ढल गई कब की ओ काली रतियां
अब सुबह नई आगाज करो।
ऐ हिंद के सोये युवा अब जागो,
तुम नये युग का निर्माण करो।।
सुनता नहीं है यहां तो कोई तुम्हारा,
अब अपना एक आवाज करो।
भूल न पाए फिर कोई अब तुमको,
ऐसा कर्म लकीरें पाषाण करो।।
बन बैठे हैं यहां कई - कई तो द्रोणा,
तुम एकलव्य सा आगाध करो।
राह नहीं तो दिखाता कोई जो,खुद,
अब गांडीव दिव्य तो बाण धरो।।
बैठे पितामह सिंहासन में यहां अब,
सीमा सैन्य बंधे,खुले हाथ करो।
देश की सीमा,जवान तो बंध बैठा,
अब,तो ए जंजीरें निर्वाण करो।।
कर्ण दानी सा चरित्र तुम बनाओ,
अर्जुन सा लक्ष्य आगाज करो।
बनके राम - कृष्ण जैसा चरितार्थ,
द्रोपदी की तुम ही तो लाज रखो।।
गर सेवा करनी है देश की तुमको,
अब भविष्य ऐसा आबाद करो।
ढल गई कबकी ओ काली रतियां,
अब सुबह नई आगाज करो।।
©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
युवा ओज-व्यंग्य कवि
मुंगेली - छत्तीसगढ़
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