*पुराणों के अनुसार माता कामधेनु 🐄 समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी। पुराणों मे कामधेनु के कई नामों का उल्लेख है - नंदिनी, सुनन्दा, सुरभि, सुशीला, सुमन इत्यादि। ऐसा माना जाता है कि मुनि कश्यप ने वरुण देव से कामधेनु मांगी था, लेकिन कार्य पुरा होने पर भी उन्होने कामधेनु को वरुण देव को वापस नहीं किया। 😳⛳इससे क्रोधित होकर वरुण देव ने कश्यप जी को श्राप दे दिया, 😳☝🏻और उनका जन्म, कृष्ण के काल में, ग्वाले के रूप में हुआ। कामधेनु माता की कथा, भगवान विष्णु के अवतार परशुराम से जुड़ी है।👉🏻⛳ जमदग्नि ऋषि, परशुराम के पिता, को भगवान इंद्र ने कुछ समय के लिये कामधेनु गाय दी थी। एक बार सहस्त्रबाहु अर्जुन नाम के राजा उनके आश्रम मे पहुँचे। महर्षि ने उनका यथोचित स्वागत किया। राजा के मन में यह बात आई कि महर्षि ने उनका इतनी अच्छी तरह स्वागत कैसे किया। तभी उस राजा ने महर्षि के गौशाला में कामधेनु गाय को देखा। राजा समझ गया कि यह सब उस कामधेनु गाय 🐄का प्रभाव है।*😳☝🏻
*👉🏻अत: राजा ने महर्षि से कामधेनु🐄 गाय माँगी। जब महर्षि ने कामधेनु देने में असमर्थता व्यक्त की बताया कि उन्हें कुछ समय तक कामधेनु की सेवा का अवसर मिला है। तब सहस्त्रार्जुन ने बल पूर्वक कामधेनु गाय को आश्रम से ले गया।😳☝🏻 इधर जब परशुराम जी आश्रम लौटे तब महर्षि ने उन्हें बताया कि सहस्त्रार्जुन कामधेनु को ले गया। परशुराम जी उसी क्षण सहस्त्रार्जुन के महल को गये और उसे कामधेनु लौटाने के लिये कहा। सहस्त्रार्जुन ने कहा –“मैं गाय वापस नहीं करूंगा और तुम कौन हो, वापस जाओ । मैं राजा हूँ, राजा का प्रजा के हर वस्तु पर अधिकार होता है। इसलिये वापस जाओ नहीं तो बंदी बनाकर कारागार में बंद कर दूंगा। ” उसने अपने सैनिकों को आदेश दे दिया, परशुराम जी को पकड़ने के लिये। परशुराम जी ने क्रोध में भरकर सभी सैनिकों को मार दिया। सहस्त्रार्जुन अपने सभी सैनिकों और पुत्रों सहित परशुराम जी से लड़ने लगा।*😳☝🏻
*👉🏻सहस्त्रार्जुन को दत्तात्रेय भगवान का आशीर्वाद प्राप्त था कि पृथ्वी पर उसे कोई क्षत्रिय राजा हरा नहीं सकता एवं युद्ध के समय उसके हजारों हाथ होंगे। अत: वह अपने हजारों बाहु के साथ लड़ने लगा। परशुराम ने सहस्त्रार्जुन और उसके अधिकांश सैनिकों व पुत्रों को मार डाला😳☝🏻। इसके बाद परशुराम जी कामधेनु 🐄को लेकर आश्रम लौट आये। महर्षि जमदग्नि ने कहा – “पुत्र तुमने एक राजा की हत्या करके ठीक नहीं किया। तुम्हें प्रायश्चित के लिये तीर्थ यात्रा पर जाना होगा।” तब परशुराम जी ने कहा- “वो मुझे बंदी बनाना चाहता था। तभी मैंने उससे युद्ध किया । उसने एक ब्राह्मण की गाय को जबरन छीना था। ऐसे भी वह अभिमानी, अहंकारी तथा अधर्मी हो चुका था।” इसके बाद परशुराम जी तीर्थ यात्रा पर चले गये।*✔️⛳
*😳👉🏻इधर जब सहस्त्रार्जुन के बचे हुए पुत्रों को जब पता चला कि परशुराम जी तीर्थ यात्रा पर गये हैं तो वे सब बदला लेने के लिये आश्रम पहुँचे। उस समय आश्रम में केवल माता रेणूका और महर्षि जमदग्नि थे। उन्होंने ध्यानमग्न महर्षि जमदग्नि का सिर काट दिया 😳और माता रेणुका को मारने लगे। माता रेणुका ने अपने पुत्र परशुराम को पुकारा ।उस वक्त परशुराम जी तीर्थ में तपस्या में लीन थे । लेकिन माता की आवाज सुनकर वे तुरंत ही अपने आश्रम को लौट आये। ⛳अपने पिता का शरीर भाईयों के पास छोड़कर, सहस्त्रार्जुन के महल मे गये। वहाँ. परशुराम ने सहस्त्रार्जुन के बचे हुये पुत्रों को मार डाला। ✔️☝🏻अपने आश्रम लौट कर वे पिता के शरीर को लेकर कुरुक्षेत्र गये। वहाँ पर मंत्र की सहायता से अपने पिता के सिर को जोड़ दिया तथा उन्हें जीवित किया। अपने पिता को जीवित कर, सप्तऋषि मंडल में सातवें ऋषि के रूप में स्थापित कर दिया ।*😊⛳✔️
*जो गौमाता 🐄 को पशु समझता है वह स्वयं पशु है।।*
आपका अपना
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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