आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!
आज गलियां सब हैं खाली मौन हर संवाद है ।
सब सिमटे सिमटे से हैं कहां वाद विवाद है ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!
ऐसा ही होता जब छलना अनजानी आती है ।
निराशा आती तब आशा जलती सी जाती है ।
किधर मौन हो हैं जाते वे बजते गीत सुहाने ।
खोजने पे भी नजर नहीं आते वे यार पुराने ।
हम भी हैं सामिल नहीं कहीं हम अपवाद हैं ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!
इक अनजानी अनचाही रिक्त्तता ने घेरा है ।
इस चार दिन की जिंदगी में क्या तेरा मेरा है ।
करते हैं कहीं पे गुजर कुछ दिन का फेरा है ।
धुंधला धुंधला सा कैसा चित्र उसने उकेरा है ।
मंदिरों के पट हैं बंद नहीं वहां प्रणव नाद हैं ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!
उजियारे का चांद गगन में चढ़ के रोता है ।
छोंड़ के हमें भाग्य भरोसे वह भी सोता है ।
अंधियारे से डर जाने किधर उजियारा है ।
कैसा दौर दुनिया का हर ओर अंधियारा है ।
सब हैं मौन से अनजाना कोई अवसाद है ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,!!!
इच्छाएं पर आज बंदिसें कोई अज्ञात है ।
जानें किधर खोए सब प्रख्यात विख्यात हैं ।
हो गई भोर बिना आभा के दुखी प्रभात है ।
शोर थम गए जो दिखता है वह प्रलाप है ।
सबके दिलो में छाया अनजाना संताप है ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,!!!
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057