Saturday, July 6, 2019

जिहाद पर एक इतिहास

जिहाद का इलाज
सन 711ई. की बात है। अरब के पहले मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम के आतंकवादियों ने मुल्तान विजय के बाद एक विशेष सम्प्रदाय हिन्दू के ऊपर गांवो शहरों में भीषण रक्तपात मचाया था। हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोच डाली गयीं, इस कारण अपनी लाज बचाने के लिए हजारों सनातनी किशोरियां अपनी शील की रक्षा के लिए कुंए तालाब में डूब मरीं।लगभग सभी युवाओं को या तो मार डाला गया या गुलाम बना लिया गया। भारतीय सैनिकों ने ऎसी बर्बरता पहली बार देखी थी।
एक बालक तक्षक के पिता कासिम की सेना के साथ हुए युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। लुटेरी अरब सेना जब तक्षक के गांव में पहुची तो हाहाकार मच गया। स्त्रियों को घरों से खींच खींच कर उनकी देह लूटी जाने लगी। भय से आक्रांत तक्षक के घर में भी सब चिल्ला उठे। तक्षक और उसकी दो बहनें भय से कांप उठी थीं। तक्षक की माँ पूरी परिस्थिति समझ चुकी थी, उसने कुछ देर तक अपने बच्चों को देखा और जैसे एक निर्णय पर पहुच गयी। माँ ने अपने तीनों बच्चों को खींच कर छाती में चिपका लिया और रो पड़ी। फिर देखते देखते उस क्षत्राणी ने म्यान से तलवार खीचा और अपनी दोनों बेटियों का सर काट डाला। उसके बाद अरबों द्वारा उनकी काटी जा रही गाय की तरफ और बेटे की ओर अंतिम दृष्टि डाली, और तलवार को अपनी छाती में उतार लिया। आठ वर्ष का बालक तक्षक एकाएक समय को पढ़ना सीख गया था, उसने भूमि पर पड़ी मृत माँ के आँचल से अंतिम बार अपनी आँखे पोंछी, और घर के पिछले द्वार से निकल कर खेतों से होकर जंगल में भाग गया। 25 वर्ष बीत गए अब वह बालक बत्तीस वर्ष का पुरुष हो कर कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का मुख्य अंगरक्षक था। वर्षों से किसी ने उसके चेहरे पर भावना का कोई चिन्ह नही देखा था। वह न कभी खुश होता था न कभी दुखी। उसकी आँखे सदैव प्रतिशोध की वजह से अंगारे की तरह लाल रहती थीं। उसके पराक्रम के किस्से पूरी सेना में सुने सुनाये जाते थे। अपनी तलवार के एक वार से हाथी को मार डालने वाला तक्षक सैनिकों के लिए आदर्श था। कन्नौज नरेश नागभट्ट अपने अतुल्य पराक्रम से अरबों के सफल प्रतिरोध के लिए ख्यात थे। सिंध पर शासन कर रहे अरब कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुके थे, पर हर बार योद्धा राजपूत उन्हें खदेड़ देते। युद्ध के सनातन नियमों का पालन करते नागभट्ट कभी उनका पीछा नहीं करते, जिसके कारण मुस्लिम शासक आदत से मजबूर बार बार मजबूत हो कर पुनः आक्रमण करते थे। ऐसा पंद्रह वर्षों से हो रहा था।
इस बार फिर से सभा बैठी थी, अरब के खलीफा से सहयोग ले कर सिंध की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण के लिए प्रस्थान कर चुकी है और संभवत: दो से तीन दिन के अंदर यह सेना कन्नौज की सीमा पर होगी। इसी सम्बंध में रणनीति बनाने के लिए महाराज नागभट्ट ने यह सभा बैठाई थी। सारे सेनाध्यक्ष अपनी अपनी राय दे रहे थे... तभी अंगरक्षक तक्षक उठ खड़ा हुआ और बोला---  महाराज,  हमे इस बार दुश्मन को उसी की शैली में उत्तर देना होगा।
महाराज ने ध्यान से देखा अपने इस अंगरक्षक की ओर, बोले- "अपनी बात खुल कर कहो तक्षक, हम कुछ समझ नही पा रहे।"
"महाराज, अरब सैनिक महाबर्बर हैं, उनके साथ सनातन नियमों के अनुरूप युद्ध कर के हम अपनी प्रजा के साथ घात ही करेंगे। उनको उन्ही की शैली में हराना होगा।"
महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं, बोले-  "किन्तु हम धर्म और मर्यादा नही छोड़ सकते सैनिक।"
तक्षक ने कहा- "मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है जो मर्यादा का अर्थ समझते हों। ये बर्बर धर्मोन्मत्त राक्षस हैं महाराज। इनके लिए हत्या और बलात्कार ही धर्म है।"
"पर यह हमारा धर्म नही हैं बीर"
"राजा का केवल एक ही धर्म होता है महाराज, और वह है प्रजा की रक्षा। देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें महाराज, जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात प्रजा पर कितना अत्याचार किया था। ईश्वर न करे, यदि हम पराजित हुए तो बर्बर अत्याचारी अरब हमारी स्त्रियों, बच्चों और निरीह प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, यह आप भली भाँति जानते हैं।"
महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा, सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था। महाराज अपने मुख्य सेनापतियों मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभाकक्ष की ओर बढ़ गए।
अगले दिवस की संध्या तक कन्नौज की पश्चिम सीमा पर दोनों सेनाओं का पड़ाव हो चूका था, और आशा थी कि अगला प्रभात एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा।
आधी रात्रि बीत चुकी थी। अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी। अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पड़ी। अरबों को किसी हिन्दू शासक से रात्रि युद्ध की आशा न थी। वे उठते, सावधान होते और हथियार सँभालते इसके पुर्व ही आधे अरब गाजर मूली की तरह काट डाले गए।
इस भयावह निशा में तक्षक का शौर्य अपनी पराकाष्ठा पर था। वह घोडा दौड़ाते जिधर निकल पड़ता उधर की भूमि शवों से पट जाती थी। आज माँ और बहनों की आत्मा को ठंडक देने का समय था....
उषा की प्रथम किरण से पुर्व अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी। सुबह होते ही बची सेना पीछे भागी, किन्तु आश्चर्य! महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ उधर तैयार खड़े थे। दोपहर होते होते समूची अरब सेना काट डाली गयी। अपनी बर्बरता के बल पर विश्वविजय का स्वप्न देखने वाले आतंकियों को पहली बार किसी ने ऐसा उत्तर दिया था।
विजय के बाद महाराज ने अपने सभी सेनानायकों की ओर देखा, उनमे तक्षक का कहीं पता नही था। सैनिकों ने युद्धभूमि में तक्षक की खोज प्रारंभ की तो देखा-लगभग हजार अरब सैनिकों के शव के बीच तक्षक की मृत देह दमक रही थी। उसे शीघ्र उठा कर महाराज के पास लाया गया। कुछ क्षण तक इस अद्भुत योद्धा की ओर चुपचाप देखने के पश्चात महाराज नागभट्ट आगे बढ़े और तक्षक के चरणों में अपनी तलवार रख कर उसकी मृत देह को प्रणाम किया। युद्ध के पश्चात युद्धभूमि में पसरी नीरवता में भारत का वह महान सम्राट गरज उठा-
"आप आर्यावर्त की वीरता के शिखर थे तक्षक.... भारत ने अबतक मातृभूमि की रक्षा में प्राण न्योछावर करना सीखा था, आप ने मातृभूमि के लिए प्राण लेना सिखा दिया। भारत युगों युगों तक आपका आभारी रहेगा।"

इतिहास साक्षी है, इस युद्ध के बाद अगले तीन शताब्दियों तक अरबों की भारत की तरफ आँख उठा कर देखने की हिम्मत नही हुई।
तक्षक ने सिखाया कि मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण दिए ही नही, लिए भी जाते है, साथ ही ये भी सिखाया कि दुष्ट सिर्फ दुष्टता की ही भाषा जानता है, इसलिए उसके दुष्टतापूर्ण कुकृत्यों का प्रत्युत्तर उसे उसकी ही भाषा में देना चाहिए अन्यथा वो आपको कमजोर ही समझता रहेगा।

सनातन आवश्यक जानकारी

दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

उक्त जानकारी शास्त्रोक्त 📚 आधार पर... हैं ।

Thursday, March 14, 2019

चलते चलते

" बन जाऊँ तेरी प्यारी तुझे प्यार करते करते ,
     जीवन बिताया सारा कान्हा यूँ ही इन्तज़ार करते ,
  है दिल में मेरे केवल तुझसे ही मिलने की उमंगें ,
     कभी आ भी जाओ प्रियतम यूँ ही राह चलते चलते "|

सूरत नजर आने लगी

हे कान्हा... मेरे प्यारे सावरे... मेरे चितचोर,
  नजरों का क्या कसूर जो दिल्लगी तुमसे हो गई...
  तुम हो ही इतने प्यारे की मोहब्बत तुमसे हो गई..
अब दिल की मेरी हसरत जुबां पर आने लगी ,
तुमको देखा और जिंदगी मेरी मुस्कुराने लगी..!
कोई सुध ही नहीं, ऐसी हुईं तुमसे मेरी दीवानगी
हर सूरत में बस एक तेरी सूरत नज़र आने लगी..!!

Thursday, March 7, 2019

परिधान पर कुछ विचार


*आपका परिधान आपकी संस्कृति और देखने वाले के भाव का परिचायक बनता है🙏*

*👩‍🦰तन्वी को सब्जी मण्डी जाना था..*

👉उसने जूट का बैग लिया और सड़क के किनारे सब्जी मण्डी की ओर चल पड़ी...

तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी : —
*'कहाँ जायेंगी माता जी...?''*

तन्वी ने ''नहीं भैय्या'' कहा तो ऑटो वाला आगे निकल गया.

👉अगले दिन
तन्वी अपनी बिटिया मानवी को स्कूल बस में बैठाकर घर लौट रही थी...

तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी :—
*''बहनजी चन्द्रनगर जाना है क्या...?''*

तन्वी ने मना कर दिया...

पास से गुजरते उस ऑटोवाले को देखकर
तन्वी पहचान गयी कि ये कल वाला ही ऑटो वाला था.

👉आज तन्वी को
अपनी सहेली के घर जाना था.

वह सड़क किनारे खड़ी होकर ऑटो की प्रतीक्षा
करने लगी.

तभी एक ऑटो आकर रुका :—
*''कहाँ जाएंगी मैडम...?''*

तन्वी ने देखा 👀
ये वो ही ऑटोवाला है
जो कई बार इधर से गुज़रते हुए उससे पूछता रहता है चलने के लिए..

तन्वी बोली :—
''मधुबन कॉलोनी है ना सिविल लाइन्स में, वहीँ जाना है.. चलोगे...?''

ऑटोवाला मुस्कुराते हुए बोला :—
''चलेंगें क्यों नहीं मैडम..आ जाइये...!"

ऑटो वाले के ये कहते ही तन्वी ऑटो में बैठ गयी.

*👉ऑटो स्टार्ट होते ही तन्वी ने जिज्ञासावश उस ऑटोवाले से पूछ ही लिया : —*

''भैय्या एक बात बताइये...❓

🤔दो-तीन दिन पहले
आप मुझे माताजी कहकर
चलने के लिए पूछ रहे थे,

🤔कल बहनजी और आज मैडम, ऐसा क्यूँ...❓''

*🙏ऑटोवाला थोड़ा झिझककर शरमाते हुए बोला :—*
*''जी सच बताऊँ...*
*आप चाहे जो भी समझेँ*
*पर किसी का भी पहनावा हमारी सोच पर असर डालता है.*

*▪आप दो-तीन दिन पहले साड़ी में थीं* तो एकाएक मन में आदर के भाव जागे,

क्योंकि,

*मेरी माँ हमेशा साड़ी ही पहनती है.*

इसीलिए मुँह से
स्वयं ही *"माताजी'"* निकल गया.

*▪कल आप*
*सलवार-कुर्ती में थीँ,*
जो मेरी बहन भी पहनती है.

इसीलिए आपके प्रति
*स्नेह का भाव* मन में जागा और
मैंने *''बहनजी''* कहकर आपको आवाज़ दे दी.

▪आज आप जीन्स-टॉप में हैं, और *इस लिबास में माँ या*
*बहन के भाव तो नहीँ जागते*.

इसीलिए मैंने
आपको *"मैडम"* कहकर पुकारा.

*कथासार👇👇👇👇*

हमारे परिधान का न केवल हमारे विचारों पर वरन दूसरे के भावों को भी बहुत प्रभावित करता है.
*टीवी, फिल्मों या औरों को देखकर पहनावा ना बदलें, बल्कि विवेक और संस्कृति की ओर भी ध्यान दें.*

     *"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"*
धार्मिक प्रवक्ता (सत्य सनातन धर्म)
     ओज-व्यंग्य कवि-गीतकार
           मुंगेली-छत्तीसगढ़

Friday, March 1, 2019

श्री राधा श्री राधा

*यह नाम प्रेम का सार*
*श्रीराधा श्रीराधा*
*चल बाँवरी नाम उच्चार*
*श्रीराधा श्रीराधा*

*कब तक भव सिन्धु डोले*
*तेरी नाव खाए हिचकोले*
*अब पकड़ एक पतवार*
*श्रीराधा श्रीराधा*
*हो भव सिन्धु से पार*
*श्रीराधा श्रीराधा*

*रही जन्म जन्म से निर्धन*
*यह नाम ही है सच्चा धन*
*यही करे अब तेरा उद्धार*
*श्रीराधा श्रीराधा*
*नित बहे प्रेम रस धार*
*श्रीराधा श्रीराधा*

*प्यारी का धाम बरसाना*
*वहाँ कर ले आना जाना*
*यही है सच्चा दरबार*
*श्रीराधा श्रीराधा*
*मुख से कह बारम्बार*
*श्रीराधा श्रीराधा*

*रज थोड़ी सीस चढ़ा ले*
*जिव्हा से नाम तू गा ले*
*राधा नाम की चुनर डार*
*श्रीराधा श्रीराधा*
*यही है सच्चा श्रृंगार*
*श्रीराधा श्रीराधा*

*यह नाम प्रेम का सार*
*श्रीराधा श्रीराधा*
*चल बाँवरी नाम उच्चार*
*श्रीराधा श्रीराधा*

भगवान श्री कृष्ण के ८ पत्नी व ८० पुत्र

भगवान कृष्ण की 8 पत्नियों और 80 पुत्रों के बारे में रोचक जानकारी
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भगवान श्री कृष्ण की 8 पत्नियां थी। प्रत्येक पत्नी से उन्हें 10 पुत्रों की प्राप्ति हुई थी इस तरह से उनके 80 पुत्र थे।  आज हम आपको श्री कृष्ण की 8 रानियों और 80 पुत्रों के बारे में बताएँगे। यह भी पढ़े-  कैसे खत्म हुआ श्रीकृष्ण सहित पूरा यदुवंश?

1. रुक्मणी
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महाभारत अनुसार कृष्ण ने रुक्मणि का हरण कर उनसे विवाह किया था। विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मणि भगवान कृष्ण से प्रेम करती थी और उनसे विवाह करना चाहती थी। रुक्मणि के पांच भाई थे- रुक्म, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस तथा रुक्ममाली। रुक्मणि सर्वगुण संपन्न तथा अति सुन्दरी थी। उसके माता-पिता उसका विवाह कृष्ण के साथ करना चाहते थे किंतु रुक्म चाहता था कि उसकी बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ हो। यह कारण था कि कृष्ण को रुक्मणि का हरण कर उनसे विवाह करना पड़ा।
रूक्मिणी के पुत्रों के ये नाम थे- प्रद्युम्न, चारूदेष्ण, सुदेष्ण, चारूदेह, सुचारू, विचारू, चारू, चरूगुप्त, भद्रचारू, चारूचंद्र।

2. सत्यभामा
🔸🔹🔹🔸
सत्यभामा, सत्राजीत की पुत्री थी, सत्राजीत को शक्तिसेन के नाम से भी जानते है।
सत्यभामा के पुत्रों के नाम थे- भानु, सुभानु, स्वरभानु, प्रभानु, भानुमान, चंद्रभानु, वृहद्भानु, अतिभानु, श्रीभानु और प्रतिभानु।
श्यामा श्याम तत्वज्ञान परिवार
हमारा उदेश्य प्रभु तत्वज्ञान को जन जन तक पहुँचाना l

3. सत्या
🔸🔹🔸
सत्या राजा कौशल की पुत्री थी।
सत्या के बेटों के नाम ये थे- वीर, अश्वसेन, चंद्र, चित्रगु, वेगवान, वृष, आम, शंकु, वसु और कुंत।

4. जाम्बवंती
🔸🔹🔹🔸
जाम्बवंती, निषाद राज जाम्बवन की पुत्री थी। जाम्बवान उन गिने चुने पौराणिक पात्रों में से एक है जो रामायण और महाभारत दोनों समय उपस्तिथ थे। 
जाम्बवंती के पुत्र ये थे- साम्ब, सुमित्र, पुरूजित, शतजित, सहस्रजित, विजय, चित्रकेतु, वसुमान, द्रविड़ व क्रतु।

5. कालिंदी
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कृष्ण की पत्नी कालिंदी, खांडव वन की रहने वाली थी। यही पर पांडवो का इंद्रप्रस्थ बना था।
कालिंदी के पुत्रों के नाम ये थे- श्रुत, कवि, वृष, वीर, सुबाहु, भद्र, शांति, दर्श, पूर्णमास एवं सोमक।

6. लक्ष्मणा
🔸🔹🔹🔸
मद्र कन्या लक्ष्मणा, वृहत्सेना की पुत्री थी।
लक्ष्मणा के पुत्रों के नाम थे- प्रघोष, गात्रवान, सिंह, बल, प्रबल, ऊध्र्वग, महाशक्ति, सह, ओज एवं अपराजित।

7. मित्रविंदा
🔸🔹🔹🔸
मित्रविंदा, अवन्तिका की राजकुमारी थी।
मित्रविंदा के पुत्रों के नाम – वृक, हर्ष, अनिल, गृध, वर्धन, अन्नाद, महांश, पावन, वहिन तथा क्षुधि।

8. भद्रा
🔸🔹🔸
कृष्ण की अंतिम पत्नी, भद्रा केकय कन्या थी।
ये थे भद्रा के पुत्र – संग्रामजित, वृहत्सेन, शूर, प्रहरण, अरिजित, जय, सुभद्र, वाम, आयु और सत्यक।

विशेष👉 इनके अलावा श्री कृष्ण की 16100 और पत्नियां बताई जाती है। इन 16100 कन्याओं को श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध कर मुक्त कराया था और अपने यहाँ आश्रय दिया था।  इन सभी कन्याओं ने श्री कृष्ण को पति स्वरुप मान लिया था।
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...