वाला।

अर्थव्यवस्था  खिसक  रही, 
असमंजस भी तो बना रहा।
कैसे संभलेगी  यह आखिर, 
चिंता   में   सबको   डाला।

नए   तरीके  ढूंढ  रहे  सब, 
मगर  कारगर   नहीं   हुए। 
लेकिन उसे बचाने खातिर, 
खड़ी  हो  गई   मधुशाला।

भेद-भाव व बैर भुलाकर, 
लाइन  में  सब  लगे हुए। 
जैसे  मानो  बरस रही हो 
आसमान  से  ही  हाला।

गुमसुम  चेहरे  लिए  उदासी, 
व्याकुल   ऐसे    दिखते   थे। 
जैसे सब कुछ फूंक चुकी हो,
बुझी  हुई  मन  की  ज्वाला।

नई  सुबह   की  नई  किरण, 
उम्मीदों  से  भर  कर  आई। 
मदिरालय खुलने की आहट, 
लेकर  आया  नया  उजाला।

अभी करोना काल चल रहा, 
कोशिश  है  छंट  जाने  की। 
बीच-बीच में  खुला करें बस, 
अपनी    प्यारी    मधुशाला।

कोरोना  के  भी  कुचक्र  में, 
मजहब   वाले    गीत   सुनें 
मगर यहां सब साथ खड़े हैं, 
खुली है जब से  मधुशाला।

मतवालों  में  देश  प्रेम का, 
नशा    दिखाई    देता   है। 
अर्थव्यवस्था   नहीं   डिगे, 
कोशिश में  हर पीनेवाला।

मतभेदों  व   ऊंच-नीच  की,
खाई  अब   तक  नहीं भरी। 
भरने की कोशिश में लेकिन, 
लगी    हुई    है   मधुशाला।

बिना पिए ही नशा चढ़ा हो, 
मन  चिंता   में   डूबा   हो। 
इससे तो अच्छा मदिरालय, 
जन्नत  सैर   कराने  वाला।

दिन भर का अवसाद लिए, 
घर  जाने   की  तैयारी थी। 
राहत लेकर सड़क किनारे, 
ख्वाहिश  में थी मधुशाला।

ऐसा     कोई    नहीं    मिला, 
जो बिना नशे  के  जीता हो। 
धन यौवन है नशा किसी का,
किसी  पे   हावी   मधुशाला।

देशी   ठर्रा    रम   व   बाईन,
अलग  अलग   है  नाम  मेरे। 
जिसकी जितनी जेब है भारी, 
सुलभ   उसे    वैसी    हाला।

कोई   नहीं  पराया  अपना, 
साकी   तेरी    नजरों    में। 
इसीलिए  भरपूर  पिलाओ, 
जो  भी  हो   पीने   वाला।

दुनिया की  तो  सोच है ऎसी,
उंगली   सदा    उठाने    की। 
फिर भी देखो आदि काल से, 
चली   आ   रही   मधुशाला।

जख्मों  में  मतभेद  भले  हो, 
लेकिन  दर्द  सभी   को   है।
है  इसका  उपचार  कहीं तो, 
चलो    दिखाएं   मधुशाला।

राजा  रंक  सभी  मस्ती   में, 
पैमाने    है  अलग - अलग। 
ना  जाने किस को भा जाए, 
कौन    सुरा   कैसा  प्याला।
  
पीने    और    पिलाने    का, 
जज्बा भी दिल में कायम है। 
साथ  न  हो  यदि पीने वाला, 
नहीं  चाहिए  मादक   हाला।

जाम   जाम    से    टकराए, 
बेहोशी  आंखों   से  छलके।
मदिरालय की  छत के नीचे, 
नाच रहा   हर  पीने  वाला।

जाने   कितने  मिले  दोस्त, 
जाने  कितने  बिछड़  गए। 
साथ  निभाया  जिसने मेरा
मदिरालय   वाली    हाला।

पीने  वालों  की  जमात  का, 
रुतबा   यहां    निराला    है। 
कोई  नहीं  किसी से कमतर, 
पी    लेता   है   जब   हाला।

अपनों  से   दिल   टूट   गया,
साहस  भी संग  में नहीं रहा। 
मदिरालय  आकर  के   देखो, 
हर    कोई     हिम्मत  वाला।

शौक बड़ी और उसके कायल, 
सदा    सुर्खियों     में    छाए।
इसी  शौक  से  मदिरालय  में, 
हर   दम   छलकी   है  हाला।

आए  जब  चुनाव  की  बेला, 
या   त्योहारों    का   मौसम।
जलने   वाले   सदा   लगाते, 
मदिरालय   में   ही    ताला।

जाने क्यों लोगों की नजर में, 
मदिरालय का रूप अलग है। 
लेकिन  जो  है   पीने   वाले, 
उनका  भी  अंदाज निराला।

मदिरा  तो  है  एक  बहाना, 
आदत    की    बीमारी   है। 
ऊपर से  साकी  ने  उसको, 
नए   रूप   में    है   ढाला।

अमन चैन की इस दुनिया में, 
खलल   हमें    मंजूर    नहीं।
किस्मत  वाला  ही  होता  है, 
पीने  और   पिलाने   वाला।

वैसे तो  दुनिया  की  ठोकर, 
औकात  दिखाने में  माहिर। 
जिसने  ठोकर  झेल  लिया, 
स्वागत में उसके मधुशाला।

नाज  करो   मदिरालय  पर, 
कितने आशिक कुर्बान हुए। 
फिर भी अब तक प्यासी है, 
अपनी   प्यारी   मधुशाला।

लुटा दिया सब अपना देखो, 
पीने    और    पिलाने    में। 
फिर भी ताक रही है उनको,
मादक   नजरों   से   हाला।

भरा नहीं जो अब तक तूने, 
कहां   गया    वो   पैमाना। 
साकी आकर तू ही बता दे, 
पूंछ   रहा    पीने    वाला।

मादकता  बदनाम  है  माना, 
दुनिया भर   की  नजरों  में।
महफिल की तो शान रही है, 
साकी  तेरी   मादक  हाला। 

अंगूर  खा   लिया  दोष  नहीं, 
किशमिश से भी परहेज नहीं। 
अंगूरी    चस्के     में     जाने, 
क्यों   इतना  गड़बड़  झाला।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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Tuesday, May 5, 2020

सच्चा मर्द


देखे हैं जनाब हमने ऐसे भी, बहुत से बादल ।
होता नहीं ऐसे बादलों में,  किंचित भी जल ।।
जल हीन बादल होते हैं,  काले तथा घनघोर ।
गड़गड़ाते हैं जोर ज़ोर से,मचाते हैं बड़ा शोर ।।

बहुत जोर से ही वह, रहते हैं अक्सर गरजते ।
बूंद एक भी नहीं मगर, हैं वे कभी भी बरसते।।
देखे हैं हमने तो ऐसे भी, बहुत से मर्द जनाब ।
देते रहते हैं, बार बार अकारण मूछों पर ताव ।।

पुरुष प्रधान समाज में, रहते वे केवल गरजते ।
होता नहीं है दर्द मर्द को कभी,रहते  फरमाते।।
बात बात पर ही हैं, रहते खाते वह बड़ा ताव ।
दे नहीं चाहे उन्हें कोई,किंचित भी कोई भाव ।।

पड़ा नहीं सच्चे मर्द से, कभी भी उनका पाला ।
होता है सच्चा मर्द, इन्सान एक बड़ा ही आला।।
सच्चा मर्द होता कोई भी, नर हो अथवा नारी ।
हुईं भारत में बहुत नारी  थीं ,मर्दों पर भी भारी।।

नारी होते हुये भी थीं वास्तव में ही सच्ची मर्द।
देश तथा कौम के लिये था, दिल में उनके दर्द।।
थी उनमें से बहुचर्चित वीरांगना झांसी की रानी।
पिलाया अपनी तलवार से,  फिरंगियो को पानी।।

देख कर संकट निर्बलों पर, जाता है मर्द तड़प ।
ज़ालिम राक्षसों को, लेता है वह कसकर जकड़।।
करने में रक्षा महिलाओं की होती उनकी शान ।
बचाने में उनको, कर देते अपनी जान कुर्बान ।।

दर्द जालिमों को होता नहीं है,जनता सताने में ।
होता नहीं दर्द उनको,मासूमों को भी कटवाने में।।
जालिम से होती नहीं मगर सहन,शारिरिक पीर ।
अल्प कष्ट से ही, बहने लगता है नयनों से नीर ।।

सच्चा मर्द होता है वही,जानता जो दूजे का दर्द ।
दर्द दूसरे का जानता नहीं जो वह काहे का मर्द ।।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Monday, May 4, 2020

आप जब भी अलग, छुप गये दूर थे!

आप जब भी अलग, छुप गये दूर थे!
दो जहां का डगर ,   मोड़  बेनूर  थे।

बढ़ रही थी उदासी, इसकदर से सदा!
चार  सू  थी  घनी  रात,  मजबूर   थे।

थक गये थे मगर, फिर उठे चल दिये!
हम जहां भी ढले,  पहर   मशहूर थे।

चाहतें थी कई, वक़्त  गुजरता  गया!
हां सफर में मिले,  लोग  भरपूर   थे।

दासतां क्या  कहें, बाबरा  मन  रहा!
वासते प्यार के,   तड़पते  जरूर  थे।

आप जब भी अलग, छुप गये दूर थे!
दो जहां का डगर ,   मोड़  बेनूर  थे।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...