Sunday, September 22, 2019

एक पाप से सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं

*अकर्मण्यता और विषय की समझ के बाद भी मौन रहने वालो के विषय में "श्रीकृष्ण" और माता रूक्मणीजी के बीच का बहुत ही उपयोगी सवांद ..*..

*एक पाप से सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं .*. महाभारत के युद्ध पश्चात जब *श्रीकृष्ण* लौटे तो रोष में भरी *रुक्मणीजी* ने उनसे पूछा?

युद्ध में बाकी सब तो ठीक था, किंतु आपने *द्रोणाचार्य* और *भीष्म पितामह* जैसे *धर्मपरायण* लोगों के वध में *क्यों साथ दिया?*

*श्रीकृष्ण* ने उत्तर दिया, ये सही है की उन दोनों ने जीवन भर धर्म का पालन किया किन्तु उनके किये *एक पाप* ने उनके सारे *पुण्यों को नष्ट कर दिया ..*..

*तो वो कौन से पाप थे?*

जब भरी सभा में *द्रोपदी* का *चीरहरण* हो रहा था तब यह दोनों भी वहां उपस्थित थे *.*. बड़े होने के नाते ये *दुशासन* को रोक  भी सकते थे, किंतु इन्होंने ऐसा नहीं किया *उनके इस एक पाप से बाकी सभी धर्मनिष्ठता छोटी पड़ गई ..*..

*और कर्ण!* वो तो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था, कोई उसके द्वार से खाली हाथ नहीं गया *उसके मृत्यु में आपने क्यों सहयोग किया उसकी क्या गलती थी?*

*हे प्रिये!* तुम सत्य कह रही हो, वह अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था और उसने कभी किसी को *ना* नहीं कहा *..*..

किन्तु जब अभिमन्यु सभी युद्धवीरों को धूल चटाने के बाद युद्धक्षेत्र में घायल हुआ भूमि पर पड़ा था *.*. तो उसने कर्ण से पानी मांगा, और *कर्ण जहाँ खड़ा था उसके पास पानी का एक गड्ढा था किन्तु कर्ण ने मरते हुए अभिमन्यु को पानी नहीं दिया ..*..

इसलिये उसका जीवन भर दानवीरता से कमाया हुआ *पुण्य* नष्ट हो गया *.*. बाद में उसी गड्ढे में उसके रथ का पहिया फंस गया और वो मारा गया *..*..

*हे रुक्मणी!* अक्सर ऐसा होता है, जब मनुष्य के आस पास कुछ गलत हो रहा होता है और वे कुछ नहीं करते और वे सोचते हैं की इस *पाप* के भागी हम नहीं हैं *अगर वे मदद करने की स्थिति में नहीं है तो सत्य बात बोल तो सकते हैं ..*..

परन्तु वे ऐसा भी नहीं करते और *ऐसा ना करने से वे भी उस पाप के उतने ही हिस्सेदार हो जाते हैं जितना पाप करने वाला ..*!!

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

आज का सुविचार

*खुशियों के लिए क्यों*
*किसी का इंतज़ार,*
*आप ही तो हो अपने*
*जीवन के शिल्पकार !*

*चलो आज मुश्किलों को हराते हैं*
*और  दिन  भर  मुस्कुराते     हैं !!*

🍁🍁 *सुप्रभात* 🍁🍁

Saturday, September 21, 2019

पतिव्रता सुलोचना

*पतिव्रता सुलोचना*

सुलोचना वासुकी नाग की पुत्री और लंका के राजा रावण के पुत्र मेघनाद की पत्नी थी, लक्ष्मण के साथ हुए एक भयंकर युद्ध में मेघनाद का वध हुआ; उसके कटे हुए शीश को भगवान श्रीराम के शिविर में लाया गया था।

अपने पति की मृत्यु का समाचार पाकर सुलोचना ने अपने ससुर रावण से राम के पास जाकर पति का शीश लाने की प्रार्थना की, किंतु रावण इसके लिए तैयार नहीं हुआ।

उसने सुलोचना से कहा कि वह स्वयं राम के पास जाकर मेघनाद का शीश ले आये, क्योंकि राम पुरुषोत्तम हैं; इसीलिए उनके पास जाने में तुम्हें किसी भी प्रकार का भय नहीं करना चाहिए।

*मेघनाद का वध*

रावण के महा पराक्रमी पुत्र इन्द्रजीत (मेघनाद) का वध करने की प्रतिज्ञा लेकर लक्ष्मण जिस समय युद्ध भूमि में जाने के लिये प्रस्तुत हुए, तब राम उनसे कहते हैं *..*..

*लक्ष्मण, रण में जाकर तुम अपनी वीरता और रणकौशल से रावण-पुत्र मेघनाद का वध कर दोगे, इसमें मुझे कोर्इ संदेह नहीं है; परन्तु एक बात का विशेष ध्यान रखना कि मेघनाद का मस्तक भूमि पर किसी भी प्रकार न गिरे, क्योंकि मेघनाद एकनारी-व्रत का पालक है और उसकी पत्नी परम पतिव्रता है; ऐसी साध्वी के पति का मस्तक अगर पृथ्वी पर गिर पड़ा तो हमारी सारी सेना का ध्वंस हो जाएगा और हमें युद्ध में विजय की आशा त्याग देनी पड़ेगी, लक्ष्मण अपनी सेना लेकर चल पड़े।*

समरभूमि में उन्होंने वैसा ही किया, युद्ध में अपने बाणों से उन्होंने मेघनाद का मस्तक उतार लिया, पर उसे पृथ्वी पर नहीं गिरने दिया; हनुमान उस मस्तक को रघुनंदन के पास ले आये।

*कटी भुजा द्वारा सुलोचना को प्रमाण*

मेघनाद की दाहिनी भुजा आकाश में उड़ती हुर्इ उसकी पत्नी सुलोचना के पास जाकर गिरी, सुलोचना चकित हो गयी; दूसरे ही क्षण अत्यन्त दु:ख से कातर होकर विलाप करने लगी; पर उसने भुजा को स्पर्श नहीं किया उसने सोचा, सम्भव है यह भुजा किसी अन्य व्यक्ति की हो; ऐसी दशा में पर-पुरुष के स्पर्श का दोष मुझे लगेगा।

निर्णय करने के लिये उसने भुजा से कहा- *यदि तू मेरे स्वामी की भुजा है, तो मेरे पतिव्रत की शक्ति से युद्ध का सारा वृतान्त लिख दें; भुजा को उपस्थित दासी ने लेखनी पकड़ा दी।

लेखिनी ने लिख दिया- *प्राणप्रिये, यह भुजा मेरी ही है, युद्ध भूमि में श्रीराम के भार्इ लक्ष्मण से मेरा युद्ध हुआ; लक्ष्मण ने कर्इ वर्षों से पत्नी, अन्न और निद्रा छोड़ रखी है।*

वे तेजस्वी तथा समस्त दैवी गुणों से सम्पन्न है, संग्राम में उनके साथ मेरी एक नहीं चली, अन्त में उन्हीं के बाणों से विद्छेद होने से मेरा प्राणान्त हो गया; मेरा शीश श्रीराम के पास है।

सुलोचना की रावण से प्रार्थना
पति की भुजा-लिखित पंक्तियां पढ़ते ही सुलोचना व्याकुल हो गयी, पुत्र-वधु के विलाप को सुनकर लंकापति रावण ने आकर कहा- *शोक न कर पुत्री, प्रात: होते ही सहस्त्रों मस्तक मेरे बाणों से कट-कट कर पृथ्वी पर लोट जाऐंगे*; मैं रक्त की नदियां बहा दूंगा।

करुण चीत्कार करती हुर्इ सुलोचना बोली- *पर इससे मेरा क्या लाभ होगा, पिताजी!* सहस्त्रों नहीं करोड़ों शीश भी मेरे स्वामी के शीश के आभाव की पूर्ति नहीं कर सकेंगे।

सुलोचना ने निश्चय किया कि *मुझे अब सती हो जाना चाहिए;* किंतु पति का शव तो राम-दल में पड़ा हुआ था, फिर वह कैसे सती होती? जब अपने ससुर रावण से उसने अपना अभिप्राय कहकर अपने पति का शव मँगवाने के लिए कहा *..*..

तब रावण ने उत्तर दिया- *हे देवी! तुम स्वयं ही राम-दल में जाकर अपने पति का शव प्राप्त करो, जिस समाज में बालब्रह्मचारी हनुमान, परम जितेन्द्रिय लक्ष्मण तथा एक पत्निव्रती भगवान श्रीराम विद्यमान हैं, उस समाज में तुम्हें जाने से डरना नहीं चाहिए; मुझे विश्वास है कि इन स्तुत्य महापुरुषों के द्वारा तुम निराश नहीं लौटायी जाओगी।*

पति के शीश की प्राप्ति
सुलोचना के आने का समाचार सुनते ही श्रीराम खड़े हो गये और स्वयं चलकर सुलोचना के पास आये और बोले- *देवी, तुम्हारे पति विश्व के अन्यतम योद्धा और पराक्रमी थे, उनमें बहुत-से सदगुण थे; किंतु विधि की लिखी को कौन बदल सकता है* आज तुम्हें इस तरह देखकर मेरे मन में पीड़ा हो रही है।

सुलोचना भगवान की स्तुति करने लगी, श्रीराम ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा- *हे देवी, मुझे लज्जित न करो, पतिव्रता की महिमा अपार है; उसकी शक्ति की तुलना नहीं है* मैं जानता हूँ कि तुम परम सती हो, तुम्हारे सतित्व से तो विश्व भी थर्राता है।

अपने स्वयं यहाँ आने का कारण बताओ, बताओ कि मैं तुम्हारी किस प्रकार सहायता कर सकता हूँ?

सुलोचना ने अंश्रुपूरित नयनों से प्रभु की ओर देखा और बोली- *हे राघवेन्द्र, मैं सती होने के लिये अपने पति का मस्तक लेने के लिये यहाँ पर आर्इ हूँ*, श्रीराम ने शीघ्र ही ससम्मान मेघनाद का शीश मंगवाया और सुलोचना को दे दिया।

पति का छिन्न शीश देखते ही सुलोचना का हृदय अत्यधिक द्रवित हो गया, उसकी आंखें बड़े जोरों से बरसने लगीं; रोते-रोते उसने पास खड़े लक्ष्मण की ओर देखा और कहा- *हे सुमित्रानन्दन, तुम भूलकर भी गर्व मत करना की मेघनाथ का वध मैंने किया है, मेघनाद को धराशायी करने की शक्ति विश्व में किसी के पास नहीं थी; यह तो दो पतिव्रता नारियों का भाग्य था*। आपकी पत्नी भी पतिव्रता हैं और मैं भी पति चरणों में अनुरक्ती रखने वाली उनकी अनन्य उपासिका हूँ; पर मेरे पति देव पतिव्रता नारी का अपहरण करने वाले पिता का अन्न खाते थे और उन्हीं के लिये युद्ध में उतरे थे, इसी से मेरे जीवन धन परलोक सिधारे।

*सुग्रीव की जिज्ञासा*

सभी योद्धा सुलोचना को राम शिविर में देखकर चकित थे, वे यह नहीं समझ पा रहे थे कि सुलोचना को यह कैसे पता चला कि उसके पति का शीश भगवान राम के पास है, जिज्ञासा शान्त करने के लिये सुग्रीव ने पूछ ही लिया कि यह बात उन्हें कैसे ज्ञात हुर्इ कि मेघनाद का शीश श्रीराम के शिविर में है।

सुलोचना ने स्पष्टता से बता दिया- *मेरे पति की भुजा युद्ध भूमि से उड़ती हुर्इ मेरे पास चली गयी थी, उसी ने लिखकर मुझे बता दिया*; व्यंग्य भरे शब्दों में सुग्रीव बोल उठे- *निष्प्राण भुजा यदि लिख सकती है फिर तो यह कटा हुआ सिर भी हंस सकता है।*

श्रीराम ने कहा- *व्यर्थ बातें मत करो मित्र* पतिव्रता के महाम्तय को तुम नहीं जानते, यदि वह चाहे तो यह कटा हुआ सिर भी हंस सकता है।

*महान पतिव्रता स्त्री*

श्रीराम की मुखकृति देखकर सुलोचना उनके भावों को समझ गयी, उसने कहा- *यदि मैं मन, वचन और कर्म से पति को देवता मानती हूँ, तो मेरे पति का यह निर्जीव मस्तक हंस उठे।*

सुलोचना की बात पूरी भी नहीं हुर्इ थी कि कटा हुआ मस्तक जोरों से हंसने लगा, यह देखकर सभी दंग रह गये; *सभी ने पतिव्रता सुलोचना को प्रणाम किया* सभी पतिव्रता की महिमा से परिचित हो गये थे।

चलते समय सुलोचना ने श्रीराम से प्रार्थना की- *भगवन, आज मेरे पति की अन्त्येष्टि क्रिया है और मैं उनकी सहचरी उनसे मिलने जा रही हूँ, अत: आज युद्ध बंद रहे; श्रीराम ने सुलोचना की प्रार्थना स्वीकार कर ली।

सुलोचना पति का सिर लेकर वापस लंका आ गर्इ, लंका में समुद्र के तट पर एक चंदन की चिता तैयार की गयी, *पति का शीश गोद में लेकर सुलोचना चिता पर बैठी और धधकती हुई अग्नि में कुछ ही क्षणों में सती हो गई।*

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Thursday, September 19, 2019

आज का संदेश


*प्रातः नमन*

कुटिल, स्वार्थी एवं असभ्य व्यवहार वाले
व्यक्ति के पास चाहे कितनी ही विद्या और
सम्पत्ति क्यों न हों, किन्तु वह *उस दूध के*
*समान* गन्दा व प्रदूषित है, *जो गन्दे पात्र*
*में रखा होने से दूषित हो जाता है ..*!!
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻

शबरी जाति की भिलनी का नाम था श्रमणा

शबरी जाति की भीलनी का नाम था श्रमणा

बाल्यकाल से ही वह भगवान श्रीराम की अनन्य भक्त थी उसे जब भी समय मिलता, वह भगवान की सेवा−पूजा करती; घर वालों को उसका व्यवहार अच्छा नहीं लगता, बड़ी होने पर श्रमणा का विवाह हो गया पर अफ़सोस, उसके मन के अनुरूप कुछ भी नहीं मिला, उसका पति भी उसके मन के अनुसार नहीं था यहाँ के लोग अत्यन्त अनाचारी−दुराचारी थे।

हर समय लूट−मार तथा हत्या के काम में लिप्त रहते श्रमणा का उनसे अक्सर झगड़ा होता रहता था इस गन्दे माहौल में श्रमणा जैसी सात्विक स्त्री का रहना बड़ा कष्टकर हो गया था; वह इस वातावरण से निकल भागना चाहती थी वह किसके पास जाकर आश्रय के लिए शरण मांगे *.*. यह भी एक समस्या थी, आख़िर काफ़ी सोच−विचार के बाद उसने मतंग ऋषि के आश्रम में रहने का निश्चय किया।

एक दिन मौका पाकर वह मतंग ऋषि के आश्रम में पहुंची, अछूत होने के कारण वह आश्रम के अंदर प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा सकी और वहीं दरवाज़े के पास गठरी−सी बनी बैठ गई; क़ाफी देर बाद उस स्थान पर मतंग ऋषि आए *श्रमणा को देखकर चौंक पड़े* श्रमणा से आने का कारण पूछा उसने बहुत ही नम्र स्वर में अपने आने का कारण बताया; मतंग ऋषि सोच में पड़ गए, काफ़ी देर बाद उन्होंने श्रमणा को अपने आश्रम में रहने की अनुमति प्रदान कर दी *.*. श्रमणा अपने व्यवहार और कार्य−कुशलता से शीघ्र ही आश्रमवासियों की प्रिय बन गई इस बीच जब उसके पति को पता चला कि वह मतंग ऋषि के आश्रम में रह रही है तो वह आग−बबूला हो गया; श्रमणा को आश्रम से उठा लाने के लिए वह अपने कुछ हथियारबंद साथियों को लेकर चल पड़ा मतंग ऋषि को इसके बारे में पता चल गया, श्रमणा दोबारा उस वातावरण में नहीं जाना चाहती थी उसने करुण दृष्टि से ऋषि की ओर देखा; ऋषि ने फौरन उसके चारों ओर अग्नि पैदा कर दी जैसे ही उसका पति आगे बढ़ा, उस आग को देखकर डर गया और वहां से भाग खड़ा हुआ *.*. इस घटना के बाद उसने फिर कभी श्रमणा की तरफ क़दम नहीं बढ़ाया, दिन गुजरते रहे भगवान श्रीराम सीता की खोज में मतंग ऋषि के आश्रम में जा पहुंचे *मतंग ने उन्हें पहचान लिया* उन्होंने दोनों भाइयों का यथायोग्य सत्कार किया *.*. श्रमणा को बुलाकर कहा, *श्रमणा! जिस राम की तुम बचपन से सेवा−पूजा करती आ रही थीं, वही राम आज साक्षात तुम्हारे सामने खड़े हैं मन भरकर इनकी सेवा कर लो।* श्रमणा भागकर कंद−मूल लेने गई कुछ क्षण बाद वह लौटी, कंद−मूलों के साथ वह कुछ जंगली बेर भी लाई थी कंद−मूलों को उसने श्री भगवान के अर्पण कर दिया, पर बेरों को देने का साहस नहीं कर पा रही थी कहीं बेर ख़राब और खट्टे न निकलें, इस बात का उसे भय था; उसने बेरों को चखना आरंभ कर दिया, अच्छे और मीठे बेर वह बिना किसी संकोच के श्रीराम को देने लगी *श्रीराम उसकी सरलता पर मुग्ध थे* उन्होंने बड़े प्रेम से जूठे बेर खाए श्रीराम की कृपा से श्रमणा का उद्धार हो गया वह स्वर्ग गई।

*यही श्रमणा 'रामायण' में शबरी के नाम से प्रसिद्ध हुई।*

बोलो सियावर रामचन्द्र की जय
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                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Wednesday, September 18, 2019

आज का सुविचार

🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹

   *आप अकेले बोल तो सकते है;*
                   *परन्तु...*
       *बातचीत नहीं कर सकते ।*
  *आप अकेले आनन्दित हो सकते है*
                    *परन्तु...*
       *उत्सव नहीं मना सकते।*
   *अकेले  आप मुस्करा तो सकते है*
                    *परन्तु...*
      *हर्षोल्लास नहीं मना सकते.*
           *हम सब एक दूसरे*
           *के बिना कुछ नहीं हैं;*
    *यही रिश्तों की खूबसूरती है...!!!!!!"""!!!!!!*
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌹🌿
  *प्यारी-सी सुबह का प्यारा-सा प्रणाम*
             *🙏🏻😊सुप्रभात😊🙏🏻*

आज का संदेश

🙏 🙏 🙏 🙏 🙏
🍃 *यदि हर कोई आप से खुश है*
   *तो ये निश्चित है कि आपने जीवन*
      *में बहुत से समझौते किये हैं...*
                     *और*
          *यदि आप सबसे खुश हैं*
   *तो ये निश्चित है कि आपने लोगों*
          *की बहुत सी ग़लतियों*
        *को नज़रअंदाज़ किया है।*        
🍇🍒 🌻 *सुप्रभात* 🌻🍇🍒                                      🌷 *आपका दिन शुभ एवं मंगलमय हो*

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...