Tuesday, December 17, 2019

गोमूत्र


 

गौमूत्र
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गौमूत्र घर को पवित्र कर बुरी नजर से बचाता है  रोगों पर विजय प्राप्त करना है तो गौमूत्र का करें इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए।

आज संपूर्ण भारतवर्ष में गाय की उपयोगिता पर भारत सरकार सहित राज्यों की सरकार भी जागरूक हो गई है क्योंकि गौ माता के दूध, मूत्र से लेकर गोबर तक मानव जीवन में इतना उपयोगी है कि समस्त रोग व्याधियां एवं मानव शरीर के पोषण में उसकी महत्ता प्रतिपादित हो रही है। आज मैं गाय के गोमूत्र से किन किन बीमारियों में लाभ होता है और घर कैसे बुरी नजर से बचता है उसके उपयोग की जानकारी दे रहा हूं।

गोमूत्र में किसी भी प्रकार के कीटाणु नष्ट करने की चमत्कारी शक्ति है। सभी कीटानुजन्य व्याधियां नष्ट होती है। वास्तु शास्त्र में गौमूत्र का बहुत महत्व है घर को शुद्ध और पवित्र बनाने के लिए यदि घर में इस का छिड़काव किया जाता है तो जितनी आसुरी शक्तियां हैं वह सब गोमूत्र के प्रभाव से खत्म हो जाती है प्रातः काल सूर्योदय के समय गोमूत्र का छिड़काव घर के सभी कमरों मे मुख्य द्वार से शुरू कर पुणे मुख्य द्वार पर खत्म करें समस्त वास्तु दोष एवं ग्रह दोष खत्म हो जाएंगे।गोमूत्र त्रिदोष को सामान्य बनाता है अत एव रोग नष्ट हो जाते है। प्रातः काल खाली पेट गौ मूत्र का सेवन करें।

गोमूत्र से लाभ-
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 गोमूत्र शरीर में लिवर को सही एवं स्वच्छ खून बनाकर किसी भी रोग का विरोध करने की शक्ति प्रदान करता है। प्रतिदिन सेवन करें।

गोमूत्र में सभी तत्व होते है जो हमारे शरीर के आरोग्यदायक तत्वों की कमी की पूर्ति करते है। 

गोमूत्र में कई खनिज खासकर ताम्र होता है जिसकी पूर्ति से शरीर के खनिज तत्व पूर्ण हो जाते है। स्वर्ण छार भी होने से बचने की यह शक्ति देता है। 

मानसिक छोभ से स्नायु तन्त्र (नर्वस सिस्टम) को आघात होता है। गोमूत्र को मेध्य और ह्रद्य कहा गया है। यानि मष्तिष्क और ह्रदय को शक्ति प्रदान करता है। अतएव मानसिक कारणों से होने वाले आघात से ह्रदय की रक्षा करता है और इन अंगो को होने वाले रोगों से बचत है।

किसी भी प्रकार की औषधि की मात्रा का अतिप्रयोग हो जाने से जी तत्व शरीर में रहकर किसी प्रकार से उपद्रव पैदा करते है उनको गोमूत्र अपनी विषनाशक शक्ति से रोगी को  निरोग करता है। 

विद्युत् तरंगे हमारे शरीर को स्वस्थ रखती है यह वातावरण में विद्यमान है। सुक्षमाति सूक्ष्म रूप से तरंगे हमारे शरीर में गोमूत्र से प्राप्त ताम्र के रहम से ताम्र के अपने विद्युतीय आकर्षक गुण के कारण शरीर से आकर्षित होकर स्वास्थ्य प्रदान करती है। 

गोमूत्र रसायन है यह बुढ़ापा रोकता है व्याधियो को नष्ट करता है। प्रतिदिन सेवन करें।

आहार में जो पोषक तत्व कम प्राप्त होते है उनकी पूर्ति गोमूत्र में विद्यमान तत्वों से होकर स्वास्थ्य लाभ होता है। 

आत्मा के विरुद्ध कर्म करने से ह्रदय और मष्तिष्क संकुचित होता है जिससे शरीर में क्रिया कलापो पर प्रभाव पड़कर रिक्त हो जाते है। गोमूत्र सात्विक बुद्धि प्रदान कर सही कार्य कराकर इस तरह के रोगों से बचाता है ।

शास्त्रो में पूर्व कर्मज व्याधियां भी कही गयी है जो हमे भुगतनी पड़ती है  गोमूत्र में गंगा ने  निवास किया है गंगा पाप नाशिनी है अतएव गोमूत्र पान से पूर्व जन्म के पाप क्षय होकर इस प्रकार के रोग नष्ट हो जाते है ।

शास्त्रो के अनुसार भूतो के शरीर प्रवेश के कारण होने वाले रोगों पर गोमूत्र इसलिए प्रभाव करता है की भूतो के अधिपति भगवान शंकर है। शंकर के शीश पर गंगा है गो मूत्र में गंगा है। अतः गोमूत्र पान से भूतगण अपने अधिपति के मश्तक पर गंगा के दर्शन कर शांत हो जाते है, और इस शरीर को नही सताते है। 

जो रोगी वंश परम्परा से रोगी हो रोग के पहले ही गो मूत्र कुछ समय पान करने से रोगी के शरीर में इतनी विरोधी शक्ति हो जाती है की रोग नष्ट हो जाते है।

विषों के द्वारा रोग होने के कारणों पर गोमूत्र विष नाशक होने के चमत्कार के कारण ही रोग नाश करता है। बड़ी-बड़ी विषैली औषधियां गोमूत्र से शुद्ध होती है गोमूत्र मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाकर रोगों को नाश करने की क्षमता देता है। उन्मुक्ति शक्ति (immunity power) देता है। निर्विष होते हुए यह  विष नाशक है।
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                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

आज का संदेश



           🔴 *आज का प्रातः संदेश* 🔴


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                  *आदिकाल से धरा धाम पर नर और नारी सृष्टि के विकास में कदम से कदम मिलाकर एक साथ चलें | स्त्री एवं पुरुष को समान रूप से अधिकार प्राप्त था | यदि इतिहास का अवलोकन किया जाय तो नारी के ऊपर कभी भी अनावश्यक दबाव या कोई प्रतिबंध लगता हुआ नहीं प्रतीत होता है | प्राचीन समय में नारी का जितना सम्मान हमारे देश भारत में हुआ उतना शायद किसी भी देश के इतिहास में पढ़ने को नहीं मिलता है | "यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता" का उद्घोष हमारे देश भारत में ही हुआ | नारी सदैव से स्वतंत्र रही है परंतु अपनी स्वतंत्रता में उसने अपनी मर्यादा का उल्लंघन कभी नहीं किया | प्राचीन काल से एक युवती को अपना पति चुनने का पूरा अधिकार होता था अपने इस अधिकार का प्रयोग वह अपने पिता के संरक्षण में ही करती थी | हमारे इतिहास में वैदिक काल से लेकर पौराणिक काल तक अनेकों स्वयंवर का उल्लेख मिलता है जहां नारी को अपना पति स्वयं चुनने का अधिकार प्राप्त होता है परंतु यह निर्णय वह अपने माता पिता एवं सर्व समाज को साक्षी मान कर लेती थी | अपनी इच्छा से मर्यादित होकर स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग नारी सदैव से करती चली आई हा , इसीलिए नारी सम्मानित है | नारी के माध्यम से समाज की दिशा एवं दशा निर्धारित होती है यदि समाज की रीढ़ नारी को कहा जाय तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी , परंतु यह भी सत्य है कि नारी वही पूजनीय है जो मर्यादित रहकर अपने संस्कारों का निर्वहन करे अन्यथा उसको समाज की अवहेलना एवं उपेक्षा झेलनी ही पड़ती है | एक नारी की स्वतंत्रता एवं अधिकारों का पक्षधर मैं भी हूं और मेरा मानना है कि :- पहनने , ओढ़ने और शिक्षा के क्षेत्र में युवती को छूट मिलनी चाहिए , उस पर अनावश्यक प्रतिबंध नहीं होना चाहिए लेकिन युवतियों के द्वारा नैतिक मर्यादाओं का निर्वहन भी होना चाहिए , और साथ ही अपने परिवार वालों के विश्वास को बनाए रखना भी उनका आवश्यक दायित्व होना चाहिए |* 

*आज समाज में कुछ ऐसी घटनाएं घट रही है जिसको लेकर के लोग पुरुष प्रधान समाज को यह कहकर उलाहना दे रहे हैं कि वह नारी को प्रताड़ित करता है , नारी की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाना चाहता है , जबकि आज की बालाएं जिस प्रकार के कृत्य कर रही है उनका अमर्यादित आचरण एकदम से अशिष्ट एवं निंदनीय कृत्य है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आज समाज में जिस प्रकार अपनी स्वतंत्रता के नाम पर बच्चियां मां-बाप से झूठ बोल कर के अपने पुरुष मित्रों के साथ पार्कों में बैठकर या सिनेमा जाकर के समय व्यतीत कर रहे हैं उससे पूरा समाज दूषित हो रहा है | किसी स्त्री पुरुष की मित्रता कभी भी गलत नहीं कही गई है परंतु इस मित्रता में मर्यादा और संस्कारों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए | जो लोग यह कहते हैं कि पुरुष प्रधान समाज युवतियों को स्वतंत्र नहीं रहने देना चाहता उनसे एक प्रश्न अवश्य पूछना चाहूंगा की एक नारी जिस प्रकार आज पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा अंग प्रदर्शन कर रही है उससे तो यही लगता है कि वस्त्र पहनने में जितनी स्वतंत्रता का उपयोग स्त्री ने किया है उतनी तो पुरुषों को भी नहीं मिली है , या यूं कहा जाए कि एक पुरुष सदैव पूरे कपड़ों में होता है वहीं दूसरी ओर आज की युवतियाँ छोटे से छोटा वस्त्र पहनना चाहती हैं | स्वतंत्रता के नाम पर स्वयं के द्वारा पति का चुनाव करना उनका अधिकार तो है परंतु पूर्व की भांति इसमें माता-पिता का संरक्षण एवं सहमति भी होना चाहिए ना कि माता-पिता से विद्रोह एवं समाज की अवहेलना करके ऐसा कृत्य करना चाहिए | नारी की स्वतंत्रता का अर्थ यह कदापि नहीं है कि वह असंयमित एवं अमर्यादित हो जाय सम्मान सदैव संयमित एवं मर्यादा में रहकर ही मिलता है |* *पूर्व काल में भी स्वयंवर होते रहे हैं ऐसा कह कर के स्वयं अपने वर का चुनाव करने वाली आज की युवतियों को यह भी पढ़ना चाहिए कि पूर्व काल के स्वयंवर माता पिता की सहमति एवं उनके संरक्षण में होते रहे हैं |*

*किसी भी विषय के ज्ञान के लिए उसकी गहराई में जाना परम आवश्यक होता है अन्यथा वह ज्ञान घातक हो जाता है |*

      *"शुभ प्रातः वन्दन"*

                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

भगवान शिव जी का एक रूप "अर्द्धनारीश्वर"



भगवान शिव के एक अनोखे रूप अर्धनारीश्वर !!!!!!!

भगवान् शिवजी की पूजा युगों से हो रही है, यानी जब से सृष्टि की उत्पत्ति हुई है, लेकिन इस बात को बहुत कम लोग ही जानते हैं कि शिवजी का एक और रूप है जो है- अर्धनारीश्वर! दरअसल शिवजी ने यह रूप अपनी मर्जी से धारण किया था, शिवजी इस रूप के जरिये लोगों को संदेश देना चाहते थे कि स्त्री और पुरुष समान है, सज्जनों! आज हम जानने की कोशिश करते हैं, आखिर किस वजह से भगवान् शिवजी को यह रूप धारण करना पड़ा था।

भगवान् शंकरजी के अर्धनारीश्वर अवतार में हम देखते हैं कि भगवान् शंकरजी का आधा शरीर स्त्री का तथा आधा शरीर पुरुष का है, यह अवतार महिला व पुरुष दोनों की समानता का संदेश देता है, समाज, परिवार तथा मानश जीवन में जितना महत्व पुरुष का है उतना ही स्त्री का भी है, एक दूसरे के बिना इनका जीवन अधूरा है, यह दोनों एक दूसरे को पूराक हैं।

शिवपुराण के अनुसार सृष्टि में प्रजा की वृद्धि न होने पर ब्रह्माजी के मन में कई सवाल उठने लगे, तब उन्होंने मैथुनी सृष्टि उत्पन्न करने का संकल्प किया, लेकिन तब तक शिवजी से नारियों का कुल उत्पन्न नहीं हुआ था, तब ब्रह्माजी ने शक्ति के साथ शिव को संतुष्ट करने के लिए तपस्या की. ब्रह्माजी की तपस्या से परमात्मा शिवजी संतुष्ट हो अर्धनारीश्वर का रूप धारण कर उनके समीप गये तथा अपने शरीर में स्थित देवी शक्ति के अंश को पृथक कर दिया।

उसके बाद ब्रह्माजी ने उनकी उपासना की, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शक्ति ने अपनी भृकुटि के मध्य से अपने ही समान कांति वाली एक अन्य शक्ति की सृष्टि की जिसने दक्ष के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, दोस्तों, आपने कई बार ये सच सुना होगा कि भगवान की महिमा अपने भक्तो से ही है, भगवान स्वयं से अधिक उनके परम भक्तो का गुणगान करने से अत्यधिक प्रसन्न होते है।

ऐसे ही एक परम भक्त की कहानी आज हम आपको बताते है- जिनकी महिमा हालाँकि उतनी नही फैली जितनी की होनी चाहिए क्योंकि उनकी भक्ति में थोड़ी सी कमी रह गई थी जो बाद में उन्हें चुकानी भी पड़ी, “शीश गंग अर्धंग पार्वती सदा बिराजत कैलाशी नंदी भृंगी नृत्य करत है” शिवजी की स्तुति में आये इस भृंगी नाम को आप सब ने जरुर सुना होगा, पौराणिक कथाओं के अनुसार ये एक ऋषि थे जो महादेव के परम भक्त थे, किन्तु इनकी भक्ति कुछ ज्यादा ही कट्टर किस्म की थी। 

कट्टर से तात्पर्य है कि ये भगवान् शिवजी की तो आराधना करते थे,  किन्तु बाकि भक्तो की भांति माता पार्वती को नहीं पूजते थे, हालांकि उनकी भक्ति पवित्र और अदम्य थी,  लेकिन वो माता पार्वती जी को हमेशा ही शिवजी से अलग समझते थे,  या फिर ऐसा भी कह सकते है कि वो माता को कुछ समझते ही नही थे, वैसे ये कोई उनका घमंड नही अपितु शिवजी और केवल शिवजी में आसक्ति थी, जिसमे उन्हें शिवजी के आलावा कुछ और नजर ही नही आता था।

एक बार तो ऐसा हुआ की वो कैलाश पर भगवान् शिवजी की परिक्रमा करने गये लेकिन वो पार्वती की परिक्रमा नही करना चाहते थे, ऋषि के इस कृत्य पर माता पार्वतीजी ने ऐतराज प्रकट किया और कहा कि हम दो जिस्म एक जान है,  तुम ऐसा नही कर सकते, पर शिव भक्ति की कट्टरता देखिये भृंगी ऋषि ने पार्वतीजी को अनसुना कर दिया और भगवान् शिवजी की परिक्रमा लगाने बढे, किन्तु ऐसा देखकर माता पार्वती शिव से सट कर बैठ गई। 

इस किस्से में और नया मोड़ तब आता है जब भृंगी ने सर्प का रूप धारण किया और दोनों के बीच से होते हुए शिवजी की परिक्रमा देनी चाही, तब भगवान् शिवजी ने माता पार्वती का साथ दिया और संसार में महादेव के अर्धनारीश्वर रूप का जन्म हुआ, अब भृंगी ऋषि क्या करते किन्तु गुस्से में आकर उन्होंने चूहे का रूप धारण किया और शिवजी और पार्वतीजी को बीच से कुतरने लगे।

ऋषि के इस कृत्य पर आदिशक्ति को क्रोध आया और उन्होंने भृंगी ऋषि को श्राप दिया कि जो शरीर तुम्हे अपनी माँ से मिला है, वो तत्काल प्रभाव से तुम्हारी देह छोड़ देगा, हमारी तंत्र साधना कहती है कि मनुष्य को अपने शरीर में हड्डिया और मांसपेशिया पिता की देन होती है, जबकि खून और मांस माता की देन होते है, श्राप के तुरंत प्रभाव से भृंगी ऋषि के शरीर से खून और मांस गिर गया। 

भृंगी निढाल होकर जमीन पर गिर पड़े और वो खड़े भी होने की भी क्षमता खो चुके थे, तब उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने माँ पार्वतीजी से अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी, हालाँकि तब पार्वतीजी ने द्रवित होकर अपना श्राप वापस लेना चाहा,  किन्तु अपराध बोध से भृंगी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया।

ऋषि को खड़ा रहने के लिए सहारे स्वरुप एक और (तीसरा) पैर प्रदान किया गया जिसके सहारे वो चल और खड़े हो सके, शास्त्र कहते हैं कि भक्त भृंगी के कारण ऐसे हुआ था महादेवजी के अर्धनारीश्वर रूप का उदय, अर्द्घनारीश्वर स्वरूप का जो मनुष्य भक्तिपूर्वक ध्यान करता है, वह संसार में सन्मानित होता है, दीर्घायु होता है, अनंत काल तक वह सौभाग्य प्राप्त होता है, एवम् समस्त सिद्धियाँ प्राप्त होती है।

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
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Saturday, November 30, 2019

डाॅ. प्रियंका रेड्डी बलात्कार काण्ड पर

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो,अब गोविंद ना आएंगे कब तक आस लगाओगी तुम,बिक़े हुए मिडिया, सेक्यूलर नेताओ से कैसी रक्षा मांग रही हो,दुशासन दरबारो से स्वयं जो लज्जा हीन पड़े है,वे क्या लाज बचाएंगे सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो,अब गोविंद ना आएंगे

मैं एक ज़र्रा बुलंदी को छूने निकला था 
हवा ने थम के ज़मीं पर गिरा दिया मुझ को...

सफ़ेद रंग की चादर लपेट कर मुझ पर 
फ़सील-ए-शहर पे किस ने सजा दिया मुझ को...

              पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी
                   मुंगेली छत्तीसगढ़
                   ८१२००३२८३४

यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से कुछ मन्त्र ले लो

हर परीक्षा दे चुका अब आग में इसको न ठेलो ।।
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से कुछ मन्त्र ले लो ।।

कौन कहता शांति से बिन ढाल आज़ादी मिली,
कौन कहता बिन गँवाये लाल आज़ादी मिली,
बुझ गए हैं दीप लाखों तब उजाला पा सका,
दे दिया बलिदान सर्वस तब प्रभाती गा सका,

है धरा यह प्रेम की तुम कृष्ण बनकर रास खेलो ।।(1)
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से,,,,,,,,

राष्ट्र की चिर भक्ति में है बाँधता परचम हमें,
लड़खड़ाते जब कदम है साधता परचम हमें,
एकता का मन्त्र देकर दे रहा अधिकार सब,
एक आँगन में मना लो एक हो त्योहार सब,

राष्ट्र है आज़ाद अब तो राष्ट्र को सम्मान दे लो ।।(2)
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से,,,,,,,,

दुष्ट शकुनी रच रहे गृह-युद्ध की नव नीतियाँ,
देखकर बारूद फौरन जल उठी सब तीलियाँ,
मुक्त मन से निज समर्थन दे रहीं हैं आँधियाँ,
रौद्र होकर चढ़ रही हैं शीर्ष पर सब व्याधियाँ,

भारती के लाल हो तुम वीर हर तूफान झेलो ।।(3)
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से,,,,,,,,

एक हम धृतराष्ट्र बनकर सुन रहे सारी कथा,
एक वह जो भीष्म बनकर पी रहा सारी व्यथा,
बाँसुरी को त्याग दो अब शंख की धुत्कार हो,
जो न मानें बात से फिर लात से सत्कार हो,

लक्ष्य साधे रिपु खड़े हैं खेमेश्वर तीर झेलो ।।(4)
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से,,,,,,,

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Friday, November 29, 2019

मंदिर का घंटा स्टेटिक डिस्चार्ज यंत्र

*मंदिर का घंटा स्टेटिक डिस्चार्ज यंत्र*

किसी भी मंदिर में प्रवेश करते समय आरम्भ में ही एक बड़ा घंटा बंधा होता है. मंदिर में प्रवेश करने वाला प्रत्येक भक्त पहले घंटानाद करता है और फिर मंदिर में प्रवेश करता है.

क्या कारण है इसके पीछे?

इसका एक वैज्ञानिक कारण है..

जब हम बृहद घंटे के नीचे खड़े होकर सर ऊँचा करके हाथ उठाकर घंटा बजाते हैं, तब प्रचंड घंटानाद होता है.

यह ध्वनि 330 मीटर प्रति सेकंड के वेग से अपने उद्गम स्थान से दूर जाती है, ध्वनि की यही शक्ति कंपन के माध्यम से प्रवास करती है. आप उस वक्त घंटे के नीचे खडे़ होते हैं. अतः ध्वनि का नाद आपके सहस्रारचक्र  
(ब्रम्हरंध्र,सिर के ठीक ऊपर) में प्रवेश कर शरीरमार्ग से  
भूमि में प्रवेश करता है.

यह ध्वनि प्रवास करते समय आपके मन में (मस्तिष्क में) चलने वाले असंख्य विचार, चिंता, तनाव, उदासी, मनोविकार आदि इन समस्त नकारात्मक विचारों को अपने साथ ले जाती हैं, और आप निर्विकार अवस्था में परमेश्वर के सामने जाते हैं. तब आपके भाव शुद्धतापूर्वक परमेश्वर को समर्पित होते हैं.

घंटे के नाद की तरंगों के अत्यंत तीव्र के आघात से आस-पास के वातावरण के व हमारे शरीर के सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश होता है, जिससे वातावरण मे शुद्धता रहती है, और हमें स्वास्थ्य लाभ होता है.

इसीलिए मंदिर मे प्रवेश करते समय घंटानाद अवश्य करें, और थोड़ा समय घंटे के नीचे खडे़ रह कर घंटानाद का आनंद अवश्य लें. आप चिंतामुक्त व शुचिर्भूत बनेगें.

ईश्वर की दिव्य ऊर्जा व मंदिर गर्भ की दिव्य ऊर्जाशक्ति आपका मस्तिष्क ग्रहण करेगा. आप प्रसन्न होंगे और शांति मिलेगी.

अतः आत्म-ज्ञान ,आत्म-जागरण, और दिव्यजीवन के परम आनंद की अनुभूति के लिये मंदिर जाएं व घंटानाद अवश्य करें.  
       🙏🏻हरि ॐ🙏🏻

Thursday, November 28, 2019

आज का संदेश


*ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय |*

*सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ||*

*अर्थात 👉 कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म तो ले लिया लेकिन अगर कर्म ऊँचे नहीं है तो ये तो वही बात हुई जैसे सोने के लोटे में जहर भरा हो, इसकी चारों ओर निंदा ही होती है।*

*जाती जन्म से कोई ज्ञानी नहीं होती ज्ञान प्राप्ति स्वयं करना पड़ता है*

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*🌴 शुभ प्रभात शुभ दिवस🌴*
       *☀जय श्री राम☀*
     *🏔 हर हर महादेव🏔*
  🙏🏻🙏🙏🏻🙏🙏🏻🙏🙏🏻🙏

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...