Sunday, June 28, 2020

मूर्ति पूजा पर स्वामी विवेकानंद पुरी जी


*मूर्ति पूजा:*


*स्वामी विवेकानंद जी को एक मुस्लिम नवाब ने अपने महल में बुलाया और बोला, "तुम हिन्दू लोग मूर्ति की पूजा करते हो। मिट्टी, पीतल, पत्थर की मूर्ति का पर मैं ये सब नही मानता। ये तो केवल एक पदार्थ है।"*

उस नवाब के सिंहासन के पीछे किसी आदमी की तस्वीर लगी थी।
विवेकानंद जी की नजर उस तस्वीर पर पड़ी।

विवेकानंद जी ने नवाब से पूछा, "ये तस्वीर किसकी है?"
नवाब बोला, "मेरे अब्बा (पिताजी) की।"

स्वामी जी बोले, "उस तस्वीर को अपने हाथ में लीजिये।"

नवाब तस्वीर को हाथ मे ले लेता है।

स्वामी जी नवाब से, "अब आप उस तस्वीर पर थूकिए।"

नवाब : "ये आप क्या बोल रहे हैं स्वामी जी?"

स्वामी जी : "मैंने कहा उस तस्वीर पर थूकिए..।"

नवाब (क्रोध से) : "स्वामी जी, आप होश मे तो हैं ना? मैं ये काम नही कर सकता।"

स्वामी जी बोले, "क्यों? ये तस्वीर तो केवल एक कागज का टुकड़ा है, जिस पर कुछ रंग लगा है।
इसमे ना तो जान है, ना आवाज, ना तो ये सुन सकता है और ना ही कुछ बोल सकता है।"

*स्वामी जी बोलते गए, "इसमें ना ही हड्डी है और ना प्राण। फिर भी आप इस पर कभी थूक नहीं सकते। क्योंकि आप इसमे अपने पिता का स्वरूप देखते हैं और आप इस तस्वीर का अनादर करना अपने पिता का अनादर करना ही समझते हैं।"*

थोड़े मौन के बाद स्वामी जी ने आगे कहा,

"वैसे ही हम हिन्दू भी उन पत्थर, मिट्टी, या धातु की पूजा भगवान का स्वरूप मानकर करते हैं।
भगवान तो कण-कण में हैं, पर एक आधार मानने के लिए और मन को एकाग्र करने के लिए हम मूर्ति पूजा करते हैं।"

*स्वामी जी की बात सुनकर नवाब ने स्वामी जी से क्षमा माँगी।*

*जय हो सनातन धर्म!!*
                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
        धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

कवि सम्मेलन १

ना तारिफ हुस्न की,ना इजहार लिखता हूं,
ना हास-परिहास ना ही श्रृंगार लिखता हूं,
करके एै जवानी अब वतन के खातिर कुर्बान,
जब भी उठाऊं कलम बस अंगार लिखता हूं।।

जो मुझको प्रेम करते हैं, उन्हें मैं प्रेम करता हूं,
जो मुझे दिल में रखते हैं,सदा सहयोग करता हूं,
सुन ले ओ भी गद्दारी,ईर्ष्या द्वेष करने वाले,
खंजर तूम जो रखते हो,तो मैं तलवार रखता हूं.।।

सदा सरगर्म रहने का हुनर आना जरूरी है,
जिगर का खूं आंखों में उतर आना जरूरी है,
घर दुनिया हमारी शराफत को बुजदिली समझे,
हमें अपनी औकात पर उतर आना जरूरी है।।

सोए पड़े हो और अरिदल,द्वार पर ललकारता,
मां भारती की क्रंदना पर,वह ठहाके मारता,
हे वीर जागो नींद से अब, युद्ध का आया समय,
निज शस्त्र साधो अस्त्र बांधो,और कर दो तूम प्रलय।।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
        धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Tuesday, June 23, 2020

चमार कोई नीच जाति के हिन्दू नहीं, बल्कि सनातन धर्म के रक्षक चंवर वंश के हिन्दू थे जिन्होंने मजहबी आक्रान्ताओं की क्रूरता सही मगर धर्म न त्यागा

🚨■■■■■■■■■■■■🚨

 चमार कोई नीच जाति के हिन्दू नहीं, बल्कि सनातन धर्म के रक्षक चंवर वंश के हिन्दू थे जिन्होंने मजहबी आक्रान्ताओं की क्रूरता सही मगर धर्म न त्यागा🙏👇

आप जानकार हैरान हो सकते हैं कि भारत में जिस जाति को चमार बोला जाता है वो असल में चंवरवंश की क्षत्रिय जाति है। इतना ही नहीं बल्कि महाभारत के अनुशासन पर्व में भी इस वंश का उल्लेख है। हिन्दू वर्ण व्यवस्था को क्रूर और भेद-भाव बनाने वाले हिन्दू नहीं, बल्कि विदेशी आक्रमणकारी थे!

इस्लाम के मार्ग में बड़ी बाधा बनते चंवर वंश के हिंदुओं को अपमानित करने के लिए चमार शब्द गढ़ा क्रूर इस्लामिक शासक इब्राहिम लोदी ने।

जब भारत पर तुर्कियों का राज था, उस सदी में इस वंश का शासन भारत के पश्चिमी भाग में था, उस समय उनके प्रतापी राजा थे चंवर सेन। इस राज परिवार के वैवाहिक सम्बन्ध बप्पा रावल के वंश के साथ थे। राणा सांगा और उनकी पत्नी झाली रानी ने संत रैदासजी जो कि चंवरवंश के थे, उनको मेवाड़ का राजगुरु बनाया था। वे चित्तोड़ के किले में बाकायदा प्रार्थना करते थे। इस तरह आज के समाज में जिन्हें चमार बुलाया जाता है, उनका इतिहास में कहीं भी उल्लेख नहीं है। चमार शब्द का उपयोग पहली बार सिकंदर लोदी ने किया था।

ये वो समय था जब हिन्दू संत रविदास का चमत्कार बढ़ने लगा था अत: मुगल शासन घबरा गया। सिकंदर लोदी ने सदना कसाई को संत रविदास को मुसलमान बनाने के लिए भेजा। वह जानता था कि यदि संत रविदास इस्लाम स्वीकार लेते हैं तो भारत में बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू इस्लाम स्वीकार कर लेंगे।लेकिन उसकी सोच धरी की धरी रह गई, स्वयं सदना कसाई शास्त्रार्थ में पराजित हो कोई उत्तर न दे सके और संत रविदास की भक्ति से प्रभावित होकर इस्लाम छोड़ उनका भक्त यानी वैष्णव (हिन्दू) हो गया। उनका नाम सदना कसाई से रामदास हो गया। दोनों संत मिलकर हिन्दू धर्म के प्रचार में लग गए। जिसके फलस्वरूप सिकंदर लोदी ने क्रोधित होकर इनके अनुयायियों को अपमानित करने के लिए पहली बार “चमार“ शब्द का उपयोग किया था।

लोदी ने संत रविदास को कारावास में डाल दिया। उनसे कारावास में खाल खिचवाने, खाल-चमड़ा पीटने, जूती बनाने इत्यादि काम जबरदस्ती कराया गया। उन्हें मुसलमान बनाने के लिए बहुत शारीरिक कष्ट दिए गए लेकिन उन्होंने कहा 👇

”वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान, 
फिर मै क्यों छोडू इसे, पढ़ लू झूठ कुरान।
 वेद धर्म छोडू नहीं, कोसिस करो हज़ार,
 तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार।। "

यातनायें सहने के पश्चात् भी वे अपने वैदिक धर्म पर अडिग रहे और अपने अनुयायियों को विधर्मी होने से बचा लिया। ऐसे थे हमारे महान संत रविदास जिन्होंने धर्म, देश रक्षार्थ सारा जीवन लगा दिया। शीघ्र ही चंवरवंश के वीरों ने दिल्ली को घेर लिया और सिकन्दर लोदी को संत को छोड़ना ही पड़ा।
संत रविदास की मृत्यु चैत्र शुक्ल चतुर्दशी विक्रम संवत १५८४ रविवार के दिन चित्तौड़ में हुई। वे आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी स्मृति आज भी हमें उनके आदर्शो पर चलने हेतु प्रेरित करती है, आज भी उनका जीवन समाज के लिए प्रासंगिक है।

हमें यह ध्यान रखना होगा की आज के छह सौ वर्ष पहले चमार जाति थी ही नहीं। इतने ज़ुल्म सहने के बाद भी इस वंश के हिन्दुओं ने धर्म और राष्ट्र हित को नहीं त्यागा, गलती हमारे भारतीय समाज में है। आज भारतीय अपने से ज्यादा भरोसा वामपंथियों और अंग्रेजों के लेखन पर करते हैं, उनके कहे झूठ के चलते बस आपस में ही लड़ते रहते हैं। हिन्दू समाज को ऐसे सलीमशाही जूतियाँ चाटने वाले इतिहासकारों और इनके द्वारा फैलाए गये वैमनस्य से अवगत होकर ऊपर उठाना चाहिए l

सत्य तो यह है कि आज हिन्दू समाज अगर कायम है, तो उसमें बहुत बड़ा बलिदान इस चंवर वंश के वीरों का है। जिन्होंने नीचे काम करना स्वीकार किया, पर इस्लाम नहीं अपनाया। उस समय या तो आप इस्लाम को अपना सकते थे, या मौत को गले लगा सकते थे या अपने जनपद/प्रदेश से भाग सकते थे, या फिर आप वो काम करने को हामी भर सकते थे जो अन्य लोग नहीं करना चाहते थे।

चंवर वंश के इन वीरों ने पद्दलित होना स्वीकार किया, धर्म बचाने हेतु सुवर पालना स्वीकार किया, लेकिन मुसलमान धर्म स्वीकार नहीं किये।

नोट :- हिन्दू समाज में छुआ-छूत, भेद-भाव, ऊँच-नीच का भाव था ही नहीं, ये सब कुरीतियाँ विदेशी आक्रांता, अंग्रेज कालीन और भाड़े के वामपंथी व् हिन्दू विरोधी इतिहासकारों की देन है।

⚔️जय हिंद🇮🇳 जय श्रीराम🚩⚔️

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
        धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

*"रथयात्रा" पर विशेष*


🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸

          ‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼

      

           🔔 *"रथयात्रा" पर विशेष* 🔔

🌻☘🌻☘🌻☘🌻☘🌻☘🌻

                         *सनातन धर्म की व्यापकता का दर्शन हमारी मान्यताओं / पर्वों एवं त्यौहारों में किया जा सकता है | सनातन धर्म ने सदैव मानव मात्र को एक सूत्र में बाँधकर रखने के उद्देश्य से समय समय पर पर्व एवं त्यौहारों का विधान बनाया है | हमारे देश में होली , दीवाली, रक्षाबन्धन , जन्माष्टमी , श्रीरामनवमी आदि के पावन अवसर लोग आपसी वैमनस्य को भूलकर इन पर्वों का आनन्द उठाते हैं | इन्हीं पर्वों में एक पर्व है भगवान जगन्नाथ की "रथयात्रा" का पर्व | भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में आपसी भेद - विभेद मिटाकर भक्तजन एक साथ उनका दर्शन पूजन एवं रथ खींचकर स्वयं को धन्य मानते हैं | यह पर्व मुख्यरूप से उड़ीसा राज्य का मुख्य पर्व है | उड़ीसा राज्य का पुरी क्षेत्र जिसे पुरुषोत्तम पुरी , शंख क्षेत्र , श्रीक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है | यह भगवान श्री जगन्नाथ जी की मुख्य लीला-भूमि है | पूर्ण परात्पर भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरम्भ होती है | इसमें भाग लेने के लिए, इसके दर्शन लाभ के लिए हज़ारों, लाखों की संख्या में बाल, वृद्ध, युवा, नारी देश के सुदूर प्रांतों से आते हैं | भगवान की इस रथयात्रा का वर्णन पुराणों में भी देखने को मिलता है स्कन्द पुराण में इसकी महत्ता का वर्णन करते हुए बताया गया है कि :-- इस यात्रा में जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है | जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी का दर्शन करते हुए, प्रणाम करते हुए मार्ग के धूल-कीचड़ आदि में लोट-लोट कर जाते हैं वे सीधे भगवान श्री विष्णु के उत्तम धाम को जाते हैं | जो व्यक्ति गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा देवी के दर्शन दक्षिण दिशा को आते हुए करते हैं वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं | पुरी जगन्नाथ मन्दिर की यात्रा की मान्यता यह है कि इस बीच भगवान स्वयं आम जनमानस के मध्य आकर उनके सुख - दुख के सहभागी बनते हैं |* 

*आज भगवान जगन्नाथ की रथयात्र का महापर्व उड़ीसा ही नहीं बल्कि विशाल भारत के सभी प्रान्तों में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है | जो लोग इस रथयात्रा में भाग लेने के उद्देश्य से उड़ीसा के जगन्नाथपुरी नहीं पहुँच पाते हैं वे सभी लोग अपने नगरों में आयोजित रथयात्रा में भगवान के दर्शन करके एवं उनका रथ खींचकर स्वयं को धन्य बनाते हैं | आज के आधुनिक युग में लोग भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा का सीधा प्रसारण टेलीविजन पर देखकर दर्शन लाभ के द्वारा जीवन को धन्य बनाते हैं | मैं सनातन धर्म एवं उनकी मान्यताओं को हृदय से प्रणाम करते हुए अनुभव करता हूँ कि जिस प्रकार सभी पर्व मानवमात्र को एक करने का प्रयास करते हैं उसी प्रकार रथयात्रा का यह महोत्सव भी है | इस आयोजन में जो सांस्कृतिक और पौराणिक दृश्य उपस्थित होता है उसे प्राय: सभी देशवासी सौहार्द्र, भाई-चारे और एकता के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं | जिस श्रद्धा और भक्ति से पुरी के मन्दिर में सभी लोग बैठकर एक साथ श्री जगन्नाथ जी का महाप्रसाद प्राप्त करते हैं उससे वसुधैव कुटुंबकम का महत्व स्वत: परिलक्षित होता है | उत्साहपूर्वक श्री जगन्नाथ जी का रथ खींचकर लोग अपने आपको धन्य समझते हैं | श्री जगन्नाथपुरी की यह रथयात्रा मात्र सनातन धर्म का एक धार्मिक त्यौहार नहीं वरन् सांस्कृतिक एकता तथा सहज सौहार्द्र की एक महत्वपूर्ण कड़ी है |* 

*रथयात्रा से आध्यात्मिक संदेश भी प्राप्त होता है कि जिस प्रकार शरीर में आत्मा होती है तो भी वह स्वयं संचालित नहीं होती, बल्कि उसे माया संचालित करती है | इसी प्रकार भगवान जगन्नाथ के विराजमान होने पर भी रथ स्वयं नहीं चलता बल्कि उसे खींचने के लिए लोक-शक्ति की आवश्यकता होती है |*

     🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

🔥🌳🔥🌳🔥🌳🔥🌳🔥🌳🔥

सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

♻🏵♻🏵♻🏵♻🏵♻🏵♻

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
        धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

*क्या महाभारत देखना और सुनना अशुभ होता है? क्या घर में महाभारत रखने से लड़ाई होती है?*


*क्या महाभारत देखना और सुनना अशुभ होता है? क्या घर में महाभारत रखने से लड़ाई होती है?*


*ये लोग कहाँ से आते हैं भाई ??*

*कौन लोग हैं यह ??*

*पूछने पर बताते हैं कि इससे घर में लड़ाई हो जाएगी और यह घर के लिए शुभ नहीं होता।*

*मतलब जब वेदव्यास जी ने महाभारत लिखी होगी तो वेदव्यास जी की सभी लोगों से लड़ाई हो गयी होगी ??*

*गीता प्रेस या कोई भी प्रेस या publisher जब इसको छाप रहा होगा या लिख रहा होगा तब सब आपस में लड़ कट कर मर गए होंगे ??*

*वह पुस्तक की दुकान , वह डाकिया जहाँ जहाँ पुस्तक गयी होगी , सब लड़ कट कर मर गए होंगे ???*

*अरे मुझे यह बताईये कि "महाभारत" शब्द में कहाँ से आपको लड़ाई झगड़ा वाला अर्थ नज़र आया ?? अगर किसी के कान से पस भी बह रहा होगा या किसी को मोतियाबिंद भी हो गया होगा वह भी महाभारत शब्द सुन या देख कर यह नहीं कह सकता कि इसका भाव लड़ाई झगड़ा निकल रहा है !!*

*अरे महाभारत का क्या अर्थ है ??*

*महाभारत - महान या विशाल + भारत या आर्यावर्त ।*

*इसमें किसने लड़ाई झगड़ा खोज लिया ???*

*इसका अर्थ है उस महान या विशाल भारत की कहानी ।*

*ये पता नहीं क्यों मूर्ख लोग यह शब्द प्रयोग करने लगे कि "मैं महाभारत करवा दूँगा , या महाभारत हो जाएगी"*

*अगर हो भी जाएगी तो अच्छी बात है मतलब यह भारतवर्ष फिर महान बन जायेगा ।*

*लोगों ने क्यों इस शब्द का प्रचलन किया यह समझ के बाहर है ।*

*महाभारत तो बड़ी अच्छी पुस्तक है । यह नीति , ज्ञान , धर्म , कर्म , कर्तव्य , अकर्तव्य के विषय में कितनी अच्छी शिक्षा देता है ।*

*बल्कि यह पुस्तक तो जानबूझ कर रखनी चाहिए कि हमारे घर से अधर्म का नाश होगा और धर्म की स्थापना होगी।*

*कुछ लोग वह अर्जुन को गीता का उपदेश करते भगवान कृष्ण वाली फ़ोटो भी नहीं लगाते कि यह अपशकुन होता है।*

*अरे अपशकुन तो तुम्हारी बुद्धि बन गयी है जो उस चरित्र और उस घटना की साक्षी को अपने घर में नहीं लगा रहे जो अधर्म का नाश करने और धर्म की स्थापना के लिए हुई थी ।*

*भगवान कृष्ण ने तो यही करवाया था न ?*

*सभी अधर्मियों को मरवा दिया था और धर्म की स्थापना की ।*

*तो फिर इससे क्यों डरना ??*

*अरे सर्वश्रेष्ठ गीता ज्ञान जिसके सामने पूरा विश्व नतमस्तक है , इसी से मिला है । विदुर नीति जैसी महान नीति की शिक्षा इसी से मिली है ।*

*भगवान की विभिन्न लीलाओं का वर्णन इसी में हैं । और जिसमें भगवान की लीलाओं और उनके जन का वर्णन हो , उसको तो शास्त्र सर्वोपरि संज्ञा देते हैं ।*

*ऐसे तो देखा जाय , रामायण में भी भगवान ने बचपन से ही हज़ारों राक्षसों का वध किया । रावण जैसे दुरात्मा का अंत करने के लिए लाखों की सेना बनी और लाखों लोग युद्ध के ग्रास बने ।*

*यही रामायण है जिसमें राज्यतिलक से एक दिन पहले ही चौदह वर्ष का वनवास हो जाता है । राम सीता वन को भेज दिए जाते हैं , लक्ष्मण जी उर्मिला से अलग , भरत मांडवी से अलग , शत्रुघ्न श्रुतिकीर्ति से अलग , दशरथ की तड़प तड़प कर पुत्र वियोग में मृत्यु , तीनों रानियों का विधवा होना , श्रवण कुमार की मौत , लक्ष्मण जी को शक्ति लगना , नागपाश में बंधना , सीता जी का हरण होना , सीता जी की अग्निपरीक्षा ,सीता जी का वनवास , सीता जी के पुत्रों का वन में ही जन्म देना , उन दोनों का तो वैवाहिक जीवन जैसे उथल पुथल में रहा ।*

*फिर तो रामायण या रामचरित्रमानस भी नहीं रखनी चाहिए घर में ??*

*क्योंकि इससे दाम्पत्य जीवन खराब होगा या कोई तुम्हारी स्त्री को उठा ले जाएगा और हो सकता है तुम्हारे बच्चे भी वन में ही जन्म लें ।*

*अरे कोई भी अपने इतिहास को उठा लो , सब में धर्म की स्थापना के लिए लड़ाईयाँ हुई हैं तभी वह आज स्थायित्व या स्वीकार्यता में है ।*

*अगर संघर्ष या लड़ाईयाँ नहीं होंगी तो वह कथा ही नहीं बनती या उसको ऐतिहासिक पटल पर मान ही नहीं मिलता ।*

*किसी की भी कथा या story उठा लो , सब में संघर्ष या लड़ाई है ।।हरिश्चन्द्र , नल दमयंती , सती सावित्री , ध्रुव , प्रह्लाद इत्यादि कोई भी नाम ले लो , सब में संघर्ष व लड़ाई है ।*

*अच्छा सब छोड़ो ।*

*दुर्गा सप्तशती होगी सबके घर में ???*

*उससे विभत्स कोई लड़ाई हो तो मुझे यही आकर बता देना ।*

*पूरी सप्तशती तो एकमात्र लड़ाई पर ही based है ।*

*फिर ???*

*वह भी घर में है ना ???*

*और नवरात्रि के वक़्त सभी पाठ करते होंगे , तो क्या लड़ाई हुई सबसे ???*

*कभी तो तर्क से सोच लिया करो ।*

*यह लड़ाई झगड़े कोई पुस्तक नहीं करवाती ,एकमात्र व्यक्ति की सोच , नज़रिया और उसका आचरण करवाती है ।*

*शिव पुराण , विष्णुपुराण , देवी पुराण इत्यादि सबमें धर्म की स्थापना के लिए असुरों का संहार किया गया है । लेकिन सबके घर मे होती है यह ।*

*भगवान शंकर का रूप देखिये , काल भी थर्रा जाय , लेकिन सबके घर में हैं भगवान ।*

*कोई भी देवी देवता का चित्र उठा लें ,सबके हाथों में गदा, धनुष , चक्र , तलवार से लेकर तमाम तरह के अस्त्र शस्त्र हैं , तो क्या आपके घर में सबकी हत्या हो गयी ???*

*इसलिए फालतू के प्रपंचों को छोड़कर सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करिये ताकि अपनी और अपने शास्त्र या धर्म की हँसी उड़ने से बचे ।*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
        धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Monday, June 22, 2020

सही और सच्चा गुरु


*(((( सही और सच्चा गुरु ))))*
.
*वो बड़े इत्मीनान से गुरु के सामने खड़ा था। गुरु अपनी पारखी नजर से उसका परीक्षण कर रहे थे।*
.
*नौ दस साल का छोकरा। बच्चा ही समझो। उसे बाया हाथ नहीं था। किसी बैल से लड़ाई में टूट गया था।*
.
*"तुझे क्या चाहिए मुझसे?" गुरु ने उस बच्चे से पूछा।*
.
*उस बच्चे ने गला साफ किया। हिम्मत जुटाई और कहा, " मुझे आप से कुश्ती सीखनी है।*
.
*एक हाथ नहीं और कुश्ती लड़नी है ? अजीब बात है।*
.
*" क्यू ?"*
.
*"स्कूल में बाकी लड़के सताते है मुझे और मेरी बहन को। टुंडा कहते है मुझे*
.
*हर किसी की दया की नजर ने मेरा जीना हराम कर दिया है गुरुजी। मुझे अपनी हिम्मत पे जीना है। किसी की दया नहीं चाहिए।*
.
*मुझे खुद की और मेरे परिवार की रक्षा करती आनी चाहिए।"*
.
*"ठीक बात। पर अब मै बूढ़ा हो चुका हूं और किसी को नहीं सिखाता। तुझे किसने भेजा मेरे पास?"*
.
*"कई शिक्षकों के पास गया मै। कोई भी मुझे सिखाने तैयार नहीं। एक बड़े शिक्षक ने आपका नाम बताया।*
.
*तुझे वो ही सीखा सकते है क्यों की उनके पास वक्त ही वक्त है और कोई सीखने वाला भी नहीं है ऐसा बोले वो मुझे।"*
.
*वो गुरूर से भरा जवाब किसने दिया होगा ये गुरुजी समझ गए।*
.
*ऐसे अहंकारी लोगो की वजह से ही खल प्रवृत्ति के लोग इस खेल में आ गए ये बात गुरुजी जानते थे।*
.
*"ठीक है। कल सुबह पौ फटने से पहले अखाड़े में पहुंच जा। मुझ से सीखना आसान नहीं है ये पहले है बोल देता हूं।*
.
*कुश्ती ये एक जानलेवा खेल है। इसका इस्तेमाल अपनी रक्षा के लिए करना।*
.
*मै जो सिखाऊ उसपर पूरा भरोसा रखना। और इस खेल का नशा चढ़ जाता है आदमी को। तो सिर ठंडा रखना। समझा?"*
.
*"जी गुरुवर। समझ गया। आपकी हर बात का पालन करूंगा। मुझे आपका चेला बना लीजिए।"*
.
*मन की मुराद पूरी हो जाने के आंसू उस बच्चे की आंखो में छलक गए। उसने गुरु के पांव छू कर आशीष लिया।*
.
*"अपने एक ही चेले को सिखाना गुरुजी ने शुरू किया। मिट्टी रोंदी, मुगदुल से धूल झटकायी और इस एक हाथ के बच्चे को कैसे विद्या देनी है इसका सोचते-सोचते गुरुजी की आंख लग गई।*
.
*एक ही दांव गुरुजी ने उसे सिखाया और रोज़ उसकी ही तालीम बच्चे से करवाते रहे।*
.
*छह महीने तक रोज बस एक ही दाव। एक दिन चेले ने गुरुजी के जन्मदिन पर पांव दबाते हुए हौले से बात को छेड़ा।*
.
.
*"गुरुजी, छह महीने बीत गए, इस दांव की बारीकियां अच्छे से समझ गया हूं और कुछ नए दांव पेंच भी सिखाइए ना।"*
.
*गुरुजी वहा से उठ के चल दिए। बच्चा परेशान हो गया कि गुरु को उसने नाराज़ कर दिया।*
.
*फिर गुरुजी के बात पर भरोसा कर के वो सीखते रहा। उसने कभी नहीं पूछा कि और कुछ सीखना है।*
.
*गांव में कुश्ती की प्रतियोगिता आयोजित की गई। बड़े बड़े इनाम थे उसमे। हरेक अखाड़े के चुने हुए पहलवान प्रतियोगिता में शिरकत करने आए।*
.
*गुरुजी ने चेले को बुलाया। "कल सुबह बैल जोत के रख गाड़ी को। पास के गांव जाना है। सुबह कुश्ती लड़नी है तुझे।"*
.
*पहली दो कुश्ती इस बिना हाथ के बच्चे ने यूं जीत लिए।*
.
*जिस घोड़े के आखरी आने की उम्मीद हो और वो रेस जीत जाए तो रंग उतरता है वैसा सारे विरोधी पहलवानो का मुंह उतर गया।*
.
*देखने वाले अचरज में पड़ गए। बिना हाथ का बच्चा कुश्ती में जीत ही कैसे सकता है? कौन सिखाया इसे?"*
.
*अब तीसरे कुश्ती में सामने वाला खिलाड़ी नौसिखुआ नहीं था। पुराना जांबाज़।*
.
*पर अपने साफ सुथरे हथकंडों से और दांव का सही तोड़ देने से ये कुश्ती भी बच्चा जीत गया।*
.
*अब इस बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ गया। पूरा मैदान भी अब उसके साथ हो गया था।*
.
*मै भी जीत सकता हूं ये भावना उसे मजबूत बना रही थी।*
.
*देखते ही देखते वो अंतिम बाज़ी तक पहुंच गया।*
.
*जिस अखाड़े वाले ने उस बच्चे को इस बूढ़े उस्ताद के पास भेजा था, उस अहंकारी पहलवान का चेला ही इस बच्चे का आखरी कुश्ती में प्रतिस्पर्धी था।*
.
*ये पहलवान सरीखे उम्र का होने के बावजूद शक्ति और अनुभव से इस बच्चे से श्रेष्ठ था। कई मैदान मार लिए थे उसने।*
.
*इस बच्चे को वो मिनटों में चित कर देगा ये स्पष्ट था। पंचों ने राय मशवरा किया।*
.
*"ये कुश्ती लेना सही नहीं होगा। कुश्ती बराबरी वालो में होती है। ये कुश्ती मानवता और समानता के अनुसार रद्द किया जाता है।*
.
*इनाम दोनों में बराबरी से बांटा जाएगा।" पंचों ने अपना मंतव्य प्रकट किया।*
.
*"मै इस कल के छोकरे से कई ज्यादा अनुभवी हूं और ताकतवर भी। मै ही ये कुश्ती जीतूंगा ये बात सोलह आने सच है।*
.
*तो इस कुश्ती का विजेता मुझे बनाया जाए।" वंहा प्रतिस्पर्धी अहंकार में बोला।*
.
*"मै नया हूं और बड़े भैया से अनुभव में छोटा भी। मेरे गुरुजी ने मुझे ईमानदारी से खेलना सिखाया है।*
.
*बिना खेले जीत जाना मेरे गुरुजी की तौहीन है। मुझे खेल कर मेरे हक का जो है उसे दीजिए।*
.
*मुझे ये भीख नहीं चाहिये।" उस बांके जवान की स्वाभिमान भरी बात सुन कर जनता ने तालियों की बौछार कर दी।*
.
*ऐसी बाते सुनने को अच्छी पर नुकसान देय होती। पंच हतोत्साहित हो गए। कुछ कम ज्यादा हो गया तो?*
.
*पहले ही एक हाथ खो चुका है अपना और कुछ नुकसान ना हो जाए? मूर्ख कही का!*
.
*लड़ाई शुरू हुई।*
.
*और सभी उपस्थित अचंभित रह गए। सफाई से किए हुए वार और मौके की तलाश में बच्चे ने फेंका हुआ दांव उस बलाढ्य प्रतिस्पर्धी को झेलते नहीं बना।*
.
*वो मैदान के बाहर औंधे मुंह पड़ा था। कम से कम परिश्रम में उस नौसिखुए स्पर्धक ने उस पुराने महारथी को धूल चटा दी थी।*
.
*अखाड़े में पहुंच कर चेले ने अपना मेडल निकाल के उस्ताद के पैरो में रख दिया।*
.
*अपना सिर गुरुजी के पैरो की धूल माथे लगा कर मिट्टी से सना लिया।*
.
*"गुरुजी एक बात पूछनी थी। "*
.
*"पूछ।"*
.
*"मुझे सिर्फ एक ही दांव आता है। फिर भी मै कैसे जीता?"*
.
*"तू दो दांव सीख चुका था। इस लिए जीत गया।"*
.
*"कौन से दो दांव गुरवर ?"*
.
*पहली बात, तू ये दांव इतनी अच्छी तरह से सीख चुका था के उसमे गलती होने की गुंजाइश ही नहीं थी।*
.
*तुझे नींद में भी लड़ाता तब भी तू इस दांव में गलती नहीं करता। तुझे ये दांव आता है ये बात तेरा प्रतिद्वंदी जान चुका था,*
.
*पर तुझे सिर्फ यही दांव आता है ये बात थोड़ी उसे मालूम थी?"*
.
*"और दूसरी बात क्या थी गुरुवर ? "*
.
*"दूसरी बात ज्यादा महत्व रखती है। हरेक दांव का एक प्रतिदांव होता है! ऐसा कोई दाव नहीं है जिसका तोड़ ना हो। वैसे ही इस दांव का भी एक तोड़ था।"*
.
*"तो क्या मेरे प्रतिस्पर्धी को वो दांव मालूम नहीं होगा?"*
.
*"वो उसे मालूम था। पर वो कुछ नहीं कर सका। जानते हो क्यू?…*
.
*क्यूंकि उस तोड़ में दांव देने वाले का बाया हाथ पकड़ना पड़ता है!"*
.
*अब आपके समझ में आया होगा कि एक बिना हाथ का साधारण सा लड़का विजेता कैसे बना?*
.
*जिस बात को हम अपनी कमजोरी समझते है, उसी को जो हमारी शक्ति बना कर जीना सिखाता है, विजयी बनाता है, वो ही सच्चा गुरु है।*
.
*अंदर से हम कहीं ना कहीं कमजोर होते है, दिव्यांग होते है। उस कमजोरी को मात दे कर जीने की कला सिखाने वाला गुरु हमे चाहिए।*


                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
        धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Wednesday, June 17, 2020

महारानी मणिकर्णिका देवी,वीरांगना लक्ष्मीबाई जी की पुण्यतिथि पर समर्पित

*_उखाड़ फेका हर दुश्मन को,_*
*_जिसने झाँसी का अपमान किया.._*
*_मर्दानी की परिभाषा बन कर,_*
*_आज़ादी का पैगाम दिया.._*


*_मुर्दों में भी जान डाल दे,_*
*_उनकी ऐसी कहानी है,_*
*_वो कोई और नहीं_*
*_झांसी की रानी है._*


*_शौर्य और वीरता झलकता है लक्ष्मीबाई के नाम में,_*
*_प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की डोरी थी जिसके हाथ में._*

*_जिसने नारी के लिए अबला शब्द गढ़ा है,_*
*_शायद उसने झांसी की रानी को नहीं पढ़ा है._*

_सभी बहनों को समर्पित🤗👇🏻👇🏻_

*_अपने हौसले की एक कहानी बनाना,_*
*_हो सके तो खुद को झांसी की रानी बनाना।_*

           ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Tuesday, June 16, 2020

योगिनी एकादशी

*⛳आज है एकादशी⛳*

*"योगिनी एकादशी"*

            आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसे योगिनी एकादशी कहते हैं। आइये जानते हैं योगिनी एकादशी के महत्व और इसकी कथा के बारे में।
           योगिनी एकादशी के उपवास की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। व्रती को दशमी तिथि की रात्रि से ही तामसिक भोजन का त्याग कर सादा भोजन ग्रहण करना चाहिये और ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें। हो सके तो जमीन पर ही सोएं। प्रात:काल उठकर नित्यकर्म से निवृत होकर स्नानादि के पश्चात व्रत का संकल्प लें। फिर कुंभस्थापना कर उस पर भगवान विष्णु की मूर्ति रख उनकी पूजा करें। भगवान नारायण की मूर्ति को स्नानादि करवाकर भोग लगायें। पुष्प, धूप, दीप आदि से आरती उतारें। पूजा स्वयं भी कर सकते हैं और किसी विद्वान ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं। दिन में योगिनी एकादशी की कथा भी जरुर सुननी चाहिये। इस दिन दान कर्म करना भी बहुत कल्याणकारी रहता है। पीपल के पेड़ की पूजा भी इस दिन अवश्य करनी चाहिये। रात्रि में जागरण भी करना चाहिये। इस दिन दुर्व्यसनों से भी दूर रहना चाहिये और सात्विक जीवन जीना चाहिये।

                                *माहात्म्य*

         महाभारत काल की बात है कि एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से एकादशियों के व्रत का माहात्म्य सुन रहे थे। उन्होंनें भगवान श्री कृष्ण से कहा कि भगवन आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या महत्व है और इस एकादशी का नाम क्या है ? भगवान श्री कृष्ण ने कहा- "हे राजन ! इस एकादशी का नाम योगिनी है। समस्त जगत में जो भी इस एकादशी के दिन विधिवत उपवास रखता है प्रभु की पूजा करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। वह अपने जीवन में तमाम सुख-सुविधाओं, भोग-विलास का आनन्द लेता है और अंत काल में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। योगिनी एकादशी का यह उपवास तीनों लोकों में प्रसिद्ध है।" तब युद्धिष्ठर ने कहा प्रभु योगिनी एकादशी के महत्व को आपके मुखारबिंद से सुनकर मेरी उत्सुकता और भी बढ़ गई है कृपया इसके बारे थोड़ा विस्तार से बतायें। अब भगवान श्री कृष्ण कहने लगे- 'हे धर्मश्रेष्ठ ! मैं पुराणों में वर्णित एक कथा सुनाता हूँ उसे ध्यानपूर्वक सुनना।"

                                     *कथा*

          स्वर्गलोक की अलकापुरी नामक नगर में कुबेर नाम के राजा राज किया करते थे। वह बड़े ही नेमी-धर्मी राजा था और भगवान शिव के उपासक थे। आँधी आये तूफान आये कोई भी बाधा उन्हें भगवान शिव की पूजा करने से नहीं रोक सकती थी। भगवान शिव के पूजन के लिये उनके लिये हेम नामक एक माली फूलों की व्यवस्था करता था। वह हर रोज पूजा से पहले राजा कुबेर को फूल देकर जाया करता। हेम अपनी पत्नी विशालाक्षी से बहुत प्रेम करता था, वह बहुत सुन्दर स्त्री थी। एक दिन हेम पूजा के लिये पुष्प तो ले आया लेकिन रास्ते में उसने सोचा अभी पूजा में तो समय है क्यों न घर चला जाये, उसने आते-आते अपने घर की राह पकड़ ली। घर आने बाद अपनी पत्नी को देखकर वह कामास्कत हो गया और उसके साथ रमण करने लगा। उधर पूजा का समय बीता जा रहा था और राजा कुबेर पुष्प न आने से व्याकुल हुए जा रहे थे। जब पूजा का समय बीत गया और हेम पुष्प लेकर नहीं पहुँचा तो राजा ने अपने सैनिकों को भेजकर उसका पता लगाने को कहा। सैनिकों ने लौटकर बता दिया कि महाराज वह महापापी, महाकामी, अपनी पत्नी के साथ रमण करने में व्यस्त था। यह सुनकर तो कुबेर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उन्होंनें तुरन्त हेम को पकड़ लाने को कहा। अब हेम काँपते हुए राजा कुबेर के सामने खड़ा था। कुबेर ने हेम को क्रोधित होते हुए कहा कि हे नीच महापापी तुमने कामवश होकर भगवान शिव का अनादर किया है मैं तूझे शाप देता हूँ कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा। अब कुबेर के शाप से हेम माली भूतल पर पहुँच गया और कोढ़ग्रस्त हो गया। स्वर्गलोक में वास करते-करते उसे दुखों की अनुभूति नहीं थी। लेकिन यहाँ पृथ्वी पर भूख-प्यास के साथ-साथ एक गंभीर बीमारी कोढ़ से उसका सामना हो रहा था उसे उसके दुखों का कोई अंत नजर नहीं आ रहा था लेकिन उसने भगवान शिव की पूजा भी कर रखी थी उसके सत्कर्म ही कहिये कि वह एक दिन घूमते-घूमते मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुँच गया। इनके आश्रम की शोभा देखते ही बनती थी। ब्रह्मा की सभा के समान ही मार्कंडेय ऋषि की सभा का नजारा भी था। वह उनके चरणों में गिर पड़ा और महर्षि के पूछने पर अपनी व्यथा से उन्हें अवगत करवाया। अब ऋषि मार्केंडय ने कहा कि तुमने मुझसे सत्य बोला है इसलिये मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूँ। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष को योगिनी एकादशी होती है। इसका विधिपूर्वक व्रत यदि तुम करोगे तो तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जाएँगे। अब माली ने ऋषि को साष्टांग प्रणाम किया और उनके बताये अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस प्रकार उसे अपने शाप से छुटकारा मिला और वह फिर से अपने वास्तविक रुप में आकर अपनी स्त्री के साथ सुख से रहने लगा।
        भगवान श्री कृष्ण कथा सुनाकर युधिष्ठर से कहने लगे- "हे राजन ! 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात जितना पुण्य मिलता है उसके समान पुण्य की प्राप्ति योगिनी एकादशी का विधिपूर्वक उपवास रखने से होती है और व्रती इस लोक में सुख भोग कर उस लोक में मोक्ष को प्राप्त करता है।"
                        ----------:::×:::----------

                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

सबसे_बड़ा_दानी

#सबसे_बड़ा_दानी...🌹🌹🌹
.
एक बार की बात है कि श्री कृष्ण और अर्जुन कहीं जा रहे थे ।
.
रास्ते में अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि प्रभु, एक जिज्ञासा है मेरे मन में, अगर आज्ञा हो तो पूछूँ ?
.
श्री कृष्ण ने कहा अर्जुन, तुम मुझसे बिना किसी हिचक, कुछ भी पूछ सकते हो ।
.
तब अर्जुन ने कहा कि मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई है कि दान तो मै भी बहुत करता हूँ परंतु सभी लोग कर्ण को ही सबसे बड़ा दानी क्यों कहते हैं ?
.
यह प्रश्न सुन श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले कि आज मैं तुम्हारी यह जिज्ञासा अवश्य शांत करूंगा ।
.
श्री कृष्ण ने पास में ही स्थित दो पहाड़ियों को सोने का बना दिया ।
.
इसके बाद वह अर्जुन से बोले कि हे अर्जुन इन दोनों सोने की पहाड़ियों को तुम आस पास के गाँव वालों में बांट दो ।
.
अर्जुन प्रभु से आज्ञा ले कर तुरंत ही यह काम करने के लिए चल दिया ।
.
उसने सभी गाँव वालों को बुलाया । उनसे कहा कि वह लोग पंक्ति बना लें अब मैं आपको सोना बाटूंगा और सोना बांटना शुरू कर दिया ।
.
गाँव वालों ने अर्जुन की खूब जय जयकार करनी शुरू कर दी ।
.
अर्जुन सोना पहाड़ी में से तोड़ते गए और गाँव वालों को देते गए ।
.
लगातार दो दिन और दो रातों तक अर्जुन सोना बांटते रहे । उनमे अब तक अहंकार आ चुका था ।
.
गाँव के लोग वापस आ कर दोबारा से लाईन में लगने लगे थे । इतने समय पश्चात अर्जुन काफी थक चुके थे ।
.
जिन सोने की पहाड़ियों से अर्जुन सोना तोड़ रहे थे, उन दोनों पहाड़ियों के आकार में जरा भी कमी नहीं आई थी ।
.
उन्होंने श्री कृष्ण जी से कहा कि अब मुझसे यह काम और न हो सकेगा । मुझे थोड़ा विश्राम चाहिए ।
.
प्रभु ने कहा कि ठीक है तुम अब विश्राम करो और उन्होंने कर्ण बुला लिया ।
.
उन्होंने कर्ण से कहा कि इन दोनों पहाड़ियों का सोना इन गांव वालों में बांट दो ।
.
कर्ण तुरंत सोना बांटने चल दिये ।
.
उन्होंने गाँव वालों को बुलाया और उनसे कहा, यह सोना आप लोगों का है, जिसको जितना सोना चाहिए वह यहां से ले जाये । ऐसा कह कर कर्ण वहां से चले गए ।
.
यह देख कर अर्जुन ने कहा कि ऐसा करने का विचार मेरे मन में क्यों नही आया ?
.
इस पर श्री कृष्ण ने जवाब दिया कि तुम्हे सोने से मोह हो गया था। तुम खुद यह निर्णय कर रहे थे कि किस गाँव वाले की कितनी जरूरत है ।
.
उतना ही सोना तुम पहाड़ी में से खोद कर उन्हे दे रहे थे । तुम में दाता होने का भाव आ गया था ।
.
दूसरी तरफ कर्ण ने ऐसा नहीं किया । वह सारा सोना गाँव वालों को देकर वहां से चले गए ।
.
वह नहीं चाहते थे कि उनके सामने कोई उनकी जय जयकार करे या प्रशंसा करे ।
.
उनके पीठ पीछे भी लोग क्या कहते हैं उस से उनको कोई फर्क नहीं पड़ता ।
.
यह उस आदमी की निशानी है जिसे आत्मज्ञान हांसिल हो चुका है।
.
इस तरह श्री कृष्ण ने खूबसूरत तरीके से अर्जुन के प्रश्न का उत्तर दिया, अर्जुन को भी अब अपने प्रश्न का उत्तर मिल चुका था ।
****
दान देने के बदले में धन्यवाद या बधाई की उम्मीद करना भी उपहार नहीं सौदा कहलाता है ।
.
यदि हम किसी को कुछ दान या सहयोग करना चाहते हैं तो हमे यह बिना किसी उम्मीद या आशा के करना चाहिए । ताकि यह हमारा सत्कर्म हो, न कि हमारा अहंकार।

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

छंद व्याकरण

Hindi Grammar
Chhand (Metres)(छन्द)

 
प्रमुख वर्णिक छंद
(1) इंद्रवज्रा (2) उपेन्द्रवज्रा (3) तोटक (4) वंशस्थ (5) द्रुतविलंबित (6) भुजंगप्रयात (7) वसंततिलका
(8) मालिनी (9) मंदाक्रांता (10) शिखरिणी (11) शार्दूलविक्रीडित (12) सवैया (13) कवित्त

(1) इंद्रवज्रा- प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं। इनका क्रम है- तगण, नगण, जगण तथा अंत में दो गुरु (ऽऽ ।, । । ।, । ऽ।, ऽऽ) । यथा-

तूही बसा है मन में हमारे।
तू ही रमा है इस विश्र्व में भी।।
तेरी छटा है मनमुग्धकारी।
पापापहारी भवतापहारी।।

(2) उपेन्द्रवज्रा- प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं। क्रम इस प्रकार है- जगण, तगण, जगण और अंत में दो गुरु (। ऽ।, ऽऽ ।, । ऽ।, ऽऽ) । यथा-

बड़ा कि छोटा कुछ काम कीजै।
परन्तु पूर्वापर सोच लीजै।।
बिना विचारे यदि काम होगा।।
कभी न अच्छा परिणाम होगा।।

(3) तोटक- प्रत्येक चरण में चार सगण ( । । ऽ) अर्थात १२ वर्ण होते हैं। यथा -

जय राम सदा सुखधाम हरे।
रघुनायक सायक-चाप धरे।।
भवबारन दारन सिंह प्रभो।
गुणसागर नागर नाथ विभो।।

(4) वंशस्थ- प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं। क्रम इस प्रकार है- जगण, तगण, जगण और रगण (। ऽ।, ऽऽ ।, । ऽ।, ऽ। ऽ) । यथा-

जहाँ लगा जो जिस कार्य बीच था।
उसे वहाँ ही वह छोड़ दौड़ता।।
समीप आया रथ के प्रमत्त सा।
विलोकन को घनश्याम माधुरी।।

(5) द्रुतविलम्बित- इस छन्द के प्रत्येक चरण में एक नगण (।।।), दो भगण (ऽ।।, ऽ।।)और एक रगण (ऽ।ऽ) के क्रम से 12 वर्ण होते हैं। उदाहरण-

न जिसमें कुछ पौरुष हो यहाँ,
सफलता वह पा सकता कहाँ ?

(6) भुजंगप्रयात- इसके प्रत्येक चरण में १२ वर्ण होते हैं। इसमें चार यगण होते हैं। यथा-

अरी व्यर्थ है व्यंजनों की बड़ाई।
हटा थाल तू क्यों इसे साथ लाई।।
वही पार है जो बिना भूख भावै।
बता किंतु तू ही उसे कौन खावै।।

(7) वसंततिलका- इसके प्रत्येक चरण में 14 वर्ण होते हैं। वर्णो के क्रम में तगण ( ऽऽ।), भगण (ऽ।।),
दो जगण (। ऽ।, । ऽ।) तथा दो गुरु ( ऽऽ) रहते हैं। जैसे-

रे क्रोध जो सतत अग्नि बिना जलावे।
भस्मावशेष नर के तन को बनावे।।
ऐसा न और तुझ-सा जग बीच पाया।
हारे विलोक हम किंतु न दृष्टि आया।

(8) मालिनी- इस छन्द में । ऽ वर्ण होते हैं तथा आठवें व सातवें वर्ण पर यति होती है। वर्णों के क्रम में
दो नगण (।।।, ।।।), एक मगन (ऽऽऽ) तथा दो यगण (।ऽऽ, ।ऽऽ) होते हैं; जैसे-

पल-पल जिसके मैं पन्थ को देखती थी,
निशिदिन जिसके ही ध्यान में थी बिताती।

(9) मन्दाक्रान्ता- इस छन्द के प्रत्येक चरण में एक मगण (ऽऽऽ), एक भगण (ऽ।।), एक नगण (।।।), दो तगण (ऽऽ।, ऽऽ।) तथा दो गुरु (ऽऽ) मिलाकर 17 वर्ण होते हैं। चौथे, छठवें तथा सातवें वर्ण पर यति होती है; जैसे-

तारे डूबे, तम टल गया, छा गई व्योम-लाली।
पक्षी बोले, तमचर, जगे, ज्योति फैली दिशा में।।
शाखा डोली तरु निचय की, कंज फूले सरों के।
धीरे-धीरे दिनकर कढ़े, तामसी रात बीती।।

(10) शिखरिणी- इस छन्द के प्रत्येक चरण में एक यगण (।ऽऽ), एक मगण (ऽऽऽ), एक नगण (।।।), एक सगण (।।ऽ), एक भगण ( ऽ।।), एक लघु (।) एवं एक गुरु (ऽ) होता है। इसमें 17 वर्ण तथा छः वर्णों पर यति होता है; जैसे-

मनोभावों के हैं शतदल जहाँ शोभित सदा।
कलाहंस श्रेणी सरस रस-क्रीड़ा-निरत है।।
जहाँ हत्तंत्री की स्वरलहरिका नित्य उठती।
पधारो हे वाणी, बनकर वहाँ मानसप्रिया।।

(11) शार्दूलविक्रीडित- इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं। क्रम इस प्रकार है- मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण, और अंत में गुरु। यति 12, 7 वर्णों पर होती है। यथा-

सायंकाल हवा समुद्र-तट की आरोग्यकारी यहाँ।
प्रायः शिक्षित सभ्य लोग नित ही जाते इसी से वहाँ।।
बैठे हास्य-विनोद-मोद करते सानंद वे दो घड़ी।
सो शोभा उस दृश्य की ह्रदय को है तृप्ति देती बड़ी।।

(12) सुन्दरी सवैया- जिन छंदों के प्रत्येक चरण में 22 से 26 वर्ण होते है, उन्हें 'सवैया' कहते हैं।

यह बड़ा ही मधुर एवं मोहक छंद है। इसका प्रयोग तुलसी, रसखान, मतिराम, भूषण, देव, घनानंद तथा भारतेंदु जैसे कवियों ने किया है। इसके अनेक प्रकार और अनेक नाम हैं; जैसे- मत्तगयंद, दुर्मिल, किरीट, मदिरा, सुंदरी, चकोर आदि।

इस छन्द के प्रत्येक चरण में आठ सगण (।।ऽ,।।ऽ,।।ऽ,।।ऽ,।।ऽ,।।ऽ,।।ऽ,।।ऽ) और अन्त में एक गुरु (ऽ) मिलाकर 25 वर्ण होते है; जैसे-

मानुष हों तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हों तो कहा बसु मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।
पाहन हों तो वही गिरि को जो धरयौ करछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हों तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।।

(13) कवित्त- यह वर्णिक छंद है। इसमें गणविधान नहीं होता, इसलिए इसे 'मुक्त वर्णिक छंद' भी कहते हैं।

कवित्त के प्रत्येक चरण में 31 से 33 वर्ण होते हैं। इसके अनेक भेद हैं जिन्हें मनहरण, रूपघनाक्षरी, देवघनाक्षरी आदि नाम से पुकारते हैं।

मनहरण कवित्त का एक उदाहरण लें। इसके प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं। अंत में गुरु होता है। 16, 15 वर्णो पर यति होती है। जैसे-

इंद्र जिमि जंभ पर बाडव सुअंभ पर,
रावण सदंभ पर रघुकुलराज हैं।
पौन वारिवाह पर संभु रतिनाह पर,
ज्यों सहस्त्रबाहु पर राम द्विजराज हैं।
दावा द्रुमदंड पर चीता मृगझुंड पर,
भूषण वितुंड पर जैसे मृगराज हैं।
तेज तम-अंस पर कान्ह जिमि कंस पर,
प्रमुख मात्रिक छन्द
(1) चौपाई- यह मात्रिक सम छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती है। चरण के अन्त में जगण (।ऽ।) और तगण (ऽऽ।) का आना वर्जित है। तुक पहले चरण की दूसरे से और तीसरे की चौथे से मिलती है। यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है। उदाहरणार्थ-

नित नूतन मंगल पुर माहीं। निमिष सरिस दिन जामिनि जाहीं।।
बड़े भोर भूपतिमनि जागे। जाचक गुनगन गावन लागे ।।

गुरु पद रज मृदु मंजुल मंजन। नयन अमिय दृग दोष विभंजन।।
तेहि करि विमल विवेक विलोचन। बरनउँ रामचरित भवमोचन ।।

(2) रोला (काव्यछन्द)- यह मात्रिक सम छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 मात्राओं पर यति ही अधिक प्रचलित है। प्रत्येक चरण के अन्त में दो गुरु या दो लघु वर्ण होते हैं। दो-दो चरणों में तुक आवश्यक है। उदाहरणार्थ-

जो जगहित पर प्राण निछावर है कर पाता।
जिसका तन है किसी लोकहित में लग जाता ।।

(3) हरिगीतिका- यह मात्रिक सम छन्द है। इस छन्द के प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं। 16 और 12 मात्राओं पर यति तथा अन्त में लघु-गुरु का प्रयोग ही अधिक प्रचलित है। उदाहरणार्थ-

कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए ।।

(4) बरवै- यह मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। इस छन्द के विषम चरणों (प्रथम और तृतीय) में 12 और सम चरणों (दूसरे और चौथे) में 7 मात्राएँ होती है। सम चरणों के अन्त में जगण या तगण आने से इस छन्द में मिठास बढ़ती है। यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है। जैसे-

वाम अंग शिव शोभित, शिवा उदार।
सरद सुवारिद में जनु, तड़ित बिहार ।।

(5) दोहा- यह अर्द्धसममात्रिक छन्द है। इसमें 24 मात्राएँ होती हैं। इसके विषम चरण (प्रथम व तृतीय) में 13-13 तथा सम चरण (द्वितीय व चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं; जैसे-

''मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाँई परे, स्याम हरित दुति होय।।''

(6) सोरठा- यह भी अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। यह दोहा का विलोम है, इसके प्रथम व तृतीय चरण में 11-11 और द्वितीय व चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती है; जैसे-

''सुनि केवट के बैन, प्रेम लपेटे अटपटे।
बिहँसे करुना ऐन चितइ जानकी लखन तन।।''

(7) वीर- इसके प्रत्येक चरण में 31 मात्राएँ होती हैं। 16, 15 पर यति पड़ती है। अंत में गुरु-लघु का विधान है। 'वीर' को ही 'आल्हा' कहते हैं।

सुमिरि भवानी जगदंबा को, श्री शारद के चरन मनाय।
आदि सरस्वती तुमको ध्यावौं, माता कंठ विराजौ आय।।
ज्योति बखानौं जगदंबा कै, जिनकी कला बरनि ना जाय।
शरच्चंद्र सम आनन राजै, अति छबि अंग-अंग रहि जाय।।

(8) उल्लाला- इसके पहले और तीसरे चरणों में 15-15 तथा दूसरे और चौथे चरणों में 13-13 मात्राएँ होती हैं। यथा-

हे शरणदायिनी देवि तू, करती सबका त्राण है।
हे मातृभूमि ! संतान हम, तू जननी, तू प्राण है।।

(9) कुंडलिया- यह 'संयुक्तमात्रिक छंद' है। इसका निर्माण दो मात्रिक छंदों-दोहा और रोला-के योग से होता है। पहले एक दोहा रख लें और उसके बाद दोहा के चौथे चरण से आरंभ कर यदि एक रोला रख दिया जाए तो वही कुंडलिया छंद बन जाता है। जिस शब्द से कुंडलिया प्रारंभ हो, समाप्ति में भी वही शब्द रहना चाहिए- यह नियम है, किंतु इधर इस नियम का पालन कुछ लोग छोड़ चुके हैं। दोहा के प्रथम और द्वितीय चरणों में (13 + 11) 24 मात्राएँ होती हैं तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों (13 + 11) में भी 24 मात्राएँ होती हैं। इस प्रकार दोहे के चार चरण कुंडलिया के दो चरण बन जाते हैं। रोला सममात्रिक छंद हैं जिसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। प्रारंभ के दो चरणों में 13 और 11 मात्राएँ पर यति होती है तथा अंत के चार चरणों में 11 और 13 मात्राओं पर।

हिन्दी में गिरिधर कविराय कुंडलियों के लिए विशेष प्रसिद्ध हैं। वैसे तुलसी, केशव आदि ने भी कुछ कुंडलियाँ लिखी हैं। उदाहरण देखें-

दौलत पाय न कीजिए, सपने में अभिमान।
चंचल जल दिन चारि कौ, ठाउँ न रहत निदान।।
ठाउँ न रहत निदान, जियन जग में जस लीजै।
मीठे बचन सुनाय, विनय सबही की कीजै।।
कह गिरिधर कविराय, अरे यह सब घर तौलत।
पाहुन निसिदिन चारि, रहत सब ही के दौलत।।

(10) छप्पय- यह संयुक्तमात्रिक छंद है। इसका निर्माण मात्रिक छंदों- रोला और उल्लाला- के योग से होता है। पहले रोला को रख लें जिसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होंगी। इसके बाद एक उल्लाला को रखें। उल्लाला के प्रथम तथा द्वितीय चरणों में (15 + 13) 28 मात्राएँ होंगी तथा तृतीय और चतुर्थ चरणों में भी (15 + 13) 28 मात्राएँ होंगी। रोला के चार चरण तथा उल्लाला के चार चरण- जो यहाँ दो चरण हो गये हैं- मिलकर छप्पय के छह चरण अर्थात छह पाद या पाँव हो जाएँगे। प्रथम चार चरणों में 11, 13 तथा अंत के दो चरणों में 14, 13 मात्राओं पर यति होगी।

जिस प्रकार तुलसी की चौपाइयाँ, बिहारी के दोहे, रसखान के सवैये, पद्माकर के कवित्त तथा गिरिधर कविराय की कुंडलिया प्रसिद्ध हैं; उसी प्रकार नाभादास के छप्पय प्रसिद्ध हैं। उदाहरण के लिए मैथलीशरण गुप्त का एक छप्पय देखें-

जिसकी रज में लोट-पोट कर बड़े हुए हैं।
घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़े हुए हैं।।
परमहंस सम बाल्यकाल में सब सुख पाये।
जिसके कारण धूल-भरे हीरे कहलाये।।
हम खेले कूदे हर्षयुत, जिसकी प्यारी गोद में।
हे मातृभूमि ! तुमको निरख मग्न क्यों न हों मोद में।।

मुक्तछंद
मुक्तछंद में न तो वर्णों का बंधन होता है और न मात्राओं का ही। कवि का भावोच्छ्वास काव्य की एक पूर्ण इकाई में व्यक्त हो जाता है। मुक्तछंद पर्वत के अंतस्तल से फूटता स्रोत है, जो अपने लिए मार्ग बना लेता है। मुक्त छंद के लिए बने-बनाये ढाँचे अनुपयुक्त होते हैं। उदाहरण के लिए एक मुक्तछंद देखें-

चितकबरे चाँद को छेड़ो मत
शकुंतला-लालित-मृगछौना-सा अलबेला है।
प्रणय के प्रथम चुंबन-सा
लुके-छिपे फेंके इशारे-सा कितना भोला है।
टाँग रहा किरणों के झालर शयनकक्ष में चौबारा
ओ मत्सरी, विद्वेषी ! द्वेषानल में जलना अशोभन है।
दक्षिण हस्त से यदि रहोगे कार्यरत
तो पहनायेगा चाँद कभी न कभी जयमाला!!

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Wednesday, June 10, 2020

व्यक्तिगत स्वार्थ पतन का कारण बनता है..

*व्यक्तिगत स्वार्थ पतन का कारण बनता है..*
एक दिन एक बहू ने गलती से यज्ञवेदी में थूक दिया  !!! सफाई कर रही थी, मुंह में सुपारी थी..... पीक आया तो वेदी में थूक दिया पर उसे यह देखकरआश्चर्य हुआ कि उतना थूक तत्काल स्वर्ण में बदल गया है।

अब तो वह प्रतिदिन जान बूझकर वेदी में थूकने लगी। और उसके पास धीरे धीरे स्वर्ण बढ़ने लगा। महिलाओं में बात तेजी से फैलती है। कई और महिलाएं भी अपने अपने घर में बनी यज्ञवेदी में थूक-थूक कर सोना उत्पादन करने लगी। धीरे धीरे पूरे गांव में यह सामान्य चलन हो गया, सिवाय एक महिला के...

उस महिला को भी अनेक दूसरी महिलाओं ने उकसाया..... समझाया..... “अरी..... तू क्यों नहीँ थूकती ?” “महिला बोली..... जी बात यह है कि मै अपने पति की अनुमति बिना यह कार्य हरगिज नहीँ करूंगी और जहाँ तक मुझे ज्ञात है वे इसकी अनुमति कभी भी नहीँ देंगे।”

किन्तु ग्रामीण महिलाओं ने ऐसा वातावरण बनाया..... कि आखिर उसने एक रात डरते डरते अपने ‎पति‬ को पूछ ही लिया। “खबरदार जो ऐसा किया तो..... !! यज्ञवेदी क्या थूकने की चीज है ?” पति की गरजदार चेतावनी के आगे बेबस वह महिला चुप हो गई.... पर जैसा वातावरण था और जो चर्चाएं होती थी, उनसे वह साध्वी स्त्री बहुत व्यथित रहने लगी।

खास कर उसके सूने गले को लक्ष्य कर अन्य स्त्रियां अपने नए नए कण्ठ-हार दिखाती तो वह अन्तर्द्वन्द में घुलने लगी। पति की व्यस्तता और स्त्रियों के उलाहने उसे धर्मसंकट में डाल देते। वह सोचती थी कि -“यह शायद मेरा दुर्भाग्य है..... अथवा कोई पूर्वजन्म का पाप..... कि एक सती स्त्री होते हुए भी मुझे एक रत्ती सोने के लिए भी तरसना पड़ता है।”

“शायद यह मेरे पति का कोई गलत निर्णय है।” “ओह  !!!  इस धर्माचरण ने मुझे दिया ही क्या है ?” “जिस नियम के पालन से ‎दिल‬ कष्ट पाता रहे। उसका पालन क्यों करूं ?” ...और हुआ यह कि वह बीमार रहने लगी। ‎

पतिदेव‬ इस रोग को ताड़ गए। उन्होंने एक दिन ब्रह्म मुहूर्त में ही सपरिवार ग्राम त्यागने का निश्चय किया। गाड़ी में सारा सामान डालकर वे रवाना हो गए। सूर्योदय से पहले पहले ही वे बहुत दूर निकल जाना चाहते थे।

किन्तु..... अरे   !!!  यह क्या..... ??? ज्यों ही वे गांव की कांकड़ (सीमा) से बाहर निकले। पीछे भयानक विस्फोट हुआ। पूरा गांव धू धू कर जल रहा था।

सज्जन दम्पत्ति अवाक् रह गए और उस स्त्री को अपने पति का महत्त्व समझ आ गया। वास्तव में..... इतने दिन गांव बचा रहा, तो केवल इस कारण..... कि धर्म आचरण करने वाला उसका परिवार, गांव की परिधि में था।

*धर्माचरण करते रहे..... कुछ पाने के लालच में इंसान बहुत कुछ खो बैठता है......इसलिए लालच से बचें..... न जाने किसके भाग्य से आपका जीवन सुखमय व सुरक्षित है परहित धर्म का भी पालन करते रहिए क्योंकि.....व्यक्तिगत स्वार्थ पतन का कारण बनता है..*

*सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की शुभ मंगल कामना🌸🌼🙏🏻🌼🌸*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

स्त्री का सम्मान


*(((( स्त्री का सम्मान ))))*
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
*सप्तऋषियों में एक ऋषि भृगु थे, वो स्त्रियों को तुच्छ समझते थे।*
.
*वो शिवजी को गुरुतुल्य मानते थे, किन्तु माँ पार्वती को वो अनदेखा करते थे। एक तरह से वो माँ को भी आम स्त्रियों की तरह साधारण और तुच्छ ही समझते थे।*
.
*महादेव भृगु के इस स्वभाव से चिंतित और खिन्न थे।* 
.
*एक दिन शिव जी ने माता से कहा, आज ज्ञान सभा में आप भी चले। माँ शिव जी के इस प्रस्ताव को स्वीकार की और ज्ञान सभा में शिव जी के साथ विराजमान हो गई।*
.
*सभी ऋषिगण और देवताओ ने माँ और परमपिता को नमन किया और उनकी प्रदक्षिणा की और अपना-अपना स्थान ग्रहण किया*..*
.
*किन्तु भृगु माँ और शिव जी को साथ देख कर थोड़े चिंतित थे, उन्हें समझ नही आ रहा था कि वो शिव जी की प्रदक्षिणा कैसे करे।*
.
*बहुत विचारने के बाद भृगु ने महादेव जी से कहा कि वो पृथक खड़े हो जाये।*
.
*शिव जी जानते थे भृगु के मन की बात।*
.
*वो माँ को देखे, माता उनके मन की बात पढ़ ली और वो शिव जी के आधे अंग से जुड़ गई और अर्धनारीश्वर रूप में विराजमान हो गई।*
.
*अब तो भृगु और परेशान, कुछ पल सोचने के बाद भृगु ने एक राह निकाली।*
.
*भवरें का रूप लेकर शिवजी के जटा की परिक्रमा की और अपने स्थान पर खड़े हो गए।*
.
*माता को भृगु के ओछी सोच पे क्रोध आ गया। उन्होंने भृगु से कहा- भृगु तुम्हे स्त्रियों से इतना ही परहेज है तो क्यूँ न तुम्हारे में से स्त्री शक्ति को पृथक कर दिया जाये.*
.
*और माँ ने भृगु से स्त्रीत्व को अलग कर दिया।*
.
*अब भृगु न तो जीवितों में थे न मृत थे। उन्हें अपार पीड़ा हो रही थी..*
.
*वो माँ से क्षमा याचना करने लगे.*. 
.
*तब शिव जी ने माँ से भृगु को क्षमा करने को कहा।*
.
*माँ ने उन्हें क्षमा किया और बोली - संसार में स्त्री शक्ति के बिना कुछ भी नही। बिना स्त्री के प्रकृति भी नही पुरुष भी नही।*
.
*दोनों का होना अनिवार्य है और जो स्त्रियों को सम्मान नही देता वो जीने का अधिकारी नही।*
.
*आज संसार में अनेकों ऐसे सोच वाले लोग हैं। उन्हें इस प्रसंग से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।* 
.
*वो स्त्रियों से उनका सम्मान न छीने। खुद जिए और स्त्रियों के लिए भी सुखद संसार की व्यवस्था बनाए रखने में योगदान दें।*

*सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की शुभ मंगल कामना🌸🌼🙏🏻🌼🌸*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

मानवता से जो पूर्ण हो वही मनुष्य कहलाता है

मानवता से जो पूर्ण हो, वही मनुष्य कहलाता

एक ब्राह्मण यात्रा करते-करते किसी नगर से गुजरा बड़े-बड़े महल एवं अट्टालिकाओं को देखकर ब्राह्मण भिक्षा माँगने गया किन्तु किसी ने भी उसे दो मुट्ठी अऩ्न नहीं दिया आखिर दोपहर हो गयी ब्राह्मण दुःखी होकर अपने भाग्य को कोसता हुआ जा रहा थाः “कैसा मेरा दुर्भाग्य है  इतने बड़े नगर में मुझे खाने के लिए दो मुट्ठी अन्न तक न मिला ? रोटी बना कर खाने के लिए दो मुट्ठी आटा तक न मिला ?

इतने में एक सिद्ध संत की निगाह उस पर पड़ी उन्होंने ब्राह्मण की बड़बड़ाहट सुन ली वे बड़े पहुँचे हुए संत थे उन्होंने कहाः

“ब्राह्मण  तुम मनुष्य से भिक्षा माँगो, पशु क्या जानें भिक्षा देना ?”

ब्राह्मण दंग रह गया और कहने लगाः “हे महात्मन्  आप क्या कह रहे हैं ? बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में रहने वाले मनुष्यों से ही मैंने भिक्षा माँगी है”

संतः “नहीं ब्राह्मण मनुष्य शरीर में दिखने वाले वे लोग भीतर से मनुष्य नहीं हैं अभी भी वे पिछले जन्म के हिसाब ही जी रहे हैं कोई शेर की योनी से आया है तो कोई कुत्ते   की योनी से आया है, कोई हिरण की से आया है तो कोई गाय या भैंस की योनी से आया है उन की आकृति मानव-शरीर की जरूर है किन्तु अभी तक उन में मनुष्यत्व निखरा नहीं है और जब तक मनुष्यत्व नहीं निखरता, तब तक दूसरे मनुष्य की पीड़ा का पता नहीं चलता. ‘दूसरे में भी मेरा ही दिलबर ही है’ यह ज्ञान नहीं होता तुम ने मनुष्यों से नहीं, पशुओं से भिक्षा माँगी है”

ब्राह्मण का चेहरा  दुःख रहा था ब्राह्मण का चेहरा इन्कार की खबरें दे रहा था सिद्धपुरुष तो दूरदृष्टि के धनी होते हैं उन्होंने कहाः “देख ब्राह्मण मैं तुझे यह चश्मा देता हूँ इस चश्मे को पहन कर जा और कोई भी मनुष्य दिखे, उस से भिक्षा माँग फिर देख, क्या होता है”

ब्राह्मण जहाँ पहले गया था, वहीं पुनः गया योगसिद्ध कला वाला चश्मा पहनकर गौर से देखाः ‘ओहोऽऽऽऽ…. वाकई कोई कुत्ता है कोई बिल्ली है.  तो कोई बघेरा है आकृति तो मनुष्य की है लेकिन संस्कार पशुओं के हैं मनुष्य होने पर भी मनुष्यत्व के संस्कार नहीं हैं’ घूमते-घूमते वह ब्राह्मण थोड़ा सा आगे गया तो देखा कि एक मोची जूते सिल रहा है ब्राह्मण ने उसे गौर से देखा तो उस में मनुष्यत्व का निखार पाया

ब्राह्मण ने उस के पास जाकर कहाः “भाई तेरा धंधा तो बहुत हल्का है औऱ मैं हूँ ब्राह्मण रीति रिवाज एवं कर्मकाण्ड को बड़ी चुस्ती से पालता हूँ मुझे बड़ी भूख लगी है लेकिन तेरे हाथ का नहीं खाऊँगा फिर भी मैं तुझसे माँगता हूँ क्योंकि मुझे तुझमें मनुष्यत्व दिखा है”

उस मोची की आँखों से टप-टप आँसू बरसने लगे वह बोलाः “हे प्रभु  आप भूखे हैं ? हे मेरे रब  आप भूखे हैं ? इतनी देर आप कहाँ थे ?”

यह कहकर मोची उठा एवं जूते सिलकर टका, आना-दो आना वगैरह जो इकट्ठे किये थे, उस चिल्लर ( रेज़गारी ) को लेकर हलवाई की दुकान पर पहुँचा और बोलाः “हे हलवाई  मेरे इन भूखे भगवान की सेवा कर लो ये चिल्लर यहाँ रखता हूँ जो कुछ भी सब्जी-पराँठे-पूरी आदि दे सकते हो, वह इन्हें दे दो मैं अभी जाता हूँ”

यह कहकर मोची भागा घर जाकर अपने हाथ से बनाई हुई एक जोड़ी जूती ले आया एवं चौराहे पर उसे बेचने के लिए खड़ा हो गया

उस राज्य का राजा जूतियों का बड़ा शौकीन था उस दिन भी उस ने कई तरह की जूतियाँ पहनीं किंतु किसी की बनावट उसे पसंद नहीं आयी तो किसी का नाप नहीं आया दो-पाँच बार प्रयत्न करने पर भी राजा को कोई पसंद नहीं आयी तो मंत्री से क्रुद्ध होकर बोलाः “अगर इस बार ढंग की जूती लाया तो जूती वाले को इनाम दूँगा और ठीक नहीं लाया तो मंत्री के बच्चे तेरी खबर ले लूँगा”

दैव योग से मंत्री की नज़र इस मोची के रूप में खड़े असली मानव पर पड़ गयी जिस में मानवता खिली थी, जिस की आँखों में कुछ प्रेम के भाव थे, चित्त में दया-करूणा थी,  ब्राह्मण के संग का थोड़ा रंग लगा था मंत्री ने मोची से जूती ले ली एवं राजा के पास ले गया राजा को वह जूती एकदम ‘फिट’ आ गयी, मानो वह जूती राजा के नाप की ही बनी थी राजा ने कहाः “ऐसी जूती तो मैंने पहली बार ही पहन रहा हूँ किस मोची ने बनाई है यह जूती ?”

मंत्री बोला  “हुजूर  यह मोची बाहर ही खड़ा है”

मोची को बुलाया गया उस को देखकर राजा की भी मानवता थोड़ी खिली राजा ने कहाः “जूती के तो पाँच रूपये होते हैं किन्तु यह पाँच रूपयों वाली नहीं, पाँच सौ रूपयों वाली जूती है जूती बनाने वाले को पाँच सौ और जूती के पाँच सौ, कुल एक हजार रूपये इसको दे दो”

मोची बोलाः “राजा साहिब तनिक ठहरिये यह जूती मेरी नहीं है, जिसकी है उसे मैं अभी ले आता हूँ”

मोची जाकर विनयपूर्वक ब्राह्मण को राजा के पास ले आया एवं राजा से बोलाः “राजा साहब  यह जूती इन्हीं की है”

राजा को आश्चर्य हुआ वह बोलाः “यह तो ब्राह्मण है इस की जूती कैसे ?”

राजा ने ब्राह्मण से पूछा तो ब्राह्मण ने कहा मैं तो ब्राह्मण हूँ यात्रा करने निकला हूँ”

राजाः “मोची जूती तो तुम बेच रहे थे इस ब्राह्मण ने जूती कब खरीदी और बेची ?”

मोची ने कहाः “राजन्  मैंने मन में ही संकल्प कर लिया था कि जूती की जो रकम आयेगी वह इन ब्राह्मणदेव की होगी जब रकम इन की है तो मैं इन रूपयों को कैसे ले सकता हूँ ? इसीलिए मैं इन्हें ले आया हूँ न जाने किसी जन्म में मैंने दान करने का संकल्प किया होगा और मुकर गया होऊँगा तभी तो यह मोची का चोला मिला है अब भी यदि मुकर जाऊँ तो तो न जाने मेरी कैसी दुर्गति हो ? इसीलिए राजन्  ये रूपये मेरे नहीं हुए मेरे मन में आ गया था कि इस जूती की रकम इनके लिए होगी फिर पाँच रूपये मिलते तो भी इनके होते और एक हजार मिल रहे हैं तो भी इनके ही हैं हो सकता है मेरा मन बेईमान हो जाता इसीलिए मैंने रूपयों को नहीं छुआ और असली अधिकारी को ले आया”

राजा ने आश्चर्य चकित होकर ब्राह्मण से पूछाः “ब्राह्मण मोची से तुम्हारा परिचय कैसे हुआ ?”

ब्राह्मण ने सारी आप बीती सुनाते हुए सिद्ध पुरुष के चश्मे वाली  आप के राज्य में पशुओं के दीदार तो बहुत हुए लेकिन मनुष्यत्व का विकास इस मोची में ही नज़र आया”

राजा ने कौतूहलवश कहाः “लाओ, वह चश्मा जरा हम भी देखें”

राजा ने चश्मा लगाकर देखा तो दरबारी वगैरह में उसे भी कोई सियार दिखा तो कोई हिरण, कोई बंदर दिखा तो कोई रीछ राजा दंग रह गया कि यह तो पशुओं का दरबार भरा पड़ा है  उसे हुआ कि ये सब पशु हैं तो मैं कौन हूँ ? उस ने आईना मँगवाया एवं उसमें अपना चेहरा देखा तो शेर  उस के आश्चर्य की सीमा न रही ‘ ये सारे जंगल के प्राणी और मैं जंगल का राजा शेर यहाँ भी इनका राजा बना बैठा हूँ ’ राजा ने कहाः “ब्राह्मणदेव योगी महाराज का यह चश्मा तो बड़ा गज़ब का है  वे योगी महाराज कहाँ होंगे ?”

ब्राह्मणः “वे तो कहीं चले गये ऐसे महापुरुष कभी-कभी ही और बड़ी कठिनाई से मिलते हैं”

श्रद्धावान ही ऐसे महापुरुषों से लाभ उठा पाते हैं, बाकी तो जो मनुष्य के चोले में पशु के समान हैं वे महापुरुष के निकट रहकर भी अपनी पशुता नहीं छोड़ पाते

ब्राह्मण ने आगे कहाः ‘राजन्  अब तो बिना चश्मे के भी मनुष्यत्व को परखा जा सकता है व्यक्ति के व्यवहार को देखकर ही पता चल सकता है कि वह किस योनि से आया है एक मेहनत करे और दूसरा उस पर हक जताये तो समझ लो कि वह सर्प योनि से आया है क्योंकि बिल खोदने की मेहनत तो चूहा करता है लेकिन सर्प उस को मारकर बल पर अपना अधिकार जमा बैठता है”

अब इस चश्मे के बिना भी विवेक का चश्मा काम कर सकता है और दूसरे को देखें उसकी अपेक्षा स्वयं को ही देखें कि हम सर्पयोनि से आये हैं कि शेर की योनि से आये हैं या सचमुच में हम में मनुष्यता खिली है ? यदि पशुता बाकी है तो वह भी मनुष्यता में बदल सकती है कैसे ?

तुलसीदाज जी ने कहा हैः

बिगड़ी जनम अनेक की सुधरे अब और आजु

तुलसी होई राम को रामभजि तजि कुसमाजु

कुसंस्कारों को छोड़ दें… बस अपने कुसंस्कार आप निकालेंगे तो ही निकलेंगे अपने भीतर छिपे हुए पशुत्व को आप निकालेंगे तो ही निकलेगा यह भी तब संभव होगा जब आप अपने समय की कीमत समझेंगे मनुष्यत्व आये तो एक-एक पल को सार्थक किये बिना आप चुप नहीं बैठेंगे पशु अपना समय ऐसे ही गँवाता है पशुत्व के संस्कार पड़े रहेंगे तो आपका समय बिगड़ेगा अतः पशुत्व के संस्कारों को आप निकालिये एवं मनुष्यत्व के संस्कारों को उभारिये फिर सिद्धपुरुष का चश्मा नहीं, वरन् अपने विवेक का चश्मा ही कार्य करेगा और इस विवेक के चश्मे को पाने की युक्ति मिलती है सत्संग से

मानवता से जो पूर्ण हो, वही मनुष्य कहलाता

बिन मानवता के मानव भी, पशुतुल्य रह  जाता है

*सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की शुभ मंगल कामना🌸🌼🙏🏻🌼🌸*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

बंटवारा-एक शानदार फैसला

📌 *बटवारा - एक शानदार फैसला*   

पिता -           अमर चंद
बड़ा पुत्र -       राजेश
मजला पुत्र -    सुरेश
छोटा पुत्र -      मुकेश

*राजेश -*
"पिताजी  ! पंचायत इकठ्ठी हो गई, अब बँटवारा कर दो।" 

*सरपंच -*
"जब साथ में निबाह न हो तो औलाद को अलग कर देना ही ठीक है, अब यह बताओ तुम किस बेटे के साथ रहोगे ?" 

(सरपंच ने अमरचंद जी से पूछा।)

*राजेश  -*
"अरे इसमें क्या पूछना, चार महीने पिताजी मेरे साथ रहेंगे और चार महीने मंझले के पास चार महीने छोटे के पास रहेंगे।"

*सरपंच*
" चलो तुम्हारा तो फैसला हो गया, अब करें जायदाद का बँटवारा !" 

*अमर चंद -*
(जो सिर झुकाये बैठा था, एकदम चिल्ला के बोला,) 
कैसा फैसला ? 
अब मैं करूंगा फैसला, इन तीनो  को घर से बाहर निकाल कर "
"चार महीने बारी बारी से आकर रहें मेरे पास ,और बाकी महीनों का अपना इंतजाम खुद करें ...."

*"जायदाद का मालिक मैं हूँ ये नहीं।"*

तीनो लड़कों और पंचायत का मुँह खुला का खुला रह गया, जैसे कोई नई बात हो गई हो.

👌 *इसे कहते हैं फैसला*

*फैसला औलाद को नहीं,*
*मां-बाप को करना चाहिए* 
आज कल सभी मां बाप को इसी प्रकार फैसला करना चाहिये ।
🙏 🙏🙏🙏
*सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की शुभ मंगल कामना🌸🌼🙏🏻🌼🌸*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Monday, June 8, 2020

प्रातः स्मरणीय मंत्र एवं स्तोत्र


*प्रातः स्मरणीय मंत्र एवं स्तोत्र*. 
🔸🔹🔹🔸🔸🔹🔹🔸
*ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।*
*यः स्मरेत्पुंडरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥*

*वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ ।*
*निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।*

*ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।*
*द्वंद्वातीतं गगनसदृशं,* *तत्त्वमस्यादिलक्षम् ।*
*एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधी: साक्षीभूतम् ।*
*भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरूं तं नमामि ।।*

*गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर: ।*
*गुरु: साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवै नम: ।।*

*शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं ।*
*विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।*
*लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् ।*
*वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ।।*

*सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।*
*उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥*
*परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।*
*सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥*
*वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।*
*हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥*
*एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।*
*सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥*
*एतेशां दर्शनादेव पातकं नैव तिष्ठति।*
*कर्मक्षयो भवेत्तस्य यस्य तुष्टो महेश्वराः॥*

*ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।*

*भावार्थ:-*

*ॐ (परमात्मा) भूः (प्राण स्वरूप) भुवः (दुःख नाशक) स्वः (सुख स्वरूप) तत् (उस) सवितुः (तेजस्वी) वरेण्यं (श्रेष्ठ) भर्गः (पाप नाशक) देवस्य (दिव्य) धीमहि (धारण करें) धियो (बुद्धि) यः (जो) नः (हमारी)प्रचोदयात (प्रेरित करें)।*

*अर्थात् - उस प्राण स्वरूप, दुखनाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करें।*

*प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।*
*तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।*
*पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।*
*सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।*
*नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।*
*उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।*

*या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता*
*या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।*
*या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता*
*सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ll*

*जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥*

*शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं* 
*वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।*
*हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्*
*वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥*

*शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत् में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान् बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥*

*सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके*
*शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोsस्तुते ।।*

*सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी, कल्याण करने वाली, सब के मनोरथ को पूरा करने वाली, तुम्हीं शरण ग्रहण करने योग्य हो, तीन नेत्रों वाली यानी भूत भविष्य वर्तमान को प्रत्यक्ष देखने वाली हो, तुम्ही शिव पत्नी, तुम्ही नारायण पत्नी अर्थात भगवान के सभी स्वरूपों के साथ तुम्हीं जुडी हो, आप को नमस्कार है.*

*जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।*
*दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ।।*
*अहिल्या द्रौपदी सीता तारा मंदोदरी तथा ।*
*पंचकन्या ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ।।*

*गीता गंगा च गायत्री सीता सत्या सरस्वती।*
*ब्रह्मविद्या ब्रह्मवल्ली त्रिसंध्या मुक्तगेहिनी।।*
*अर्धमात्रा चिदानन्दा भवघ्नी भयनाशिनी।*
*वेदत्रयी पराऽनन्ता तत्त्वार्थज्ञानमंजरी।।*
*इत्येतानि जपेन्नित्यं नरो निश्चलमानसः।*
*ज्ञानसिद्धिं लभेच्छीघ्रं तथान्ते परमं पदम्।।*
*गीता, गंगा, गायत्री, सीता, सत्या, सरस्वती, ब्रह्मविद्या, ब्रह्मवल्ली, त्रिसंध्या, मुक्तगेहिनी, अर्धमात्रा, चिदानन्दा, भवघ्नी, भयनाशिनी, वेदत्रयी, परा, अनन्ता और तत्त्वार्थज्ञानमंजरी (तत्त्वरूपी अर्थ के ज्ञान का भंडार) इस प्रकार (गीता के) अठारह नामों का स्थिर मन से जो मनुष्य नित्य जप करता है वह शीघ्र ज्ञानसिद्धि और अंत में परम पद को प्राप्त होता है |*

*अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमानश्च विभीषण: ।*
*कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविन: ।।*
*सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।*
*जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।*

*अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम ये सात महामानव चिरंजीवी हैं।*

*यदि इन सात महामानवों और आठवे ऋषि मार्कण्डेय का नित्य स्मरण किया जाए तो शरीर के सारे रोग समाप्त हो जाते है और 100 वर्ष की आयु प्राप्त होती है।*

*हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे॥*
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।*

*अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्।*
*दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्।*
*सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्।*
*रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥*

*अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥*

*मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् I*
*वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये II*

*मैं मन के समान शीघ्रगामी एवं वायुके समान वेगवाले, इन्द्रियोंको जीतनेवाले, बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ, वायुपुत्र, वानरसमूहके प्रमुख, श्रीरामदूत हनुमानजीकी शरण ग्रहण करता हूँ I*

*कर्पूर गौरम करुणावतारं,*
*संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।*
*सदा वसंतं हृदयार विन्दे,*
*भवं भवानी सहितं नमामि।।*


                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Sunday, June 7, 2020

बलिदान दिवस:- बंदा बैरागी (8जून)

8 जून
बेटे को मार कर कलेजा मुँह में ठूस दिया, फिर हाथी से कुचलवाया गया लेकिन उन्हें अपना धर्म परिवर्तन करना मंजूर न था, बलिदान दिवस पर अमर धर्मरक्षक "बन्दा बैरागी" जी को कोटि-कोटि नमन 🙏

बलिदान दिवस "बंदा बैरागी ----

इनकी चर्चा करते तो खतरे में पड़ जाते उनके स्वघोषित धर्मनिरपेक्षता के नकली सिद्धांत .. इनका सच दिखाते तो इतिहास काली स्याही का नहीं बल्कि स्वर्णिम रंग में होता .. इनका जिक्र करते तो समाज मे न तो लव जिहाद होता और न ही धर्मांतरण .. और ये सब न होता तो उनकी दुकानदारी न चलती .. भारत के इतिहास को विकृत करने वाले चाटुकार इतिहासकारो के किये पाप का नतीजा है कि धर्म के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले बंदा बैरागी का आज बलिदान दिवस है जिसे बहुत कम भारतीय जानते हैं ..

बन्दा बैरागी का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 को ग्राम तच्छल किला, पुंछ में श्री रामदेव के घर में हुआ। उनका बचपन का नाम लक्ष्मणदास था। युवावस्था में शिकार खेलते समय उन्होंने एक गर्भवती हिरणी पर तीर चला दिया। इससे उसके पेट से एक शिशु निकला और तड़पकर वहीं मर गया। यह देखकर उनका मन खिन्न हो गया। उन्होंने अपना नाम माधोदास रख लिया और घर छोड़कर तीर्थयात्रा पर चल दिये। अनेक साधुओं से योग साधना सीखी और फिर नान्देड़ में कुटिया बनाकर रहने लगे।

इसी दौरान गुरु गोविन्दसिंह जी माधोदास की कुटिया में आये। उनके चारों पुत्र बलिदान हो चुके थे। उन्होंने इस कठिन समय में माधोदास से वैराग्य छोड़कर देश में व्याप्त इस्लामिक आतंक से जूझने को कहा। गुरुजी ने उसे बन्दा बहादुर नाम दिया। फिर पाँच तीर, एक निशान साहिब, एक नगाड़ा और एक हुक्मनामा देकर दोनों छोटे पुत्रों को दीवार में चिनवाने वाले सरहिन्द के नवाब से बदला लेने को कहा। बन्दा हजारों सिख सैनिकों को साथ लेकर पंजाब की ओर चल दिये। उन्होंने सबसे पहले श्री गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन का सिर काटा। फिर सरहिन्द के नवाब वजीरखान का वध किया। जिन हिन्दू राजाओं ने मुगलों का साथ दिया था, बन्दा बहादुर ने उन्हें भी नहीं छोड़ा। इससे चारों ओर उनके नाम की धूम मच गयी।

उनके पराक्रम से भयभीत मुगलों ने दस लाख फौज लेकर उन पर हमला किया और विश्वासघात से 17 दिसम्बर, 1715 को उन्हें पकड़ लिया। उन्हें लोहे के एक पिंजड़े में बन्दकर, हाथी पर लादकर सड़क मार्ग से दिल्ली लाया गया। उनके साथ हजारों सिख सैनिक भी कैद किये गये थे। इनमें बन्दा के वे 740 साथी भी थे, जो प्रारम्भ से ही उनके साथ थे। युद्ध में वीरगति पाए सिखों के सिर काटकर उन्हें भाले की नोक पर टाँगकर दिल्ली लाया गया। रास्ते भर गर्म चिमटों से बन्दा बैरागी का माँस नोचा जाता रहा।

काजियों ने बन्दा और उनके साथियों को मुसलमान बनने को कहा; पर सबने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। दिल्ली में आज जहाँ हार्डिंग लाइब्रेरी है,वहाँ 7 मार्च, 1716 से प्रतिदिन सौ वीरों की हत्या की जाने लगी। एक दरबारी मुहम्मद अमीन ने पूछा - तुमने ऐसे बुरे काम क्यों किये, जिससे तुम्हारी यह दुर्दशा हो रही है ? बन्दा ने सीना फुलाकर सगर्व उत्तर दिया - मैं तो प्रजा के पीड़ितों को दण्ड देने के लिए परमपिता परमेश्वर के हाथ का शस्त्र था।

बन्दा से पूछा गया कि वे कैसी मौत मरना चाहते हैं ? बन्दा ने उत्तर दिया, मैं अब मौत से नहीं डरता; क्योंकि यह शरीर ही दुःख का मूल है। यह सुनकर सब ओर सन्नाटा छा गया। भयभीत करने के लिए उनके पाँच वर्षीय पुत्र अजय सिंह को उनकी गोद में लेटाकर बन्दा के हाथ में छुरा देकर उसको मारने को कहा गया। बन्दा ने इससे इन्कार कर दिया। इस पर जल्लाद ने उस बच्चे के दो टुकड़ेकर उसके दिल का माँस बन्दा के मुँह में ठूँस दिया; पर वे तो इन सबसे ऊपर उठ चुके थे। गरम चिमटों से माँस नोचे जाने के कारण उनके शरीर में केवल हड्डियाँ शेष थी। फिर भी आज ही के दिन अर्थात आठ जून, 1716 को उस वीर को हाथी से कुचलवा दिया गया। इस प्रकार बन्दा वीर बैरागी अपने नाम के तीनों शब्दों को सार्थक कर बलिपथ पर चल दिये। आज बलिदान के उस महामूर्ति को उनके बलिदान दिवस पर हम बारम्बार नमन करते हुए उनके गौरवगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेते हैं !

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

दूसरों को सही-गलत साबित करने में जल्दबाजी न करें | 2 कहानियाँ*

*दूसरों को सही-गलत साबित करने में जल्दबाजी न करें | 2 कहानियाँ*

*पहली कहानी :*👉🏻

*ट्रेन में एक पिता-पुत्र सफर कर रहे थे.*

*24 वर्षीय पुत्र खिड़की से बाहर देख रहा था, अचानक वो चिल्लाया – पापा देखो पेड़ पीछे की ओर भाग रहे हैं !*
*पिता कुछ बोला नहीं, बस सुनकर मुस्कुरा दिया. ये देखकर बगल में बैठे एक युवा दम्पति को अजीब लगा और उस लड़के के बचकाने व्यवहार पर दया भी आई.*

*तब तक वो लड़का फिर से बोला – पापा देखो बादल हमारे साथ दौड़ रहे हैं !*

*युवा दम्पति से रहा नहीं गया और वो उसके पिता से बोल पड़े – आप अपने लड़के को किसी अच्छे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते ?*

*लड़के का पिता मुस्कुराया और बोला – हमने दिखाया था और हम अभी सीधे हॉस्पिटल से ही आ रहे हैं. मेरा लड़का जन्म से अंधा था और आज वो यह दुनिया पहली बार देख रहा है.*

———-

*दूसरी कहानी :*

*एक प्रोफेसर अपनी क्लास में कहानी सुना रहे थे, जोकि इस प्रकार है –*

*एक बार समुद्र के बीच में एक बड़े जहाज पर बड़ी दुर्घटना हो गयी. कप्तान ने शिप खाली करने का आदेश दिया. जहाज पर एक युवा दम्पति थे. जब लाइफबोट पर चढ़ने का उनका नम्बर आया तो देखा गया नाव पर केवल एक व्यक्ति के लिए ही जगह है. इस मौके पर आदमी ने औरत को छोड़ दिया और नाव पर कूद गया.*

*डूबते हुए जहाज पर खड़ी औरत ने जाते हुए अपने पति से चिल्लाकर एक वाक्य कहा.*
*अब प्रोफेसर ने रुककर स्टूडेंट्स से पूछा – तुम लोगों को क्या लगता है, उस स्त्री ने अपने पति से क्या कहा होगा ?*

*ज्यादातर विद्यार्थी फ़ौरन चिल्लाये – स्त्री ने कहा – मैं तुमसे नफरत करती हूँ ! I hate you !*

*प्रोफेसर ने देखा एक स्टूडेंट एकदम शांत बैठा हुआ था, प्रोफेसर ने उससे पूछा कि तुम बताओ तुम्हे क्या लगता है ?*

*वो लड़का बोला – मुझे लगता है, औरत ने कहा होगा – हमारे बच्चे का ख्याल रखना !*

*प्रोफेसर को आश्चर्य हुआ, उन्होंने लडके से पूछा – क्या तुमने यह कहानी पहले सुन रखी थी ?*

*लड़का बोला- जी नहीं, लेकिन यही बात बीमारी से मरती हुई मेरी माँ ने मेरे पिता से कही थी.*

*प्रोफेसर ने दुखपूर्वक कहा – तुम्हारा उत्तर सही है !*

*प्रोफेसर ने कहानी आगे बढ़ाई – जहाज डूब गया, स्त्री मर गयी, पति किनारे पहुंचा और उसने अपना बाकि जीवन अपनी एकमात्र पुत्री के समुचित लालन-पालन में लगा दिया. कई सालों बाद जब वो व्यक्ति मर गया तो एक दिन सफाई करते हुए उसकी लड़की को अपने पिता की एक डायरी मिली.*

*डायरी से उसे पता चला कि जिस समय उसके माता-पिता उस जहाज पर सफर कर रहे थे तो उसकी माँ एक जानलेवा बीमारी से ग्रस्त थी और उनके जीवन के कुछ दिन ही शेष थे.*

*ऐसे कठिन मौके पर उसके पिता ने एक कड़ा निर्णय लिया और लाइफबोट पर कूद गया. उसके पिता ने डायरी में लिखा था – तुम्हारे बिना मेरे जीवन को कोई मतलब नहीं, मैं तो तुम्हारे साथ ही समंदर में समा जाना चाहता था. लेकिन अपनी संतान का ख्याल आने पर मुझे तुमको अकेले छोड़कर जाना पड़ा.*

*जब प्रोफेसर ने कहानी समाप्त की तो, पूरी क्लास में शांति थी.*

          —————

*इस संसार में कईयों सही गलत बातें हैं लेकिन उसके अतिरिक्त भी कई जटिलतायें हैं, जिन्हें समझना आसान नहीं. इसीलिए ऊपरी सतह से देखकर बिना गहराई को जाने-समझे हर परिस्थिति का एकदम सही आकलन नहीं किया जा सकता.*

*– कलह होने पर जो पहले माफ़ी मांगे, जरुरी नहीं उसी की गलती हो. हो सकता है वो रिश्ते को बनाये रखना ज्यादा महत्वपूर्ण समझता हो.*

*– दोस्तों के साथ खाते-पीते, पार्टी करते समय जो दोस्त बिल पे करता है, जरुरी नहीं उसकी जेब नोटों से ठसाठस भरी हो. हो सकता है उसके लिए दोस्ती के सामने पैसों की अहमियत कम हो.*

*– जो लोग आपकी मदद करते हैं, जरुरी नहीं वो आपके एहसानों के बोझ तले दबे हों. वो आपकी मदद करते हैं क्योंकि उनके दिलों में दयालुता और करुणा का निवास है.*

*आजकल जीवन कठिन इसीलिए हो गया है क्योंकि हमने लोगो को समझना कम कर दिया और फौरी तौर पर judge करना शुरू कर दिया है. थोड़ी सी समझ और थोड़ी सी मानवता ही आपको सही रास्ता दिखा सकती है. जीवन में निर्णय लेने के कई ऐसे पल आयेंगे, सो अगली बार किसी पर भी अपने पूर्वाग्रह का ठप्पा लगाने से पहले विचार अवश्य करें.*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Saturday, June 6, 2020

करार करके मुझे जिसने बेकरार किया है गीत


करार करके मुझे जिसने बेकरार किया है
हाँ उसी का मैंने अब तक इन्तजार किया है
करार करके मुझे जिसने बेकरार किया है

पिलायी मुझको आँखों से मैं शराबी बन गया
दिखायी मुझको वो अदाएं मैं दीवाना बन गया
हजार इम्तहां ले जिसने इन्तख़ाब किया है
हाँ उसी का मैंने अब तक इन्तजार किया है
करार करके मुझे जिसने बेकरार किया है

न जाने कैसा मौहब्बत का ग़ुल खिलता रहा
तेरी बातों ही में मुझको सकूं मिलता रहा
बिठाकर सामने, ख़ुद को बेनकाब किया है
हाँ उसी का मैंने अब तक इन्तजार किया है
करार करके मुझे जिसने बेकरार किया है

गरम गरम तेरी सांसें मैं लबों को चूमता
नरम नरम तेरी बाहें मैं बदन को चूमता
बैचेन इतना मुझे जिसने सारी रात किया है
हाँ उसी का मैंने अब तक इन्तजार किया है
करार करके मुझे जिसने बेकरार किया है

मैं ढूंढता हूँ उसे अब भी वो नज़र नहीं आती
पता मैं किससे करूं उसका कोई ख़बर नहीं आती
बीमार करके मुझे जिसने लाइलाज किया है 
हाँ उसी का मैंने अब तक इन्तजार किया है
करार करके मुझे जिसने बेकरार किया है

             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

वर्षा,,,,

तप्त धरा की देह पर,पढनें लगी फुहार ।
आनन्दित हो पी रही,जैसे बिरही नार ।।(1)

प्रथम वृष्टि में जब उठी,सोंधी सोंधी गन्ध ।
लगता कोई कामिनी,तोड़ दिए सब बन्ध ।।(2)

कोयल मैना काक पिक,लबा तीतरा मोर ।
खंजनि हारिल टिटहरी,करे महूका शोर ।।(3)

चींटा चींटी झींगुरी,टिड्डी जुगनू चंग ।
नहा रहे बरसात में,उड़ उड़ कीट पतंग ।।(4)

मीन खुशी से झूमतीं,दादुर भरें उछाल ।
मगरमच्छ की प्रार्थना,शीघ्र भरे यह ताल ।।(5)

पहली ही बरसात में,घर सारा चिचुआइ ।
साजन घर में हैं नहीं,कहूँ कौन से जाइ ।।(6)

कहुँ कहुँ बरषे मेह अरु,कहुँ कहुँ बरषे नैन ।
सोच रहा ब्याकुल जिया,कहाँ मिलेगा चैन ।।(7)

             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Tuesday, June 2, 2020

वक़्त बदलते देर नहीं लगती..

*वक़्त  बदलते  देर  नहीं  लगती..*
✍ बाहर  बारिश  हो  रही  थी, और अन्दर  क्लास  चल रही  थी.
तभी  टीचर  ने  बच्चों  से  पूछा - अगर तुम  सभी  को  100-100 रुपया  दिए जाए  तो  तुम  सब  क्या  क्या खरीदोगे ?
किसी  ने  कहा - मैं  वीडियो  गेम खरीदुंगा..
किसी  ने  कहा - मैं  क्रिकेट  का  बेट खरीदुंगा..
किसी  ने  कहा - मैं  अपने  लिए  प्यारी सी  गुड़िया  खरीदुंगी..
तो, किसी  ने  कहा - मैं  बहुत  सी चॉकलेट्स  खरीदुंगी..

एक  बच्चा  कुछ  सोचने  में  डुबा  हुआ  था  
टीचर  ने  उससे  पुछा - तुम  
क्या  सोच  रहे  हो, तुम  क्या खरीदोगे ?

बच्चा  बोला -टीचर  जी  मेरी  माँ  को थोड़ा  कम  दिखाई  देता  है  तो  मैं अपनी  माँ  के  लिए  एक  चश्मा खरीदूंगा !

टीचर  ने  पूछा  -  तुम्हारी  माँ  के  लिए चश्मा  तो  तुम्हारे  पापा  भी  खरीद सकते  है  तुम्हें  अपने  लिए  कुछ  नहीं खरीदना ?

बच्चे  ने  जो  जवाब  दिया  उससे टीचर  का  भी  गला  भर  आया !
बच्चे  ने  कहा -- मेरे  पापा  अब  इस दुनिया  में  नहीं  है  
मेरी  माँ  लोगों  के  कपड़े  सिलकर मुझे  पढ़ाती  है, और  कम  दिखाई  देने  की  वजह  से  वो  ठीक  से  कपड़े नहीं  सिल  पाती  है  इसीलिए  मैं  मेरी माँ  को  चश्मा  देना  चाहता  हुँ, ताकि मैं  अच्छे  से  पढ़  सकूँ  बड़ा  आदमी बन  सकूँ, और  माँ  को  सारे  सुख  दे सकूँ.!

टीचर -- बेटा  तेरी  सोच  ही  तेरी कमाई  है ! ये 100 रूपये  मेरे  वादे के अनुसार  और, ये 100 रूपये  और उधार  दे  रहा  हूँ। जब  कभी  कमाओ तो  लौटा  देना  और, मेरी  इच्छा  है, तू  इतना  बड़ा  आदमी  बने  कि  तेरे सर  पे  हाथ  फेरते  वक्त  मैं  धन्य  हो जाऊं !

20  वर्ष  बाद..........

बाहर  बारिश  हो  रही है, और अंदर क्लास चल रही है !
अचानक  स्कूल  के  आगे  जिला कलेक्टर  की  बत्ती  वाली  गाड़ी आकर  रूकती  है  स्कूल  स्टाफ चौकन्ना  हो  जाता  हैं !
स्कूल  में  सन्नाटा  छा  जाता  हैं !
मगर ये क्या ?

जिला  कलेक्टर  एक  वृद्ध  टीचर के पैरों  में  गिर  जाते  हैं, और  कहते हैं -- सर  मैं ....   उधार  के  100  रूपये  लौटाने  आया  हूँ !

पूरा  स्कूल  स्टॉफ  स्तब्ध !
वृद्ध  टीचर  झुके  हुए  नौजवान कलेक्टर  को उठाकर भुजाओं में कस लेता है, और रो  पड़ता  हैं !
दोस्तों --
*मशहूर  होना, पर मगरूर  मत  बनना।*
*साधारण रहना, कमज़ोर  मत  बनना।*
*वक़्त  बदलते  देर  नहीं  लगती..*
शहंशाह  को  फ़कीर, और  फ़क़ीर को शहंशाह  बनते,
*देर  नही  लगती ....*


                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057


न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...