Monday, January 27, 2020

बसन्त पंचमी 29 जनवरी विशेष

*बसन्त पंचमी 29 जनवरी विशेष*
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बसंत पंचमी की तिथि पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व महत्व
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बसंत पंचमी भारतीय संस्कृति में एक बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार है जिसमे हमारी परम्परा, भौगौलिक परिवर्तन , सामाजिक कार्य तथा आध्यात्मिक पक्ष सभी का सम्मिश्रण है, हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है वास्तव में भारतीय गणना के अनुसार वर्ष भर में पड़ने वाली छः ऋतुओं (बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर) में बसंत को ऋतुराज अर्थात सभी ऋतुओं का राजा माना गया है और बसंत पंचमी के दिन को बसंत ऋतु का आगमन माना जाता है इसलिए बसंत पंचमी ऋतू परिवर्तन का दिन भी है जिस दिन से प्राकृतिक सौन्दर्य निखारना शुरू हो जाता है पेड़ों पर नयी पत्तिया कोपले और कालिया खिलना शुरू हो जाती हैं पूरी प्रकृति एक नवीन ऊर्जा से भर उठती है।

बसंत पंचमी को विशेष रूप से सरस्वती जयंती के रूप में मनाया जाता है यह माता सरस्वती का प्राकट्योत्सव है इसलिए इस दिन विशेष रूप से माता सरस्वती की पूजा उपासना कर उनसे विद्या बुद्धि प्राप्ति की कामना की जाती है इसी लिए विद्यार्थियों के लिए बसंत पंचमी का त्यौहार बहुत विशेष होता है।

बसंत पंचमी का त्यौहार बहुत ऊर्जामय ढंग से और विभिन्न प्रकार से पूरे भारत वर्ष में मनाया जाता है इस दिन पीले वस्त्र पहनने और खिचड़ी बनाने और बाटने की प्रथा भी प्रचलित है तो इस दिन बसंत ऋतु के आगमन होने से आकास में रंगीन पतंगे उड़ने की परम्परा भी बहुत दीर्घकाल से प्रचलन में है।

बसंत पंचमी के दिन का एक और विशेष महत्व भी है बसंत पंचमी को मुहूर्त शास्त्र के अनुसार एक स्वयं सिद्ध मुहूर्त और अनसूज साया भी माना गया है अर्थात इस दिन कोई भी शुभ मंगल कार्य करने के लिए पंचांग शुद्धि की आवश्यकता नहीं होती इस दिन नींव पूजन, गृह प्रवेश, वाहन खरीदना, व्यापार आरम्भ करना, सगाई और विवाह आदि मंगल कार्य किये जा सकते है।

माता सरस्वती को ज्ञान, सँगीत, कला, विज्ञान और शिल्प-कला की देवी माना जाता है।

भक्त लोग, ज्ञान प्राप्ति और सुस्ती, आलस्य एवं अज्ञानता से छुटकारा पाने के लिये, आज के दिन देवी सरस्वती की उपासना करते हैं। कुछ प्रदेशों में आज के दिन शिशुओं को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है। दूसरे शब्दों में वसन्त पञ्चमी का दिन विद्या आरम्भ करने के लिये काफी शुभ माना जाता है इसीलिये माता-पिता आज के दिन शिशु को माता सरस्वती के आशीर्वाद के साथ विद्या आरम्भ कराते हैं। सभी विद्यालयों में आज के दिन सुबह के समय माता सरस्वती की पूजा की जाती है।

वसन्त पञ्चमी का दिन हिन्दु कैलेण्डर में पञ्चमी तिथि को मनाया जाता है। जिस दिन पञ्चमी तिथि सूर्योदय और दोपहर के बीच में व्याप्त रहती है उस दिन को सरस्वती पूजा के लिये उपयुक्त माना जाता है। हिन्दु कैलेण्डर में सूर्योदय और दोपहर के मध्य के समय को पूर्वाह्न के नाम से जाना जाता है।

ज्योतिष विद्या में पारन्गत व्यक्तियों के अनुसार वसन्त पञ्चमी का दिन सभी शुभ कार्यो के लिये उपयुक्त माना जाता है। इसी कारण से वसन्त पञ्चमी का दिन अबूझ मुहूर्त के नाम से प्रसिद्ध है और नवीन कार्यों की शुरुआत के लिये उत्तम माना जाता है।

वसन्त पञ्चमी के दिन किसी भी समय सरस्वती पूजा की जा सकती है परन्तु पूर्वाह्न का समय पूजा के लिये श्रेष्ठ माना जाता है। सभी विद्यालयों और शिक्षा केन्द्रों में पूर्वाह्न के समय ही सरस्वती पूजा कर माता सरस्वती का आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है।

नीचे सरस्वती पूजा का जो मुहूर्त दिया गया है उस समय पञ्चमी तिथि और पूर्वाह्न दोनों ही व्याप्त होते हैं। इसीलिये वसन्त पञ्चमी के दिन सरस्वती पूजा इसी समय के दौरान करना श्रेष्ठ है।

सरस्वती, बसंतपंचमी पूजा
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1. प्रात:काल स्नाना करके पीले वस्त्र धारण करें।

2. मां सरस्वती की प्रतिमा को सामने रखें तत्पश्चात कलश स्थापित कर प्रथम पूज्य गणेश जी का पंचोपचार विधि पूजन उपरांत सरस्वती का ध्यान करें

ध्यान मंत्र
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या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापनीं ।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।।
हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् ।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।2।।

3. मां की पूजा करते समय सबसे पहले उन्हें आचमन व स्नान कराएं।
4. माता का श्रंगार कराएं ।
5. माता श्वेत वस्त्र धारण करती हैं इसलिए उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं।
6. प्रसाद के रुप में खीर अथवा दुध से बनी मिठाईयों का भोग लगाएं।
7. श्वेत फूल माता को अर्पण करें।
8. तत्पश्चात नवग्रह की विधिवत पूजा करें।

बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा के साथ सरस्वती चालीसा पढ़ना और कुछ मंत्रों का जाप आपकी बुद्धि प्रखर करता है। अपनी सुविधानुसार आप ये मंत्र 11, 21 या 108 बार जाप कर सकते हैं।

निम्न मंत्र या इनमें किसी भी एक मंत्र का यथा सामर्थ्य जाप करें
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1. सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने
विद्यारूपा विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तुते॥

2. या देवी सर्वभूतेषू, मां सरस्वती रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

3. ऐं ह्रीं श्रीं वाग्वादिनी सरस्वती देवी मम जिव्हायां।
सर्व विद्यां देही दापय-दापय स्वाहा।।

4. एकादशाक्षर सरस्वती मंत्र
ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः।

5. वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणी विनायकौ।।

6. सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:।
वेद वेदान्त वेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च।।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षी विद्यां देहि नमोस्तुते।।

7. प्रथम भारती नाम, द्वितीय च सरस्वती
तृतीय शारदा देवी, चतुर्थ हंसवाहिनी
पंचमम् जगतीख्याता, षष्ठम् वागीश्वरी तथा
सप्तमम् कुमुदीप्रोक्ता, अष्ठमम् ब्रह्मचारिणी
नवम् बुद्धिमाता च दशमम् वरदायिनी
एकादशम् चंद्रकांतिदाशां भुवनेशवरी
द्वादशेतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेनर:
जिह्वाग्रे वसते नित्यमं
ब्रह्मरूपा सरस्वती सरस्वती महाभागे
विद्येकमललोचने विद्यारूपा विशालाक्षि
विद्या देहि नमोस्तुते”

8. स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए।

जेहि पर कृपा करहिं जन जानि।
कवि उर अजिर नचावहिं वानी॥
मोरि सुधारहिं सो सब भांति।
जासु कृपा नहिं कृपा अघाति॥

9. गुरु गृह पढ़न गए रघुराई।
अलप काल विद्या सब पाई॥

माँ सरस्वती चालीसा
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दोहा
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जनक जननि पदम दुरज, निजब मस्तक पर धारि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि।।
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्टजनों के पाप को, मातु तुही अब हन्तु।।

चौपाई
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जय श्रीसकल बुद्धि बलरासी।जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी।।
जय जय जय वीणाकर धारी।करती सदा सुहंस सवारी।।
रूप चतुर्भुज धारी माता।सकल विश्व अन्दर विख्याता।।
जग में पाप बुद्धि जब होती।तबही धर्म की फीकी ज्योति।।
तबहि मातु का निज अवतारा।पाप हीन करती महितारा।।
बाल्मीकि  जी  था  हत्यारा।तव   प्रसाद   जानै   संसारा।।
रामचरित जो रचे बनाई । आदि कवि की पदवी पाई।।
कालीदास जो भये विख्याता । तेरी कृपा दृष्टि से माता।।
तुलसी सूर आदि विद्वाना । भये जो और ज्ञानी नाना।।
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा । केवल कृपा आपकी अम्बा।।
करहु कृपा सोई मातु भवानी।दुखित दीन निज दासहि जानी।।
पुत्र  करई  अपराध  बहूता । तेहि  न  धरई  चित  माता।।
राखु लाज जननि अब मेरी।विनय करऊ भांति बहुतेरी।।
मैं अनाथ तेरी अवलंबा । कृपा करउ जय जय जगदंबा।।
मधुकैटभ जो अति बलवाना । बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना।।
समर हजार पांच में घोरा।फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा।।
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।बुद्धि विपरीत भई खलहाला।।
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी । पुरवहु मातु मनोरथ मेरी।।
चण्ड मुण्ड जो थे विख्याता । क्षण महु संहारे उन माता।।
रक्त बीज से समरथ पापी । सुर मुनि हृदय धरा सब कांपी।।
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा।बार बार बिनवऊं जगदंबा।।
जगप्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा।क्षण में बांधे ताहि तूं अम्बा।।
भरत-मातु बुद्धि फेरेऊ जाई । रामचन्द्र बनवास कराई।।
एहि विधि रावन वध तू कीन्हा।सुर नर मुनि सबको सुख दीन्हा।।
को समरथ तव यश गुण गाना।निगम अनादि अनंत बखाना।।
विष्णु रूद्र जस कहिन मारी।जिनकी हो तुम रक्षाकारी।।
रक्त दन्तिका और शताक्षी।नाम अपार है दानव भक्षी।।
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा।।
दुर्ग आदि हरनी तू माता । कृपा करहु जब जब सुखदाता।।
नृप  कोपित को मारन चाहे । कानन  में घेरे  मृग  नाहै।।
सागर मध्य पोत के भंजे । अति तूफान नहिं कोऊ संगे।।
भूत प्रेत बाधा या दु:ख में।हो दरिद्र अथवा संकट में।।
नाम जपे मंगल सब होई।संशय इसमें करई न कोई।।
पुत्रहीन जो आतुर भाई । सबै छांड़ि पूजें एहि भाई।।
करै पाठ नित यह चालीसा । होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा।।
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।संकट रहित अवश्य हो जावै।।
भक्ति मातु की करैं हमेशा।निकट न आवै ताहि कलेशा।।
बंदी  पाठ  करें  सत  बारा । बंदी  पाश  दूर  हो  सारा।।
रामसागर बांधि हेतु भवानी।कीजे कृपा दास निज जानी।।

दोहा
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मातु सूर्य कान्ति तव, अंधकार मम रूप।
डूबन से रक्षा कार्हु परूं न मैं भव कूप।।
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
रामसागर अधम को आश्रय तू ही दे दातु।।

माँ सरस्वती वंदना
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वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
        भारत में भर दे !

काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
        जगमग जग कर दे !

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
        नव पर, नव स्वर दे !

वर दे, वीणावादिनि वर दे।

कुछ क्षेत्रों में देवी की पूजा कर प्रतिमा को विसर्जित भी किया जाता है। विद्यार्थी मां सरस्वती की पूजा कर गरीब बच्चों में कलम व पुस्तकों का दान करें। संगीत से जुड़े व्यक्ति अपने साज पर तिलक लगा कर मां की आराधना करें व मां को बांसुरी भेंट करें।

पूजा समय
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पंचमी तिथि अारंभ👉  29/जनवरी/2020 को 10.45 बजे से

पंचमी तिथि समाप्त👉 30/जनवरी/2020 को 01.18 बजे तक

सरस्वती पूजा का मुहूर्त सुबह 10:45 बजे से मध्यान 12:52 तक का है और इस मुहूर्त की अवधि 2 घंटे 07 मिनट तक रहेगी दोपहर तक इस पूजन को क‍िया जा सकता है। बसंत पंचमी के पूरे दिन आप अपने किसी भी नए कार्य का आरम्भ कर सकते हैं ये एक स्वयं सिद्ध और श्रेष्ठ मुहूर्त होता है।

सरस्वती स्तोत्रम्
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श्वेतपद्मासना देवि श्वेतपुष्पोपशोभिता।

श्वेताम्बरधरा नित्या श्वेतगन्धानुलेपना॥

श्वेताक्षी शुक्लवस्रा च श्वेतचन्दन चर्चिता।

वरदा सिद्धगन्धर्वैर्ऋषिभिः स्तुत्यते सदा॥ 

स्तोत्रेणानेन तां देवीं जगद्धात्रीं सरस्वतीम्।

ये स्तुवन्ति त्रिकालेषु सर्वविद्दां लभन्ति ते॥

या देवी स्तूत्यते नित्यं ब्रह्मेन्द्रसुरकिन्नरैः।

सा ममेवास्तु जिव्हाग्रे पद्महस्ता सरस्वती॥
॥इति श्रीसरस्वतीस्तोत्रं संपूर्णम्॥

बसन्त पंचमी कथा
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सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।

अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और यूं भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है।

🙏🌷आरती श्री सरस्वती जी 🌷🙏
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🕉जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
          सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
🕉जय सरस्वती माता॥
चन्द्रवदनि पद्मासिनि, कृति मंगलकारी।
    सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी॥
🕉जय सरस्वती माता॥
बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला।
शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला॥
🕉जय सरस्वती माता॥
देवी शरण जो आए, उनका उद्धार किया।
        बैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया॥
🕉जय सरस्वती माता॥
विद्या दान प्रदायिनि, ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह अज्ञान और निरखा का, जग से नाश करो॥
🕉जय सरस्वती माता॥
धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो।
     ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो॥
🕉जय सरस्वती माता॥
माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे।
            हितकारी सुखकारी ज्ञान भक्ति पावे॥
🕉जय सरस्वती माता॥
जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
       सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
🕉जय सरस्वती माता॥

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                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Monday, January 20, 2020

लघु कथा

*लघु कथा*

किसी￰ बाजार में एक *चिड़ीमार* तीतर बेच रहा था!

उसके पास एक बड़ी सी जाली वाली बक्से में बहुत सारे तीतर थे ..और *एक छोटे से बक्से में सिर्फ एक तीतर*

किसी ग्राहक ने उससे पूछा *एक तीतर कितने का है??*
तो उसने जवाब दिया, *एक तीतर की कीमत 40 रूपये है!*

ग्राहक ने दूसरे बक्से में जो *तन्हा तीतर* था उसकी कीमत पूछी तो तीतर वाले ने जवाब दिया!
*अव्वल तो मैं इसे बेचना ही नहीं चाहूंगा, लेकिन अगर आप लेने की जिद करोगे तो इसकी कीमत 500 रूपये होगी.*

ग्राहक ने आश्चर्य से पूछा, *इसकी कीमत 500 रुपया क्यों??*

इस पर तीतर वाले का जवाब था, *ये मेरा अपना पालतू तीतर है! और दूसरे तीतरो को जाल में फसाने का काम करता है और दूसरे सभी फंसे हुए तीतर है! ये चीख पुकार करके दूसरे तीतरो को बुलाता है और दूसरे तीतर बिना सोचे समझे एक जगह जमा हो जाते है और फिर मैं आसानी से शिकार कर पाता हूँ! इसके बाद फंसाने वाले तीतर को उसके मन पसंद की खुराक दे देता हूँ, जिससे ये खुश हो जाता है बस इस वजह से इसकी कीमत ज्यादा है!*

बाजार में एक *समझदार आदमी* ने उस तीतर वाले को 500 रूपये देकर उस तीतर की *सरे बाजार गर्दन मरोड़ दी!*

किसी ने पूछा, *आपने ऐसा क्यों किया??*

उसका जवाब था, *ऐसे दगाबाज को जिन्दा रहने का कोई हक़ नहीं जो अपने मुनाफे के लिए अपने समाज को फंसाने का काम करे* 
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                  आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
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Friday, January 17, 2020

आज का संदेश

🔴 *आज का प्रात: संदेश* 🔴

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                      *इस धरा धाम पर मनुष्य माता के गर्भ से जन्म लेता है उसके बाद वह सबसे पहले अपने माता के द्वारा अपने पिता को जानता है ,  फिर धीरे-धीरे वह बड़ा होता है अपने भाई बंधुओं को जानता है | जब वह बाहर निकलता है तो उसके अनेकों मित्र बनते हैं , फिर एक समय ऐसा आता है जब उसका विवाह हो जाता है और वह अपने पत्नी से परिचित होता है | वैवाहिक जीवन सफलता पूर्वक आगे बढ़ता है और मनुष्य अपने पुत्र का पिता बनता है | ये संसार के मुख्य संबंध है जो प्रत्येक मनुष्य के जीवन में देखे जाते हैं | यह सांसारिक संबंध पूरे जीवन काल को प्रभावित करते हैं परंतु आध्यात्मिक दृष्टि से इन संबंधों को क्या उपाधियां दी गई हैं इसका वर्णन आचार्य चाणक्य ने बहुत ही सुंदर ढंग से किया है |  आचार्य चाणक्य लिखते हैं :-- "सत्यम् माता पिता ज्ञानम धर्मों भ्राता दया सखा ! शान्ति: पत्नी क्षमा पुत्र: षडेते मम् बान्धवा: !!" अर्थात सत्य मेरी माता है , ज्ञान मेरा पिता है धर्म मेरा भाई है , दया मेरा मित्र है , पत्नी मेरी शान्ती है और क्षमा मेरा पुत्र है |  आचार्य चाणक्य के कहने का तात्पर्य यह था कि मनुष्य के यही आध्यात्मिक बांधव तो होते ही हैं साथ ही यह भी सत्य है इस झूठे जगत में माता ही सत्य है जिसने अपने उदर में नौ महीने रखकर के जन्म दिया | पिता ज्ञान स्वरूप होता है जो भले बुरे की पहचान कराता है , भाई को दाहिनी भुजा कहा जाता है और मनुष्य यदि अपने भाई अर्थात धर्म को नहीं छोड़ता है तो कभी पराजित नहीं हो सकता क्योंकि धर्म ही मनुष्य की दाहिनी भुजा बनकर उसकी रक्षा करता है | दया मित्र की तरह हमारे साथ व्यवहार करती है |  जीवन में जब मानसिक उथल पुथल मचती है तो इस संसार में एक पत्नी ही होती है जिससे एकांत आप अपने मन की बात कह कर के शांति प्राप्त कर सकते हैं और क्षमा को पुत्र इसलिए कहा गया है क्योंकि जिस प्रकार सभी रत्नों में श्रेष्ठ पुत्र रत्न होता है उसी प्रकार सभी गुणों में क्षमा भी महान गुण है | इस प्रकार मानव जीवन में यदि मनुष्य इन बांधवों को अपनाकर चलता है तो वह ना तो कभी असफल हो सकता है और ना ही उसका कोई कार्य बाधित हो सकता है |*

*आज मनुष्य अनेक प्रकार के कंटकों से घिरा हुआ दिखाई पड़ता है और यह सारे कंटक उसने स्वयं ही बिछाये हैं | आज की शिक्षा का प्रभाव है कि मनुष्य संस्कार विहीन होता चला जा रहा है | आध्यात्मिक बंधुओं की तो बात ही छोड़ दीजिए आज मनुष्य सांसारिक बंधुओं के साथ भी प्रसन्नता पूर्वक जीवन यापन नहीं कर पा रहा है | परिवार में ही अनेक प्रकार की वैमनस्यता देखने को मिल रही है | आज के अधिकतर मनुष्य अपनी मां का सम्मान नहीं कर पा रहे हैं , जिस पिता को ज्ञान स्वरूप कहा गया है उससे पुत्र बात भी नहीं करना चाहता है | मैं देख रहा हूं कि जिस मित्र को भाई से भी ऊंचा स्थान दिया गया वही मित्र आज दयाविहीन होकर अपने मित्र के ही साथ विश्वासघात कर रहा है | भाई को धर्म की संज्ञा दी गई है परंतु आज के परिवेश में मनुष्य ने धर्म का त्याग कर दिया है अपने भाई के साथ बात बात पर युद्ध कर रहा है | पत्नी को शान्ती कहा गया है परंतु आज इस प्रकार की शान्ती दिखाई पड़ रही है कि परिवार बिखर रहे हैं | आज पारिवारिक अदालतों में शांति स्वरूपा पत्नी संबंध विच्छेद के लिए मुकदमा लड़ रही है | मनुष्य क्षमा करने का गुण भूलता जा रहा है शायद इसीलिए उसके पुत्र भी उससे दूर होते चले जा रहे हैं | कहने का तात्पर्य यह है कि आज मनुष्य सत्य , ज्ञान , धर्म , दया , शान्ती एवं क्षमा जैसे महान गुणों का त्याग कर चुका है इसीलिए आज समाज में चारों ओर अनेक प्रकार के ऐसे क्रियाकलाप मनुष्यों के द्वारा देखे जा रहे हैं जो कि ना तो मनुष्य के लिए उचित है ना ही मनुष्यता के लिए | आचार्य चाणक्य के द्वारा बताए गए आध्यात्मिक बांधवों को मनुष्य स्वीकार करें या ना करें परंतु अपने बांधवों से दूर होकर के मनुष्य सफल तो हो सकता है परंतु उसे वह सब कुछ नहीं प्राप्त हो सकता जो मानव जीवन के लिए आवश्यक है | जो सुख मनुष्य को परिवार के बीच में प्राप्त हो जाता है वह एकाकी जीवन में कभी नहीं प्राप्त हो सकता | मनुष्य के जीवन में आचार्य चाणक्य के द्वारा बताए गए इन ६ बांधवों का होना परम आवश्यक है |*

*यदि जीवन को सुचारु रूप से चलाना है एवं मानव जीवन को सफल करना है तो सांसारिक बंधु बांधवों से प्रेम बनाए रखते हुए  आध्यात्मिक बंधुओं को भी जीवन से जोड़ना ही होगा |*


🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

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सभी भगवत्प्रेमियों को *"आज दिवस की मंगलमय कामना*----🙏🏻🙏🏻🌹

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                  आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
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Thursday, January 16, 2020

बांस की लकड़ी को क्यों नहीं जलाया जाता..? - "शोध लेख"

 
*_बांस की लकड़ी को क्यों नहीं जलाया जाता है, इसके पीछे धार्मिक कारण है या वैज्ञानिक कारण ?_*

हम अक्सर शुभ(जैसे हवन अथवा पूजन) और अशुभ(दाह संस्कार) कामों के लिए विभिन्न प्रकार के लकड़ियों को जलाने में प्रयोग करते है लेकिन क्या आपने कभी किसी काम के दौरान बांस की लकड़ी को जलता हुआ देखा है। नहीं ना?
भारतीय संस्कृती, परंपरा और धार्मिक महत्व के अनुसार, 'हमारे शास्त्रों में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित माना गया है। यहां तक की हम अर्थी के लिए बांस की लकड़ी का उपयोग तो करते है लेकिन उसे चिंता में जलाते नहीं।' हिन्दू धर्मानुसार बांस जलाने से पितृ दोष लगता है वहीं जन्म के समय जो नाल माता और शिशु को जोड़ के रखती है, उसे भी बांस के वृक्षो के बीच मे गाड़ते है ताकि वंश सदैव बढ़ता रहे।

क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है?
बांस में लेड व हेवी मेटल प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। लेड जलने पर लेड ऑक्साइड बनाता है जो कि एक खतरनाक नीरो टॉक्सिक है हेवी मेटल भी जलने पर ऑक्साइड्स बनाते हैं। लेकिन जिस बांस की लकड़ी को जलाना शास्त्रों में वर्जित है यहां तक कि चिता मे भी नही जला सकते, उस बांस की लकड़ी को हमलोग रोज़ अगरबत्ती में जलाते हैं। अगरबत्ती के जलने से उतपन्न हुई सुगन्ध के प्रसार के लिए फेथलेट नाम के विशिष्ट केमिकल का प्रयोग किया जाता है। यह एक फेथलिक एसिड का ईस्टर होता है जो कि श्वांस के साथ शरीर में प्रवेश करता है, इस प्रकार अगरबत्ती की तथाकथित सुगन्ध न्यूरोटॉक्सिक एवम हेप्टोटोक्सिक को भी स्वांस के साथ शरीर मे पहुंचाती है।
इसकी लेश मात्र उपस्थिति केन्सर अथवा मष्तिष्क आघात का कारण बन सकती है। हेप्टो टॉक्सिक की थोड़ी सी मात्रा लीवर को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है। शास्त्रो में पूजन विधान में कही भी अगरबत्ती का उल्लेख नही मिलता सब जगह धूप ही लिखा है हर स्थान पर धूप, दीप, नैवेद्य का ही वर्णन है। अगरबत्ती का प्रयोग भारतवर्ष में इस्लाम के आगमन के साथ ही शुरू हुआ है। इस्लाम मे ईश्वर की आराधना जीवंत स्वरूप में नही होती, परंतु हमारे यंहा होती है। मुस्लिम लोग अगरबत्ती मज़ारों में जलाते है, उनके यंहा ईश्वर का मूर्त रूप नही पूजा जाता। हम हमेशा अंधानुकरण ही करते है और अपने धर्म को कम आंकते है। जब कि हमारे धर्म की हर एक बातें वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार मानवमात्र के कल्याण के लिए ही बनी है। अतः कृपया सामर्थ्य अनुसार स्वच्छ धूप का ही उपयोग करें।


                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

नेताओं पर मनहरण घनाक्षरी


आते ही चुनाव देखो गाँव गाँव दौड़ रहे,
टोपियाँ लगाके अखरोट चले आते हैं ।।

बड़ी बड़ी कार छोड़ पैदल भटक रहे,
मन में दबाये हुये खोट चले आते हैं ।।

जोंक बन जनता का चूसते हैं रक्त यही,
पाँच साल करनें को चोट चले आते हैं ।।

एक साथ जोड़े हाथ कई नेता खेमेश्वर,
जनता से माँगने ये वोट चले आते हैं ।।(1)

*******************
अपना ही दुःख जानें अपना ही सुख मानें,
जनता का सुख इन्हें कभी पचता नहीं ।।

भूखे प्यासे लोग करें हाय हाय राम किन्तु,
इनके घरों में कोहराम मचता नहीं ।।

अपनें ही लोगों को ये बाँटते हैं पद सारे,
जनता के बीच वाला इन्हें जँचता नहीं ।।

कोरोना की चपेट से बच रहे खेमेश्वर,
नेताओं की चपेट से कोई बचता नहीं ।।(2)

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Tuesday, January 14, 2020

आज का संदेश

🔴 *आज का प्रात: संदेश* 🔴

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                            *इस धराधाम पर मनुष्य का एक दिव्य इतिहास रहा है | मनुष्य के भीतर कई गुण होते हैं इन गुणों में मनुष्य की गंभीरता एवं सहनशीलता मनुष्य को दिव्य बनाती है | मनुष्य को गंभीर होने के साथ सहनशील भी होना पड़ता है यही गंभीरता एवं सहनशीलता मनुष्य को महामानव बनाती है | मथुरा में जन्म लेकर गोकुल आने के बाद कंस के भेजे हुए अनेकानेक राक्षसों का अनाचार सहते हुए बालकृष्ण गंभीर ही बने रहे एवं अपनी गंभीरता दिखाते हुए वे अपने कला कौशल से सभी दैत्यों का संहार करते रहे | भगवान कृष्ण की बात गोकुल में सभी मानते थे यदि वे कहते तो सभी लोग गोकुल / वृंदावन का त्याग करके अन्यत्र कहीं भी जा सकते थे | परंतु उन्होंने "न दैन्यं न पलायनं" की विधा को आधार मानकर वहीं रहते हुए इन दैत्यों का डटकर सामना तो करते ही रहे साथ गम्भीरता से उचित समय की प्रतीक्षा करते रहे | आगे क्या हुआ यह सभी जानते हैं | मनुष्य के जीवन में कई ऐसे पात्र , घटनायें उसको असहज करने वाले होते हैं परंतु मनुष्य को ऐसे समय में स्वयं की गम्भीरता एवं सहनशीलता की परीक्षा लेनी चाहिए | प्रत्येक मनुष्य की दृष्टि में यह कुसमय होता है | इसी कुसमय में जो क्रोध मोहादि पर विजय प्राप्त करके स्वयं को सम्हाल ले लगा वही महामानव कहलाता है | प्रत्येक मनुष्य के जीवन में अच्छा व बुरा समय आता रहता है | अच्छा समय तो बहुत जल्दी व्यतीत हो जाता है , परंतु बुरा समय काटना कठिन हो जाता है | जिसे मनुष्य बुरा समय समझता है वास्तव में वही उसके परीक्षा की घड़ी होती है और इसमें प्रत्येक मनुष्य को गम्भीर एवं सहनशील होकर इस परीक्षा को उत्तीर्ण करना चाहिए |* 


*आज हम जिस युग में जीवन यापन कर रहे हैं उसे आधुनिक युग कहा जाता है | आज के आधुनिक युग को यदि दम्भी युग कहा जाय तो अतिशयोक्ति ना होगी | आज प्रत्येक मनुष्य अपने दम्भ में छोटों को प्रेम एवं बड़ों को सम्मान देना भूलता चला जा रहा है , परंतु ऐसे में गंभीर व्यक्ति को अपनी गंभीरता बनाए रखना चाहिए | जिस प्रकार घर में सर्प घुस जाने पर लोग अपना घर ना छोड़ करके उस सर्प के निकलने की प्रतीक्षा करते हैं उसी प्रकार यदि किसी के जीवन में ऐसा समय आ जाता है तो उस समय व्यक्ति को गंभीरता का परिचय देते हुए उस समय को व्यतीत हो जाने की प्रतीक्षा करनी चाहिए | मैं  देखता हूं कि जब गांव से कोई हाथी निकल पड़ता है तो अनेक ग्रामसिंह (कुत्ते) उसके विरोध स्वरूप इकट्ठे होकर की उसके पीछे पीछे बहुत दूर तक भौंकते चले जाते हैं , परंतु वह मदमस्त हाथी अपनी चाल में चलता चला जाता है | यदि वह हाथी एक बार घूम जाय तो उन ग्रामसिंहों का पता ना चले परंतु गम्भीरता बनाए रखते हुए वह हाथी अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता चला जाता है | अपने चारों तरफ उठ रही आवाजों का ध्यान न देकर प्रत्येक मनुष्य को उस हाथी की भांति सहनशील एवं गंभीर होकर के अपने लक्ष्य पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहिए | मैं मानता हूं कि ऐसा कर पाना संभव नहीं हो पाता है क्योंकि कभी-कभी मनुष्य को ऐसे लोग असहज कर देते हैं जिनका स्थान उनके हृदय में होता है | ऐसी स्थिति में व्यक्ति उद्विग्न हो जाता है और कभी-कभी वह अपनी गंभीरता और सहनशीलता का त्याग भी करता हुआ देखा जाता है | जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि यही मनुष्य के गंभीरता एवं सहनशीलता की परीक्षा होती है |* 

*मैं मानता हूं कि ऐसी स्थिति किसी का भी सहज हो पाना संभव नहीं है , परंतु महापुरुष वही होते हैं जो ऐसी घटनाओं को धूल की तरह झटक देते हैं |*

🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

सभी भगवत्प्रेमियों को *"शुभ प्रभात वन्दन, मकर संक्रांति महापर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐*----🙏🏻🙏🏻🌹

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                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Sunday, January 12, 2020

आज का संदेश


           🔴 *आज का प्रात: संदेश* 🔴

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                      *मानव जीवन में शिक्षा का बहुत बड़ा महत्व है | शिक्षा प्राप्त किए बिना मनुष्य जीवन के अंधेरों में भटकता रहता है | मानव जीवन की नींव विद्यार्थी जीवन को कहा जा सकता है | यदि उचित शिक्षा ना प्राप्त हो तो मनुष्य को समाज में पिछड़ कर रहना और उपहास , तिरस्कार आदि का भाजन बनना पड़ता है | यदि शिक्षा समय रहते ना मिले तो फिर अंधेरे में भटकना और जीवन में ठोकरें खाना ही हाथ रह जाता है | सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शिक्षकों एवं अभिभावकों को यह विचार करना चाहिए कि शिक्षा का उद्देश्य क्या होना चाहिए ? पहले इतने विद्यालय तो नहीं थे परंतु गुरुकुल आश्रमों की शिक्षा सुदृढ़ होती थी , बालक वहां से संस्कारी एवं विद्वान बनकर निकलता था | यदि मनुष्य के अंदर संस्कार हैं तो उसे जीवन के किसी भी क्षेत्र में पराजय का मुंह नहीं देखना पड़ेगा | हमारे गुरुकुल आश्रमों में विद्यार्थी के गुण , कर्म एवं स्वभाव का निर्माण करके उसमें संस्कार आरोपित करके किया जाता था | शिक्षा का उद्देश्य मात्र धनोपार्जन ना हो करके लोक कल्याणक होता था | मात्र वैदिक शिक्षा ही नहीं बल्कि बालकों को सांसारिक एवं औद्योगिक शिक्षा भी गुरुकुल आश्रमों में दी जाती थी इसके साथ ही अस्त्र शस्त्र चलाने की कला सिखाने की व्यवस्था भी प्राचीन गुरुकुल विद्यालयों में थी | छात्र को गुरुओं के द्वारा कठिन परीक्षा से भी दो-चार होना पड़ता था जिससे छात्र की मनोभूमि मजबूत होकर के समाज में उठ रही विकृतियों से लड़ने का साहस प्रदान करती थी | तब लोग अनाचार / कदाचार का विरोध करते हुए उसका दमन करने का प्रयास करते थे | हमारे गुरुकुल आश्रम की शिक्षा व्यवस्था बालक को उसकी रूचि के अनुसार किसी भी परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए तैयार करती थी | सबसे बड़ी परीक्षा होती है जीवन की , जीवन की कठिनाइयों में एक मनुष्य को कैसा आचरण करना चाहिए यह शिक्षा प्राचीन भारत के गुरुकुल आश्रमों में ही मिल सकती थी | यही कारण है कि गुरुकुल से निकले हुए छात्रों ने भारत देश की ध्वजा संपूर्ण विश्व में फहराते हुए भारत को विश्व गुरु बनने में सहयोग प्रदान किया था |*


*आज संपूर्ण विश्व ने बहुत प्रगति कर ली है | जीवन के हर क्षेत्र में मनुष्य नें सफलता के परचम लहराए हैं , इनसे शिक्षा क्षेत्र भी अधूरा नहीं है | आज अनेक प्रकार के आधुनिक संसाधनों के साथ छात्रों को शिक्षा तो प्रदान की जा रही है परंतु यदि यह कहा जाए कि आज की शिक्षा का लक्ष्य मात्र धनोपार्जन रह गया है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | यह प्रवृत्ति कलियुग का प्रभाव है या आज की आवश्यक आवश्यकता यह विचारणीय विषय है | वैसे तो गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने मानस में बहुत पहले लिख दिया था कि :- मातु पिता बाल्कन्ह बोलावहिं ! उदर भरहिं सोइ धर्म सिखावहिं !! कलियुग में माता पिता अपने पुत्र को वही धर्म सिखाएंगे जिससे कि धनोपार्जन करके उदर की पूर्ति हो जाए | मैं आज की शिक्षा व्यवस्था को देख रहा हूं जिसमें संस्कार एवं संस्कृति का लोप होता जा रहा है | एक नौनिहाल को संस्कारी एवं शिक्षित बनाने के लिए जितना दायित्व शिक्षक का है उससे कहीं अधिक अभिभावक का भी होता है , क्योंकि विद्यार्थी दोनों ही वातावरण में पलता रहता है | परंतु आज अभिभावक अपने बच्चों को समय नहीं दे पा रहे हैं जिसके कारण विद्यालय में प्राप्त होने वाली शिक्षा बालक को तो प्राप्त हो जाती है परंतु घर से मिलने वाले संस्कारों से वह वंचित हो जाता है | यही कारण है कि आज समाज में अनेक प्रकार की विकृतियाँ देखने को मिल रही हैं | किसी भी मनुष्य का संस्कारी होना उतना ही आवश्यक है जितना कि उसका जीवन जीना ! बिना संस्कार के मनुष्य पशु के समान ही जीवन व्यतीत करता है | यह दुखद है कि आज विद्यालयों में शिक्षा की उचित व्यवस्था तो देखने को मिलती है परंतु संस्कार कहीं भी देखने को नहीं मिल रहे , जिसका परिणाम आज स्पष्ट देखा जा सकता है |*


*बालकों में शिक्षा के साथ-साथ संस्कारों का आरोपण होते रहना चाहिए अन्यथा आने वाला समय कैसा होगा यह सोचकर ही हृदय कम्पित हो जाता है |*


🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

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सभी भगवत्प्रेमियों को *"आज दिवस की मंगलमय कामना*----🙏🏻🙏🏻🌹

                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

आज का संदेश


              🏹 *आज का संदेश* 🏹

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                *इस धरती पर किसी को भी समय से पहले एवं भाग्य से ज्यादा कभी कुछ भी नहीं प्राप्त होता | उचित समय आने पर स्वयं सारे कार्य बनने लगते हैं | जब तक उचित समय न आये तब तक लाख प्रयास करने पर भी कोई कार्य नहीं सिद्ध हो सकता | आज मनुष्य कोई भी कार्य करने के बाद तुरन्त परिणाम चाहता है परंतु यह सभी कार्यों में सम्भव नहीं है | कुछ लोग अच्छे एवं परिश्रमपूर्वक कर्म करने के बाद भी आशातीत परिणाम नहीं पाते हैं तो उनको ईश्वर पर मिथ्या दोष न लगाकर यह विचार करना चाहिए कि मेरे कर्म करने में ही कोई कमी रह गयी या फिर अभी कर्मों का फल प्राप्त होने का उचित समय नहीं आया है | मनुष्य का अधिकार मात्र कर्म पर है , इसलिए फल की चिन्ता किये बिना सतत् कर्म करते रहना चाहिए |*

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                  *शुभम् करोति कल्याणम्*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
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आज का सांध्य संदेश


           🔴 *आज का सांध्य संदेश* 🔴

          💪 *"युवा दिवस" पर विशेष* 💪

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                            *किसी भी राष्ट्र के निर्माण में युवाओं की मुख्य भूमिका होती है | जहां अपनी संस्कृति , सभ्यता एवं संस्कारों का पोषण करने का कार्य बुजुर्गों के द्वारा किया जाता है वहीं उनका विस्तार एवं संरक्षण का भार युवाओं के कंधों पर होता है | किसी भी राष्ट्र के निर्माण में युवाओं का योगदान होता है इसे जानने के लिए हमको इतिहास के पन्नों को पलटना होगा | लुप्त होती हुई मानव संस्कृति को बचाने एवं धर्म की पुनर्स्थापना के लिए अयोध्या के युवा राजकुमार मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने रावण जैसे दुर्दांत निशाचर का वध करने का संकल्प लेकर उसका वध करके भारतीय संस्कृति का ध्वज फहराया | माता-पिता के पति एक युवा की क्या नैतिक जिम्मेदारी होती है इसका दर्शन करना है तो युवा श्रवण कुमार का चरित्र अवश्य देखना चाहिए | अपने राज्य के मद में अंधा होकर के निरंकुश बन कर प्रजा पर अनेक प्रकार के अत्याचार करने वाले मथुरा के राजा कंस का अंत युवा श्याम सुंदर कन्हैया ने किया | इसके अतिरिक्त परतंत्र भारत को स्वतंत्र करने के लिए युवाओं ने जिस प्रकार का योगदान दिया है उसको नहीं भुलाया जा सकता है | राष्ट्र का निर्माण युवाओं के कंधे पर होता है |  हमारे देश के सरदार भगत सिंह , सुखदेव , राजगुरु ,  महाराणा प्रताप , पंडित चंद्रशेखर आजाद आदि युवाओं ने सिद्ध करके दिखाया है | अपने देश की संस्कृति के ध्वजवाहक स्वामी विवेकानंद जी को इस अवसर पर भला कैसे भूला जा सकता है जिन्होंने भारतीय संस्कृति , आधायात्म एवं युवा भारत का प्रतिनिधित्व विदेशी धरती पर करके भारत देश का ध्वज फहराया | स्वतंत्र भारत के इतिहास में अनेकों युवाओं ने भारत के नव निर्माण अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है ,  आज के युवाओं को उनसे शिक्षा ग्रहण करके नए भारत के निर्माण में अपना योगदान देते रहना चाहिए | प्रत्येक युवा किसी न किसी को अपना आदर्श मानता है और उन्हीं के क्रियाकलापों से प्रेरणा लेकर के अपने कार्य संपादित करता है | हमारे देश में आदर्शों की कमी नहीं है  राम , कृष्ण , बुद्ध , वीर शिवाजी , वीर अब्दुल हमीद , वीर सावरकर एवं स्वतंत्रता के संग्राम अपना सब कुछ बलिदान कर देने वाले युवाओं को अपना आदर्श मानकर यदि आज की युवा पीढ़ी उनके पदचिन्हों का अनुसरण करें तो हमारा देश भारत पुनः सोने की चिड़िया कहे जाने के योग्य बन सकता है परंतु आज का युवा भटक गया है | हमें यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि आज युवाओं ने अपने आदर्शों की ओर देखना बंद कर दिया है आज युवाओं के बदल रहे आदर्शों ने उन्हें पथभ्रष्ट कर दिया है |*

*आज समय परिवर्तित हो गया है ऐसा करने का सबसे प्रमुख कारण है कि जहां पूर्वकाल में हमारे देश में चरित्र ,बल , शिक्षा एवं परिश्रम को ही सफलता का मापदंड माना जाता था वहीं आज सफलता का समीकरण बदल कर रह गया है | आज के युवा भटकते हुए दिखाई पड़ रहे हैं क्योंकि आज यही देखा जा रहा है कि युवाओं के आदर्श कोई देशभक्त ,  महापुरुष या देवी देवता ना हो करके फिल्मों के नायक एवं नायिकाएं ही हैं | आज का युवा इन फिल्मी कलाकारों को अपना आदर्श मानकर के उन्हीं की तरह रातो रात प्रसिद्धि प्राप्त करने की सोचा करता है | इसे मृगतृष्णा ना माना जाय तो और क्या कहा जा सकता है ? सामाजिक जिम्मेदारी से अधिक आर्थिक जिम्मेदारी को ही अपना सब कुछ समझने वाले आज के युवा इसी कारण अधिकतर तनावग्रस्त भी रहते हैं | नायक - नायिकाओं के द्वारा फिल्मी पर्दे पर दिखाए जाने वाले अश्लीलता , हिंसा एवं कामुकता भरे दृश्यों को देख कर के अपने जीवन में उसी प्रकार करने का प्रयास भी करता है | मैं कहना चाहूंगा कि युवा वर्ग को यह बात समझनी होगी कि पर्दे की दुनिया एवं वास्तविक धरातल में जमीन आसमान का अंतर होता है | आज यह विचार करने का समय आ गया है कि युवा वर्ग देश की रीढ़ की हड्डी होता है , जिस प्रकार रीड की हड्डी में कोई रोग हो जाने पर मनुष्य सीधा नहीं खड़ा हो सकता है उसी प्रकार जिस देश का युवा मानसिक रोग से ग्रसित हो जाएगा वह देश कभी भी प्रगति नहीं कर पाएगा | यह यथार्थ सत्य है कि किसी भी देश या समाज पर आने वाले संकटों का सामना करने में कोई समर्थ होता है तो वह युवा वर्ग ही होता है | जब - जब देश पर कोई संकट आया है तब - तब उन संकटों का मुकाबला युवा वर्ग ने ही किया है |  युवाओं को यह समझने की आवश्यकता है | आज के युवा देश के भविष्य हैं उन्हें यह विचार करना चाहिए कि जिस प्रकार की नींव वे डालेंगे आने वाली पीढ़ी उसी प्रकार की दीवाल उसके ऊपर खड़ी कर पाएगी , इसलिए युवाओं को अपने आदर्शों के पद चिन्हों का अनुसरण करने की आवश्यकता है , अन्यथा आने वाला समय बहुत ही भयावह हो सकता है |*

*अधिकतर युवा नशे की चपेट में जाते हुए देखी जा रहे हैं जो कि अनुचित तो है ही साथ ही देश की प्रगति में भी बाधक है | युवा शक्ति राष्ट्र शक्ति के प्रयोजन को समझते हुए युवाओं को इस पर चिंतन करना चाहिए |*

🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

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सभी भगवत्प्रेमियों को *"शुभ संध्या वन्दन*----🙏🏻🙏🏻🌹

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
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Saturday, January 11, 2020

आज का संदेश


           🔴 *आज का प्रात: संदेश* 🔴

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                           *सनातन धर्म में तपस्या का महत्वपूर्ण स्थान रहा है | हमारे ऋषियों - महर्षियों एवं महापुरुषों ने लम्बी एवं कठिन तपस्यायें करके अनेक दुर्लभ सिद्धियां प्राप्त की हैं | तपस्या का नाम सुनकर हिमालय की कन्दराओं का चित्र आँखों के आगे घूम जाती है | क्योंकि ऐसा सुनने में आता है कि ये तपस्यायें घर का त्याग करके हिमालय या एकान्त में की गई हैं | यह तो सत्य है कि बिना तपस्या किये मनवांछित नहीं प्राप्त किया जा सकता , परंतु तपस्या करने के लिए हिमालय ही जाना पड़ेगा ! यह आवश्यक नहीं है | सबसे पहले तपस्या का मर्म जान लिया जाय | तपस्या का एक अर्थ है जहां इच्छाएं समाप्त हो जाए | हम लोग भूखे रहने की तपस्या तो काफी कर रहे हैं पर तपस्या के पीछे छिपे उद्देश्य को भूल रहे हैं | तप से आत्मा शुद्ध होती है, कष्ट मिट जाते हैं | तप का अर्थ क्या है इसे समझना आवश्यक है | यदि हमें मक्खन से घी बनाना है तो सीधे ही उसे आंच पर नहीं रख देते | उसे किसी बरतन में डालना होगा | यहां उद्देश्य बरतन को तपाना नहीं है बल्कि मक्खन को तपाकर उसे शुद्ध करना है | इसी तरह आत्मा का शुद्धिकरण होता है | हृदय में उठ रही अनैतिक इच्छाओं का शमन एवं स्वयं में स्थित काम , क्रोध , मद , लोभ , अहंकार , मात्सर्य आदि कषायों का वध करके समाप्त कर देना ही मूल तपस्या है |* 


*आजकल तपस्या का मूल उद्देश्य लगभग समाप्त सा हो रहा है | दिखावा, प्रदर्शन आदि पर अनाप-शनाप खर्च किया जा रहा है | इससे राग-द्वेष बढ़ रहा है | यह परिवार में क्लेश का कारण भी बन सकता है | ऐसे में यह तपस्या तप न रहकर मनमुटाव का कारण बन सकती है | आज हमारे पास सब कुछ अर्थात अपार धन, वैभव, सुख, साधन है , फिर भी हम न सुखी हैं न संतुष्ट | सद्गुरु हमसे कहते हैं थोड़ी तपस्या करो | अपने आपको तपाओ, तो तुम स्वयं संत, साधु, मुनि बन जाओगे | हमने सद्गुरु की बात सुनकर शरीर को तपा लिया मगर मन को नहीं तपा सके। मन तो अब भी वैसा ही है | भीतर क्रोध की ज्वाला धधक रही है | तपस्या करना भी आसान बात है, परंतु भीतर के कषायों को छोड़ना अधिक दुष्कर है | हमने तपस्या का संबंध शरीर से जोड़ लिया है | हम शरीर को तो सुखा लेते है, मगर भीतर के क्रोध, कषाय, मोह को नहीं सुखा पाते | मैं देख रहा हूँ कि हमारे यहां चतुर्मास में तपस्या की होड़ लग जाती है | यह अच्छी बात है परंतु क्या तपसाधना के साथ हम इंद्रिय संयम और कषाय मुक्ति का लक्ष्य रख पाते हैं ??इंद्रियों के उपशमन को ही उपवास कहते हैं | इंद्रिय विजेता ही सच्चा तपस्वी है | तपसाधना है शांति पाने का माध्यम | इच्छाएं जब तक समाप्त नहीं होगी तपस्या का अर्थ ही कहां रह जाएगा | तपस्या तो ऐसी होनी चाहिए कि किसी को पता ही न चले | तप प्रदर्शन का माध्यम नहीं है, वह तो कषाय मुक्ति और आत्मा शुद्धि का अभियान है | तप से आत्मा परिशुद्ध होती है | शरीर को तपाना तो पड़ेगा ही अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगाने के लिए | ऐसा न हो कि ऊपर से तो उपवास कर रहे हैं और भीतर कुछ पाने की चाह बनी हुई है |* 

*तपस्या का संबंध बाह्य उपभोगों से न जोड़ें | अंतर्मन से आत्मा से जोड़ने की कोशिश करें | यह तो आत्मा की खुराक है न कि शरीर की | उपवास का अर्थ केवल इतना ही नहीं कि भोजन नहीं किया जाए | उपवास का अर्थ है शरीर की प्रवृतियों से मुक्त होकर मनुष्य आत्मावास का संकल्प लें |*

🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

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सभी भगवत्प्रेमियों को *"आज दिवस की मंगलमय कामना*----🙏🏻🙏🏻🌹

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
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Friday, January 10, 2020

आज का संदेश


           🔴 *आज का संदेश* 🔴

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                           *आदिकाल से इस धराधाम पर विद्वानों की पूजा होती रही है | एक पण्डित / विद्वान को किसी भी देश के राजा की अपेक्षा अधिक सम्मान प्राप्त होता है कहा भी गया है :- "स्वदेशो पूज्यते राजा , विद्वान सर्वत्र पूज्यते" राजा की पूजा वहीं तक होती है जहाँ तक लोग यह जामते हैं कि वह राजा है परंतु एक विद्वान अपनी विद्वता से प्रत्येक स्थान में , प्रत्येक परिस्थित में पूज्यनीय रहता है | विचारणीय विषय यह है कि विद्वान किसे माना जाय ?? क्या कुछ पुस्तकों का या किसी विषय विशेष का अध्ययन कर लेने मात्र से कोई विद्वान हो सकता है ? इस विषय का महाभारत के उद्योगपर्व में विस्तृत वर्णन देखा जा सकता है | जिसके अनुसार :- "क्षिप्रं विजानाति चिरं श्रृणोति विज्ञाय चार्थं भजते न कामात् ! नासंपृष्टो ह्युप्युंक्ते परार्थें तत्प्रज्ञानं प्रथमं पण्डितस्य !!" अर्थात :- जो वेदादि शास्त्र और दूसरे के कहे अभिप्राय को शीघ्र ही जानने वाला है | जो दीर्घकाल पर्यन्त वेदादि शास्त्र और धार्मिक विद्वानों के वचनों को ध्यान देकर सुन कर व उसे ठीक-ठीक समझकर निरभिमानी शान्त होकर दूसरों से प्रत्युत्तर करता है | जो परमेश्वर से लेकर पृथिवी पर्यन्त पदार्थो को जान कर उनसे उपकार लेने में तन, मन, धन से प्रवर्तमान होकर काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोकादि दुष्ट गुणों से पृथक् रहता है तथा किसी के पूछने वा दोनों के सम्वाद में बिना प्रसंग के अयुक्त भाषणादि व्यवहार न करने वाला है | ऐसा होना ही ‘पण्डित’ की बुद्धिमत्ता का प्रथम लक्षण है | संसार के समस्त ज्ञान को स्वयं में समाहित कर लेने बाद भी यदि विद्वान में संस्कार , व्यवहार और वाणी में मधुरता न हुई तो वह विद्वान कदापि नहीं कहा जा सकता |* 


*आज के युग में पहले की अपेक्षा विद्वानों की संख्या बढ़ी है | परंतु उनमें विद्वता के लक्षण यदि खोजा जाय तो शायद ही प्राप्त हो जायं | आज अधिकतर विद्वान अपनी विद्वता के मद में न तो किसी का सम्मान करना चाहते हैं और न ही किसी का पक्ष सुनना चाहते हैं ऐसा व्यवहार करके वे स्वयं में भले ही अपनी विद्वता का प्रदर्शन कर रहे हों परंतु समाज की दृष्टि में वे असम्मानित अवश्य हो जाते हैं | मैं बताना चाहूँगा कि लंका के राजा त्रैलोक्यविजयी रावण से अधिक विद्वान कोई नहीं हुआ परंतु उसका भी पतन उसके संस्कार , व्यवहार एवं अभिमान के कारण ही हुआ | आज विद्वानों में स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित करने की होड़ सी लगी दिखाई पड़ती है | जबकि सत्य यह है कि किसी भी विद्वान को यह घोषणा करने की आवश्यकता नहीं होती है कि वह विद्वान है | उसके ज्ञान , आचरण एवं समाज के प्रति व्यवहार ही उसको विद्वान बनाती है | आज प्राय: देखा जा रहा है कि यदि किसीसने कुछ पुस्तकों का अध्ययन कर लिया तो वह विद्वान बनने की श्रेणी में आ जाता है और उसमें अहंकार भी प्रकट हो जाता है | यह तथाकथित विद्वान स्वयं के ही ज्ञान को श्रेष्ठ मानते हुए उसे ही सिद्ध करने लगते हैं | जबकि ऐसे लोगों को "कूप मण्डूक" से अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता है |*

 *विद्वानों का सम्मान सदैव से होता रहा है और होता रहेगा परंतु उसके लिए यह आवश्यक है कि विद्वान के संस्कार , व्यवहार , एवं वाणी भी सम्माननीय एवं ग्रहणीय हो |*

🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

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सभी भगवत्प्रेमियों को *"आज दिवस की मंगलमय कामना*----🙏🏻🙏🏻🌹

                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

आज का संदेश


           🔴 *आज का संदेश* 🔴

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                           *आदिकाल से इस धराधाम पर विद्वानों की पूजा होती रही है | एक पण्डित / विद्वान को किसी भी देश के राजा की अपेक्षा अधिक सम्मान प्राप्त होता है कहा भी गया है :- "स्वदेशो पूज्यते राजा , विद्वान सर्वत्र पूज्यते" राजा की पूजा वहीं तक होती है जहाँ तक लोग यह जामते हैं कि वह राजा है परंतु एक विद्वान अपनी विद्वता से प्रत्येक स्थान में , प्रत्येक परिस्थित में पूज्यनीय रहता है | विचारणीय विषय यह है कि विद्वान किसे माना जाय ?? क्या कुछ पुस्तकों का या किसी विषय विशेष का अध्ययन कर लेने मात्र से कोई विद्वान हो सकता है ? इस विषय का महाभारत के उद्योगपर्व में विस्तृत वर्णन देखा जा सकता है | जिसके अनुसार :- "क्षिप्रं विजानाति चिरं श्रृणोति विज्ञाय चार्थं भजते न कामात् ! नासंपृष्टो ह्युप्युंक्ते परार्थें तत्प्रज्ञानं प्रथमं पण्डितस्य !!" अर्थात :- जो वेदादि शास्त्र और दूसरे के कहे अभिप्राय को शीघ्र ही जानने वाला है | जो दीर्घकाल पर्यन्त वेदादि शास्त्र और धार्मिक विद्वानों के वचनों को ध्यान देकर सुन कर व उसे ठीक-ठीक समझकर निरभिमानी शान्त होकर दूसरों से प्रत्युत्तर करता है | जो परमेश्वर से लेकर पृथिवी पर्यन्त पदार्थो को जान कर उनसे उपकार लेने में तन, मन, धन से प्रवर्तमान होकर काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोकादि दुष्ट गुणों से पृथक् रहता है तथा किसी के पूछने वा दोनों के सम्वाद में बिना प्रसंग के अयुक्त भाषणादि व्यवहार न करने वाला है | ऐसा होना ही ‘पण्डित’ की बुद्धिमत्ता का प्रथम लक्षण है | संसार के समस्त ज्ञान को स्वयं में समाहित कर लेने बाद भी यदि विद्वान में संस्कार , व्यवहार और वाणी में मधुरता न हुई तो वह विद्वान कदापि नहीं कहा जा सकता |* 


*आज के युग में पहले की अपेक्षा विद्वानों की संख्या बढ़ी है | परंतु उनमें विद्वता के लक्षण यदि खोजा जाय तो शायद ही प्राप्त हो जायं | आज अधिकतर विद्वान अपनी विद्वता के मद में न तो किसी का सम्मान करना चाहते हैं और न ही किसी का पक्ष सुनना चाहते हैं ऐसा व्यवहार करके वे स्वयं में भले ही अपनी विद्वता का प्रदर्शन कर रहे हों परंतु समाज की दृष्टि में वे असम्मानित अवश्य हो जाते हैं | मैं बताना चाहूँगा कि लंका के राजा त्रैलोक्यविजयी रावण से अधिक विद्वान कोई नहीं हुआ परंतु उसका भी पतन उसके संस्कार , व्यवहार एवं अभिमान के कारण ही हुआ | आज विद्वानों में स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित करने की होड़ सी लगी दिखाई पड़ती है | जबकि सत्य यह है कि किसी भी विद्वान को यह घोषणा करने की आवश्यकता नहीं होती है कि वह विद्वान है | उसके ज्ञान , आचरण एवं समाज के प्रति व्यवहार ही उसको विद्वान बनाती है | आज प्राय: देखा जा रहा है कि यदि किसीसने कुछ पुस्तकों का अध्ययन कर लिया तो वह विद्वान बनने की श्रेणी में आ जाता है और उसमें अहंकार भी प्रकट हो जाता है | यह तथाकथित विद्वान स्वयं के ही ज्ञान को श्रेष्ठ मानते हुए उसे ही सिद्ध करने लगते हैं | जबकि ऐसे लोगों को "कूप मण्डूक" से अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता है |*

 *विद्वानों का सम्मान सदैव से होता रहा है और होता रहेगा परंतु उसके लिए यह आवश्यक है कि विद्वान के संस्कार , व्यवहार , एवं वाणी भी सम्माननीय एवं ग्रहणीय हो |*

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Wednesday, January 8, 2020

किसने बसाया भारतवर्ष ......

 
किसने बसाया भारतवर्ष ...... 

त्रेतायुग में अर्थात भगवान राम के काल के हजारों वर्ष पूर्व प्रथम मनु स्वायंभुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारतवर्ष को बसाया था, तब इसका नाम कुछ और था।

वायु पुराण के अनुसार महाराज प्रियव्रत का अपना कोई पुत्र नहीं था तो उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था। नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था। इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि राम के कुल में पूर्व में जो भरत हुए उनके नाम पर भारतवर्ष नाम पड़ा। यहां बता दें कि पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष नहीं पड़ा।

इस भूमि का चयन करने का कारण था कि प्राचीनकाल में जम्बू द्वीप ही एकमात्र ऐसा द्वीप था, जहां रहने के लिए उचित वातारवण था और उसमें भी भारतवर्ष की जलवायु सबसे उत्तम थी। यहीं विवस्ता नदी के पास स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा निवास करते थे।

राजा प्रियव्रत ने अपनी पुत्री के 10 पुत्रों में से 7 को संपूर्ण धरती के 7 महाद्वीपों का राजा बनाया दिया था और अग्नीन्ध्र को जम्बू द्वीप का राजा बना दिया था। इस प्रकार राजा भरत ने जो क्षेत्र अपने पुत्र सुमति को दिया वह भारतवर्ष कहलाया। भारतवर्ष अर्थात भरत राजा का क्षे‍त्र।

भरत एक प्रतापी राजा एवं महान भक्त थे। श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कंध एवं जैन ग्रंथों में उनके जीवन एवं अन्य जन्मों का वर्णन आता है। महाभारत के अनुसार भरत का साम्राज्य संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में व्याप्त था जिसमें वर्तमान भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिज्तान, तुर्कमेनिस्तान तथा फारस आदि क्षेत्र शामिल थे।

2. प्रथम राजा भारत के बाद और भी कई भरत हुए। 7वें मनु वैवस्वत कुल में एक भारत हुए जिनके पिता का नाम ध्रुवसंधि था और जिसने पुत्र का नाम असित और असित के पुत्र का नाम सगर था। सगर अयोध्या के बहुत प्रतापी राजा थे। इन्हीं सगर के कुल में भगीरथ हुए, भगीरथ के कुल में ही ययाति हुए (ये चंद्रवशी ययाति से अलग थे)। ययाति के कुल में राजा रामचंद्र हुए और राम के पुत्र लव और कुश ने संपूर्ण धरती पर शासन किया।

3. भरत : महाभारत के काल में एक तीसरे भरत हुए। पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत की गणना 'महाभारत' में वर्णित 16 सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। कालिदास कृत महान संस्कृत ग्रंथ 'अभिज्ञान शाकुंतलम' के एक वृत्तांत अनुसार राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के पुत्र भरत के नाम से भारतवर्ष का नामकरण हुआ। मरुद्गणों की कृपा से ही भरत को भारद्वाज नामक पुत्र मिला। भारद्वाज महान ‍ऋषि थे। चक्रवर्ती राजा भरत के चरित का उल्लेख महाभारत के आदिपर्व में भी है।

वैवस्वत मनु : ब्रह्मा के पुत्र मरीचि के कुल में वैवस्वत मनु हुए। एक बार जलप्रलय हुआ और धरती के अधिकांश प्राणी मर गए। उस काल में वैवस्वत मनु को भगवान विष्णु ने बचाया था। वैवस्वत मनु और उनके कुल के लोगों ने ही फिर से धरती पर सृजन और विकास की गाथा लिखी।

वैवस्वत मनु को आर्यों का प्रथम शासक माना जाता है। उनके 9 पुत्रों से सूर्यवंशी क्षत्रियों का प्रारंभ हुआ। मनु की एक कन्या भी थी- इला। उसका विवाह बुध से हुआ, जो चंद्रमा का पुत्र था। उनसे पुरुरवस्‌ की उत्पत्ति हुई, जो ऐल कहलाया जो चंद्रवंशियों का प्रथम शासक हुआ। उसकी राजधानी प्रतिष्ठान थी, जहां आज प्रयाग के निकट झांसी बसी हुई है।

वैवस्वत मनु के कुल में कई महान प्रतापी राजा हुए जिनमें इक्ष्वाकु, पृथु, त्रिशंकु, मांधाता, प्रसेनजित, भरत, सगर, भगीरथ, रघु, सुदर्शन, अग्निवर्ण, मरु, नहुष, ययाति, दशरथ और दशरथ के पुत्र भरत, राम और राम के पुत्र लव और कुश। इक्ष्वाकु कुल से ही अयोध्या कुल चला।

राजा हरीशचंद्र : अयोध्या के राजा हरीशचंद्र बहुत ही सत्यवादी और धर्मपरायण राजा थे। वे अपने सत्य धर्म का पालन करने और वचनों को निभाने के लिए राजपाट छोड़कर पत्नी और बच्चे के साथ जंगल चले गए और वहां भी उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी धर्म का पालन किया।

ऋषि विश्वामित्र द्वारा राजा हरीशचंद्र के धर्म की परीक्षा लेने के लिए उनसे दान में उनका संपूर्ण राज्य मांग लिया गया था। राजा हरीशचंद्र भी अपने वचनों के पालन के लिए विश्वामित्र को संपूर्ण राज्य सौंपकर जंगल में चले गए। दान में राज्य मांगने के बाद भी विश्वामित्र ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और उनसे दक्षिणा भी मांगने लगे।

इस पर हरीशचंद्र ने अपनी पत्नी, बच्चों सहित स्वयं को बेचने का निश्चय किया और वे काशी चले गए, जहां पत्नी व बच्चों को एक ब्राह्मण को बेचा व स्वयं को चांडाल के यहां बेचकर मुनि की दक्षिणा पूरी की।

हरीशचंद्र श्मशान में कर वसूली का काम करने लगे। इसी बीच पुत्र रोहित की सर्पदंश से मौत हो जाती है। पत्नी श्मशान पहुंचती है, जहां कर चुकाने के लिए उसके पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं रहती।

हरीशचंद्र अपने धर्म पालन करते हुए कर की मांग करते हैं। इस विषम परिस्थिति में भी राजा का धर्म-पथ नहीं डगमगाया। विश्वामित्र अपनी अंतिम चाल चलते हुए हरीशचंद्र की पत्नी को डायन का आरोप लगाकर उसे मरवाने के लिए हरीशचंद्र को काम सौंपते हैं।

इस पर हरीशचंद्र आंखों पर पट्टी बांधकर जैसे ही वार करते हैं, स्वयं सत्यदेव प्रकट होकर उसे बचाते हैं, वहीं विश्वामित्र भी हरीशचंद्र के सत्य पालन धर्म से प्रसन्न होकर सारा साम्राज्य वापस कर देते हैं। हरीशचंद्र के शासन में जनता सभी प्रकार से सुखी और शांतिपूर्ण थी। यथा राजा तथा प्रजा।


                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
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आज का संदेश

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           🔴 *आज का सांध्य संदेश* 🔴

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                            *मानव जीवन विचित्रताओं से भरा हुआ है | मनुष्य के द्वारा ऐसे - ऐसे क्रियाकलाप किए जाते रहे हैं जिनको देख कर के ईश्वर भी आश्चर्यचकित हो जाता है | संपूर्ण जीवन काल में मनुष्य परिवार एवं समाज में भिन्न-भिन्न लोगों से भिन्न प्रकार के व्यवहार करता है ,  परंतु स्थिर भाव बहुत ही कम देखने को मिलता है | यह समस्त सृष्टि परिवर्तनशील है क्षणमात्र में क्या हो जाएगा यह जानने वाला ईश्वर के अतिरिक्त और कोई नहीं है | मनुष्य समाज में लोगों से अपने मन के अनुसार बैर एवं प्रीत किया करता है | किसी से भी प्रीति कर लेना मनुष्य का स्वभाव है परंतु किसी से बैर हो जाना मनुष्य की नकारात्मक मानसिकता का परिचायक है |  मनुष्य किसी से बैर करता है तो उसके मुख्य कारणों पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है और यदि इनके कारणों पर सूक्ष्मता से अध्ययन किया जाय तो परिणाम यही निकलता है कि किसी से भी बैर / दुश्मनी होने का प्रमुख कारण अहम का टकराव ही होता है | मनुष्य अपने स्वार्थ बस किसी से प्रेम करता है और जब उसका स्वार्थ पूरा हो जाता है और विचार मिलना बंद हो जाते हैं तो धीरे-धीरे मनुष्य प्रीति का त्याग करके बैर अर्थात शत्रुता की ओर अग्रसर हो जाता है | पूर्व काल में भी बैर और प्रीति होते रहे हैं परंतु पूर्व काल के मनुष्यों में गंभीरता होती थी और अपने वचन के प्रति प्रतिबद्धता होती थी | जिससे प्रेम हो गया आजीवन उसके लिए सर्वस्व निछावर करने का प्रमाण हमारे देश भारत में प्राप्त होता है वही शत्रुता होने का भी एक ठोस कारण हुआ करता था और मनुष्य उसे भी जीवन भर निर्वाह करने का प्रयास करता था | परंतु आज सब कुछ बदल गया है |*

*आज का मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए किसी से भी प्रीति एवं बैर करने को लालायित रहता है | आज के युग में अधिकतर लोग मात्र अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए लोगों से प्रेम करते हैं | आज समाज में मनमुटाव स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है इसका प्रमुख कारण है अहम का टकराव , और इसके साथ ही आज का मनुष्य किसी के भी द्वारा अपने क्रियाकलापों पर रोक नहीं बर्दाश्त कर पाता |  यदि कोई किसी को किसी गलत कार्य पर टोक देता है तो वह व्यक्ति उसे अपना शत्रु मानने लगता है | मैं आज लोगों को देख रहा हूं कि समाज की बात तो छोड़ ही दीजिए सबसे ज्यादा शत्रुता तो परिवारों में देखने को मिल रही है | लोग अपने माता पिता को भी अपना बैरी मान लेते हैं | और समाज में ऐसे ऐसे धुरंधर भी हैं जो किंचित बात पर किसी को भी अपना बैरी मान करके समाज में अपमानित कर देते हैं और पुनः दो दिन बाद समाज के भयवश या लज्जावश उन्हीं के चरण स्पर्श करते हैं यह बात यही सिद्ध करती है कि आज का मनुष्य अपने नैतिक मूल्यों से कितना पतित हो गया है | यदि किसी से आपने बैर ठान ही लिया है तो उसे बैरी की ही भांति देखना चाहिए ना कि पुनः उसी के चरण शरण में चले जाना चाहिए | यदि अपनी भूल का आभास हो जाय तब तो शरणागत होना कदापि गलत नहीं है परंतु मात्र समाज को दिखाने के लिए यदि कोई इस प्रकार के क्रियाकलाप करता है तो वह मनुष्य कहे जाने के योग्य नहीं कहा जा सकता |*

*बैर - प्रीति मनुष्य का स्वभाव है परंतु जिस प्रकार किसी भी कार्य का एक ठोस कारण होता है उसके विपरीत जाकर मनुष्य किसी से भी प्रेम या शत्रुता आज बिना किसी ठोस कारण के कर रहा है | यही वह कारण है जो बताता है कि मनुष्य ने अपनी मनुष्यता खो दी है |*

🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

सभी भगवत्प्रेमियों को *"शुभ प्रभात वन्दन*----🙏🏻
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             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
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Tuesday, January 7, 2020

आज का सुविचार

*क्रोध हो सकारात्मक*

यह जरूरी नहीं कि क्रोध किसी व्यक्ति पर ही आए, कभी-कभी देश और समाज के हालात पर भी मन अधीर होने लगता है, उद्दीग्न मन कुछ भी नकारात्मक प्रतिक्रिया करने के लिए तैयार हो जाता है **..

ऐसी स्थिति में ज्यादातर लोग दो उपायों को अपनाते हैं, या तो वे अपने से कमजोर व्यक्ति पर अपना क्रोध तेज आवाज में बोलकर या हिंसा कर उतारते हैं, या फिर सामान इधर-उधर फेंककर अपने दिल की भड़ास निकालते हैं, दूसरे उपाय के तहत वे अपने क्रोध को दबा देते हैं **..

हम अपनी हताशा और बेचैनी को दिल और दिमाग की कई परतों में छुपा देते हैं और इसे *मौनं सर्वार्थ साधनं* की संज्ञा दे देते हैं वास्तव में यह मौन नहीं, कुंठा है **..

हर छोटी बात पर क्रोधपूर्ण प्रतिक्रिया देना तो उचित नहीं है, लेकिन यदि किसी अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने या प्रतिकार करने से किसी का हित हो रहा हो या फिर समूह को फायदा पहुंच रहा हो, तो हमें ऐसा करने से हिचकना नहीं चाहिए, अंदर दबे क्रोध को बाहर निकालने के बाद ही चित्त शांत हो सकता है, बशर्ते  यह ऊर्जा सकारात्मक रूप में सामने आए !!!!!!!!!
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻
                  आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
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आज का संदेश

🔴 *आज का प्रात: संदेश* 🔴

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                           *इस धराधाम पर मनुष्य जीवन कैसे जिया जाय ? मनुष्य के आचरण कैसे हो सनातन के धर्म ग्रंथों में देखने को मिलता है | जहां मनुष्य को अनेक कर्म करने के लिए स्वतंत्र कहा गया है वही कुछ ऐसे भी कर्म हैं जो इस संसार में है तो परंतु मनुष्य के लिए वर्जित बताए गए हैं | इन्हीं कर्मों में ईर्ष्या , द्वेष , छल , कपट , चोरी , अहंकार आदि आते हैं | प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कभी न कभी वह अवसर अवश्य प्रकट हो जाता है जब उसको यह उपरोक्त दुर्गुण अपनी जाल मैं फंसा लेते ऐसे समय पर मनुष्य को बहुत ही सावधान रहने की आवश्यकता होती है | यदि किसी के द्वारा अपने "गुरु से कपट एवं मित्र से चोरी" की जाती है तो उसका फल उसको अवश्य भुगतना पड़ता है |  हमारे यहां कहा भी गया है कि :- "गुरु से कपट मित्र से चोरी ! या हो निर्धन या हो कोढ़ी !!" | गुरु से कपट करने वाला जीवन के अंधकार में खो जाता है , उसके चेहरे का तेज गायब हो जाता है | मानव जीवन गुरु एवं मित्र यह दो ऐसे चरित्र होते हैं जो मनुष्य को जीवन के अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने में सहायक होते हैं , और जब मनुष्य के द्वारा इन्हीं से कपट किया जाता है तो वह अक्षम्य अपराध की श्रेणी में आता है और मनुष्य को उसका फल अवश्य भुगतना पड़ता है | गुरु से कपट करने का परिणाम सूर्यपुत्र कर्ण को भुगतना पड़ा था | जब उसके प्राण संकट में थी तब अपने गुरु परशुराम के श्राप के कारण उसकी सारी विद्या लुप्त हो गई , वही मित्र से चोरी करने का क्या परिणाम होता है यह जानने के लिए सुदामा का चरित्र पढ़ना बहुत आवश्यक है | कहने का तात्पर्य यह है कि जीवन में हमारे आसपास कुछ ऐसे चरित्र होते हैं जो हमें ज्ञान के प्रकाश से परिपूर्ण कर देते हैं और यदि हमारे द्वारा जाने अनजाने ही उनकी निंदा या उनके प्रति कपट किया जाता है तो जीवन अंधकारमय हो जाता है | ऐसा करने के बाद मनुष्य जीवन भर सुख नहीं प्राप्त कर सकता |*

*आज के वर्तमान युग में चारों ओर छल , कपट , झूठ , पाखंड का एक प्रबल चक्रव्यूह बना हुआ है जिसमें मनुष्य चारों ओर घिर गया है | आज को कुछ मनुष्य जीवन में जल्दी से जल्दी सब कुछ प्राप्त कर लेना चाहते हैं , उसके लिए चाहे उन्हें अपने प्रिय  लोगों का गला ही क्यों ना काटना पड़े | घात , प्रतिघात एवं विश्वासघात जो भी कह लिया जाय आज इसका साम्राज्य खूब फल फूल रहा है | जिसको आप अपना मान कर के आश्रय देते हैं उसी के द्वारा आपको विश्वासघात का प्राप्त होता है | मै ऐसा करने वालों को मूर्खों की श्रेणी रखते हुए यह बताना चाहूंगा कि अपने गुरु से कपट एवं मित्र से चोरी करके उनको क्षणिक सुख , संपत्ति एवं ऐश्वर्य तो प्राप्त हो सकता है परंतु उनका आने वाला भविष्य बहुत उज्ज्वल नहीं हो सकता है , क्योंकि यह धरती कर्मभूमि है |  यहां कर्म का सिद्धांत प्रभावी होता है जिसके जैसे कर्म है उसको उसका फल भोगना ही पड़ेगा | आज मनुष्य जो दूसरों के लिए कर रहा है , दूसरों के साथ कपट पूर्ण व्यवहार करके जो प्रसन्न हो रहा है वह यह जान ले कि आने वाले समय में उसके साथ भी वही व्यवहार करने वाला कोई ना कोई समाज में खड़ा हो जाएगा क्योंकि यही कर्म का सिद्धांत है , यही प्रकृति का नियम है और यही ईश्वर की नियति है |  अपने कर्म फल से कोई भी नहीं बच सकता है जीवन में हमारे साथ ऐसा कुछ ना हो इसके लिए प्रत्येक मनुष्य को तदैव सत्कर्म की ओर उन्मुख होना चाहिए ,  अन्यथा वर्तमान में बोया हुआ बीज भविष्य में फल अवश्य देता है | मनुष्य अपने ज्ञान के अहंकार में उपरोक्त बातें मानना तो नहीं चाहता है परंतु जो उपरोक्त बातों को अनदेखा कर रहा है वह कितना बड़ा विद्वान है विचार करने की बात है |*

*विद्वान उसे कहा जाता है जो ज्ञानवान हो और जिसे यह ज्ञान ना हो कि हमें किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए उसे विद्वानों की श्रेणी में रखना भी मूर्खता ही कही जा सकती है |*

🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

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सभी भगवत्प्रेमियों को *"आज दिवस की मंगलमय कामना*----🙏🏻🙏🏻🌹

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Thursday, January 2, 2020

आज का संदेश


           🔴 *आज का प्रात: संदेश* 🔴
 
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                                 *आदिकाल में जब सृष्टि का विस्तार हुआ तब इस धरती पर सनातन धर्म के अतिरिक्त और कोई धर्म नहीं था | सनातन धर्म ने मानव मात्र को अपना मानते हुए वसुधैव कुटुंबकम की घोषणा की जिसका अर्थ होता है संपूर्ण पृथ्वी अपना घर एवं उस पर रहने वाले मनुष्य एक ही परिवार के हैं |  सनातन धर्म की जो भी परंपरा प्रतिपादित की गई उसमें मानव मात्र का कल्याण निहित था ,  क्योंकि जब मनुष्य उठकर चलना सीख रहा था तब से सनातन धर्म ने मनुष्य को उंगली पकड़कर चलना सिखाया | जिस प्रकार एक विशाल वृक्ष की कई शाखाएं एवं उन शाखाओं में अनंत पत्तियां होती हैं उसी प्रकार सनातन धर्म रूपी वृक्ष में अनेकों प्रकार के धर्म एवं संप्रदाय रूपी शाखाएं उत्पन्न हुई फिर उनमें ही अनेकानेक पंथ रूपी पत्तियां शोभा पाने लगीं ,  परंतु सनातन ने कभी किसी का विरोध नहीं किया , सब को ही गले से लगाकर चलने की शिक्षा  सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों से उद्धृत होती रही , परंतु जिस प्रकार राक्षसी प्रवृत्ति एवं नकारात्मक शक्तियों ने सनातन धर्म का विरोध किया वह किसी से छुपा नहीं है | यह सनातन की सहिष्णुता का ही परिणाम है कि किसी भी धर्म ग्रंथ में किसी धर्म संप्रदाय विशेष के रूप में कहीं ही कोई अनर्गल टिप्पणी नहीं प्राप्त होती है | जहां अन्य धर्म के प्रवर्तक एवं संस्थापकों ने सनातन के विरोध में ही एक नए धर्म की नींव डाली वहीं सनातन ने उनको भी एन केन प्रकारेण अपनाने का ही कार्य किया है | शायद इसीलिए सनातन जिस प्रकार दिव्यता के साथ इस पृथ्वी पर प्रकट हुआ था आज भी उसकी वही दिव्यता विद्यमान है |*

*आज वर्तमान युग में अनेक विद्वान , अनेक धर्म एवं संप्रदाय के ठेकेदार बन गए जिनको सनातन धर्म एवं उसके प्रतीक भगवा रंग में अनेकों बुराइयां दिखाई पड़ती है | यहां तक कि लोग सनातन धर्म को असहिष्णु  कह रहे हैं उनके द्वारा यदि ऐसा कहा जा रहा है तो ऐसे लोग या तो सनातन धर्म को जानते नहीं हैं या फिर ओछी राजनीति के चक्कर में ऐसे वक्तव्य दे रहे हैं | मैं चुनौती देकर के समाज के ऐसे ठेकेदारों एवं धर्म का ठेका लेने का दम भरने वालों से पूंछना चाहता हूँ कि इस्लाम धर्म या ईसाई धर्म की किसी पुस्तक में सनातन धर्म के किसी महापुरुष , राम या कृष्ण के विषय में कोई वर्णन , कोई कथा दिखा सकते हैं ?? जबकि मैं सनातन धर्म की सहिष्णुता का उदाहरण देते हुए बताना चाहूंगा कि सनातन ने सबको अपना कैसे माना है | हमारे यहां अठारह पुराणों में एक पुराण है भविष्य पुराण , जिसमें इस्लाम धर्म के प्रवर्तक मोहम्मद साहब एवं ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह की भी कथाओं का वर्णन किया गया है | यह सनातन धर्म की व्यापकता का ज्वलंत उदाहरण है , जिसे आज असहिष्णु कहा जा रहा है | इन धर्मांधों को सनातन धर्म के धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करने की आवश्यकता है | यदि ऐसे लोगों के मन में कहीं से भी यह विचार उत्पन्न हो रहा है ऐसा करके वह सनातन को नष्ट कर देंगे तो यह बता देना आवश्यक है कि सनातन धर्म सृष्टि के आदि से है और प्रलय काल तक रहेगा | इस बीच अनेकों सभ्यता एवं संस्कृति आई और चली गई और भविष्य में भी अनेक धर्म आकर के नष्ट हो जाएंगे परंतु सत्य सनातन विद्यमान रहेगा |*

*सनातन के अनुयायी यदि सभी प्रकार के विरोध का सामना कर रहे तो उसका एक ही कारण है कि सनातन सभी धर्मों का पिता है | जिस प्रकार अपनी संतानों के द्वारा पिता उपेक्षित होकर भी उन पर प्रेम बरसाता रहता है उसी प्रकार सनातन भी चुपचाप सब देख रहा है |*  

     🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

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सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

१ जनवरी २०२०

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
           पर धर्मनिरपेक्ष भारत में
1जनवरी को नववर्ष मानने वाले को 2020 की शुभकामनाएं
       
        ये धुंध कुहासा छंटने दो
          रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
          फागुन का रंग बिखरने दो,
प्रकृति दुल्हन का रूप धर
           जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
           घर -घर खुशहाली लायेगी,
तब चैत्र-शुक्ल की प्रथम तिथि
           नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
           जय-गान सुनाया जायेगा...

🚩॥ वन्दे मातरम॥🚩

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...