Wednesday, September 11, 2019

१२ सितम्बर पुण्य तिथि "सुब्रह्मण्य भारती"

12 सितम्बर/ *पुण्य-तिथि*

तमिल काव्य में राष्ट्रवादी स्वर : *सुब्रह्मण्य भारती*

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से देश का हर क्षेत्र और हर वर्ग अनुप्राणित था ऐसे में कवि भला कैसे पीछे रह सकते थे, तमिलनाडु में इसका नेतृत्व कर रहे थे सुब्रह्मण्य भारती, यद्यपि उन्हें अनेक संकटों का सामना करना पड़ा; पर उनका स्वर मन्द नहीं हुआ।

सुब्रह्मण्य भारती का जन्म एट्टयपुरम् (तमिलनाडु) में 11 दिसम्बर, 1882 को हुआ था, पाँच वर्ष की अवस्था में ही वे मातृविहीन हो गये। इस दु:ख को भारती ने अपने काव्य में ढाल लिया इससे उनकी ख्याति चारों ओर फैल गयी। स्थानीय सामन्त के दरबार में उनका सम्मान हुआ और उन्हें *भारती* की उपाधि दी गयी 11 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह कर दिया गया। अगले साल पिताजी भी चल बसे, अब भारती पढ़ने के उद्देश्य से अपनी बुआ के पास काशी आ गये।

चार साल के काशीवास में भारती ने संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया, अंग्रेजी कवि शेली से वे विशेष प्रभावित थे। उन्होेंने एट्टयपुरम् में *शेलियन गिल्ड* नामक संस्था भी बनाई तथा *शेलीदासन्* उपनाम से अनेक रचनाएँ लिखीं। काशी में ही उन्हें राष्ट्रीय चेतना की शिक्षा मिली, जो आगे चलकर उनके काव्य का मुख्य स्वर बन गयी काशी में उनका सम्पर्क भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा निर्मित *हरिश्चन्द्र मण्डल* से रहा।

काशी में उन्होंने कुछ समय एक विद्यालय में अध्यापन किया। वहाँ उनका सम्पर्क श्रीमती डा. एनी बेसेण्ट से हुआ; पर वे उनके विचारों से पूर्णतः सहमत नहीं थे, एक बार उन्होेंने अपने आवास शैव मठ में महापण्डित सीताराम शास्त्री की अध्यक्षता में सरस्वती पूजा का आयोजन किया। भारती ने अपने भाषण में नारी शिक्षा, समाज सुधार, विदेशी का बहिष्कार और स्वभाषा की उन्नति पर जोर दिया अध्यक्ष महोदय ने इसका प्रतिवाद किया, फलतः बहस होने लगी और अन्ततः सभा विसर्जित करनी पड़ी।

भारती का प्रिय गान बंकिम चन्द्र का वन्दे मातरम् था, 1905 में काशी में हुए कांग्रेस अधिवेशन में सुप्रसिद्ध गायिका सरला देवी ने यह गीत गाया भारती भी उस अधिवेशन में थे। बस तभी से यह गान उनका जीवन प्राण बन गया, मद्रास लौटकर भारती ने उस गीत का उसी लय में तमिल में पद्यानुवाद किया, जो आगे चलकर तमिलनाडु के घर-घर में गूँज उठा।

सुब्रह्मण्य भारती ने जहाँ गद्य और पद्य की लगभग 400 रचनाओं का सृजन किया, वहाँ उन्होंने स्वदेश मित्रम, चक्रवर्तिनी, इण्डिया, सूर्योदयम, कर्मयोगी आदि तमिल पत्रों तथा बाल भारत नामक अंग्रेजी साप्ताहिक के सम्पादन में भी सहयोग किया। अंग्रेज शासन के विरुद्ध स्वराज्य सभा के आयोजन के लिए भारती को जेल जाना पड़ा। कोलकाता जाकर उन्होंने बम बनाना, पिस्तौल चलाना और गुरिल्ला युद्ध का भी प्रशिक्षण लिया, वे गरम दल के नेता लोकमान्य तिलक के सम्पर्क में भी रहे।

भारती ने नानासाहब पेशवा को मद्रास में छिपाकर रखा, शासन की नजर से बचने के लिए वे पाण्डिचेरी आ गये और वहाँ से स्वराज्य साधना करते रहे। निर्धन छात्रों को वे अपनी आय से सहयोग करते थे, 1917 में वे गांधी जी के सम्पर्क में आये और 1920 के असहयोग आन्दोलन में भी सहभागी हुए स्वराज्य, स्वभाषा तथा स्वदेशी के प्रबल समर्थक इस राष्ट्रप्रेमी कवि का 12 सितम्बर, 1921 को मद्रास में देहान्त हुआ।
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                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

१२ सितम्बर पुण्य तिथि "डाॅ.रामकुमार जी

12 सितम्बर/ *पुण्य-तिथि*

अनुशासन एवं व्यवस्था प्रिय : *डा. रामकुमार जी*

संघ के जीवनव्रती प्रचारक डा. रामकुमार जी का जन्म 1928 ई. में ग्राम बिलन्दापुर (कन्नौज उ.प्र.) में हुआ था उनके पिता श्री गंगाप्रसाद कटियार तथा माता श्रीमती रामदुलारी थीं। उनकी शिक्षा अपने गांव बिलन्दापुर तथा फिर निकटवर्ती ठठिया, तिर्वा और कन्नौज में हुई संस्कृत तथा आयुर्वेद के प्रति रुझान होने के कारण इसके बाद वे हरिद्वार आ गये, 1950 में श्री गुरुकुल आयुर्वेद संस्थान से उन्होंने बी.एम.एस. की उपाधि प्राप्त की।

छात्र जीवन में ही उनका सम्पर्क संघ से हो गया था संघ के प्रखर विचार, रोचक कार्यक्रम और कार्यकर्ताओं के व्यवहार से प्रभावित होकर क्रमशः उनका झुकाव संघ की ओर बढ़ता चला गया, तीनों वर्ष के संघ शिक्षा वर्ग का प्रशिक्षण पूरा कर 1958-59 में वे प्रचारक बन गये।

रामकुमार जी हमीरपुर, उन्नाव, जौनपुर आदि में जिला प्रचारक रहे, आपातकाल के समय उन्हें लखनऊ महानगर का काम दिया गया। उस समय प्रचारकों को भूमिगत रहकर जन जागरण करने का आदेश था अतः वे लखनऊ में संगठन की गतिविधियों में संलग्न रहे; पर पुलिस की नजरों में आ जाने के कारण उन्हें तीन महीने जेल में भी रहना पड़ा, आपातकाल समाप्ति के बाद वे गोंडा और फिर झांसी में विभाग प्रचारक रहे।

रामकुमार जी के कुछ वर्ष बड़े कष्ट में बीते, उनके सिर पर थोड़ी सी हवा लगने से भी भयानक सिर दर्द होने लगता था। इतना ही नहीं, तो उनकी गर्दन भी काफी समय तक जाम रही उसे दायें-बायें हिलाने से भी बहुत दर्द होता था, वे भोजन भी बड़ी कठिनाई से कर पाते थे, चिकित्सक होने के बावजूद वे स्वयं और लखनऊ के चिकित्सक भी इस रोग को नहीं पकड़ सके। अंततः दिल्ली में एक चिकित्सक ने एक्यूपंक्चर के माध्यम से सिर की किसी नस को ठीक किया तब जाकर उन्हें इस कष्ट से मुक्ति मिली।

रामकुमार जी चूंकि स्वयं बालपन में ही स्वयंसेवक बने थे, अतः उन्हें बच्चों के बीच काम करने में बहुत आनंद आता था बच्चे भी उनके पास बैठकर कहानी तथा प्रेरक प्रसंग सुनना पसंद करते थे। उनकी मान्यता थी कि बालपन में पड़े हुए संस्कार जीवन भर अमिट रहते हैं अतः वे सब कार्यकर्ताओं से बाल शाखा पर ध्यान देने का बहुत आग्रह करते थे। उनका हस्तलेख भी मोतियों जैसा था अतः उनके पत्रों को लोग वर्षों तक संभाल कर रखते थे।

उनके जीवन में अनुशासन और व्यवस्था सर्वत्र दिखाई देती थी, वर्षों तक वे संघ शिक्षा वर्ग में प्रथम और फिर द्वितीय वर्ष के शारीरिक प्रमुख रहे। कुछ समय उन पर *सेवा भारती* का काम भी रहा, फिर उन्हें अवध प्रान्त का बौद्धिक प्रमुख बनाया गया। इस दौरान उन्होंने बहुत व्यवस्थित बौद्धिक पुस्तिकाएं बनाईं, जिनसे स्वयंसेवकों और शाखा के कार्यक्रमों की गुणवत्ता में सुधार हुआ।

उन्होंने सैकड़ों महामानवों का संक्षिप्त जीवन परिचय देने वाली पुस्तक *पुण्य प्रवाह हमारा* भी लिखी इसे लखनऊ के लोकहित प्रकाशन ने तीन खंड में प्रकाशित किया है। शाखा में प्रार्थना, सुभाषित, अमृत वचन आदि नियमित तथा सही उच्चारण के साथ हो, इस पर वे बहुत ध्यान देते थे।

रामकुमार जी भारती भवन, लखनऊ में रहते थे कार्यालय की दिनचर्या का वे कड़ाई से पालन करते थे। एक दिन जब वे दोपहर भोजन और फिर शाम की चाय पर नहीं पहुंचे, तो सबको आश्चर्य हुआ। उनके कक्ष में जाकर देखा, तो उन्हें पक्षाघात हो चुका था। तुरन्त उन्हें चिकित्सालय में भर्ती कराया गया, जहां अगले दिन 12 सितम्बर, 2000 को उनका प्राणांत हो गया।

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                          प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा ,पूजा विधि

अनन्त चतुर्दशी सितम्बर 12, 2019 विशेष
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व्रत की महिमा
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पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल से अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत हुई। यह भगवान विष्णु का दिन माना जाता है। अनंत भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी। इन लोकों का पालन और रक्षा करने के लिए वह स्वयं भी चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता है। भारत के कई राज्यों में इस व्रत का प्रचलन है। इस दिन भगवान विष्णु की लोक कथाएं सुनी जाती है।

इस दिन भगवान विष्णु की कथा, पूजा के लिए चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त में व्याप्त होनी चाहिए। पूर्णिमा का सहयोग होने से इसका बल बढ़ जाता है। यदि चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के बाद दो मुहूर्त से पहले ही समाप्त हो जाए, तो अनंत चतुर्दशी पिछले दिन मनाये जाने का विधान है। इस व्रत की पूजा और मुख्य कर्मकाल दिन के प्रथम भाग में करना शुभ माने जाते हैं। यदि प्रथम भाग में पूजा करने से चूक जाते हैं, तो मध्याह्न के शुरुआती चरण में करना चाहिए। मध्याह्न का शुरुआती चरण दिन के सप्तम से नवम मुहूर्त तक होता है।

जैसा इस व्रत के नाम से प्रतीत होता है कि यह दिन उस अंत न होने वाले सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु की भक्ति का दिन है।
यूं तो यह व्रत नदी-तट पर किया जाना चाहिए और हरि की लोककथाएं सुननी चाहिए। लेकिन संभव ना होने पर घर में ही स्थापित मंदिर के सामने हरि से इस प्रकार की प्रार्थना की जाती है- 'हे वासुदेव, इस अनंत संसार रूपी महासमुद्र में डूबे हुए लोगों की रक्षा करो तथा उन्हें अनंत के रूप का ध्यान करने में संलग्न करो, अनंत रूप वाले प्रभु तुम्हें नमस्कार है।'

कैसे करें पूजा
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प्रात:काल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर कलश की स्थापना करें। कलश पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना की जाती है। इसके आगे कुंकूम, केसर या हल्दी से रंग कर बनाया हुआ कच्चे डोरे का चौदह गांठों वाला 'अनंत' भी रखा जाता है। कुश के अनंत की वंदना करके, उसमें भगवान विष्णु का आह्वान तथा ध्यान करके गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करें।

इस व्रत में सूत या रेशम के धागे को लाल कुमकुम से रंग, उसमें चौदह गांठे (14 गांठे भगवान श्री हरि के द्वारा 14 लोकों की प्रतीक मानी गई है) लगाकर राखी की तरह का अनंत बनाया जाता है। इस अनंत रूपी धागे को पूजा में भगवान पर चढ़ा कर व्रती अपने बाजु में बाँधते हैं। पुरुष दाएं तथा स्त्रियां बाएं हाथ में अनंत बाँधती है। यह अनंत हम पर आने वाले सब संकटों से रक्षा करता है। यह अनंत धागा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत फल देता है। यह व्रत धन पुत्रादि की कामना से किया जाता है। इस दिन नये धागे के अनंत को धारण कर पुराने धागे के अनंत का विसर्जन किया जाता है ।

पूजन मुहूर्त
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चतुर्दशी तिथि प्रारंभ👉 12 सितंबर  2019 को सुबह 05 बजकर 06 मिनट से ।

चतुर्दशी तिथि समाप्‍त👉  13 सितंबर को सुबह 07 बजकर 35 मिनट तक।

अनंत चर्तुदशी पूजा का मुहूर्त👉 12 सितंबर को सुबह 06 बजकर 13 मिनट से 13 सितंबर की सबुह 07 बजकर 17 मिनट तक रहेगा।

पूजन सामग्री
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• शेषनाग पर लेटे हुए श्री हरि की मूर्ति अथवा तस्वीर
• आसन (कम्बल)
• धूप - एक पैकेट
• पुष्पों की माला – चार
• फल – सामर्थ्यानुसार
• पुष्प (14 प्रकार के)
• अंग वस्त्र –एक
• नैवैद्य(मालपुआ )
• मिष्ठा्न - सामर्थ्यानुसार
• अनंत सूत्र (14 गाँठों वाले ) – नये
• अनंत सूत्र (14 गाँठों वाले ) – पुराने
• यज्ञोपवीत (जनेऊ) – एक जोड़ा
• वस्त्र
• पत्ते – 14 प्रकार के वृक्षों का
• कलश (मिट्टी का)- एक
• कलश पात्र (मिट्टी का)- एक
• दूर्बा
• चावल – 250 ग्राम
• कपूर- एक पैकेट
• तुलसी दल
• पान- पाँच
• सुपारी- पाँच
• लौंग – एक पैकेट
• इलायची - एक पैकेट
• पंचामृत (दूध,दही,घी,शहद,शक्कर)

अनंत चतुर्दशी व्रत पूजन विधि प्रारम्भ
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पुराणों मे इस व्रत को करने का विधान नदी या सरोवर पर उत्तम माना गया है। परंतु आज के आधुनिक युग में यह सम्भव नहीं है। अत: घर में ही पूजा स्थान पर शुद्धिकरण करके अनंत भगवान की पूजा करें तथा कथा सुने। साधक प्रात: काल स्नानादि कर नित्यकर्मों से निवृत हो जायें। सभी सामग्री को एकत्रित कर लें तथा पूजा स्थान को पवित्र कर लें। पत्नी सहित आसन पर बैठ जायें। पूजागृह की स्वच्छ भूमि पर कलश स्थापित करें। कलश पर शेषनाग की शैय्यापर लेटे भगवान विष्णु की मूíत अथवा चित्र को रखें। उनके समक्ष चौदह ग्रंथियों (गांठों) से युक्त अनन्तसूत्र (डोरा) रखें। इसके बाद ॐ अनन्तायनम: मंत्र से भगवान विष्णु तथा अनंतसूत्रकी षोडशोपचार-विधिसे पूजा करें। पूजनोपरांतअनन्तसूत्रको मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री बाएं हाथ में बांध लें-

अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव।
अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥

अनंतसूत्रबांध लेने के पश्चात किसी ब्राह्मण को नैवेद्य (भोग) में निवेदित पकवान देकर स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें। पूजा के बाद व्रत-कथा को पढें या सुनें। कथा का सार-संक्षेप यह है- सत्ययुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे। उनकी पुत्री शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी। सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्यमुनि से किया। कौण्डिन्यमुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे, तब रास्ते में नदी के किनारे कुछ स्त्रियां अनन्त भगवान की पूजा करते दिखाई पडीं। शीला ने अनन्त-व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनन्तसूत्रबांध लिया। इसके फलस्वरूप थोडे ही दिनों में उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया।

पवित्रीकरण
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अब दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न पवित्रीकरण मंत्र का उच्चारण करें और सभी सामग्री , उपस्थित जन- समूह पर उस जल का छिंटा दें कर सभी को पवित्र कर लें ।

पवित्रीकरण मंत्र 
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ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्व अवस्थांगत: अपिवा।
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्य अभ्यन्तर: शुचिः॥
आचमन
दाएँ हाथ में जल लें निम्न आचमन मंत्र के द्वारा तीन बार आचमन करें
“ॐ केशवाय नमः” मंत्र का उच्चारण करते हुए जल को पी लें।
“ॐ नारायणाय नमः” मंत्र का उच्चारण करते हुए जल को पी लें।
“ॐ वासुदेवाय नमः” मंत्र का उच्चारण करते हुए जल को पी लें।
तत्पश्चात“ॐ हृषिकेशाय नमः” कहते हुए दाएँ हाथ के अंगूठे के मूल से होंठों को दो बार पोंछकर हाथों को धो लें।

पवित्री धारण
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तत्पश्चात् निम्न मंत्र के द्वारा कुश निर्मित पवित्री धारण करे -
पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः ।
तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम् ।
स्वस्तिवाचन –
हाथ में अक्षत तथा पुष्प लें और निम्न मंत्रों को बोलते हुए थोड़ा –थोड़ा पुष्प भूमि पर छोड़ते जायें ।
ॐ गणेशाम्बिकाभ्यां नम : । ॐ केशवाय नम : । ॐ नारायणणाय नम : । ॐ माधवाय नम : । ॐ गोविंदाय नम : । ॐ विष्णवे नम : । ॐ मधुसूदनाय नम : । ॐ त्रिविक्रमाय नम : । ॐ वामनाय नम : । ॐ श्रीराधाय नम : । ॐ ह्रषीकेशाय नम : । ॐ पद्मनाभाय नम : । ॐ दामोदराय नम : । ॐ संकर्षणाय नम : । ॐ वासुदेवाय नम : । ॐ प्रद्युम्नाय नम : । ॐ अनिरुद्धाय नम : । ॐ पुरुषोत्तमाय नम : । ॐ अधोक्षजाय नम : । ॐ नरसिंहाय नम : । ॐ अच्युताय नम : । ॐ जनार्दनाय नम : । ॐ उपेंद्राय नम : । ॐ हरये नम : । ॐ श्रीकृष्णाय नम : । ॐ श्रीलक्ष्मीनारायणाभ्यां नम : । ॐ उमामहेश्वराभ्यां नम : । शचीपुरन्दराभ्यां नम : । मातृपितृभ्यां नम : । इष्टदेवताभ्यो नम : । ग्रामदेवताभ्यो नम : । स्थानदेवताभ्यो नम : । वास्तुदेवताभ्यो नम : । सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम : । सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नम : ।

संकल्प : -
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हाथ मे अक्ष्त ,पान का पत्ता ,सुपारी तथा सामर्थ्यानुसार सिक्के लेकर संकल्प मंत्र उच्चारित करते हुए संकल्प करें –
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्यॐ विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्द्धे विष्नुपदे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे, कलिप्रथमचरणे भूर्लोके जम्बुद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशे अमुकक्षेत्रे (अपने नगर तथा क्षेत्र का नाम लें) बौद्धावतारे अमुकनाम संवत्सरे श्रीसुर्ये अमुकयाने अमुक ऋतो ( ऋतु का नाम लें ) महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे भाद्र मासे शुक्ल पक्षे चतुर्दशी तिथौ अमुक वासरे ( वार का नाम लें ) अमुक नक्षत्रे ( नक्षत्र का नाम लें ) अमुक योगे अमुक-करणे अमुकराशिस्थिते चंद्रे ( जिस राशि में चंद्रमा स्थित हो,उसका नाम लें ) अमुकराशिस्थिते श्रीसुर्ये (जिस राशि में सुर्य स्थित हो,उसका नाम लें ) देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु यथायथा- राशिस्थान-स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह-गुणग़ण-विशेषण- विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ अमुक गोत्र (अपने गोत्र का नाम लें ) अमुकनाम ( अपना नाम ले ) ऽहं मम सकुटुम्बस्य क्षेमैश्वर्यायुरारोग्यचतुर्विधपुरुषार्थसिद्ध्यर्थं मया आचरितं वा आचार्यमाणस्य व्रतस्य सम्पूर्णफलावाप्त्यर्थं श्रीमदनन्तपूजनमहंकरिष्ये। श्रीमदनन्तव्रतांगत्वेन गणेशपूजनं ,यमुनापूजनादिकं च करिष्ये।
फिर कथा कहें ।।

व्रत कथा
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एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्तसूत्रपर पडी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया-जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है। परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्यने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा और अनन्तसूत्रको जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड दिया तथा उसे आग में डालकर जला दिया। इस जघन्य कर्म का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्यऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए। उन्हें रास्ते में जो मिलता वे उससे अनन्तदेवका पता पूछते जाते थे। बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्यमुनि को जब अनन्त भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को उद्यत हुए। तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफामें ले जाकर चतुर्भुजअनन्तदेवका दर्शन कराया।

भगवान ने मुनि से कहा-तुमने जो अनन्तसूत्रका तिरस्कार किया है, यह सब उसी का फल है। इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो। इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे। कौण्डिन्यमुनिने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया। भगवान ने आगे कहा-जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मोका फल ही दुर्गति के रूप में भोगता है। मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता है। अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती है। कौण्डिन्यमुनि ने चौदह वर्ष तक अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया।

भगवान जगदीश्वर जी की आरती
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ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥

जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥

तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥

तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥

दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥

तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
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            "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                   डिंडोरी - मुंगेली
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Tuesday, September 10, 2019

एक मुक्तक प्रयास

तूफान में कश्तीयां डूब जाती है..!
                    अहंकार में हस्तियां डूब जाती है..!
जीते जी इंसान की प्यास कभी नही बुझती..!
             इसलिए नदी में अस्थियां डूब जाती है..!!

                   🏵🚩 सुप्रभात सादर वंदन 🚩🏵

एक मुक्तक

☆~-~-~-~-•-💓-•-~-~-~-~☆
कौन कहेगा उसे, के नाचीज़ है वो
टूटे हुए मेरे दिल का ताबीज़ है वो
है सैलाब-ए-जवानी या दरिया की तरह
वो खुद ही ना जाने, क्या चीज़ है वो  !!
☆~-~-~-~-•-💓-•-~-~-~-~☆

एक लफ्ज़

*!!!!.......लोग बेवजह ढूँढते हैँ,*
              *खुदखुशी के तरीके हजार.....!!!!*

*!!!!......वो "इश्क" करके,*
                *क्यों नहीँ देख लेते एक बार...!!!!*
             
                पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी
              धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                 व्यंग्य-लेखक-गीतकार
               डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
             प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
     अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
       ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...