Thursday, October 31, 2019

साधना

*सनातन धर्म में किसी भी यथेष्ट को प्राप्त करने के लिए कुछ साधन बताए गए जिन्हें साधना का नाम दिया गया है | किसी भी साधना के पूर्ण होने या अवरोधित होने में सबसे बड़ा चरित्र मनुष्य के मन का होता है | क्योंकि लिखा है कि :- "मन: एव मनुष्याणां कारणं बन्ध मोक्षयो:" मन ही मनुष्य के मोक्ष एवं बन्धन का कारण होता है | मनुष्य का मन बड़ा चंचल होता है यदि मनुष्य ने अपने मन को बस में कर लिया तो उसकी साधना पूर्ण हो जाती है , और यदि मन भटक जाता है तो साधना अवरुद्ध हो जाती है | मन का सहज स्वभाव व कामना होती है :- सुख एवं विषयोंन्मुखता | मन सदैव सांसारिक सुखों की तलाश में रहता है , मन का अस्तित्व ही इसी पर टिका हुआ है | मन की चंचलता सर्वविदित है , सांसारिक सुख की मृग मरीचिका के पीछे भागना भटकते मन का स्वभाव होता है | मन की हालत उस बंदर की तरह होती है जिसका स्वभाव ही चंचल होता है और उस चंचलता पर उसे मदिरा पिला दी जाए और फिर कोई बिच्छू स्कोर डंक मार दे इन सब से वह सम्भल भी नहीं पाता नहीं कि उस पर एक दानव सवार हो जाता है | ठीक उसी प्रकार यह मन वासना रूपी मदिरा पीकर उन्मत्त हो जाता है और उस पर ईर्ष्या रूपी बिच्छू का डंक उसे और पागल कर देता है इसके बाद उसके ऊपर अहंकार रूपी दानव जब सवार हो जाता है तो यह मन किसी को भी कुछ नहीं समझता है | ऐसी अवस्था में मन का निग्रह दुष्कर हो जाता है , इसलिए प्रत्येक मनुष्य को मन की विपरीत विचारों से सावधान रहने एवं उसको अनुशासित करने की आवश्यकता होती है , क्योंकि मन को अनुशासित किए बिना कोई भी साधना कभी भी सफल नहीं हो सकती |* 

*आज का परिवेश इतना दूषित हो गया है कि प्रत्येक मनुष्य अपने मन की विसंगतियों से स्वयं को बचा ही नहीं पा रहा है | साधना करना तो दूर की बात है आज मनुष्य कुछ क्षण बैठकर ध्यान कर पाने में भी असफल हो रहा है | ऐसा नहीं है कि आज ध्यान व साधना करने वाले महापुरुष नहीं है ! आज भी साधनायें हो रही हैं और होती रहेंगी , परंतु आज जिस प्रकार समाज में अनाचार , कदाचार , भ्रष्टाचार एवं आत्महत्या जैसे कुकृत्य हो रहे हैं तो उसका मुख्य कारण मन की चंचलता व अवसाद ही है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज को देखते हुए यह कह सकता हूँ कि आज स्वयं के मन को साधने वालों की संख्या अल्प रह गयी है | छोटी - छोटी बात पर मन उद्विग्न हो जाता है और मनुष्य आत्महत्या जैसी कायरता करने को प्रेरित होकर यह कार्य कर डालता है | मनुष्य के सुख एवं दुख का कारण मनुष्य के मन को ही कहा गया है | आज का मनुष्य सुख की अपेक्षा दुख का अनुभव अधिक करता है , मनुष्य के दुख का कारण बनती हैं सांसारिक उपभोग की वस्तुओं का अभाव | सांसारिक वस्तुओं से मनुष्य का मन कभी भरता ही नहीं है | कुछ न कुछ रिक्तता मनुष्य के जीवन में सदैव बनी रहती है उसी रिक्तता को पूर्ण करने के उद्योग में मनुष्य व्यस्त रहता है और उसकी पूर्ति न होने पर दुखी हो जाता है | जबकि इस संसार में पूर्ण कोई भी नहीं है ! समस्त ब्रह्माण्ड में परमात्मा के अतिरिक्त कोई भी पूर्ण नहीं है , यह सभी जानते भी हैं परंतु चंचल मन मानता नहीं और विषयोपभोग की कामना से इधर से उधर भटका करता है | मन को संतोष कभी नहीं होता , जिसके मन में संतोष हो गया समझ लो उसने सबकुछ प्राप्त कर लिया | मन को ही साध लेना सबसे बड़ी साधना कहा गया है |* 

*मानव मन की गति अपार है , यह मनुष्य को कभी बैठने नहीं देता | इस संसार में किसी को भी जीतने की अपेक्षा सर्वप्रथम अपने मन पर विजयप्राप्त करने वाला ही दिग्विजयी होता है |*                                         

                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७,

स्त्रोत व मंत्र में अंतर

स्त्रोत और मंत्र में क्या अंतर होता है

स्त्रोत और मंत्र देवताओं को प्रसन्न करने के शक्तिशाली माध्यम हैं। आज हम जानेंगे की मन्त्र और स्त्रोत में क्या अंतर होता है। किसी भी देवता की पूजा करने से पहले उससे सबंधित मन्त्रों को गुरु की सहायता से सिद्ध किया जाना चाहिए। 

स्त्रोत 

 किसी भी देवी या देवता का गुणगान और महिमा का वर्णन किया जाता है। स्त्रोत का जाप करने से अलौकिक ऊर्जा का संचार होता है और दिव्य शब्दों के चयन से हम उस देवता को प्राप्त कर लेते हैं और इसे किसी भी राग में गाया जा सकता है। स्त्रोत के शब्दों का चयन ही महत्वपूर्ण होता है और ये गीतात्मक होता है। 

मन्त्र 

 मन्त्र को केवल शब्दों का समूह समझना उनके प्रभाव को कम करके आंकना है। मन्त्र तो शक्तिशाली लयबद्ध शब्दों की तरंगे हैं जो बहुत ही चमत्कारिक रूप से कार्य करती हैं। ये तरंगे भटकते हुए मन को केंद्र बिंदु में रखती हैं। शब्दों का संयोजन भी साधारण नहीं होता है, इन्हे ऋषि मुनियों के द्वारा वर्षों की साधना के बाद लिखा गया है। मन्त्रों के जाप से आस पास का वातावरण शांत और भक्तिमय हो जाता है जो सकारात्मक ऊर्जा को एकत्रिक करके मन को शांत करता है। मन के शांत होते ही आधी से ज्यादा समस्याएं स्वतः ही शांत हो जाती हैं। मंत्र किसी देवी और देवता का ख़ास मन्त्र होता है जिसे एक छंद में रखा जाता है। वैदिक ऋचाओं को भी मन्त्र कहा जाता है। इसे नित्य जाप करने से वो चैतन्य हो जाता है। मंत्र का लगातार जाप किया जाना चाहिए। सुसुप्त शक्तियों को जगाने वाली शक्ति को मंत्र कहते हैं। मंत्र एक विशेष लय में होती है जिसे गुरु के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। जो हमारे मन में समाहित हो जाए वो मंत्र है। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के साथ ही ओमकार की उत्पत्ति हुयी है। इनकी महिमा का वर्णन श्री शिव ने किया है और इनमे ही सारे नाद छुपे हुए हैं। मन्त्र अपने इष्ट को याद करना और उनके प्रति समर्पण दिखाना है। मंत्र और स्त्रोत में अंतर है की स्त्रोत को गाया जाता है जबकि मन्त्र को एक पूर्व निश्चित लय में जपा जाता है।

बीज मंत्र क्या होता है 

देवी देवताओं के मूल मंत्र को बीज मन्त्र कहते हैं। सभी देवी देवताओं के बीज मन्त्र हैं। समस्त वैदिक मन्त्रों का सार बीज मन्त्रों को माना गया है। हिन्दू धर्म के अनुसार सबसे प्रधान बीज मन्त्र ॐ को माना गया है। ॐ को अन्य मन्त्रों के साथ प्रयोग किया जाता है क्यों की यह अन्य मन्त्रों को उत्प्रेरित कर देता है। बीज मंत्रो से देव जल्दी प्रशन्न होते हैं और अपने भक्तों पर शीघ्र दया करते हैं। जीवन में कैसी भी परेशानी हो यथा आर्थिक, सामजिक या सेहत से जुडी हुयी कोई समस्या ही क्यों ना हो बीज मन्त्रों के जाप से सभी संकट दूर होते हैं।

स्त्रोत और मंत्र जाप के लाभ

 चाहे मन्त्र हो या फिर स्त्रोत इनके जाप से देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है। शास्त्रों में मन्त्रों की महिमा का विस्तार से वर्णन है। श्रष्टि में ऐसा कुछ भी नहीं है जो मन्त्रों से प्राप्त ना किया जा सके, आवश्यक है साधक के द्वारा सही जाप विधि और कल्याण की भावना। बीज मंत्रों के जाप से विशेष फायदे होते हैं। यदि किसी मंत्र के बीज मंत्र का जाप किया जाय तो इसका प्रभाव और अत्यधिक बढ़ जाता है। वैज्ञानिक स्तर पर भी इसे परखा गया है। मंत्र जाप से छुपी हुयी शक्तियों का संचार होता है। मस्तिष्क के विशेष भाग सक्रीय होते है। मन्त्र जाप इतना प्रभावशाली है कि इससे भाग्य की रेखाओं को भी बदला जा सकता है। यदि बीज मन्त्रों को समझ कर इनका जाप निष्ठां से किया जाय तो असाध्य रोगो से छुटकारा मिलता है। मन्त्रों के सम्बन्ध में ज्ञानी लोगों की मान्यता है की यदि सही विधि से इनका जाप किया जाय तो बिना किसी औषधि की असाध्य रोग भी दूर हो सकते हैं। विशेषज्ञ और गुरु की राय से राशि के अनुसार मन्त्रों के जाप का लाभ और अधिक बढ़ जाता है। 

विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए पृथक से मन्त्र हैं जिनके जाप से निश्चित ही लाभ मिलता है। मंत्र दो अक्षरों से मिलकर बना है मन और त्र। तो इसका शाब्दिक अर्थ हुआ की मन से बुरे विचारों को निकाल कर शुभ विचारों को मन में भरना। जब मन में ईश्वर के सम्बंधित अच्छे विचारों का उदय होता है तो रोग और नकारात्मकता सम्बन्धी विचार दूर होते चले जाते है। वेदों का प्रत्येक श्लोक एक मन्त्र ही है। मन्त्र के जाप से एक तरंग का निर्माण होता है जो की सम्पूर्ण वायुमंडल में व्याप्त हो जाता है और छिपी हुयी शक्तियों को जाग्रत कर लाभ प्रदान करता है। 

विभिन्न मन्त्र और उनके लाभ :
ॐ गं गणपतये नमः : इस मंत्र के जाप से व्यापार लाभ, संतान प्राप्ति, विवाह आदि में लाभ प्राप्त होता है। 
ॐ हृीं नमः : इस मन्त्र के जाप से धन प्राप्ति होती है। 
ॐ नमः शिवाय : यह दिव्य मन्त्र जाप से शारीरिक और मानसिक कष्टों का निवारण होता है। 
ॐ शांति प्रशांति सर्व क्रोधोपशमनि स्वाहा : इस मन्त्र के जाप से क्रोध शांत होता है। 
ॐ हृीं श्रीं अर्ह नमः : इस मंत्र के जाप से सफलता प्राप्त होती है। 
ॐ क्लिीं ॐ : इस मंत्र के जाप से रुके हुए कार्य सिद्ध होते हैं और बिगड़े काम बनते हैं। 
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय : इस मंत्र के जाप से आकस्मिक दुर्घटना से मुक्ति मिलती है। 
ॐ हृीं हनुमते रुद्रात्म कायै हुं फटः : सामाजिक रुतबा बढ़ता है और पदोन्नति प्राप्त होती है। 
ॐ हं पवन बंदनाय स्वाहा : भूत प्रेत और ऊपरी हवा से मुक्ति प्राप्त होती है। 
ॐ भ्रां भ्रीं भौं सः राहवे नमः : परिवार में क्लेश दूर होता है और शांति बनी रहती है। 
ॐ नम: शिवाय : इस मंत्र के जाप से आयु में वृद्धि होती है और शारीरिक रोग दोष दूर होते हैं। 
ॐ महादेवाय नम: सामाजिक उन्नति और धन प्राप्ति के लिए यह मन्त्र उपयोगी है। 
ॐ नम: शिवाय : इस मंत्र से पुत्र की प्राप्ति होती है। 
ॐ नमो भगवते रुद्राय : मान सम्मान की प्राप्ति होती है और समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है। 
ॐ नमो भगवते रुद्राय : मोक्ष प्राप्ति हेतु। 
ॐ महादेवाय नम: घर और वाहन की प्राप्ति हेतु। 
ॐ शंकराय नम: दरिद्रता, रोग, भय, बन्धन, क्लेश नाश के लिए इस मंत्र का जाप करें।

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७,

प्रारब्ध


🌫🌫🌫🌫   *प्रारब्ध*   🌫🌫🌫🌫

    एक व्यक्ति हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करता था । धीरे धीरे वह काफी बुजुर्ग हो चला था इसीलिए एक कमरे मे ही पड़ा रहता था ।

     जब भी उसे शौच; स्नान आदि के लिये जाना होता था; वह अपने बेटो को आवाज लगाता था और बेटे ले जाते थे ।

    धीरे धीरे कुछ दिन बाद बेटे कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी कभी आते और देर रात तो नहीं भी आते थे।इस दौरान वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करते थे

    अब और ज्यादा बुढ़ापा होने के कारण उन्हें कम दिखाई देने लगा था एक दिन रात को निवृत्त होने के लिये जैसे ही उन्होंने आवाज लगायी, तुरन्त एक लड़का आता है और बडे ही कोमल स्पर्श के साथ उनको निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा जाता है । अब ये रोज का नियम हो गया ।

    एक रात उनको शक हो जाता है कि, पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर भी नही आते थे। लेकिन ये  तो आवाज लगाते ही दूसरे क्षण आ जाता है और बडे कोमल स्पर्श से सब निवृत्त करवा देता है ।

    एक रात वह व्यक्ति उसका हाथ पकड लेता है और पूछता है कि सच बता तू कौन है ? मेरे बेटे तो ऐसे नही हैं ।

    अभी अंधेरे कमरे में एक अलौकिक उजाला हुआऔर उस लड़के रूपी ईश्वर ने अपना वास्तविक रूप दिखाया।

     वह व्यक्ति रोते हुये कहता है : हे प्रभु आप स्वयं मेरे निवृत्ती के कार्य कर रहे है । यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो तो मुक्ति ही दे दो ना ।

     प्रभु कहते है कि जो आप भुगत रहे है वो आपके प्रारब्ध है । आप मेरे सच्चे साधक है; हर समय मेरा नाम जप करते है इसलिये मै आपके प्रारब्ध भी आपकी सच्ची साधना के कारण स्वयं कटवा रहा हूँ ।

     व्यक्ति कहता है कि क्या मेरे प्रारब्ध आपकी कृपा से भी बडे है; क्या आपकी कृपा, मेरे प्रारब्ध नही काट सकती है ।

     प्रभु कहते है कि, मेरी कृपा सर्वोपरि है; ये अवश्य आपके प्रारब्ध काट सकती है; लेकिन फिर अगले जन्म मे आपको ये प्रारब्ध भुगतने फिर से आना होगा । यही कर्म नियम है । इसलिए आपके प्रारब्ध मैं स्वयं अपने हाथो से कटवा कर इस जन्म-मरण से आपको मुक्ति देना चाहता हूँ ।

ईश्वर कहते है: *प्रारब्ध तीन तरह* के होते है :

*मन्द*, 
                    *तीव्र*, तथा 
                                            *तीव्रतम*

*मन्द प्रारब्ध* मेरा नाम जपने से कट जाते है । *तीव्र प्रारब्ध* किसी सच्चे संत का संग करके श्रद्धा और विश्वास से मेरा नाम जपने पर कट जाते है । पर *तीव्रतम प्रारब्ध* भुगतने ही पडते है।

लेकिन जो हर समय श्रद्धा और विश्वास से मुझे जपते हैं; उनके प्रारब्ध मैं स्वयं साथ रहकर कटवाता हूँ और तीव्रता का अहसास नहीं होने देता हूँ ।

           *प्रारब्ध पहले रचा, पीछे रचा शरीर ।*
  *तुलसी चिन्ता क्यों करे, भज ले श्री रघुबीर।।*
     *🙏🏼🙏🏻🙏 जय जय श्री राधे*🙏🏾🙏🏽🙏🏿

                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७,

आज का सुविचार


*युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा*
*शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम्।*
*अयुक्तः कामकारेण*
*फले सक्तो निबध्यते॥*

कर्मयोगी कर्मों के फल का त्याग करके सदा रहने वाली शान्ति को प्राप्त होता है और सकाम पुरुष कामना करने के कारण उस कर्म के फल में आसक्त होकर बँधता है॥

*सर्वकर्माणि मनसा* 
*संन्यस्यास्ते सुखं वशी।*
*नवद्वारे पुरे देही नैव* 
*कुर्वन्न कारयन्॥*

अन्तःकरण को अपने वश में करके, सब कर्मों को मन से त्याग कर, न उन्हें करते हुआ और न करवाते हुए ही, नौ द्वारों वाले शरीर रूपी घर में योगी सुख पूर्वक रहे॥


भारत की शान


*#भारत_की_शान* :- *"#अशोक_स्तम्भ”*

#चीन के #जिजीयांग स्टेट में "#अशोक_स्तम्भ" आज भी मौजूद है। चीन के लोगों को #चक्रवर्ती_अशोक की महानता और वीरता की कथाएं पता है लेकिन हमारे बच्चे *~नेहरू~* और *~राजीव~* को ही जान पाये।
         
कभी आपने सोचा कि जिस #सम्राट के नाम के साथ #संसार भर के इतिहासकार *“#महान”* शब्द लगाते हैं..
                                             
जिस #सम्राट का #राज_चिन्ह *"अशोक चक्र"* भारत देश अपने #झंडे में लगाता है..

जिस #सम्राट का राज चिन्ह *"#चारमुखी_शेर"* को भारत देश #राष्ट्रीय_प्रतीक मानकर सरकार चलाती है..

जिस देश में सेना का सबसे बड़ा *"#युद्ध_सम्मान"* सम्राट अशोक के नाम पर #अशोक_चक्र दिया जाता है..

जिस #सम्राट से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ, जिसने *#अखंड_भारत* (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान) जितने बड़े भू-भाग पर #एक_छत्रीय_राज किया हो..

जिस #सम्राट के #शासन_काल को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार #भारतीय_इतिहास का सबसे *#स्वर्णिम_काल* मानते हैं..

जिस #सम्राट के शासन काल में भारत *#विश्वगुरु* था.. *#सोने_की_चिड़िया* था.. जनता खुशहाल और भेदभाव रहित थी..

जिस #सम्राट के शासन काल में *#जीटी_रोड* जैसे कई हाईवे बने। पूरे सड़क पर #पेड़ लगाये गए.. सराये बनायीं गई। इंसान तो इंसान जानवरों के लिए भी प्रथम बार #अस्पताल खोले गए, जानवरों को मारना बंद कर दिया गया..

ऐसे महान #सम्राट_अशोक_की_जयंती उनके अपने ही देश भारत में क्यों नहीं मनायी जाती..??

अफ़सोस जिन लोगों को ये जयंती मनानी चाहिए, वो लोग अपना #इतिहास ही नहीं जानते और जो जानते हैं वो मानना नहीं चाहते...

_*#जो_जीता_वही_चंद्रगुप्त ना होकर, #जो_जीता_वही_सिकन्दर कैसे हो गया??*

जबकि सिकंदर की सेना ने चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रभाव को देखते हुये लड़ने से मना कर दिया था और उसका मनोबल टूट गया, जिसके कारण सिकंदर ने मित्रता के तौर पर अपने सेनापति सेल्युकश कि बेटी की शादी चन्द्रगुप्त से की थी।

*#महाराणा_प्रताप* #महान ना होकर *~#अकबर~* #महान कैसे हो गया? 

जबकि, अकबर अपने हरम में हजारों लड़कियों को रखैल के तौर पर रखता था। यहाँ तक कि उसने अपनी बेटियों और बहनों की शादी तक पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। और इधर हम उस महान योद्धा महाराणा प्रताप को भूल गए जिसने अकेले दम पर उस अकबर की लाखों की सेना को घुटनों पर ला दिया था।

*#सवाई_जय_सिंह* को #महान_वास्तुप्रिय_राजा ना कहकर *~#शाहजहाँ~* को यह #उपाधि किस आधार मिली? 

जबकि साक्ष्य बताते हैं कि जयपुर के हवा महल और कई किले महाराजा *जय सिंह* ने बनवाया था और मुगलों ने यहाँ के मंदिरों और महलों पर जबरन कब्ज़ा करके उनको अपनी कृति घोषित किया था।

जो स्थान *#गुरु_गोबिंद_सिंह* जी को मिलना चाहिये.. वो क्रूर और आतंकी *~औरंगजेब~* को क्यों और कैसे मिल गया..??

*#स्वामी_विवेकानंद* और *#आचार्य_चाणक्य* को भूल गए और हिंदुत्व विरोधी ~गांधी~ *महात्मा* बनकर हिंदुस्तान के *#राष्ट्रपिता* कैसे हो गये..??

*#तेजोमहालय* हो गया #ताजमहल.. *#लालकोट* हुआ #लालकिला एवं सुप्रसिद्ध #गणितज्ञ *#वराह_मिहिर* की मिहिरावली(महरौली) स्थित #वेधशाला हो गयी #कुतुबमीनार
......क्यों और कैसे हो गया..??

यहाँ तक कि हमारा *#राष्ट्रीय_गान* भी संस्कृत के _*"#वन्देमातरम्"*_ की जगह गुलामी का प्रतीक *"#जन_गण_मन"* कैसे और क्यों हो गया..??

और तो और… हमारे आराध्य भगवान *#राम* और *#कृष्ण* #इतिहास से कहाँ और कब #गायब हो गये, पता ही नहीं चला। आखिर कैसे..??

यहाँ तक कि #हमारे_आराध्य भगवान *राम* और *कृष्ण* की #जन्मभूमि भी कब और कैसे #विवादित बन गयी, हमें पता हीं नही चला..??

हमारे दुश्मन सिर्फ #बाबर, #गजनवी, #तैमूरलंग ही नहीं हैं बल्कि आज के *~#सफेदपोश_सेक्यूलर~* भी हमारे उतने ही बड़े दुश्मन हैं, जिन्होंने हीन भावना का उदय कर दिया।

इसलिए समय आ गया है.. अपने #सच्चे_इतिहास को जानें और समझें तथा दुसरों को भी अवगत करायें...

🚩🚩🇧🇴🇧🇴 🙏🙏🙏 🇧🇴🇧🇴🚩🚩
                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७,

आज का संदेश



          *इस धराधाम पर जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य एक सुंदर एवं व्यवस्थित जीवन जीने की कामना करता है | इसके साथ ही प्रत्येक मनुष्य अपनी मृत्यु के बाद स्वर्ग जाने की इच्छा भी रखता है | मृत्यु होने के बाद जीव कहां जाता है ? उसकी क्या गति होती है ? इसका वर्णन हम धर्मग्रंथों में ही पढ़ सकते हैं | इन धर्म ग्रंथों को पढ़कर जो सारतत्व मिलता है उसके अनुसार मनुष्य अपने कर्मानुसार स्वर्ग एवं नर्क की प्राप्ति करता है | इस पृथ्वी पर परमात्मा ने सब कुछ इतना सुंदर बनाया है कि इस धरती को भी स्वर्ग कहा गया है | स्वर्ग एवं नर्क की अनुभूति मनुष्य जीवित रहते ही कर सकता है और करता भी है | गोस्वामी तुलसीदास जी ने एक क्षण के सत्संग को स्वर्ग से बढ़कर बताया है वहीं आचार्य चाणक्य स्वर्ग एवं नर्क इसी पृथ्वी पर बताते हुये लिखते हैं :--"यस्य पुत्रो वशीभूतो भार्या छन्दानुगामिनी ! विभवे यश्च सन्तुष्टस्तस्य स्वर्ग इहैव हि !!" अर्थात:- जिसका पुत्र आज्ञाकारी हो और स्त्री पति के अनुकूल आचरण करने वाली हो, पतिव्रता हो और जिसको प्राप्त धन से ही संतोष हो अर्थात् उसके पास जितना धन है वह उसी में संतुष्ट रहता हो ऐसे व्यक्ति के लिए स्वर्ग इसी धरती पर है | वहीं नर्क भी इसी धरती पर दिखाने का प्रयास करते हुए आचार्य चाणक्य ने कहा है :-- "अत्यन्तलेपः कटुता च वाणी दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम् ! नीच प्रसङ्गः कुलहीनसेवा चिह्नानि देहे नरकस्थितानाम् !! अर्थात :- अत्यन्त क्रोध, कटु वाणी, दरिद्रता, स्वजनों से वैर, नीच लोगों का साथ, कुलहीन की सेवा - नरक की आत्माओं के यही लक्षण होते हैं ! कहने का तात्पर्य बस इतना ही है कि मनुष्य अपने जीते जी अपने कर्मों के द्वारा स्वर्ग एवं नर्क की अनुभूति इसी पृथ्वी पर कर सकता है |*

*आज के समाज का परिवेश एवं आचार्य चाणक्य के वचनों को देखा जाए तो कोई भी स्वर्ग जाने का अधिकारी होता नहीं दिख रहा है | आज जिस प्रकार पुत्रों द्वारा अपने माता - पिता का तिरस्कार करके उनको वृद्धावस्था में वृद्धाश्रम या फिर घर में ही उपेक्षित एवं तिरस्कृत जीवन जीने को विवश किया जा रहा है , घर की स्त्री को सम्मान ना दे कर के पराई स्त्रियों को कुदृष्टि से देखने एवं उनसे दुर्व्यवहार करने के समाचार जिस प्रकार प्रतिदिन मिल रहे हैं , उससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कौन-कौन स्वर्ग जाने का अधिकारी बनता चला जा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आज जिस प्रकार अधिकतर मनुष्य क्रोध के वशीभूत होकर के कटु वाणी का प्रयोग करते हैं एवं दुर्जनों का संग करके जिस प्रकार समाज को भयभीत करने का प्रयास कर रहे हैं वे सभी प्राणी आचार्य चाणक्य के वचन अनुसार नरक के ही अधिकारी हैं | ऐसे मनुष्यों से कभी भी परिवार समाज एवं देश के हित की कामना करना भी मूर्खता है | जो लोग अपने जीवनकाल में अपने कर्मों के द्वारा स्वयं के साथ परिवार एवं समाज को नारकीय परिवेश में ढकेल रहे हैं वे मृत्यु के बाद यदि थोड़े से पुण्य के बल स्वर्ग जाने की इच्छा रखते हैं तो यह हास्यास्पद ही कहा जा सकता है |*

*अपने कर्मों के द्वारा मनुष्य इसी धरती पर स्वर्ग एवं नर्क की रचना कर सकता है ! तो आईये नारकीय जीवन से बचते हुए स्वर्ग के आनंद को प्राप्त करने का प्रयास करें |*                                            

                  आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७,

देवउठनी एकादशी

 *_⚜▬▬ஜ✵❀ श्री हरि: ❀✵ஜ▬▬⚜_*
      *देवउठनी एकादशी व्रत 2019*
     *08 नवंबर, 2019 (शुक्रवार)*

🐚 *देवउठनी एकादशी व्रत मुहूर्त*

🤴🏼 *देवउठनी एकादशी पारणा मुहूर्त : 06:38:39 से 08:49:07 तक 9, नवंबर को*

🕰 *अवधि : 2 घंटे 10 मिनट*

✍🏻 *कार्तिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान, देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी दीपावली के बाद आती है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं, इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है।*
*मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं, इसीलिए देवोत्थान एकादशी पर भगवान हरि के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है।*

⚛ *देवोत्थान एकादशी व्रत और पूजा विधि*
*प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और उनसे जागने का आह्वान किया जाता है। इस दिन होने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं-*

●  *इस दिन प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए।*
●  *घर की सफाई के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए।*
●  *एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल,मिठाई,बेर,सिंघाड़े,ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढांक देना चाहिए।* 
●  *इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाना चाहिए।*
●  *रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए।*
●  *इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए और ये वाक्य दोहराना चाहिए- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास*

💁🏻 *तुलसी विवाह का आयोजन*
*देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है। तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है। चूंकि तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं इसलिए देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना। शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।*

📖 *पौराणिक कथा*
*एक समय भगवान नारायण से लक्ष्मी जी ने पूछा- “हे नाथ! आप दिन रात जागा करते हैं और सोते हैं तो लाखों-करड़ों वर्ष तक सो जाते हैं तथा इस समय में समस्त चराचर का नाश कर डालते हैं। इसलिए आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें। इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा।”*

👸🏻 *लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले- “देवी! तुमने ठीक कहा है। मेरे जागने से सब देवों और खासकर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी वजह से जरा भी अवकाश नहीं मिलता। अतः तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रतिवर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन व उत्थान के उत्सव को आनंदपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में, मैं तुम्हारे साथ निवास करूंगा।”*

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*𖡼•┄•𖣥𖣔𖣥•┄•𖡼👣𖡼•┄•𖣥𖣔𖣥•┄•𖡼*
                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Wednesday, October 30, 2019

जन्म तिथि विशेष - सरदार वल्लभभाई पटेल


*जन्मदिन विशेष : सरदार वल्लभ भाई पटेल*
Sardar Vallabhbhai Patel : कुछ ऐसा है वल्लभ भाई पटेल के *सरदार* बनने का सफर *..*…
सरदार पटेल देश के पहले उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे, देश को एकजुट करने वाले पटेल की जयंती 31 अक्टूबर को मनाई जाती है *..*…

*सरदार पटेल के जन्म दिवस पर राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है ..*…

सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती 31अक्टूबर को मनाई जाती है *.*. सरदार वल्लभ भाई ने 565 रियासतों का विलय कर भारत को एक राष्ट्र बनाया था *.*. यही कारण है कि वल्लभ भाई पटेल की जयंती के मौके पर राष्ट्रीय *एकता दिवस* के रूप में मनाया जाता है; पहली बार राष्ट्रीय एकता दिवस 2014 में मनाया गया था, बता दें कि भारत का जो नक्शा ब्रिटिश शासन में खींचा गया था उसकी 40 प्रतिशत भूमि इन देशी रियासतों के पास थी; आजादी के बाद इन रियासतों को भारत या पाकिस्तान में विलय या फिर स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया गया था *..*…

सरदार पटेल को इस काम को करने में काफी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा *.*. उन्होंने एक के बाद एक रियासत को एक साथ लाने के लिए अपनी सारी बुद्धि और अनुभव का इस्तेमाल किया *.*. भारत को एक राष्ट्र बनाने में वल्लभ भाई पटेल की खास भूमिका है *..*..

सरदार पटेल ने अपनी दूरदर्शिता, चतुराई और डिप्लोमेसी की बदौलत इन रियासतों का भारत में विलय करवाया था *..*…

सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ था, सरदार पटेल ने करमसद में प्राथमिक विद्यालय और पेटलाद स्थित उच्च विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उन्होंने अधिकांश ज्ञान खुद से पढ़ कर ही अर्जित किया *..*…

वल्लभ भाई की उम्र लगभग 17 वर्ष थी, जब उनकी शादी गना गांव की रहने वाली झावेरबा से हुई *..*…

पटेल ने गोधरा में एक वकील के रूप में अपनी कानूनी प्रैक्टिस शुरू की *.*. उन्होंने एक वकील के रूप में तेजी से सफलता हासिल की और जल्द ही वह आपराधिक मामले लेने वाले बड़े वकील बन गए *..*…

खेड़ा सत्याग्रह का नेतृत्व करने के लिए पटेल को अपनी पसंद को दर्शाते हुए कहा गांधी जी ने कहा था, *कई लोग मेरे पीछे आने के लिए तैयार थे, लेकिन मैं अपना मन नहीं बना पाया कि मेरा डिप्टी कमांडर कौन होना चाहिए, फिर मैंने वल्लभ भाई के बारे में सोचा ..*…

साल 1928 में गुजरात में बारडोली सत्याग्रह हुआ जिसका नेतृत्व वल्लभ भाई पटेल ने किया *.*. यह प्रमुख किसान आंदोलन था, उस समय प्रांतीय सरकार किसानों से भारी लगान वसूल रही थी; सरकार ने लगान में 30 फीसदी वृद्धि कर दी थी, जिसके चलते किसान बेहद परेशान थे, वल्लभ भाई पटेल ने सरकार की मनमानी का कड़ा विरोध किया; सरकार ने इस आंदोलन को कुचलने की कोशिश में कई कठोर कदम उठाए, लेकिन अंत में विवश होकर सरकार को पटेल के आगे झुकना पड़ा और किसानों की मांगे पूरी करनी पड़ी *..*…

दो अधिकारियों की जांच के बाद लगान 30 फीसदी से 6 फीसदी कर दिया गया, बारडोली सत्याग्रह की सफलता के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को *सरदार* की उपाधि दी *..*…

1931 में पटेल को कांग्रेस के करांची अधिवेशन का अध्यक्ष चुना गया *.*. उस समय जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी पर देश गुस्से में था, पटेल ने ऐसा भाषण दिया जो लोगों की भावना को दर्शाता था *..*…

पटेल ने धीरे धीरे सभी राज्यों को भारत में विलय के लिए तैयार कर लिया था, लेकिन हैदराबाद के निजाम उस्मान अली खान आसिफ ने स्वतंत्र रहने का फैसला किया, निजाम ने फैसला किया कि वे न तो भारत और न ही पाकिस्तान में शामिल होंगे; सरदार पटेल ने हैदराबाद के निजाम को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन पोलो चलाया, साल 1948 में चलाया गया ऑपरेशन पोलो एक गुप्त ऑपरेशन था; इस ऑपरेशन के जरिए निजाम उस्मान अली खान आसिफ को सत्ता से अपदस्त कर दिया गया और हैदराबाद को भारत का हिस्सा बना दिया गया *..*…

देश की आजादी के बाद पटेल पहले उप- प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बने *..*…

सरदार पटेल के निधन पर पंडित नेहरू ने कहा था, *सरदार का जीवन एक महान गाथा है जिससे हम सभी परिचित हैं और पूरा देश यह जानता है, इतिहास इसे कई पन्नों में दर्ज करेगा और उन्हें राष्ट्र-निर्माता कहेगा; इतिहास उन्हें नए भारत का एकीकरण करने वाला कहेगा, और भी बहुत कुछ उनके बारे में कहेगा लेकिन हममें से कई लोगों के लिए वे आज़ादी की लड़ाई में हमारी सेना के एक महान सेनानायक के रूप में याद किए जाएंगे; एक ऐसे व्यक्ति जिन्होंने कठिन समय में और जीत के क्षणों में, दोनों ही मौकों पर हमें नेक सलाह दी ..*…

सरदार पटेल जी का निधन 15 दिसंबर, 1950 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था; सन् 1991 में सरदार पटेल को मरणोपरान्त *भारत रत्न* से सम्मानित किया गया था *..*…

प्रतिभा के धनी सरदार पटेल के विचार आज भी लाखों युवाओं को प्रेरणा देते हैं *..*..!!
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻
                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़         
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Tuesday, October 29, 2019

मां सरस्वती व देवी लक्ष्मी की अद्भुता

हे देवी सरस्वती! हमें लक्ष्मी दें। हे देवी लक्ष्मी! हमारी विद्या बढ़े।


लक्ष्मी केवल सिन्धुतनया नहीं, लक्ष्मी मात्र विष्णुप्रिया नहीं और न लक्ष्मी केवल खनखनाती हुई स्वर्णमुद्रायें हैं! लक्ष्मी का जो स्वरूप हमारी सनातन परंपरा में अर्चनीय, पूजनीय तथा वरेण्य है, उसमें हर प्रकार के तिमिर से लड़ने की अदम्य जिजीविषा, अपराजेय उद्यमिता और अनिन्द्य सौन्दर्य है! ‘श्री’ संश्लिष्ट संकल्पना का नाम है!
सामान्य प्रचलन में तो ‘लक्ष्मी’ शब्द सम्पत्ति के लिए प्रयुक्त होता है, पर वस्तुतः वह चेतना का एक गुण है, जिसके आधार पर निरुपयोगी वस्तुओं को भी उपयोगी बनाया जा सकता है। मात्रा में स्वल्प होते हुए भी उनका भरपूर लाभ सत्प्रयोजनों के लिए उठा लेना एक विशिष्ट कला है। वह जिसके पास होती है उसे लक्ष्मीवान्, श्रीमान् कहते हैं,  शेष को धनवान् भर कहा जाता है। जिस पर श्री का अनुग्रह होता है, वह दरिद्र, दुर्बल, कृपण, असंतुष्ट एवं पिछड़ेपन से ग्रसित नहीं रहता; ऊर्जा से, उत्साह से, उद्यमिता से भर जाता है।  
इसी अनुग्रह से भर देने के लिए आदि शङ्कराचार्य ने विलक्षण  ‘कनकधारास्तोत्र ‘ का अनुपम उपहार हमें दिया। कनकधारा स्तोत्र की रचना का या कहें स्तुति स्तवन की निमित्त एक याचक बंधु बनी जिसे माध्यम बना कर अद्भुत कृपाकनकधारा स्रवित करनेवाली इस मंत्रमुग्ध कर देने वाली कृति से सनातन परंपरा कृतार्थ हुई। 
आदि शंकराचार्य  विश्वविश्रुत अद्वैतवादी रहे किन्तु जब इस अद्वैतवादी के हृदय में करुणा का ऐसा स्रोत प्रवाहित होते देखती हूँ तो विश्वास हो जाता है कि ब्रह्म से एकाकार होना मानवीय करुणा से भी कैसा द्रवित कर देता है! परदु:खकातरता ही इस कनकधारा स्तोत्र के मूल में है। कहा जाता है कि एक अकिञ्चन अपनी कन्या के विवाह के लिए स्वर्णमुद्राओं की याचना करते हुये आदि शंकराचार्य जी के समक्ष कातरभाव से रोने लगी। उसके रुदन से शंकराचार्य जी का हृदय द्रवित हो उठा। वे बोले मेरे पास तो स्वर्णमुद्रायें नहीं हैं पर मैं माँ लक्ष्मी का स्तवन अवश्य कर सकता हूँ।  
कनकधारा स्तोत्र अपनी दयार्द्र दृष्टि के लिए तो प्रसिद्ध है ही, साथ ही अपने भाषिक संस्कार से चमत्कृत कर देता है। प्रारंभ जिस अमूर्त भाव प्रयोग से होता है, देवताओं और अवतारों के लिये भी वैसा महाप्रयोग पहले न दिखा! 
अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्तीं भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम्।
अङ्गीकृताऽखिल-विभूतिरपाङ्गलीला माङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गळदेवतायाः॥
अर्थात् हरि के पुलक से आपूरित अंगों का आश्रय लेती हुई …एवं इसमें  भृङ्गाङ्गनेव की उपमा देखते ही बनती है ! 
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारे: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गताऽगतानि।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवाया:॥ 
जिस तरह भ्रमरी कमल पर मँडराती है उसी तरह मुरारि के मुख की ओर जाती और लज्जा से लौट आती ( गताऽगतानि) उस सागर कन्या की दृष्टि मुझे धन प्रदान करे ! 
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धमिन्दीवरोदर सहोदरमिन्दिराया:। 
आप पदलालित्य और पदभंगिमा का स्तोत्र में प्रयोग देखिये – ईषन्निषीदतु मयि और क्षणमीक्षणार्ध अर्थात् अर्धनिमीलिताक्षी की दृष्टि क्षण या क्षणार्ध के लिये सचमुच काव्य का देवता द्रवीयमान भाव से विह्वल हुआ आदि शंकराचार्य की अवतारी प्रज्ञा का दास बना रच रहा है ! 
इसी प्रकार पदबंध द्रष्टव्य है – भुजङ्गशयाङ्गनायाः। भुजंग की शय्या वाले हरि की स्त्री, लक्ष्मी! जिनकी कटाक्षमाला भगवान के हृदय में भी प्रेम का संचार करने वाली है, ऐसी श्री !! 
दयार्द्र और अलौकिक पावनानां पावन शब्दराशि से द्रवीभूत, कनक क्या, सर्वथा आशीष ही बरसा होगा।  
‘ मकरालय-कन्यकायाः ‘, एक अन्य श्लोक में कहते हैं मकरालयकन्या … सागरसम्भवा … ! कौन पुत्री अपने पितृगृह की महिमामंडन से प्रसन्न न होगी ! 
दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा मस्मिन्नकिञ्चन विहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्म-घर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण-प्रणयिनी नयनाम्बुवाहः॥
भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी के नेत्र रूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्म (धनागम विरोधी अशुभ प्रारब्ध) रूपी घाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद रूपी धर्मजन्य ताप से पीड़ित मुझ दीन रूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करें। चातक के लिए विहंगशिशु प्रयोग कितना आश्चर्यकारी है! इसमें भी नारायणप्रणयिनी कहकर लक्ष्मी जी के हृदय पर अपना स्तुतिप्रकाश फैलाने की सहज चेष्टा है।  
गीर्देवतेति गरुडध्वजभामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर-वल्लभेति।
सृष्टि-स्थिति-प्रलय-केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै॥
जो सृष्टि रचना के समय वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) के रूप में विराजमान होती है तथा प्रलय लीला के काल में शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखर वल्लभा पार्वती (रुद्रशक्ति) के रूप में स्थित होती है, त्रिभुवन के एकमात्र पिता भगवान नारायण की उन नित्य यौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है।
इसमें भी ‘नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै’ में  क्या पदसृष्टि की है, अहोभाव की पराकाष्ठा! सामासिक तो है ही सर्वतोभावेन नव्य भी है।   
श्रुत्यै नमोऽस्तु नमस्त्रिभुवनैक-फलप्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणाश्र यायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तम-वल्लभायै॥  
हे देवी, शुभ कर्मों का फल देने वाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिंधु रूपा रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमल वन में निवास करने वाली शक्ति स्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुष्टि रूपा पुरुषोत्तम प्रिया को नमस्कार है।
इस में ‘शतपत्रनिकेतनायै’ और ‘पुरुषोत्तमवल्लभा’ विशेषण बहुत चित्ताकर्षक हैं।  
आगे के स्तवन में अनोखे पद हैं ‘नालीकनिभाननायै’ एवं ‘सोमामृतसोदरायै’। कमलासना ही नहीं कमलनिभ आनना भी हैं! सोम और अमृत दोनों की सहोदरी हैं अत: उनके गुण तो स्वत:स्फूर्त हैं ही। भाषा का हृदय से ऐसा ऐक्य बने तो कनकवृष्टि भी हो, कृपावृष्टि भी! 
आगे पुन: आह्लादकारी स्तवन द्रष्टव्य है: 
नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै नमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै।
नमोऽस्तु देवादिदयापरायै नमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै॥
कमल के समान नेत्रों वाली हे मातेश्वरी! आप सम्पत्ति व सम्पूर्ण इंद्रियों को आनंद प्रदान देने वाली हैं, साम्राज्य देने में समर्थ और समस्त पापों को सर्वथा हर लेती हैं। मुझे ही आपकी चरण वंदना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे। शार्ङ्गायुधवल्लभायै, सारंग जिनका आयुध है, उनकी वल्लभा, अहा और अहो दोनों ही भाव ! 
आगे कहते हैं – दिग्घस्तिभि:कनककुम्भमुखावसृष्टस्वरवाहिनीविमलचारूजलप्लुताड्ंगीम्, सचित्र वर्णन है यह! 
हाथी आकाशगंगा के पवित्र एवं सुंदर जल से जिनके श्री अंगों का अभिषेक कर रहे हैं ऐसी लोकाधिनाथ की गृहिणी अमृताब्धिपुत्री को प्रात: प्रणाम करता हूँ,  अहोरूपमहोध्वनि! 
और देखें कि कैसे याचक की ओर इसकी भी याचना की है: 
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूर-तरङ्गितैरपाङ्गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः॥  
सारांश यह कि निवृत्तिमार्गी की करूणाकलित वीणा से ये स्तोत्र प्रकट हुआ है जिसमें प्रकारान्तर से लक्ष्मीभाव की संकल्पना को उजागर किया है। भाषा सायासविशेषणगर्भा है जिससे अकारणकरुणावरुणालय विष्णु और उनकी प्रिया दोनों प्रसीद हों प्रसाद दें।  
दिव्य भावों को हृदयरस में निमज्जित कर देने से जो करूणारसायन बना, कहते हैं उस अकिंचन के यहाँ कनकधारा वृष्टि हुई।
अंकवार श्री सूक्त और श्री यंत्र की समस्त क्रियाविधि चिन्तनविधि है, दूसरी ओर कनकधारा स्तोत्र से क्षिप्रता से प्रसन्न हो जाने वाली हृदयशक्ति और परदु:खकातरता का सरल लोक है। दोनों ही हमारी परंपरा के साक्षी हैं ! 

पदलालित्य और अर्थगांभीर्य के मणिकांचन संयोग के साथ श्री की संकल्पना का कनकधारा स्तोत्र जैसा विशाल रूपाकार, दुर्लभ अनुभूतियों के सागर में ले जाकर छोड़ देता है – ‘अनबूड़े बूड़े,  तिरे … जे बूड़े सब अंग’ के साथ।

आयुरस्मै धेहि जातवेद: प्रजां त्वष्टरधि नि धेह्योनः ।
रायस्पोषं सवितरा सुवास्मै शतं जीवाति शरदस्तवायम् ॥

अभ्यञ्जनं सुरभ्यादुवासश्च तं हिरण्यमधि पूत्रिमं यत् ।
सर्वा पवित्रा वितताध्यस्मच्छतं जीवाति शरदस्तवायम् ॥

ऋतेन स्थूणा अघि रोह वंशोग्रो विराजोन्नप वृङ्क्ष्व शत्रून् ।
मा ते रिषन्नुपसत्तारो अत्र विराजां जीवात् शरद: शतानि ॥

पञ्चदिवसीय दीपपर्व पञ्चकोशीय देवी साधना व आराधना का पर्व है। पितरों के आह्वान पश्चात शारदीय नवरात्र से आरम्भ हो कर पितरों को विदा देने के आकाशदीपों तक का लम्बा कालखण्ड प्रमाण है कि यह विशेष है।
स्वास्थ्य, जीवन व शिल्प से जुड़े अथर्ववेद की उपर्युक्त प्रार्थनाओं से शरद ऋतु की महत्ता प्रकट होती है कि इस ऋतु से ही जीवन की काल परास को मापा जाता था। होनी भी चाहिये कि वर्षान्‍त पश्चात धरा पर जीवन का विपुल आरम्भ होता है तथा शारदीय समाहार के साथ अंत व आरम्भ भी।
दीपावली प्रजा, अन्न, प्राण व सम्वर्द्धन का पर्व है। अमावस्या को सिनीवाली देवी माना गया तथा इसे सरस्वती से जोड़ा गया। यह देवी प्रजनन की देवी थी, कामिनी रूपा। सन्‍तुलन हेतु ऋतावरी सरस्वती आईं तथा उससे श्रीयुक्त सम्पदा लक्ष्मी भी।

अथर्ववेद में ही सरस्वती से धन व धान्य की कामना की गयी है।

यथाग्रे त्वं वनस्पते पुष्ठ्या सह जज्ञिषे । एवा धनस्य मे स्फातिमा दधातु सरस्वती ॥
आ मे धनं सरस्वती पयस्फातिं च धान्यम् । सिनीवाल्युपा वहादयं चौदुम्बरो मणिः ॥

अन्न सञ्ज्ञा चावल हेतु ही प्रयुक्त थी तथा धान्य शब्द धान की शारदीय सस्य हेतु प्रयुक्त था। आगे इन शब्दों के व्यापक अर्थ रूढ़ हो गये।

धन–धान्य, प्रजनन, नवारम्भ व जीवनोद्योग पुरुषार्थ चतुष्टय से जुड़ते हैं तथा दीपावली पर्व इससे प्रत्यक्ष जुड़ा होने के कारण सबसे महत्त्वपूर्ण पर्व है – समाज के प्रत्येक वर्ग हेतु समान रूप से। जीवन अर्थ व काममय है। धर्म धारण व सन्‍तुलन हेतु है। इन तीनों के साथ जीता हुआ व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति करता है। मोक्ष अर्थात मुक्ति, एक उच्चतर आयाम जिसे स्वतन्त्र निर्गृहस्थ रूप में पाने हेतु अनेक उपाय सन्न्यास आदि किये जाते रहे किन्तु लक्ष्मी व सरस्वती के साथ जीता गृहस्थ समस्त आश्रमों में सर्वोपरि ही माना गया क्योंकि वह अन्य समस्त आश्रमों का पोषक है। उसका प्रत्येक कर्म उस यज्ञ की भाँति है जिसमें वह विष्णु समान यजमान बना अपनी श्री के साथ समस्त भूतों की उदर पूर्ति करता है। जीवन उस विराट मानवीय परम्परा का अंतहीन सूत्र हो गया जिसमें सन्तति पश्चात सन्तति सबको साधती हुई निज कल्याण व मुक्ति हेतु प्रयत्नशीला हो निरन्‍तर उच्चतर स्तर की ओर बढ़ती रही।

बृहदारण्यक उपनिषद प्रजा सन्तानों के पोषक संवत्सर रूपी प्रजापति को रात्रियों की पन्द्रह सोम कलाओं के साथ जोड़ता हुआ उस उच्चतर स्तर की बात करता है जो सोलहवीं कला है, ध्रुवा है, नैरन्तर्य को सुनिश्चित करता आत्मा है :

स एष संवत्सरः प्रजापतिष्षोडशकलः ।
तस्य रात्रय एव पञ्चदश कला ।
ध्रुवैवास्य षोडशी कला ।
स रात्रिभिरेवा च पूर्यतेऽप च क्षीयते ।
सोऽमावास्याꣳ रात्रिमेतया षोडश्या कलया सर्वमिदं प्राणभृदनुप्रविश्य ततः प्रातर्जायते ।
तस्मादेताꣳरात्रिं प्राणभृतः प्राणं न विच्छिन्द्यादपि कृकलासस्यैतस्या एव देवताया अपचित्यै ॥

यो वै स संवत्सरः प्रजापतिः षोडशकालोऽयमेव स योऽयमेवंवित्पुरुषः ।
तस्य वित्तमेव पञ्चदश कलाः ।
आत्मैवास्य षोडशी कला ।
स वित्तेनैवा च पूर्यतेऽप च क्षीयते ।
तदेतन्नभ्यं यदयमात्मा ।
प्रधिर्वित्तम् ।
तस्माद्यद्यपि सर्वज्यानिं जीयत आत्मना चेज्जीवति प्रधिनागादित्येवाहुः ॥

अथ त्रयो वाव लोका मनुष्यलोकः पितृलोको देवलोक इति ।
सोऽयं मनुष्यलोकः पुत्रेणैव जय्यो नान्येन कर्मणा ।
कर्मणा पितृलोकः ।
विद्यया देवलोकः ।
देवलोको वै लोकानां श्रेष्ठः ।
तस्माद्विद्यां प्रशꣳसन्ति ॥

धन ही प्रजापति की पन्द्रह कलायें हैं किंतु उनके साथ सोलहवीं आत्मा है जो विद्यासमन्‍विता है। दीप निरन्तरता का प्रतीक है। अखण्ड दीप व युगों युगों से अखण्ड दीपावली क्षय के बीच भी विद्या रूपी अमरता के साथ जीने के उदात्त रूप हैं।

स्पष्ट है कि श्री व सरस्वती में निर्वैर है, सहकार है, साहचर्य है, दोनों साथ रहें तब ही अर्थ व काम हैं, धर्म है तथा उनसे ही मोक्ष है। सुख का इससे अच्छा मार्ग क्या हो सकता है?

विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् । पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम् ॥

धनात्‌ धर्मम्‌ पर ध्यान दें, विद्या विनय पर भी तथा पात्रता पर भी। सुख तब ही है, जीवन सुख से जीने के लिये है। सुखी जीवन की साधना करें।
उद्योगी हों, विद्वान हों, धनी हों, यशस्वी हों। आप की व राष्ट्र की कीर्ति बढ़े।

उपै॑तु॒ मां दे॑वस॒खः की॒र्तिश्च॒ मणि॑ना स॒ह ।
प्रा॒दु॒र्भू॒तोऽस्मि॑ राष्ट्रे॒ऽस्मिन् की॒र्तिमृ॑द्धिं द॒दातु॑ मे ॥

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
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आज का संदेश

*🌺ये स्रृष्टि कहती है* …
      *मत सोच की तेरा*
        *सपना क्यों पूरा नहीं होता*
*हिम्मत वालो का इरादा*
         *कभी अधुरा नहीं होता*
*जिस इंसान के कर्म*
                 *अच्छे होते है*
*उस के जीवन में कभी*
             *अँधेरा नहीं होता* 

*🙏🏻🌼शुभ प्रभात🌼🙏🏻*
 

आज का संदेश

*🌺ये स्रृष्टि कहती है* …
      *मत सोच की तेरा*
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*🙏🏻🌼शुभ प्रभात🌼🙏🏻*
 

आज का सुविचार

*हमारा जीवन समाज का दिया हुआ है। वह हमारी ब्यक्तिगत संपत्ति नहीं है , बल्कि समाज , विश्व विराट की एक  धरोहर है । इसका  उपयोग समाज और राष्ट्र  के कल्याण तथा उसके हित के लिए ही होना चाहिए । इस तथ्य को तभी चरितार्थ  किया जा सकता है , जब हम यह आधार लेकर चलें कि हमारा जीवन अपने  व्यक्तिगत  रूप में भले ही कुछ कष्टपूर्ण  क्यों न हो , पर दूसरों का सुख और दूसरों  की सुविधा तथा दूसरों का क्लेश , हमारा सुख -क्लेश  है ____ यह परमार्थ भाव  मनुष्य में जिस व्यक्तिगत का विकास करता है, वह बड़ा आकर्षक होता है । इतना  आकर्षक होता है कि समाज की शक्ति और विकास मूलक सद्भावनाएँ आपसे  आप खिंचती चली आती हैं । पूरा समाज उसका अपना परिवार बन जाता है । ऐसी  बड़ी उपलब्धि मनुष्य को किस ऊँचाई पर नहीं पहुंचा सकती ।*
*🌻🌼🙏🏻शुभ प्रभात🙏🏻🌼🌻*
*💐💐💐आपका दिन मंगलमय हो 💐💐💐*
       *आपका अपना*
*पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी*
     *मुंगेली छत्तीसगढ़*
     *८१२००३२८३४*

Sunday, October 27, 2019

आज का सुविचार

           *🌞🌞 आज का सुविचार 🌞🌞*

*यदि सन्ति गुणा: पुंसां*
*विकसन्त्येव ते स्वयम्*
                          *नहिकस्तूरिकामोद:*
                           *शपथेन विभाव्यते*

*भावार्थ*:- कस्तूरी की गन्ध को सिद्ध नहीं
करना पड़ता वह तो स्वयं फैलकर अपनी
*सुगन्ध से वातावरण को सुवासित कर*
*देती है ..*..

*उसी प्रकार गुण वान तथा प्रतिभावान*
*मनुष्य के गुण अपने आप फैल* जाते है
उनका प्रचार नहीं करना पड़ता *..*..

*🌞🌞 सुप्रभातवेला 🌞🌞*

                  आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Friday, October 25, 2019

आज का सुविचार

✍🥀🥀
      *प्रसन्न व्यक्ति वह है, जो निरन्तर स्वयं का मूल्यांकन करते हुए सुधार करता है,,*
           *जबकि दुखी व्यक्ति वह है, जो सिर्फ दूसरों का मूल्याकंन करते हुए हर समय उनकी बुराई, आलोचना, निन्दा एवं ईर्ष्या करता है!!*
🔆🥀🥀
       *"ना किसी से ईर्ष्या",*
                  *"ना किसी से होड़"!*
        *"मेरी अपनी मंजिलें",*
                  *"मेरी अपनी दौड़ "!🥀🥀  *शुभ प्रभात*  🥀

दीपावली पर संस्कृत में लेख


दीपावलिः भारतवर्षस्य एकः महान् उत्सवः अस्त्ति । दीपावलि इत्युक्ते दीपानाम् आवलिः । अयम् उत्सवः कार्तिकमासास्य अमावस्यायां भवति । कार्त्तिकमासस्यकृष्णपक्षस्य त्रयोदशीत: आरभ्य कार्त्तिकशुद्धद्वितीयापर्यन्तं ५ दिनानि यावत् आचर्यते एतत् पर्व । सायंकाले सर्वे जनाः दीपानां मालाः प्रज्वालयन्ति । दीपानां प्रकाशः अन्धकारम् अपनयति । एतत्पर्वावसरे गृहे, देवालये, आश्रमे, मठे, नदीतीरे, समुद्रतीरे एवं सर्वत्रापि दीपान् ज्वालयन्ति । प्रतिगृहं पुरत: आकाशदीप: प्रज्वाल्यते । दीपानां प्रकाशेन सह स्फोटकानाम् अपि प्रकाश: भवति । पुरुषाः स्त्रियः बालकाः बालिकाः च नूतनानि वस्त्राणि धारयन्ति आपणानां च शोभां द्रष्टुं गच्छन्ति । रात्रौ जनाः लक्ष्मीं पूजयन्ति मिष्टान्नानि च भक्षयन्ति । सर्वे जनाः स्वगृहाणि स्वच्छानि कुर्वन्ति, सुधया लिम्पन्ति सुन्दरैः च चित्रैः भूषयन्ति । ते स्वमित्रेभ्यः बन्धुभ्यः च मिष्टान्नानि प्रेषयन्ति । बालकाः बालिकाः च क्रीडनकानां मिष्टान्नानां स्फोटकपदार्थानां च क्रयणं कुर्वन्ति । अस्मिन् दिवसे सर्वेषु विद्यालयेषु कार्यालयेषु च अवकाशः भवति । भारतीयाः इमम् उत्सवम् प्रतिवर्षं सोल्लासं समायोजयन्ति । एवं सर्वरीत्या अपि एतत् पर्व दीपमयं भवति । अस्य पर्वण: दीपालिका, दीपोत्सव:, सुखरात्रि:, सुखसुप्तिका, यक्षरात्रि:, कौमुदीमहोत्सव: इत्यादीनि नामानि अपि सन्ति । अस्मिन्नवसरे न केवलं देवेभ्य: अपि तु मनुष्येभ्य: प्राणिभ्य: अपि दीपारतिं कुर्वन्ति ।

त्वरिततथ्यानि: Diwali, इतर नामानि ...
तमसो मा ज्योतिर्गमय अस्योदाहरणम् दीपावली
इदं कथ्यते यत् अस्मिन् दिवसे रावणं हत्वा रामः सीतया लक्ष्मणेन च सह अयोध्यां प्रत्यागच्छत् । तदा अयोध्यायाः जनाः अतीव प्रसन्नाः अभवन् । अतः ते स्वानि गृहाणि दीपानां मालाभिः आलोकयन् । ततः प्रभृति प्रतिवर्षम् तस्मिन् एव दिवसे एषः उत्सवः भवति ।

नीराजयेयुदेर्वांस्तु विप्रान् गावतुरङ्गमान् ।ज्येष्ठान्पूज्यान् जघन्यां मातृमुख्या योषित: ॥ इति उक्तम् अस्ति ।

दीप: ज्ञानस्वरूप:, सर्वविद्यानां कलानां च मूलरूप: ।सत्तामात्रं निर्विशेषं निरीहं स त्वं साक्षात्विष्णुरध्यात्मदीप: । इति वदति भागवतम् ।हृदयकमलमध्ये दीपवद्वेदसारम् इति उच्यते गुरुगीतायांस्कान्दपुराणे च । यद्यपि दीपावली सर्वैरपि आचर्यते तथापि विशेषतया वैश्यपर्व इति उच्यते । एतदवसरे धनदेवताया: महालक्ष्म्या:, धनाध्यक्षस्य कुबेरस्य च पूजां कुर्वन्ति ।

पूजनीया तथा लक्ष्मीर्विज्ञेया सुखसुप्तिका ।सुखरायां प्रदोषे तु कुबेरं पूजयन्ति हि ॥

एतत् केवलं धनसम्बद्धं पर्व न । अत्र महालक्ष्मी: केवलं धनदेवता न । श्रेयस: सर्वाणि अपि रूपाणि लक्ष्मीस्वरूपाणि एव । सा धर्मलक्ष्मी: मोक्षलक्ष्मी: अपि । वैश्या: तद्दिने लक्ष्मीपूजां कृत्वा नूतनगणनाया: आरम्भं कुर्वन्ति ।तमिळुनाडुराज्ये चतुर्दशीदिनं दीपावली इति, कर्णातकेचतुर्दशी-प्रतिपत् च दिनद्वयं दीपावली इति वदन्ति ।


त्रयोदश्यां सायङ्काले स्नानगृहं तत्रत्यानि पात्राणि च स्वच्छीकृत्य शुद्धं जलंपूरयन्ति । तत् जलपूरणपर्व इति वदन्ति । तद्दिने रात्रौ अपमृत्युनिवारणाय यमधर्मराजस्यसन्तोषाय च गृहस्य बहिर्भागे दीप: प्रज्वालनीय: इति वदति स्कान्दपुराणम् । तस्य दीपस्य नाम एव यमदीप: इति ।

कार्त्तीकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे ।यमदीपं बहिर्दद्यात् अपमृत्युर्विनश्यति ॥(स्कान्दपुराणम्)मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह ।त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यज: प्रियतां मम ॥ (स्कान्द-पद्म-पुराणे)

चतुर्दश्यां प्रात:काले सर्वेपि अभ्यङ्गस्नानं कुर्वन्ति । एतद्दिने एव श्रीकृष्ण: नरकासुरं संहृत्य प्रात: अभ्यङ्गं कृतवान् आसीत् । अनेन स्नानेन नरकान्तक: नारायण: सन्तुष्ट: भवति । नरकभीति: निवार्यते । तद्दिने प्रात:काले तैले लक्ष्मी:, जले चगङ्गा निवसत: इति । तैलजलयो: उपयोगं कृत्वा य: स्नाति स: यमलोकं न गच्छति, तस्य अलक्ष्मीपरिहार: अपि भवति इति विश्वसन्ति ।

”तैले लक्ष्मीर्जले गङ्गा दीपावल्याचतुर्दशीम् ।प्रात:काले तु य: कुर्यात् यमलोकं न पश्यति ॥“(पद्मपुराणम् - ४-१२४)”अलक्ष्मीपरिहारार्थम् अभ्यङ्गस्नानमाचरेत् ।”(नारदसंहिता)

तद्दिने विभिन्नानां चतुर्दशशाकानां भक्षणपद्धति: अपि कुत्रचित् अस्ति ।

”अत्र आचारात् चतुर्दशशाकभक्षणं च कर्तव्यम् ॥ इति उक्तिरपि श्रूयते ।

रात्रौ च ज्वलन्तम् आलातं गृहीत्वा पित्रृभ्य: मार्गदर्शनम् अपि कुर्वन्ति ।
दीपावलीभक्ष्यानियमाय धर्मराजाय मृत्यवे चान्तकाय च ।वैवस्वताय कालाय सर्वभूतक्षयाय च ॥औदुम्बराय दध्नाय नीलाय परमेष्ठिने ।वृकोदराय चित्राय चित्रगुप्ताय वै नम: ॥

इति यमधर्मराजस्य चतुर्दशनामानि वदन्त: तस्मै तिलतर्पणंसमर्पयन्ति । तद्दिने रात्रौ नरकपरिहाराय देवालयेषु, मठेषु, वृन्दावनेषु, गृहेषु, गृहात् बहि: प्राङ्गणे, आयुधशालासु, नदीतीरे, दुर्गेषु, कूपसमीपे, अश्वशालासु, गजशालासुमुख्यमार्गेषु च दीपान् ज्वालयन्ति । नरकासुरस्य स्मरणार्थं वर्त्तिकाचतुष्टययुक्तम् एकं दीपम् अपि ज्वालयन्ति । महाविष्णुं, शिवं, महारात्रिदेवता: च पूजयित्वा रात्रौ केवलं भोजनं कुर्वन्ति । मधुरभक्ष्याणां वितरणम् अपि कुर्वन्ति ।

अमावास्यायाम् अपि प्रात:काले अभ्यङ्गस्नानं कृत्वा लक्ष्मीपूजां कुर्वन्ति । ल्क्ष्म्या: पूजनेन दारिद्य्रं दौर्भाग्यं च नश्यति इति । अभ्यङ्गस्नानस्य जले उदुम्बर-अश्वत्थ-आम्र-वट-प्लक्षवृक्षाणां त्वगपि योजयन्ति । स्नानानन्तरं महिला: पुरुषाणाम् आरतिं कुर्वन्ति । नरकासुरेण बन्धने स्थापिता: १६ सहस्रं कन्या: बन्धमुक्ता: सन्त्य: कृतज्ञतासमर्पणरूपेण कृष्णस्य आरतिं कृतवत्य: आसन् एतद्दिने । देवपूजया सह पितृपूजाम् अपि कुर्वन्ति । तद्दिने गृहे सर्वत्र दीपान् ज्वालयन्ति । नृत्य-गीत-वाद्यै: सन्तोषम् अनुभवन्ति । नूतनानि वस्त्राभरणानि धरन्ति । रात्रौ जागरणं कुर्वन्ति । तद्दिने अलक्ष्मी: निद्रारूपेण आगच्छति इति भेरि पणवानकै:महाशब्दं कुर्वन्ति निद्रानिवारणाय । अस्मिन् दिने वणिज: गणनापुस्तकस्य पूजां कृत्वा ग्राहकेभ्य: मधुरभक्ष्याणि ताम्बूलंच वितरन्ति । लक्ष्म्या सह धनाध्यक्षं कुबेरम् अपि पूजयन्ति ।

गोपूजापर्व

कार्त्तीकशुद्धप्रतिपत् एव बलिपूजादिनम् । दीपावलीपर्वणि एतत् प्रमुखं दिनम् । तद्दिने स्वातिनक्षत्रम् अस्ति चेत् अत्यन्तं प्रशस्तम् इति उच्यते । तद्दिने अपि प्रात:काले अभ्यङ्गस्नानं कुर्वन्ति । रात्रौ बलिपूजां कुर्वन्ति । बलिचक्रवर्तिन:  वर्णै: लिखन्ति अथवा तस्य विग्रहस्य प्रतिष्ठापनं कुर्वन्ति । तस्य राज्ञ्या: विन्ध्यावल्या:, परिवारस्य, बाण-कूष्माण्ड-मुरनामकानां राक्षसानाम् अपि चित्राणि लिखन्ति । कर्णकुण्डलकिरीटै: शोभमानं बलिं विभिन्नै: कमलपुष्पै:, गन्ध-धूप-दीप-नैवेद्यै: पूजयन्ति । स्वर्णेन अथवा स्वर्णवर्णपुष्पै: तस्य पूजां कुर्वन्ति ।

”बलिराज नमस्तुभ्यं विरोचनसुत प्रभो ।भविष्येन्द्र सुराराते विष्णुसान्निध्यदो भव ॥“

पूजेयं प्रतिगृह्यताम् इति प्रार्थयन्ति । एतद्दिने महादानी बलिचक्रवर्ती वामनावतारिण: विष्णो: सकाशात् प्राप्तस्य वरस्य अनुगुणं भूलोकं द्रष्टुम् आगच्छति इति । अत: बलिम् उद्दिश्य तद्दिने यानि दानानि दीयन्ते तानि अक्षयफलदायकानि भवन्ति, नारायणस्य सन्तोषम् अपि जनयन्ति इति वदतिभविष्योत्तरपुराणम् ।

”बलिमुद्दिश्य दीयन्ते बलय: कुरुनन्दन ।यानि तान्यक्षयाण्याहु: मय्येवं सम्प्रदर्शितम् ॥“(भविष्योत्तरपुराणम् - १४०-५७)

एतद्दिने पार्वतीशिवौ द्यूतं कीडितवन्तौ । तत्र पार्वत्या जय: प्राप्त: इति वदति ब्रह्मपुराणम् । तस्य स्मरणार्थं तद्दिने द्यूतम् अपि क्रीडन्ति कुत्रचित् । तत्र य: जयं प्राप्नोति स: वर्षपूर्णं जयं प्राप्नोति इति विश्वास: ।

”तस्मात् द्यूतं प्रकर्तव्यं प्रभाते तत्र मानवै: ।तस्मिन् द्यूते जयो यस्य तस्य संवत्सर: शुभ: ॥“

एतद्दिने एव श्रीकृष्ण: गोवर्धनपर्वतम् उन्नीय गोकुलस्य रक्षणं कृतवान् इति । अत: तस्य दिनस्य स्मरणार्थं गोपूजाम् आचरन्ति । तद्दिने गोवृषभेभ्य: विश्रान्तिं यच्छन्ति । गोवृषभान् स्नापयित्वा अलङ्कुर्वन्ति । तेषां पूजां कृत्वा नैवेद्यं समर्पयन्ति । गोवर्धनपर्वतस्य गोपालकृष्णस्य च पूजां कुर्वन्ति । पर्वतं गन्तुम् अशक्ता: तस्य विग्रहं, चित्रं वा पूजयन्ति । गोवर्धनपूजाम् अन्नकूट: इति वदन्ति । गोपालेभ्य: नैवेद्यरूपेण अन्नसन्तर्पणं व्यवस्थापयन्ति च एतद्दिने ।

अग्रिमं दिनम् अस्ति कार्त्तीकशुद्धद्वितीया । एतद्दिनं भ्रातृद्वितीया, यमद्वितीया, भगिनीद्वितीया इति अपि वदन्ति ।

”यमं च यमुनां चैव चित्रगुप्तं च पूजयेत् ।अर्घ्यात्र प्रदातव्यो यमाय सहजद्वयै: ॥“आकाशदीपौ सुशोभिते स्त.

एतद्दिने एव यमदेव: भगिन्या: यमुनादेव्या: गृहं गत्वा आतिथ्यं प्राप्तवान् इति । अत: पुरुषा: सर्वे यमाय यमुनादेव्यै च अर्घ्यं समर्प्य भगिनीनां गृहं गच्छन्ति भोजनार्थम् । भगिनीभ्य: उपायनानि दत्त्वा ता: सन्तोषयन्ति च । मार्कण्डेयादीनांचिरञ्चीवीणां स्तोत्रं कुर्वन्ति । तद्दिने विशेषतया यमुनानद्यां स्नात्वा तां पूजयन्ति । एतत् दिनं दीपावलीपर्वण: अन्तिमं दिनम् । एवं ५ दिनानि आचरन्ति दीपावलीपर्व ।

”उपशमित मेघनादं प्रज्वलित दशाननं रमितरामम् ।रामायणमिव सुभगं दीपदिनं हरतु वो दुरितम् ॥“(भविष्योत्तरपुराणम् - १४० - ७१)

रामायणे मेघनाद: (इन्द्रजित्) यथा शान्त: तद्वत् एतत् पर्वावसरे मेघ: शान्त: जात: भवति । रामायणे दशमुखरावण:यथा दग्ध: भवति तथा अस्मिन् पर्वणि दशामुखं (वर्त्तिका) दहति । रामायणे राम: यथा रमते तद्वत् अस्मिन् पर्वणि सर्वे जना: रमन्ते । एवं रामायणमिव रमणीयं दीपावलीपर्व अस्माकं पापानि नाशयतु इति वदति अयं श्लोकः ।

                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

फिर से आजाद नहीं होगा , चंद्रशेखर आजाद

चंद्रशेखर आजाद

सूरज कॆ वंदन सॆ पहलॆ,धरती का वंदन करता था,
इसकी पावन धूल उठा,माथॆ पर चन्दन धरता था,
भारत की गौरव गाथा का,ही गुण-गायन करता था,
आज़ादी की रामायण का,नित पारायण करता था,

संपूर्ण क्रांन्ति का भारत मॆं,सच्चा जन नाद नहीं हॊगा ॥
जब तक इस धरती पर पैदा,फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा ॥१॥

भारत माँ का सच्चा बॆटा,आज़ादी का पूत बना,
उग्र-क्रान्ति की सॆना का वह,संकट मॊचक दूत बना,
आज़ादी की खातिर जन्मा,आज़ादी मॆं जिया मरा,
गॊली की बौछारॊं सॆ वह,बब्बर शॆर न कभी डरा,

कपटी कालॆ अंग्रॆजॊं का खत्म,कुटिल उन्माद नहीं हॊगा ॥
जब तक इस धरती पर पैदा,फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा ॥२॥

सॊनॆ की चिड़िया कॊ गोरे,खुलॆ आम थे लूट रहॆ,
इसी सिंह के गर्जन सॆ थे,उनकॆ छक्कॆ छूट रहॆ,
उस मतवालॆ की सांसॊं मॆं,आज़ादी थी आज़ादी,
हर बूँद रक्त की थी जिसकी,आज़ादी की उन्मादी,

भारत की सीमाऒं पर कॊई,निर्णायक संवाद नहीं हॊगा ॥
जब तक इस धरती पर पैदा,फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा ॥३॥

अधिकारॊं की खातिर मरना,सिखा गया वह बलिदानी,
स्वाभिमान की रक्षा मॆं दॆनी पड़ती है कुर्वानी,
मुक्त-हृदय सॆ हम सब उसका,आओ अभिनंदन कर लॆं,
भारत माँ कॆ उस बॆटॆ कॊ,हम शत-शत वन्दन कर लॆं,

यह राष्ट्र-तिरंगा भारत का,तब तक आबाद नहीं हॊगा ॥
जब तक इस धरती पर पैदा,फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा ॥४॥

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

आज का सुविचार

*अच्छा वक़्त सिर्फ उसीका   होता है,​.*
*..​जो कभी किसी का बुरा नहीं सोचते !!​*
*​सुख दुख तो अतिथि है,​.*
.   *​बारी बारी से आयेंगे चले जायेंगे..​*
*​यदि वो नहीं आयेंगे तो हम​*
       *​अनुभव कहां से लायेंगे।​*
*जिन्दगी को खुश रहकर जिओ*
*क्योकि रोज शाम सिर्फ सूरज ही नही ढलता आपकी अनमोल जिन्दगी भी ढलती है*
🌺💐🙏🏻🙏🏼🌹🌺
        *महासप्तमी की हार्दिक शुभकामनाए*
*🙏🏻🚩🌼शुभ प्रभात🌼🚩🙏🏻*

यूं ही गांधी जयंती पर

हमारे देश में विचारों का सम्मान किया जाता है दिखावे के लिए।
जयंती पर फूल माला साथ मिठाई लाते हैं बस चढ़ावे के लिए..!
विचार दिमाग के ऊपर से और सम्मान पैरों तले से निकल जाती है
भ्रष्ट खूब बनो गांधी वादी के आड़ में,ओ छोड़ गए हैं खादी पहनावे के लिए..

आज का सुविचार


*आज का सुविचार*

*अपना बनाओं तो*, उसी को बनाओं जो सदा से अपना है *.*. सखा बनाओं तो उसी को बनाओं जो जन्मों-जन्मों से हमारा सखा है *.*. जिसने कभी हमारा साथ नहीं छोड़ा, उस ईश्वर को अपना बनाओ *..*..

जैसा कर्म करोगे, वैसा ही फल पाओगे *.*. कोई भी कर्म छोटा मत समझो, छोटी-सी भूल भी पहाड़ की तरह समझनी चाहिए *.*. इसलिए मन को बार-बार समझाओ कि *..*..

*हे मन!* यह क्या कर रहा है? तृष्णारूपी जल में गोते खा रहा है? *अमूल्य मनुष्य जन्म को भोगों में बरबाद कर रहा है⁉⁉⁉*
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻

Thursday, October 24, 2019

२५ अक्टूबर विशेष


*25 अक्टूबर की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ👉*

1415 - इंग्लैंड ने उत्तरी फ्रांस में एजिनकोर्ट की लड़ाई जीती।
1711 – इटली के दो प्राचीन ऐतिहासिक नगरों पॉम्पी तथा हरकुलेनम के अवशेषों का एक ग्रामवासी ने पता लगाया।
1747 - एडमिरल सर एडवर्ड हॉक के तहत ब्रिटिश बेड़े ने केप फिनिस्टरर की दूसरी लड़ाई में फ्रेंच को हराया।
1812 - युद्ध के दौरान अमेरिका फ्रिगेट यूनाइटेड स्टेट्स ने ब्रिटिश पोत मैसिडोनिया पर कब्जा कर लिया।
1870 – पहली बार अमेरिका में पोस्टकार्ड का प्रयोग किया गया।
उनकी कई कलाकृतियों को विश्व ख्याति प्राप्त हुई।
1917 - बोल्शेविक (कम्युनिस्टों) व्लादिमीर इलिच लेनिन ने रूस में सत्ता हथिया ली।
1924 - भारत में ब्रिटिश अधिकारियों ने सुभाषचंद्र बोस को गिरफ्तार कर दो साल के लिए जेल भेज दिया।
1940 – बेंजामिन ओ डेविस, सीनियर अमेरिकी सेना के पहले अफ्रीकी-अमेरिकी जनरल बने।
1945 – जापान के गठबंधन सेनाओं के समक्ष आत्मसमर्पण के बाद च्यांग काई-शेक ने ताईवान को अपने नियंत्रण में लिया।
1951 - भारत में पहले आम चुनाव की शुरूआत हुई।
1955 – पहली बार घरेलू इस्तेमाल के लिए माइक्रोवेव ओवन की ब्रिकी टप्पन नामक कंपनी ने शुरू की।
1960 – न्यूयॉर्क में पहली इलेक्ट्रॉनिक कलाई घड़ी बाजार में आई।
1962 - अमेरिकी लेखक जॉन स्टीनबेक को साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया।
1964 - अवादी कारखाने में पहले स्वदेशी टैंक ‘विजयंत’ का निर्माण किया गया।
1971 - संयुक्त राष्ट्र महासभा में ताइवान को चीन में शामिल करने के लिए मतदान हुआ।
1995 - तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने संयुक्त राष्ट्र के 50वें वर्षगांठ सत्र को संबोधित किया।
2000 - अंतरिक्ष यान डिस्कवरी (यू.एस.ए.) 13 दिन के अभियान के बाद सकुशल वापस।
2001 – माइक्रोसॉफ्ट ने नए आॅपरेटिंग सिस्टम विंडोज एक्सपी को रिलीज किया।
2005 - ईराक में नये संविधान को जनमत संग्रह में बहुमत के साथ मंजूरी मिली।
2007 - तुर्की के युद्ध विमानों ने उत्तरी इराक के पहाड़ी कुर्दिस्तान क्षेत्र में भारी बमबारी की।
2007 - मध्य इण्डोनेशिया के सुलावेसी द्वीप में माउंट सोपुटान ज्वालामुखी फटा।
2008 - सिक्किम के पूर्व मुख्यमंत्री नर बहादुर भंडारी को छह माह की सज़ा सुनाई गई।
2009 - बगदाद में दो बम धमाकों से 155 लोगों की मौत तथा लगभग 721 घायल हुए।
2012 - क्यूबा और हैती में ‘सैंडी’ तूफान से 65 लोगों की मौत तथा आठ करोड़ डाॅलर का नुकसान हुआ।
2013 - नाइजीरिया में सेना ने आतंकवादी संगठन बोको हराम के 74 आतंकवादियों को मार गिराया।

*25 अक्टूबर को जन्मे व्यक्ति👉*

1800 - लॉर्ड मैकाले - प्रसिद्ध अंग्रेज़ी कवि, निबन्धकार, इतिहासकार तथा राजनीतिज्ञ थे।
1881 – स्पेन के पैब्लो पीकासो नामक चित्रकार का जन्म हुआ।
1896 - मुकुंदी लाल श्रीवास्तव - भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार तथा लेखक।
1911 - घनश्यामभाई ओझा- गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री।
1912 - मदुराई मणि अय्यर - कर्नाटक संगीत के गायक थे।
1920 - रिशांग कीशिंग - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ राजनेता थे ।
1938 - मृदुला गर्ग- प्रसिद्ध लेखिका।
1965 - नवनीत निशान हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री।

*25 अक्टूबर को हुए निधन👉*

1296 – संत ज्ञानेश्वर का निधन हुआ (कन्फर्म नहीं)।
1980 – प्रसिद्ध उर्दू लेखक और शायर साहिर लुधियानवी का निधन हो गया।
1990 - कैप्टन संगमा मेघालय के पहले मुख्यमंत्री।
2003 - पाण्डुरंग शास्त्री अठावले - प्रसिद्ध भारतीय दार्शनिक तथा समाज सुधारक।
2005 – हिंदी लेखक निर्मल वर्मा का निधन हुआ।
2012 -जसपाल भट्टी, प्रसिद्ध हास्य अभिनेता।

*25 अक्टूबर के महत्त्वपूर्ण अवसर एवं उत्सव👉*

🔅 धनत्रयोदशी पर्व।
🔅 भगवान पद्मप्रभु का जन्म-तप कल्याणक (कल भी)।
🔅 श्री घनश्यामभाई ओझा जयन्ती।
🔅 कैप्टन विलियमसन अम्पांग संगमा स्मृति दिवस।

                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

भगवान के दर्शन

*🔥भगवान के दर्शन🔥*

एक धार्मिक व्यक्ति था : भगवान में उसकी बड़ी श्रद्धा थी *..*..

उसने मन ही मन प्रभु की एक तस्वीर बना रखी थी *.*. एक दिन भक्ति से भरकर उसने भगवान से कहा- भगवान मुझसे बात करो *..*..

और एक बुलबुल चहकने लगी लेकिन उस आदमी ने नहीं सुना *.*. इसलिए इस बार वह जोर से चिल्लाया *..*..

भगवान मुझसे कुछ बोलो- तो और आकाश में घटाएं उमङ़ने घुमड़ने लगी बादलो की गड़गडाहट होने लगी *.*. लेकिन आदमी ने कुछ नहीं सुना *..*..

उसने चारों तरफ निहारा, ऊपर-नीचे सब तरफ देखा *.*. और बोला- भगवान मेरे सामने तो आओ और बादलो में छिपा सूरज चमकने लगा *..*..

पर उसने देखा ही नहीं आखिरकार वह आदमी गला फाड़कर चीखने लगा भगवान मुझे कोई चमत्कार दिखाओ- तभी एक शिशु का जन्म हुआ और उसका प्रथम रुदन गूंजने लगा किन्तु उस आदमी ने ध्यान नहीं दिया *..*..

अब तो वह व्यक्ति रोने लगा और भगवान से याचना करने लगा- भगवान मुझे स्पर्श करो मुझे पता तो चले तुम यहाँ हो, मेरे पास हो, मेरे साथ हो और एक तितली उड़ते हुए आकर उसके हथेली पर बैठ गयी *.*. लेकिन उसने तितली को उड़ा दिया, और उदास मन से आगे चला गया *..*..

भगवान इतने सारे रूपो में उसके सामने आया,
इतने सारे ढंग से उससे बात की, पर उस आदमी ने पहचाना ही नहीं
शायद उसके मन में प्रभु की तस्वीर ही नहीं थी *..*..

हम यह तो कहते है कि ईश्वर प्रकृति के कण-कण में है, लेकिन हम उसे किसी और रूप में देखना चाहते ही नहीं है
इसलिए उसे कहीं देख ही नहीं पाते *..*..

इसे भक्ति में दुराग्रह भी कहते है *..*..

भगवान अपने तरीके से आना चाहते है और हम अपने तरीके से देखना चाहते है और बात नहीं बन पाती *..*!!

*बात तभी बनेगी जब हम भगवान को भगवान की आँखों से देखेंगे ..*.!!
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻

                       प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

धनतेरस पूजन विधि

*धनतेरस पूजन विधि - 25 अक्टूबर 2019,  शुक्रवार*

( घर में धन धान्य वृद्धि और सुख शांति के लिए )

दिवाली से पहले धनतेरस पर पूजा का विशेष महत्व होता है. इस दिन धन और आरोग्य के लिए भगवान धन्वंतरि- भगवान महामृत्युंजय शिव और लक्ष्मी- कुबेर की पूजा की जाती है, साथ में धन को कमाने और उसके सदुपयोग की सद्बुद्धि के लिए गायत्री और गणेश के मन्त्रों से पूजा की जाती है।

👉🏻1- गुरु आवाहन मंत्र - *ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु, गुरुरेव महेश्वरः । गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।*

👉🏻2 - गणेश आवाहन मन्त्र - *ॐ एक दन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दंती प्रचोदयात ।।*

👉🏻3- लक्ष्मी आवाहन मंत्र - *ॐ महा लक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ।*

👉🏻४ -दीपदान मंत्र ( कम से कम 5 या 11 या 21 घी के दीपकों को प्रज्वल्लित करें )-

*ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्नी: स्वाहा । सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा । अग्निर्वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चो स्वाहा । सूर्यो वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्च: स्वाहा । ज्योतिः सूर्य्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा ।।*

👉🏻5 - चौबीस(२४) बार गायत्री मंत्र का जप करें - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् , भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् ।*

👉🏻6- तीन बार महामृत्युंजय मंत्र का जप करें - *ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।*

👉🏻7 - तीन बार लक्ष्मी गायत्री मंत्र का जप करें - *ॐ महा लक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॥*

👉🏻8 - तीन बार गणेश मंत्र का जप करें - *ॐ एक दन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥*

👉🏻9 - तीन बार कुबेर का मंत्र जप करें - *ॐ यक्ष राजाय विद्महे, वैश्रवणाय धीमहि, तन्नो कुबेराय प्रचोदयात्॥*

👉🏻10-  तीन बार आरोग्य देवता धन्वन्तरि गायत्री मन्त्र का जप करें- *ॐ तत् पुरुषाय विद्महे, अमृत कलश हस्ताय धीमहि, तन्नो धन्वन्तरि  प्रचोदयात्*

👉🏻11 - शान्तिपाठ - *ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।*

दीपक नकारात्मकता का शमन कर सकारात्मक दैवीय शक्तियों को घर में प्रवेश देता है। इसलिए दीपक की जगह विद्युत् से जलने वाली led या किसी भी प्रकार की लाईट नहीं ले सकती। घर के मुख्य् द्वार पर दो घी या सरसों या तिल के तेल के रुई बाती वाले दीपक, एक तुलसी के पास, एक रसोईं में और एक बड़ा मुख्य् दीपक सूर्यास्त के बाद जलाकर रख दें। फिर कलश स्थापना कर पूजन करें। दीपयज्ञ/दीपदान के बाद घर की तिज़ोरी/लेपटॉप/बैंक की पासबुक इत्यादि का पूजन अवश्य करें।

👉🏻प्रथम दिन - *धनतेरस पूजा व दीपदान मुहूर्त*- 25 अक्टूबर 2019,  शुक्रवार

*धनतेरस मुहूर्त* : 19:10:19 से 20:15:35 तक
*अवधि* : 1 घंटे 5 मिनट
*प्रदोष काल* :17:42:20 से 20:15:35 तक
*वृषभ काल* :18:51:57 से 20:47:47 तक

उपरोक्त में लाभ समय में पूजन करना लाभों में वृ्द्धि करता है. शुभ काल मुहूर्त की शुभता से ध, स्वास्थय व आयु में शुभता आती है. सबसे अधिक शुभ अमृ्त काल में पूजा करने का होता है.

*Optional*- घर में बना हलवा या खीर प्रसाद में चढ़ाएं। यदि बजट है तो चांदी या स्वर्ण का कुछ भी सामान ख़रीद ले शाम 6:30 से पहले, उसे दूध में नहला के पूजन स्थल में साफ़ स्टील की कटोरी में लाल वस्त्र के ऊपर रख लें। उसका तिलक चन्दन कर पूजन के पश्चात् तिज़ोरी में रख दें, दीपावली के दिन पुनः उसका पुजन।

इतने दिनों पूर्व भेजने से आप सभी अपने ईष्ट मित्रों को समय से पूर्व फारवर्ड कर दें। इतनी विधिवत् जानकारी सभी देवताओं के मन्त्र के साथ धनतेरस की अन्यत्र मिलना मुश्किल है। अतः शठ कर्म और कलश पूजन हेतु 📖 *कर्मकाण्ड प्रदीप्त* शांतिकुंज पब्लिकेशन की पुस्तक की मदद ले।

कुछ युगनिर्माण योजना मथुरा  प्रकाशन की पुस्तकें जिनके स्वाध्याय से अमीर बनने के रहस्य पता चलेंगे, जरूर धनतेरस के दिन पढ़े:-
1- धनवान बनने के गुप्त रहस्य
2- सफलता के सात सूत्र साधन
3- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
4- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
5- आगे बढ़ने की तैयारी
*गोवर्धन पूजा- कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा:~🌹👏*
28 अक्टूबर 2019, सोमवार..
गाय का गोबर वास्तव में किसानों के लिए और सारे संसार के लिए धन है। *गोबर्धन अर्थात् गोबर ही धन का श्रोत है।*

चतुर्थ दिन - *गोवर्धन पूजा/अन्नकूट पूजा* , 28 अक्टूबर 2019, सोमवार

*गोवर्धन पूजा सायंकाल मुहूर्त :-*     15:25:46 से 17:39:44 तक
अवधि :2 घंटे 13 मिनट

*गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है*। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की।

स्वामी दयानन्द सरस्वती कहते हैं कि एक गाय अपने जीवनकाल में 4,10,440 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है

गाय की रीढ़ में स्थित सूर्यकेतु नाड़ी सर्वरोगनाशक, सर्वविषनाशक होती है।

*सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य के संपर्क में आने पर स्वर्ण का उत्पादन करती है। गाय के शरीर से उत्पन्न यह सोना गाय के दूध, मूत्र व गोबर में मिलता है। यह स्वर्ण दूध या मूत्र पीने से शरीर में जाता है और गोबर के माध्यम से खेतों में। कई रोगियों को स्वर्ण भस्म दिया जाता है।*

*वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है, ‍जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑक्सीजन लेते और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। पेड़-पौधे इसका ठीक उल्टा करते हैं।*

*देशी गाय के एक ग्राम गोबर में कम से कम 300 करोड़ पौधों को पोषण देने वाले जीवाणु होते हैं। धरती की नमी बचाये रखते है।*

*रूस में गाय के घी से हवन पर वैज्ञानिक प्रयोग किए गए हैं।*

*एक तोला (10 ग्राम) गाय के घी से यज्ञ करने पर ऑक्सीजन बनती है।*

जब श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।

*इस पर्व का सन्देश है, क़ि यदि मानवजाति और भोजन को जहर से बचाना चाहते हो तो कीटनाशक और अन्य रासायनिक खादों को बन्द करके, गौ मूत्र और गुड़ को मिलाकर अमृत जल से खेती में छिड़काव करो। गाय के गोबर की कम्पोस्ट खाद बना, अमृत मिट्टी गाय के गोबर, अमृत जल और वृक्षों के सूखे पत्तों को मिलाकर अमृत मिट्टी से खेती करे।*

*पूजन विधि, निरोगी जीवन और धन धान्य के लिए : -🌹👏🙏😊*

गाय को नहला कर पूजन करे, और खेत से उपजे अन्न से बने पकवान का भोग लगाएं।

शहर में रहने वाले गाय की डेरी में जाकर चना और गुड़ दान दें, गाय को खिलाएं। गाय का तिलक चन्दन करें। और घर आते वक़्त थोड़ा सा गाय का ताज़ा गोबर घर ले आएं। साथ ही गाय के गोबर से बने सूखे उपले(कण्डे) भी ले आएं।

पूजन वेदी में गाय के गोबर को सुपारी जैसा गोल बना के एक तस्तरी में रख कर उसका पूजन करें।

एक छोटे मिट्टी के बर्तन में सूखे उपलों को तोड़कर, उसे कपूर और घी बाती की सहायता से जला कर, गाय के घी, जौ, तिल, हवन सामग्री से हवन करें, उसके बाद अंतिम एक आहुति  घर के बने मीठे पकवान खीर या हलवा से स्विष्टिकृत आहुति देकर यज्ञ पूरा करें।

यज्ञ में 11 आहुति गायत्री मन्त्र की दें -

*ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*
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तीन आहुति महामृत्युंजय मन्त्र की - *ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*

तीन आहुति कृष्ण गायत्री मन्त्र की

*ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि। तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥* - कृ० गा०.

एक आहुति माँ कामधेनु गौ माता को

*त्वं माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम्।*
*त्वं तीर्थ सर्व तीर्थानां नमस्तेदस्तु सदानघे।।*

यज्ञ के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना कीजिये निम्नलिखित मन्त्र से,

*या देवी सर्वभूतेषु गौ रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः*
गौ सम्वर्द्धन और पर्यावरण हेतु प्रयास कीजिये, देशी गाय एकमात्र समस्त समस्याओं का समाधान है। गौ गंगा गीता और गायत्री यही हमारे भारतीय संस्कृति और धर्म का आधार है।
*भाई दूज(यम द्वितीया)- कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया उत्सव मनाने की विधि*
29 अक्टूबर, 2019, मंगलवार
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भाई दूज, भाई- बहन के अटूट प्रेम और स्नेह का प्रतीक माना जाता है, जिसे यम द्वितीया या भैया दूज (Bhaiya Dooj) भी कहते हैं। यह हिन्दू धर्म के प्रमुख त्यौहारों में से एक है, जिसे कार्तिक माह की शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है।

भाई दूज देश के बाहर भी मनाया जाता है। यह भाइयों और बहनों के बीच प्यार के बंधन को बढ़ाने के लिए रक्षा बंधन त्योहार की तरह है। इस शुभ दिन की बहनें अपने विशेष भाइयों की भलाई और कल्याण के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं, जबकि भाई अपनी बहनों के प्रति प्रेम दिखाने और उनकी देखभाल करने के लिए अपनी ताकत के अनुसार उपहार पेश करते हैं। ​

पंचम दिन - *भैया दूज* , 29 अक्टूबर, 2019

*भाई दूज तिलक का समय* : 13:11:34 से 15:25:13 तक
*अवधि* : 2 घंटे 13 मिनट

*भाई दूज पूजा विधी*
इस दिन सुबह पहले स्नान करके गायत्री, लक्ष्मी-विष्णु और गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। बहन अपने हाथों से बना कुछ मीठा हलवा या मिठाई या खीर सर्वप्रथम तुलसी पत्र डालकर ईश्वर को भोग लगाएगी, और भाई बहन एक दूसरे के सद्बुद्धि के लिए, उज्जवल भविष्य के लिए, धन धान्य के लिए पांच घी के दीपक जलाकर पूजन करेगें और साथ साथ निम्नलिखित मन्त्र का पूजन घर में दोहराएंगे:-

24 गायत्री मन्त्र - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*

5 महामृत्युंजय मन्त्र - *ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*

3 बार गणेश मन्त्र - *ॐ एक दन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्*

3 बार लक्ष्मी मन्त्र - *ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्*

3 बार विष्णु मन्त्र - *ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्*

मन्त्र जप के बाद आरती करके, बहन पूजा के थाल में तिलक, कलावा, और मीठा भोग लेगी। भाई के माथे पर टीका निम्नलिखित मन्त्र के साथ लगा कर उसकी लंबी उम्र और सद्बुद्धि की कामना करेगी। साथ में हल्दी वाले अक्षत भी माथे में लगाएगी।

*ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम्।*
*आपदां हरते नित्यम्, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥*

फ़िर बहन भाई के हाथ में निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए कलावा(रक्षासूत्र बांधेगी)।

*ॐ व्रतेन दीक्षामाप्नोति, दीक्षयाऽऽप्नोति दक्षिणाम्।*
*दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति, श्रद्धया सत्यमाप्यते॥*  

फिर बहन भाई को खीर/मीठा खिलायेगी।

भाई बहन को इसी तरह टीका लगाकर, कलावा बांधकर खीर/मीठा खिलायेगा।

दोनों एक दूसरे को वादा करेंगे, हम सुख दुःख में एक दूसरे का साथ देंगें, किसी भी कारण से भाई बहन के पवित्र रिश्ते को कलुषित नहीं होने देंगें।

इस दिन भाई को बहन के घर जाकर भोजन करना चाहिए। अगर बहन की शादी ना हुई हो तो उसके हाथों का बना भोजन करना चाहिए। अपनी सगी बहन न होने पर चाचा, भाई, मामा आदि की पुत्री अथवा पिता की बहन के घर जाकर भोजन करना चाहिए। साथ ही भोजन करने के पश्चात बहन को गहने, वस्त्र आदि उपहार स्वरूप देना चाहिए इस दिन यमुनाजी में स्नान का विशेष महत्व है।

गिफ़्ट से प्यार को तौल कर इस रिश्ते का अपमान नही करें, तथाकथित आधुनिकता में इसे लड़की लड़के का युद्ध मैदान न बनाएं। हाथ की पांचो अंगुलियां बराबर न होने पर सभी महत्त्वपूर्ण है। इसी तरह परिवार में सब बराबर हैं एक दूसरे के पूरक है। अध्यात्म में ठहराव और धैर्य की शक्ति की जरूरत होती है, इसलिए इस कठिन दायित्व को स्त्रियों ने उठाया हुआ है। अध्यात्म बल से पति और भाई को समुन्नत बनाने के लिये वो इसे ख़ुशी से करती हैं। घर के बाहर के शरीरिक बल के कठोर कार्य पुरुष ख़ुशी से अपने परिवार के लिए करते हैं।

🌹👨‍👩‍👧‍👦👏🙏🕉🚩

भाई बहन दोनों सुखी जीवन जीने के लिए निम्नलिखित पुस्तकें युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी की एक दूसरे को गिफ्ट में दें:-

1- सफलता के सात सूत्र साधन
2- आगे बढ़ने की तैयारी
3- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
4- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
5- गृहस्थ एक तपोवन।

                        प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...