Sunday, September 1, 2019

श्री गणेश पूजन विधि

श्री गणेश चतुर्थी विस्तृत पूजन विधि
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पूजन सामग्री (वृहद् पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,दूध,दही,शहद,घी,चीनी,पंचामृत,वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल चन्दन, रोली, सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धित तेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर।

विधि👉  गणेश जी की मूर्ती लकड़ी की चौकी पर लाल या हरा रंग का कपड़ा बिछाकर स्वयं पूर्वाभिमुख बैठकर चौकी को आने सामने रखकर उसके उर गणेश जी को आसान दें और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करे अथवा मिट्टी के गणेश बनाये और आवाहन करें।

आवाहन मंत्र
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गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं।
उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम।।

आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव।
यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव।।

अब नीचे दिया मंत्र पढ़कर प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा) करें -
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मंत्र👉 अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन।।

निम्न मंत्र से गणेश भगवान को आसान दें
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रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम।
आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः।।

पाद्य (पैर धुलना) निम्न मंत्र से पैर धुलाये।
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उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगंध्य संयुत्तम।
पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगह्यताम।।

आर्घ्य(हाथ धुलना) निम्न मंत्र से हाथ धुलाये
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अर्घ्य गृहाण देवेश गंध पुष्पाक्षतै:।
करुणाम कुरु में देव गृहणार्ध्य नमोस्तुते।।

अब निम्न मंत्र से आचमन कराए
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सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलं।
आचम्यताम मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वरः।।

स्नान का मंत्र
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गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:।
स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे।।

दूध् से स्नान कराये
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कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम।
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं।।

दही से स्नान कराए
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पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं।
ध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां।।

घी से स्नान कराए
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नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।।

शहद से स्नान कराए
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तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।

शर्करा (गुड़ वाली चीनी) से स्नान
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इक्षुसार समुदभूता शंकरा पुष्टिकार्कम।
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।

पंचामृत से स्नान कराए
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पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं।
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।

शुध्दोदक (शुद्ध जल ) से स्नान कराए
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मंदाकिन्यास्त यध्दारि सर्वपापहरं शुभम।
तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।

निम्न मंत्र बोलकर वस्त्र पहनाए
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सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे।
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां।।

उपवस्त्र (कपडे का टुकड़ा ) अर्पण करें
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सुजातो ज्योतिषा सह्शर्म वरुथमासदत्सव:।
वासोअस्तेविश्वरूपवं संव्ययस्वविभावसो।।

अब यज्ञोपवीत (जनेऊ) पहनाए
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नवभिस्तन्तुभिर्युक्त त्रिगुण देवतामयम |
उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : ||

मधुपर्क (दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण) अर्पण करें।
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कस्य कन्स्येनपिहितो दधिमध्वा ज्यसन्युतः।
मधुपर्को मयानीतः पूजार्थ् प्रतिगृह्यतां।।

गन्ध (चंदन अबीर गुलाल) चढ़ाए
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श्रीखण्डचन्दनं दिव्यँ गन्धाढयं सुमनोहरम। विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यतां।।

रक्त(लाल )चन्दन चढ़ाए
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रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम।
मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम।।

रोली लगाए
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कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम ।
कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्:।।

सिन्दूर चढ़ाए
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सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां।।

अक्षत चढ़ाए
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अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः।
माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः।।

पुष्प चढ़ाये
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पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै:।
पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां।।

पुष्प माला चढ़ाए
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माल्यादीनि सुगन्धिनी मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर:।।

बेल का पत्र चढ़ाए
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त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै: शुभै:।
तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर :।।

दूर्वा चढ़ाए
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त्वं दूर्वेSमृतजन्मानि वन्दितासि सुरैरपि।
सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव।।

दूर्वाकर (दूर्वा हरि दूब) चढ़ाए।
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दूर्वाकुरान सुहरिता नमृतान मंगलप्रदाम।
आनीतांस्तव पूजार्थ गृहाण गणनायक:।।

शमीपत्र अर्पण करें
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शमी शमय ये पापं शमी लाहित कष्टका।
धारिण्यर्जुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनी।।

अबीर गुलाल चढ़ाए
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अबीरं च गुलालं च चोवा चन्दन्मेव च।
अबीरेणर्चितो देव क्षत: शान्ति प्रयच्छमे।।

आभूषण चढ़ाए
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अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान।
गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर:।।

सुगंध तेल चढ़ाए
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चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि:।
वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां।।

धूप दिखाए
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वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम :।
आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां।।

दीप दिखाए
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आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम।।

धूप दीप दिखाने के बाद अपने हाथ धो लें।

नैवेद्य (मिठाई) अर्पण करें
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शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम।
उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां।।

मध्येपानीय (आचमन के लिये जल दिखाए)
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अतितृप्तिकरं तोयं सुगन्धि च पिबेच्छ्या।
त्वयि तृप्ते जगतृप्तं नित्यतृप्ते महात्मनि।।

ऋतुफल (फल)
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नारिकेलफलं जम्बूफलं नारंगमुत्तमम।
कुष्माण्डं पुरतो भक्त्या कल्पितं प्रतिगृह्यतां।।

आचमन (भगवान को जल दिखाकर किसी पात्र में डाले)
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गंगाजलं समानीतां सुवर्णकलशे स्थितन।
आचमम्यतां सुरश्रेष्ठ शुद्धमाचनीयकम।।

अखंड ऋतुफल (सूखे मेवे) चढ़ाए।
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इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव।
तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि।।

ताम्बूल पूंगीफलं (पान, सुपारी लौंग, इलायची) चढ़ाए
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पूंगीफलम महद्दिश्यं नागवल्लीदलैर्युतम।
एलादि चूर्णादि संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यतां।।

दक्षिणा (दान) अर्पण करें
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हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो:।
अनन्तपुण्यफलदमत : शान्ति प्रयच्छ मे।।

आरती करें
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चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च।
त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम।।

पुष्पांजलि करें
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नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोदभवानि च ।
पुष्पांजलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर:।।

प्रार्थना करें
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रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक:।
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात।।

।।अनया पूजया श्री गणपति: देवता प्रीयतां न मम।। ऐसा बोलकर हाथ जोड़कर प्रणाम करें।
                                                          श्री गणेश पूजन (सरलतम विधि )
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जो साधकगण समयाभाव के चलते विस्तृत पूजा नही कर सकते उनके लिए समय पूजन विधि बताई जा रही है।

पूजन सामग्री (सामान्य पूजन के लिए )
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शुद्ध जल,गंगाजल, सिन्दूर,रोली,रक्षा, कपूर,घी,दही,दूब,चीनी,पुष्प,पान,सुपारी,रूई,प्रसाद (लड्डू गणेश जी को बहुत प्रिय है)।

विधि👉  गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें और आवाहन मंत्र पढकर अक्षत डालें।

ध्यान श्लोक👉    शुक्लाम्बर धरं विष्णुं शशि वर्णम् चतुर्भुजम् . प्रसन्न वदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये ..

लम्बी सूंड, बड़ी आँखें ,बड़े कान ,सुनहरा सिन्दूरी वर्ण यह ध्यान करते ही प्रथम पूज्य श्री गणेश जी का पवित्र स्वरुप हमारे सामने आ जाता है।सुखी व सफल जीवन  के इरादों से आगे बढऩे के लिएबुद्धिदाता भगवान श्री गणेश के नाम स्मरण से ही शुरुआत  शुभ मानी  जाती है। जीवन में प्रसन्नता और हर छेत्र में सफलता प्राप्त करने हतु श्री गजानन महाराज के पूजन की सरलतम विधि विद्वान पंडित जी द्वारा बताई गयी है ,जो की आपके लिए प्रस्तुत है -प्रातः काल शुद्ध होकर गणेश जी के सम्मुख बैठ कर ध्यान करें और पुष्प, रोली ,अछत आदि चीजों से पूजन करें और विशेष रूप से सिन्दूर चढ़ाएं तथा दूर्बा दल (11 या 21 दूब का अंकुर )समर्पित करें|यदि संभव हो तो फल और मीठा चढ़ाएं (मीठे में गणेश जी को मूंग के लड्डू प्रिय हैं )।

अगरबत्ती और दीप जलाएं और नीचे लिखे सरल मंत्रोंका मन ही मन 11, 21 या अधिक बार जप करें :-

ॐ चतुराय नम:।
ॐ गजाननाय नम:।
ॐ विघ्नराजाय नम:।
ॐ प्रसन्नात्मने नम:।

सामान्य पूजन विधि
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षोडशोपचार पूजन - 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः ध्यायामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः आवाहयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः आसनं। समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः पाद्यं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः।
आचमनीयं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः पंचामृत स्नानं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः वस्त्र युग्मं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं धारयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः  आभरणानि (आभूषण) समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः  गंधं धारयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः  अक्षतान् समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः पुष्पैः पूजयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः प्रतिष्ठापयामि और गणेश जी के इन नामों का जप करें।

ॐ गणपतये नमः॥
ॐ गणेश्वराय नमः॥
ॐ गणक्रीडाय नमः॥ ॐ गणनाथाय नमः॥ ॐ गणाधिपाय नमः॥
ॐ एकदंताय नमः॥
ॐ वक्रतुण्डाय नमः॥ॐ गजवक्त्राय नमः॥
ॐमदोदराय नमः॥
ॐ लम्बोदराय नमः॥
ॐ धूम्रवर्णाय नमः॥
ॐविकटाय नमः॥
ॐ विघ्ननायकाय नमः॥ॐ सुमुखाय नमः॥
ॐ दुर्मुखाय नमः॥
ॐ बुद्धाय नमः॥
ॐविघ्नराजाय नमः॥
ॐ गजाननायनमः॥
ॐ   भीमाय नमः॥
ॐ प्रमोदाय नमः ॥
ॐ आनन्दायनमः॥
ॐ सुरानन्दाय नमः॥
ॐमदोत्कटाय नमः॥
ॐहेरम्बाय नमः॥
ॐ शम्बराय नमः॥
ॐ शम्भवे नमः ॥
ॐ लम्बकर्णायनमः ॥
ॐ महाबलाय नमः॥
ॐ नन्दनाय नमः ॥
ॐ अलम्पटाय नमः ॥
ॐ भीमाय नमः ॥
ॐ मेघनादायनमः ॥
ॐ गणञ्जयाय नमः ॥
ॐ विनायकाय नमः॥ॐविरूपाक्षाय नमः ॥
ॐ धीराय नमः ॥
ॐ शूरायनमः ॥
ॐ वरप्रदाय नमः ॥ॐ महागणपतये नमः ॥
ॐ बुद्धिप्रियायनमः ॥ॐ क्षिप्रप्रसादनाय नमः ॥ॐ रुद्रप्रियाय नमः॥ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ॐ उमापुत्रायनमः ॥
ॐ अघनाशनायनमः ॥ॐ कुमारगुरवे नमः ॥
ॐ ईशानपुत्राय नमः ॥
ॐ मूषकवाहनाय नः ॥
ॐ   सिद्धिप्रदाय नमः॥ॐ सिद्धिपतयेनमः ॥
ॐ सिद्ध्यैनमः ॥ॐ सिद्धिविनायकाय नमः॥
ॐ विघ्नाय नमः ॥
ॐ तुङ्गभुजाय नमः ॥
ॐ सिंहवाहनायनमः ॥ॐ मोहिनीप्रियाय नमः ॥
ॐ कटिंकटाय नमः ॥
ॐराजपुत्राय नमः ॥
ॐशकलाय नमः ॥
ॐ सम्मिताय नमः॥
ॐ अमिताय नमः ॥ॐ कूश्माण्डगणसम्भूताय नमः॥
ॐ दुर्जयाय नमः ॥
ॐ धूर्जयाय नमः ॥
ॐ  अजयाय नमः ॥
ॐभूपतये नमः ॥
ॐ भुवनेशायनमः ॥ॐ भूतानां पतये नमः॥
ॐ   अव्ययाय नमः ॥
ॐ विश्वकर्त्रे नमः ॥
ॐविश्वमुखाय नमः ॥ॐ विश्वरूपाय नमः ॥
ॐ   निधये नमः॥
ॐ घृणये नमः ॥
ॐ कवये नमः ॥
ॐकवीनामृषभाय नमः॥
ॐ ब्रह्मण्याय नमः ॥ॐ ब्रह्मणस्पतये नमः ॥
ॐ ज्येष्ठराजाय नमः ॥
ॐ निधिपतये नमः ॥
ॐ निधिप्रियपतिप्रियाय नमः ॥
ॐ हिरण्मयपुरान्तस्थायनमः ॥ॐ सूर्यमण्डलमध्यगायनमः ॥
ॐकराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलाय नमः ॥ॐपूषदन्तभृतेनमः ॥ॐ उमाङ्गकेळिकुतुकिने नमः ॥
ॐ मुक्तिदाय नमः ॥
ॐ कुलपालकाय नमः ॥ॐ किरीटिने नमः ॥
ॐ कुण्डलिने नमः॥
ॐ हारिणे नमः ॥
ॐ वनमालिने नमः ॥
ॐ मनोमयायनमः ॥ॐवैमुख्यहतदृश्यश्रियै नमः॥
ॐ पादाहत्याजितक्षितयेनमः ॥ॐ सद्योजाताय नमः॥ॐ स्वर्णभुजाय नमः ॥
ॐ मेखलिन नमः ॥
ॐ दुर्निमित्तहृते नमः॥ॐदुस्स्वप्नहृते नमः ॥
ॐ प्रहसनाय नमः ॥
ॐ गुणिनेनमः ॥
ॐ नादप्रतिष्ठिताय नमः ॥ॐ सुरूपाय नमः ॥
ॐ सर्वनेत्राधिवासाय नमः ॥
ॐ वीरासनाश्रयाय नमः ॥
ॐ पीताम्बराय नमः ॥
ॐ खड्गधराय नमः ॥
ॐखण्डेन्दुकृतशेखराय नमः ॥ॐचित्राङ्कश्यामदशनायनमः ॥ॐ फालचन्द्राय नमः ॥
ॐ चतुर्भुजाय नमः ॥ॐयोगाधिपाय नमः ॥ॐतारकस्थाय नमः ॥
ॐ पुरुषाय नमः॥
ॐ गजकर्णकाय नमः ॥ॐ गणाधिराजाय नमः ॥ॐविजयस्थिराय नमः ॥
ॐ गणपतये नमः ॥
ॐ ध्वजिने नमः ॥
ॐदेवदेवायनमः ॥ॐ स्मरप्राणदीपकाय नमः ॥
ॐ वायुकीलकायनमः ॥ॐ विपश्चिद्वरदाय नमः ॥
ॐनादाय नमः ॥
ॐ नादभिन्नवलाहकाय नमः ॥ॐ वराहवदनाय नमः॥ॐमृत्युञ्जयाय नमः ॥
ॐ व्याघ्राजिनाम्बराय नमः ॥ॐइच्छाशक्तिधराय नमः॥ॐ देवत्रात्रे नमः ॥
ॐ दैत्यविमर्दनाय नमः ॥ॐ शम्भुवक्त्रोद्भवाय नमः॥ॐ शम्भुकोपघ्ने नमः ॥ॐ शम्भुहास्यभुवे नमः ॥
ॐ शम्भुतेजसे नमः ॥ॐ शिवाशोकहारिणे नमः ॥
ॐ गौरीसुखावहाय नमः ॥ॐ उमाङ्गमलजाय नमः ॥ॐगौरीतेजोभुवे नमः ॥
ॐ स्वर्धुनीभवाय नमः ॥ॐयज्ञकायाय नमः ॥
ॐमहानादाय नमः ॥ॐ गिरिवर्ष्मणे नमः ॥
ॐ शुभाननाय नमः ॥
ॐ सर्वात्मने नमः ॥
ॐसर्वदेवात्मने नमः ॥
ॐ ब्रह्ममूर्ध्ने नमः ॥
ॐककुप्छ्रुतये नमः ॥ॐ ब्रह्माण्डकुम्भाय नमः ॥
ॐ चिद्व्योमफालाय नमः ॥ॐ सत्यशिरोरुहाय नमः ॥
ॐ जगज्जन्मलयोन्मेषनिमेषाय नमः ॥
ॐ अग्न्यर्कसोमदृशेनमः ॥ॐ गिरीन्द्रैकरदाय नमः ॥
ॐ धर्माय नमः ॥
ॐ धर्मिष्ठाय नमः ॥
ॐ सामबृंहिताय नमः ॥
ॐ ग्रहर्क्षदशनाय नमः ॥
ॐ वाणीजिह्वाय नमः ॥ॐवासवनासिकाय नमः ॥
ॐ कुलाचलांसाय नमः ॥
ॐ सोमार्कघण्टाय नमः ॥ॐ   रुद्रशिरोधराय नमः ॥
ॐ नदीनदभुजाय नमः ॥ॐ सर्पाङ्गुळिकाय नमः ॥
ॐ तारकानखाय नमः ॥
ॐ भ्रूमध्यसंस्थतकराय नमः ॥
ॐ ब्रह्मविद्यामदोत्कटायनमः   ॥ॐ व्योमनाभाय नमः॥
ॐ श्रीहृदयाय नमः ॥ॐ ॐ मेरुपृष्ठाय नमः ॥
ॐ अर्णवोदराय नमः ॥
ॐ कुक्षिस्थयक्षगन्धर्वरक्षःकिन्नरमानुषाय नमः।।

उत्तर पूजा👉
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः  धूपं आघ्रापयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः दीपं दर्शयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः नैवेद्यं निवेदयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः  फलाष्टकं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः कर्पूर नीराजनं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः मंगल आरतीं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पांजलि समर्पयामि।

यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च ।
तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे।।

प्रदक्षिणा नमस्कारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . समस्त राजोपचारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः मंत्र पुष्पं समर्पयामि।

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा।।

प्रार्थनां समर्पयामि।

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं।
पूजाविधिं न जानामि क्षमस्व पुरुषोत्तम।

क्षमापनं समर्पयामि।

ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुनरागमनाय च।।

श्री गणेश जी की आरती
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जय गणेश,जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पारवती,पिता महादेवा।
एक दन्त दयावंत,चार भुजा धारी।
मस्तक पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी।जय .......

अंधन को आँख देत,कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया। जय ......

हार चढ़े,फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे,संत करें सेवा। जय .......

दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी।
कामना को पूरा करो जग बलिहारी। जय .......
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                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

गणेश वंदना २०१९

प्रथम धरे जो ध्यान तुमारे
            तिसके पूरण कारज सारे।।

लंबोदर गजवदन मनोहर
            कर त्रिशूल परशू वर धारे।।

ऋद्धिसिद्धि दोऊ चमर ढुलावे
            मूषकवाहन परम सुखारे।।

ब्रह्मादिक सुर ध्यावत मनमें
     ऋषिमुनिगण सब दास तुमारे।।

"खेमेश्वर" सहाय करो नित
          भक्तजनों  के तुम रखवारे।।

जय गणेश गणनाथ दयानिधि
        सकल विघन कर दूर हमारे।।

             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                   डिंडोरी - मुंगेली
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Saturday, August 31, 2019

तीजा के झमेला

सुन बुधारू सुन समारू
            कालि आइस मोर सारा,
लइकन कहे ममा घर जाबो
            शोर तो होगे हे पूरा पारा.!

जानथे तुँहर भऊजी हर
              नि आय राँधे गढ़े मोला,
तभो नि जानव रे संगी
            मईके के नशा चढ़े ओला.!

ए हर तो जहिच बड़े नोनी
            घलो जाहूं किके रिसाये हे,
आज तो हितवा घर लिपे
            गोबर तक नई सँईंथाये हे.!

चाँऊर घलो निमराये नि हे
              परे हावे ओमा जी पटारा,
उन चढ़े फटफटी चल दिन
         छोड़ बुता सब मोर बँटवारा.!

बर्तन भँड़वाँ मांजे नि हे
             कर देहे पूरा सबो कजरी,
सफरी कस देख बिहायेंव
          फेर करम निकलिस बजरी.!

साग राँधे जानो निहिं जी
              पिसान सानेंव होगे लाटा,
हलवा बनाहूं, लानेंव शक्कर
           पूरा भरगे जी करिया चाँटा.!

पानी लाने दूरिहा जाथों
            बस्ती में कंवरिया कहाथों,
घर में रथे तभोच संगी
           में ओकर नँचनिहा कहाथों.!

भात ल पँसात रहेंव तभेच
             फोन हर ओकर आइच हे,
कां राधेस जोड़ी में हर तो
         करू खावथों कह बताइच हे.!

बिहना ले फरहार के बाद
             वाट्सएप मा मेसेज करहि,
खुरमी-ठेठरी किसिम पकवान
          देखके जि जरेच कस बरहि.!

तोर घर के बुता निपट गे बुधारू
         भाई महूं ला ऊपाय  बताबे जी,
मंगलू गौंटिया बुता तियारे हे
        गजानन के मंडप तें सजाबे जी.!

पऊर बछर गे रिहिस ते फागू
             बिसर्जन तक दरस नंदागे गो,
पूरा बूता मोर मुड़ के बोझा होगे
           प्रभु कईसन संग में फँदांगे गो.!

आते साट खिसियाही नँगत
            लिपे पोते ला कइसे भुलागे,
नवरात चलत हे जानस निहि
             दशहरा घलो हर लकठागे.!

अब जाके पता चलिस हे
          बाई जी हर घर मोर आगे हे,
तीजा हर एक महीना होके
          एखर दरस के भाग जागे हे.!

का दूख बताँव समारू
                पर गे रेहेंव जी अकेला..
कोन बनाईस बता बुधारू
             अईसन तीजा के झमेला....
    अईसन तीजा के झमेला...!!!

       ©पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी®
         ओज-व्यंग्य कवि-लेखक
        धार्मिक प्रवक्ता-मानस वक्ता
       प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
   ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Friday, August 30, 2019

14 प्रकार के मुर्दो का परिचय !

14 प्रकार के मुर्दो का परिचय !

राम और रावण का युद्ध चल रहा था।तब अंगद रावण को बोला तु तो मुर्दा है। तुझे मारने से क्या फायदा?
रावण बोला मैं जिंदा हूँ मुर्दा कैसे?

अंगद बोले सिर्फ सांस लेनेवालों को जिंदा नही कहते सांस तो लुहार का भाता भी लेता है, तब अंगद ने 14 प्रकार के मुर्दों के लक्षण बताये।अंगदद्वारा रावण को बताई गई ये बातें आज के दौर में भी लागू होती हैं ।

यदि किसी व्यक्ति में इन 14 दुर्गुणों में से एक दुर्गुण भी आ जाता है तो वह मृतक समान हो जाता है।विचार करें कहीं यह दुर्गुण हमारे पास तो नहीं....कि हमें मृतक समान माना जाय.
1. कामवश- जो व्यक्ति अत्यंत भोगी हो, कामवासना में लिप्त रहता हो, जो संसार के भोगों में उलझा हुआ हो, वह मृत समान है। जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती और जो प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर ही जीता है, वह मृत समान है।
वह अध्यात्म का सेवन नही करता। सदैव वासना में लिन रहता है

2. वाम मार्गी- जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले। जो संसार की हर बात के पीछे नकारात्मकता खोजता हो। नियमों, परंपराओं और लोक व्यवहार के खिलाफ चलता हो, वह वाम मार्गी कहलाता है। ऐसे काम करने वाले लोग मृत समान माने गए हैं।

3. कंजूस- अति कंजूस व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जो व्यक्तिधर्म के कार्य करने में, आर्थिक रूप से किसी कल्याण कार्य में हिस्सा लेने में हिचकता हो। दान करने से बचता हो। ऐसा आदमी भी मृत समान ही है।

4. अति दरिद्र- गरीबी सबसे बड़ा श्राप है। जो व्यक्ति धन, आत्म-विश्वास, सम्मान और साहस से हीन हो, वो भी मृत ही है। अत्यंत दरिद्र भी मरा हुआ हैं। दरिद्र व्यक्ति को दुत्कारना नहीं चाहिए, क्योकि वह पहले ही मरा हुआ होता है। बल्कि गरीब लोगों की मदद करनी चाहिए।

5. विमूढ़- अत्यंत मूढ़ यानी मूर्ख व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसके पास विवेक, बुद्धि नहीं हो। जो खुद निर्णय ना ले सके। हर काम को समझने या निर्णय को लेने में किसी अन्य पर आश्रित हो, ऐसा व्यक्ति भी जीवित होते हुए मृत के समान ही है। मुढ़ को आत्मा अध्यात्म समझता नही।

6. अजसि- जिस व्यक्ति को संसार में बदनामी मिली हुई है, वह भी मरा हुआ है। जो घर, परिवार, कुटुंब, समाज, नगर या राष्ट्र, किसी भी ईकाई में सम्मान नहीं पाता है, वह व्यक्ति मृत समान ही होता है।

7. सदा रोगवश- जो व्यक्ति निरंतर रोगी रहता है, वह भी मरा हुआहै। स्वस्थ शरीर के अभाव में मन विचलित रहता है। नकारात्मकता हावी हो जाती है। व्यक्ति मुक्ति की कामना में लग जाता है। जीवित होते हुए भी रोगी व्यक्ति स्वस्थ्य जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है।

8.अति बूढ़ा - अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है। शरीर और बुद्धि, दोनों असक्षम हो जाते हैं। ऐसे में कई बार स्वयं वह और उसके परिजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं, ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।

9. सतत क्रोधी- 24 घंटे क्रोध में रहने वाला भी मृत समान ही है। हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करना ऐसे लोगों का काम होता है। क्रोध के कारण मन और बुद्धि, दोनों ही उसके नियंत्रण से बाहर होते हैं। जिस व्यक्ति का अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण न हो, वह जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता है।पूर्व भव के संस्कार लेकर यह जीव क्रोधी होता है। क्रोधी अनेक जीवों का घात करता है।और नरक गामी होता है।

10. अघ खानी- जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना औरपरिवार का पालन-पोषण करता है, वह व्यक्ति भी मृत समान ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं। हमेशा मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके ही धन प्राप्त करना चाहिए। पाप की कमाई पाप में ही जाती है। और पाप की कमाई से नीच गोत्र निगोद की प्राप्ति होती है।

11. तनु पोषक- ऐसा व्यक्ति जो पूरी तरह से आत्म संतुष्टि और खुद के स्वार्थों के लिए ही जीता है, संसार के किसी अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई संवेदना ना हो तो ऐसा व्यक्तिभी मृत समान है। जो लोग खाने-पीने में, वाहनों में स्थान के लिए, हर बात में सिर्फ यही सोचते हैं कि सारी चीजें पहले हमें ही मिल जाएं, बाकि किसी अन्य को मिले ना मिले, वे मृत समान होते हैं। ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के लिए अनुपयोगी होते हैं। शरीर को अपना मानकर उसमें रत रहना मूर्खता है क्यों की यह शरीर विनाशी है । पूरन गलन से सहित है। नष्ट होनेवाला है।

12. निंदक- अकारण निंदा करने वाला व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसे दूसरों में सिर्फ कमियां ही नजर आती हैं। जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकता। ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे तो सिर्फ किसी नाकिसी की बुराई ही करे, वह इंसान मृत समान होता है। पर की निंदा करने से नीच गोत्र का बन्ध होता है।

13. परमात्म विमुख- जो व्यक्ति परमात्मा का विरोधी है, वह भी मृत समान है। जो व्यक्ति ये सोच लेता है कि कोई परमतत्व है ही नहीं। हम जो करते हैं, वही होता है। संसार हम ही चला रहे हैं। जो परमशक्ति में आस्था नहीं रखता है, ऐसा व्यक्ति भी मृत माना जाता है।

14. श्रुति , संत विरोधी- जो संत, ग्रंथ, पुराण का विरोधी है, वह भी मृत समान होता है।
           *।। जय सिया राम जी ।।*
             
                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
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Thursday, August 29, 2019

भगवान राम के धनुष की विशेषता


भगवान राम के धनुष में ऐसी कौन सी विशेष बात थी जो बहुत कम लोग जानते हैं ?

रामचन्द्रजी और कृष्ण भगवान के स्वरूप में यही अन्तर दिखता है कि राम धनुर्धारी थे और कृष्ण के सिर पर मोरपंख सुशोभित होता था।

भगवान श्रीराम को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर माना जाता है।उनके धनुष का नाम कोदंड था।

एक बार समुद्र पार करने का जब कोई मार्ग नहीं समझ में आया तो भगवान श्रीराम ने समुद्र को अपने तीर से सुखाने की सोची और उन्होंने तरकश से अपना तीर निकाला ही था और प्रत्यंचा पर चढ़ाया ही था कि समुद्र के देवता वरुणदेव प्रकट हो गए और उनसे प्रार्थना करने लगे थे। बहुत अनुनय-विनय के बाद राम ने अपना तीर तरकश में रख लिया।

हालांकि उन्होंने अपने धनुष और बाण का उपयोग बहुत मुश्किल वक्त में ही किया।

देखि राम रिपु दल चलि आवा। बिहसी कठिन कोदण्ड चढ़ावा।।

अर्थात शत्रुओं की सेना को निकट आते देखकर श्रीरामचंद्रजी ने हंसकर कठिन धनुष कोदंड को चढ़ाया।

कोदंड का अर्थ होता है बांस से निर्मित।कोदंड एक चमत्कारिक धनुष था जिसे हर कोई धारण नहीं कर सकता था।

कोदंड नाम से भिलाई में एक राम मंदिर भी है जिसे 'कोदंड रामालयम मंदिर' कहा जाता है।भगवान श्रीराम ने दंडकारण्य में 10 वर्ष से अधिक समय तक भील,वनवासी और आदिवासियों के बीच रहकर उनकी सेवा की थी।

कोदंड की खासियत :

कोदंड एक ऐसा धनुष था जिसका छोड़ा गया बाण लक्ष्य को भेदकर ही वापस आता था।एक बार की बात है कि देवराज इन्द्र के पुत्र जयंत ने श्रीराम की शक्ति को चुनौती देने के उद्देश्य से अहंकारवश कौवे का रूप धारण किया और सीताजी को पैर में चोंच मारकर लहू बहाकर भागने लगा।

तुलसीदासजी लिखते हैं कि जैसे मंदबुद्धि चींटी समुद्र की थाह पाना चाहती हो उसी प्रकार से उसका अहंकार बढ़ गया था।

।।सीता चरण चोंच हतिभागा। मूढ़ मंद मति कारन कागा।।

।।चला रुधिर रघुनायक जाना। सीक धनुष सायक संधाना।।

वह मूढ़ मंदबुद्धि जयंत कौवे के रूप में सीताजी के चरणों में चोंच मारकर भाग गया।

जब रक्त बह चला तो रघुनाथजी ने जाना और धनुष पर तीर चढ़ाकर संधान किया।अब तो जयंत जान बचाने के लिए भागने लगा।

वह अपना असली रूप धरकर पिता इन्द्र के पास गया,पर इन्द्र ने भी उसे श्रीराम का विरोधी जानकर अपने पास नहीं रखा। तब उसके हृदय में निराशा से भय उत्पन्न हो गया और वह भयभीत होकर भागता फिरा,लेकिन किसी ने भी उसको शरण नहीं दी,क्योंकि रामजी के द्रोही को कौन हाथ लगाए?

जब नारदजी ने जयंत को भयभीत और व्याकुल देखा तो उन्होंने कहा कि अब तो तुम्हें प्रभु श्रीराम ही बचा सकते हैं। उन्हीं की शरण में जाओ।

तब जयंत ने पुकारकर कहा- 'हे शरणागत के हितकारी, मेरी रक्षा कीजिए प्रभु श्रीराम।'तो श्रीराम ने उसको क्षमा कर दिया।[1]

सचमुच हमारी भारतीय संस्कृति की बातें और दृष्टान्त इतने रोचक हैं कि इनको जानकर गर्व का अनुभव होता है।

                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
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आरती, स्त्रोत्र की महिमा


आरती, स्त्रोत्र की महिमा
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आरती को आरात्रिक , आरार्तिक अथवा नीराजन भी कहते हैं। पूजा के अंत में आरती की जाती है। जो त्रुटि पूजन में रह जाती है वह आरती में पूरी हो जाती है।

स्कन्द पुराण में कहा गया है-
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरे:।
सर्वं सम्पूर्णतामेति कृते निराजने शिवे।।
अर्थात - पूजन मंत्रहीन तथा क्रियाहीन होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से उसमे सारी पूर्णता आ जाती है।

आरती करने का ही नहीं, देखने का भी बड़ा पूण्य फल प्राप्त होता है। हरि भक्ति विलास में एक श्लोक है-
नीराजनं च यः पश्येद् देवदेवस्य चक्रिण:।
सप्तजन्मनि विप्र: स्यादन्ते च परमं पदम।।
अर्थात - जो भी देवदेव चक्रधारी श्रीविष्णु भगवान की आरती देखता है, वह सातों जन्म में ब्राह्मण होकर अंत में परम् पद को प्राप्त होता है।

श्री विष्णु धर्मोत्तर में कहा गया है-
धूपं चरात्रिकं पश्येत काराभ्यां च प्रवन्देत।
कुलकोटीं समुद्धृत्य याति विष्णो: परं पदम्।।
अर्थात - जो धुप और आरती को देखता है और दोनों हाथों से आरती लेता है, वह करोड़ पीढ़ियों का उद्धार करता है और भगवान विष्णु के परम पद को प्राप्त होता है।

आरती में पहले मूल मंत्र (जिस देवता का, जिस मंत्र से पूजन किया गया हो, उस मंत्र) के द्वारा तीन बार पुष्पांजलि देनी चाहिये और ढोल, नगाड़े, शख्ङ, घड़ियाल आदि महावाद्यो के तथा जय-जयकार के शब्दों के साथ शुभ पात्र में घृत से या कर्पूर से विषम संख्या में अनेक बत्तियाँ जलाकर आरती करनी चाहिए-
ततश्च मुलमन्त्रेण दत्त्वा पुष्पाञ्जलित्रयम्।
महानिराजनं कुर्यान्महावाद्यजयस्वनैः।।
प्रज्वलेत् तदर्थं च कर्पूरेण घृतेन वा।
आरार्तिकं शुभे पात्रे विषमानेकवर्दिकम्।।
अर्थात - साधारणतः पाँच बत्तियों से आरती की जाती है, इसे 'पञ्चप्रदीप' भी कहते है। एक, सात या उससे भी अधिक बत्तियों से आरती की जाती है। कर्पूर से भी आरती होती है।

पद्मपुराण में कहा है-
कुङ्कुमागुरुकर्पुरघृतचंदननिर्मिता:।
वर्तिका: सप्त वा पञ्च कृत्वा वा दीपवर्तिकाम्।।
कुर्यात् सप्तप्रदीपेन शङ्खघण्टादिवाद्यकै:।
अर्थात - कुङ्कुम, अगर, कर्पूर, घृत और चंदन की पाँच या सात बत्तियां बनाकर शङ्ख, घण्टा आदि बाजे बजाते हुवे आरती करनी चाहिए।

आरती के पाँच अंग होते है -
पञ्च नीराजनं कुर्यात प्रथमं दीपमालया।
द्वितीयं सोदकाब्जेन तृतीयं धौतवाससा।।
चूताश्वत्थादिपत्रैश्च चतुर्थं परिकीर्तितम्।
पञ्चमं प्रणिपातेन साष्टाङ्गेन यथाविधि।।
अर्थात - प्रथम दीपमाला के द्वारा, दूसरे जलयुक्त शङ्ख से, तीसरे धुले हुए वस्त्र से, आम व् पीपल अदि के पत्तों से और पाँचवे साष्टांग दण्डवत से आरती करें।

आदौ चतुः पादतले च विष्णो द्वौं नाभिदेशे मुखबिम्ब एकम्।
सर्वेषु चाङ्गेषु च सप्तवारा नारात्रिकं भक्तजनस्तु कुर्यात्।।
अर्थात - आरती उतारते समय सर्वप्रथम भगवान की प्रतिमा के चरणों में उसे चार बार घुमाए, दो बार नाभिदेश में, एक बार मुखमण्डल पर और सात बार समस्त अंङ्गो पर घुमाए।

यथार्थ में आरती पूजन के अंत में इष्टदेवता की प्रसन्नता के हेतु की जाती है। इसमें इष्टदेव को दीपक दिखाने के साथ ही उनका स्तवन तथा गुणगान किया जाता है। आरती के दो भाव है जो क्रमशः 'नीराजन' और 'आरती' शब्द से व्यक्त हुए है। नीराजन (निःशेषण राजनम् प्रकाशनम्) का अर्थ है- विशेषरूप से, निःशेषरूप से प्रकाशित करना। अनेक दिप-बत्तियां जलाकर विग्रह के चारों ओर घुमाने का यही अभिप्राय है कि पूरा-का-पूरा विग्रह एड़ी से चोटी तक प्रकाशित हो उठे- चमक उठे, अंङ्ग-प्रत्यङ्ग स्पष्ट रूप से उद्भासित हो जाये, जिसमें दर्शक या उपासक भलिभांति देवता की रूप-छटा को निहार सके, हृदयंगम कर सके। दूसरा 'आरती' शब्द (जो संस्कृत के आर्ति का प्राकृत रूप है और जिसका अर्थ है अरिष्ट) विशेषतः माधुर्य-उपासना से सम्बंधित है।
आरती-वारना का अर्थ है आर्ति-निवारण, अनिष्ट से अपने प्रियतम प्रभु को बचाना। इस रूप में यह एक तांत्रिक क्रिया है, जिसमे प्रज्वलित दीपक अपने इष्टदेव के चारों ओर घुमाकर उनकी सारी विघ्न बधाये टाली जाती है। आरती लेने से भी यही तात्पर्य है कि उनकी आर्ति (कष्ट) को अपने ऊपर लेना। बलैया लेना, बलिहारी जाना, बली जाना, वारी जाना न्यौछावर होना आदि प्रयोग इसी भाव के द्योतक है। इसी रूप में छोटे बच्चों की माताए तथा बहिने लोक में भी आरती उतारती है। यह आरती मूल रूप में कुछ मंत्रोच्चारण के साथ केवल कष्ट-निवारण के लिए उसी भाव से उतारी जाती रही है।
आज कल वैदिक उपासना में उसके साथ-साथ वैदिक मंत्रों का उच्चारण भी होता है तथा पौराणिक एवं तांत्रिक उपासना में उसके साथ सुंदर-सुंदर भावपूर्ण पद्य रचनाएँ भी गायी जाती है। ऋतू, पर्व पूजा के समय आदि भेदों से भी आरती गायी जाती है।

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
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Wednesday, August 28, 2019

हॉकी के जादूगर : ध्यानचन्द

*29 अगस्त/ जन्म-दिवस*

हॉकी के जादूगर : ध्यानचन्द

कोई समय था, जब भारतीय हॉकी का पूरे विश्व में दबदबा था उसका श्रेय जिन्हें जाता है, उन मेजर ध्यानचन्द का जन्म प्रयाग, उत्तरप्रदेश में 29 अगस्त, 1905 को हुआ था *.*.उनके पिता सेना में सूबेदार थे उन्होंने 16 साल की अवस्था में ध्यानचन्द को भी सेना में भर्ती करा दिया, वहाँ वे कुश्ती में बहुत रुचि लेते थे; पर सूबेदार मेजर बाले तिवारी ने उन्हें हॉकी के लिए प्रेरित किया, इसके बाद तो वे और हॉकी एक दूसरे के पर्याय बन गये।

वे कुछ दिन बाद ही अपनी रेजिमेण्ट की टीम में चुन लिये गये, उनका मूल नाम ध्यानसिंह था; पर वे प्रायः चाँदनी रात में अकेले घण्टों तक हॉकी का अभ्यास करते रहते थे *.*.इससे उनके साथी तथा सेना के अधिकारी उन्हें *चाँद* कहने लगे फिर तो यह उनके नाम के साथ ऐसा जुड़ा कि वे ध्यानसिंह से ध्यानचन्द हो गये, आगे चलकर वे *दद्दा* ध्यानचन्द कहलाने लगे।

चार साल तक ध्यानचन्द अपनी रेजिमेण्ट की टीम में रहे 1926 में वे सेना एकादश और फिर राष्ट्रीय टीम में चुन लिये गये, इसी साल भारतीय टीम ने न्यूजीलैण्ड का दौरा किया *.*.इस दौरे में पूरे विश्व ने उनकी अद्भुत प्रतिभा को देखा, गेंद उनके पास आने के बाद फिर किसी अन्य खिलाड़ी तक नहीं जा पाती थी *.*.कई बार उनकी हॉकी की जाँच की गयी, कि उसमें गोंद तो नहीं लगी है अनेक बार खेल के बीच में उनकी हॉकी बदली गयी; पर वे तो अभ्यास के धनी थे, वे उल्टी हॉकी से भी उसी कुशलता से खेल लेते थे इसीलिए उन्हें लोग *हॉकी का जादूगर* कहते थे।

भारत ने सर्वप्रथम 1928 के एम्सटर्डम ओलम्पिक में भाग लिया, ध्यानचन्द भी इस दल में थे इससे पूर्व इंग्लैण्ड ही हॉकी का स्वर्ण जीतता था; पर इस बार भारत से हारने के भय से उसने हॉकी प्रतियोगिता में भाग ही नहीं लिया भारत ने इसमें स्वर्ण पदक जीता *.*.1936 के बर्लिन ओलम्पिक के समय उन्हें भारतीय दल का कप्तान बनाया गया इसमें भी भारत ने स्वर्ण जीता, इसके बाद 1948 के ओलम्पिक में भारतीय दल ने कुल 29 गोल किये थे इनमें से 15 अकेले ध्यानचन्द के ही थे, इन तीन ओलम्पिक में उन्होंने 12 मैचों में 38 गोल किये।

1936 के बर्लिन ओलम्पिक के तैयारी खेलों में जर्मनी ने भारत को 4-1 से हरा दिया था, फाइनल के समय फिर से दोनों टीमों की भिड़न्त हुई प्रथम भाग में दोनों टीम 1-1 से बराबरी पर थीं *.*.मध्यान्तर में ध्यानचन्द ने सब खिलाड़ियों को तिरंगा झण्डा दिखाकर प्रेरित किया इससे सबमें जोश भर गया और उन्होंने धड़ाधड़ सात गोल कर डाले, इस प्रकार भारत 8-1 से विजयी हुआ। उस दिन 15 अगस्त था, कौन जानता था कि 11 साल बाद इसी दिन भारतीय तिरंगा पूरी शान से देश भर में फहरा उठेगा।

1926 से 1948 तक ध्यानचन्द दुनिया में जहाँ भी हॉकी खेलने गये, वहाँ दर्शक उनकी कलाइयों का चमत्कार देखने के लिए उमड़ आते थे, आस्ट्रिया की राजधानी वियना के एक स्टेडियम में उनकी प्रतिमा ही स्थापित कर दी गयी 42 वर्ष की अवस्था में उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय हॉकी से संन्यास ले लिया, कुछ समय वे राष्ट्रीय खेल संस्थान में हॉकी के प्रशिक्षक भी रहे।

भारत के इस महान सपूत को शासन ने 1956 में *पद्मभूषण* से सम्मानित किया *.*.3 दिसम्बर, 1979 को उनका देहान्त हुआ उनका जन्मदिवस 29 अगस्त भारत में *खेल दिवस* के रूप में मनाया जाता है।
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                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
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न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...