Wednesday, May 13, 2020

नींद और चैन दोनों खो गये (गीत)

नींद और चैन दोनों खो गये, हम तुम्हीं को याद कर सो गये
हो गये हैं सनम आपके, फ़ासले न जाने क्यों हो गये
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जान सच कहते हैं तेरी कसम, तुम बिन बेजान हो गये हम
प्यार हम करते कितना तुझे, कितने भी यार कर ले सितम
रात और दिन फसाने हो गये, हम तुम्हीं को याद कर सो गये
हो गये हैं सनम आपके, फ़ासले न जाने क्यों हो गये
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आग कैसी जानम दिल में लगी, कर गये तुम क्यों दिल्लगी
याद तुम आते हो तन्हाई में, बन गये तुम मेरी जिन्दगी
नैन ये बैचेन क्यों हो गये, हम तुम्हीं को याद कर सो गये
हो गये हैं सनम आपके, फ़ासले न जाने क्यों हो गये
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
है लबों की मय तुम्हारे लिये, हैं गुलाबी गाल तुम्हारे लिये
दिलोज़िग़र तुम्हें दे दिया, कर दिया एलान तुम्हारे लिये
रास्ते दुश्वार से हो गये, हम तुम्हीं को याद कर सो गये
हो गये हैं सनम आपके, फ़ासले न जाने क्यों हो गये
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
रात है जवां ईनाम दो, आओ और पास हमें थाम लो
बीत जायें न यूँ ही पल छिन, जज़्बातों को अन्जाम दो
तुम मिले न यार हम रो गये, हम तुम्हीं को याद कर सो गये
हो गये हैं सनम आपके, फ़ासले न जाने क्यों हो गये

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

न जा ने कबसे हुआ है जबसे , निखर रही है


न जा ने कबसे हुआ है जबसे , निखर रही है-2!
जो  हाल  है  प्यार  में  हमारा,  उधर रही है-2।१।

जहाँ भी जाऊं लगे है मुझको, करीब है वो-2!
के दिल पे छाकर रुहों में जैसे, उतर रही है-2।२।

कहो ज़रा तो उसे ये जाकर, वफ़ा निभाये-2!
के रुख सुहानी सदा लिये फिर, बिखर रही है-2।३।

जिधर सफर हो वो ढल के आये, जिगर के सदके-2!
बहार लेकर हया की रुत फिर, गुजर रही है-2।४।

है इश्क़ उनको, ज़रा ज़रा ही, मगर जताये-2!
हमें खबर है नजर चुराये , सँवर रही है-2।५।

न जा ने कबसे हुआ है जबसे , निखर रही है-2!
जो  हाल  है  प्यार  में  हमारा,  उधर रही है-2।१।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Tuesday, May 12, 2020

जब भी आऊं पास तुम्हारे (गीत)


जब भी आऊं पास तुम्हारे
तब तुम बस इतना कर देना
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।

कोई शिकवा नहीं शिकायत
सब निर्णय स्वीकार तुम्हारे
बहुत मुबारक मंडप तुमको
और बधाई वंदन वारे
धरो हथेली पर जब मेहंदी
बीच कहीं मुझको धर देना।
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।

हंसी खुशी के हर मौके पर
ख़त भेजूंगा नाम तुम्हारे
राह भूलकर  दहरी खोजूं
किसी दिवस की शाम तुम्हारे
द्वार खड़ा आवाज लगाऊं
आई आई उत्तर देना।
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।

तुम्ही कहो कब तुमसे मांगी
कंचन देह तुम्हारी मैंने
उजियारे में या अंधियारे
कब-कब लाज उतारी मैंने
जब भी मांगू तुमसे केवल
मुझको ढाई आखर देना।
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।

यद्यपि बहुत कठिन है कहना
तय कर पाऊं पथ की दूरी
यह संभव है बिना तुम्हारे
जीवन मंजिल रहे अधूरी
मेरी नीरस धरती को तुम
आशाओं का अंबर देना।
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।

जब भी आऊं पास तुम्हारे
तब तुम बस इतना कर देना
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

जुदा हम न हों फिर तुझे है कसम।१।


कभी तो मिलो दिल मिलाकर सनम!
जुदा हम  न हों फिर  तुझे है  कसम।१।

मिले  और  मिलकर  सदा  हम  रहें!
अदा हक़  करें आ  भुलाकर  सितम।२।

ढले  रात  दिन  प्यार  में  इस  तरह!
वफ़ा   ही  वफ़ा   हो  खुदा का करम।३।

हँसीं गुल  खिले और  महब्बत   तले!
शिकायत न हो सब  मिटा दे भरम।४।

सजायें चले आ नई हसरतों की जहां!
कहे   दिल   हमेशा  निभाकर  धरम।५।

कभी तो मिलो दिल मिलाकर सनम!
जुदा हम  न हों फिर  तुझे है  कसम।१।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

कभी तो मिलो दिल मिलाकर सनम!


कभी तो मिलो दिल मिलाकर सनम!
जुदा हम  न हों फिर  तुझे है  कसम।१।

मिले  और  मिलकर  सदा  हम  रहें!
अदा हक़  करें आ  भुलाकर  सितम।२।

ढले  रात  दिन  प्यार  में  इस  तरह!
वफ़ा   ही  वफ़ा   हो  खुदा का करम।३।

हँसीं गुल  खिले और  महब्बत   तले!
शिकायत न हो सब  मिटा दे भरम।४।

सजायें चले आ नई हसरतों की जहां!
कहे   दिल   हमेशा  निभाकर  धरम।५।

कभी तो मिलो दिल मिलाकर सनम!
जुदा हम  न हों फिर  तुझे है  कसम।१।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

*⚜️जय गौमाता🐄जय गोपाला⚜️*


 
*⚜️जय गौमाता🐄जय गोपाला⚜️*

*एक बार मनोहर रूपधारी लक्ष्मीजी ने गौओं के समूह में प्रवेश किया।🙏🏻😊उनके सौंदर्य को देख गौओं🐄 को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने उनका परिचय पूछा। लक्ष्मी जी ने कहा – “गौओं तुम्हारा कल्याण हो ! इस जगत में सभी लोग मुझे लक्ष्मी कहते हैं। सारा संसार मुझे चाहता है। मैंने दैत्यों को छोड़ दिया, इसलिये वे नष्ट हो गये। इन्द्रादि देवताओं को आश्रय दिया तो वे सुख भोग रहें हैं। देवताओं और ऋषियों के शरीर में मेरे हीं आने से सिद्धि मिलती है।*⛳🙏🏻
*👉🏻जिसके शरीर में मैं नहीं प्रवेश करती उसका नाश हो जाता है। धर्म ,अर्थ और काम तो मेरे ही सहयोग से सुख देनेवाले हो सकते हैं। मेरा ऐसा प्रभाव है। अब मैं तुम्हारे शरीर में सदा के लिये वास करना चाहती हूँ। इसके लिये स्वत: तुम्हारे पास आकर प्रार्थना करती हूँ, तुम लोग मेरा आश्रय ग्रहण करो और ' श्री ' सम्पन्न हो जाओ।*⚜️🙏🏻☝🏻

*👉🏻गौवों ने कहा- “ हे देवी बात ठीक है,पर तुम बड़ी चंचल हो । कहीं भी स्थिर रह ही नहीं सकती। फिर तुम्हारा सम्बंध भी बहुतों के साथ है। इसलिये हम को तुम्हारी इच्छा नही है तुम्हारा कल्याण हो । ✋🏻😊हमारा शरीर तो स्वभाव से हृष्ट, पुष्ट और सुन्दर है ,हमें तुमसे कोई कार्य नही है ।तुम्हारी जहाँ इच्छा हो जा सकती हो। तुमने हमसे बात-चीत की इस से हम अपने को कृतार्थ मानते हैं ।”*✔️⛳
*लक्ष्मी जी ने कहा – “गौवों तुम यह क्या कह रही हो ? मैं बड़ी दुर्लभ हूँ प्रिय साथी हूँ, पर तुम मुझे स्वीकार नही करती । आज मुझे यहां पता लगा कि ‘बिना बुलाये किसी के पास जाने से अनादर होता हैं’ यह कहावत सत्य है। उत्तम व्रताचरण , देवता,दानव, गंधर्व, पिशाच,नाग, मनुष्य और राक्षस के बड़ी उग्र तपस्या करने पर कहीं मेरी सेवा का सौभाग्य प्राप्त कर पाते है । तुम मेरे इस प्रभाव पर ध्यान दो और मुझे स्वीकार करो ।देखो इस चराचर जगत में मेरा अपमान कोई भी नहीं करता । ”*😳
*गौवों 🐄👉🏻ने कहा- “ देवी हम तुम्हारा अपमान नहीं कर रहीं है । हम तो केवल त्याग कर रही हैं। सो भी इसलिये कि तुम्हारा चित्त चंचल है। तुम कहीं स्थिर हो के रहती नहीं। फिर हम लोग का शरीर तो स्वभाव से स्थिर है। अत: तुम जहाँ जाना चाहो चली जाओ । ”*✔️⛳😊
*लक्ष्मी जी ने कहा – “ गौवों 🐄तुम दुसरों को आदर देनेवाली हो । यदि मुझको त्याग दोगी तो संसार मे सर्वत्र मेरा अनादर होने लगेगा 😔☝🏻। मैं तुम्हारी शरण में आई हूँ, निर्दोष हूँ और तुम्हारी सेविका हूँ यह जानकर मेरी रक्षा करो । मुझे अपनाओ, तुम महासौभाग्यशालिनी, सदा सबका कल्याण करने वाली ,सबको शरण देनेवाली ,पुण्यमयी पवित्र और सौभाग्यवती हो ।मुझे बतलाओ मैं तुम्हारे शरीर के किस भाग में रहूँ । ”*✔️😊
*गौवों ने कहा- “ यशस्वनी ,हमे तुम्हारा सम्मान अवश्य करना चाहिये । अच्छा तुम हमारे गोबर और मुत्र में निवास करो । हमारी ये दोनों चीजें बड़ी पवित्र है ।”*⛳😊
*लक्ष्मी जी ने कहा- “सुखदायिनी गौ , तुमलोगों ने मुझपर बड़ा अनुग्रह किया । मेरा मान रख लिया। तुम्हारा कल्याण हो मैं ऐसा हीं करूंगी ।*⛳⛳

*⛳⚜️गौवों के साथ इस प्रकार प्रतिज्ञा करके देखते ही देखते लक्ष्मी जी वहां से अंतर्ध्यान हो गयीं ।*⛳


सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
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       8120032834/7828657057

Monday, May 11, 2020

*अहंकार की परीक्षा*


*अहंकार  की परीक्षा*


*प्रभु के वक्षस्थल पर विप्र-चिह्न!जानिए आखिर क्यों भृगु ऋषि ने मारी भगवान विष्णु को लात पौराणिक कथा !*

*दुर्वासा मुनि की बात छोड़ दी जाए तो यह कहना गलत नही होगा कि ऋषि-मुनि जल्दी नाराज नहीं होते थे। लेकिन एक बार जब क्रोधित हो गए तो बिना शाप दिए शांत भी नहीं होते थे। लेकिन भृगु ऋषि ने जो किया वह तो हतप्रभ कर देने वाली बात थी।*

*भृगु ऋषि ने क्षीरसागर में शेषशैय्या पर सोते हुए भगवान विष्णु की छाती पर अपने पैर से जोरदार प्रहार किया था। महान ग्रंथ ’भृगु संहिता’ के प्रतिष्ठित रचयिता, प्रबुद्ध चिंतक और महाज्ञानी भृगु ऋषि ने ऐसा किया, तो जरूर कोई-न-कोई विशेष बात रही होगी। आइए जानते हैं इस रोचक प्रसंग के बारे में।*

*क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उतपात।*
*का रहिमन हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात।।*
 
*अर्थात बड़े का बड़प्पन इसी में है कि वह सदैव निरहंकारी रहे। असभ्य व्यक्ति अभद्रता से पेश आए तो उसे आपा नहीं खोना चाहिए। यदि वह स्वयं पर अंकुश न रख सका तो बड़े व छोटे में भेद ही क्या रह जाएगा।*

*रहीम कहते हैं कि बड़े को क्षमाशील होना चाहिए, क्योंकि क्षमा करना ही उसका कर्तव्य, भूषण व बड़प्पन है, जबकि उत्पात व उदंडता करना छोटे को ही शोभा देता है। छोटों के उत्पात से बड़ों को कभी उद्विग्न नहीं होना चाहिए। क्षमा करने से उनका कुछ नहीं घटता। जब भृगु ने विष्णु को लात मारी तो उनका क्या घट गया? कुछ नहीं।*

*भृगु ने ब्रहमा-विष्णु-महेश की महानता को परखने के लिए विष्णु के वक्ष पर पाद-प्रहार किया। इससे विष्णु चुपचाप मुस्कराते रहे, जबकि ब्रहमा और महेश आपा खो बैठे। भृगु को उत्तर मिल चुका था। उन्हें ब्रहमा या महेश को लात मारने की आवश्यकता नहीं पड़ी।*

*श्रीरामचरितमानस में उपाख्यानित है कि भक्त और भगवान दोनों को एक ही प्रकार की परीक्षा देनी पड़ती है। जैसे भक्त पर लात का प्रहार किया गया,वैसे ही भगवान पर भी। अन्तर इतना है कि दोनों स्थानों पर मारने वाले पात्र अलग अलग स्तर के हैं।*

*पुराणों में कथा वर्णित है कि भगवान नारायण की छाती पर भृगु ऋषि ने प्रहार किया। और विभीषण की छाती पर, मानस में,रावण प्रहार करता है।भृगु परम पुण्यात्मा हैं और रावण पापी है। परीक्षा के पात्र हैं,भक्त और भगवान।*

*आज हम भगवान की परीक्षा की ओर केन्द्रित होकर,आइए इस के अंतरंग-रहस्य पर प्रकाश डालते हैं।*

*देखें-- एक बार इस बात पर विवाद छिड़ा कि भगवान के अनेक रूपों में सर्वश्रेष्ठ कौन है? भृगु को परीक्षा का भार सौंपा गया।वे ब्रह्मा के पास पहुँचे,पर उन्हें प्रणाम नहीं किया।*

*इससे ब्रह्मा को बुरा लगा।भृगु सोचने लगे कि ये बड़े शक्तिशाली और सृष्टि के रचयिता तो हैं,पर सम्मान के प्रेमी हैं,यह इनकी कमी है,इसलिए श्रेष्ठ नहीं है।*

*फिर वे भगवान शंकर के पास गये।उन्हें देखते ही,शंकरजी दौड़कर उनसे मिलने के लिए आए।पर भृगु कह उठे--तुम तो चिता की राख लगाये रहते हो,बड़े गन्दे हो,मुझे मत छुओ। यह सुनकर शंकरजी उन्हें त्रिशूल लेकर मारने दौड़े।भृगु ने सोचा,ये तो महान क्रोधी हैं,अभी इतना प्रेम दिखा रहे थे और अब मारने दौड़ रहे हैं।अरे!ये तो महान क्रोधी हैं।नहीं,नहीं,ये भी श्रेष्ठ नहीं हैं।*

*तत्पश्चात् वे विष्णु भगवान के पास क्षीरसागर गये।भगवान नारायण शयन कर रहे थे और कथा है कि भृगु ने उनकी छाती पर चरण से प्रहार किया।भगवान उठ कर बैठ गये और उन्होंने भृगु के चरण को पकड़ लिया।कहा--महाराज!आपके चरणों को बड़ा कष्ट हुआ होगा,क्योंकि वे तो बड़े कोमल हैं।जबकि मेरी छाती बड़ी कठोर है।*

*जब भृगु लौट कर आए तो उन्होंने घोषणा कर दी कि नारायण ही भगवान का श्रेष्ठ रूप है।इस पौराणिक, आप लोगों द्वारा सुनी हुई कथा का तत्त्व क्या है?*

*देखें-- इसका अर्थ यह नहीं कि भृगु ने ब्रह्मा या शंकर भगवान को जो प्रमाणपत्र दिया,वह सही था।उनके प्रमाणपत्र का कोई बहुत मूल्य नहीं था।यदि वे प्रमाणपत्र न भी देते, तो नारायण की भगवत्ता में कोई अन्तर नहीं आता।यह तो उनकी अपनी कसौटी थी।*

*जैसे कोई पहली कक्षा का विद्यार्थी,किसी को एम.ए. का प्रमाणपत्र दे दे,तो उसका क्या मूल्य?उसके प्रमाणपत्र देने या न देने का कोई अर्थ नहीं है। तब फिर यह जो भृगु ने नारायण की परीक्षा ली,उसका तत्त्व क्या है?*

*वास्तव में जब भगवान ने उनसे कहा कि आपके चरणों में  चोट लग गयी होगी,तो इसमें स्तुति और व्यंग्य दोनों हैं ।वह कैसे?*
*भृगु ब्राह्मण हैं,अकिंचन हैं।*

*एक नया दृश्य यहाँ उपस्थित होता है।ऐसा तो देखा जाता है कि एक अकिंचन किसी लक्ष्मीपति के पास जाकर अपमानित या लांछित हो,पर ऐसा बहुधा नहीं देखा जाता कि अकिंचन जाकर लक्ष्मीपति को ही अपमानित कर दे,और अपमान भी कैसा किया?हृदय पर चरण से प्रहार किया।लक्ष्मीजी ने जब प्रश्न सूचक दृष्टि से मुनि की ओर देखा,तो मुनि बोले--ये सो रहे हैं,इसलिए इन्हें जगा रहे हैं।*

*तो क्या भगवान सो रहे थे?उनका तो शयन भी जागरण ही है।फिर भृगु किसको जगाने चले थे?इसका एक सांकेतिक अर्थ देखें--भृगु हैं त्यागी,तपस्वी और भगवान हैं लक्ष्मीपति।जैसे भृगु में त्याग का अहंकार था,उसी प्रकार सर्वशक्तिमान भगवान में भी अपने लक्ष्मीपतित्व का अभिमान जाग उठता,तब क्या होता?संसार में ऐसे अहंकारों की टकराहट प्रायः दिखाई देती है।*

*एक व्यक्ति को त्याग का अहंकार है कि मैंने इतना छोड़ दिया,तो दूसरे को संग्रह का अहंकार है कि मेरे पास इतना धन है।ये दोनों अहंकार एक दूसरे से भिड़ते रहते हैं। पर यहाँ पर भृगु तो अपने त्याग का अहंकार लेकर आए,पर लक्ष्मीपति इतने अधिक निरहंकारी निकले कि त्यागी महोदय हार गये।*

*लक्ष्मीपति शरीर से तो जागे,पर उनका अहंकार नहीं जग पाया,और व्यंग्य यह था,कि प्रभु पूछ बैठते हैं--महाराज!आपको चोट तो नहीं लगी?भृगु आए थे भगवान को चोट पहुँचाने।यदि भगवान का अहम् जागता कि कहाँ मैं साक्षात् लक्ष्मीपति भगवान,और कहाँ यह अकिंचन ब्राह्मण,और इसकी धृष्टता तो देखो कि मुझ पर प्रहार कर रहा है--तब तो भगवान को अवश्य चोट लग जाती।*

*पर भगवान का अहम् नहीं जगा,इसलिए उनकी विजय हो गयी और त्यागी पराजित हो गया।यदि कभी ऐसा हो कि प्रहार करने वाला जिस पर प्रहार करे,उसे तो चोट न लगे और स्वयं प्रहार करने वाले को ही चोट लग जाए,तो इससे बड़ा कोई अचरज नहीं हो सकता।यहाँ पर ऐसा ही हुआ।*

*इसका अभिप्राय यह है कि सही अर्थों में व्यक्ति को चोट तब लगती है,जब वह अपने“मैं”पर,अपने अहम् पर प्रहार का अनुभव कर तिलमिला जाता है।भगवान नारायण में तो रंच मात्र भी अहंकार नहीं है,इसीलिए वे जगद् बंद्य हैं,जगत्पूज्य हैं। तभी तो वे मुस्कराकर मुनि से पूछते हैं कि चोट तो नहीं लगी?और भृगु को अपनी भूल का ज्ञान होता है,वे लौट जाते हैं। भगवान परीक्षा में खरे उतरते हैं।*

सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
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न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...