Thursday, May 7, 2020

इतना भी न दिलको मजबूर किया जाय!

इतना भी न दिलको मजबूर किया जाय!
कहना  है  वफ़ा  का  दस्तूर किया जाय।

गलती  है  हमारा  के  आपकी  फितरत!
पहले तो खामियां अभी  दूर किया जाय।

आपकी  यूँ  अदाएं मेरे  मनको  झिझोरे!
सोंचता  हूं  सदा  कैसे मंजूर किया जाय।

चाहत  की   डोर   खींचते  जुड़ते  रास्ते!
हमराह   यूँ  चलें   मशहूर   किया  जाय।

दिलसे  हो  दिल  मिलता  कसमे   इरादे!
सफर को तय मिलके जरूर किया जाय।

इतना भी न दिलको मजबूर किया जाय!
कहना  है  वफ़ा  का  दस्तूर किया जाय।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Wednesday, May 6, 2020

महाराणा प्रताप जी को श्रद्धांजलि समर्पित कुछ छंद

                  छन्द(1)
सुना और पढ़ा होगाआप सभीलोगों ने ही
महाराणा संघ उस  चेतक  कहानी  को।
जन्में मेवाड़ में वे  ,राजा थे मेवाड़ के ही,
देश हित अर्पित ,  किया  जिंदगानी  को।
मान और शक्ति  जैसे  कई थे गद्दार वहां,
फिर भी ना डरे राणा अकबर सानी को।
कांपते थे शत्रु भाला देखकर जिसका ही।
श्रद्धा सुमन अर्पित उसी  बलिदानी  को।।
                     छन्द(2) 
धन्य थे पुरोहित मेवाड़ की सुरक्षा हित,
खुद को कटार मार  दे  दी  कुर्बानी  थी।
धन्यमंत्री भामाशाह दान किया निज धन,
राणा ने प्रारंभ  की ,  नई  जिंदगानी   थी।
धनवीर झाला और धन्य थे हकीम खान,
लड़कर युद्ध में मिटाई   जो  निशानी  थी।
56 किलो को जीत लेना था चित्तौड़ अभी
स्वर्ग को सीधारे राणा इतनी कहानी थी।।
                  छन्द(3)
जैसे चांद तारे सूर्य जगमग ब्योम में हों,
ऐसा ही हो जगमग   नाम  तेरा  जग में।
शौर्य शक्ति शाहस का पर्याय कहा जाता,
अद्भुत  अनुपम    कार्य  किये  जग   में।
राजपूत खानदान की हो तुम आन बान,
भारतीयता की   पहचान  बने  जग  में ।
आओ फिर एक बार मात्र भू के कर्णधार,
मातृभूमि की सेवा हेतु काम आए जग में।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
        धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

मैं अचम्भित देखता हूँ प्रीतिकर मुझको सुहाता।


कौन प्राची के छितिज से आ रहा है गीत गाता,
मैं अचम्भित देखता हूँ प्रीतिकर मुझको सुहाता।

वेदनाएं बर्फ जैसे उष्णता से गल रही हैं, 
या कि जैसे हार कर ये हाथ अपने मल रही हैं।
पंथ काँटों से भरा पर आदमी क्यों हार माने, 
नित सबेरे जाग कर के खग कुलों सा गीत गाने। 
एक-दूजे पर मनुज यह चल रहा है तान छाता,
मैं अचम्भित देखता हूँ प्रीतिकर मुझको सुहाता। 

वेदनाएं सिर उठाती और फिर-फिर  टूट जातीं, 
मस्त होकर डाल पर है पुनः कोयल कूक जाती।
धुप्प अँधेरा रवि किरन पा इस धरा से दूर होता,
या कि मानव निज अक्षय का विश्व में है बीज बोता।
हर्ष मानव का छितिज तक फैलकर विस्तार पाता,
मैं अचम्भित देखता हूँ प्रीतिकर मुझको सुहाता।

रवि रथी की घरघराहट ज्यों अधिक नजदीक आती,
इस धरा की नींद अपने आप ही है टूट  जाती।
सर्वप्रथम हैं वृक्ष जागे खग कुलों की नींद टूटे,
चर-अचर हैं जो जगत के स्वर सभी के कंठ फूटे।
वाद्य वीणा का धरा पर सप्त स्वर में रूप पाता,
मैं अचम्भित देखता हूँ प्रीतिकर मुझको सुहाता।


         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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कोरोना विषाणु


कोरोना अब तेज,हो रहा हाहाकारी, 
भागे जाए दूर,चढ़ो छत पीटो तारी।
खेमेश्वर संदेश यही,दिल्ली से आया,
तभी बनेगी बात,आज सबने दुहराया।

यह अवरोधक ज्ञान,मानकर करो आचरण,
नहीं बनो मतिमंद,धार कर जीर्ण आवरण।
फूँको अपने शंख,जंग की खुली चुनौती,
रहना सदा निरोग,हमारी यही बपौती।

सहमे सारे राष्ट्र, भूलकर तानाशाही, 
यह है चीनी डंक,सजग हो बचना राही,
गये तनिक भी चूक,मूक हो सोना होगा, 
जीवन मिला अमूल्य,हाथ से धोना होगा।

ठहरो कुछ दिन आप,जान लो वायरस ठहरा, 
इसकी सारी नीव,स्वत:ही जाए भहरा।
लगी जहाँ जो आग,वहीं पर ठंडा जाये,
यह मानव की जाति,जान लो अमृत पाये।

रोये इटली-चीन,जगत यह हुआ रुआंसा, 
मानवता की हानि,जानते केवल  झांसा।
मनुज-मनुज का शत्रु,हेतु यह रचना सारी, 
मनुज हुआ अभिशप्त, त्रासदी यह भयकारी।

यह भारी षडयंत्र, मनुज की रचना मानो,
रहे वायरस दूर,बाँध कर मुट्ठी तानो।
परंपरा का राज,आचरण करके जानो,
यही वेद का ज्ञान,स्वच्छता को पहचानो।

दया धर्म का मूल,सनातन कहता अपना,
सत्य एक है प्रेम,जगत को जानो सपना।
धरती का संताप,संत के हृदय समाये, 
चलो संत के पास,यही सद्ग्रंथ बताये।

दया-धर्म शृंगार,मनुज जब अपना भूले,
चढ़ ऊपर आकाश,चाहता रवि को छू ले।
खाये सारे जीव,कुतर्की जीवन जीता,
खेमेश्वर तब जान,हुआ करतल है रीता।

कलम कहे अब रोक,यहीं पर अपना रोला,
माँग मनुज से भीख,दया का खाली झोला।
यह जीवन का शाप,यहीं मिट जाए सारा,
होने को है भोर,उदित होता रवि तारा

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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कुछ दोहे वीर रस के


डर-डर कर जीना जिसे,देना क्या धिक्कार, 
पहले से ही वह मरा,उसका क्या आधार।

आये बर्बर देश में, हमको रौंदे नाच,
हिंदू को बंदी किये,तोड़े मंदिर काँच।

तीस कोटि हिंदू अभी,फँसे जाल इस्लाम, 
मुक्त कराये जो इन्हें, वही समय का राम।

पाक गया बँगला गया, और गया अफगान, 
काशी-मथुरा-अवध भी,मिले न सस्ता जान।

पाक निरंतर कर रहा सीमा पर से वार,
मुर्दा जैसे हम हुए,फिर किसको धिक्कार।

भारत माँ के लाल को,करता नित्य हलाल,
हम तो बैठे मौज से,पढ़ अखबारी हाल।

तुच्छ स्वार्थ से हम ग्रसित, उनका लक्ष्य कराल,
चोट चतुर्दिक् दे रहे,करके प्रेत धमाल।

सीमा पर आतंक है,भीतर भी आतंक, 
छिपा हुआ क्यों साद है,थूक हजारों डंक।

सब की हो कटिबद्धता,जीते हिंदुस्तान, 
भीतर यदि हम एक हों, रहे युद्ध आसान।

भीतर भी इस्लाम रिपु,बाहर भी इस्लाम, 
सच्चाई स्वीकार लें, तब जय मिले ललाम।

एक देश कानून दो,डाल रहा अवरोध, 
हम सब एक समान हैं, कब जागेगा बोध।

थूकवाद का सच कहो,बोलो जी अब साँच,
साथी सारे डर रहे,कलम रही यह बाँच।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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पाँव छुओ धरती उड़ियाना छंद


प्रातः जब नींद खुले,पाँव छुओ धरती,
जीवन का दान करे,क्लेश यही हरती।
माता यह प्रेम भरी,धैर्य धरे रहती,
जड़-चेतन जीव सभी,भार यही सहती।

जीवन का मूल यही,एक नाम गइया,
कहते हैं खेमेश्वर,सुन मेरे भइया।
बैठाती नित्य यही,मोद भरी कनिया, 
सारे धन-धान्य भरे,और देत धनिया।

जीवन का यही मूल, प्रवहमान सरिता, 
ईश की यह वरदान,देह-प्राण भरिता।
सकल संत-शास्त्र कहें,बात मान गुन लें,
खग कुल भी गान करें,प्रेम पंथ चुन लें। 

धरती पर पाप नहीं, पुण्य राह चुनना,
कहते जो श्रेष्ठ सदा,एक वही धुनना।
जीवन आलोक चाह, प्रात बोल मुनिया,
और सब त्याग चलो,मिथ्या झुनझुनिया।

राम यहीं कृष्ण यहीं, श्रेष्ठ किये करनी,
इनको भी धरे रही,माटी की धरनी,
जाति-पंथ भेद त्याग,नमन करो इसको,
अथवा फिर छोङ इसे,ऊपर को खिसको।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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मानव की गरिमा घटी


बङा भयानक चीन है,जान गया संसार,
कोरोना से त्रस्त हो,करता हाहाकार।

शव पर शव गिरने लगे,ज्यों पतझड़ के पात,
जैव युद्ध से प्रकट अब,मानव की औकात।

अग्नि विछौना बन रहा,कलम कहत सकुचात,
आज शाम यह देख लें,शंसय ग्रसित प्रभात।

अमरीका-इटली हुए,लख लें सभी  अवाक्,
मौन अधर आँखें लखें,हृदय हो रहा चाक।

अपनों से संभव नहीं,कर लें थोङी बात,
मृत्यु बिलैया घूमती,सब पर भारी घात। 

कहाँ कोरोना है छिपा,सब गलियां भयभीत,
ऊँघ रही संवेदना,देख दानवी जीत।

पौराणिक आख्यान का,जागा दानव आज,
मौन विचारक जन हुए,जीवन झपटे बाज।

मौन अधर अब नील है,सुर सरिता भी मौन,
लख संहारक है जगा,भला बोलता कौन।

एक कोरोना के उदय,अस्त-व्यस्त सब लोग, 
पल-पल लीले जिंदगी,जाग दानवी भोग।

निज क्रीङा में व्यस्त था,मानव का भूगोल, 
सहसा सब गिरने लगे,आया यह भूडोल।

उठ वुहान की धरा से,कोरोना आतंक, 
सभी राष्ट्र पर छा गया,मार रहा निज डंक।

भारत की सङकें भरी,उमङी ऐसी भीङ,
व्याकुल मानव ढूँढ़ते,अपना-अपना नीङ।

बोले थे मोदी यही,ठहरें अपने लोग,
घातक से उपचार का,सर्वोत्तम यह योग।

कार्य दिवस जब रिक्त सब,जागा अधिक अभाव, 
रोटी करतल की छिनी,धनिकों के बर्ताव।

श्रमिक हुए हतप्रभ सभी,भागे अपने गाँव, 
इधर कुआं खाईं उधर,सब जन आज बेदाँव।

अफरा-तफरी मच गयी,भारी विपति विहान,
सुने श्रवन ने दृग लखे,मरघट का यह गान।

 सफल लाकडाउन हुआ,असफल मानव प्रीति, 
अपनों जन के मध्य में, कोरोना की भीति।

अपना घर आँगन दिखे,सरिता के दो ओर,
एक हिमालय का शिखर,एक सिंधु का छोर।

विस्मयकारी लग रहा,जय विकास जय गान,
ऋषियों के इस देश में,अपने हिंदुस्तान। 

गरिमा मानव की घटी,पूँजी के इस खेल, 
मानव कैसे दौडता,होकर बिना नकेल।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...