बङा भयानक चीन है,जान गया संसार,
कोरोना से त्रस्त हो,करता हाहाकार।
शव पर शव गिरने लगे,ज्यों पतझड़ के पात,
जैव युद्ध से प्रकट अब,मानव की औकात।
अग्नि विछौना बन रहा,कलम कहत सकुचात,
आज शाम यह देख लें,शंसय ग्रसित प्रभात।
अमरीका-इटली हुए,लख लें सभी अवाक्,
मौन अधर आँखें लखें,हृदय हो रहा चाक।
अपनों से संभव नहीं,कर लें थोङी बात,
मृत्यु बिलैया घूमती,सब पर भारी घात।
कहाँ कोरोना है छिपा,सब गलियां भयभीत,
ऊँघ रही संवेदना,देख दानवी जीत।
पौराणिक आख्यान का,जागा दानव आज,
मौन विचारक जन हुए,जीवन झपटे बाज।
मौन अधर अब नील है,सुर सरिता भी मौन,
लख संहारक है जगा,भला बोलता कौन।
एक कोरोना के उदय,अस्त-व्यस्त सब लोग,
पल-पल लीले जिंदगी,जाग दानवी भोग।
निज क्रीङा में व्यस्त था,मानव का भूगोल,
सहसा सब गिरने लगे,आया यह भूडोल।
उठ वुहान की धरा से,कोरोना आतंक,
सभी राष्ट्र पर छा गया,मार रहा निज डंक।
भारत की सङकें भरी,उमङी ऐसी भीङ,
व्याकुल मानव ढूँढ़ते,अपना-अपना नीङ।
बोले थे मोदी यही,ठहरें अपने लोग,
घातक से उपचार का,सर्वोत्तम यह योग।
कार्य दिवस जब रिक्त सब,जागा अधिक अभाव,
रोटी करतल की छिनी,धनिकों के बर्ताव।
श्रमिक हुए हतप्रभ सभी,भागे अपने गाँव,
इधर कुआं खाईं उधर,सब जन आज बेदाँव।
अफरा-तफरी मच गयी,भारी विपति विहान,
सुने श्रवन ने दृग लखे,मरघट का यह गान।
सफल लाकडाउन हुआ,असफल मानव प्रीति,
अपनों जन के मध्य में, कोरोना की भीति।
अपना घर आँगन दिखे,सरिता के दो ओर,
एक हिमालय का शिखर,एक सिंधु का छोर।
विस्मयकारी लग रहा,जय विकास जय गान,
ऋषियों के इस देश में,अपने हिंदुस्तान।
गरिमा मानव की घटी,पूँजी के इस खेल,
मानव कैसे दौडता,होकर बिना नकेल।
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057